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शनिवार, 16 जनवरी 2010

नजरियां

एक बार दो कुत्ते बैठे आपस में बात कर रहे थे। पहले कुत्ते ने कहा कि मुझे लगता है कि हमारे मालिक हमारे लिए भगवान का दूसरा रूप है। दूसरे कुत्ते ने हैरान होते हुए कहा, आज तू कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है? तुझे इससे पहले तो कभी ऐसा महसूस नही हुआ आज अजानक ऐसा क्यों लगने लगा? पहले वाले कुत्ते ने बड़ी ही नम्रंता से जवाब दिया कि हमारे मालिक सुबह-शाम हमें अच्छा खाना देते है, हमें सैर करवाने के लिए सुंदर से पार्क में लेकर जाते है। जब कभी हम बीमार हो जाते है, तो हमारा अच्छे तरीके से इलाज करवाते है। दूसरे कुत्ते ने उसकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, यह लोग हमारे लिए यह सब कुछ इस लिए करते है, क्योंकि हम इनके भगवान है। पहले कुत्ते ने मायूस होते हुए कहा भैया यह तो अपनी-अपनी समझ और नजरिये की बात है।
ऐसा ही कुछ नजरियां है हमारे देश की सशक्त नेता मेनका गांधी का। उन्हें देश के हर जानवर की ंचिंता तो दिन रात सताती रहती है। यह अच्छी बात है कि वो किसी भी जानवरों के दुख दर्द को समझते हुए उन्हें कभी भी दुखी नही देख सकती। लेकिन इसे किस प्रकार की इंसानयित कहेगे कि इंसानों को तड़पता छोड़ उन्हें सिर्फ जानवरों पर ही तरस क्यों आता है? आजकल तो र्प्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा अन्य जानवरों के साथ गिद्वो को बचाने की मुहिम भी शुरू की गई है। उनका मानना है कि गिद्व मुद्र्वा जानवरों को खाकर र्प्यावरण को स्वच्छ बनाते है। सरकार को उनकी प्रजति के लुप्त होने की ंचिंता भी अभी से सताने लगी है। गिद्वों के घोंसलों तथा उनके प्राकृतिक वास की सुरक्षा भी सरकार सुनिश्चित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ रही। इसी तरह के मुद्वे उछाल कर अन्य कई पार्टीयां भी अपनी चुनावी रोटीयां सेकने लगते है।
दूर-दराज की बात तो छोड़ो महानगरो में ही अनेको ऐसे हादसे हो चुके है कि कुछ मांसाहारी कुत्ते बच्चो को नोच-नोच कर मार डालते है। छोटे बच्चों के साथ कई बार बड़े बर्जुग को भी गाय, भैंस, बैल और अन्य बेलगाम जानवर लहुलुहान कर देते है। ऐसे हमलों में घायल हुए अनेक लोगो को अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ता है। कुछ बदनसीब इस तरह की चोट लगने के कारण उंम्र भर के लिए विकलांगों वाला जीवन व्यतीत जीने को मजबूर हो जाते है। यह सच्चाई किसी से छिपी हुई नही है कि जब कभी किसी अमीर आदमी के साथ कोई हादसा होता है तो सभी विभागो की सरकारी मशीनरी एक दम से हरकत में आ जाती है। इसके उलट जब किसी कमजोर या गरीब आदमी पर कोई मसुीबत आती है तो उसकी मदद के लिये कोई एक भी हाथ आगे नही आता।
देश की राजधानी दिल्ली की सड़को पर मौत बरपाती ब्लू लाईन बसें बरसों से सैंकड़ो घरों के चिराग बुझा कर अभी भी लगातार कहर ढा रही है। परिवार के लिये रोजी रोटी की तलाश में सुबह घर से निकले लोग कई बार जीवन में कभी अपने घर नही लौट पाते। कभी कड़कती ठंड और कभी गर्मी से बेहाल होने के कारण हर साल हजारों लोग सड़क किनारे दम तोड़ देते है। दुर्घटना में घायल न जानें कितने ही लोग सिर्फ इस लिए भगवान को प्यारे हो जाते है क्योंकि उन्हें समय पर उपचार नही मिल पाता। घटना स्थलों पर सैकड़ो लोगों की भीड़ मे से कोई भी अक्सर जख्मी को बचाने के लिए पुलिस के डंडे के डर से आगे नही आ पाते।
यदि कोई हिम्मत करके घायल को अस्पताल तक पहुंचा भी देता है तो अस्पताल वाले इलाज शुरू करने से पहले उसकी जान की परवाह किये बिना पुलिस फाईल बनाने में घंटो का समय लगा देते है। आज जनसाधारण घायलों की मदद करने से इसलिए भी घबराता है क्योंकि उसके बाद बरसों तक पुलिस वाले उन्हें बार-बार थाने बुला कर परेशान करती है। कई मामलों में तो यहां तक देखने को मिला है, कि पुलिस वाले घायल व्यक्ति को अपने-अपने इलाके के कार्यक्षेत्र का झगड़ा बता कर घायल और लवारिस आदमी को मरने के लिए सड़क पर ही छोड़ देते है। ऐसे में सरकारी बाबू भी अपनी नौकरी को बचाए रखने के लिए मामले को रफा दफा करने में ही अपनी भलाई समझते है।
जानवरों से प्यार करना और उनकी देखभाल करना एक बहुत ही नेक और पुण्य का काम है। यदि इसी के साथ सरकार का थोड़ा सा प्यार-दुलार देश के गरीब और लाचार इंसानो को भी मिल जाए तो हर बरस हजारों-लाखों जाने बचाई जा सकती है। वैसे भी महापुरषो का मानना है कि नर सेवा नरायण सेवा होती है।
इस मुद्दे पर जौली अंकल की आत्मा से तो यही आवाज निकलती है कि किसी घायल या जरूरतमंद की मदद ना करके अपनी राह पकड़ लेना भी किसी अपराध से कम नही होता। हम सभी का हर चीज को देखने का नजरियां अलग-अलग हो सकता है, परन्तु जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई जिसे हम भूलते जा रहे है वो तो यह है कि दूसरों से यदि आप अच्छा व्यवहार चाहते हैं तो फिर खुद्व भी अच्छा व्यवहार करना सीखिए।   

हम नही सुधरेंगें

चंद दिन पहले अर्न्तराष्ट्रीय खेलों के इतिहास के पन्ने पलटते समय एक बहुत ही रोचक तथ्य देखने को मिला। भारत द्वारा जीते गए मैंडलों के बारे में जब मैने विस्तार से जाननें की कोशिश की तो पाया कि हमारे खिलाड़ीयों ने अभी तक हुए सभी अर्न्तराष्ट्रीय खेलों के मुकाबलों में सबसे अधिक मैंडल कब्व्ी में ही जीते है। अब अपनी ज्ञियासा को मिटाने के लिए मैने इसके कारणों को खोजने का प्रयत्न किया। काफी माथा पच्ची के बात यह बात साफ हो पाई कि कब्व्ी में सबसे अधिक मैंडल जीतने का मुख्य कारण यह है कि हर भारतीय एक दूसरे की टांग खीचने में बहुत माहिर है। अब वो चाहे हमारा दोस्त, पड़ोसी या नेता ही क्यों न हो। हम खुद कुछ काम करें या न करें लेकिन दूसरों की टांग खीचनें को कोई भी मौका अपने हाथ से नही जानें देते।
आजकल हर समाचार पत्र और टी.वी. चैनल पर हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बहुमूल्य स्मृति चिंन्ह - बापू का गोल चश्मा, घड़ी, चप्पल, प्लेट और कटोरा की नीलामी के चर्चे जोरों पर है। सरकार के भीतर भी इन निशानीयों को बचाने पर बवाल मचा हुआ है। हर समय बापू का राग अलापने वाले देश के नेता ऐसे समय में न जानें कौन सी गहरी नींद में सो जाते है, और तब तक नही उठते जब तक विदेशी देश की बेशकीमती धरोहर को नीलाम नही कर देते।
जब पानी सिर से निकल जाता है, तो उस समय कुंभकर्णी नींद से उठ कर सरकार कुछ न कुछ ड्र्रामा दिखा कर जनता को गुमराह करने की कोशिश करती है। हमारी संस्कृति मंत्री ने तो यहां तक ब्यान दे डाला कि हाईकोर्ट के स्टे आर्डर के मुताबिक सरकार सीधें बोली में शमिल नही हो सकती थी, इसीलिए उसने माल्या की सेवाए लेने का फैसला किया है, और माल्या साहब ने उन्हें भारत सरकार के कहने पर खरीद भी लिया है।
सरकार की किरकरी तो उस समय हुई जब देश के सुप्रसिद्व उद्योगपति विजय माल्या ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। समाज सेवा के कार्यो में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने माल्या ने साफ तौर से यह कह दिया कि यह मेरा निजी फैसला था और यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मैं बापू की अनमोल निशानीयों को भारत वापिस लाने में कामयाब हो सका  हूँ। इससे पहले वो टीपू सुल्तान की तलवार भी ऐसी ही एक नीलामी में खरीद कर लाऐ थे।
सरकार की बेरूखी के कारण ही एक साधारण जनमानस गांधी जी के विचारों से दूर होता जा रहा है। हर कोई मानता है कि बापू की यह सभी चीजें गलत तरीके से देश से बाहर ले जाई गई है। जबकि इनकी जगह देश के सबसे बड़े सरकारी सग्रंहलय में ही हो सकती है। दुख की बात तो यह है कि हर पार्टी की सरकार इस धरोहर को बचाने में नाकाम रही है।
अब कुछ लोग टांग खीचने की आदत से मजबूर हो कर मीडियॉ में इस प्रकार की बातें उछाल रहें हैं कि शराब व्यवसायी विजय माल्या का तो गांधी जी के शराब विरोधी विचारों का कोई मेल नही बनता। माल्या जी, बापू का चश्मा तो करोड़ों में खरीद लिया लेकिन बापू जैसी दृष्टि और विचार कहां से लाओगे? वो तो पैसो से नही मिलते। कुछ लोगो के विचार में माल्या के इन चीजों को हासिल करने वाले प्रतीको की पवित्रता ही नष्ट हो गई है।
सुबह शाम बापू के नाम की रट लगाने वाले ढ़ोगी तो यहां तक कह रहे हैं कि देश में से बापू के अनमोल रत्नों को बचाने के लिए क्या हमारें पास केवल शराब उद्योगपति ही बचा था? क्या सरकार खुद या किसी अन्य देशभक्त को इस काम के लिए तैयार नही कर सकती थी। ऐसी बाते करने वाले यह क्यों भूल जाते है कि जो काम देश की 125 करोड़ अबादी और सरकार मिल कर नही कर पाए वो विजय माल्या ने अकेले अपने दम पर कर दिखाया। ऐसे लोगो की निगाह में विजय माल्या जैसे लोगो का महात्मा गांधी जैसे महापुरष के सिद्वांतो से कुछ लेना देना नही है। जबकि इतिहास साक्षी है कि गांधी जी ने कभी किसी व्यक्ति को उसके व्यवसाय या पेशे के आधार पर तिरस्कृत नही किया।
समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार विजय माल्या ने यहां तक कहा है कि बापू की इन चीजो से प्रेरणा लेते हुए यदि एक भारतीय भी गांधी जी के बताए हुए रास्ते पर चलने में कामयाब हो जाता है तो मैं यह समझूंगा कि करोड़ो डालर की चुकाई गई कीमत मेरे लिए कुछ अधिक नही है। मैं एक भारतीय  हूँ और मैं बापू जी का यह सारा सामान भारत सरकार को तोहफे में दे दूंगा। कहने वाले कुछ भी कहते रहे, लेकिन हर सच्चा देशवासी विजय माल्या के इस एहसान को आने वाले समय में एक लंबे अरसे तक याद रखेगा।
विजय माल्या के इस साहसिक कदम पर सभी देशवासीयों के साथ जौली अंकल उन्हें बधाई देते हुए इतना ही कह सकते है कि हर अच्छे काम की शुरआत में विरोध तो झेलना ही पड़ता है। आप नेकी की राह पर चलते रहें। आपको कोई कितना भी बुरा कहे सहन करते रहना क्योंकि आखिर परमात्मा अंधा तो नही, वो तो सब कुछ जानता है। जहां तक हम भारतवासीयों की बात करें तो यह पक्का है कि कोई कुछ भी करे ' हम नही सुधरेगें '  

संतोष की दौलत

बहुत ही पुराने समय की बात है कि एक बार एक राजा राज्य की प्रजा का हाल जानने के लिये अपने मंत्रीयों के साथ दौरे पर निकला। कुछ ही दूरी पर उन्हे एक भिखारी मिल गया। राजा ने अपने साथ चल रहे दरबारीयों से कहा कि इस भिखारी से पूछो कि इसे किस चीज की जरूरत है, और उसकी हर मांग को तुंरत पूरा किया जाये। भिखारी ने हंसते हुए कहा कि तुम्हारा राजा मेरी कोई भी इच्छा पूरी नही कर सकता। राजा के मंत्रीयो को काफी गुस्सा आया कि सड़क पर भीख मांगने वाला एक भिखारी उनके राजा की इस तरह खुल्ले आम बेईज्जती कर रहा है। बात जब राजा तक पहुंची तो उसने कहा कि तुम मुझे बताओ कि तुम्हें क्या चहिये? मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूगा।
भिखारी ने कहा कि कुछ भी कहने से पहले एक बार अच्छी तरह सोच लो। क्योंकि आज तक कोई भी आदमी मेरी इच्छा पूरी नही कर सका। राजा ने उस भिखारी की चुनोती को स्वीकार करते हुए कहा कि मेरे पास बेशुमार दौलत है। मेरे खजाने में कभी न खत्म होने वाले धन के अंबार लगे हुए है। शायद तुम जानते नही कि मैं एक बहुत ही ताकतवर राजा  हूँ। तुम एक बार अपनी जुबान से कुछ मांग कर तो देखो, मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकता  हूँ।
राजा के बार-बार जिद्द करने पर भिखारी ने कहा कि क्या तुम मेरा यह भीख मांगने वाला कटोरा किसी भी कीमती चीज से भर सकते हो? राजा ने जोर से हंसते हुए कहा बस इतनी सी बात थी। मैं खाने-पीने के सामान से तो क्या इसे सोने चांदी और हीरे मोतियो से भर सकता  हूँ। राजा ने पास खड़े अपनी वजीरो को हुक्म दिया कि इस भिखारी का कटोरा जल्दी से सोने की मुद्राओ से भर दो। कुछ ही देर में राजा के हुक्म के मुताबिक वजीरो ने उस भिखारी का कटोरा सोने की मुद्राओ से भर दिया। लेकिन यह क्या हुआ, वो अगले ही पल फिर बिल्कुल खाली था।
राजा ने फिर से हुक्म दिया की इस भिखारी के कटोरे को दुबारा से भर दो। परन्तु हर बार कटोरा भरते ही वो कुछ पलों में ही खाली हो जाता। आस पास खड़े सभी लोग भी इस नजारे को देख बहुत हैरान हो कर देख रहे थे। धीरे-धीरे यह बात पूरे इलाके में फैल गई, और पूरे राज्य की जनता वहां आ पहुंची। अब राजा की इज्जत और गौरव दांव पर था। राजा ने अपने वजीरो से कहा कि आज चाहे सारे राज्य की दौलत खत्म हो जाये, लेकिन इस भिखारी का यह कटोरा हर हाल में भरना ही चाहिये। जब रात तक यही सिलसिला चलता रहा तो राजा उस भिखारी के पैरो में गिर कर माफी मांगने लगा। उसने कहा कि अब मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नही बचा। तुम जीत गये और मैं अपनी हार स्वीकार करता  हूँ।
इतना सुनते ही भिखारी वहां से जाने लगा तो राजा ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिये उस भिखारी से यह पूछा कि तुम मुझे सिर्फ एक बात बता दो कि तुम्हारा यह भीख मांगने वाला कटोरा किस मिट्टी या धातू से बना हुआ है। भिखारी ने हंसते हुए कहा कि इसमें छुपाने वाली कोई राज की बात नही है। यह किसी धातू से नही आदमी के दिमाग की खोपड़ी से बना है। इसीलिये एक इच्छा पूरी होते ही इसमें सैंकड़ो और इच्छा जन्म ले लेती है। जो वस्तु इसे इसकी जरूरत के लिये मिलती है, उसी को और अधिक पाने की लालसा लिये इसका लोभ बढ़ता जाता है। इसी कारण आदमी सारी उंम्र भिखारी बन कर ही जीता है। जो व्यक्ति संतुष्ट है, चाहे उसके पास थोड़ा सा ही धन हो, फिर भी वह स्वयं को बहुत धनाढय समझता है।
जौली अंकल भी महापुरषो की इस बात को पूरे तौर से सत्य मानते है कि बड़ी से बड़ी दौलत से भी संतोष अच्छा है। इसीलिये याचक को अपने स्वामी से कुछ भी नही मांगना चाहिए, क्योंकि सबको सब कुछ देने वाला तो भगवान है। जब भी कुछ मांगना है, उसी से मांगो, क्योंकि वह देते-देते कभी नही थकता, इंसान ही उससे मुख मोड़ लेता है।         

दूरियॉ - नजदीकीयां

हैप्पी सिंह जब विदेश जाने लगा तो उसने अपने बचपन के दोस्त लक्की सिंह से कहा कि वो उसे यादगार के रूप में अपने हाथ में पहनी हुई सोने की अंगूंठी उतार कर दे दे। उसने जब इस का कारण पूछा तो उसने कहा कि मैं जब भी अपने हाथ में तेरी यह अंगूठी देखूंगा तो मैं तुझे याद कर लिया करूंगा। अब लक्की सिंह भी नहले पर दहले वाली कहावत पर बिल्कुल खरा उतरता था, उसने झट से कह दिया, मैं अपने किसी चहेते ध्दारा दी हुई यह अंगूठी तो तुझे नही दे सकता। हां अब जब कभी भी तू अपनी यह उंगली बिना अंगूठी के देखेगा तो तुझे जरूर मेरी याद आयेगी, कि मैने अपने दोस्त से एक अंगूठी मांगी थी, और उसने उसके लिये भी मना कर दिया था। इतनी छोटी सी बात को लेकर एक पल में बरसों पुरानी दोस्ती में खाई से बड़ी दरार बन गई। बचपन से इक्ट्ठे रहने वाले दो दोस्तो के बिछुड़ने से पहले ही उनके दिलों में दूरियॉ के बीज ने जन्म ले लिया।
विश्व भर के वैज्ञानिकों ने जमीन से चांद, सूरज और समुंन्द्र की लंम्बाई, चौड़ाई और गहराई तो नाप ली है। लेकिन अभी तक सारी दुनियॉ में कोई वैज्ञानिक ऐसा उपकरण ईजाद नही कर सके जो किसी के दिल की गहराई को जान सके। अभी तक कोई ऐसा उपकरण भी नही बना कि हम सामने वाले के दिल की बात को जान सके। इसीलिये शायद कहा जाता है कि आदमी दुश्मन से तो मुकाबला कर सकता है, लेकिन अपना कोई किस समय कैसा वार करेगा, उसे संभालना बहत मुश्किल है। हमारे मन में किसी के प्रति कितना स्नेह है या हम किसी के नजदीक रहते हुए भी उससे कितना दूर है, यह केवल हमारा मन ही जानता है। जब कभी हमारा कोई प्रिय व्यक्ति हम से दूर होता है, तो हमारा मन बार-बार उस करीबी की एक झलक पाने के लिये उसकी याद में तड़पता है। अक्सर लोग दूरियॉ या नजदीकीयों के बारे में बात करते समय मुख्य दो दूरियों की बात करते है। एक समय की दूरी और काल की। लेकिन सबसे खतरनाक दूरी का जिक्र करना भूल जाते है और वो होती है दिलों की दूरी।
हम सभी जानते है कि लालच की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी सुख नही मिलता। इस बात से भी कोई इंकार नही कर सकता कि जिस परिवार में अशांति रहती है वहां भगवान भी निवास नही करते। फिर भी जब कभी किसी कारण से घर में लोभवश कोई मन-मुटाव हो जाता हैं तो एक ही घर में रहते हुए दो सगे भाई आपस में बात करना तो दूर एक दूसरे की शक्ल भी देखना पंसद नही करते। परिवार और सगे रिश्तेदारो के बीच रहते हुए भी आज का इंसान एक दूसरे के दिलों से इतने दूर हो गये है कि उन्हें एक दूसरे के दुख-दर्द से कोई वास्ता नही रह गया। इस स्वार्थीपन के दौर में अधिकांश लोगो को पैसे के लालच ने अपने खून के रिश्तो से भी बहुत दूर कर दिया है। ऐसे लोगो के जीवन का एक मात्र लक्ष्य होता है पैसा और सिर्फ पैसा। पैसे के प्रति मोह रखने वाले लोगो का मानना है कि चमड़ी तो जाऐ पर दमड़ी नही जानी चहिये। लेकिन रिश्तो में दिलों की दूरियॉ की कीमत उस समय मालूम पड़ती है जब कभी वो सभी सुख सुविधाऐ होते हुए भी तन्हाह महसूस करते है। उस समय सब कुछ होते हुए भी अपने प्रियजनों की याद सताती है।
एक तरफ जहां हम सभी भगवान को याद करने के लिये बड़े-बडे लाऊड स्पीकर, ढ़ोल-ढ़फली बजा कर और कीर्तिन आदि का साहरा लेते है। ठीक इसी के उलट दूसरी तरफ एक मां को परदेस में रोजी-रोटी कमाने की मजबूरी में बैठे अपने बेटे को याद करने के लिये यह सभी ढ़ोंग नही करने पड़ते। एक पल में आखें झुका कर वो अपने बेटे के पास होने का एहसास महसूस कर लेती है। उसकी आंखो में हर समय अपने लाल की तस्वीर घूमती रहती है। जिस किसी को हम दिल से चाहते है वो मन का मीत सात समुंद्र दूर भी क्यूं न बैठा हो तो हमारा मन उसे हर समय अपने करीब ही महसूस करता है। जिस दिल में सच्चा प्यार होता है, वहां किसी प्रकार की दूरी के कोई मायने नही रह जाते।
हमारा घर ही संस्कारों की पहली पाठशाला होता है और माता-पिता हमारे प्रथम गुरू। अगर वो अपने बच्चो को बचपन से ही अच्छें संस्कार देते है, तो कोई ऐसा कारण नही हो सकता कि उनके परिवार में कभी भी किसी के दिल में दूरियॉ जन्म ले सके। पैसे से आप हर तरह की दुनियावी वस्तुऐ तो खरीद सकते हो, लेकिन सच्चा प्यार और मन की शंति केवल अपने प्रियजनों के प्यार से ही मिलती है। यह भी बहुत बड़ी सच्चाई है कि यदि हर इंसान की आधी इच्छाऐं भी पूरी हो जाये, तो उसकी सम्सयायें दुगनी हो जायेगी।
जौली अंकल का मानना है कि आपकी सभी से मित्रता हो यह जरूरी तो नही, लेकिन आप अपने मन में किसी के लिये दुशमनी न पालो तो आपकी अपने सगे-संबंधियो और प्रियजनों से दिलों की दुरियॉ अपने आप ही खत्म हो जायेगी।     

रिश्तों के दलाल

वैसे तो समाचार पत्रों में अक्सर सभी को चौंका देने वाले समाचार छपते ही रहते है, लेकिन कभी-कभी किसी खबर को पढ़ कर इतनी जोर से झटका लगता है कि सिर ही घूमने लगता है। ऐसा ही समाचार कुछ दिन पहले देश के सभी प्रमुख देैनिक समाचार पत्रो में छपा था कि एक हलवाई ने अढ़ाई रूप्ये वाले चार समोसे 10,000 रूप्ये में एक विदेशी जोड़े को बेच दिये। हमारे यहां सैल्समैनो की कई खतरनाक किस्में पाई जाती है। हर प्रकार के घटिया समान की हजारों खूबीयॉ इस तरह से ब्यान करते है कि हर कोई खुशी-खुशी अपने पर्स का मुंह इनके लिये खोल देता है। यह आपको किस कद्र नुकसान पहुंचा सकते है, आप स्वपन में भी नही सोच सकते।
इनमें सबसे खतरनाक किस्म होती है रिश्तो के दलालो की जिन्हें कुछ लोग मैरिज ब्यूरो का नाम भी देते है। कल तक जो काम पंडिंत और नाई करवाया करते थे, आज उसी काम ने एक अच्छे-खासे उघोग का दर्जा ले लिया है। कुछ कारोबारीयो ने अच्छे खासे एयरकन्ड़ीशनर दफतर बना कर हर जात-बिरादरी और ऊंचे रूतबे वालो लोगो के लिये यह मैरिज ब्यूरो की सेवा शुरू की है। परिवार की हैसीयत के मुताबिक रिश्ता करवाने वाले यह दलाल लोग अब शादी की रकम में से जमीन जयदाद के सोदो की तरह मोटा हिस्सा कमीशन के रूप में मांगने लगे है।
एक और जहां व्यापारी वर्ग अपने कारोबार में लाखो रूप्ये निवेश करके भी इतना पैसा नही कमा सकता जितना यह लोग अपनी जुबान के हेर-फेर में जरूरतमंदो को उलझा कर एक ही दिन में कमा लेते है। एक बार कोई अपने बच्चे के रिश्ते की बात अपने मुंह से इनके सामने निकाल दे, फिर ऐसे लोग उसका पीछा तब तक नही छोडते जब तक दुल्हन उनके घर नही पहुंच जाती।
अपनी कमीशन के लालच में चाहे यह आपके परिवार के बारे में कुछ जानते है या नही लेकिन यह एक दूसरे को दुल्हे-दुल्हन की इतनी खूबीयॉ गिनवाते है कि आप के पास उस रिश्ते को हां कहने के इलावा कोई चारा ही बचता। अब लड़का चाहे सड़क पर शाम को नीम का दातून बेचता हो, उसे यह टिम्बर मचैंन्ट बना कर ही लड़की वालो के सामने पैश करते है। विदेश से आऐ हुए चपरासी और ड्राईवर को भी एक रईसजादे की तरह से आपको मिलवायेगे। अब शादी के बाद ऐसे रिश्ते कोई कितने दिन तक निभा सकता है, इससे इनका कुछ लेना-देना नही होता।
उस दिन एक ऐसे ही शादी करवाने वाले मैरिज ब्यूरो के दफतर में जाने का मौका मिला तो मैं उनके काम करने के तरीके को देख हैरत में आ गया। इनके यहां सभी काम करने वाले लोग गिरगिट से जल्दी रंग बदलने में माहिर थे। दूसरे कमरे में दो परिवारो के बीच शादी की बातचीत चल रही थी। अचानक लड़के के पिता का मोबईल फोन बज उठा। दूसरी तरफ से आवाज आ रही थी कि 50 कार 50 मोटर साईकल और 60 स्कूटर भेज रहा  हूँ। लड़के के पिता ने कहा कि तुम्हारी कार तो बहुत मंहगी है, अगर रेट कुछ कम करो तो फिर चाहे 100 भिजवा देना। रिश्तो के दलाल ने दबी आवाज में लड़की के पिता से कहा कि इतनी मोटी पार्टी तो बहुत ही किस्मत वालो को ही मिलती है, अब देरी मत करो अभी ही शगुन की मिठाई जल्दी से मंगवा लो। आपकी बेटी तो रानी बन कर रहेगी। इससे पहले कि लड़की के मां-बाप लड़के के पिता से कुछ और पूछते मैरिज ब्यूरो के मालिक ने कहा कि इनकी तरफ से तो हां है। अब तो आप भी जल्दी से सगाई की अंगूठी मंगवा लो।
लड़की के माता-पिता लड़के वालो की बातचीत से काफी प्रभावित होते हुए बिना और कुछ भी जाने हां कह गये। जब लड़की वाले चले गये तो मैरिज ब्यूरो वाले ने पूछा कि आपका यह कार और स्कूटर का शोरूम किस शहर में है। लड़के के पिता ने कहा कि हमारा तो कोई ऐसा शोरूम नही है। दलाल ने हैरान होते हुए पूछा कि आप अभी 50 कारे, स्कूटर और मोटर-साईकल आदि मंगवा रहे थे। अब लड़के के पिता को सारी बात समझ आ गई, उसने उस दलाल को बताया कि हमारी तो एक छोठी सी खिलानो की दुकान है। यह सारा आर्डर उन खिलोनो का ही था। अब यह रिश्तो का दलाल दोनो पार्टीयो से मोटी रकम कमीशन के रूप में ले चुका था। यह सुनने के बाद उसके चेहरे पर घबराहट की लकीरे साफ झलक रही थी, साथ ही उसे यह डर सता रहा था कि अब लड़की के पिता को क्या मुंह दिखायेगा।
जौली अंकल ठीक ही कहते है कि कपटी और मक्कार लोग दूसरो को बेवकूफ बना कर थोड़ी देर के लिये तो खुश हो जाते है, लेकिन असलियत खुलने पर उन्हे सबके सामने जलील होकर रोना ही पड़ता है।  

खुशबूदार फूल

एक दिन वीरू बहुत देर से दारू और सिगरेट पीते हुए जोर-जोर से रोता जा रहा था। उसके दोस्त जय ने जब उससे रोने का कारण जानना चाहा तो तो उसने कहा कि मैं अपनी गर्ल-फ्रैन्ड़ से बहुत दुखी हो गया  हूँ, और उसे भुलाने की कोशिश कर रहा  हूँ। जय ने फिर पूछा लेकिन इसमें इतना रोने की क्या बात है? वीरू ने अपने आंसू पोछतें हुए कहा परन्तु मुझे उस गर्ल-फ्रैन्ड़ का नाम याद नही आ रहा कि वो कौन थी? वीरू ने अपने दोस्त जय से पूछा कि जब कभी तेरे से कोई चीज गुम हो जाए या तू उसे रख कर भूल जाए तो तू क्या करता है? जय ने मुस्कराते हुए कहा कि इसमें परेशान होने की क्या बात है, मैं तो बाजार से नई ले आता  हूँ। लेकिन गर्ल-फै्रन्ड तो बाजार में नही मिलती, अब मैं क्या करू, यह कह कर वीरू ने नशे में फिर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया।
जय को अब तक समझ आ चुका था कि वीरू ने जरूरत से अधिक नशा कर लिया है। उसने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उसे समझाना शुरू किया, कि गांधी जी जैसे महापुरष सदैव समझाते रहे है कि शराब इंसान की सबसे बडी दुश्मन है। नशा चाहे किसी भी प्रकार का हो उससे कभी किसी मसले का हल नही निकलता। इससे न सिर्फ हमारे घर-परिवार और पैसे की बर्बादी होती है ब्लकि साथ ही हमारे शरीर और आत्मा को भी बहुत नुकसान पहुंचता है। नशे में टून वीरू ने उसकी बात को काटते हुए कहा, कि तुम्हें तो दारू में सिर्फ बुराईयां ही बुराईयां दिखाई देती है। क्या तुमने कभी विद्ववान लोगो के प्रवचन सुने है, वो हमेशा एक ही बात समझाते है कि दुश्मन को भी गले से लगा कर रखना चहिये। अब यदि मैं शराब को अपने गले से लगा कर रखता  हूँ, तो तुम्हें क्या दिक्कत है?
लगता है तुम्हारे जैसे लोग शराब के फायदो के बारे में बिल्कुल कुछ जानना ही नही चाहते, नही तो मेरे साथ ऐसी बात नही करते। हमारे देश में सबसे अधिक बीमारीयॉ पानी से ही फैलती है। पानी में अनेक प्रकार के बैक्टीरयॉ और छोटे-छोटे न जाने कितने ही कीटणु होते है? जबकि दारू तो बिल्कुल साफ-सुथरे फलो का रस निकाल कर बनाई जाती है। इसमें पानी को भी अच्छी तरह से कई बार छननी से छान कर, फिर अनेको बार उबाल कर साफ सुथरे तरीके से डाला जाता है। हर साल हमारे देश में सबसे अधिक मरने वालो की संख्या पानी के कारण ही है, अब वो चाहे पानी की बीमारीयो से मरे हो या बाढ़ से। वीरू ने शराब के नशे में अपनी लड़खड़ाती जुबान से बड़ी मुश्किल से अपनी बात पूरी की।
जय ने वीरू को थोड़ा संभालते हुए कहा कि क्या तुम जानते हो कि हमारे देश में सड़क हादसों में मरने वाले 10 प्रतिशत से अधिक लोग दारू के नशे के कारण मरते है। वीरू ने भी लगता है कि हार न मानने की कसम खा रखी थी, उसने अपने दोस्त की बात काटते हुए कहा कि बाकी के सभी 90 प्रतिशत लोग तो बिना दारू पीये ही मरते है। अब तुम खुद ही देख लो कि बिना दारू पी कर मरने वालों की संख्या हम जैसे लोगो से कितनी अधिक है।
जय अच्छी तरह से जानता है कि हर सफलता की शुरूआत लडखडहाट से ही होती है इसलिए इंसान को कभी घबराना नहीं चहिये। अधिकाश: गुनाह आदमी जानबूझ कर नहीं अंजाने में कर बैठता है लेकिन इन्हें क्षमा करने वाला सचमुच महान कहलाता है। इन्ही बातो से प्रेरित हो कर जय ने एक बार कोशिश करते हुए वीरू को कहा कि अगर यह सब सच होता तो हमारी सरकार हर शराब की बोतल और सिगरेट के पैकेट पर 'षराब और सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है' क्यूं लिखते? झट से वीरू ने जवाब देते हुए कहा कि इतना तो मैं नही जानता, लेकिन तुझे शायद यह नही मालूम की दारू की सभी दुकानें भी हमारी सरकार ही चलाती है।
इससे पहले की जय आगे कुछ और कहता, वीरू ने कहा, कि क्या तुमने कभी उन लोगो के बारे में सोचा है जो शराब और सिगरेट बनाने वाली कम्पनीयों में काम करते है। अगर यह सब कम्पनीयॉ बंद हो जाऐगी, तो वहां काम करने वालो की रोजी-रोटी और उनके परिवार वालों के सपनो का क्या होगा? मैं तुम्हारी तरह स्वार्थी नही  हूँ कि केवल अपनी सेहत और फैफड़ो की खातिर ऐसे हजारो-लाखो लोगो को बेरोजगार करके उनके सपनो को चूर-चूर कर दू।
जय ने दुखी होते हुए कहा, तू जितनी शराब पी सकता है, पी, आज के बाद मैं तुझे कभी नही रोकूगा। इस तरह के हालात में जौली अंकल जय और वीरू जैसे लोगो से एक छोटी सी बात कहना चाहते है कि जिस व्यक्ति ने जीवन में उम्मीद खो दी उसने सब कुछ खो दिया। परमात्मा ने हमें खुशबूदार फूल बनाया है, क्या हम सभी सब तक अपनी खुशबू फैला रहे हैं?    

कारीगर

हर कोई अपने सपनो का घर बनाने के लिए अपनी हैसीयत के मुताबिक बढ़िया से बढ़िया कोशिश करता है। इसके बावजूद भी कुछ ही घरों को देख कर यह कहा जाता है कि वाह क्या घर बनाया है। इसका मुख्य कारण होता है घर बनाने वाले कारीगर का कमाल। कुछ कारीगरो के हाथ में ऐसा जादू होता है कि वो साधारण से पथ्थर में से भी ऐसी मूर्ति तराश देते है कि सारी दुनियॉ उस मूर्ति के पांव पर अपना सिर झुका देती है। कुछ समय पहले तक साधारण से पथ्थर में एक आम आदमी को भगवान का रूप नजर आने लगता है। सफेद संगमरमर के पथ्थर से बने ताजमहल की खूबसूरत कारीगिरी की मिसाल पूरी दुनियॉ में नही मिलती।
एक बहुत धनी सेठ के पास ऐसा ही जादूगर किस्म का कारीगर काम करता था। उस सेठ का काम बड़ी-बड़ी इमारतो का निर्माण करवाना था। पूरे शहर में इस कारीगर की वजह से उस सेठ की धाक थी, कि इससे बढ़िया इमारत और बंगला पूरे शहर में कोई नही बना सकता। कारीगर भी हर काम में अपनी पूरी जान लगा देता था। उसने उस सेठ के परिवार के अनेक सदस्यो के लिए कई सुन्दर घर भी बनाऐ थे। जो पूरे शहर में अलग ही किस्म की मिसाल थे।
इस कारीगर के जीवन का अधिकांश हिस्सा धनी सेठ की सेवा में ही बीता। सेठ जी भी कारीगर के बच्चो की शादी एवं हर अन्य मौके पर उसकी मदद करते रहते थे। उसके हर सुख-दुख में सारी जिम्मेंदारी के साथ उसका खर्च भी सेठ जी ही उठाते थे। एक दिन वो कारीगर सेठ जी के पास प्रार्थना लेकर गया और बोला कि अब उस का शरीर काम करने में उसका साथ नही दे रहा और अधिक काम करने में उसने अपनी असमर्था जाहिर करते हुए सेवा-निवृत होने की पेशकश की।
सेठ जी ने सारी बात सुनने के बाद उस कारीगर से कहा कि आज तक तुमने मेरे लिये एक से एक सुन्दर इमारत बनाई है। मैं तुम्हें जाने से नही रोकूगा लेकिन मेरी इच्छा है कि तुम सेवानिवृत होने से पहले मेरे लिए आखिरी बार एक बहुत ही सुन्दर सा घर बना दो। बरसो से सेठ जी के एहसानों में दबे होने के कारण उस कारीगर ने न चाहते हुए भी सेठ जी को मौन रहते हुए अपनी स्वीकृति दे दी।
अगले ही दिन से उस नये घर का काम शुरू हो गया। लेकिन इस बार उस कारीगर का मन काम में नही लग रहा था। हर समय उसके मन में एक ही विचार आ रहा था कि यह सेठ न जाने और कितने दिन तक मेरा खून चूसता रहेगा। कई बार सेठ जी के कहने के बावजूद भी वो पहले की तरह काम में रूचि नही दिखा रहा था। सेठ जी ने इस नये घर के लिये दूसरे शहरो से हर प्रकार का बढ़िया समान मंगवा कर दिया, लेकिन कारीगर तो किसी तरह यह काम जल्द से जल्द खत्म करने की फिराक में था।
जैसे तैसे उसने काम खत्म करके सेठ जी से छुट्टी की इजाजत मांगी। सेठ जी ने नये घर को अच्छी तरह निहारहने के बाद उसकी चाबी कारीगर को देते हुए बोले की तुम ने सारी जिंदगी जो मेरे लिए काम किया है, मैं उसकी कोई कीमत तो नही आंक सकता, लेकिन मैं अपनी तरफ से यह घर तुम्हें तोहफे में देता  हूँ। आज से तुम अपने परिवार के साथ यहां रह सकते हो। यह सुनते ही कारीगर के दिलो-दिमाग में झनझनाहट होने लगी, उसे इतनी जोर से सदमा लगा कि अगर मुझे पता होता कि यह घर में अपनी लिये बना रहा  हूँ तो मैं इसको बहुत ही बेहतर तरीके से बना सकता था।
हम अपने जीवन में जाने-अनजाने बहुत सी ऐसी गलतीयॉ कर देते है, जिसका हमें जिंदगी भर अफसोस बना रहता है। कुदरत हमें ऐसे मौके बार-बार नही देती। जब तक हमें गलती का एहसास होता है, उस समय तक इतनी देरी हो चुकी होती है कि हम चाह कर भी उस भूल को सुधार नही सकते। जौली अंकल का तो सदा से ही यह मानना है कि आप आज जो कोई कर्म कर रहे हो उसे पूरी ईमानदारी और बुध्दिमानी से करो क्योंकि उसी में आपका भविष्य छुपा होता है।         

आखिरी पहर

कुछ दिन पहले चुनाव अधिकारी जब मेरे पड़ोसीयों के घर मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए आये तो उन्होने घर की मालकिन से उसकी उंम्र जाननी चाही तो उसने झट से कह दिया कि 25 साल। पीछे खड़े उसके पति ने उसे डांटते हुए कहा कि इनको बिल्कुल ठीक-ठीक जानकारी देनी होती है। तुम 25-30 साल पहले भी खुद को 25 साल का कहती थी। आज भी अपने आप को 25 साल का बता रही हो। तुम क्या सारी उंम्र 25 साल की ही रहोगी?
उस औरत ने पलटवार करते हुए कहा कि मैं तुम्हारी तरह नही हूँ कि एक बार कुछ कहूं और कुछ देर बाद कुछ और। मैं तो जो भी बात एक बार कह देती  हूँ, हमेशा उसी पर कायम रहती  हूँ। पति ने कहा, मेरे से बाद में झगड़ा कर लेना पहले अधिकारीयो को अपनी उंम्र ठीक से बता दो। अब वो औरत बोली कि आप लिख दो 25 साल और कुछ महीने। अधिकारी ने कहा कि कितने महीने? परेशान पति बोला, जी आप 25 साल और 150-200 महीने लिख दो।
सिर्फ औरते ही नही आदमी भी बुढ़ापे के नाम से घबरा कर अपने बालो को रंग और चेहरे पर अनेक प्रकार की क्रीम लगा कर अपनी उंम्र को छुपाने की कोशिश करते है। कारण कोई भी हो इन्सान उंम्र के किसी भी पढ़ाव पर अपने आप को बुढ़ा मानने को तैयार नही होता। बुढ़ापे के नाम से ही लोगो को घबराहट और चिंता सताने लगती है। हालंकि आज तक चिंता करने से कभी किसी सम्सयॉ का हल नही निकला। उल्टा ंचिंता आदमी को चिता के और नजदीक ले जाती है।
हम भारतीय बहुत खुशनसीब है कि अभी तक हमारे देश में पूरे परिवार के सभी सदस्य बर्जुगो को बहुत ही इज्जत और प्यार देते है। जब कभी कोई विदेशी हमारे यहां आते है तो वो यह देख कर हैरान होते है कि हमारे यहां किस तरह से बच्चो को बर्जुगो के प्रति भरपूर प्यार, इज्जत और सम्मान करना बचपन से ही सिखाया जाता है। विदेशो की तरह उनको आश्रम में मौत का इंन्तजार करने के लिये नही छोड़ दिया जाता।
अब अगर हम हकीकत को समझने की कोशिश करे, तो पाऐेगे कि आदमी की सोच और विचारो के बदलते ही आदमी का खान-पान, रहन-सहन, यहां तक की उसकी सारी दुनियां ही बदल जाती है। विध्दवान लोग सच ही कहते है कि बुढ़ापा शरीर से नही इंसान की सोच में होता है। हर आदमी के अंन्दर एक अच्छा इंन्सान छुपा होता है, जरूरत है उसे जगा कर बाहर लाने की। जो कोई थोड़ा सा प्रयत्न करते है, उन्हें इस कार्य में सदैव सफलता मिलती है।
आप चाहे एक आम इंन्सान हो या कोई सेलिब्रिटी, आप अपनी पहचान को भुला कर जिंदगी के हर रंग में खुशी पा सकते है। यह बात भी ठीक है कि बढ़ती उंम्र के साथ शरीर में पहले जैसी ताकत नही रहती लेकिन अगर आप मन से अपने आप को जवां महसूस करते है तो आप सदा के लिए जवान रह सकते है। जिंदगी के प्रति सदा सकारात्मक दृष्टिकोण बनायें। बर्जुगो का भी परिवार और समाज की तरक्की में अहम योगदान होता है। आपके ध्दारा किया हुआ एक भी समाजिक नेक कार्य आपको बेशकीमती लाखो दुआऐ दिला देता है।
आप अपनी गली, मुहल्ले या सोसाईटी में होली, दीवाली या नये साल के मौके पर अपनी हिचकिचाहट को मिटा कर बच्चो के साथ-साथ रंगारंग कार्यक्रमों में भाग ले सकते है। इससे आपके अंदर छुपी हुई प्रतिभा को देख कर आपके प्रियजनों को दातों तले उंगुलीयॉ दबाने पर मजबूर होना पड़ेगा। आप जीवन के इस मोड़ पर भी यह साबित कर सकते है कि आपके अंदर पहले जैसा जोश अभी बाकी है। बच्चो की तरह आप सब बर्जुग मिल कर वर्ल्ड सीनियर डे आदि मना सकते है। अपने परिवार के सदस्यो से कुछ अधिक इच्छा रखने की बजाए समय-समय पर उनको मोके के अनुसार कुछ न कुछ तोहफा भेट करे। इससे सारे परिवार का भरपूर स्नेह आपको मिलने लगेगा।
छोटी-मोटे दुख एवं परेशानीयॉ जिंदगी का ही एक अंग है। बच्चो और रिश्तेदारो से अधिक अपेक्षाएं न रखें। अंत में बर्जुगो से एक ही विनती है, कि वो अपनी हर जरूरत और ख्वाहिश को पूरा करने के लिये घर वालो की मजबूरीओ को समझते हुए छोटी-छोटी बातो पर जिद्द न करे। अपनी इच्छा शक्त्ति को थोड़ा सा बढाते हुऐ आत्मविश्वास से घर में शंति के साथ रहने का प्रयत्न करे। इससे आपके जीवन के इस आखिरी पहर से आपकी सभी परेशानीयॉ छूमंतर हो जायेगी। फिर आप देखेगे कि न सिर्फ जौली अंकल बल्कि आपके घर वाले भी सुबह शाम आपको सलाम करेगे।  

वसीयत

तेजी से बदलते विज्ञान के इस दौर ने आम आदमी के जीने का रंग-ढंग ही बदल दिया है। कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, चमचमाती तेज दौड़ती कारें जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई हैं। महीनों का काम दिनों में और दिनों का काम कुछ घंटों और मिनटों में होने लगा है। आज एक सफाई कर्मचारी भी अपने मोबाइल फोन से दुनिया के किसी भी कोने में घर बैठे बात कर सकता है। हर प्रकार की सुख सुविधाओ होने के बावजूद भी हर इन्सान पहले से अधिक परेशान और दुखी रहने लगा है। हम अपने मन का चैन और शन्ति खोते जा रहे हैं। क्या हमने कभी इस बारे में विचार करने का प्रयास किया है कि आखिर ऐसा क्यूं हो रहा है?
कल तक जो जमीन-जायदाद कुछ हजारों रूपये की थी, वो आज लाखों और करोड़ाें की कीमत में पहुॅच गई हैं। जैसे-जैसे इन्सान के पास दौलत बढ़ रही है, उसकी मानसिकता या यूं कहें कि दिल छोटा होता जा रहा है। उसका धन-दौलत के प्रति लोभ बढ़ता जा रहा है। समाज कल्याण के बारे में तो सोचना तो दूर अपने मां-बाप की सेवा करने में भी परेशानी होने लगी है। बुजुर्गों को अपने ही घर में रहने के लिये कई बार कोर्ट कचहरी का सहारा लेना पड़ रहा है। आंकड़ें बताते है कि दुनिया के सबसे ताकतवर और अमीर देश अमरीका का हर दसवां नागरिक दिमागी तौर से परेशान है, जिनमें अधिकतर पागलपन की कतार पर है। ऐसा ही कुछ हाल यहां पर आत्महत्या करने वालों के ग्राफ का भी है।
हम हर अच्छे काम का श्रेय तो खुद लेना चाहते हैं और कुछ भी गलत होने पर सारा दोष भगवान के सिर मढ़ देते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि हमारा मन हर अच्छे और बुरे काम का विश्लेषण करके किसी भी गलत काम को करने से पहले हमें चेतावनी देता है। लेकिन हम निषेधात्मक मत को जल्दी स्वीकार कर लेते हैं। और अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं। आज की तेज दौड़ती जिंदगी में युवा-पीढ़ी को धर्म के बारे में बात करना समय की बरबादी लगता है। जबकि हमारे धर्मग्रन्थ हमें अनेक प्रकार के नशों से बचने, और रोगों से मुक्त अपना जीवन सुखमय तरीके से जीने की राह दिखाते हैं। हम लोग पुरखों से मिले उच्च संस्कारो को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना तो दूर खुद भी उन पर अमल करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
हम अपने बच्चोें के सुख के लिये लाखों-करोड़ो रूपये इकट्ठा करते रहते हैं, ताकि उनको आने वाले समय में किसी प्रकार का कोई कष्ट न हो। लेकिन अगर उनका जीवन सचमुच सुखी बनाना है तो उन्हें जमीन जायदाद, पैसों के साथ पारिवारिक मूल्यों की पहचान करवानी होगी। उन्हें समझाना होगा कि साफ सुथरे आचरण के साथ जीने के लिये धर्म को सदा याद रखें। अपने स्वभाव में मीठा बोलने की आदत डालें, इससे आप किसी का भी मन जीत सकते हो। अपनी आंखें और कान हमेशा खुले रखें।
जहां तक हो सके निषेधात्मक बातों की और ध्यान न देकर केवल अपने वास्तविक, निर्णायक बातों को ही जीवन में उतारें। एक सभ्य नागरिक की तरह कानून की इज्जत करे। तरक्की की चकाचौंध में लोग चरित्र निर्माण का महत्व बिलकुल भूल चुके है। सुखमय जीवन जीने के लिये जिंदगी में जो कुछ भगवान ने हमें दिया है, उससे तृप्त और संतुष्ट रहने की बहुत महत्ता है। इसके बिना आप एक दिन भी शान्ति से नहीं जी सकते। जहां तक हो सके, फालतू बातों का बोझ न उठायें।
चरित्र निर्माण से ही जीवन मे असली सुख, शान्ति और समृध्दि आ सकती है। इससे पहले कि हम सब जिदंगी की भागम-भाग में भटकते हुए अन्धेरी राहों में खो जाएं, हमें अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करते हुए, उनको धन दौलत, जमीन जायदाद के साथ-साथ अपने पुरखों से मिले हुऐ उच्च संस्कारो और परिवारिक मूल्यों की वसीयत भी उनके नाम कर देनी चाहिये। जौली अंकल तो हर किसी को यही समझाने की कोशिश करते है कि सुख-चैन और शांतमय जीवन के लिए संतोष ही सबसे बड़ी दौलत है। एक शायर ने तो यहां तक कहा है कि :
कमा लो जितना कमा सकते हो, धन दौलत हीरे मोती,
पर एक बात याद रखना, कभी किसी कफन में जेब नहीं होती।     

कुछ ना कहो

वैसे तो हर इन्सान सभी जीव-जन्तुओं की तरह अपना जीवन जीते हैं। दोनों में यदि कोई फर्क है तो वो सिर्फ इंसान की बुद्वि का। जानवर आज से हजारों साल पहले जैसे रहते थे आज भी वैसे ही रह रहे है। परन्तु इंसान समय के साथ-साथ तरक्की करता जा रहा है। शांतमयी ढंग और उच्चकोटि का जीवन जीना एक कला है। बिना सुख सुविधाओं और ऐशो आराम के पहले के लोग कैसे जीते थे? यह तो मालूम नहीं, पर वो लोग थोड़ी सी कमाई से सारे घर की जरूरतें पूरी करके, कुछ न कुछ मुश्किल समय के लिये भी बचा लेते थे। हर आदमी अपने आप को बहुत ही सन्तुष्ट महसूस करता था। आज के समय में यह कला कहां से सीखें कुछ समझ नहीं आता। क्योंकि आज की इस आपाधापी के दौर में घर के बुजुर्गों के उंम्र भर के सारे तजुर्बे फेल हो रहे हैं। किसी अध्यापक या प्रोफेसर से इस कला को जानने की कोशिश करें, तो वो कहते हैं कि हम आपको क्या सिखायेंगे आज के इस मंहगाई और पागलपन की दौड़ के दौर में हमें भी अपना घर चलाना ही एक संकट सा लगता है।
आज ऐसा क्या हो गया है, कि हर आदमी मंहगाई और आर्थिक रूप से परेशान है, एक के बाद एक कई सरकारें आर्इं पर हर बार जनता की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। हर सरकार से जनसामान्य को एक आस की किरण नजर आती है, पर कुछ लच्छेदार वादों के सिवाय जनता के हाथ कुछ नहीं लगता। कुछ अरसा पहले जहां सारे घर का खर्च एक आदमी की कमाई से चल जाता था, वहां आज घर के हर सदस्य के काम करने के बावजूद भी दो वक्त की दाल रोटी का प्रबन्ध करना एक टेड़ी खीर साबित हो रहा है।
हमारी सरकारें नई-नई योजनाएं लाकर जनता के पैसे से तजुर्बे करती रहती है। उस तजुर्बे से किसी समस्या का हल निकले या न निकले, लेकिन हमारे मंत्रियों की तिजोरियों पर लक्ष्मी मां की कृपा बढ़ती ही जाती है। आम देशवासी कभी बिजली, पानी की कमी से परेशान और कभी मंहगाई के बोझ तले मरते रहते है। हमारे देश के किसान दुनिया को रोटी देने वाले अपने परिवार के लिये दो वक्त की रोटी न जुटा पाने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। उधर, सरकार हर बार कोई न कोई सुनहरा सपना दिखाकर जनता को बेवकूफ बनाने में सफल हो जाती है। पहले 50 सालों तक सरकार ने बिजली, पानी और यातायात के सारे विभाग अपने कब्जे में रख कर उन्हें दीमक की तरह खोखला कर दिया। अब इन विभागों को कुछ निजी कम्पनियों के हाथों में सौंपा जा रहा है। अब एक-एक विभाग को एक ही कम्पनी को देने से उन लोगों की दादागिरी और बढ़ गई और मंत्रीओं के वारे न्यारे हो रहे हैं। अब जनता पहले से भी अधिक दुखी है। यहां तो यह कहावत बिल्कुल ठीक साबित होती है, कि आकाश से गिरा खजूर में अटका।
इसके वावजूद अब हमारी सरकार सारे सरकारी अस्पतालों को निजी कम्पनियों के हाथों में देने का मन बना रही है। पहले जिन अस्पतालों को सरकार ने करोड़ो रूपयों की जमीन इस शर्त पर कोड़ियों के भाव दी थी, कि वो लोग गरीबों का इलाज मुफ्त में करेंगे। जबकि सच्चाई यह है कि गरीब लोगों को इन अस्पतालों में जाने तक की इजाजत भी नहीं है। अब तक लोग बिजली से परेशान थे, अब तो सरकार जनता के जीवन को भी दांव पर लगाने जा रही है। अगर सरकार सच में जनता के हित में कुछ करना चाहती है, तो टेलीफोन कम्पनियों से सीखें, जहां कल तक दिल्ली से मुबई एक बार बात करने पर 30-40 रूपये लगते थे, आज वहीं बातचीत करने के लिये एक रूपये से कम में काम चल जाता है।
एक छोटी सी बात जो पढ़े लिखे लोगो के साथ अनपढ़ लोगों को भी समझ आती है वो हमारी सरकार के काबिल अफसरों को क्यूं नहीं समझ आती कि जब तक किसी भी क्षेत्र में एक संस्थान की दादागिरी रहेगी तब तक वो हर हाल में अपनी मनमानी करेगा ही। कोई भी व्यापारिक घराना जनता का भला करने से पहले दस बार अपने मुनाफे को अधिक से अधिक बढ़ाने की सोचता है। बार-बार सिर्फ सरकार को दोष न देकर यदि हम अपने गिरेबान में झांकने का प्रयास करे तो पायेगे कि हमें सदा वैसी ही सरकार मिलती है जिसके हम पात्र है। जब हममें सुधार आ जायेगा तो सरकार में भी अपने आप सुधार हो जायेगा।
इन विषयों पर ना जाने कितना कुछ लिखा और कहा जा चुका है, पर आम जनता की आवाज सरकार तक कब पहुंचेगी, यह तो भगवान ही जाने। यह सच है कि हर रास्ता कांटो से भरा होता है, परन्तु सरकार सच्चे मन से यदि जनहित में पहला कदम बढ़ाने की हिम्मत दिखाए तो उसे एक दिन मंजिल भी जरूर मिल जायेगी। कोई भी काम कभी भी किया जा सकता है, लेकिन सफलता पाने के लिए लक्ष्य तह करना जरूरी है। हमारी सरकार हर मसले से जुड़े कानून तो बनाती रहती है वो यह क्यूं भूल जाती है कि सबसे ऊंचा नैतिक कानून यह है कि हमेंं सदैव आम आदमी के कल्याण के लिए काम करना चहिये।
आखिर में जौली अंकल के थके हुए मन से यही आवाज निकलती है, कि कल तक सोने की चिड़ियां कहलाने वाला हमारा महान भारत देश आज दुनियां के भ्रष्ट देशो की सूची में सबसे आगे खड़ा है। यहां के रहनुमाओं को कोई कुछ भी कहता रहे, यहां किसी को कुछ फर्क नही पड़ता। इन लोगो पर यह कहावत भी पूरे तौर से खरी उतरती है कि भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा क्योंकि इन लोगो को कुछ असर होने वाला नहीं है। इसलिये आप भी कुछ ना कहो तो ही अच्छा है। 

राही चल अकेला

साधु-संत, ज्ञानी लोग हमेशा से ही हमें समझाते रहे हैं, कि इन्सान दुनिया में अकेला ही आता है और उसे अकेले ही यह जग छोड़ना पड़ता है। वो बात अलग है कि जन्म के तुरन्त बाद ही बहुत से दुनियावी रिष्ते बन जाते हैं। जोकि हमारे जीवनकाल में साथ निभाने का दम भरते है। जब तक जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहे तो आपके मिलने-जुलने वाले भी बहुत अच्छे से अपनापन जताते रहते है। भगवान न करे आपके ऊपर किसी दिन कोई कष्ट की घड़ी आ जाये, तो उस समय आपके सबसे नजदीकी रिश्तेदार और विश्वसनीय दोस्त भी पल भर में गिरगिट की तरह रंग बदल कर पल भर में गायब हो जाते हैं।
अगर थोड़ा गहराई से सोचें, तो हम महसूस करेंगे कि आजकल क्या कोई सच में किसी का साथ निभा पाता है? या यूं कहें कि हम किसी का किस हद तक साथ निभाते है? कहने को रिष्तों के नाम पर हमारे पास मां-बाप, भाई-बहन, चाचा-ताऊ के अलावा दोस्तों यारों की एक लम्बी सी सूची रहती है। इतने रिष्ते होते हुए भी आज का आदमी बिल्कुल अकेला और तन्हा होता जा रहा है। कुछ अरसा पहले तक हर खुषी, गम एवं दुख की घड़ी में पूरा कुंबा एकजुट होकर हर तरह की परेशानी को असानी से झेल जाते थे। लेकिन आजकल राह कितनी भी कठिन क्यूं न हो, हमें अकेले ही उस पर चलना पड़ता है।
कल तक जो लोग जन्म-जन्म का साथ निभाने की कसमें खाते थे, उन लोगों को आपकी गली से गुजरना भी भारी लगता है। कभी किसी मोड़ पर अचानक मुलाकात हो भी जाये तो ऐसा बर्ताव करेंगे जैसे कि वो आपको पहचनाते ही नहीं। दुख और परेषानी के पलों में आपकी मदद करने की बजाए दुनिया भर के बहानों की लिस्ट आपके सामने रख देंगे। कुछ बड़े शहरों में रहने वाले को तो हर महफिल में शेखी बघारने में तो न जाने कितना आनन्द आता है। बड़े-बड़े अफसरों और राजनेताओं के बारे में ऐसे किस्से सुनाएगे जैसे कि वो सारा दिन इनके घर में ही रहते हों। परन्तु कभी गलती से आप इनको एक छोटा सा भी कोई काम करवाने को कह दें, तो पल भर में इनके चेहरे से हवाईयॉ उड़ने लगती है। कुछ चतुर और चालाक लोग यदि आपकी मदद करते भी है तो उस मजबूरी का भरपूर फायदा उठाने से भी नही चूकते।
आज के बदलते माहौल में बात चाहे किसी सरकारी दफतर से कुछ काम करवाने की या दुख तकलीफ में घर के किसी बुजुर्ग का अस्पताल में इलाज करवाने की, आपको सब कुछ अपने बलबूते पर ही करना पड़ता है। कुछ बरसों पहले तक लोग थोड़ी बहुत जान-पहचान की वजह से, गली-मुहल्ले और बिरादरी वालों की आंख की षर्म के कारण से एक दूसरे की बहुत इज्जत करते थे। लेकिन धीरे-धीरे हर कोई अपने आप में मस्त होता जा रहा है। आज का इन्सान हर रिष्ते को पैसे की तराजू में तोलने लग गया है। किसी गैर की मदद तो दूर, अपने मां-बाप की देख-भाल भी बच्चों को भारी लगने लगी है। अधिकतर परिवारों के बच्चों ने मां-बाप को भी दूसरी वस्तुओं के माफ़िक टुकड़ों में बांट दिया है। ऐसा लगता है, कि हम सब के खून का जैसे रंग ही बदलता जा रहा है।
कभी-कभी यह सोच कर हैरानी होती है, जिस देश में भगवान कृष्ण और सुदामा जैसे मित्र, जहां श्रवण कुमार जैसे बेटे पैदा हुए थे, क्या यह वही देष है? आखिर हमारे देष की ऐसी हालत क्यूं और कैसे हो गई? किसी और की और उगंली उठाने की बजाए अगर हम अपने गिरेबान में झांकने की कोषिष करें तो अपने बडे-बूढ़ों की नसीहयत याद आयेगी कि अगर बबूल बोओगे तो आम की उम्मीद रखना बेवकूफी होती है। आज अगर समाज में हर तरफ यह खुदगर्जी का माहौल बनता जा रहा है, तो कहीं न कहीं हम खुद ही इसके जिम्मेदार हैं? अगर हम दूसरों से हर सुख-दुख में साथ निभाने की उम्मीद रखते हैं, तो हमें खुद भी इस ओर पहल करनी पड़ेगी। आप एक बार किसी की मुष्किल में उसका साथ देकर तो देखो, साधारण आदमी तो मरते दम तक इस प्रकार की नेकी को नहीं भूलता। इसके एवज़ में कोई आपको कोई कुछ दे या न दे लेकिन भगवान नेकी की राह मे चलने वालों के साथ हमेशा इन्साफ करता आया है। एक बात तो हम सब भी अच्छी तरह से जानते हैं कि बीज बोने से पहले तो कुदरत भी फल नहीं देती। सेवा से पहले मेवा कभी नहीं मिलता।
अभी भी समय है कि जौली अंकल की बात मानते हुए अगर हम सब मिलकर अपने इस खुदगर्जी स्वभाव को बदलने की कोषिष शुरू कर दें तो आने वाले समय में एक नया और बहुत ही सुन्दर समाज का रूप हमारे सामने आयेगा। वरना आने वाली पीढ़ियों के पास धन-दौलत और सब सुख सुविधाएं होते हुए भी उन्हें अपना जीवन बिल्कुल अकेले ही गुजारना पड़ सकता है। उस समय हम सभी को यही कहना पड़ेगा 'राही चल अकेला'     

सांझा चूल्हा

आज बहुत दिनों बाद कार से पंजाब जाते हुए, सड़क के किनारे बने एक ढ़ाबे पर तन्दूर की गर्मा-गर्म रोटी खाने को मिली तो बचपन के दिन याद आ गये। उन दिनों घरों में अक्सर लोग अंगीठी और स्टोव जला कर ही काम किया करते थे। शाम को मुहल्ले के कुछ घर मिलकर एक तन्दूर जलाते थे, जिससे सब परिवार मिलकर रोटियां बनाते थे। औरतें और बच्चे शाम से ही इकट्ठे होकर देर रात तक वहीं महफिल लगाये रहते थे। उधर घर के सब बुजुर्ग और मर्द मिलकर कालोनी और समाज की समस्याओं पर गौर करते और उन्हें सुलझाने का कोई न कोई रास्ता खोजते।
अकेले आदमी का जीवन कोई जीवन नहीं होता, हर समय एक खालीपन सा खाने को दौड़ता है। वो क्या कमाता है, क्या खाता है, कब आता है कोई पूछने वाला नहीं होता। इंसान अकेला रहते हुए कितना भी पैसा कमा ले लेकिन उस पैसे से सुख नही ले सकता। होटल का खाना कुछ दिन तो जरूर अच्छा लगता है, फिर मां के हाथ की बनी रोटी खाने को मन तरसता है। यहां तक की अपने सुख-दुख को भी किसी से नहीं बांट सकता। परिवार में एक सदस्य के आने से ही पूरी दिनचर्या ही बदल जाती है। लेकिन साथ ही जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ जाता है। कुछ लोग तो घर के छोटे सदस्याें को अच्छे संस्कार देकर एक अच्छा नागरिक बनाने की जी तोड़ कोशिश करते है। लेकिन वहीें दूसरी ओर कुछ स्वार्थी लोग सारा जीवन अपने लोभ और मोज मस्ती में ही उलझे रहते हैं।
परिवार को एक माला की तरह जोड़कर रखने में सब सदस्यों का अहम किरदार होता है। जहां छोटे सदस्याें को चाहिये, कि वो बुजुर्गों का आदर सत्कार करें, वही घर के बड़े सदस्याें को जरूरत है छोटे बच्चों की हर बात को गौर से सुनें। किसी बात को मानना या न मानना एक अलग बात है, लेकिन बिना किसी की बात को सुने उसे डांट कर चुप करा देने से घर के सदस्यों में एक आक्रोष सा पनपने लगता है। अगर प्रेशर कुकर में से भी साथ साथ भाप न निकाली जाए तो उसके फटने का डर बना रहता है। अधिकतर परिवारों में किसी विषय पर खुलकर बात न करने की वजह से ही कलेश पनपते हैं।
जहां एक और विज्ञान की तरक्की ने हमारे जीवन को सुखमय बनाया है, वही सांझे चूल्हे की विरासत को खत्म करने में भी इनका बहुत बड़ा योगदान है। युवा पीढ़ी अपने आपमें इतनी मस्त है, कि उसे जब तक पैसों या किसी चीज की जरूरत न हो वो घर के दूसरे सदस्यों से बात करना भी जरूरी नहीं समझते। हमारे बच्चे यह भी भूल गये हैं कि घर का हर सदस्य एक दूसरे का पूरक होता है, और सयुंक्त परिवार में परेशनियां कम और जीवन अधिक आनन्दमयी होता है।
अमरीका दुनिया का सबसे प्रगतिशील और ताकतवर देश होते हुए भी पारिवारिक मूल्यों में भारत से पिछड़ा हुआ है। उनके अपने आकड़ों के हिसाब से यहां पर लोग औसतन शादीशुदा जिन्दगी आठ से दस साल ही निभा पाते हैं, नतीजतन सबसे अधिक तलाक। अब कुछ अरसे से विदेशो के इस प्रकार के ग्रहण हमारे देश में भी दिखाई देने लगे हैं। नयी पीढ़ी में सब्र और धैर्य की कमी होती जा रही है। परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना उनको एक बोझ सा लगता है। मौज मस्ती के नाम पर उन्हें आजादी ज्यादा पसंद है।
आज के समय में यह काम थोड़ा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है, कि हम लोग ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, जात-पात और अन्य छोटी-छोटी बातों के भेदभाव मिटाकर एक सांझे चूल्हे का निर्माण करने की कोशिश करना चाहें तो सब कुछ हो सकता है। जौली अंकल तो इस बात से हैरान है कि अगर कुछ लोग एक मैखाने में सभी भेदभाव मिटाकर अपने खुशी और गम आपस में बांट सकते हैं, तो सब बुध्दिजीवी मिलकर एक संगठित समाज में सांझे चूल्हे का निर्माण क्यूं नहीं कर सकते?         

कल्पना

कल्पना की दुनिया हर इन्सान को रोजमर्रा के तनाव भरे माहौल से हटाकर कुछ देर के लिये ही सही एक परीलोक में ले जाती है। जहां छोटे बच्चों से बड़े-बूढ़ों तक को बचपन में सुनी परियों की कहानियां एक हकीकत सी लगने लगती हैं। मां-बाप सदा इसी कल्पना में खोये रहते है कि कब उनके बच्चे बडे होकर जीवन में उच्च पद को प्राप्त कर पायेंगे। छोटे बच्चों को परियों की कहानियां लुभाती है, वही युवावर्ग आधुनिक मोबाइल फोन, नई-नई मोटर साईकल और हवा से बातें करती हुई रंग बिरंगी कारों के दीवाने होते हैं।
हर मां हमेशा अपने बेटे के लिये एक चांद सी बहू की कल्पना में ही खोई रहती है। हालांकि चांद में तो अनेकों दाग है, और वास्तविक जिन्दगी में तो लड़की के चेहरे पर एक छोटा सा चोट का निशान भी हजारों अड़चने पैदा कर देता है। पर शायद लोग चांद जैसी बहू की कल्पना इसलिये करते है कि चांद सिर्फ रात को ही निकलता है। बहू भी रात को ही घर आए और दिन निकलते ही गायब हो जाए। इससे न तो सास-बहू के झगड़े का डर, ना पैसों के लेन-देन का झंझट और न ही फरमाईषों की कोई दिक्कत।
कल्पना का जिक्र आते ही हरियाणा के एक छोटे से शहर से निकली नासा की टीम के साथ कल्पना चावला की याद ताजा हो जाती है, जिसने आसमान की बुलंदियों को छूकर भारत देष का नाम गौरवान्वित कर दिया। कल्पना चावला जैसे कितने ही भारतीय विदषों में रहकर वहां कि कई बड़ी कम्पनियों और सरकारी पदों की षोभा बढ़ा रहे हैं। वो लोग ना सिर्फ अपने लिये रोजी रोटी कमा रहे है, बल्कि विदेषों में अपनी अक्ल का लोहा मनवाते हुए उन देशों की अर्थव्यवस्था को एक नया रंग रूप देने में जुटे हुए हैं। आए दिन भारत मूल के लोगों की सफलता की कहानियां हम सब को अकसर पढ़ने को मिलती है।
गौर करने वाली बात तो यह है कि चन्द भारतीय विदेशों में जाकर न जाने किस जादू की छड़ी का इस्तेमाल करके कामयाबी और तरक्की की ऊंचाइयों को छू लेते हैं जिससे उनके नाम के साथ हमारे देष के नाम को भी चार चांद लग जाते हैं। वहीं 100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों का जनसमूह इकट्ठा होकर अपने देष की समस्याओं को आज देष की आजादी के 60 साल बाद भी नहीं सुलझा सका। आप देश के किसी भी भाग की बात ले लो, हर गांव, और शहर की कठिनाइयों भरी और कभी न खत्म होने वाले सवालों की एक लम्बी सूची मिल जाएगी। अगर हम छोटी-छोटी समस्याआें को छोड़ भी दें, तो भी हमारी सारी सरकारें देश की जनता को मूलभूत सुविधायें देने में आज भी असमर्थ हैं। क्या हमारी सरकारें और पूरा देश मिलकर भी कभी इन समस्याओं को खत्म कर पायेंगे?
जनता तो हर पांच साल बाद एक सरकार से दुखी होकर दूसरी, और फिर दूसरी से तीसरी सरकार को सत्ताा पर बैठा देती है। पर मुसीबतें हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। हां सरकार में बैठे मंत्रीगण और उनके चहेतों का जरूर भला हो जाता है, वो दुबारा चुनाव जीतें या न जीतें एक बार गद्दी मिलने से ही आने वाली कई पुष्तों के लिये तिजोरियों में धनदौलत के अंबार लग जाते हैं। चुनाव खत्म होते ही जनमानस के हित में काम करना तो दूर इन लोगों को अपने वादे भी याद नहीं रहते। वो इन सब बातों को याद रखें भी तो क्यूं? वो अच्छी तरह से जानते हैं कि एक बार गद्दी पर बैठने के बाद जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। जनता के पास अभी तक ऐसा कोई हाथियार नहीं है, जिससे किसी भी मंत्री के ऊपर अंगुली उठाई जा सके।
हर बुध्दिजीवी हमेशा से एक सभ्य समाज की कल्पना करता आया है। हमारे राजनेता हमें हर रोज कोई न कोई सुन्दर सा स्वपन दिखा कर बेवकूफ बनाने में लगे रहते हैं। हमारे देश के कुछ लोग बरसों से राम मदिंर बनवाने का राग अलाप रहे हैं, लेकिन यही लोग राम मंदिर बनाने की बजाए देश में राम-राज्य स्थापित करने की कल्पना करें, तो पूरी दुनिया में एक नई मिसाल कायम हो सकती है। एक आम आदमी तो यही सोचता है कि यह काम बातों में तो अच्छा लगता है लेकिन व्यावहारिक जिंदगी में इस पर अमल नहीं किया जा सकता। एक बार इतिहास के पन्नों की मिट्टी को झाड़ने की कोशिश करो तो आप को कई उदाहरण मिल जाऐंगे कि जंगल कितना भी बड़ा क्यूं न हो, उसे जलाने के लिये ढेरों आग की नहीं, केवल एक चिंगारी की ही जरूरत होती है।
हमारे देष में बहुत से सन्तों और महात्मा लोगों का समाज में बहुत प्रभाव है, उनके एक इषारे पर हमारे षहर का एक बहुत बड़ा हिस्सा कुछ भी करने को तैयार रहता है। अगर हमारे धर्मगुरू इस तरह का बीड़ा उठाने का मन बना ले, तो आने वाले चन्द वर्षों में राम राज्य की छवि साफ दिखने लगेगी। एक आम आदमी जो राजनेताओं से हर प्रकार से निराष हो चुका है, वो भी इस दिषा में अपने आपको मिटाकर धन्य समझेगा।
जहां एक ओर छोटा सा व्यापारी या फैक्ट्री चलाने वाला अपने व्यापार से एक-दो साल में अच्छा मुनाफा कमाने लगता है, वहीं हमारे देष के तकरीबन सारे सरकारी विभाग बरसों से घाटे में ही चल रहे हैं। इसका मुख्य कारण है सरकारी विभागों के बढ़ते खर्चे, अफसरषाही, पैसे का दुरूपयोग, और सबसे बड़ी बात कि वो अपने कामकाज के लिये किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
अगर देश के ढांचें को ठीक से नया रंग-रूप देना है, तो पूरे सरकारी तंत्र को, मंत्री से संत्री तक को जनता के प्रति जवाबदेह बनाना होगा। जनता की मांग पर भ्रष्टाचार और कामचोर कर्मचारियों को हटाने का प्रावधान बनाना होगा। समय की मांग है कि देष की बागडोर अब सिर्फ कामयाब और काबिल लोगों के हाथ में देने की जरूरत है। तभी देश की जनता का विदेशी लोगों की तरह मूलभूत सुविधाओं को प्राप्त करने की कल्पना हकीकत बन पायेगी। जौली अंकल अपनी सरकार से क्या यह उम्मीद करें, कि हमारे जीवनकाल में यह कल्पना पूरी होगी, नहीं तो आगे आने वाली पीढ़ियों को कल्पना का कौन सा रूप दिखा पायेंगे। 

कितना बदल गया इंसान

कुछ दिन पहले हमारे पड़ोस में रहने वाले मिश्रा जी की पांव फिसलने से टांग टूट गई। अच्छे पड़ोसी और हमदर्दी के नाते हम भी उनका हाल चाल पूछने चले गये। वहां पहुंचते ही हमारी मुलाकात उनकी एक बर्जुग महिला रिश्तरेदार से हो गई। वो औरत पास के ही एक गांव से मिश्रा जी का हाल चाल पूछने आई थी। नाश्ते के दौरान वह औरत मिश्रा जी से एक ही बात कहे जा रही थी कि जब से तुम्हारी चोट का पता लगामुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही थी। मिश्रा जी ने उन्हें समझाते हुए कहा कि सब कुछ ठीक ठाक है। डॉक्टर ने टांग पर प्लास्टर चढ़ा दिया हैदो-चार हफतें में मै फिर से चलना फिरना शुरू कर दूंगा। इसमें इतनी घबराने वाली कोई बात नही है। उस औरत ने कहा यह सब कुछ तो मैं भी समझती  हूँलेकिन मुझे तो इस बात की फिक्र सता रही थी कि कुछ दिनों में तेरा प्लास्टर खुल जायेगा और मेरे से तेरा हाल-चाल पूछने आया नही जा रहा। वैसे मैने यहां आने से पहले अपने गांव के एक बहुत ही पहुंचे हुए बाबा के डेरे में तुम्हारे जल्द ठीक होने की प्रार्थना करवा दी थी। हमारे बाबा तो इतने पहुंचे हुए है कि उनकी कही हुई हर बात चुटकियों में पूरी हो जाती है।
हमारे जीवन में जब कभी हमें कोई दुख या परेशानी सताती है तो हमारे सभी रिश्तेदार और शुभंचिंतक हमदर्दी जताने के लिये अपने चेहरे पर एक सुंदर सा मुखोटा लगा कर ऐसा नाटक करते है कि हमारे दुख का दर्द हमसे अधिक उन्हें हो रहा है। हमारी परेशानी चाहे किसी भी मसले से जुड़ी होइसकी परवाह किये बिना हर कोई किसी न किसी साधूबाबाफकीर एवं टोने-टोटके करने वाले के पास जाने के लिये पल भर में सुझाव दे डालते हैं। इतना ही नहीहमारे हमदर्द शेखी बघारते हुए ऐसे सभी लोगो को भगवान का दर्जा देने से भी परहेज नही करते। कुछ लोगो का मानना है कि आप एक बार हमारे बाबा की शरण में आ जाओआपकी यह परेशानी तो क्याआप के जन्मों-जन्मों के कष्ट सदा के लिये छूमंतर हो जायेगे। बाबा तो साक्षत भगवान का रूप है। बड़े-बड़े नेता और मंत्रीगण तक उनके पांव छूने के लिये तरसते है। देश-विदेश के बहुत से रईस लोग पूजते है। इन्हें लाखो रूप्ये तो विदेशों में बसे भक्तो से आते रहते है।
जब हमारे जैसे चाहने वाले ही इन्हें भगवान का दर्जा देते हुए नही थकते तो इस तरह के ढोंगी लोगो को भगवान बनने में क्या परेशानी हो सकती हैछल-फरेब से दुनियां को ठगने और मूर्ख बनाने वाले ऐसे भगवान इस गौरख धंधे को एक धर्मिक व्यापार से अधिक कुछ नही समझते। हैरानगी की बात तो यह है कि अनपढ़ लोगो के साथ समाज का एक बहुत बड़ा पढ़ा लिखा वर्ग भी ऐसे लोगो के जाल में फंसता चला जाता है। छोटे गांवकस्बो से लेकर बड़े शहरों तक लाखों लोग इनके बहकावे में आकर अपनी गाढ़ी कमाई से इनके डेराें और आश्रमों को चमकाने में लग जाते है। सोच कर बहुत अजीब सा लगता है कि मोह माया के लोभी जो खुद अपने प्राण्ाों की रक्षा नही कर सकतेअपने लिये एक-एक वस्तु अपने भक्तो से मांगते हैवो किसी इंसान को क्या दे सकते है?
जब कभी जीवन में कुछ भी पाना हो तो केवल अपने ईश्वर से मांगेक्योंकि सारे जगत का पालनहार एक मात्र भगवान ही है। लेकिन अफसोस तो उस समय होता है जब यह देखने को मिलता है कि हमें तो भगवान से मांगने की तहजीब तक नही है। हम सभी अपने सुखों को ध्यान में रख कर अपनी शर्तों एवं सुविधानुसार भगवान से इस तरह मांगते हैजैसे कोई सेठ कर्जदार से अपना कर्ज वसूल करता है। अब किसी पेड़ से फल या छाया मांगने की बजाए यदि पूरे पेड़ को ही मांग लिया जाये तो खुद-ब-खुद हमें सब कुछ मिल सकता है। ठीक उसी प्रकार हम भगवान के आगे छोटी-छोटी मांगे रखने की बजाए यदि भगवान को ही मांग ले तो हमारे जन्म जन्म के दुख-दर्द सदैव के लिए खत्म हो सकते है। लेकिन कड़वी सच्चाई तो यह है कि हम में से अधिकर लोग प्रभु को पाना ही नही चाहते।
जब भी कोई सच्चे मन से भगवान को पाना चाहे तो उसे भगवान मिल सकते हैपरन्तु सत्य बात तो यही है कि हम उसे पाना तो दूर उसके नजदीक भी जाना नही चाहते। यह जानते हुए भी कि मुसलमानों का अल्लाहईसाईयों का गॉड और ंहिंदुओ का ईश्वरसिखो का वाहिगुरू सभी एक ही जोत है हम उसे धर्मजातिभाषा और क्षेत्र के मुताबिक बांटते जा रहे है। भगवान को यदि पाना ही है तो उसे पाने के लिये किसी ऐसे ज्ञानी को ढूंढे जो उसकी भक्ति के रस में डूबा हो न की हम उन लोगो के पीछे भागे जो खुद को भगवान कहलाने में गर्व महसूस करते है। भगवान तो प्रेम के भूखे हैइसलिये सदैव अपनी इच्छा को भगवान की इच्छा से मिला दो क्योंकि जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है वो प्रभु की इच्छा से ही होता है। कोई इंसान कैसा भी होहरि नाम से जुड़ते ही वो धन्य हो जाता है और भगवान ऐसे लोगो के लिये सभी नेक रास्ते खोल देता है।
इंसान अक्सर मौत से डर कर इन कपटी और फरेबियों के चुंगल में फंसता है जबकि असलियत तो यह है कि केवल हमारा शरीर मरता आत्मा कभी नही मरती। जिस तरह हम समय-समय पर नये कपड़े बदल कर खुश होते हैउसी तरह से आत्मा भी एक अरसे के बाद शरीर बदलना चाहती है। हर जीव का जीवन-मृत्यु का खेल भगवान की इच्छानुसार ही चलता है। इतना सब जानने के बाद जौली अंकल की आत्मा से केवल यही अलफाज निकल रहे है कि कितना बदल गया इंसान :
तन के उजले मन के कालेऐ मालिक तेरे यह दुनियां वाले,
शुक्र है कि तू परदे में हैवरना तुझे भी बेच डालेऐ मालिक तेरे यह दुनियां वाले।  

स्वर्ग - नर्क

एक दिन बंसन्ती ने वीरू से कहा कि मैने सुना है कि स्वर्ग में पति-पत्नी इक्ट्ठे नही रह सकते। वीरू ने कहा, कि मैं इस बारे में कुछ अधिक तो नही जानता लेकिन मुझे लगता है, कि जिस किसी ने भी तुम्हें यह बताया है, उसने बिल्कुल ठीक ही कहा है। बंसन्ती ने हैरान होकर पूछा कि तुम ऐसा क्यूं कह रहे हो? वीरू ने हंसते हुए कहा यदि स्वर्ग में भी पत्नीयां साथ रहने के लिये आ जायेगी तो उसे स्वर्ग कौन कहेगा? स्वर्ग में भी यदि हर रोज पति-पत्नी का झगड़ा चलता रहेगा तो स्वर्ग और नर्क में फर्क ही क्या बचेगा। दुनियां का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मनुष्य प्राणियों को यम के पास जाते हुए रोज देखता है और फिर भी सदा इस दुनियां में रहना चाहता है। दुनियां का हर आदमी स्वर्ग में तो जाना चाहता है लेकिन कोई भी आदमी कभी भी मरना नही चाहता।
दुनिया के वैज्ञानिक खोज करते-करते आज तकरीबन आकाश, पताल और हर ग्रह के बारे में हर प्रकार की बारीक से बारीक जानकारी हासिल कर चुके है। लाखों करोड़ो साल पहले से अभी तक किस ग्रह की क्या स्थिति है, उसकी सूरज-चांद और धरती से सही दूरी, दिशा और वहां के सभी तथ्यों आदि का सारा ब्योरा इन लोगो के कम्पूयटर में जमा है। सैंकड़ो सालों से ग्रहों के बारे में ढेरो जानकारी इक्ट्ठी करने वालो ने क्या कभी यह जानने का प्रयास किया है कि सदियों से सबसे अधिक चर्चा में रहने वाले स्वर्ग और नर्क कहां स्थित है? यह ब्रंहाम्ड के किस भाग के हिस्से में है? वहां के हालात कैसे हो सकते है? स्वर्ग और नर्क में किस तरह के लोग रहते है? यह एक ऐसा रहस्य है, जिस बारे में आज तक कोई भी खोज करने वाला दावे के साथ कुछ नही कह पाया। इस संसार में हम हर चीज को पहले देखते, परखते है फिर विश्वास करते है, परन्तु स्वर्ग-नर्क जिसे दुनियां के किसी शक्स ने आज तक नही देखा उस की सच्चाई को हर कोई पूर्ण रूप से सत्य मानता है।
हम यदि अपने आस-पास गौर से देखे तो पायेगे कि स्वर्ग-नर्क किसी और लोक में नही इसी धरती पर ही मौजूद है। इस बात को हमारा मन इतनी आसानी से मानने वाला नही है, लेकिन तथ्यों से मुंह भी तो नही मोड़ा जा सकता। स्वर्ग-नर्क की परिभाषा को समझने की कोशिश करे तो स्वर्ग का नाम मन में आते ही जीवन में हर प्रकार की खुशीयों के साथ परिवार में सभी सुख-सुविधाओं की और ध्यान जाता है। घर के सभी सदस्यों के लिये इच्छानुसार अच्छा खान-पान, मान-सम्मान और धन दौलात के अंभारो का पाकर हर कोई अपने आप को स्वर्ग में रहते हुए महसूस करता है।
दूसरी और नर्क का नाम सुनते ही हमारी आत्मा तक कांप उठती है। एक बच्चा जिसका जन्म सड़क के किनारे फुटपाथ पर होता है। सारी उंम्र सर्दी-गर्मी, हर तरह के मौसम और जमाने की मार सहते हुए फटे हाल दो वक्त की रोटी के लिये दर-दर भटकता है। बीमारी और चोट आदि लगने के कारण एक दिन उसी फुटपाथ पर भूखे पेट दम तोड़ देता है। क्या यह सब कुछ किसी नर्क से कम है? किसी भी चीज को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है, किन्तु उसे महसूस करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है। आपने अपने जीवन में कई बार देखा होगा कि एक ही समय, स्थान में दो अलग-अलग बच्चो का जन्म एक को राजा और दूसरे को रंक बना देता है। सड़क किनारे पैदा होने वाले बच्चे का इसमें क्या दोष हो सकता है? महापुरषो की वाणी पर गौर करे तो इन सब के लिये हमारे जन्मों-जन्मों के कर्म ही हमें स्वर्ग या नर्क का भागीदार बनाते है।
ऋृषि-मुनी तो सदीयों से मनुष्य जाति को समझाते आये है कि एक बार जब हम मनुष्य जीवन पा लेते है तो दिनभर खाना खाकर और रात को चैन की नींद सोने को ही जीवन का असली सुख समझने लगते है। अपने सुखों में डूब कर हम किसी भी नेक कार्य करने की और ध्यान नही देते। पैसो की चमक-दमक और खनक के आगे हम भगवान को भूल कर अपनी वाणी पर भी काबू नही रख पाते, तो आने वाले समय में हमें स्वर्ग जैसा सुख कहां से मिलेगा? अपने जीवनकाल में हम सदा दूसरों को ही आंकते रहते है, यदि सच्ची खुशी पानी है तो पहले अपने आप को आंकना भी सीखना होगा। जिस प्रकार किश्ती में एक सुराख होने पर भी वो डूब जाती है, ठीक उसी तरह हमारे जीवन का एक अवगुण हमें स्वर्ग की राह से नर्क की और धकेल देता है।
विद्ववान लोगो का मानना है कि जब तक हमारे कर्म मन का हिस्सा नही बनते, तब तक वो एक धार्मिक पांखड से अधिक कुछ नही होते। केवल शरीरिक रोग ही नही लोभ, मोह, अंहकार जैसे मानसिक रोग भी हमें स्वर्ग रूपी जीवन जीने में बाधा खड़ी कर सकते है। जिस तरह भगवान के रहने का कोई एक खास देश या स्थान नही होता, ठीक उसी तरह स्वर्ग-नर्क भी दुनियां के किसी नक्शे में नहीं देखे जा सकते। जौली अंकल की राय तो यही बताती है कि जितनी मेहनत से लोग नर्क की औरं जाते है, उससे आधी मेहनत करने पर वो अपने जीवन को स्वर्ग बना सकते है।   

आंनद ही आंनद

आज का युवा वर्ग दोस्तो के साथ देर रात तक शौरगुल, धमाकेदार संगीत के साथ नशे को आंनद समझते है तो कुदरत से प्यार करने वालो को सुबह सूर्योदय के समय का नजारा आंनदित करता है। ऐसे लोग शहर से दूर पहाड़ो की वादीयों में झरने की कल-कल करती धारा और सूर्य की उगती किरणों की प्रतीक्षा में पक्षीयों के चहचहाने वाले पलों को सच्चे आंनद का नाम देते है। यह वो पल होते है जब आदमी कुदरत के माध्यम से भगवान के सबसे करीब होता है। कुछ समय पहले तक लोग एक उंम्र के बाद अपना परिवार, खाना एवं अन्य सभी सुख त्याग कर संत बनने में और आज के आधुनिक लोग इन सभी वस्तुओं को पाने में खुद को आंनदित महसूस करते है। खाने पीने के शौकिन लोगो की बात करे तो उनकी आत्मा को हर दिन नये से नये बढ़िया व्यंजन खाकर जबकि भक्त लोगो की सोच में आंनद की अनुभूति भगवान के प्रति सम्पूर्ण आस्था रखते हुए व्रत करने से ही होती है। किसी को गाय के शुध दूध में और किसी को शराब के पैग में आंनद का एहसास मिलता है। आंनद की प्राप्ति के लिये इंसान क्या कुछ चेष्टा नही करता?
एक बात तो सत्य है कि आंनद की परिभाषा और मायने हर किसी के लिये अलग से है। जिस प्रकार हिरन उंम्र भर कस्तूरी की महक में दीवाना होकर उसे जंगल के हर कोने में ढूंढता रहता है, ठीक उसी तरह इंसान भी आंनद के कुछ पल पाने के लिये जीवन भर भटकता रहता है। गृहस्थ जीवन के चलते आदमी को कई बार व्यापार या अन्य किसी कारण से जब कभी घर से कुछ दिन दूर रहना पड़ता है, तो मन से एक ही बात बार-बार निकलती है कि आखिर अपने घर कब पहु्रंचेगे? ऐसा वो शायद इसलिये कहता है क्योकि जो आंनद अपने छोटे से घर में मिलता है, वो बड़े से बड़े स्टार होटल में भी नसीब नही होता। पढ़े लिखे लोग समझने लगे है कि किताबी ज्ञान से तो हम अच्छी नौकरी पाकर बहुत सारे पैसो से हर प्रकार के आंनद की वस्तु खरीद सकते है, परन्तु ऋृषि-मुनीयों की तरह भगवान के बारे में यदि कुछ जान भी लेगे तो हमें क्या मिलेगा? आज चाहें दूर से देखने में हर कोई स्वस्थ नजर आये लेकिन ऐसा लगता है कि मन से हर कोई रोगी हो चुका है। यही कारण है कि हमें दूसरों की निंदा औरर् ईष्या करने में बहुत आंनद मिलता है। इस बात का ज्ञान होते हुए भी कि सच्चा आंनद खुद को पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित करने पर ही मिलता है इंसान भौतिक सुखो और दुनियावी ज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ मानने लगा है।
इस बात से भी कोई इंकार नही कर सकता कि बैठे-बैठे कभी किसी को कुछ नही मिलता, कुछ भी पाने के लिये हमें ईश्वर द्वारा दिये हुए हाथ-पैर, आंख कान आदि से प्रयास तो करना ही पड़ेगा। कोई खुल कर बोले या न बोले लेकिन लोगो के दिल में यह भावना अच्छे से घर चुकी है कि धर्म और भगवान के बारे में बातचीत करने वालों को हमारे दोस्त-मित्र अंधविश्वासी मानते है। आर्थिक दृष्टि से जैसे-जैसे आदमी संम्पन होता जा रहा है, उतना ही धर्म एवं भक्ति की राह से भटकता जा रहा है। जबकि कलयुग के इस दौर में आत्मा को सच्चा आंनद यदि कहीं से मिल सकता है तो वो सिर्फ भक्ति की राह पर चलने से ही नसीब हो सकता है। जो कोई हिम्मत करके भगवान को पाने की राह पर चल निकले है उन्हें गंगा जल की एक बूंद भी अमृत समान आंनद प्रदान करती है।
पहले जमाने की तरह अब राक्षस बहुत ही डरावने मुंह और बड़े-बड़े हाथ, पैर और कानों वाले नही रहे। हमारे बीच में ही रहने वाले दुर्राचारी, बलात्कारी और जो लोग अन्य बुरे कर्म करते है वो किसी राक्षस से कम नही। इस लोक में यदि कोई हमारा सच्चा हितेषी और शुभचिंतक जो हमें आंनद दे सकता है तो वो केवल एक मात्र भगवान ही है। अपने बच्चो से यह उम्मीद होते हुए भी कि यह बड़े होते ही किसी दिन भी हमें धोखा दे सकते है, हम उनके लिये धन इक्ट्ठा करने में सारा जीवन लगा देते है। दूसरी और यह जानते हुए कि भगवान सभी का भला चाहते हुए जहां सदैव हमारी रक्षा करते है और कभी किसी को धोखा नही देते हम उससे जुड़ने के लिये कुछ प्रयत्न नही करते।
जब कभी हमारा कोई नजदीकी हमें सदा के लिये छोड़ जाता है, तो हमें बहुत ही दुख होता है। कई बार प्रयास करने पर भी हमारे आंसू नही रूकते। परन्तु भगवान से बिछुड़ने का हमें कभी कोई गम नही सताता, इसका सीधा सा कारण तो यही समझ आता है कि हमारा भगवान से किसी प्रकार का संबध बना ही नही, वरना क्या भगवान से दूर होते ही हमारी आंखों में आंसू नही आते। ज्ञानी लोगो के लाख समझाने पर भी कि भक्ति केवल मन से ही होती है, तन से नही। हम अपने तन को साफ रखने के लिये तो हर किस्म के तेल, क्रीम, पाउडर आदि सब कुछ इस्तेमाल करते है, परन्तु अपने मन को साफ करने के लिये हम किसी किस्म का प्रयास नही करते। असल में जरूरत है तन से अधिक मन को साफ रखने की। जैसे ही हमारा मन पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित होता है हमें दुनियां के सबसे बड़े आंनद की प्रप्ति हो जाती है।
जौली अंकल महापुरषो की वाणी का समर्थन करते हुए कहते है कि जिस प्रकार तेल के बिना दीपक नहीं जल सकता, वैसे ही ईश्वर के प्रति प्रेम के बिना जीवन में सच्ची खुशी नही मिल सकती। जीवन में यदि आंनद ही आंनद पाना है तो बिना भगवान के रस में डूबे यह मुमकिन नही हो पायेगा।

धर्म की राह

धर्म क्या है? क्या कभी किसी ने भगवान को देखा है या कोई आज तक उसके करीब जा सका है? भगवान का महजब कौन सा है? भगवान का रंग रूप कैसा है? भगवान को पाने के लिये किस धर्म की राह पर चलने की जरूरत होती है। हमारा भगवान से कैसा रिश्ता है? यदि आज तक कभी किसी ने भगवान को देखा या जाना नही तो क्या हम धर्म को अंधविश्वास मान ले? यह सारे सवाल वो है जो हम सभी के मन में कभी न कभी जरूर उठते रहते है, लेकिन संकोचवश हममें कोई भी इनका इजहार करने की हिम्मत नही जुटा पाता।
कुछ लोग इस राह के बारे में बिना कुछ जाने ही बड़ी-बड़ी ढींगे मारते रहते है, लेकिन सच्चे संत केवल एक बात को मानते है कि भगवान के बारे में सारी उंम्र समझ-समझ कर इंसान केवल इतना ही समझ सकता है कि भगवान मैं तेरे बारे में कुछ भी नही समझ सकता। इसका ठोस प्रमाण यह है कि हमारे पास इतनी समझ ही नही है कि हम भगवान का समझ सके। जो व्यक्ति कुछ क्षण के लिये अपने मन पर काबू नही रख पाता वो ब्रहामंड के विधाता के बारे में कैसे कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकता है? हम मानें या न मानें भगवान हम सभी की सोच से बहुत महान है।
हम भगवान को समझने की बात तो करते है, लेकिन हमारा मन उस बीज की तरह है जो दो हिस्सो में बंटा हुआ है। जब बीज दो हिस्सो में बंट जाता है तो वो कभी किसी नये पोधे को जन्म नही दे सकता। ठीक इसी प्रकार हमारा मन हर समय किसी न किसी दुविधा में पड़ा रहता है। रोजमर्रा की बातों के साथ भगवान और धर्म के बारे में भी बार-बार हमारे मन में अनेक प्रकार के शक और शंका उठती रहती है। हर धर्म के आगू सही राह दिखाने की बजाए अपने निजी हितो के मद्देनजर धर्म की ओट में जनसाधारण की भावनाओं से खिलवाड़ करते रहते है। हर वर्ग के साधू-संत अपनी-अपनी दुकानदारी चमकाने के लिये भगवान और धर्म को एक पद्वार्थ की तरह इस्तेमाल करते है। यहां यह कहना गलत नही होगा कि इन लोगो के लिये धर्म भी एक व्यापार से बढ़ कर कुछ नही है।
धर्म के नाम पर अपने उल्टे-सीधे विचारो से लोगो को गुमराह करना तो बहुत आसान है, लेकिन क्या कभी किसी धर्म के आगू ने भगवान के नाम पर सारे समाज को जोड़ने का प्रयत्न किया है? जबकि धर्म की सच्चाई तो सिर्फ इतना सिखाती है कि सदा मानवता के साथ चलो और सारी मानव जाति को अपने साथ लेकर चलो। इस बात की पुष्टि इससे भी हो जाती है कि कभी भी, कोई भी भगवान दुनियां के किसी खास वर्ग, धर्म, स्थान या भाषा से नही जुड़ा। ईश्वर के समक्ष सभी समान हैं न कोई छोटा होता है न कोई बड़ा। जब कभी कोई ईश्वर को किसी कारण से एक खास वर्ग विशेष से जोडने की बात करता है, तो यह उसकी भूल है। जो भगवान है वो केवल एक का नही हो सकता और जो केवल एक का ही है, वो भगवान नही हो सकता। यह दोनों बाते रेल की उस पटरी की तरह है जो आपस में कभी इक्ट्ठी नही हो सकती।
हम भगवान को केवल उस समय तक याद रखते है जब तक हम दुखी होते है, सुख मिलते ही हम उसे पल भर में भूल जाते है। आज की कड़वी सच्चाई तो यह है कि आम आदमी का भगवान केवल धन है। आज हर कोई धन-दौलत की पूजा करता है। धन-दौलत का साहरा लेकर जब हम धर्म की आड़ में आडम्बंर आयोजित करते है, तो वो सिवाए पांखड के कुछ भी नही होता। असल में हमारें जीवन के वही पल सफल हैं, जो नेक काम और भगवान के स्मरण्ा में बीतते है। आत्मा और परमात्मा के मिलन को हम इस तरह भी समझ सकते है कि जिस प्रकार मछली हर समय समुंद्र में रहते हुए भी अपने जन्म स्थान और परिजनों से हजारों मील दूर जा कर भी पानी से अलग नही होती, ठीक उसी तरह भगवान भी हमसें कभी दूर नही होते। यह बात अलग है कि हम अपने निजी स्वार्थो के चलते भगवान को अपनी सोच, समझ और याद में नही रख पाते।
हर धर्म ग्रंध हमें एक ही बात समझाते है कि भगवान की भाषा केवल प्रेम की भाषा होती है। आप सच्चे मन और प्यार से कुछ भी कहें भगवान आपके दिल की बात को स्वीकार कर लेते है। संसार का कोई भी धर्म सेवा के धर्म से बड़ा नही है, इसलिये भगवान को पाने के लिये हमें सदा ही नेकी की राह पर चलते हुए अपने माता पिता की सेवा करनी चहिये। क्योंकि माता पिता के समान कोई तीर्थ नही है, न मंदिर न मस्जिद। भगवान को पाना इतना आसान तो नही लेकिन झूठी लालसा को छोड़ कर सच्चे मन और पूर्ण विश्वास से प्रभु नाम का सिमरन ही हमें इस राह में सही रोशनी दिखा सकता है।
जौली अंकल का मत तो यही है कि एक बार अपना अभिमान त्याग करके देखो जो शेष तुम्हारे पास बचेगा वही तो परमात्मा को पाने और धर्म की सच्ची राह है।