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बुधवार, 18 नवंबर 2009

कथनी और करनी

  1. वादा करना जितना आसान होता है, उसे निभाना उतना ही मुशकिल।
  2. प्यार जताना बहुत अच्छा लगता है, पर उसे निभाना एक बोझ प्रतीत होता है।
  3. जीत सभी को अच्छी लगती है, हार को स्वीकार करना बहुत तकलीफ देह होता है।
  4. खुद को सुधारने की बजाए दूसरों की आलोचना करने में बहुत आंन्नद महसूस करते है।
  5. पूनम की रात का चंद्रमा बहुत खूबसूरत लगता है, अंधेरी रात के नाम से दिल कांपता है।
  6. किसी को ठोकर लग गिरते देख अच्छा लगता है, गिरे हुए को उठाना भारी महसूस होता है।
  7. दूसरों की कमियां निकालना बहुत आसान है, अपनी कमियों को देखना बहुत कठिन होता है।
  8. दूसरों के लिए कानून बनाना अच्छा लगता है, खुद उन्हीं को अपनाने में हमें तकलीफ होती है।
  9. अपनों को खोने का बहुत दर्द होता है, लेकिन उन्हें खोने से पहले हम उनकी कद्र नही करते।
  10. बार-बार रोजमर्रा की जिंदगी में गलतीयां करने के बावजूद भी हम उससे कुछ सीख नही लेते।
  11. तोहफे लेना तो हमें बहुत अच्छा लगता है, परन्तु तोहफा देते समय हमें यह भारी बोझ लगता है।
  12. सुधार करने के बारे में हम बातें तो बहुत करते है, लेकिन उसे अमल में लाने का प्रयत्न नही करते।
  13. हर रात सपने देखना हमें बहुत भाता है, असल जीवन में उन्हें पूरा करने से हम खुद ही कतराते है।
  14. बातो-बातो से हर किसी को खुश करना आसान होता है, व्यावहारिक तौर पर निभाना उतना ही कठिन।
  15. किसी को माफी देने में हमें बड़ा सुकून मिलता है, खुद माफी मांगते समय हमारा अंहकार आढ़े आता है।
  16. जीवन में सदा अच्छा ही देखने को मन करता है, बुरे वक्त के बारे में सोचते ही हमारी आत्मा तक कांप उठती है।
  17. दूसरों की कमियों को उजागर करने में हम गर्व महसूस करते है, अपनी कमीयों पर हहर कोई कोई पर्दा डालता है।
  18. इन नसीहयतों को पढ़ना तो बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन इन्हें अमली जामा पहनाना तो अपनी पहुंच से बाहर लगता है।

  1. बिना सोचे-समझे किसी को कुछ भी कहना बहुत सरल लगता है जबकि अपनी ही जुबान पर काबू रखना हमारे लिए एक कठिन कार्य है।

  1. जो हमें प्यार करता है, उसे ठेस पहुंचाने में हम पल भर की भी देरी नही लगाते, जबकि हम यह जानते है कि उस जख्म को भरना नमुमकिन होता है।

इसीलिए तो जौली अंकल सदैव यही कहते है कि दूसरों को सच की शिक्षा देने से पहले खुद झूठ बोलना छोड़िए। स्वयं में दैवी गुणों का आहवान करने का प्रयत्न करो तो अवमुण खुद ही भाग जाएंगे। सच्चा ज्ञान वही है, जो अपने ज्ञान से दूसरों को लाथन्वित कर सके। यदि सुखमय जीवन का आंनद लेना है तो हमें इस कथनी और करनी के फर्क को सच्चे मन से मिटाना होगा।        

हद कर दी आपने

बड़े मिया ने अपने पोते को पढ़ाते हुए पूछा कि जरा यह तो बताओ कि हमारे प्रधानमंत्री कहा पैदा हुए थे और उन्होने अपनी पढ़ाई कहा से की है? षरारती पोते ने कहा कि वो अस्पताल में पैदा हुए थे और उन्होने अपनी पढ़ाई स्कूल से की थी। बड़े मियां ने डांटते हुए कहा कि हमारे जमाने में हमें नेताओ के बारे में छोटी से छोटी जानकारी भी मालूम होती थी। पोते ने तपाक् से कह डाला कि उस समय के नेता भी तो आपका ख्याल रखते थे। आजकल न तो नेता लोग जनता के बारे में सोचते है और न ही जनता उनकी परवाह करती है। पोते को डांटते हुए बोले, मियां आपने तो यह कह कर तो हद ही कर दी। बच्चे के मुख से इतना तीखा जवाब सुन कर बड़े मियां गहरी सोच में डूबने को विवष हो गये। दिमाग ने जब पुरानी यादें ताजा करने का प्रयत्न किया तो उन्होने पाया कि पोते ने चाहे जवाब किसी भी मंषा से दिया हो, परंतु उसमें कड़वी सच्चाई छिपी हुई है।
आजाद भारत देष को अब तक 17 प्रधानमंत्रीयों में सबसे अधिक कुषल, गुणी, विद्वान, अर्थषास्त्री और विचारक के रूप में यदि कोई प्रधानमंत्री मिला है तो वो है डा, मनमोहन ंसिंह। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद यह पहले ऐसे प्रधान मंत्री है जिन्हें देष की जनता ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद से नवाजा है। देष-विदेष में इनकी पहचान बहुत ही ईमानदार छवि के साथ एक कुषल और मंजे हुए अर्थशास्त्री की है। दुनियां की शायद ही ऐसी कोई बड़ी वित संस्था होगी जहां श्री सिंह ने कामयाबी के झंड़े न गाड़े हो। डा, मनमोहन सिंह के पहली बार प्रधानमंत्री बनते ही देष की सारी जनता इनकी काबलियत और साफ सुथरी कार्य शैली की दीवानी हो गई। जब श्री सिंह ने पहली बार बिना चुनाव लड़े ही देष के प्रधान मंत्री का पद संभाला तो हर एक आम आदमी के मन से यही आवाज आ रही थी कि अब तो दुख भरे दिन जल्द ही खत्म हो जायेगे। हर गरीब किसान और मजदूर से लेकर मध्यम वर्ग के दिलों में सैंकड़ों ख्वाब जवां होने लगे थे। जिसे देखो वो ही इन हसीन ख्वाबो में खुषी से डोलता नजर आ रहा था। हर किसी के दिल में यही आस थी कि डा, मनमोहन से बढ़ कर गरीबो का मसीहा भारत देष में कोई और नही हो सकता। हर देषवासी इसी गलतफहमी में जी रहा था कि लाखों-करोड़ो दीन-दुखीयों के दर्द की टीस प्रधानमंत्री के दिल को एक बार तो जरूर छुऐगी और जल्द ही सारे देष में कामकाज और सरकारी व्यवस्था का साफ सुथरा महौल बन जायेगा।
हमारे देष की भोली जनता यह नही समझ पाई कि जिन लोगो ने मनमोहन सिंह को बिना चुनाव लड़े घर में बैठे हुए प्रधानमंत्री का ताज पहनाया है, वो उनकी बात को छोड़ कर गांव में गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने वाले किसानों और मजदूरों की बात क्यूं सुनेगे? पहली बार आम जनमानस के सामने यह कड़ुवा सच आया कि उनके जख्मों को भरने के लिए मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री के पास भी कोई महरम नही है। दुनियां भर में पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजे गये श्री सिंह देष के प्रधानमंत्री होते हुए भी एक रेलवे के इंजन ड्राईवर से बढ़ कर कुछ नही है। हर कोई इतना तो समझता है कि हमारे देष में सरकार किसी के हाथ में है और सरकार की कमान परदे के पीछे बैठे किसी दूसरे के हाथ में है। आज सारा देष मंहगाई की मार से मर रहा है। हर वस्तु एंव दाल-सब्जी के बार-बार बढ़ते दामों के कारण बच्चो के लिए रोटी का जुगाड़ करते हुए गरीब आदमी का सीना छलनी होता जा रहा है। लोगो को फल और सब्बजियों की बढ़ती कीमतों के चलते उनके नाम और शक्ल तक भूलने लगी है। गलती से कोई डॉक्टर किसी मरीज को फल या हरी सब्जी खाने को कह दे तो उस बेचारे का उसी समय रंग पीला पड़ने लगता है। मंहगे इलाज के चलते उसकी जीवन नैया मझदार में हिजकोले खाने लगती है।
हमारे सबसे कामयाब प्रधानमंत्री भी इस बात को मानते है मंहगाई के मोर्चे पर सरकार से भारी चूक हुई है। एक बात जो किसी के गले नही उतरती वो यह है कि दुनियां को अर्थशास्त्र का ज्ञान देने वाले इंसान से कहां और कैसे भूल हुई? नतीजतन जिसके चलते देष में सभी वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्वि हो रही है। वैसे तो आम आदमी के पास इतनी फुर्सत और ताकत बची ही नही, कि वो सरकार की विफल नीतियां और मंहगाई के विरोध में आवाज उठा सके। यदि कभी कभार कोई यह गलती करने की कोषिष करता भी है तो सरकार के निर्देष पर पुलिस डंडे बरसाने लगती है। कोई थोड़ी बहुत जोर जब्बरदस्ती करता है तो उन्हें झूठे आरोपो में गिरफतार करके जेल में डाल दिया जाता है। प्रधानमंत्री आम जनता की तकलीफो से मुख मोड़ कर एक ही बात कहते है कि आंदोलन करने से कुछ हल नही निकलेगा। सरकार कुछ कार्रवाई करने को तैयार नही, फिर जनता राहत की उम्मीद करे भी किस से करे? रिष्वत खोरी, भ्रष्टाचार, चोर बाजारी करने वालों को सरकार और पुलिस का कोई डर नही रह गया।
हर देषवासी के सामने एक ही प्रष्न बार-बार उठता है कि सारी दुनियां में धाक रखने वाला इतना कामयाब प्रधानमंत्री न जानें किसके दबाव में है कि उन्हें न तो जनता का कोई दुख दिखाई दे रहा है और न ही उसकी चीख पुकार सुनाई दे रही है। क्या आप इतना भी नही समझते कि राजनेता का मुख्य दायित्व जनसेवा ही होता है और प्रधानमंत्री को सर्वप्रथम जनता का सच्चा सेवक होना चहिए? आज हर भारतीय की आत्मा रोते-रोते यही कह रही है कि मनमोहन ंसिंह जी आपने तो सिंह और किंग होते हुए भी नामर्दो की तरह देष के आम आदमी के लिए कुछ नही किया। आपके इस वादे पर कि आप देष से गरीबी खत्म कर देगे, जनता ने दूसरी बार आपको प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया है, अब तो जनता को कुछ राहत पहुंचाओ। यदि इसी तेजी से कीमते बढ़ती रही तो आने वाले समय में जल्दी ही सारे देष से गरीब ही खत्म हो जायेगे फिर आप गरीबी क्या खाक मिटाओगे? हर तरफ से निराष हो चुके मन से अब तो यही टीस उठ रही है कि आज के इस बिगड़ते हुए महौल में यदि जनहित को कोई राहत दे सकता है तो वो सिर्फ भगवान ही बचा है। परंतु ऐसा लगता है कि वो भी अब इस काम को करने में कोई रूचि नही रखते। चारों और फैली हुई गरीबी, मंहगाई, हिंसा, और आंतकवाद की आग को ब्यां करते हुए अब तो जौली अंकल की कलम भी अपने भारी मन और आंसूओ के साथ यही कह रही है कि मनमोहन जी प्रधानमंत्री बन कर तो हद कर दी आपने। 

नशा करना है तो

कुछ दिन पहले हम एक होटल में परिवार के साथ बैठकर रात के खाने का आनंद ले रहे थे। हमारे साथ वाली मेज पर कुछ युवक भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के साथ-साथ दारू का मजा भी ले रहे थे। पाकिस्तान के एक खिलाड़ी की गेंद पर सचिन ने काफी देर बाद बहुत ही जोर से एक शॉट मारा तो गेंद गोली की तरह सीधे छह रन के लिये मैदान से बाहर हो गई। यह देखते ही उनमें से एक युवक बोला कि यार मजा आ गया, इसी बात पर जल्दी से एक बढ़िया सा पैग बनाओ। कुछ गेंद इधर-उधर खेलने के बाद सचिन साहब अपनी आदतानुसार एक आसान सी गेंद पर आउट होकर पैविलियन की तरफ चल दिये। फिर उसी मेज से आवाज आई, वेटर जल्दी से एक पैग लेकर लाओ, सचिन ने तो सारा मूड़ ही खराब कर दिया। मुझे तो एकदम से वो बात याद आ गई - कारण कुछ भी हो, पीने वालों को तो पीने का बहाना चाहिये। दारू पीने वाले तो सांझ ढ़लने का इंतजार करते रहते है, कि कब शाम हो और वो महखाने में महफिल जमां सके। जैसे ही मंदिर में शाम को पूजा की घंटियां बजनी शुरू होती है, दारू पीने वालों के दिमाग में नशे की घंटीयां बजनी शुरू हो जाती है। एक और जहां कुछ लोगो के दिलों दिमाग पर दारू का नशा हावी होता है, वही कुछ लोगो को अपने पैसे और ताकत का नशा होता है।
गम हो या खुशी, काम की कोई परेशानी हो या व्यापार में किसी किस्म का फायदा-नुकसान, पीने वालों को तो हर समय मौके की तलाश रहती है। घर में छोटी से छोटी खुशी का इजहार करने के लिये दारू तो एक फैशन बनती जा रही है। किसी को पुरानी शराब से सरूर मिलता है, तो किसी को नये ब्रांड से लगाव होता है। मतलब तो यह है कि कोई न कोई नशा होना चाहिये। अब वो चाहे किसी भी प्रकार का हो। अमीर लोग होटल-क्लबों में, मध्यमवर्गीय लोग कुछ घर में बैठ कर तो कुछ गली या पार्क के किसी कोने में छुप कर अपनी तलब पूरी करते है। उससे नीचे की कमाई वाले लोग अपनी हैसयित के मुताबिक देसी दारू, अफीम, चरस से या कुछ गोलियां एवं इन्जेक्शन आदि लगा कर सुकून महसूस करते हैं। फिर चाहे इससे कितने ही परिवार बर्बाद हों, शरीर कोई रोग ही क्यों ना लग जाए? नशा करने वालो को सदा एक बात याद रखनी चहिये कि जिस दिन वो पहली नशा करते है, उनका वो कदम उनके जीवन की बर्बादी की शुरूआत करता है।
कई बार नशा करने वालाें से बातचीत का मौका मिला तो एक बात सब लोगों में सामान्य रूप से पाई गई कि वो किसी भी प्रकार नशा करते हो, कोई भी यह मानने को तैयार नहीं कि मैंने अपनी मर्जी से नशा किया है। हर कोई एक दूसरे के कंधे पर बन्दूक रखकर अच्छी तरह से चलाना जानते हैं। सबके पास पीने का कोई न कोई ठोस बहाना भी जरूर मिल जाएगा। कोई घर की परेशानियों से तंग है, तो कोई अपने गम भुलाने की कोशिश करने के लिये पीता है। असल में किसी भी छोटे-मोटे काम के पूरा होने पर दारू के साथ उसे उत्सव के रूप में मनाना आज के समाज में फैशन सा बनता जा रहा है।
यह भी सच है, कि मिर्ज़ा गालिब से लेकर आज तक सैंकड़ों शायरों ने दारू की तारीफ में हजारों बार कसीदे पढे हैं। लेकिन क्या किसी प्रकार का कोई नशा सचमुच आपकी परेशानी को खत्म कर पाया है? क्या यह नशे आज तक आपके किसी गम को भुलाने में सहायक हुए हैं। अगर असल जिंदगी में यह मुमकिन होता तो अब तक सारे गधे दारू पीकर इन्सान बन जाते। लेकिन हमारे यहां तो पढ़े-लिखे लोग दारू पीकर गधों जैसी हरकतें करते अक्सर नजर आ जाते हैं। आज तक इतिहास में एक भी ऐसा उदारण देखने को नहीं मिलता कि किसी भी प्रकार के नशा करने वाले इन्सान ने समाज को किसी तरह से भी प्रभावित किया हो। कोई भी नशा जिसे लेने से आपका अपने शरीर, मन और मस्तिष्क पर काबू खत्म हो जाता हो, वो आपकी परेशानियों को कैसे खत्म कर सकता है और ऐसा नशा करने का क्या फायदा जो सिर्फ कुछ देर में ही उतर जाए? इतना सब कुछ जानने और समझने के बाद भी यदि आप नही संभलते तो फिर सारी उंम्र यही कहना पड़ेगा कि सब कुछ लुटा कर होश में आये तो क्या किया।
नशा करना है तो भगवान के नाम का करो, दीवाना बनना है तो राम के नाम का बनो। एक बार उस परमात्मा के नाम की खुमारी का असर आपके ऊपर छा गया तो फिर आप एक ही बात बार-बार कहोगे कि - नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात। जिसका मतलब है कि ऐ भगवान तेरे नाम का नशा दिन रात सदा-सदा के लिये चढ़ा रहे। वो लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें भगवान का आर्शीवाद प्राप्त होता है। एक बार सच्चे मन से लगन लग जाए तो, जौली अंकल का वादा है कि फिर सारी दुनिया के नशे आपको फीके लगने लगेगे।      

स्वभाव

एक बार एक साधु महात्मा नदी के किनारे से गुजर रहे थे, उन्होंने एक कीडे क़ो नदी में गिरते देखा, तो पास जाकर उसे बचाने की कोषिष करने लगे उसे झट से उठा कर जैसे ही पानी से बाहर निकाला तो उस कीडे ने साधू महाराज को बहुत जोर से डंक मार दिया। साधू के हाथ से वो कीड़ा गिरकर फिर छटपटाते हुए नदी में डूबने लगा। साधु महाराज ने 2-3 बार फिर से उसे बचाने की कोषिष की लेकिन जैसे ही वो अपना हाथ उस कीड़े को बचाने के लिए आग बढ़ाते वो कीड़ा उन्हें हर बार डंक मार देता। पास से गुजरते एक राहगीर ने साधू महाराज से पूछा कि महाराज वो कीड़ा बार-बार आपको डंक मार रहा है, आप फिर भी उसे बचाने की व्यर्थ कोषिष क्यूं कर रहे हो? साधू महाराज ने बड़ी ही नम्रतापूर्वक कहा, उस कीड़े का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है, जीवन बचाना। अगर वो कीड़ा होते हुए अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता तो मैं अपना स्वभाव कैसे छोड़ दूं? साधू महाराज ने आगे समझाते हुए कहा कि हमारा जीवन एक नाटक की तरह है, यदि हम इसके कथानक को ढंग से समझ लें तो सदैव प्रसन्न रह सकते हैं।
मुझे यह कहानी इसलिये याद आ गई, क्योंकि कुछ दिन पहले कुछ सरकारी डाक्टर और अफसर हमारे इलाके में आकर सभी कालोनी निवासियों को साफ-सफाई रखने और बीमारियों से बचाव के तरीके समझा रहे थे। मैंने बहुत ध्यान से जब सब तरफ देखा तो पाया कि इस बैठक में अधिकतर 40-50 साल की उम्र के अच्छे पढ़े-लिखे और जिम्मेदार नागरिक षामिल थे। सरकारी अफसरों ने काफी समय लगा कर हमें साफ-सफाई और अच्छे रहन-सहन के बारे में हर प्रकार की जानकारी बहुत ही बरीकी से दी। हमने भी उनकी बातें बहुत गौर से सुनीं और पाया कि इनमें से अधिकतर बातें हम सब लोग जानते है। फर्क सिर्फ इतना है, कि हम लोग व्यावहारिक जीवन में उन पर अमल नहीं करते क्योंकि हमने इन्हें कभी भी अपने स्वभाव में शामिल करने की कोषिष नहीं की। हम अपना घर साफ करके कूड़ा-कचरा गली के कोने में फेंक देते है, और उम्मीद करते हैं कि सरकारी कर्मचारी आकर इसे अपने आप साफ करेंगे, फिर तब तक चाहे कोई महामारी ही क्यूं ना फैल जाये? हम तो अपना पल्ला झाड़ कर सारा इल्जाम सरकार पर थोप देते हैं।
हम अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजकर अच्छी षिक्षा का इन्तजाम तो कर देते हैं, पर उन्हें जीवन के मूलभूत सिध्दान्त सिखाना भूल जाते हैं। हर परिवार सिर्फ यही चाहता है कि जीवन में उनके बच्चे अच्छी षिक्षा ग्रहण करके अधिक से अधिक धन कमाने की मषीन बन सकें। अच्छे नागरिक के गुण देने का कर्तव्य तो अधिकतर परिवार भूल जाते है। जाने अनजाने, हम अपने बच्चों को समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को जागरूक करने की बजाए उनको अपने ही स्वार्थ तक सीमित रहने के लिये प्रेरित करने की भूल कर बैठते हैं। बाकी की सब बातों को भूलकर पैसा कमाना ही हमारी प्राथमिकता बन गई है। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि इस देष का अब कुछ नहीं हो सकता पर गौर से देखा जाए तो अभी बिगड़ा ही क्या है? अगर हम आज से भी अपने बच्चों को घर और स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ साफ-सथुरे जीवन का ढंग सिखाना षुरू कर दें, तो अच्छे नागरिक के सारे संस्कार हमारे बच्चों के स्वभाव में रचबस जाऐंगे। फिर उसके बाद उनको अच्छे रहन-सहन, साफ-सफाई और कानून की इज्जत करने के लिये हमारी तरह बुढ़ापे की उम्र में भाषण देने की जरूरत नहीं पडेग़ी।
यदि आज से भी जनसाधारण अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझना षुरू कर दें, तो हमें अपनी अधिकतर समस्याओं के समाधान के लिये सरकारी मषीनरी की तरफ नहीं ताकना पड़ेगा। अब अगर हम एक बार मन में ठानकर यह शुरूआत करें तो आने वाली पीढ़ियों के साथ-साथ हमारे समाज का भविष्य साफ-सुथरा, सुरक्षित और उज्जवल हो जाएगा। कुछ लोग जल्दबाजी के स्वभाव के चलते झूठी प्रंशसा पाने के लिए बिना सोचे समझे अपने स्वार्थ्र हेतू कुछ भी करने को तैयार हो जाते है। जबकि किसी काम को करने के बाद पछताने से बेहतर है कि काम करने से पहले उस पर सोच-विचार लिया जाए। ऐसे लोगो को यह भी नही भूलना चहिये कि इस तरह के स्वभाव के लोगो का साथ सज्जन पुरष कभी नही निभा पाते। सदैव अपने स्वभाव को सरल बनाओ तो आपका समय व्यर्थ नहीं जाएगा। जब आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलते हो तो उस समय दूसरे भी आपको महत्व देंगे।
साधू-संतो की बात को पल्ले बांधते हुए जौली अंकल तो यही कह सकते है कि हम सभी को मिलकर आज अपने आप से यह वादा करना होगा कि हम अपने परिवार के साथ अपने खुद के स्वभाव को देष और जनहित में बदलेगे क्योंकि जनहित की सेवा करने वाले सेवा करते हुए भी सुखी देखे जाते हैं और स्वार्थी स्वभाव वाले तो अक्सर दुखी ही नजर आते है।          

कहीं देर न हो जाऐं

टीचर ने गप्पू को डांटते हुए कहा कि कम से कम 100 बार तुम्हें समझा चुका  हूँ कि स्कूल शुरू होने का समय सुबह सात बजे है। परन्तु तुम इतने ढीठ हो चुके हो कि कभी भी क्लास में आठ बजे से पहले नही आते। गप्पू ने मसखरी हंसी हंसते हुए कहा कि मैंडम आप मेरी चिंता बिल्कुल मत किया करो। आप अपना स्कूल समय पर शुरू करवा दिया करो। टीचर ने अपने गुस्से पर थोड़ा काबू रखते हुए गप्पू से पूछा कि हर दिन स्कूल में देरी से आने का कोई न कोई बहाना तुम्हारे पास जरूर होता है, आज कौन सा नया बहाना लेकर आये हो? गप्पू ने बिना किसी झिझक के मैंड़म से कहा कि आज तो स्कूल के लिये तैयार होने में ही इतनी देर हो गई कि कोई बहाना सोचने का समय ही नही मिला।
ऐसे किस्से सिर्फ स्कूलों में ही देखने को मिलते है, ऐसी बात नही है। सरकारी दफतरों और खास तौर से अस्पतालों में इस तरह किस्से कहानियों की तो भरमार है। चंद दिन पहले हमारे पड़ोसी मुसद्दी लाल जी को दिल का दौरा पड़ गया। सभी घरवाले उन्हें तुरन्त ही पास के एक नजदीकी सरकारी अस्पताल में इलाज के लिये ले गये। वहां का महौल देख कर तो ऐसा लग रहा था कि शायद आज सारे शहर के लोग बीमार होकर यहां आ गये है। जगह-जगह दीवार पर लगी तख्तीयां पर लिखे इस संदेश को कि कृप्या शांत रहे अनदेखा करते हुए लोग मछली बाजार की तरह शोर मचा रहे थे। इस महौल में मुसद्दी लाल जी की तबीयत और बिगड़ती जा रही थी, लेकिन डॉक्टर साहब का अभी तक कोई अता पता नही था। उनके बेटे ने अस्पताल के एक कर्मचारी से जब डॉक्टर साहब के आने के बारे में पूछा तो टका सा जवाब मिला कि डॉक्टर साहब थोड़ी देर पहले ही आये है। परन्तु रास्ते में टै्रफ्रिक जाम के कारण थक गये है, इसलिये थोड़ा आराम कर रहे है। आप शंति के साथ थोड़ा इंतजार करो, डॉक्टर साहब के आने पर आपका इलाज शुरू हो जायेगा। मुसद्दी लाल के बेटे ने डरते हुए कहा मेरे पिता जी की तबीयत बहुत बिगड़ रही है, कहीं ऐसा न हो कि डॉक्टर साहब के आने तक बहुत देर हो जाये।
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, मुसद्दी लाल जी के घर वालों के गुस्से का पारा भी तेजी बढ़ता जा रहा था, लेकिन कोई भी कुछ भी करने में अपने आप को असमर्थ पा रहा था। काफी देर बाद जब डॉक्टर साहब आराम फरमा कर बाहर आये तो वहां खड़े हर किसी ने इंसानियत की सभी मर्यादयों को तोड़ते हुए जानवरों जैसा व्यवहार शुरू कर दिया। मुसद्दी लाल जी का थोड़ा बहुत चैकअप करने के बाद डॉक्टर ने कुछ गोलीयां खाने को दे दी और साथ ही इलाज शुरू करने से पहले दिल की गहन जांच के लिये इंजोग्राफी करवाने को कह दिया।
अब सभी घरवाले मुसद्दी लाल जी को लेकर इंजोग्राफी करने वाले विभाग की और भाग रहे थे। वहां भी बहुत देर तक इंतजार करने के बाद बड़ी मुशकिल से एक नर्स से मुलाकात हो सकी। उसने बिना कुछ भी सुने डॉक्टर की पर्ची को देखते ही उस पर तीन महीने बाद की तारीख ड़ाल दी। पर्ची पर तीन महीने बाद की तारीख देखते ही मुसद्दी लाल के बेटे का मन कर रहा था कि ऐसे करूर कर्मचारीयों को गोली मार दे। लेकिन पिता की तेजी से बिगड़ती हालात की गंभीरता और नजाकत को समझते हुए उसने गिड़गिड़ाते हुए उस नर्स से इतना ही कहा कि आपको क्या लगता है कि ऐसी हालत में मेरे पिता जी तीन महीने तक बच पायेगे। नर्स ने बिना उनकी और देखे ही कह दिया यदि इन्हें कुछ हो जाता है तो आप फोन करके हमें सूचित कर देना ताकि हम वो तारीख किसी और मरीज को दे सके।
ऐसे में गरीब आदमी दोष दे भी तो किस को? अस्पताल के कर्मचारी बढ़ते काम को अधिक बोझ बता कर, सरकार देश में बेलगाम बढ़ती अबादी और सीमित कर्मचारीयो एवं संसाधनों का रोना रो कर अपना पल्ला झाड़ लेती है। सरकार में जिम्मेदारी के सभी पदों पर बैठे देश के रहनुमाओं को यह कभी नही भूलना चहिये कि गरीबो के शाप से कई देश बर्बाद हो गए है, कई बार राजाओं को अपनी गद्दी तक छोड़नी पड़ी है। आदमी गरीब हो या अमीर जीवन सभी का अनमोल होता है, ऐसे में कोरी बहाने बाजी करने से न तो किसी समस्यां का हल निकल सकता है और न ही किसी का जीवन बचाया जा सकता है। सदैव यह याद रखो कि समय ही जीवन है, समय को बर्बाद करना अपने जीवन और देश को बर्बाद करने के समान है। अब यदि आपको दूसरों की प्रतीक्षा करने की पड़ ही चुकी है तो आप दुसरों की अपेक्षा अवश्य ही पीछे रह जाएंगे। अभी भी इतनी देर नही हुई है कि हम हर तरफ से उम्मीद ही छोड़ दे। कभी भी अपने जीवन में आशा न छोड़े, आशा एक ऐसा पथ है जो जीवन भर आपको गतिशील बनाए रखता है। जो व्यक्ति जीवन में उम्मीद खो देता है समझों कि उसने सब कुछ खो दिया।
जौली अंकल बिना और देरी किये अपने मन की भावनाओं को आपके सामने कुछ इस प्रकार रखते है कि कभी भी इस तरह से धन न कमाओं कि आपके हाथों कोई पाप हो जाऐं और जीवन में कभी भी इस तरह से न चलों की कहीं देर न हो जायें।  

स्पैशल हैप्पी न्यू ईयर

घंटे, दिन, हफते और महीनो के साथ-साथ तेजी से बदलते हुए कैलेडंर के पन्नो ने कब एक और साल को अलविदा कहने की कतार पर ला कर खड़ा कर दिया पता ही नही चला। पलक झपकते ही मौसम की तरह कब और कैसे बदल जाते है साल, इस बात की खबर, समय किसी को नही लगने देता। आपने एक बात पर जरूर गौर किया होगा कि अधिकतर लोग नये साल के जश्न पर अपने लिए कोई न कोई नेक प्रस्ताव जरूर बनाते है। वो बात अलग है कि आजकल लोगो की यादशश्त इतनी कमजोर होती जा रही है कि चंद दिनों बाद ही याद नही रहता कि इस नये साल पर उन्होनें अपने लिये क्या प्रण लिया था, फिर ऐसे में उस पर अमल करने का तो प्रश्न ही नही उठता। ऐसा ही एक किस्सा मैं सबके चहेते वीरू का आपको बताता  हूँ। उस दिन मैने जब उसे एक पार्टी में देखा तो वो पैग पर पैग चढ़ाये जा रहा था। मैने उसे याद करवाया कि तुमने तो इस साल के शुरू में वादा किया था कि तुम अब कभी भी दारू नही पीओगे, आज यह क्या कर रहे हो? नशे में टून हो चुके वीरू ने लड़खड़ाती जुबान से नये साल की मुबारक देते हुए कहा कि अभी तो मैने सिर्फ अपने पैसो की पीनी छोड़ी है और फिर आज तो नया साल है। जो सारा साल दारू को हाथ नही लगाते इस दिन तो वो भी दारू का प्यार से गले लगा लेते है। उसके इस जवाब से आपको भी हैरानगी तो जरूर हो रही होगी, लेकिन अधिकाश: लोगो का इस मामले में यही हाल होता है।

नया साल कोई त्योहार न होते हुए भी एक त्योहार से बढ़ कर होता है। चारो और हंसी-खुशी का महौल, छोटे-बड़े सभी संगीत की धुनों पर डांस करते हुए और मस्ती के मूड में देखने को मिलते है। हर कोई पुराने साल को बाय-बाय और नये साल के स्वागत के लिए बड़े ही जोर-शोर से तैयारी करता है। एक और कुछ लोग मंदिर, गुरूद्ववारों में पूजा अर्चना से नये साल की शुरूआत करना पंसद करते है तो दूसरी और कुछ लोग अक्सर नये साल की शुरूआत परिवार वालो और दोस्तो के साथ मिलकर पार्टी करते है। कुछ मनचले युवा सड़को पर हुड़दंग मचा कर और दारू के नशे में डूबने को ही नये साल के जश्न का नाम देते है।

नशे में डूब कर पुराने साल को भूलने और नये साल को याद करने की पंरम्परा कब और कैसे शुरू हुई, इस बारे में तो कोई शौधकर्ता ही प्रकाश डाल सकते है। कोई इंसान कितने ही कष्ट और फटेहाल में जी रहा हो परंन्तु हर कोई नये साल के मौके पर एक दूसरे को सुख, समृद्वी, अमन-चैन, अच्छे स्वास्थ्य के साथ मंगलमई और आनन्ददायी जीवन की कामना करते हुए शुभकामनाऐं देते है। हर साल आम आदमी के लिए हालात बद से बद्तर होते जा रहे है, फिर भी हम सभी नये साल के स्वागत में चाहे बुझे मन से ही सही हर किसी को शुभकामना देने की पंरम्परा तो निभाते चले जा रहे है। आज मंहगाई की इस मार के चलते जब गरीब की थाली से दाल-रोटी रूठती जा रही है, बच्चे दूध के लिये तरस रहे है, ऐसे में कोई अपने प्रियजनों को नये साल की मुबारक दे भी तो किस मुंह से? नये साल की शुभकामना देने के लिये थोड़ी देर के लिये ही सही लेकिन अपने चेहरे पर खुशी कहां से लाऐं।

पिछले साल भी हमने अपने दोस्तो और रिश्तेदारों को नये साल की शुभकामना देते हुए भगवान से प्रार्थना की थी कि सभी का जीवन आनन्ददायक, शांतमई और सुखदाई हो, लेकिन हुआ सब कुछ इसके उल्ट। ऐसा लगता है कि भगवान ने भी गरीबो से रूठ कर अमीर व्यापारियो, जमाखोर और भ्रष्ट नेताओ से दोस्ती कर ली है। आखिर वो ऐसा करे भी क्यूं न? गरीब आदमी जहां रूप्ये-सवा रूप्ये का प्रसाद चढ़ा कर अपनी मांगो की लंबी लिस्ट भगवान के सामने रख देता है, वही बड़े-बड़े घपले करने वाले नेता आऐ दिन लाखो-करोड़ो का चढ़ावा भगवान के चरणों में आर्पित करते है। अभी तक तो यही सुनने को मिलता था कि ईश्वर सभी को सुख देता है, लेकिन आजकल के हालात देखने से तो यही महसूस होता है कि जिस देश की सरकार आम आदमी की कमर तोड़ने के लिये अपनी कमर कस ले, उस बेचारे को भगवान भी नही बचा सकता। देश की जनता किस हाल में और कैसे गुजारा कर रही है, इस बात से हमारे देश के रहनुमा बिल्कुल बेखबर होकर शानदार होटलों में नये साल का जश्न मनाने में मशगूल है।

क्या हमने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि नये साल के स्वागत करने का सबसे बढ़िया तरीका क्या हो सकता है? जी हां नये साल की शुरूआत करने का सबसे बढ़िया तरीका है अपनी सभी परेशानीयां और गमों को भुलाकर हंसते'-हंसते नये साल का अभिनंदन करे। हम सभी का चहिये कि अपने बड़े-बर्जुगो का अच्छे सम्मान करते हुए उनसे आर्शीवाद ले, क्योंकि घरों में बड़े बुजुर्गों के अपमान से अच्छे संस्कारों की बहने वाली गंगा सूख जाती हैं। नये साल के मौके पर जो कोई संकल्प करो उसे बीच-बीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाते रहो तो एक दिन आप अवश्य विजयी बन जाओगे।
हम लाख चाह कर भी देश की भ्रष्ट व्यवस्था को नही बदल सकते। अब यदि हमें जीवन में हर परिस्थिति का सामना करना ही है तो इसे प्रेम से क्यों न करें? इस बार नये साल के प्रस्ताव के बारे में जौली अंकल तो यही सदेंश देना चाहते है कि अपने दुखों को भूल कर सबके प्रति भाई-भाई की दृष्टि रखने से आप सदा प्रेमयुक्त रह सकते है। नववर्ष कैसा हो इस परेशानी को भूल कर एक बार फिर से हिम्मत दिखाते हुए नई ऊर्जा के साथ बुलंद आवाज में कहो स्पेशल हैप्पी न्यू ईयर।  

नाम बड़े और दर्षन छोटे

दिल्ली दर्शन की दिलचस्प दास्तान
कॉमनवेल्थ गैम्स के मद्देनजर सरकार द्वारा दिल्ली को एक खूबसूरत अन्तर्राष्ट्र्रीय शहर बनते देखने की लालसा ने मसु्रद्दी लाल को दिल्ली दर्शन के लिये मजबूर कर ही डाला। टीवी एवं समाचार पत्रो की माने तो यहां के सभी विश्व प्रसिद्व ऐतिहासिक स्थलों और मैट्रो के रंग रूप को और अधिक खूबसूरत बनाने के लिये सरकार द्वारा करोड़ो रूप्ये खर्च किये जा रहे है। गांव से दिल्ली पहुंचने के लिये मसु्रद्दी लाल को अपने सफर की शुरूआत पैसेजंर गाड़ी से करनी पड़ी। गाड़ी चलती कम थी और रास्तें में पड़ने वाले हर स्टेशन पर रूकती अधिक थी। हर डिब्बे में जबर्दस्त भीड़ थी। एक-एक सीट पर कई-कई यात्री दावा ठोक रहे थे। आखिर किसी तरह जब गाड़ी दिल्ली पहुंची तो मसु्रद्दी लाल ने सुकून के साथ राहत की सांस ली।

स्टेशन से बाहर निकलते ही मसु्रद्दी लाल का सामना कूड़े के ढ़ेरो से हुआ, जिसे देखते ही उसे अपने गांव का स्टेशन याद आ गया। सिर्फ कूड़े के दर्जे में थोड़ी भिन्नता जरूर थी, बाकी सब कुछ वैसे ही था। इतने में कुछ मक्कार आटो-टैक्सी ड्राईवरो ने मोटी कमीशन खाने के चक्कर में घटिया और मंहगे होटल में मसु्रद्दी लाल को रूकवाने के लिये घेर लिया। मसु्रद्दी लाल जी रहीम जी की उस वाणी को मन में संजोये दिल्ली आये थे जिसमे उन्होने कहा था कि हर किसी को प्रेम से मिला करो, न जानें किस रूप में भगवान मिल जाऐं। लेकिन दिल्ली पहुंचते ही यह अभास होने लगा कि अब तो न जानें जमाने की हवा कैसी चल निकली है कि जिस तरफ देख लो हर तरफ शौतान ही शैतान नजर आते है।


उन सभी से बचते-बचाते स्टेशन के बाहर कुछ देर वो अपने एक रिश्तेदार का इंतजार करते रहे। मसु्रद्दी लाल को हैरानगी हो रही थी कि आने की सूचना कई दिन पहले डाक से भेजी थी, फिर भी उन्हें लेने स्टेशन पर कोई क्यूं नही आया? बहुत देर तक इंतजार करने पर भी जब उन्हें दूर-दूर तक कोई अपना नजर नही आया तो हठ करके एक आटो में बैठ कर अपने परिचित के घर जाने की हिम्मत कर ही ली। कुछ देर चलने के बाद उस आटो वाले ने सीएनजी स्टेशन की लंबी लाईन में अपना आटो खड़ा कर दिया।
रास्ते में जहां कही भी 'आपका स्वागत है' का बोर्ड नजर आता वहीं दिल्ली पुलिस के मोटी-मोटी तोंद वाले हाथ में लठ लिये तू-तड़ाक से स्वागत कर देते। हर चौराहे पर बैरीयर लगा कर सैंकड़ो गाड़ीयों को रोका हुआ था। कई जगह आटो रोक कर मसु्रद्दी लाल से अच्छी खासी पूछताछ के साथ उनके सारे सामान की छानबीन भी की गई। एक बार तो सारा सामान खुलवा कर देखा गया। यहां तक की गांव से लाये हुए देसी घी के लव्ूओ के डिब्बे को एक तरफ अलग रख लिया और साथ ही वहां से चुपचाप खिसक जाने की धमकी दे डाली। हर लाल बत्ती पर भिखारीयों की भरमार को देख मसु्रद्दी जी हैरान हो रहे थे। यह लोग भीख भी कुछ इस अंदाज में मांग रहे थे, जैसे कि किसी ने इनका बरसों पुराना कर्जा देना हो। तकरीबन दो-ढाई घंटे सड़को की धूल मिट्टी में भूखे-प्यासे, बैठने के बाद उस आटो ने आखिर मसु्रद्दी लाल को उनके रिश्तेदार के घर पहुंचा ही दिया। वहां पहुंचते ही अब किराये भाड़े को लेकर अच्छा खासा झगड़ा शुरू हो गया, जिसकी नौबत थोड़ी ही देर में गाली गलोच तक पहुंच गई।
दो तीन दिन दिल्ली में रूकने के दौरान मसु्रद्दी लाल ने पाया कि जहां सरकार दिल्ली को अन्तर्राष्ट्र्रीय शहर बनाने का हर दावा तो कर रही है, वही बाकी सभी परेशानीयों के साथ आम आदमी बिजली, पानी के लिये तरस रहा है। शहर की कुछ बड़ी सड़को को छोड़ बाकी सभी सड़को का हाल गांव से भी बुरा है। चंद मिनटों के सफर के लिये घटों टै्रफिक जाम का सामना करना पड़ता है। शहर में लड़कियां कम से कम कपड़े पहने अपने शरीर की नुमाईश कर रही है।
अपने गांव के लिये जब एक बाजार से टेपरिकार्डर खरीदने दिल्ली की महशूर मैट्रो में सवार हुए तो उसमें इतनी भीड़ थी कि कोई अपनी जगह से हिल भी नही पा रहा था। मसु्रद्दी लाल ने तो एक सज्जन को यहां तक कह दिया कि यदि तुम्हारा एक हाथ खाली है तो जरा मेरा कान खुजा दो। कान में खुजली से बहुत दिक्कत हो रही है। घर पहुंचने पर जब खुशी-खुशी सब को टेपरिकार्डर दिखाने लगे तो पाया कि उसमें एक प्लास्टिक के खाली डिब्बे के इलावा कुछ भी न था।
मसु्रद्दी लाल बहुत सारे पर्यटन स्थलों और अन्य कई जगह घूमने की मंशा लेकर दिल्ली आये थे। लेकिन दिल्ली शहर की हालात और कानून व्यवस्था को देख कर दो ही दिन में उनका धैर्य और संयम टूट गया। दिल्ली शहर के सुहावने सपने देखने की मंषा ने उन्हें वो सब कुछ दिखा दिया जिसकी उन्होनें कभी कल्पना भी नही की थी। दिल्ली में मसु्रद्दी लाल को जो अनुभव हुआ वो बहुत ही पीढ़ादायक था।
हर किसी को दिन-रात समस्याओं से जूझता देख मसु्रद्दी लाल ने दुखी मन से गांव वापिस जाने का निर्णय ले लिया। वापिस जाते समय उस ने वहां खड़े सभी लोगो से पूछा कि क्या आप इसे ही अन्तर्राष्ट्रीय शहर कहते है? जौली अंकल ने कहा कि दिल्ली दर्शन करने और सब कुछ देखने और समझने के बाद भी आप इस बात का जवाब हम से क्यूं पूछ रहे हो?  

हम नही सुधरेंगें

चंद दिन पहले अर्न्तराष्ट्रीय खेलों के इतिहास के पन्ने पलटते समय एक बहुत ही रोचक तथ्य देखने को मिला। भारत द्वारा जीते गए मैंडलों के बारे में जब मैने विस्तार से जाननें की कोशिश की तो पाया कि हमारे खिलाड़ीयों ने अभी तक हुए सभी अर्न्तराष्ट्रीय खेलों के मुकाबलों में सबसे अधिक मैंडल कब्व्ी में ही जीते है। अब अपनी ज्ञियासा को मिटाने के लिए मैने इसके कारणों को खोजने का प्रयत्न किया। काफी माथा पच्ची के बात यह बात साफ हो पाई कि कब्व्ी में सबसे अधिक मैंडल जीतने का मुख्य कारण यह है कि हर भारतीय एक दूसरे की टांग खीचने में बहुत माहिर है। अब वो चाहे हमारा दोस्त, पड़ोसी या नेता ही क्यों न हो। हम खुद कुछ काम करें या न करें लेकिन दूसरों की टांग खीचनें को कोई भी मौका अपने हाथ से नही जानें देते।
आजकल हर समाचार पत्र और टी.वी. चैनल पर हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बहुमूल्य स्मृति चिंन्ह - बापू का गोल चश्मा, घड़ी, चप्पल, प्लेट और कटोरा की नीलामी के चर्चे जोरों पर है। सरकार के भीतर भी इन निशानीयों को बचाने पर बवाल मचा हुआ है। हर समय बापू का राग अलापने वाले देश के नेता ऐसे समय में न जानें कौन सी गहरी नींद में सो जाते है, और तब तक नही उठते जब तक विदेशी देश की बेशकीमती धरोहर को नीलाम नही कर देते।
जब पानी सिर से निकल जाता है, तो उस समय कुंभकर्णी नींद से उठ कर सरकार कुछ न कुछ ड्र्रामा दिखा कर जनता को गुमराह करने की कोशिश करती है। हमारी संस्कृति मंत्री ने तो यहां तक ब्यान दे डाला कि हाईकोर्ट के स्टे आर्डर के मुताबिक सरकार सीधें बोली में शमिल नही हो सकती थी, इसीलिए उसने माल्या की सेवाए लेने का फैसला किया है, और माल्या साहब ने उन्हें भारत सरकार के कहने पर खरीद भी लिया है।
सरकार की किरकरी तो उस समय हुई जब देश के सुप्रसिद्व उद्योगपति विजय माल्या ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। समाज सेवा के कार्यो में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने माल्या ने साफ तौर से यह कह दिया कि यह मेरा निजी फैसला था और यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मैं बापू की अनमोल निशानीयों को भारत वापिस लाने में कामयाब हो सका  हूँ। इससे पहले वो टीपू सुल्तान की तलवार भी ऐसी ही एक नीलामी में खरीद कर लाऐ थे।
सरकार की बेरूखी के कारण ही एक साधारण जनमानस गांधी जी के विचारों से दूर होता जा रहा है। हर कोई मानता है कि बापू की यह सभी चीजें गलत तरीके से देश से बाहर ले जाई गई है। जबकि इनकी जगह देश के सबसे बड़े सरकारी सग्रंहलय में ही हो सकती है। दुख की बात तो यह है कि हर पार्टी की सरकार इस धरोहर को बचाने में नाकाम रही है।
अब कुछ लोग टांग खीचने की आदत से मजबूर हो कर मीडियॉ में इस प्रकार की बातें उछाल रहें हैं कि शराब व्यवसायी विजय माल्या का तो गांधी जी के शराब विरोधी विचारों का कोई मेल नही बनता। माल्या जी, बापू का चश्मा तो करोड़ों में खरीद लिया लेकिन बापू जैसी दृष्टि और विचार कहां से लाओगे? वो तो पैसो से नही मिलते। कुछ लोगो के विचार में माल्या के इन चीजों को हासिल करने वाले प्रतीको की पवित्रता ही नष्ट हो गई है।
सुबह शाम बापू के नाम की रट लगाने वाले ढ़ोगी तो यहां तक कह रहे हैं कि देश में से बापू के अनमोल रत्नों को बचाने के लिए क्या हमारें पास केवल शराब उद्योगपति ही बचा था? क्या सरकार खुद या किसी अन्य देशभक्त को इस काम के लिए तैयार नही कर सकती थी। ऐसी बाते करने वाले यह क्यों भूल जाते है कि जो काम देश की 125 करोड़ अबादी और सरकार मिल कर नही कर पाए वो विजय माल्या ने अकेले अपने दम पर कर दिखाया। ऐसे लोगो की निगाह में विजय माल्या जैसे लोगो का महात्मा गांधी जैसे महापुरष के सिद्वांतो से कुछ लेना देना नही है। जबकि इतिहास साक्षी है कि गांधी जी ने कभी किसी व्यक्ति को उसके व्यवसाय या पेशे के आधार पर तिरस्कृत नही किया।
समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार विजय माल्या ने यहां तक कहा है कि बापू की इन चीजो से प्रेरणा लेते हुए यदि एक भारतीय भी गांधी जी के बताए हुए रास्ते पर चलने में कामयाब हो जाता है तो मैं यह समझूंगा कि करोड़ो डालर की चुकाई गई कीमत मेरे लिए कुछ अधिक नही है। मैं एक भारतीय  हूँ और मैं बापू जी का यह सारा सामान भारत सरकार को तोहफे में दे दूंगा। कहने वाले कुछ भी कहते रहे, लेकिन हर सच्चा देशवासी विजय माल्या के इस एहसान को आने वाले समय में एक लंबे अरसे तक याद रखेगा।
विजय माल्या के इस साहसिक कदम पर सभी देशवासीयों के साथ जौली अंकल उन्हें बधाई देते हुए इतना ही कह सकते है कि हर अच्छे काम की शुरआत में विरोध तो झेलना ही पड़ता है। आप नेकी की राह पर चलते रहें। आपको कोई कितना भी बुरा कहे सहन करते रहना क्योंकि आखिर परमात्मा अंधा तो नही, वो तो सब कुछ जानता है। जहां तक हम भारतवासीयों की बात करें तो यह पक्का है कि कोई कुछ भी करे ' हम नही सुधरेगें

कंजूस सेठ

एक अनाथलय चलाने वाली स्वंय सेवी संस्था के कुछ सदस्य अपने इलाके के सबसे बड़े रईस परंतु कजूंस सेठ साहब के पास गरीब और मजबूर बच्चो की मदद लेने की मंशा लिए दान लेने के लिए पहुंचे। अपनी संस्था के कामकाज के बारे में विस्तार से बताने के बाद उन्होनें सेठ साहब से अनाथ और असाहय बच्चो की मदद करने की अपील की। इन लोगो की बात सुनते ही वो किसी गहरी सोच में डूब गये।
इससे पहले की सेठ जी कुछ कहते एक सदस्य ने अपने साथी से कहा कि हमें लगता है कि हम बिल्कुल ठीक जगह पर आयें है, अब हमारी संस्था की सभी सम्सयाऐं हल हो जायेगी। यह सेठ साहब तो एक दिन में लाखों रूप्ये कमा लेते है। जहां तक मेरी जानकारी है इस सेठ ने आज तक कभी किसी धर्म के काम पर भी कोई पैसा कभी खर्च नही किया और न ही कभी कोई दान पुण्य का काम किया है। मुझे लगता है कि सेठ साहब समाज के प्रति अपनी जिम्मेंदारी को अच्छी तरह से समझते हुए इस बार यह नेक मौका अपने हाथ से नही जाने देगे।
सब लोगो की बाते सुनने के बाद सेठ जी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, कि क्या तुम जानते हो कि मेरी मां पिछले 4-5 साल से कैंसर से पीढ़ित है। उनके इलाज पर अब तक हजारों रूप्ये खर्च हो चुके है। मेरे पिता जी और मेरा भाई एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो गये थे, कुछ अरसा पहले मेरे पिता ने एक सरकारी अस्पताल में अच्छे इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। मेरा भाई इस हादसे में अपनी दोनों आखें और टांगे खोने के बाद आज भी पहियेदार कुर्सी पर अपने जीवन के दिन पूरे करते हुए अपनी मौत का इंतजार कर रहा है।
संस्था के एक सदस्य ने हमदर्दी जताते हुए कहा, सेठ जी, माफ करना हम में से किसी को भी इस बारे में कोई जानकारी नही थी। वकील साहब ने उसकी बात को रोकते हुए आगे कहा, कि मेरे जीजा की मौत के बाद मेरी बहन बरसों से एक छोटे से घर में विधवा की जिदंगी जी रही है, उसके बच्चो को स्कूल की फीस अदा न कर पाने की वजह से स्कूल से निकाल दिया गया है। आज वो सारा परिवार भुखमरी की कतार पर है।
संस्था के सदस्य ने कहा सेठ जी आपके परिवार के सभी प्रियजनों के हालात के बारे में सुन कर हमें बहुत दुख महसूस हो रहा है। लेकिन हमारी फिर भी आपसे यही प्रार्थना है, कि कुछ ज्यादा नही तो दो-चार हजार रूप्ये महीने की मदद हमारी संस्था को भी दे दिया करे तो गरीब बच्चो का बहुत भला हो जायेगा।
अब सेठ जी गुस्सें में लाल-पीले होकर भड़कते हुए बोले - मैने आज तक अपने इन सभी रिश्तेदारो को कभी कुछ नही दिया। उनके बार-बार कहने पर भी मैने उनकी आज तक कोई मदद नही की तो आप ने यह कैसे सोच लिया कि मैं आपकी संस्था के अनाथ बच्चो के लिये कुछ दान दूंगा। यह सुनते ही सभी सदस्य एक दम सकते में आ गए।
एक सदस्य ने बहुत ही प्यार से कहा सेठ जी विद्वान और ज्ञानी लोग सदा से हमें समझाते आये है कि दान देने वाले की प्रंशसा तो बहुत होती है लेकिन जिसका आचरण अच्छा है वह और भी ज्यादा प्रंशसनीय है। नियमित दान करने की आदत से इंसान अपने खाते में बहुत से पुण्य जोड़ सकता है। एक बात सदैव याद रखना कि परोपकार का वृक्ष सहृदयता की छाया में ही फलता-फूलता है। सेठ जी जैसे लोगो के लिए जौली अंकल तो इतना ही कहना चाहते है कि आज जो बोओगे वही कल काटोगे। इसलिए सदैव अच्छा करो, और अच्छा पाओ।

हम जा कहां रहें है

समय कभी किसी के लिये न रूका है न ही दुनियां की कोई ताकत उसे कभी रोक पाई है। समय के साथ-साथ जहां युग बदलते रहे है, वहीं इंसान की जिंदगी में भी तेजी से बदलाव आया है। यह तो हम सभी जानते है कि जानवरों के जीवन में किसी युग का कोई महत्व नही होता। हजारों साल पहले भी गाय घास और शेर मांस खाता था, आज भी उनका जीवन वैसा ही चल रहा है। उन्हें उस समय भी अपने किसी रिश्ते की समझ नही थी, आज भी वो इस बारे में अनजान है। लाख कोशिशों के बावजूद भी इंसान जानवरों के जीवन में किसी प्रकार का कोई बदलाव नही ला सका। लेकिन इस लंबे सफर के दौरान इंसान के अपने जीवन में बहुत कुछ बदल गया है। क्या कभी किसी ने इस भागती-दौडती जिंदगी में एक पल रूक कर यह सोचने का प्रयास किया है कि आखिर हम जा कहां रहे है? पुराने युगो को यदि छोड़ भी दे और कुछ दशको पहले की बात को ही याद करे तो हर तथ्य यही कहता है कि उस दौर में आपसी भाईचारे और ईश्वर के प्रति प्यार में कोई कमी कही दिखाई नही देती थी। अपने नजदीकी तो क्या दूर वाले मित्र, रिश्तेदार भी हर मुश्किल घड़ी में सदा एक दूसरे का साथ निभाते थे। अतीत के भरोखे में झांकने का प्रयास करे तो एक ही बात खुल कर सामने आती है कि जैसे ही कोई मदद के लिये भगवान की तरफ एक बार देखता था, उसी समय वो कोई न कोई जरियां बना कर अनेको हाथ उस दुख को बांटने के लिये भेज देता था।
हर युग की तरह आज भी फूलों की कोमल बेल तो अपने आस-पास किसी पेड़ को सहारा बना कर खुद को मौसम की हर मार से बचा लेती है, परन्तु कहने को इंसान जो आज तरक्की और समझदारी के शिखर पर पहुंच चुका है उसे अपने सगे रिश्तेदारों पर तो क्या अपनी परछाई पर भी भरोसा नही रहा। भगवान न करे कि किसी इंसान के ऊपर कोई दुख या मुसीबत आ जाये ंतो ऐसे में लाख ढूंढने पर भी ऐसा एक कंधा भी दिखाई नही देता, जिसे हम अपना मानते हुए उस पर सिर रख कर अपने गम को हल्का कर सके। कुछ अरसां पहले तक दोस्तो-यारों की महफिल में जहां हर समय कहकहे ही गूंजते थे आज एक बीते युग की बात लगती है। तरक्की के इस दौर में दोस्त, रिश्तेदार तो क्या अपना साया भी न जानें कब किस को धोखा दे कर अंधकार की खाई में धकेल दे यह कोई नही जानता। हर रिश्ते, गली मुहल्ले के हर कोने से धोखे और छलकपट की बदबू आने लगी है। जिन दोस्तो को देखते ही चेहरे पर हंसी और मुस्कराहट आ जाती थी, आज वही लोग हर समय खून के आंसू रूलाने के लिये तैयार रहते है।
जिंदगी के इस मोड़ पर दूसरो को परेशानी में देख कर हंसने वालों की तो आज इस दुनियां में कोई कमी नही है। अफसोस तो सिर्फ इस बात का है कि दुख के समय हमें अपने आंसू पोछने वाला दूर-दूर तक खुदा का कोई नेक बंदा दिखाई नही देता। अब चाहे कोई हमारा कितना भी सगा क्यूं न हो कुछ समय तक तो वो हमारा साथ निभाने का ढ़ोंग जरूर करते है, लेकिन असल में जो हर पल हमारा साथ निभाता है, उसे हम भूल कर हम उससे दूर होते जा रहे है। जब भगवान आपके साथ होता है, तो इसके यह मायने कदि्प नही होते कि आपको कभी भी आंधी और तुफान का सामना नही करना पडेगा, बल्कि इस का मतलब यह होता है कि कोई भी तुफान आपकी किश्ती को डुबो नही सकता। जब कभी कोई इस प्रकार की अच्छी और ज्ञान की बात हमें समझाने का प्रयास करता है, तो हम अपनी सभी कमियां और दोष भगवान के ऊपर छोड़ कर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करते है।
न जाने इंसान की इस तरक्की को क्या कहा जायें कि प्रभु से मांगने के लिए तो हमें हाथ उठाने में खुशी और गर्व महसूस होता है, जबकि किसी गरीब, लाचार की भलाई करने के लिए हमें अपना हाथ आगे बढ़ाने में शर्म लगने लगती है। अब तक तो समय आपको बदलता रहा है अब आप समय के साथ अपने स्वभाव को बदलते हुए खुद को संतों और वृक्ष जैसा बनाने का प्रयास करो, क्योंकि इन दोनो की नियति पीड़ा सह कर भी दूसरो को फल देने की है। भगवान हमारा सबसे अच्छा एक दोस्त जो न केवल हर सुख दुख में हमारा साथ निभाता है बल्कि हर क्षण हमारे संग-संग भी रहता है। उसकी और से मुख मोड़ने की बजाए हमें दोस्ती का हाथ बढ़ाना होगा। यह तो हर कोई मानता है कि जिंदगी में हर छोटे-बड़े तोहफों में सबसे महान तोहफा दोस्ती और प्यार का है। एक बार सच्चे मन से भगवान के लिए दोस्ती की तड़प पैदा कर के देखो, फिर आप पाओगे कि वो आपके लिये क्या-क्या कर सकता है? आज के इस दौर में सवाल पानी का नही प्यास का हैं, सवाल मौत का नहीं सांस का है, दोस्त तो दुनिया में है बहुत मगर सवाल दोस्ती का नहीं विश्वास का है।
जमाने के इस बदलते दौर में हर व्यक्ति रिश्तो की इन भूल-भुलैयां में खोया हुआ है। अक्सर हम सभी को यही शिकायत रहती है कि भगवान की राह पर चलने के लिये भक्ति का समय कहां है? भगवान को याद करने का सबसे बढ़िया तरीका यही है कि हम उसे याद करने की आदत या शौंक बना ले। यह बात तो हर कोई मानता है कि आदत अच्छी हो या बुरी एक बार लगने पर वो कभी छूटती नही। आप हर समय अपने सभी रोजमर्रा के कार्य करते हुए भगवान के बारे में सोच विचार शुरू कर दे फिर आपकी यही आदत दुनियां के झूठे रिश्तो से आपको अलग करके आपके जीवन का रूख भगवान की और मोड़ देगी और उसी पल भगवान आपको प्राप्त हो जायेगे। परन्तु हम अक्सर इसका उल्टा करते है। हम भगवान को याद करते समय भी अपना ध्यान अन्य कामों में लगाऐ रहते है। जौली अंकल के मन से तो यही आवाज आ रही है कि अभी भी न तो देर हुई है और न ही कुछ बिगड़ा है, आप एक बार अपने पवित्र मन से यह तो सोचो कि हमें जाना कहां था और हम जा कहां रहे है, आपको अपनी मंजिल साफ दिखाई देने लगेगी, क्योंकि दु:खों से भरी इस दुनिया में सच्चे प्रेम की एक बूंद भी मरूस्थल में सागर की तरह होती है।

दादागिरी

एक बार चमकू के दादा घर की परेशानीयों के कारण किसी गहरी सोच में बैठे थे। चमकू वहीं बरामदें में खेल रहा था कि अचानक उसकी गेंद दादा जी के सिर में जा लगी। अब दादा जी ने न आव देखा न ताव चमकू को दो-चार जोरदार थप्पड़ लगा दिये। कुछ देर के बाद जब सब कुछ सामन्य सा हो गया तो चमकू ने अपने दादा से पूछा कि क्या आपके दादा भी आपको मारते थे? दादा ने कहा, हां हमसें जब भी कोई गलती हो जाती थी, तो हमारे दादा तो हमें छड़ी से बहुत बुरी तरह से मारते थे। अब चमकू की चिन्ता और बढ़ गई। फिर उसने दादा से पूछा कि क्या उनके दादा भी उनको मारते थे? चमकू के दादा ने कहा, कि मैने यह सब कुछ देखा तो नही लेकिन वो भी उन्हें जरूर मारते होगे। आखिर तुम यह सब कुछ मेरे से क्यूं पूछ रहे हो। चमकू बोला, दादा जी मैं तो सिर्फ इतना जानना चाहता  हूँ कि आखिर यह दादागिरी कब तक चलेगी?
चमकू के दादा को उसकी इस सोच ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया, कि दादा सच में कोई डरावनी वस्तू का नाम है। आज भी अनेक घरों में बच्चे तो क्या शादीशुदा और बाल-बच्चो वाले लोग भी अपने बर्जुगो के सामने अपने दिल की बात कहने से घबराहते है। इसी के चलते कई बार घर की छोटी-छोटी गलतफहमीयॉ बहुत बड़े झगड़ो में बदल जाती है। घर की बात पुलिस थाने और कोर्ट-कचहरीयों तक पहुंच जाती है।
आज समय बिल्कुल बदल गया है, एक तरफ जहां बच्चे बहुत ही तेज-तरार और मार्ड़न होते जा रहे है। दूसरी तरफ मां-बाप के जरूरत से अधिक लाड-प्यार ओैर हर चीज की असानी से प्राप्यता बच्चो को बहुत ही नाजूक बनाती जा रही है। जरा सी बात पर बच्चे खुदकशी करने की धमकी देने लगते है। कुछ बच्चे तो बिना सोचे-समझें ही हल्की फुल्की तकरार के कारण झट से मौत को गले लगा लेते है।
हमारे बर्जुग चाहें कुछ भी कहें लेकिन वो इस बात से इन्कार नही कर सकते की उन्होने ने भी बदलते मौसम के साथ जीवन के सभी रंग देखे है। बचपन में उन्होने भी घर और स्कूल में कोई न कोई मस्ती जरूर की होगी। मां-बाप से कभी-कभार ही सही लेकिन जीवन में झूठ भी बोला होगा। यह सच है कि आज उंम्र्र के तजुरबे के साथ हमारे बर्जुग ंजिदगी की बरीकीयों को खूब समझते है, हर विषय में उनकी बहुत अच्छी पकड़ होती है। इन सब बातो के साथ अगर वो अपने चेहरे से दहशत का मुखोटा उतार दे तो घर के सभी सदस्यों के बीच दिलो की दूरियॉ सदा के लिये खत्म हो सकती है। घर में पोते-पोतीयों के जंन्मदिन पर कुछ देर के लिये ही सभी घरवालों के बीच बैठ कर अपनी खुशी का खुले दिल से इजहार करे। परिवार में हर खुशी के मोके पर सभी दोस्तो और रिश्तेदारो के साथ मिलकर जिंदादिली से उन पलो का आनन्द ले। ऐसे मोको पर घर में बने हर प्रकार के खाने का भी रसास्वाद करे, लेकिन अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए, जिससे की बाद में आपको किसी दिक्कत का सामना न करना पड़े।
हमें अक्सर डर लगता है, कि अगर हम बच्चो के साथ मिलकर बच्चो वाली नटखट हरकते करेगे तो लोग क्या कहेंगे? आप इन सब बातो को भूलकर अपने परिवार की खुशी के लिये हर पल को अपने ही ढंग से जीने का प्रयत्न करो। जीवन के इन छोटे छोटे बदलावो से आपके घर के साथ-साथ पूरे समाज की सोच को एक नई दिशा मिलेगी। जौली अंकल का मानना है, आपके चेहरे पर रौनक और खुशी देखकर न सिर्फ आपके घरवालों के चेहरे खिल उठेगे ब्लकि आपके घर का हर कोना भी खुशीयों से झूमनें लगेगा।  

जमाना क्या कहेगा

कुछ दिन पहले अपने दोस्त वीरू की शादी में जाने का मौका मिला। बारात बैंड-बाजे और ढ़ोल-नगाड़ो के साथ बड़ी ही धूमधाम से दुल्हन के घर की और जा रही थी। वीरू के जीजा जो बहुत ही सीधे-सादे शांतप्रिय स्वभाव के है, बारात के साथ धीरे-धीरे चल रहे थे। उनके साथ चलते कुछ बरातियों ने उन पर फब्ती कसते हुए कहा कि लगता है आपको अपने साले की शादी की कोई खुशी नही हुई, वरना कोई जीजा बारात में इस तरह मुंह लटका कर नही चलता। इससे पहले कुछ और लोग इसी प्रकार के कटाक्ष से जीजा को घायल करते उन्होने ने भी ढ़ोल की थाप पर नाचना शुरू कर दिया। जैसे ही जीजा का डांस शुरू हुआ तो उनके घर वालों में से किसी ने कह दिया हमने भी अपने बहुत सी शादीयां देखी है, लेकिन इस तरह बेवकूफो की तरह किसी जीजा को बारात में नाचते नही देखा। अब जीजा को कुछ समझ नही आ रहा था कि ऐसे में वो करे तो क्या करें? हो सकता है कि वीरू के जीजा के साथ यह सब कुछ पहली बार हुआ हो, लेकिन समाज का यह कैसा चलन है कि आप कुछ भी कर लो जमाना आपको कुछ न कुछ तो जरूर कहेगा।
आपने एक बात तो अक्सर देखी होगी कि जब कभी भी आपके घर में दुख-तकलीफ आ जाती है, तो आपके दोस्त, सगे-सम्बंधी आपकी सेहत का हालचाल पूछने में पल भर की भी देरी नही करते। अब आपको चाहे कोई भी तकलीफ हो, आप मांगे या न मांगे, आपके यह सभी शुभंचिंतक आपको एक से एक बढ़िया इलाज और डाक्टर का नाम बताने की सलाह देने से परहेज नहीं करते। उनको आपकी परेशानी के बारे में चाहे कुछ भी न मालूम हो लेकिन आपको उसके अनेको देशी-विदेशी इलाज तो बता ही देंगे। आखिर जमाने के लोगों का काम है कहना।
जमाना किसी को क्या-क्या कह सकता है, इसका अंदाजा लगाना भी कठिन है। एक बार एक सीधे सादे आदमी ने सब्जी की छोटी सी दुकान शुरू की। कुछ समय पाकर उसकी मेहनत और ईमानदारी ने रंग दिखाना शुरू कर दिया तो पूरे बाजार में उसकी दुकान सबसे मशहूर हो गई। हर समय उसके पास ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। बढ़ते व्यापार को देखते हुए एक दिन उसने दुकान के सामने एक बहुत बड़ा सा बोर्ड लगवा दिया जिस पर लिखा था कि हमारे यहां ताजा सब्जियां बिकती हैं। अगले दिन एक ग्राहक आया तो उसने बोर्ड को देखकर कहा कि क्या आप इसके अलावा कहीं और भी सब्जी बेचते है। दुकानदार ने बड़ी ही नम्रंतापूर्वक ना में जवाब दिया। तो उस ग्राहक ने कहा तो फिर इस बोर्ड पर ''हमारे यहां'' लिखवाने की क्या जरूरत थी? आप यदि इसे हटवा दो तो इससे तुम्हारा बोर्ड और अधिक अच्छा लगेगा। दुकानदार ने उस ग्राहक को भगवान का रूप मानते हुए बोर्ड को उसी के मुताबिक ठीक करवा दिया। फिर एक औरत जब सब्जी लेने आई तो उसने भी बोर्ड को देख दुकानदार से कहा, कि भाई साहब आप क्या बासी सब्जियां भी बेचते हो? दुकानदार ने इस अजीब से सवाल पर बड़े ही प्यार से कहा जी इतने सालों से आपकी सेवा कर रहा हूं, क्या आपको मेरे यहां कभी भी बासी सब्जी दिखाई दी है? तो वो औरत बोली, मैं भी तो यही कह रही हूं। फिर यह ''ताज़ा'' अक्षर इस बोर्ड में से हटवा दो। दुकानदार ने फिर से पेन्टर को बुला कर बोर्ड को ठीक करने को कहा। कुछ दिन बाद एक और ग्राहक आया तो उसने बोर्ड पर लिखा देखा कि ''सब्जियां बिकती हैं''। उसने पूछा क्या सब्जियों के अलावा भी कुछ बेचते हो? तो दुकानदार ने कहा - जी नहीं, मैं तो केवल सब्जी ही बेचता हूं। तो फिर इस बोर्ड पर यह सब्जी अक्षर अच्छा नहीं लग रहा। तुम्हारी दुकान इतनी सुन्दर हरी-भरी सब्जियों से भरी पड़ी है और सबको यह सब्जियां नजर भी आ रही हैं। दुकानदार ने फिर से बोर्ड ठीक करवा दिया। अब बोर्ड पर केवल लिखा था ''बिकती है''
कुछ समय बाद एक साहब आए और बोले क्या आप सब्जी खरीदते भी हो? दुकानदार ने कहा, जी नहीं, मैं तो सिर्फ सब्जी बेचता हूं। वो ग्राहक बोला तो इस बोर्ड पर यह क्यूं लिखवा रखा है कि ''बिकती है''। कम से कम इसे तो हटा दो। दुकानदार को पहले की तरह यह बात भी ठीक लगी। उधर, धीरे-धीरे उस दुकानदार का सारा धंधा बिल्कुल चौपट होने लगा। एक साधु महात्मा उस बाजार से गुजरते हुए उसके पास आए। इतनी बड़ी दुकान देखकर बोले बाहर से तो दिखाई नही नही देता कि तुम्हारी इतनी अच्छी और बड़ी दुकान है। कोई एक अच्छा सा बोर्ड बनवा कर क्यूं नहीं लगवा देते? दुकानदार ने अपना सारा दुखड़ा संत को सुनाया। संत जी ने बड़े ही प्यार और शंति से उस दुकानदार को अपना बोर्ड दुबारा से ठीक तरह से लिखवाने को कहा। इसी के साथ उस दुकानदार को एक बात और समझाई, कि जिन्दगी में सुनो सबकी, करो अपने मन की, क्योंकि आप अपने जीवन में चाहे कुछ भी कर लो, जमाने का काम तो है कहना, वो तो कुछ न कुछ कहता ही रहेंगा। जमाने का काम ही है सिर्फ दूसरों की गलतीयां ढूंढना, चाहे वो खुद अपनी राह से कितना भी भटके हुए क्यूं न हो? वैसे तुम्हें एक पते की बात बता दू कि तुम्हारी तरह सच्चा इंसान वही होता है, जो हर बुराई का बदला भलाई से देता है। अब जमाना कुछ भी कहें परन्तु जौली अंकल उस की परवाह किये बिना समाज को यह कहें बिना नही रह सकते कि इस दुनियां में बहुत अधिक लोग है, लेकिन बहुत कम अच्छे इंसान। बिना सोच विचार के बोलने वालों को जमाना मूर्ख और सोच-विचार के बोलने वाले को ज्ञानी और विद्वान कहता है। अब जमाने के बारे मे और कुछ न कहते हुए अपनी बात यही खत्म करता  हूँ नही तो न जाने जमाना क्या कहेगा?  

अपने पराये

बचपन से इक्ट्ठे खेल कूद कर बड़े हुए दो दोस्तो में से एक को जब नौकरी के लिये विदेश जाना पड़ा तो उसने अपने प्यारे दोस्त से कहा कि तू मुझे अपनी यह सोने की अगूंठी दे दे। इसे देख कर मुझे हर समय तेरी याद आती रहेगी। दूसरे दोस्त ने कहा कि मैं तुझे यह अंगूठी तो नही दे सकता, हां अब जब कभी भी तू अपना खाली हाथ देखेगा तो तुझे मेरी याद आ जाया करेगी कि मैने अपने दोस्त से अंगूठी मांगी थी और उसने मना कर दिया था। इस छोटी सी बात ने एक क्षण में बचपन से चली आ रही बरसों पुरानी दोस्ती में एक बड़ी दरार डाल दी। जो दोस्त रिश्तेदारी से बढ़ कर साथ जीने मरने की कसमें खाते थे वो आज एक अगूंठी के कारण एक दूसरे के लिये पराये हो गये। दोस्ती हो या कोई और दूसरा रिश्ता न जाने आजकल हर कोई दूसरों को झुकाने की कोशिश क्यूं करता है, जबकि असल में किसी पराये को अपना बनाने के लिये जरूरत होती है खुद को थोड़ा सा झुकाने की।
अपने पराये की बात चलते ही हर किसी का ध्यान सबसे पहले अपनी प्यारी बेटियों की तरफ खिंचा चला जाता है। यह जिस घर में भी जाती है उसे किलकारीयों से भर देती है, इन्हें देखते ही हर कोई जहां इन्हें लक्ष्मी का दर्जा देता है वही साथ में यह कहना नही भूलते कि यह तो पराई अमानत है। बेटियां जैसे ही होश संभालती है घर की दहलीज को छोड़ कर जन्म देने वाले माता-पिता के लिये पराई हो जाती है। दुनियावी रिश्ता चाहे कोई भी हो, जिसे हमारा मन एक बार अपना मान लेता है, फिर हमें उस व्यक्ति में कोई कमी दिखाई नही देती। उसके सारे अवगुण भी हमें गुणों जैसे लगने लगते है। परन्तु जब कोई हमारा अपना किसी स्वार्थ के चलते पराया हो जाता है, तो हमें उसमें कमीयां ही कमीयां दिखाई देने लगती है। खुद हम कुछ भी करते रहे लेकिन कोई हमारे साथ थोड़ा सा भी बुरा करता है, तो हमारा मन उसे सदा के लिये त्याग कर पराया बना देता है।
कहने को अपने तो अपने ही होते है, लेकिन कई बार जीवन में किसी छोटी सी घटना के चलते पल भर में अपने सदा के लिये पराये हो जाते है। ऐसे में जब अपनो से रिश्ता टूटता है या वह हमें छोड़ कर चले जाते है तो मन बहुत दुखी होता है, हर आहट पर उनका लौट कर आने का इंतजार रहता है। इससे भी अधिक दुख तो उस समय होता है जब हमारे अपने पास होते हए भी परायों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देते है। अपने होकर भी गैरो जैसा व्यवहार मन में तीखे कांटे की तरह चुभता है। भगवान ने ज्ञान और बुद्वि के भंडार के साथ सबसे उत्तम जीवन केवल इंसान को दिया है। लेकिन हम उसको ठीक ढंग से इस्तेमाल करने की बजाए दुनियावी रिश्तों की उधेड़-बुन में अपने परायों के रिश्तो में उलझे रहते है। हमारा अच्छा करना और अच्छा सोचना उस समय तो बिल्कुल बेकार हो जाता है जब हम दूसरों की आलोचना करना शुरू कर देते है।
हम सभी की आस और प्यास एक जैसी ही है। जिसे हम अपना मानते है, हमें उससे यह उम्मीद होती है कि वो हमारे हर सुख-दुख में सदा हमारें अंग-संग खड़ा होगा। लेकिन मसुीबत आते ही सच्चाई सामने आ जाती है। दूसरा कोई जब भी हमारे साथ कछ बुरा करता है उसे तो हम जिंदगी भर याद रखते है, लेकिन जो कुछ हम किसी के साथ करते है उसे अपने मन के आईने में देखने से कतराते है। सारी दुनियां से चाहें हम कुछ भी छिपा ले, लेकिन हमारा मन एक ऐसा दर्पण है, जिससे कोई बात नही छुपती। हमारे हर अच्छे बुरे कर्म को हमारा मन हर समय देखता रहता है। दूसरों को बुरा भला कहना और उनमें कमियां निकालने से पहले जरूरत होती है तो केवल अपने मन की आंखे खोलने की।
जो असल में हमारा अपना है, और हर समय हमें सुख देते हुए हमारी दुखो से रक्षा करता है इंसान उसे अपना बनाना तो दूर उसकी और देखना भी नही चाहता। भगवान जिसे हम अक्सर बैगाना समझते है, उसका अपने भक्त से करीबी रिश्ता तो कोई और हो ही नही सकता। ऋृषि-मुनि तो एक ही बात समझाते है कि राम तो हर इंसान के मन और तन में बसते है। इस बात का सबसे बड़ा सबूत हनुमान जी ने अपनी छाती चीर कर सारी दुनियां को दिखा दिया था। एक बार सच्चे मन से यदि हम भगवान को अपना मान ले तो फिर जमानें की हर टेढ़ी-सीधी राह पर हमें दुनियां के भंवर में भटकने से बचाने के लिये वो खुद ही दौड़े चले आते है। ऋृषि-मुनियों ने तो सदा ही भक्ति के बल पर भगवान को अपना बनाया है। जिस भगवान को हम सारी उंम्र पराया समझते है मन की आंखे खुलते ही वो हमारे सबसे करीब होता है।
जौली अंकल अपने पराये की इस गुथ्थी को सुलझाने के लिये इसी मंत्र पर विश्वास करते है कि जिंदगी एक फूल है और मुहब्बत उसका शहद। इसलिये यदि आप जीवन में सबसे मित्रता न भी कर पाओं तो कोई बात नहीं, परंन्तु दुश्मनी किसी से भी न करो, क्योंकि इंसान चाहे तो अपने छोटे से जीवन में अपने अच्छे कर्मो से अपने पराये का भेद मिटा कर सदियों तक सम्मान पा सकता है।     

रोटी से रिश्ता

अपने बेटे गप्पू को दूर से आते देख मिश्रा जी ने उससे पूछा कि सुबह से कहा गायब हो दिखाई ही नही दे रहे। गप्पू ने कहा, जी कहीं नही, मैं तो बस थोड़ी देर पहले रोटी खाने गया था, वहीं से ही आ रहा  हूँ। अच्छा जरा यह तो बता दो कि अब तुम इतनी जल्दी में कहां भागे जा रहे है? जी मां ने दिन के खाने के लिये बुलाया है, मैं वहीं खाना खाने जा रहा  हूँ। बहत अच्छे, मिश्रा जी ने कहा यदि तुम्हें खाने से फुरसत मिले तो जरा अपना शाम का प्रोग्राम तो हमें बता दो। गप्पू ने कहा जी कुछ खास नही बस एक दोस्त के घर जाना है, उसने खाने के लिये बुलाया है। बचपन से मां-बाप अपने हर बच्चे को यही समझाते है कि खाना कभी भी इस तरह से मत खाओ कि कोई मर्ज हो जाये। इतना सब कुछ समझने के बावजूद भी कुछ लोग इतना अधिक खाते है जैसे वो जीने के लिये नही सिर्फ खाने के लिये ही जी रहे हो। हालिंक कई बार ऐसे लोग अपने साथ-साथ सभी परिवार वालों के लिये भी परेशानी खड़ी कर देते है।
घर की रोटी जैसा तो कोई पकवान हो ही नही सकता, मगर जब कुछ लोगो को कभी-कभार मुफत की बढ़िया सी दावत खाने का मौका मिल जाये ंतो पेट भर जाने पर भी ऐसे लोगो की नीयत नही भरती। कुछ दिन पहले मिश्रा जी के बेटे को भी पड़ोस में शादी के एक उत्सव में खाने का न्योता मिला। वहां गर्मा-गर्म हलवा, पूरी और मख्खन वाले नान बनते देख उससे रहा नही गया। एक के बाद एक न जाने कितने ही तन्दूरी नान उसने वहां खा लिये। अब घर पहुंचते ही पेट दर्द से उसकी जान निकलने लगी। दर्द से कहारते हुए उसके मुंह से एक ही आवाज बार-बार निकल रही थी कि ऐ भगवान या तो मेरे अंदर से नान निकाल दे या मेरी जान निकाल दे, अब यह दर्द और बर्दाशत नही होता।
भगवान ने इंसान और रोटी का बहुत ही अजीब रिश्ता बनाया है। कमाल की बात तो यह है कि आदमी अमीर हो या गरीब जन्म से लेकर जिंदगी के अंतिम क्षणों तक रोटी खाते-खाते न तो इंसान का पेट भरता है और न ही मन। वो बात अलग है कि एक रईस की थाली में एक से एक बढ़िया पकवान परोसे जाते है और एक गरीब मजदूर कभी किसी बड़े घर की झूठन और कभी नमक की डली के साथ सूखी रोटी से अपने पेट की आग को बुझाने का प्रयास करता है। पशु-पक्षीयों से लेकर इंसान तक हर कोई सुबह की रोटी खाते ही रात की रोटी का जुगाड़ बनाने के लिये घर से निकल पड़ता है। रात को जैसे ही रोटी खाकर सोता है, तो सपने में सुबह की रोटी की चिंता सताने लगती है। भगवान ने हमारे जीवन की सभी सुविधाऐं तो हमारे आसपास ही हमें दी है, परन्तु हमें अपने हिस्से की रोटी कमाने के लिये घर-परिवार को छोड़ कर एक शहर से दूसरे शहर और कई बार तो परदेस तक जाना पड़ता है। रोटी कमाने की मजबूरी में इंसान कई बार बरसों तक अपने परिवार के सदस्यों और प्रियजनों की शक्ल तक देखने को तरस जाता है।
जब तक बच्चे मांता पिता पर आश्रित होते है, उस समय तक उन्हें घर के खाने में बीसियों कमियां दिखाई देती है। बच्चो को रोटी की असली कीमत उस दिन मालूम पड़ती है, जब वो अपने परिवार, खासतौर से मां से दूर हो जाते है। अपने हाथो से अनगिनत कमाई हुई दौलत भी उन्हें मां के हाथ की रोटी की मिठास और स्वाद नही दे पाती। जिस दिन से उन्हें रोटी कमाने के लिये खुद हाथ पैर चलाने पड़ते है, उस समय ऐसे लोग हर प्रकार के जायज-नजायज काम यहां तक की पाप करने से भी नही चूकते। यह लोग इस बात की एमहियत को भी भूल जाते कि अधर्म से की हुई कमाई की गिनती तो अधिक हो सकती है, परंतु बरकत ईमानदारी की कमाई में ही होती है। सबसे मीठी रोटी तो वो होती है, जो अपनी मेहनत और पसीने की कमाई से बनती है।
दो वक्त की रोटी कमाने के लिये आदमी दिन रात पागलों की तरह दौड़ता रहता है। कोई इंसान कितना भी कमा ले लेकिन एक समय में दो-चार रोटीयों से अधिक नही खा सकता। इसीलिये शायद कहते है कि जिस इंसान के पास संतुष्टि नहीं वह धनवान होते हुए भी सबसे बड़ा गरीब है, जबकि सन्तुष्ट गरीब अपने आप में बहुत अमीर होता है। इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि कई बार भरसक प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं मिलती तो ऐसे में आप फल देने का काम परमात्मा पर छोड़ दें। जो लोग अपनी किसी न किसी कमी के कारण अपने परिवार के लिये अच्छे से रोटी नही कमा पाते वो अक्सर किस्मत को दोष देने लगते है, जबकि सच्ची लगन से मेहनत करने वाले तो किस्मत तक को बदल डालते है। मसला चाहे किसी लक्ष्य को पाने का हो या रोटी कामने का यदि आपके मन में दृढ़ निश्चय व विश्वास है तो आपकी विजय निश्चित है, अगर आपका संकल्प कमजोर है तो आपकी पराजय को कोई नही टाल सकता।
अब मसला चाहे रोटी कमाने का हो या अन्य किसी कार्य का यदि आप हर कार्य खुशी से करेंगे तो कोई भी काम आपको कभी मुश्किल नही लगेगा। रोटी कमाने और खाने के मामले में जौली अंकल का फंडा तो बिल्कुल आईने की तरह साफ है। उनका कहना तो यही है कि रोटी से रिश्ता बनाने के लिये काम तो सभी करते हैं लेकिन सफल वही होता है जिसका अंदाज सबसे अलग होता है।   

अनहोनी की चिंता

कुछ समय पहले की बात है कि एक सेठ जी ने अपने समय के एक बहुत ही महान संत को पूजा-पाठ और प्रवचन करने के लिये अपने घर पर आमत्रिंत किया। उस धनी सेठ को आदर-सत्कार देते हुए संत जी ने उसे अपने आसन के पास ही बैठने के लिये स्थान दे दिया। जैसा कि आमतौर पर हम सभी के साथ होता है कि हमारा मन पूजा पाठ के समय कभी गुजरे हुए पलों को लेकर और कभी भविष्य की चिंता में खो जाता है। ठीक उसी तरह पूजा पाठ शुरू होते ही यह सेठ जी भी किसी गहरी सोच में डूब गये। संत जी ने सेठ को सोते देख अपनी बात बीच में रोक कर उनसे पूछा कि क्या आप सो रहे हैे? सेठ जी घबरा कर बोले नही तो, किस ने कहा कि मैं सो रहा  हूँ। मैं तो बहुत ही ध्यान लगा कर आपके प्रवचन सुन रहा  हूँ। कुछ पल बीतने पर यही सब कुछ फिर हुआ। लेकिन वो सेठ हर बार इस बात से इंकार कर देता कि वो सो रहा है। अगली बार जब वो फिर गहरी नींद में सो गया तो संत जी ने उसे जोर से झटका देते हुए पूछा कि सेठ जी जिंदा हाें क्या? सेठ जी पहले से भी अधिक हड़बडा कर बोले बिल्कुल नही, कौन कहता है। यह सुनते ही पूजा-पाठ सुनने आऐ और सेठ जी तरह चिंता में डूबे कई लोगो की जोर से हंसी छूट गई।
आम आदमी को हर दिन बढ़ती मंहगाई की चिंता, नेताओ को चुनावों में अधिक से अधिक मत पाने की चिंता, चुनाव जीतने के बाद मंत्री पद मिलने की ंचिंता, मां को बेटी के लिये अच्छे वर की चिंता तो बाप को अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर किसी ऊंचे पद पर नौकरी दिलवाने की चिंता। इन सब चिंताओ से बढ़ कर हमें एक ंचिंता यह सताती है कि हमारे साथ कुछ भी ऐसी अनहोनी तो बिल्कुल न हो जो दूसरों के साथ हो रही है। असल में अनहोनी कुछ है ही नही, जो कुछ भी इस संसार में होता है वो सब भगवान की इच्छा से ही होता है। लोभवश हम सभी को हर समय कोई न कोई ऐसी चिंता परेशान करती रहती है कि जो कुछ हमारे मन में है या जो कुछ हमारा परिवार चाहता है वो सब कुछ हमें मिल जायें। परन्तु मन के किसी कोने में यही चिंता बनी रहती है कि पता नही हमारी यह मंशा पूरा होगी की नही। ऐसे में हम यह भी भूल जाते है कि केवल अपने लिए ही सब कुछ पाने की इच्छा करने वाला स्वार्थी कहलाता है।
आम आदमी से ज्ञानी लोगों तक हर कोई इस बात को अच्छी तरह से जानते हुए कि चिंता करने से कभी किसी सम्सयां का हल नही मिलता बल्कि चिंता आदमी को चिता के और करीब ले जाती है। फिर भी हम खुद को चिंता से दूर नही रख पाते। इस का एक मात्र कारण यह है कि सारा संसार प्रभु की इच्छा अनुसार ही चल रहा है लेकिन हम अपनी सभी इच्छाओं को अपनी मन मर्जी मुताबिक पूरा करवाना चाहते है। हम अक्सर अपनी कमीयों के चलते अपने वर्तमान को कभी बीते हुए समय के हादसों से जोड़ कर और कभी आने वाले पलों का समय से पहले रहस्य जानने के प्रयास में अपना सारा जीवन व्यर्थ्र की ंचिंता में ही खत्म कर देते है। है। हमें किसी भी हाल में न तो बहुत खुश और न ही दुखी होना चाहिए, क्योंकि ये सब तो भाग्य की देन है। ठीक इसी तरह हर इंसान को लाभ-हानि, यश-अपयश, मान-अपमान अपने नसीब से ही मिलता है, ंचिंता करने से हम उसमें कमी या बढ़ोतरी नही कर सकते।
उंम्र बढ़ने के साथ हम में से यदि किसी को कोई शरीरिक रोग लग जाये तो हमें सबसे पहले मौत की चिंता सताने लगती है। अधिकाश: लोग मृत्यु जैसी कड़वी सच्चाई को झुठला कर अच्छी और लंबी जिंदगी जीना चाहते है लेकिन हैरानगी की बात तो यह है कि न तो कोई बूढ़ा होना चाहता है और न ही कोई मरना चाहता है। जो लोग मृत्यु से भयभीत और ंचिंतित होते हैं वो जीवन के महत्व को क्या समझेगे? इस सच्चाई को झुठलाना भी कठिन है कि इस प्रकार की इच्छाऐं रखने वाले कभी भी अपने जीवन काल में अच्छे कर्म कर ही नही सकते।
धर्म की राह पर चलने वाले सज्जन पुरष सदैव वर्तमान मे जीते है, ऐसे लोगो का जनसाधारण को यही सदेंश होता है कि जो कुछ हमारे जीवन में हो रहा है वो प्रभु की इच्छा से ही होता है। हमें सदा ही अपना कर्म बाखूबी निभाते रहना चहिये। फल की चिंता करना व्यर्थ है क्योंकि फल देना तो भगवान के हाथ में है। जो कुछ हमें मिलता है वो हमारी मेहनत का फल नही भगवान की रहमत का नतीजा होता है। हमें उस समय तक कर्म करते रहना चहिये जब तक कि उसकी रहमत न हो जायें। परन्तु जब हमें कोई ऐसी अच्छी ज्ञान-ध्यान की बाते समझाता है तो हमारा मन उसको ग्रहण करने की बजाए दुनियां के सुखो और दुखो की चिंता में खो जाता है। गृहस्थ जीवन के उतार-चढ़ाव की ंचिंताओं से बिना विचलित हुए विपरीत परिस्थितियों में जो जीना सीख लेता है वहीं धैर्यशील कहलाता है। सच्ची साधना यही है कि हम भूतकाल और भविष्य की चिंताओं को मिटा कर वर्तमान में जीना सीखे, क्योंकि जो बीत चुका है और जो आने वाला है, उसकी चिंता करना व्यर्थ है।
जीवन में यदि चिंता से मुक्त होकर मानसिक शंति का आनंद प्राप्त करना है तो कभी भी मन को व्यर्थ की उलझनों में मत फंसने दो। आप कहेगें कि यह सब कुछ कहने में जितना आसान लग रहा है व्यवहार में लाना उतना ही कठिन है। ऐसे में जौली अंकल एक छोटी सी रहस्य की बात आप से कहना चाहते है कि जीवन में कभी भी आशा न छोड़े, आशा एक ऐसा पथ है जा जीवनभर आपको गतिशील और चिंता मुक्त बनाए रखता है।