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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

हाथी के दांत ................

आऐ दिन बदलते जमाने की तरक्की का एक से बढ़ कर एक करिश्मा देखने को मिलता है। चंद दिन पहले सुबह-सुबह मुसद्दी लाल जी विदेश से मंगवाए हुए नये मोबईल फोन का अपने दोस्तो के बीच सार्वजनिक प्रर्दशन कर रहे थे। पास खड़े उनके एक मित्र ने पूछ लिया कि इसमें ऐसा क्या है जो सभी लोग अपना कामकाज छोड़ कर यहां जमघट लगा कर बैठे हो? मुसद्दी लाल ने शेखी बघारते हुए कहा कि यह कोई साधारण फोन नही है। इसमें दो-दो नंबर इक्ट्ठे चल सकते है। और तो और आप किसी की भी आवाज बदल कर बात कर सकते हो। सभी दोस्त बड़े ही जोश से इस अजूबे को देख ही रहे थे कि अचानक टर्न-टर्न करते हुए घंटी बज उठी।
मुसद्दी लाल जी बहुत ही गंभीर मुद्रा में सारी बात सुन रहे थे। बीच-बीच में चेहरा बहुत ही गमगीन और उदास बना लेते थे। बातचीत से ऐसा लग रहा था कि किसी नजदीकी रिश्तेदार के साथ कोई बहुत ही बड़ी अनहोनी घटना हो गई है। बातचीत के आगे बढ़ने के साथ ही मुसद्दी लाल जी के चेहरे पर चिंता की रेखाऐ गहराती जा रही थी। हर कोई महसूस कर रहा था कि मुसद्दी लाल को सच में फोन करने वाले से बहुत अधिक हमदर्दी है। इससे पहले कि इनकी बात पूरी हो पाती एक बढ़ियां से गाने की धुन पर दूसरा फोन बज उठा। अब मुसद्दी लाल जी ने इसे होल्ड करवा कर दूसरे फोन पर बात शुरू कर दी।
यह फोन उनके साले ने अपने बेटे के जन्म की सूचना देने की खुशी में किया था। पल भर पहले वाले मुसद्दी लाल जी के चेहरे पर अब रौनक देखते ही बन रही थी। अब वो अपने साले को दिल खोल कर बधाईयां दे रहे थे। बड़ी सी पार्टी की फरमाईश हो होने लगी थी। यह सब कुछ देख मन में आया कि ऐसे लोग ही हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत को चिरतार्थ करते है। शायद इसीलिये इंसान ने अपनी सभी कमजोरियों को छुपाने के लिये अधिकांश: मुहावरे और कहावते जानवरों पर अधारित करते हुए ही बनाई है। जबकि हर कोई जानता है कि असल हकीकत तो यह है कि इंसान हर पल जानवरों से बढ़ कर नौटंकी करता है। मासूम से दिखने वाले चेहरे के पीछे कौन सा शैतान दिमाग काम कर रहा है, आप-हम तो क्या भगवान भी ऐसे लोगो को पहचानने में धोखा खा जाऐ।
इससे पहले कि मुसद्दी लाल जी के इर्द-गिर्द जमा हुई चौकड़ी अपने-अपने घर का रूख करती, मुहल्ले के असलम दादा के पिता की मौत का सदेंश आ गया। अपने पिता की तरह असलम ने अनपढ़ होते हुए भी डंडे के जोर पर सारे इलाके में अच्छा दबदबा बना रखा था। थाने के अफसरों से लेकर नेताओ तक के बीच उसका अच्छा उठना बैठना था। सुबह-सुबह मुहल्ले के लोग यह संदेश सुन कर बड़े ही असंमजस में थे कि अब सारा दिन इस गर्मी में असलम के घर बैठना पड़ेगा। इससे भी अधिक सभी को यह चिंता सता रही थी कि यदि असलम ने किसी को शव-यात्रा की तैयारी, खाने-पीने का इंतजाम या टैंट आदि लगवाने को कह दिया तो महीने के आखिरी दिनों में पैसो का जुगाड़ कहा से होगा? इससे बड़ी मसुीबत यह लग रही थी कि असलम दादा से पैसे वापिस कैसे मिलेगे?
जब अंतिम संस्कार के कार्यक्रम की बात शुरू हुई तो गर्मी से बचने के लिये मिश्रा जी ने नगर निगम की गाड़ी मंगवाने का सुझाव दे डाला। असलम ने झट से उन्हें ही यह जिम्मेंदारी सौंप दी। अब मिश्रा जी उस पल को कौस रहे थे जिस में उन्होनें यह सुझाव दिया था। मिश्रा जी की किस्मत तो उस समय और भी फूट गई जब शव यात्रा के दौरान पैट्रोल खत्म हो जाने पर रास्ते में ही गाड़ी बंद हो गई। गर्मी से बेहाल एक और सज्जन ने कह दिया कि अब इतनी दूर जाने की बजाए यहीं नजदीक वाले क्रब्रिस्तान में ही इन्हें दफना दो। असलम ने सुझाव को मानते हुए कब्र खोदने के लिये कह दिया। इतनी गर्मी में जब कब्र खोदने वालो को दिक्कत आने लगी तो असलम के ही एक रिश्तेदार ने कह दिया कि इन्हें इसी छोटे से गव्े में ही दफना दो, हमने यहां कौन सा टयूबवैल लगवाना है।
दूर खड़े जौली अंकल हर चेहरे के पीछे छिपे हुऐ चेहरे को समझने का प्रयत्न कर रहे थे। उनके मन में एक ही विचार आ रहा था कि दुनियां का यह कितना बड़ा आश्चर्य है कि मनुष्य प्राणियों को आये दिन यम के पास जाते हुए देखता है और फिर भी इस छल-फरेब की दुनियां में ही जीना चाहता है। इंसान अगर एक बार यह समझ ले कि ईमानदारी हजार मनकों की माला में एक हीरे की तरह चमकती है, तो फिर हमें कोई यह नही कह पायेगा कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते है।     

इस देश का यारो क्या कहना

हर वर्ष स्वतन्त्रता दिवस के शुभ दिन को मनाते हुए हमें देश के गौरवशाली इतिहास के साथ अपने प्रिय परन्तु भूले-बिसरे बापू भी याद आ ही जाते है। बापू का स्मरण आते ही उनके तीन बंदरो की धुंधली सी छवि भी मन के किसी कोने में उभरने लगती है। क्या आप ने कभी गौर किया है यदि आज के युग में बापू फिर से चंद दिनों के लिये अपने देश भारत में वापिस आ जाये तो उन्हें कैसा महसूस होगा? पहले जहां बापू बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो के अपने सदेंश को आम आदमी तक पहुंचाने का काम केवल तीन बंदरों से चला लेते थे।
अब तो ऐसा लगता है कि आज के इस भ्रष्टाचार के दौर में देश में हर तरफ बढ़ती अराजकता, भूखमरी, बेरोजगारी, लूट-पाट एवं सैंकड़ो अन्य जुर्मा और कुकर्मो के चलते बापू का काम शायद 300 बंदरो से भी न चल पाये। इस से भी बड़ी परेशानी की बात तो यह होगी कि यह सभी बंदर बेचारे कहां-कहां हाथ रखेगे?
आजादी के इतने वर्षो के बीत जाने के बाद भी हमारी सरकार को जनता की बुनियादी जरूरतों और तकलीफो से कोई कतई सरोकार नही है। देश के बाकी हिस्सो को यदि छोड़ कर हम केवल राजधानी दिल्ली की ही बात भी करे तो यहां रहने वाला हर शक्स बिजली, पानी, मंहगाई, भ्रष्टाचार और बढ़ते जुर्म ग्राफ से परेशान है। हर कोई अच्छी तरह से जानता है कि नेताओ की शह से ही व्यापारी वर्ग मोटे मुनाफे के लालच में दिन-प्रतिदिन वस्तुओं के दाम बढ़ाता चला जा रहा है। आखिर दाम बढ़ाये भी क्यूं न, चुनावों के दौरान एक-एक नेता पर करोड़ो रूप्ये खर्च करने की भरपाई करने का न सिर्फ उनका हक बनता है, बल्कि जन्मसिद्व अधिकार भी है।
कहने को हमारे देश में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, लेकिन सरकार को चलाने का काम हमारे देश के चंद बड़े व्यापारिक घराने ही करते है। इसका जीता जागता उदारण यह है कि जब कभी किसी उद्योगपति ने किसी नेता को मिलना हो तो उनके लिये सरकार के सभी दरवाजे हर समय खुले मिलते है, जबकि एक आम आदमी का उस और मुंह करके देखना भी अपराध माना जाता है जहां हमारे नेतागण अपने सैंकड़ो सुरक्षकर्मीयों के बीच कड़ी सुरक्षा में रहते है। आज सत्ता के गलियारों में चहलकदमी करने वाले हमारे नेताओ को आजादी के उन मतवालों का नाम भी ठीक से याद नही जिन्होनें देश और आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। कुछ नेताओ को तो राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत में फर्क तक मालूम नही, और वो यह भी नही जानते है कि इनकी रचना किस महापुरष ने की थी।
कुछ बरस पहले तक अजादी के इस पावन मौके पर हर देशवासी के दिल में देशभक्ति की हिलोरे उठने लगती थी। फिल्म निर्माता भी चाहें पैसा कमाने की चाह में अजादी से जुड़े कई विषयों पर फिल्में और गीत बनाते थे, लेकिन अब तो ऐसी फिल्मों की फसल तो हमारे देश में दूर-दूर तक भी कहीं देखने को नही मिलती। आजादी दिवस और रंग-बिरंगी पंतग उड़ाने का चौली दामन का रिश्ता बन चुका है। यह पंरमपरा कब और कैसे शुरू हुई, इस बारे में तो कोई शौधकर्ता या स्वतंत्रता सैनानी ही प्रकाश डाल सकता है। दूर-दराज रहने वाले हर देशवासी को आजादी और प्रेम भावना का जो संदेश हमारे नेता देना भूल गये है, लगता है आसमान में दुल्हन की तरह सजी-संवरी इन पंतगो को उड़ते देख मन में यह भावना जरूर आती है कि यह पूरे देश में मेलजोल और भाईचारे के सदेंश को फैलाने का काम कर रही है।
आजादी से चंद दिन पहले ही सुरक्षा के मद्देनजर जमीन से आसमां तक हर जनसाधारण को परेशान किया जाता है। देश के कई हिस्सो में हाई अलर्ट के नाम पर लोगो की दुकाने और रोजी रोटी कमाने के हर जरिये को पुलिस वाले बंद करवा देते है। रेडियो टी.वी वाले आम देशवासीओं और स्कूली बच्चो में इस दिन को लेकर कितने ही उत्साह का बखान करे, लेकिन एक जनसाधारण तो क्या लाल किले की और परिंदा तक भी पर नही मार सकता।
मजबूरन हर किसी को घर में पड़े टी.वी के माध्यम से ही कुछ सरकारी अफसरों द्वारा लिखा हुआ प्रधानमंत्री का हर वर्ष की तरह रटा-रटाया भाषण और कभी न पूरे होने वाले आश्वासनों की एक लंबी सूची सुनने को मिलती है। अनेकता में एकता को दर्शते हुए कुछ एक पुरानी बातो की धर्म जाति के नाम पर दुहाई दी जाती है। जबकि कड़वी सच्चाई यह है कि आजादी के इतने सालों बाद भी आम आदमी के साथ हुए अत्याचार के खिलाफ इंसाफ मिलना तो दूर उस जुर्म की रिपोर्ट भी बिना सिफारिश या रिश्वत के दर्ज नही की जाती।
सरकारी दावे कुछ भी कहें, आम आदमी के लिये आजादी के क्या मायने है लाचारी और बेबसी की यह दांस्ता हमारे देश की हर गली और चौराहो का नजारा खुद-ब-खुद ब्यां कर देते है। जौली अंकल तो इस मसले पर कुछ भी और कहने से बचते हुए केवल इतना ही कहते है कि इस देश का यारो क्या कहना?   

यह कैसी तरक्की........

शिक्षा, विज्ञान, कंम्पटूयर, दूर-संचार या अन्य किसी क्षेत्र की बात करें तो हर तरफ से एक ही आवाज सुनाई देती है, कि हमारे देश ने पहले से बहुत तरक्की कर ली है। अधिकतर लोग हर सुबह की शुरूआत समाचार पत्रों का पढ़ कर इस उम्मीद से करते है कि उनके जीवन को सुखमई बनाने के लिये आज कोई न कोई अच्छी खबर जरूर होगी। लेकिन निराशा उस समय होती है, जब देश की बिगड़ती व्यवस्था को देख कर उच्चतम न्यायलय को यह कहना पडे कि 'इस देश को भगवान भी नही बचा सकते'। आज हमारे देश की ऐसी निराशाजनक और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्यूं बनती जा रही है। हर देश और इलाके की कुछ न कुछ समस्याऐ तो होती ही है, लेकिन वहां की सरकारो की नैतिक जिम्मेदारी बनती है, कि जनहित में उनका जल्द से जल्द समाधान किया जाए। हमारे देश में खासतौर से देश की राजधानी दिल्ली में भी समस्याओं के अंभार है। लेकिन यदि हम सभी समस्याओं का एक साथ हल निकालने की कोशिश करेगे तो यह एक और बड़ी समस्या बन जायेगी। 
हमारी सरकार चाहे देश में चौमुखी विकास का कितना ही ढ़िढारो क्यूं न पीट ले, लेकिन सच्चाई तो यह है कि कुछ अरसा पहले हम सब जो सफर चंन्द मिन्टों में पूरा कर लेते थे, आज दिल्ली जैसे शहर में हमें अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिये घंटो का वक्त लग जाता है। थोड़ी सी बरसात ही पूरे शहर का जीवन अस्थ-व्यस्थ कर देती है। इस के बावजूद अधिकारीयों के कान पर जॅू तक नही रेंगती। क्या हमारी सरकार सचमुच इतनी लाचार और नापुंसक हो गई है, कि वो इस क्षेत्र में कुछ भी करने में असमर्थ है? ऐसा कुछ भी नही है, जरूरत है तो सिर्फ सच्चे मन और लगन से कुछ जरूरी मुद्दो पर कठोर कदम उठाने की और नगर सन्निवेश पर वास्तविक योजना को अमल में लाने की। हालिक हमारे अधिकारीगण इन बातो को अच्छी तरह से जानते है, लेकिन उनकी कमजोर पड़ गई स्मरण शक्ति को ताजा करने के लिये कुछ निहित मुद्दे बताना चाहता  हूँ,
  1. यातायात और सड़क पर चलने के नियम बचपन से हर स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ सिखाए जाये जिससे कि यह सब कुछ उनके स्वभाव में रच-बस जाये। जिस तरह बच्चे स्कूल बस और कैब में पूल करके इक्ट्ठे जाते है, ठीक उसी तरह से बड़ो को भी यह आदत बनाने की जरूरत है। इससे सड़को पर गाड़ीयों की भीड़ कम होगी और लोगों में प्रेम और सद्भावाना भी बढ़ेगी। शहर की मुख्य सड़को पर हर प्रकार के जलूस, जलसे और रैलियो पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है। इससे न सिर्फ आम आदमी का जनजीवन अस्थ-व्यस्थ होता है, परन्तु कई बार रोगीयों को अस्पताल पहुंचने में भी बहुत दिक्कत होती है। समय पर ठीक से उपचार न मिलने के कारण कुछ लोगो की मौत तक हो जाती है। सड़को पर छोटी-छोटी बात को लेकर अक्सर झगड़े हो जाते है। पढ़े-लिखे होने के बावजूद लोग एक दूसरे को गालीयों के साथ उनकी मां-बहन को भी याद करने लगते है। कई बार तो ऐसे झगड़ों में गोलीयॉ तक चल जाती है। मीडियॉ के बढ़ते प्रचार के कारण इससे न सिर्फ अपने देश में ब्लकि विदेशो में हमारे देश की छवि बुरी तरह से खराब होती है।

  1. सड़को पर पटरी वालो का नजायज कब्जा, गलत ढंग से कार-स्कूटर खड़े करने से भी बहुत हद तक सड़क पर चलने वालों के लिये समस्यां बढ़ती है। यह समस्यां तब और भी बढ़ जाती है, जब हमारे नेतागण ऐसे लोगो के बचाव में खड़े हो जाते है। दिल्ली में मैट्रौ रेलवे के आने से ट्रैफिक की समस्यॉ कुछ हद तक जरूर हल हुई है, लेकिन आज भी अधिकतर लोग आटो-रिक्शा और टैक्सी वालो के मनचाहे रवैये से दुखी होकर अपने वाहन पर ही निर्भर करते है।

  1. अगर समाज के किसी वर्ग ने किसी प्रकार का रोष प्रकट करना ही है, तो सरकार हर प्रकार के जलूस, जलसे और रैलियो के लिये एक खास स्थान मुहैया करवाये। यहां मैं एक बात खासतौर से कहना चाहूंगा कि हमने पशिचमी देशो से उनके खान-पान, रहन-सहन और हर प्रकार के तौर तरीके सीखे है, लेकिन छोटी-छोटी सम्सयाओं को लेकर विरोध करने का तरीका उनसे नही सीखा। उन लोगो ने किसी भी तरह का विरोध करना हो तो वो हमारी तरह बसो को तोड़ कर उन में आग नही लगाते, सरकारी सम्पति को नुकसान नही पहुचाते अपित् अपनी बाजू पर एक काली पट्टी बांध लेते है। उनका यह संदेश सरकार तक पहुंच जाता है, और वो लोग आपस में बैठ कर बातचीत करके उस समस्यां का कोई न कोई हल निकाल लेते है।

  1. हर बड़े शहरों में अनगिनत माल्स बनते जा रहे है। अगर हमारी सरकार उन माल्स के व्यापारीयों को उसी इमारत में ऊपर घर बनाने की इजाजत दे दे, तो कई हजार गाड़ीयॉ रोज सड़को पर नही उतरेगी। वो लोग सीधा अपने घर से नीचे अपनी दुकान पर आकर अपना व्यापार असानी से कर सकेगे। इसी प्रकार की योजना हम ओधिोयिग घरानों के लिये भी बना सकते है। शहर की अधिकतर सडके खस्ता हाल में होती है। इसके लिये कोई एक खास एैजेंसी बनाने की जरूरत है, जो सब सड़को की ठीक से देखभाल कर सके। इस तरह की एैजेंसी का फोन नंम्बर एक आम को पता होना चहिये, जिससे की सड़क हादसों में कमी आ सके।

  1. अधिक जनसंख्या की दुहाई देकर कुछ अधिकारी नियम लागू कर पाने में असमर्थता जताते है। ऐसे लोगो को मैं श्रीमति किरन बेदी की याद दिलाना चाहता  हूँ, जब उन्होनें दिल्ली की ट्रैफिक की जिम्मेदारी सम्भाली तो एक जनसाधारण कहीं भी गलत जगह से गाड़ी करने से पहले कई बार सोचता था। पूरी दिल्ली में किरन बेदी जी को क्रैन बैदी के नाम से जाना जाता था। उस समय के सब लोग जानते है कि किरन बेदी की दहशत शौले फिल्म के गब्बर सिंह से कही अधिक थी।

इसी तरह के थोड़े से प्रयासो के बाद जौली अंकल के साथ हम भी गर्व से कह सकेगें कि हमारे देश ने सच में तरक्की कर ली है। 

खानदानी नेता

शहर की सड़को के किनारे, बस अवे, पार्को के गेट और यहां तक कि सुलभ शोचालय आदि में हम सभी ने खानदानी हकीमो, वैघो आदि के पोस्टर अक्सर देखे होगे। ऐसे लोगो के पास हर बीमारी की दवा से हर उंम्र में जवानी और जोश भरने के अनेको फार्मूलो का दावा किया जाता है। कुछ हकीम तो सिर्फ नब्ज देख कर आपकी हर बीमारी के बारे में बताने के साथ उस का इलाज भी कर देते है। कुछ रईस परिवारो के गहने आदि बनाने के लिए सुनियारे और धर्म-कर्म के कार्यो के लिये पुश्तैनी पंडित भी पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रहे है।
लेकिन आज मैं आपको समाज में उपज रही खानदानी नेताओ की एक नई नसल से मिलवा रहा  हूँ। ऐसे लोग हमारे बीच रहते हुए सदा जन सेवा के नाम का ढ़िढारो तो पीटते रहते है, लेकिन बात जब पैसा कमाने की हो या अपने हितो की तो इनको अपने खानदान के इलावा कोई दूसरा व्यक्त्ति नजर नही आता। अब आप ही बताए की ऐसे लोगो को खानदानी नेता के इलावा हम और पदवी दे सकते है?
खानदानी मोह की पंरम्परा के इतिहास को जानने की कोशिश करे तो हमें मालूम पड़ता है कि यह हमारे देश में महाभारत के समय से शुरू हुई थी। एक अंधे राजा के पुत्र मोह के कारण भगवान श्री कृष्ण भी महाभारत का युध्द नही टाल सके। अनेक राजे-महाराजाआें का अपने परिवार के प्रति मोह और अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा की प्रथा को देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने आजतक जारी रखा हुआ है। अब तो इसकी जड़े इतनी गहरी और मजबूत हो चुकी है कि हमारे चारो और खानदानी नेताओ का जाल सा बिछ गया है।
आज के नेताओ के बच्चे राजनीति की कितनी समझ रखते है, वो गरीब आदमी के दुख दर्द को किस हद तक हल कर सकते है, इससे इनका कोई वास्ता नही होता। उनकी योग्यता क्या है, वो किसी समाजिक कार्य करने के काबिल है भी या नही, हमारे नेता वो सब कुछ जानना ही नही चाहते। नेता परिवार के वारिस होने के नाते सभी वरिष्ठ कार्यकत्तर्यो को पीछे छोड़ अपने पिता की गद्दी के वो अकेले ही एक मात्र वारिस बन जाते है।
आज हमारे नेताओ के निजी हित पार्टी, जनता और देश सभी से ऊपर हो चुके है। देश और जनता के बारे में तो वो तभी सोच सकते है जब इन्हें अपने खानदान के लोगो के हितो के इलावा कुछ सोचने से कभी फुर्सत मिले। ऐसा लगता है कि आत्मा, जामीर, इन्साफ और सच्चाई जैसे शब्द इन लोगो के शब्दकोश में नही होते। ऐसे नेताओ का न तो कोई चरित्र होता है और न ही इन्हे अपने सम्मान की कोई परवाह। गद्दी हासिल करने के लिए यह किसी भी हद तक गिरने को तैयार रहते है।
खानदानी नेता अधिक से अधिक धन-सम्पति अर्जित करने के लिये हर क्षेत्र में अपने भाई, बेटे और दमादो को किसी न किसी मोटी कमाई वाली कुर्सी पर बिठा ही देते है। चुनावो के समय एक साधारण से फलैट में रहने वाला नेता चुनाव जीतने के चंद महीनो बाद ही फलैट से कोठी, कोठी से बंगले और बंगले से एक आलीशान फार्महाऊस तक पहुंच जाता है। आप किसी तरफ भी नजर घुमा कर देख लो आपको आज की राजनीति में अधिकतर ऐसे ही खानदानी नेताओ का जमावड़ा नजर आयेगा।
एक जनसाधारण जब कभी मंहगाई, आंतकवाद, भष्ट्राचार या अपनी अन्य किसी मजबूरी का दुखड़ा लेकर इनके पास जाता है तो यह इस तरह अनजान बन जाते है जैसे यह इस लोक में न रह कर किसी दूसरे लोक से आये हो। जो कुछ हमारे समाज में हो रहा है वो सब इनके लिये एक तमाशे से बढ़ कर कुछ नही। भगवान ने न जाने ऐसे लोगो का दिल भी किस मिट्टी से बनाया है कि एक निर्दोष, लाचार, गरीब और मासूम आदमी का खून बहते देख कर भी इनकी आंखो से आंसू नही निकलते। अजादी के तकरीबन 60 साल बाद हमारे नेता तो हर दिन मालदार होते जा रहे है और एक जनसाधारण को अपने परिवार के लिये दो वक्त की दाल रोटी जुटाना भी दुश्वार होता जा रहा है।
यह जानते हुए भी कि चिकने घड़े पर किसी चीज को कोई असर नही होता जौली अंकल अपने प्रिय नेताओ से एक बार फिर उम्मीद करते है कि एक बार तो कोई ऐसा करशिमा कर दिखाओ कि हर देशवासी गद्गद् हो उठे।     

आंतकवाद के घाव

आंतकवाद के बारे में हम सभी लोग बरसों से न सिर्फ पढ़ते और सुनते आ रहे है, बल्कि इसके दुशप्रभावों के कारण हम सभी ने कभी न कभी अपने प्रियजनों को इसकी बलि चढ़ते भी देखा है। देश के अनगिनत सुरक्षाकर्मी आम आदमी की हिफाजत करते हुए आंतकवदाीयों के हाथो शहीद हो चुके है। आज तक हम में से किसी ने भी किसी बड़े नेता को ऐसे हमलों में मरते नही देखा। कारण साफ है हमारे देश का एक-एक नेता सैंकड़ो सुरक्षाकर्मी अपने साथ लेकर चलता है। उनको सिर्फ अपनी और अपने परिवार वालों की जान की फिक्र तो होती है, लेकिन उस आम आदमी की जिंदगी की कोई परवाह नही होती जो उन्हें गलीयों की धूल से उठा कर देश का बादशाह बना देता है।
कहने को आज हमारा देश दुनियॉ में सबसे बड़ी ताकत बन कर उभर रहा है। अब चाहे बात कारगिल युध्द की हो या हाल ही में हुए मुम्बई हमले की। ऐसी क्या लाचारी है कि हमारा सुरक्षा और खुफियॉ तंत्र हर बार आंतकीओं के हमलों के आगे फेल होता रहा है? एक जनसाधारण भी जरा गौर से देखे तो समझ आता है कि अधिकतर मामलों में यह सब कुछ हमारी सरकार की गलतीयों का ही नतीजा है।
अधिकाश: पार्टीयॉ वैचारिक रूप से पूरी तरह दिवालियॉ हो चुकी है। मुझे कहते हुए शर्म आती है लेकिन हमारे नेताओ का राजनीति में आने का एक मात्र मकसद मुनाफा कमाना ही रह गया है। वो सभी सदा सरकारी स्त्रोतो से अपनी-अपनी पार्टी और अपने परिवार की भलाई करते हुए ही नजर आते है। इस बेशर्मी में कोई भी पार्टी किसी से पीछे नही है। इन लोगो के काम करने के तरीके से तो ऐसा लगता है कि यह सरकार न चला कर कोई प्राईवेट कम्पनी चला रहे हों।
हर बार ऐसे हमलों में हमारे सुरक्षाकर्मी अपनी जान हथेली पर रख कर बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाते है। परन्तु हमारे नेता आपस में लड़ते हुऐ देश की दुर्गाति करते जा रहे है। आंतकवाद से निजाद पाने के लिये अगर अब भी हम अपने नेताओ से किसी प्रकार की आस रखते है, तो यह अपने आप को धोखा देना ही होगा। क्योंकि जिन नेताओ के पास संसद हमले में शहीद हुए सुरक्षाकर्मीयों को श्रध्दाजालि देने के लिये दो मिनट का समय नही है, वो आपकी और हमारी क्या मदद करेगे? अब समय आ गया है कि हम सभी मिल कर आंतकवाद के खिलाफ एक जुटता दिखाते हुए पुलिस और अन्य सुरक्षा एैजेंसीओं के साथ बेहतर तालमेल बिठाने की कोशिश करें। अब राजनीतिज्ञों की जय-जयकार करने की जगह देश पर कुर्बान होने वालो की जय बोलें।
पूरी दुनियॉ में आंतकवाद का जहर फैलाने वाले हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान पिछले कई दशको से बगल में छुरी रखते हुऐ दुनियॉ के सामने दोस्ती का चेहरा दिखा रहा है। उस का काम केवल भारत में नफरत और आंतक फैलाना है। हर कोई जानता है कि जब कभी हमनें उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, उसने सदा ही हमारी पीठ में छुरा घोंपा है। पाकिस्तान के आंतकवादी अब सिर्फ हमारे देश के लिये ही नही पूरी दुनियॉ के लिये खतरा बन चुके है। अमरीका सदा से ही धनबल और शस्त्रो से पाकिस्तान की मदद करता रहा है। आज पाकिस्तान उस को भी आंखे दिखा रहा है। अगर अब भी अमरीका होश में नही आया और पाकिस्तान को इसी प्रकार शह देता रहा तो पाकिस्तान आस्तीन का सांप बन कर बहुत जल्द अमेरिका को भी डस लेगा।
आंतकवादी अक्सर सोचते है कि बेगुनाहो को मौत की नींद सुला कर उन्हें अल्लाह सीधा स्वर्ग में जगह देगा, तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है। जबकि असलियत यह है कि ऐसे मुजरिमों के लिये तो स्वर्ग तो क्या नर्क के दरवाजे भी बंद हो जाते है। आंतकवादी कुछ स्वार्थी लोगो के बहकावे में आकर निर्दोष लोगो के हंसते-खेलते जीवन में दुखो और घावों के पहाड़ खड़े कर देते है।
जौली अंकल ऐसे लोगो को एक बात समझाना चाहते है कि अगर हम किसी को जीवन दे नही सकते तो उसे लेने का हमें कोई हक नही बनता। हमें कभी भी जाने-अनजाने में किसी का दिल नही दुखाना चहिए, क्योंकि हर दिल में ईश्वर का वास होता है।      

मंगलू दादा

जैसे ही सरकार ने चुनावों की घोषण की तो मंगलू दादा के चंम्चो की पूरी टीम झंड़े, डंडे और लाठीयों के साथ उसके घर आ पहुंची। अब सभी मिल कर यह तह करने लगे कि इस बार किस नेता या पार्टी से मोटी कमाई हो सकती है। इसी विचार विमर्श के दौरान एक चंम्चे ने मंगलू को सुझाव दिया कि उस्ताद आप हर बार अपनी ताकत के जोर से किसी न किसी नेता के लिये मार-पीट करके उसे चुनाव जितवाते हो। इस बार तुम खुद क्यूं नही चुनावों में खड़े हो जाते? जो काम हम दूसरो के लिये करते है, वो सब कुछ हम सभी मिल कर तुम्हारे लिए कर लेगे।
रोज-रोज की गुंडा-गर्दी से जान भी छूट जायेगी। सबसे बड़ी बात यह जो पुलिस सुबह शाम हमसे उगाही भी करती है और फिर हमें ही पकड़ने के लिये दौड़ती रहती है, वो पुलिस वाले ही हमारी हिफाजत करेगे। बाकी लोगो ने भी हां में हां मिलाते हुए कहा उस्ताद इस बार मौका अच्छा है बहती गंगा में हाथ धो लो। यह सुझाव सुनते ही मंगलू ने अपनी दादागिरी के जोर पर चुनावों में खड़े होने का मन बना लिया। उसने मन ही मन नेता और मंत्री बनने के ख्याली पुलाव पकाने शुरू कर दिये।
अंधो में काना राजा वाली कहावत को चिरतार्थ करते हुए मंगलू ने अपनी टीम में से जो कोई दो-चार जमात पढ़ा लिखा था, उसकी डयूटी लगा दी कि जल्द से जल्द चुनावी परचा भरने की तैयारी करो। एक चंम्चे ने कहा कि बाकी सब काम तो हो जायेगे, तुम अपना जन्म का प्रमाण पत्र तैयार करवाओ। मंगलू ने अपनी अंम्मा से जब इस बारे में पूछा तो उसने साफ कह दिया कि बेटा मैं तो ठहरी अनपढ़ और तुम्हारे पिता को मरे हुए तो एक लंम्बा अरसा हो गया है। मुझे इस बारे में कुछ भी नही पता। हां इतना जरूर याद है कि तू बरसात के दिनों में पैदा हुआ था। अंम्मा बरसात तो कई महीनों तक चलती है, अब कौन सा महीना लिखू। मुझे तो ठीक से तारीख लिखनी है। मां ने आगे कहना शुरू किया कि तारीख तो बेटा महीने की कोई आखिरी ही थी, क्यूंकि हमने तेरे पैदा होने के लव्ू 8-10 दिन बाद तेरे पिता को तनख्वाह मिलने पर ही बांटे थे। अब कुछ माथा-पच्ची और कुछ अंदाजा लगा कर किसी प्रकार प्रमाण पत्र तैयार करवा के चुनावी पर्चा दाखिल कर दिया गया।
मंगलू दादा ने भी बाकी नेताओ की तरह एक चुनावी सभा का आयोजन कर डाला। जब वो उस सभा में जाने लगा तो एक चंम्चे ने कहा कि उस्ताद आपका पायजमा तो बहुत मैला लग रहा है, आप मेरे साथ अपना पायजमा बदल लो। मंगलू ने उसकी बात को मानते हुए पायजमा बदल लिया। अब स्टेज पर वोहि चंम्चा जमकर मंगलू दादा की तारीफ करते हुए वोट मांगने में जुटा हुआ था। उसने कहा कि मंगलू दादा के पास बहुत पैसा और जमीन जयदाद है, इनके पास बेशुमार दौलत है। यह आपके सारे काम अपने पैसे से ही करवा देगे। साथ ही उसने अपनी शेखी बधारते हुऐ कहा मैं एक जरूरी बात कहना चाहूंगा कि यह जो पायजमा इन्होनें पहना है, वो इनका अपना नही, मेरा है।
मंगलू ने अपने स्वभावनुसार बिना किसी की परवाह किए एक मोटी सी गाली निकाल उसे उस समय तो चुप करवा दिया। उस चंम्चे ने भी माफी मांगते हुए कहा कि अब अगली सभा में ऐसी गलती नही होगी। कुछ देर जब लाऊड स्पीकर फिर से उसी चंम्चे के हाथ में आया तो उसने मंगलू दादा की तारीफ के पुल बांध दिये और साथ ही गलती से इतना कह गया कि अब मुझे इनके पायजामें का कोई जिक्र नही करना। सभी लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि आखिर पायजामें का क्या माजरा है?
फिर से पायजामे की बात सुनते ही मंगलू दादा का गुस्सा सांतवे आसमान पर चढ़ गया। उसने आव देखा न ताव झट से एक रामपुरी चाकू उस चंम्चे के पेट में मार दिया। इससे पहले की उसे कोई डॉक्टरी मदद मिल पाती उसने वही दम तोड़ दिया। ऐसे हालात में मंगलू दादा के पास सामने खड़े पुलिस वालो के साथ जेल जाने के इलावा कोई चारा नही था।
अब जौली अंकल से पूछे कि ऐसे में वो क्या कहना चाहते है, तो उनका मानना है कि डंडे की ताकत के जोर पर जो हमेशा अपनी गर्दन ऊंची रखता है, वह सदा ही मुंह के बल गिरता है चाहें फिर वो मंगलू दादा ही क्यूं न हो?  

राजनीति के सौदागर

हमारी कालोनी के प्रधान चिरोंजी लाल आज अपने बेटे के तीसरी बार कालेज में फेल होने से बहुत दुखी थे। अपनी पत्नी के बार-बार कहने पर वो अपनी इस परेशानी का हल ढ़ूढने के लिये अपने रिश्ते के बड़े ही रूतबे और रसूख वाले एक नेता यहां जा पहुंचे। सारी परेशानी सुनने के बाद उस नेता ने चिरोंजी लाल के हष्ट-पुष्ट बेटे को ऊपर से नीचे तक देखा और मन ही मन सोचा कि आगें आने वाले चुनावों और रेैलीयों में यह लड़का काफी काम आ सकता है।
नेता जी ने एहसान जताते हुए कहा कि आप इसे मेरे पास ही छोड़ दो। कुछ सालो में अगर यह कोई बड़ा नेता न भी बन पाया तो आपके अपने इलाके का नेता तो इसे बना ही दूंगा। चिरोंजी लाल ने पूछा कि क्या यह कुछ अपने घर परिवार के लिये कमा भी पायेगा या सारा समय जनता सेवा में ही बर्बाद कर देगा। नेता जी ने होंसला देते हुए कहा अगर राजनीति में चमक गया, इसके तो क्या, इसकी आने वाली कई पुश्तो के वारे न्यारे हो जायेगे। यदि वहां भी फिस्व्ी रहा तो कुछ बरसो बाद अपनी आत्मकथा लिख कर आपकी सारी उंम्र की कमाई से भी कहीं अधिक कमा लेगा।
सब कुछ बहुत ही गौर से सुनने के बाद चिरोंजी लाल माथे पर ंचिन्ता की रेखाओ के साथ बोले नेता जी इस बेवकूफ को राजनीति के बारे में कुछ भी जानकारी तो है नही। ऐसे में यह आपके साथ क्या कुछ कर पायेगा? नेता जी ने फिर से ढाढस बधाते हुऐ कहा कि आप तो हर बात की बहुत अधिक ंचिंन्ता करते हो। आज की राजनीति ऐसी नही है। आप न जाने किस युग की बात कर रहे हो। चिरोंजी लाल जी आजकल राजनीति भी कोई बुरा धन्धा नही है। क्या आप आए दिन समाचार पत्रो और टी.वी. मे नही देखते कि आजकल के नेता कभी जाति, भाषा और धर्म के नाम पर जनता को अपने लच्छेदार भाषणों से किस तरह गुमराह करते है। किसी भी छुटभैया को नेता बनाने के लिये आग में घी डालने का बाकी सारा काम मीडियॉकर्मी कर ही देते है।
हमारे देश की अधिकतर अनपढ़ कही जाने वाली जनता बहुत ही भोली है। वो अपने प्रिय नेताओ की वोट बैंक की राजनीति की गहराई को नही समझ पाती। आम लोग पांच वर्षो तक बिना भेद-भाव किए एक दूसरे के साथ भाईयो की तरह मिलजुल कर रहते है। चुनाव आते ही वो अलग-अलग पार्टीयो के रंग में रंगने शुरू हो जाते है। अगर आप ने कभी इतिहास के पन्ने पल्टे हो तो आप यह बात जरूर जानते होगे कि राजनीतिक पार्टीयॉ अपने वोट बैंक में बढ़ोतरी करने के लिये धर्म का खुल का दुर्पयोग करती रही है। बड़े नेताओ को किसी खास धर्म, कौम या मजहब से कोई हमदर्दी नही होती न ही नेताओ का कोई ईमान होता है। जनहित की समस्याओ के बारे मे सोचने का तो इन लोगो के पास समय ही नही होता।
आपका धर्म चाहे कोई भी हो, आप आस्था किसी भी भगवान में रखते हो, फर्क तो सिर्फ विचारो का ही होता है। क्योंकि चाहे कोई हिन्दू, मुसलमान या सिख हो, सब लोगो के हाथ पैर और शरीर के सभी अंग तो एक समान ही होते है। अब कोई सिख धर्म का मानता है या किसी हिन्दु देवी देवता को पूजता है तो यह उस व्यक्त्ति की उस धर्म के प्रति सोच और आस्था ही होती है। एक आदमी जंन्म से सारी उंम्र एक खास धर्म का मानता है, लेकिन एक दिन अचानक किसी साधू-संत से प्रभावित हो कर वो अपना धर्म बदल लेता है। अब उसके शरीर में तो कोई बदलाव नही आता, सिर्फ उसकी सोच और विचार ही बदलने से उसके धर्म का अर्थ बदल जाता है। लेकिन हमारी राजनीति में इन सब बातो का कोई महत्व नही होता।
यह सब कुछ सुनने समझने के बाद चिरोंजी लाल का माथा घूमने लगा कि हमारे प्रिय नेताओ के चेहरो पर नकाब की कितनी परते चढीे हुई है। हमारे देश में गद्दार कहीं बाहर से नही आते ब्लकि हमारे बीच में से ही पैदा होते है। जनता को दगा देने वाले हमारे आस पास रहने वाले हमारे नेता ही है। यही लोग कभी मंदिर, कभी मस्जिद को मुद्दा बना कर समाज को हैवानीयत की आग में झोंकते रहते है। स्वार्थी नेताओ का कोई धर्म और ईमान नही होता। आज यदि देश में अमन, शांति और भाईचारा कायम रखना है तो राजनीति और धर्म को बिल्कुल अलग-अलग रखना होगा।
अब जौली अंकल की बात माने तो जैसे हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कोई भी नेक काम शुरू करने से पहले धर्म का साहरा ले कर उसे पूजा पाठ से शुरू करते है, उसी तरह से राजनीति में धर्म का साहरा लिया जाए तो हमारे नेताओ के मन भी शायद पवित्र हो जायेगे। परन्तु जब राजनीति के सोदागर धर्म को हथकंडा बना लेते है तो फिर आप और हम तो क्या भगवान भी हमारे देश को नही बचा सकते।     

दल - बदलू

आप अगर सोच रहे हैं, कि मैं आपको किसी विधानसभा या लोकसभा की सैर पर लेकर जा रहा हूं, तो आप को अपनी सोच में थोड़ा सा बदलाव लाना होगा। यह बात तो आप भी समझते है कि विधानसभा और लोकसभा के दल-बदलुओं के चर्चे तो इतने आम हो चुके हैं, कि उन पर कुछ भी लिखना समय की बर्बादी के सिवाय कुछ भी नहीं। हमारे नेता चुनाव तो एक पार्टी की टिकट से लड़ते हैं, और फिर चुनाव के बाद मंत्री पद पाने के लिये अपने ईमान और जनता के विश्वास को ताक पर रख कर दूसरी पार्टी का दामन थामने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती। इस मामले में कानून भी इन लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, क्योंकि कानून बनाने वाले भी यह खुद ही हैं, हर कानून को बनाते समय यह अपने बचाव का प्रावधान पहले से ही रख लेते हैं।
ना चाहते हुए भी अपने प्यारे नेताओं के बारे में लिखे बिना मैं तो क्या कोई भी नहीं रह सकता? आज मैं आपको नेताओं के अलावा समाज में पल रहे कुछ अन्य प्रकार के दल-बदलुओं की किस्मों के बारे में बताना चाहता हूं। आप कहेंगे नेताओं के अलावा कौन लोग इस श्रेणी में आ सकते हैं, क्योंकि आम आदमी का तो कोई दल होता ही नहीं तो दल-बदलू का इल्जाम उन पर किस तरह से लग सकता है? जनाब आप अपने दांये-बांये नजर घुमाइये तो सही, आप को इनकी इतनी किस्में मिलेंगी कि आप हैरान हो जाएगें।
सबसे पहले मैं आपको सबके हितैषी और समाजसेवी श्री मुसद्दी लाल जी से मिलवाना चाहूँगा। जिनके चर्चे इस क्षेत्र मे बहुत दूर तक फैले हुऐ हैं। बात कुछ दिन पहले की है, जब हमारे पड़ोस में शर्मा जी के बेटे का पासपोर्ट बन कर आया, तो मुबारक देने के बहाने और आगे का सारा कार्यक्रम जानने की उत्सुकता ने मुसद्दी लाल जी को आदतानुसार सबसे पहले वहां पहूँचा दिया। चेहरे पर एक नकली, लेकिन लम्बी सी मुस्कराट फैलाते हुए बोले, यह बहुत अच्छा किया आपने कि बेटे को नौकरी के लिये विदेश भेज रहे हों। हमारे देश में तो पढ़ाई की कोई कद्र है ही नहीं। एक बार बेटा विलायत में सेट हो गया तो शर्मा जी सारी उंम्र आपको डालरों की कमी तो आने वाली नहीं।
कुछ दिन बाद पता लगा, कि जिस एजेंट ने पांच लाख रूपये लेकर टिकट और वीजा दिलवाने का भरोसा दिलवाया था, उसे पुलिस धोखाधड़ी करने के इल्जाम में जेल की हवा खिलाने ले गई है। समाचार मिलते ही मुसद्दी लाल जी अपना सामाजिकर् कत्तव्य निभाने फिर शर्मा जी के घर की तरफ निकल पडे। वहां पहुंचते ही मुसद्दी लाल जी ने पलटी मारते हुए कहा भगवान जो भी करता है, अच्छा ही करता है, शुक्र है कि पांच लाख में ही आपकी जान छूट गई, वरना विदेश में जाकर ऐसे एजेंट पता नहीं क्या हाल करते? कुछ दिन पहले तो अखबार में पढ़ने को मिला था कि कुछ ऐसे ही लडकों को जब वहां की पुलिस ने पकड़ने की कोशिश की तो उन्होंने समुद्र में डूब कर जान ही गंवा दी। आप फिक्र मत करो, आज नहीं तो कल, बेटे को यहां भी अच्छी नौकरी मिल ही जायेगी। इतनी पढ़ाई लिखाई के बाद तो हमारे यहां की दस कम्पनियां नौकरी देने के लिये पीछे-पीछे दौड़ेंगी।
मुसद्दी लाल जी, शर्मा जी को एजेंट से पैसे वापिस दिलवाने की आस लेकर जैसे ही थाने पहुंचे तो देखा कि एक आदमी जिसको गली के किसी कुत्ते ने काट लिया था, वहां बैठे दर्द से कराह रहा था। थानेदार ने उससे हमदर्दी जताते हुऐ, सिपाही को जल्द से आदेश दिया, कि जाओ और कुत्ते के मालिक को पकड़ कर ले आओ। थोड़ी देर बाद सिपाही वापिस आकर थानेदार साहब से धीरे से बोला - जनाब जिस कुत्ते ने इसे काटा है वो तो मंत्री जी का है। उनको यहॉ लाना तो बहुत मुश्किल काम हैं।
थानेदार ने अपना रंग बदलते हुऐ उस पीड़ित आदमी को गालियां निकालकर कहा, तुम लोगों को खुद तो सड़क पर चलना आता नहीं और इल्जाम दूसरों के कुत्तों पर लगाते हो। सच बताओ कि तुमने उसके साथ क्या शरारत की थी? नहीं तो, अभी अन्दर बन्द करवाता हूँ। उस जख्मी आदमी ने डरते हुए कहा सर वो कुत्ता मंत्री जी का नहीं है, उनका तो कुत्ता सफेद रंग का है, मुझे तो काले कुत्ते ने काटा है। थानेदार को फिर कुछ कमाई के आसार बनते दिखने लगे तो उसी आदमी से बोले भाई तुम खडे क्यूं हो, आराम से बैठो। अभी उसके मालिक को लाकर हवालात में बन्द किये देते हैं। फिर सिपाही को बुला कर पहले वाला आदेश दौराहा दिया। थोड़ी देर बाद सिपाही ने आकर कहा, सर वो दूसरा कुत्ता तो मंत्री जी की पत्नी का है। यह सुनते ही थानेदार को फिर से गुस्सा आ गया और उस जख्मी आदमी को तीन चार थप्पड़ रसीद करते हुऐ गालियों के साथ सड़क पर चलने के कई तौर-तरीके भी सिखा डाले।
जौली अंकल तो सदा ही कहते है कि ऐसे लोगो के बारे में जितना भी लिखा जाए, वो शायद कम ही होगा। जरूरत है तो ऐसे हितैषी दल-बदलुओं से सावधान रहने की।    

जंगल में चुनावी दंगल

सुबह-सुबह बंदर मामा ने देखा कि गधे मियॉ बहुत ही सज-धज के शहर की तरफ भाग रहे है। बंदर ने अपनी आदतनुसार उन्हे रोकते हुए कहा कि गधे मियॉ क्या बात आज बहुत चमक रहे हो। गधे ने बंदर को डांटते हुए कहा कि तुम्हारी यह बेवजह की रोक-टोक मुझे बिल्कुल पंसन्द नही है। लेकिन तुम भी ऐसे ढीठ हो कि लाख समझाने के बावजूद भी हर किसी को नेक काम करने से पहले हमेशा टोक ही देते हो। क्या तुम नही जानते की चुनावो का मौसम आ गया है। सरकार और नेताओ ने चुनावी बिगुल बजा दिया है। मैं भी अपना नामांकन पत्र भरने के लिये शहर जा रहा  हूँ। यह सुनते ही बंदर के साथ खड़े अन्य सभी जानवरो की हंसी छूट गई।
बंदर मामा ने अपनी हंसी रोकते हुए गधे से कहा कि तुम ने चुनाव लड़ने का मन तो बना लिया है। क्या तुम्हे चुनावों के बारे में क्या कुछ ज्ञान भी है? गधे मियॉ ने चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट लाते हुए कहा, कि इन्सानो की वो कहावत 'कि घर की मुर्गी दाल बराबर' हमारे जंगल में भी बिल्कुल खरी उतरती है। तुम लोग मेरी कद्र जानो या न जानो लेकिन शहर में तो मेरा बड़ा रूतबा है।
मेरे बिना शहर के लोगो का और खास तौर से नेताओ के बहुत से काम पूरे नही होते। नेता जी का धोबी उनके सारे मैले कपड़े मेरे ऊपर ही रख कर धुलवाने जाता है। उनका माली उनके बाग-बगीचे के लिये मिट्टी भी मेरे ऊपर ही ढोता है। उनके बच्चे सारा दिन मेरे साथ ही खेलते है। और मजे की बात तो यह है नेता जी की बेटी जब कभी कोई गलत काम करती है तो उसकी मां हमेशा यही कहती है कि मै तेरी शादी किसी गधे के साथ कर दूंगी।
बंदर मामा ने गधे से कहा कि तुम क्या जानो कि चुनाव जीतने के लिये नेताओ को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते है? न तो तुम्हारी जुबान में कोई मिठास है और न ही ढंग से बात करने की तेजहीब। सबसे बड़ी मुशकिल यह भी है की तुम पढ़ना लिखना भी नही जानते। तुम मंत्री बनने का ख्वाब तो देख रहे हो, क्या तुम मंत्री पद का काम कर पाओगे? मंत्रीओ की हर बात में एक चमत्कार होता है, वो हर गुलशन में बेमौसम गुल खिलाने में माहिर होते है। उन को चाहे अपनी बात पर विश्वास हो या न हो लेकिन वो जनता को हर बार अपनी लच्छेदार बातों में उलझा कर बेवकूफ बनाने में कामयाब हो ही जाते है।
तुम तो किसी की बात सुनने से पहले ही हर किसी आने-जाने वाले को टांग मार देते हो। जबकि नेता बनने के लिये अपने विरोधी की टांग खीचने में महारत की जरूरत होती है। मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा कि तुम्हें नेताओ के बारे में और क्या-क्या कहूं और क्या न कहूं। आखिर तुम्हारे साथ मथ्था-पच्ची करने से क्या फायदा? तुम यह सब क्या समझागे तुम्हे तो हर समय जानवरो की तरह बस चारा खाने की पड़ी रहती है। ऐसे में तुम्हे कौन चुनावो के लिए टिकट देगा?
गधे से अब और बर्दाशत नही हुआ, उसने बंदर का ललकारते हुए कहा कि नेता लोग तो जनता को आकर्षित करने के लिये तो ढोल-नगाड़ो का साहरा लेते है, मुझे तो उसकी भी जरूरत नही क्यूंकि मेरी तो अपनी ढेंचू-ढेंचू की आवाज ही बहुत दूर तक पहुंच जाती है। जहां तक पढ़ाई-लिखाई का सवाल है तो जरा मुझे यह बताओ कि हमारे कितने नेता पढ़े लिखे है। अब तुम कहते हो कि गधो को टिकट नही देते तो जरा मुझे यह समझाओ कि फिर हमारे इतने रिश्तेदार राजनीति में कैसे पहुंच गये?
बाकी रही काम काज करने की बात तो हमारे नेताओ को कौन सा काम करना आता है। तुम क्या समझते हो कि जनता सिर्फ टांग खीचनें वालो को ही वोट देती है? सारी दुनियॉ जानती है, कि टांग का इस्तेमाल हमारी बिरादरी से बढ़ियॉ कोई नही कर सकता? अब रही चारा खाने की बात तो क्या हमारे नेताओ के ऊपर जानवरो का चारा खाने के अनेक मामले अदालतो में नही चल रहे। इतना सब कुछ होने के बाद फिर भी हमारा देश राम भरोसे चल ही रहा है। हां अगर तुम्हे मेरी उंम्र कुछ अधिक लग रही है तो मैं किसी पार्टी के युवा खंण्ड का प्रधान बन जाऊगा।
इस लेख को लिखते समय जौली अंकल की मंशा किसी के मन को ठेस पहुंचाना नही, बल्कि चुनावी तनाव को कम करते हुए महौल को हल्का-फुल्का, और खुशनुमा बनाना है ताकि चुनावो के त्योहार का अधिक से अधिक आनंद लिया जा सके।  

जय बोलो बेईमान की

बेईमान नामक जन्तु तकरीबन दुनिया के सब भागों में देखने को मिल जाता है। हमारे देश के तकरीबन हर भाग में यह काफी अधिक मात्रा में पाये जाते है। किसी भी जीवजन्तु को अच्छे वातावरण के साथ जहां अच्छा खाने-पीने को मिलता है, तो वो स्थान इनका सबसे प्रिय हो जाता है। इसीलिये शायद भारत देश इनका सबसे प्रिय ठिकाना बन गया है। यहां के अधिकतर भोले-भाले लोग आज भी सामने वाले की जुबान पर जल्दी से विष्वास कर लेते हैं। इसी कमजोरी का फायदा बेईमान नामक जन्तु को सबसे अधिक मिलता है। कल तक पीर-फकीर और साधु-संतो के नाम से जाने वाला हमारा देश आज कुछ बेईमान लोगो के कारण विदेशों में अपनी साख खोता जा रहा है।
आजकल यह प्रजाति हमारे देष के बडे शहरों में बड़ी मात्रा में पाई जाने लगी है। हालांकि हमारे यहां बहुत से प्रदेश है, जिनका वातावरण, खान-पान, रहन-सहन सब कुछ बिल्कुल अलग अलग है। इसी कारण से इन लोगाें का रंग-ढंग तो कई बार दिखने में अलग हो सकता है, लेकिन बुनियादी गुण सबमें एक जैसे ही होते हैं। इन सबका उद्देश्य सीधेसादे लोगों को अपनी लच्छेदार बातों में उलझाकर अपनी ओर आकर्षित करना होता है। भारत में इनके कामयाब होने का एक मुख्य कारण मांग और आपूर्ति का सिध्दान्त है। हमारे यहां जनसंख्या अधिक होने के कारण हर चीज की मांग तो बहुत है, परन्तु सरकार के सदियों पुराने काम करने के ढंग और टेढ़े सीधे कानूनों की वजह से उस की पूर्ति नहीं हो पाती। हर सरकारी काम में जरूरत से अधिक समय लगना इनके काम को और भी आसान बना देता है। महीनों का काम कुछ दिनों और घंटो में करवाने का झांसा देकर यह अपने षिकार को आसानी से अपने जाल में फंसा लेते है।
आपको अपने बच्चे के किसी स्कूल में दाखिले की दिक्कत हो, राशन कार्ड, डाईविंग लाईसेंस या पासपोर्ट बनवाना हो, गैस का कन्षेक्शन लेना हो, या घर की कोई भी समस्या हो, ऐसे लोगोें के पास ऐसे सब काम करवाने के लिये अलादीन का चिराग हमेशा तैयार रहता है। यह जन्तु बाकी सब जगह के साथ-साथ नेताओं के आसपास, सरकारी दफतरों एवं कोर्ट कचहरियों के बाहर सुबह से ही कई किस्मोें में मिल जाते हैं। अपने षिकार को यह काफी दूर से ही भांप लेते हैं, और मिलते ही इस प्रकार से आपका स्वागत करेंगे, कि इस दुनिया में इन से सगा तो आपका कोई और है ही नहीं। आपकी पूरी बात सुने बिना ही उसके सैकड़ोें हल आपके सामने रख देते हैं। ऐसे में इनका षिकार भी अपना हाथ रोके बिना अपनी जेब का मुंह इनके लिये खोल देता है। ऐसे लोग आम जनता को तो बेवकूफ बनाते ही हैं, चालर्स शोभराज, नटवर लाल जैसे बेईमान भारत की सबसे बड़ी जेल के अधिकारियों को कई बार चूना लगाने के कई बार करिष्में दिखा चुके हैं।
आम आदमी के लिये इनको पहचानना बहुत ही कठिन काम है, यह हर रंगरूप में हमारे इर्दगिर्द मडंराते रहते है, कभी किसी कम्पनी के एजेंट, कभी राजनेता-अभिनेता के नजदीकी रिष्तेदार बनकर और अब तो इन बेईमानों की कई किस्में साधु-संतो और ज्योतिषियों के रूप में भी देखने को मिलती है। यह लोग अपने एक आशीर्वाद और कुछ साधारण से पत्थर आपको सोने के भाव बेच कर आपको जन्म-जन्म के लिये कष्टो से मुक्त करवाने का दम भरते हैं। चाहे उन का अपना जीवन नारकीय ढंग से ही बीत रहा हो।
बेईमान जाति के यह जन्तु सचमुच बहुत होशियार नस्ल के होते हैं, ऐसी बात नहीं है। यह हमारे आत्मविश्वास की कमी, अन्धविश्वास और किसी काम को खुद न करने की कमजोरी का नाजायज फायदा उठाते हुए हमें बेवकूफ बनाते हैं क्योेंकि हम लोग घर बैठे ही सब कुछ प्राप्त करना चाहते है, जिसकी एवजं में हम अपनी कमाई का एक मोटा भाग निकालकर इन बेईमानों का घर भर देते हैं।
जौली अंकल भी यही इशारा कर रहे है कि अब जब तक हम खुद अपने आप को संभालने की कोशिश नही करेंगे, तब तक ऐसे बेईमानों की जय-जयकार तो होती ही रहेगी। और हम सब कहते रहेंगे - जय बोलो बेईमान की। 

डा॰ मुसद्दी लाल उर्फ मदारी

डा॰ मुसद्दी लाल मदारी का नाम गांव के सबसे पढ़े-लिखे लोगों में बड़ी इज्जत से लिया जाता है। वो कहां से और कितना पढ़े हैं, इसके ऊपर अभी भी जनता में शोध कार्य चल रहा है। गांवों के कुछ लोग इतना जरूर जानते हैं कि डाक्टरी की दुकानदारी शुरू करने से पहले वो किसी अस्पताल में नौकरी करते थे। वो वहां किस पद पर असीन थे, यह भी अभी तक एक गहरा राज है। इन सब बातों के बावजूद भी डा॰ मुसद्दी लाल उर्फ मदारी की दुकान धड़ल्ले से चलती है।
डा॰ मुसद्दी लाल उर्फ मदारी सिरदर्द से शर्तिया बेटा होने तक की हर बीमारी का इलाज करने में माहिर है। किसी भी बीमारी से पीड़ित कोई भी मरीज उनके पास आ जाए, वो उसे दवाई लिये बिना नहीं जाने देते। एक दिन अभी डा॰ अपनी कुर्सी पर आकर बैठे ही थे, कि एक गांव का चौधरी अपनी रोती चिल्लाती औरत को लेकर आ पहुंचा। ओ डा॰ जरा इसने भी देख, सीढ़ियों से गिर गई सै। लगता है कोई टांग की हड्डी टूट गई सै। इससे पहले कि डा॰ जांच शुरू करके चोट के बारे में पूछता, पीछे रखे रेडियो से गाना शुरू हो गया, यह क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ? गाना सुनते ही मरीज भी दर्द को भूल कर वहां साथ बैठे सब लोगों के साथ जोर से हंसने लगी।
डा॰ मदारी की दुकान लोगों के मनोरंजन और टाईमपास करने का गांव में सबसे सस्ता और बढ़िया जरिया है। एक बार एक अप-टू-डेट लड़का कोई दवाई लेने आ पहुंचा। डा॰ के ध्यान न देने पर उसने कहा लगता है, आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं चौधरी साहब का बेटा हूं। डा॰ ने चश्मा ठीक करते हुए कहा, बेटा मैं कुछ नहीं भूलता मुझे तो तेरा बचपन तक याद है। जब मैं तुम्हारे घर आता था तो घर के बाहर नाली पर बैठ कर पौटी कर रहा होता था। जहां लोग सांस भी नहीं ले सकते, तू वहां साथ में बिस्कुट खाता रहता था। एक दिन मैं तेरे पिता से बात कर रहा था और तूने अन्दर आकर अपनी मां से कहा था, मम्मी आज मैंने सात ढ़ेरियां लगाईं। तेरी मां ने कहा, बेटे गिनती नहीं करते, नजर लग जाती है। पीछे से चौधरी साहब ने गुस्सा करते हुऐ तेरी मां को कहा था, बेवकूफ उसने कोई डालरों के ढेर नहीं लगाए - गन्दगी के ढ़ेरों की बात कर रहा है। वो लडका दवाई लेना तो भूल गया और आखें नीची करके वहां से खिसकने में ही उसे अपनी भलाई नजर आई।
डा॰ मुसद्दी लाल मदारी अखबारों और मैगजीन से दादा-दादी के नुस्खे पढ़कर एक अरसे से अपनी दवाईयों की दुकानदारी चला रहे है। लेकिन कई बार मरीजों को गलत दवाई देने के साथ गलत मरीजाें के साथ पंगा भी हो जाता है। ऐसा ही एक घटना उनके साथ पिछले दिनों में घटी। गांव के थानेदार की तबीयत कुछ खराब हुई तो उन्हें भी डा॰ मदारी की याद सताने लगी। थानेदार साहब थोडी देर बाद ही डाक्टर के सामने बैठे थे। कुछ इधर-उधर की बातें करने के बाद थानेदार ने अपनी तकलीफों की लिस्ट डाक्टर को सुनानी शुरू कर दी।
डा॰ मुसद्दी लाल मदारी मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहे थे कि आज बहुत दिनों के बाद कोई अच्छा सा मुर्गा हाथ लगा है। कुछ दवाईयां जो बरसों से डिब्बो में बन्द थीं उन्हें भी आज ताजी हवा नसीब होगी। थानेदार की आधी-अधूरी बात सुन कर डाक्टर ने अपनी पुरानी आदतानुसार दवाईयां तैयार करनी शुरू कर दी। चार-पांच अलग किस्म की गोलियां और एक दवाई की बोतल थानेदार के सामने रख दी। इससे पहले की थानेदार कुछ कहता, मुसद्दी लाल की किस्मत खराब, उसने 150 रूपये फीस की फरमाईश कर दी।
डाक्टर के पैसे मांगने की हिम्मत देखकर थानेदार का खून उबलने लगा था। पूरे इलाके में आज तक किसी ने दूध-दही, राशन वाले ने भी यह गलती नहीं की थी। थानेदार को लग रहा था कि जैसे पैसे मांग कर डाक्टर ने उसे कोई गाली दे दी हो। कुछ दिन पहले जब थानेदार की मां का देहान्त हुआ था तो तेरहवीं के खाने के लिये बनिये को राषन की एक लम्बी सी लिस्ट भिजवा दी गई थी। और साथ में हिदायत दी गई की सब सामान बढ़िया होना चाहिये, थानेदार साहब की मां की तेरहवीं है। बनिये ने रूआंसा सा मुंह बना कर कहा था थानेदार साहब की कहा, यहां तो मेरी मां मरी पड़ी है। क्याेंकि वो अच्छी तरह से जानता था कि यहां से एक पैसे की भी प्राप्ति होने वाली नहीं। इतने रौब-दाब वाले थानेदार से पैसे मांग कर डा॰ मदारी ने कितनी बड़ी गलती की थी, इसका अन्दाजा उसे भी अच्छी तरह से लग चुका था।
थानेदार ने पैसे तो क्या देने थे? हां डाक्टर की डाक्टरी पर जरूर कई प्रश्न चिन्ह लगा दिये। उससे उसकी पढ़ाई और डिग्रियों के बारे मे तफतीष शुरू कर दी थी। गांव में हुई एक-दो मौतों की जिम्मेदारी भी डा॰ मदारी के ऊपर डाल दी। अब तक डाक्टर को अच्छी तरह से समझ आ गया, कि उसने जानबूझ कर मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डाल दिया है। अब उससे बचने के लिये थानेदार साहब के लिये बढ़िया से नाश्ते पानी का इन्तजाम शुरू कर दिया।
इससे पहले कि डाक्टर का नौकर नाश्ता-पानी ले कर आता, थानेदार ने डाक्टर की कमाई का हिसाब लगाना शुरू कर दिया। डाक्टर ने भी मौके की नजाकत को समझते हुऐ पिछले 15-20 दिनों की सारी कमाई थानेदार की जेब में डाल दी। अपनी दुकानदारी को आगे भी ठीक से चलता रखने के लिये कई बार माफी भी मांगी। जहां आजकल मुन्ना भाई जादू की झप्पी से लोगों का इलाज करता है। वही हमारे प्रिय डा॰ मुसद्दी लाल मदारी के अधिकतर मरीज तो इनकी चुलबुली हरकतों से ही ठीक हो जाते हैं। सीखने वाले अपनी हर भूल से कुछ न कुछ जरूर सीखते है। जौली अंकल का मानना है कि ऐसे झोला छाप डॉक्टरो से दूर रहने का सबसे बढ़ियां तरीका है कि आप हंसकर अपने दुखों को दूर कर सकते है, परन्तु रोने से तो आपके दुख और बढ़ते ही है। 

जन्मदिन

बधाई हो, बधाई हो जन्मदिन की तुम को, जन्मदिन तुम्हारा मिलेगे लड्ड् हमको। बरसों पहले लिखे गये इस गाने के अलफाज आज भी ताजे फूलों की तरह महक रहे है। हम सभी के लिये बाकी सभी दिनों से एक दिन बिल्कुल अलग होता है और वो होता है हमारा जन्मदिन। यह समझते हुए भी कि जिंदगी से एक-एक दिन कम होते हमारे हर जन्मदिन पर हमारा एक साल और कम हो जाता है। हम हर जन्मदिन कुछ नया सा महसूस करते है, क्योंकि हमारा हर जन्मदिन हम सभी के लिय ढेरो खुशीयां लेकर आता है। हम सभी के लिये बाकी सभी दिनों से एक दिन बिल्कुल अलग होता है और वो होता है हमारा जन्मदिन।
जब हम छोटे होते है उस समय तो जन्मदिन एक त्योहार की तरह मनाया जाता था। जन्मदिन आते ही घर में खुशी का महौल बन जाता है। घर को रंग-बिरंगी झंड़ीयो और गुब्बारों से सजाया जाता है। चारों और से बड़े बर्जुगो के आर्शीवाद के साथ बधाईयां और ढ़ेरो शुभकामनाऐं मिलती है। सभी रिश्तेदारो से भरपूर प्यार के साथ मन पंसद तोहफे भी मिलते है। पहले जहां हर कोई अपने जन्मदिन की शुरूआत भगवान का आर्शीवाद लेकर करते थे वहीं आज के बदलते फैशन ने इस मर्यादा की जगह कल्ब और होटलों में बड़ी-बड़ी थीम पार्टीयों में तबदील कर दी है। जन्मदिन पर बनने वाली घर में बनी खीर और हलुवे की जगह अब मंहगे केक ने ली है।
यह समझते हुए भी कि जिंदगी से एक-एक दिन कम होते हमारे हर जन्मदिन पर हमारा एक साल और कम हो जाता है। हम हर जन्मदिन पर कुछ नया सा महसूस करते है, क्योंकि हमारा हर जन्मदिन हमारे लिये ढेरो खुशीयां लेकर आता है। कोई अमीर हो या गरीब घर में बच्चे के जन्म लेते ही पूरे परिवार में हर किसी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है। अपनी स्मर्थानुसार गली मुहल्ले और रिश्तेदारों में मिठाई और लड्डृ बांटे जाते है। खासतौर से जब कभी किसी परिवार में लड़के का जन्म होता है तो सभी दूर नजदीक के रिश्तेदार जीवन में आगे बढ़ने और बुलंदिंयों को छूने का आर्शीवाद देते नही थकते। बच्चे के पैदा होते ही उसके भविष्य को जानने के लिये किसी न किसी अच्छे ज्ञानी पंडित जी से उसकी जन्मपत्री और जन्मकुंडली बनवाई जाती है। हर मां-बाप को यही जानने की इच्छा रहती है कि उनके बच्चे के साथ आने वाले समय में क्या अच्छा या बुरा घटने वाला है ताकि उसे समय से पहले ही जानकर कुछ न कुछ उपाय कर दिया जायें।
हवा और नदी से भी तेज भागता समय जल्द ही हमें एक के बाद एक कई जन्मदिन दिखा देता है। एक कहावत तो आपने भी जरूर सुनी होगी कि छुरी खरबूजे पर रखो या खरबूजा छुरी पर कटना तो हर हाल में खरबूजे को ही होता है। बिल्कुल ठीक उसी प्रकार शादी के बाद जन्मदिन आप का हो या आपकी बेगम सहिबा का तोहफा लेने का हक सिर्फ आपकी बीवी का ही रह जाता है। जैसे-जैसे आदमी बड़ा हो जाता है, बाल पकने शुरू हो जाते है तो जीवन थोड़ा सुस्त होने लगता है। हर जन्मदिन पर स्मरण शक्ति कुछ कम होने लगती है। जन्मदिन की खुशीयों के साथ जिम्मेदारीयां भी बढ़ने लगती है, हालिंक बढ़ती उंम्र में जिम्मेदारीयां निभा कर भी एक अजीब सा सुकून मिलता है।
कुछ गरीब परिवारो के बच्चे जिन्हें अपने जन्मदिन के बारे में तो कुछ मालूम नही होता, परन्तु अपने इलाके में रहने वाले कुछ रईस आदमीयों के जन्मदिन का सारा साल इंतजार रहता है। उन्हें इस दिन की आस केवल इसलिये रहती है कि उस रईस के जन्मदिन की पार्टी के बचे हुऐ स्वादिष्ट खाने में से शायद उन्हें भी कुछ थोड़ा बहुत खाने को मिल जायें। जन्मदिन की इस खुशी के मौके पर खुलें आसमान के नीचे कड़कती ठंड से बचने के लिये कोई गर्म कपड़ा या कंबल नसीब हो जाएं। किसी की जिंदगी में सबसे दुख के पल वो होते है जब कोई अपने ही जन्मदिन पर अपने प्रियजनों को गरीबी, लाचारी या इलाज के अभाव में छोड़ कर चला जाता है।
सबसे भाग्यशाली वे लोग होते है जिन्हें अपने जन्मदिन पर बुजुर्गों का आशीर्वाद  प्राप्त होता है। हमारा घर ही संस्कारों की पहली पाठशला होता है और हमारे माता-पिता प्रथम गुरू। जीवन तो हर कोई जीता है लेकिन हमारा जीवन तभी सार्थक है, जब उसमें परोपकार शामिल हो। हमें अपने हर जन्मदिन पर कोई न कोई एक नेक काम करने का संकल्प जरूर लेना चहिये। महापुरषो के अनुसार किसी का बुरा ना करने का संकल्प भी एक नेक कार्य माना जाता है। जहां तक हो सके न सिर्फ अपने जन्मदिन पर बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में हमें गरीब और लाचारों की मदद करनी चहिये। क्योंकि कहते है कि जो इंसान किसी जरूरतमंद की मदद करता है, उसकी मदद भगवान करते है। समय की धारा के साथ बहते हमारे हर जन्मदिन के साथ जीवन में कुछ न कुछ उतार-चढ़ाव आते ही रहते है, परन्तु हिम्मत रखने वालो की कभी हार नही होती, हार केवल उन की होती है, जो जंग के मैदान में गिर कर उठने की हिम्मत नही करते। परिस्थितियों कैसी भी हो हर हाल में संतुलन बनाये रखना ही प्रसन्नता की चाबी है। जौली अंकल आप सभी को आपके आने वाले जन्मदिन पर ढेरों बधाईयां देते हुए इतना ही कहते है कि आप जिस और भी कदम बढ़ायें वहां सदा ही फूलों की बरसात हो, आपके जीवन में आने वाला हर जन्मदिन खुशी से बीते। 

बच के रहना रे बाबा

आज पप्पू का बारहवीं कक्षा का नतीजा आने वाला है, और वो अभी तक घोडे बेच कर सो रहा है। पूरे घर में तनाव का वातावारण है। पप्पू के पिताजी मन ही मन चिंता से मरे जा रहे थे। क्योेंकि इससे पहले भी पप्पू बारहवीं कक्षा में दो बार फेल होकर अपने घरवालों को अच्छे खासे झटके दे चुका है। थोड़ी देर बाद ही कम्पूयटर से नतीजा पता करवाया गया, तो वोही हुआ, जिसकी सारे परिवार को चिन्ता थी। सारे परिवार की मेहनत, मिन्नतें और प्रार्थना भी पप्पू के नतीजे के साथ फेल हो गई थी। पप्पू के पिता बांकें बिहारी के शरीर में से तो जैसे किसी ने जान ही निकाल ली हो।
इतने में सारे मुहल्ले के सब से बड़े हितैषी मुसद्दी लाल जी सैर करते हुए वहां आ पहुंचे। घर में छाये मातम को देख कुछ देर तो चुप रहे। लेकिन ज्यादा देर चुप बैठना उनके बस की बात नहीं है। वो तो किसी का हाल चाल पूछने अस्तपताल गये हों या किसी की मैयत पर, वहां भी कभी चुप बैठे उनको किसी ने नहीं देखा, तो यहां कैसे चुप बैठ सकते हैं? माहौल की गम्भीरता को भांपते हुऐ उन्हाेंने सब परिवार वालों को तसल्ली देनी शुरू की, ज्यादा पढ़ने लिखने से भी कुछ नहीं होता, सरकारी नौकरी तो आजकल किसी को मिलती नहीं, और प्राईवेट कम्पनियों वाले तो दिन रात बच्चों का खून चूसते है। आजकल बहुत से ऐसे काम है जिनमें बिना पढ़ाई के लोग लाखों रूपये कमा रहे हैं। अपनी आदतानुसार मुसद्दी लाल जी बिना मागें ही अपनी सलाह और मषवरे का पिटारा खोल कर बैठ गये।
बांकें बिहारी जोकि पप्पू के नतीजे से बिल्कुल टूट चुके थे, आंख उठा कर मुसद्दी लाल की तरफ ध्यान दिये बिना न रह सके। इससे पहले कि मुसद्दी को जाने के लिये कहते, पप्पू की मम्मी गर्मा-गर्म चाय की प्याली मुसद्दी लाल को थमाते हुऐ बोली भाई साहब हमारे पप्पू के लिये ऐसा क्या काम हो सकता है। जो वो बिना ज्यादा पढ़ाई-लिखाई के कर सकता है। भाभीजी अगर आप दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची देखो तो उनमें से अधिकतर लोग पढ़ाई में फिसड्डी ही रहे हैं।
दुनिया का सबसे अमीर आदमी बिल-गेट जो शायद कुछ कम्पूटयर के साफ्ट्वेयर वगरैह बनाता है, उसे तो बार-बार फेल होने पर स्कूल से निकाला गया था। सचिन, जो आज करोड़ों रूपये का मालिक है, वो अगर पढ़ा लिखा होता तो जरूर किसी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी ही कर रहा होता। मुसद्दी लाल जी ने चाय की चुस्कियां लेते हुए अपनी बात जारी रखी। भाभीजी अब आप यह मत कहना, कि आप हमारे देष के राष्ट्र्रपति ज्ञानी जैल सिंह के बारे में कुछ नहीं जानती, वो तो सिर्फ चार जमात तक ही स्कूल गये थे। उससे आगे तो पढाई की रेखा उनके नसीब मे थी ही नहीं। अब इससे ऊंचा पद तो अब हमारे देष में कोई है नहीं, जहां तक हमारे पप्पू ने पहुंचना है।
मुझे समझ नहीं आता आजकल मां-बाप हर समय डंडा लेकर बच्चों के पीछे क्यूं पड़े रहते हैं। आखिर नसीब भी तो कोई चीज है या नहीं? दुनिया के अधिकतर वैज्ञानिकों ने जो भी आविष्कार किए हैं, वो स्कूलों में बैठ कर नहीं पढे। यहां तक की महात्मा बुद्व को भी ज्ञान किसी स्कूल या कालेज में नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे बैठने से प्राप्त हुआ था। यह बात तो सारी दुनिया जानती है। बांकें बिहारी जो मुसद्दी लाल की बिना सिर पैर की बातें सुनकर अन्दर ही अन्दर कुढ़ रहे थे, थोड़ा गुस्से में बोले तुम मेरे पप्पू को बिना पढ़ाई के बिलगेट या किस देश का राष्ट्रपति बना सकते हो। क्या हमारे देश में सारे पढे लिखे लोग बेवकूफ है। सरकार हर साल करोड़ों रूपये खर्च करके नये स्कूल-कालेज किसके लिये बनवाती है। क्या बडे अफसर, डाक्टर, इन्जीनियर बिना पढ़ाई के ही ऊचें पदों पर पहुंच जाते है?
मुसद्दी लाल ने बांकें बिहारी के टेडे तेवरों को समझते हुऐ वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी। क्याेंकि उसके पास इन सब बातों को कोई जवाब नहीं था। मुसद्दी लाल जैसे तो अपनी झूठी षान और समय पास करने लिये किसी के भी भविष्य को अंधकार में ढ़केल कर गुमराह कर सकते हैं। फिर उनका जीवन कितना भी दुखमयी और दर्दनाक क्यूं न हो जाए? इससे ऐसे लोगों को क्या फर्क पडता है?
जौली अंकल का तर्जुबा तो यही कहता है कि जीवन में तरक्की के लिये अधिक से अधिक पढ़ाई और कड़ी मेहनत ही सफलता की असली कुंजी है। इसलिये समझदारी इसी में है कि सदा मुसद्दी लाल जैसों से बच के रहना रहना रे बाबा।   

उज्जवल भविष्य

एक गधा अपने एक साथी को रोज पिटता देख उससे बोला कि तेरा मालिक तो बहुत ही कठोर और निर्दयी है। सारा दिन तुझ से ढेरो काम लेने के बावजूद रोज तुझे डंडो से मारता है। तू ऐसे मालिक की नौकरी छोड़ कर कही दूर क्यूं नही चला जाता। उस गधे ने कहा कि यहा इस घर में मेरा भविष्य बहुत उज्जवल है। अब पहले गधे ने हैरान होते हुए पूछा कि तुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि इसी घर में तेरा भविष्य उज्जवल है। पहले गधे ने अपने दोस्त को समझाते हुए कहा कि असल मे मेरे मालिक की एक बहुत सुंदर लड़की है और वो आये दिन घर के काम काज में कोई न कोई गलती कर बैठती है। उसकी हर बेवकूफी पर मेरा मालिक एक ही बात कहता है कि मैं एक दिन तेरी शादी किसी गधे से कर दूंगा। अब इस परिवार की जान-पहचान में मेरे से करीबी गधा तो और कोई है नही।
जो कुछ हमारे पास है, हम उसे छोड़ किसी नई राह पर अपने भविष्य को उज्जवल रूप में देखते है। गांव में रहने वालों को शहर में और शहर की युवा पीढ़ी को अपना भविष्य विदेशों में उज्जवल दिखाई देता है। जहां देश का एक बड़ा वर्ग उज्जवल भविष्य के लिये देश की बागडोर को युवा पीढ़ी के हाथों में सोंपने की वकालत करता है, वही दूसरी और कब्र में पैर लटकाऐं हमारे नेता लंबी उंम्र के तर्जुबे की आड़ का साहरा लेकर गद्दी का मोह त्यागनें या यूं कहिये कि उसकी कुर्बानी देने को तैयार नही। देश की जनता यदि प्यार से मिलजुल कर तरक्की की राह पर चलने का थोड़ा भी प्रयत्न करती है, तो हमारे नेता निजी स्वार्थ हेतू उन्हें धर्म, भाषा, जाति के आधार पर बांट कर अपने भविष्य को सुनहरा बनाना चाहते है।
मां-बाप बच्चो को डॉक्टरी, इंजीनीयरिंग एवं वकालत आदि की पढ़ाई करवा कर उनके भविष्य के साथ अपने बुढ़ापे को उज्जवल देखने की तंमत्रा मन में सजोयें हुए अपने जीवन की सारी कमाई उन पर लगा देते है। परन्तु तेजी से बदलते समाज में आजकल बेटीयां तो शादी के बाद मां-बाप के घर से विदा होती है लेकिन बेटे तो शादी से पहले ही आजाद और स्वतंत्र जीवन जीने की मंशा मन में लिये मां-बाप का साथ छोड़ जाते है।
कई बार अचानक भूंकप आ जाने से जहां लाखो लोग मर जाते है, वही कुछ लोगो के लिये यह वरदान बन जाता है। एक बार एक बड़े भूंकप के कारण जेल की इमारत गिर पड़ी। एक कैदी जिस को चंद दिन पहले ही मौत की सजा सुनाई गई थी, वो तुंरत वहां से भाग निकला और फांसी के फंदे पर लटकने से बच गया। इसी तरह शमशान घाट वाले जिन लोगो का कई दिनों से धंधा मंदा चल रहा था, इतने सारे लोगो की इक्ट्ठी मौत से वो भी खुश होकर भगवान का शुक्रिया अदा करने लगे।
हमारे देश में करोड़ो लोग सारा साल इसलिये देवी देवताओ को पूजा अर्चना द्वारा खुश करने में जुटे रहते है कि भगवान उन्हें इस बार सूखे, बाढ़ और भूकम्प से होने वाले जान-माल से उनकी सुरक्षा करे। बरसों से कमाई हुई खून पसीने की कमाई और प्रियजनों की जान बच सके। लेकिन सरकारी तंत्र से जुड़े कुछ अधिकारीयो और चंद भ्रष्ट नेताओ को इस तरह की त्रसादी में ही अपना भविष्य उज्जवल दिखाई देता है। जब कभी देश पर इस तरह का कोई संकट आता है तो यह लोग इसी आस में रहते है कि अब देश-विदेश से करोड़ो रूप्यों की राहत आयेगी, और मुहावजे का सारा पैसा इन्ही लोगो के द्वारा ही जनता तक पहुंचाया जायेगा। जनासाधरण की तबाई का मंजर ऐसे लोगो को एक त्यौहार के सामान लगता है। यह मन ही मन भगवान से प्रार्थना करते है कि इसी तरह के भूचाल और बाढ़ हर साल अच्छे से भेज दिया करो।
ऐसे ही हादसे में एक व्यापारी की मौत पर उसका दोस्त कुछ देर आंसू बहाने के बाद घर जाकर अपनी बीवी से बोला की चलो अच्छा हुआ, कि यह मर गया। पत्नी ने परेशान होते हुए कहा कि आप ऐसा क्यों कह रहे हो वो तो आपका सबसे अच्छा मित्र था। आऐ दिन हर दुख-सुख में तुम्हारा साथ निभाता था। पति ने जवाब दिया कि मैने उससे पांच लाख रूप्ये व्यापार के लिये उधार ले रखे थे, अब वो बार-बार पैसे लोटाने के लिये तकाजा करता रहता था। झुगी-झोपड़ी और सड़क पर जीवन व्यतीत करने वाले जो दिन रात मेहनत करके भी अपने बच्चो का पेट ठीक से नही भर पाते उन लोगो के जीवन में तो रोज ही भूचाल आते है। ऐसे लोगो का अपनी बेटी के हाथ पीले करने की फिक्र में जवानी में ही अपना चेहरा पीला हो जाता है।
सबसे बड़ी हैरानगी की बात तो यह है कि मनुष्य प्राणियों को यम के पास जाते हुए रोज देखता है और फिर भी ऐसे कुर्कम करने से नही डरता। वह लोग यह बात क्यूं भूल जाते है कि परोपकार से व्यक्ति को आनंद, सुख व वैभव की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।
जौली अंकल तो सभी को सदा एक ही बात समझाते है कि ईमानदारी कभी किसी कायदे कानून की मोहताज नही होती। ईमानदार व्यक्ति से सदा सभी लोग खुश रहते है और उसका भविष्य सदा ही उज्जवल रहता है।     

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

गोल माल

मिश्रा जी ने कनाड़ा में पढ़ाई कर रहे अपने बेटे की आवाज जैसे ही फोन पर सुनी तो खुशी से उनका मन झूमने लगा। बात करते हुए जब उनके बेटे ने कहा कि उसने वहां शादी के लिये एक लड़की पंसद कर ली है, तो मिश्रा जी के चेहरे से सारी खुशी एक पल में गायब हो गई। जब बेटे ने जिद्द करते हुए कहा कि पापा शादी तो मैं इसी लड़की से करूंगा तो उन्होने अपने लाल को गुस्सा करते हुए कहा कि तुम ने वहां की लड़की में ऐसा क्या देख लिया, जो हमारे देश की लड़कियों में नही है? बेटे ने कहा कि इसकी आखें बहुत सुंदर है। अब मिश्रा जी ने बेटे को डांटते हुए कहा कि तू क्या दो आखों के लिये सारी की सारी लड़की घर ले आयेगा। जब मिश्रा जी को लगा कि उनकी दाल नही गल रही तो उन्होने बेटे को समझाया कि फिर वापिस आते समय एक नही दो बहुऐं लेकर आना। बेटे ने कहा कि दूसरी बहू किस के लिये? मिश्रा जी उसे समझाया कि तू क्या इतना भी नही जानता कि विदेश से कोई भी अच्छी सुंदर चीज लेकर आओ, एक तो हमारे यहां कस्टम वाले ही रख लेते है।
सरकारी विभाग कोई भी हो, चाहे कस्टम, सैल्स-टैक्स, इंकम टैक्स, नगर निगम, ट्रासपोर्ट या अन्य कोई सरकारी एजैंसी। हर तरफ आपको कुछ न कुछ गोलमाल और घपलों की महिमा देखने को जरूर मिलेगी। इतना तो हम सभी जानते है कि जन्म से तो कोई भी भ्रष्ट नही होता, अब हमारे देश का वातावरण और फिज़ा ही किसी को भ्रष्ट बनने के लिये मजबूर कर दे तो उसमें बेचारे हमारे सरकारी बाबूओं का क्या दोष? स्कूल में दाखिले से लेकर, नौकरी का फार्म जमा करवाने तक हर जगह रिश्वत कहो या सुविधाशुल्क चुकाना पड़ता है। अगर आप का नसीब बहुत अच्छा है और आपको किसी सरकारी विभाग में दमाद बनने का मौका मिल ही जाये तो पिछला सारा हिसाब ब्याज समेत जनता से वसूलने का आपका हर हक बिल्कुल जायज बनता है।
हमारे देश में हर योजना और परियोजना को अमली जामा पहनाने का जिम्मा किसी न किसी सरकारी एजैंसी के पास ही होता है। टैंडर लेने से लेकर बिल पास करवाने तक हर काम के लिये लक्ष्मी जी का साहरा लेना पड़ता है। नेता लोगो को भी इस सारे खेल में एक मोटी रकम मिलना लगभग तय ही होता है। इसी के चलते नेता लोग कोई भी फैसला समय पर नही लेते और नतीजतन एक-दो साल में पूरा होने वाले काम को बरसों इंतजार करना पड़ता है। जैसे-जैसे देरी से लागत में बढ़ोतरी होती जाती है, हर किसी को कमीशन के हिस्से में मोटी रकम दिखाई देने लगती है। कुछ अफसरों के पेट तो इतने बड़े हो चुके है कि वो सरकारी अमानत में खयानत करने से भी नही चूकते। मौका मिलते ही एक से बढ़ कर एक घपला करने की तो हमारे सरकारी दफतरों में जैसे हौड़ सी लगी है।
यदि सरकारी बाबूओं को इतना सब कुछ करने की छूट सरकार ने दे रखी है तो देश के पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं को दिन दहाड़े औरतो के पर्स और चैन छीनने का पूरा हक बनता है। अब जो लोग इस धंधे में नेताओ और पुलिस वालो के साथ भागीदारी में काम करते है उन्हें तो बर्जुगो को लूटना, नकली दवाऐ बनाने और बेचने से लेकर छोटी बच्च्ीयों के साथ दुष्कर्म करने से कौन रोक सकता है? जब-जब किसी बलात्कार या घटिया दवाओ एवं शराब से मौत का मामला सामने आता है, तो मंत्री लोग जनता को चुप करवाने के लिये झट से सरकारी खज़ाने का मुंह खोलते हुए मुहावजे का ऐलान करने को तैयार रहते है। ऐसे दोषी लोगो के लिये हमारे मंत्रीगण दोस्ती की सभी पंरम्परायें निभाते हुए सरकारी कर्मचारीयों पर इतना दबाव बना देते है कि कोई अफसर चाह कर भी उनके खिलाफ कुछ नही बोल पाता।
एक बात जो हम सभी के गले ठीक से नही उतरती वो यह है कि जहर से भरी नकली दवाऐं बनाने वालें अपनी याददाश्त बढ़ाने के लिये कभी कोई दवा क्यूं नही बनाते? ऐसे लोग अक्सर यह भूल जाते है कि यही दवाऐं बाजार से होते हुए एक दिन उनके अपने प्रियजनों की जान को भी खतरे में डाल सकती है। कभी गलती से संसद या विधान सभा में कोई ऐसा मसला उठ ही जाऐ ंतो सत्ता पक्ष और विपक्ष में हाथापाई तक की नौबत देखने को मिलती है। ऐसे सभी समाचारों को मीडियां वाले अपनी टी.आर.पी. बढ़ाने के चक्कर में हर प्रकार के मिर्च मसालों के साथ दर्शको के सामने ऐसे परोसते है कि कोई भी टी.वी देखने वाला एक पल भी उससे दूर नही जा सकता, इसी के फलस्वरूप विज्ञापनों की बरसात होने लगती है।
मजाक की बात को छोड़ कर यदि हम इन मसलों पर गंभीरता से विचार करे तो एक ही बात सामने आती है कि यदि अब भी सरकार इस भ्रष्टाचार के गोलमाल को खत्म करने के लिये जल्द कोई प्रयास नही करती तो तेजी से प्रगित की और बढ़ता हुआ हमारा देश बर्बाद हो जायेगा।
जौली अंकल तो खुद इस बात को मानते है कि हमें वैसी ही सरकार मिलती है जिसके हम पात्र है। जब हममें सुधार आ जायेगा तो सरकार में भी अपने आप सुधार हो जायेगा। इस बात से तो आप भी इंकार नही कर सकते कि घपलों के इस गोलमाल को मिटाऐं बिना अब देश को तरक्की की राह पर और आगे चलाना अंसभव होता जा रहा है।   

अपने लिये जीये तो क्या जीये.......

आज हम सब बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहे है। एक तरफ जहां हम सब लोग स्वार्थी होते जा रहे है, दूसरी और हमारी सरकार अपनार् कत्तव्य निभाने में पूरी तरह से नाकाम होती जा रही है। अब चाहे मुद्दा मंहगाई, भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, अश्लीलता, बेरोजगारी या जनसंख्या रोकने का हो। मां-बाप अपने बच्चो को काबू करने में असमर्थ, संतान अपने अभिभावको को आत्म सम्मान देने में असमर्थ, लड़कियॉ पूरे कपड़े पहनने में असमर्थ, लड़के शरीफ बनने में असमर्थ, छात्र एवं छात्रऐं शिक्षा का सही उपयोग करने में असमर्थ, एक समय सोने की चिडियॉ कहलाने वाला देश भारत आज जनसाधारण को दो वक्त की दाल रोटी देने में असमर्थ होता जा रहा है।
यदि हम सब असमर्थ है तो समर्थ समाज बनाने के लिए हमें अपने घर से ही पहल करनी होगी क्योंकि कोई भी बाहर से आकर हमारी मदद नही करेगा। सफलता किसी की जागीर नही होती है। सही निर्णय और सही साधन के दम पर कोई भी व्यक्ति संपूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। जरूरत है तो केवल दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास, पूर्ण समर्पण, एकाग्रता, सही सोच एवं सही लक्ष्य की। प्रकिृत ने मानव को विकसित दिमाग दिया है। इसके सही इस्तेमाल से मनुष्य अपने जीवन में सार्थक बदलाव ला सकता है। अगर मन में निष्ठा और नि:स्वार्थता हो तो लक्ष्य तक पहुंचने में कोई ताकत आपको नही रोक सकती।
किसी भी नजर से देखे तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पूरी दुनियॉ दो भागो में बंटी हुई है। सुख दुख, अमीर-गरीब, नफा नुकसान, हंसना रोना, रात-दिन आदि। हर इन्सान सदा फूलों जैसी महक के साथ सुखमई जीवन जीने की कामना करता है। उसे कांटों से बहुत डर लगता है। अगर हमें जीवन में फूलो की महक चहिये, तो हमें काटों से भी दोस्ती करना आना जरूरी है। हमें अपनी सोच बदलने के साथ युवाओं और छोटे बच्चो को बचपन से ही सामाजिकर् कत्तव्यों, नैतिकता और धर्मिक संस्कारो के बारे में उन्हे समझाने-सिखाने की जरूरत है।
कोई भी नेक काम करने के लिये किसी दल से या किसी राजनीति पार्टी से जुड़े होना जरूरी नही है। आप अपने घर के सदस्यों या मुहल्ले के चंद दोस्तो के सहयोग से समाज को बदलने का सपना पूरा कर सकते है। आज के समय में ऐसे लोग ही समाज की तस्वीर को बदल सकते है। जरूरत है तो सिर्फ ईमानदारी से पूरी मेहनत और लगन के साथ रचनात्मक काम करने की। कुछ समय के बाद ही आप देखेगे कि आपका नाम नही काम बोलेगा। जैसा की हम सब जानते है कि जब बाग में फूल खिलता है तो उस फूल को किसी से यह कहने नही जाना पड़ता कि मेरे पास सुन्दरता और खुशबू है, उसकी महक ही चारो और यह संदेश पहुंचा देती है, कि बाग में सुन्दर फूल खिले हुऐ है। हो सकता है, कि शुरूआत में आपको कुछ परेशानीयों का सामना करना पड़े लेकिन एक बात हमेशा याद रखो कि पथ्थर पर भी लगातार पानी डालते रहो तो एक दिन उसमें भी सुराख हो जाता है।

जहां तक हो सके, अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर दूसरो के दुख और परेशानीयों के बारे में भी कुछ सोचने का प्रयत्न करे। कुदरत के नियम के मुताबिक आपके ध्दारा दी हुई हर चीज लौट कर वापिस आपके पास ही आती है। उदारण के तौर पर समुंद्र में कुछ भी डालो, कुछ ही देर मे वो सब कुछ वापिस आपके पास ही आ जाता है। आप एक बार किसी को थोड़ी सी खुशी दोगे तो कुदरत के इस नियम के मुताबिक यह दोगुनी होकर आपके पास आयेगी। एक बार यदि आप हिम्मत का पहला कदम आगे बढ़ायेंगे तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद स्वयं ही मिल जायेगी।
जौली अंकल तो हमेशा ही केवल अपने लिये न जी कर दूसरो के प्रति कुछ करने के लिये प्रेरणा देते हुए कहते है कि अपने लिये तो हर कोई जीता है, सबके प्रति भाई-भाई की दृष्टि रखने से ही आप सदा प्रेमयुक्त रह सकेंगे। एक बार किसी और के लिये जी कर देखो, फिर आप महसूस करेगे कि सच्ची खुशी क्या होती है? क्या आप जानते है कि मुस्कुराना ही संतुष्टि की असली निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो। यह मुस्कराहट आपको तभी नसीब हो सकती है जब आप सिर्फ अपने लिये न जी कर किसी दूसरे के लिये जीना शुरू करो।        

जायें तो जायें कहां

मुसद्दी लाल जी को अपने बाजू के थोड़े से दर्द को ठीक करवाने के लिये आज अस्पताल में भर्ती हुए लगभग दो महीने होने वाले है। इसी दौरान जमाने और अपनी उंम्र की परवाह किये बिना सुबह-शाम एक सुदर सी नर्स को निहारते-निहारते वो मन ही मन वो उसे चाहने लगे थे। घर-परिवार और समाज के बंधनो को देखते हुए वो इतनी हिम्मत नही जुटा पा रहे थे कि उस नर्स के सामने अपने प्यार का इजहार कर सके। आज सुबह जब वोहि सुंदर नर्स मुसद्दी लाल जी का चैक-अप करने आई तो मौके का फायदा उठाते हुए उन्होनें झट से उसका हाथ पकड़ते हुए कह दिया कि आपने तो मेरा दिल ही चुरा लिया है। नर्स ने झटके से अपना हाथ छुड़ाते हुऐ कहा मुसद्दी लाल जी आप का यह इल्जाम तो बिल्कुल झूठा है। हमनें तो सिर्फ आपकी किड़नी ही चुराई है, आपके दिल को तो हमने हाथ भी नही लगाया।
हर तरफ से रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, कालाबजारी, लूटपाट की मार सहते-सहते अब तो आम आदमी दुख-दर्द में अपना इलाज करवाने के लिये अस्पतालों में भी जाने से घबराने लगा है कि न जाने अस्पताल से घर लौटते समय कौन-कौन से अंग गायब हो जाये। शरीर के अंगो के इलावा बच्चो तक की चोरी एक आम बात बनती जा रही है। आये दिन समाचार पत्रों और टीवी समाचारों में मानव अंगो की तस्करी करने वाले डॉक्टरो और दलालों के बारे में पढ़ कर तो यही महसूस होता है कि यह लोग भगवान से रावण बन चुके है। कोयले की दलाली करने वालों का मुंह काला होते तो जमाने ने देखा है, परन्तु मानव अंगो की तस्करी, चोरी और खून की दलाली करने वालो ऐसे खतरनाक दरिदों को क्या कहा जायें?
गैरकानूनी तरीके अपनाते हुए यह लोग अस्पताल के कर्मचारीयों की मदद से गरीब, लाचार और नशेयड़ीयों को चंद रूप्यों का लालच दिखा कर उनके शरीर से किडनी, खून और अन्य कई जरूरी अंग निकाल कर लाखों रूप्यों में रईसो को बेच देते है। इतना ही नही कुछ लोग डॉक्टरो की मिली भगत से जानवरो और नकली खून की मिलावट करके मरीजों के शरीर तक पहुंचा देते है। मानव अंगो की तस्करी करने वाले रैकेट सरेआम अपने कारनामों को अंजाम दे रहे है। इन लोगो का जाल देश की राजधानी दिल्ली से लेकर पूरे देश में फैला हुआ है। लगता है कि पैसा कमाने के लालच ने डॉक्टरो और इस पवित्र पेशे से जुड़े अन्य कई लोगो को ही मानसिक रोगी बना दिया है। यही नही कुछ डॉक्टर निजी स्वार्थ हेतू पायलटो को बिल्कुल कोरा स्वस्थता प्रमाणपत्र जारी कर देते है नतीजतन अब शराब पीकर गाड़ीया चलाने के साथ विमान उड़ाने के मामले भी सामने आ रहे है। ऐसा करने वाले डॉक्टरों को भगवान का तो क्या शैतान का दर्जा भी नही दिया जा सकता है।
आजकल हर उंम्र में जवां दिखने की लालसा ने डॉक्टरो की मोटी कमाई का काम और भी आसान कर दिया है। औरते तो सदा से ही सुदर, जवां और आर्कषक दिखने के प्रति सजग रही है। अब तो आदमी भी अपने चेहरे के आव-भावों को मनमोहक सुंदर और स्मार्ट लुक देने और अपने चाहने वालो के दिलों में अपनी छाप छोड़ने में जुटे है। चेहरे और शरीर के अन्य अंगो को और आकर्षित बनाने के लिये डॉक्टर लोग मनचाही कीमत वसूल रहे है। यह सत्य आज किसी से छिपा हुआ नही है कि कोई भी इलाज शुरू करने से पहले हर डॉक्टर मरीजो से अनेको गैरजरूरी टेस्ट करवाने को कहते है। जहां से डॉक्टर साहब को एक मोटी रकम कमीशन के रूप में मिलती है।
दुख और हैरानगी की बात तो यह है कि जैसे-जैसे पढ़ाई लिखाई बढ़ती जा रही है वैसे ही लोगो की अक्कल मोटी होती जा रही है। जितने लोग अधिक पढ़ाई लिखाई करते जा रहे है उतने ही मानसिक रोगी अधिक होते जा रहे है। हमारे नेता ऐसी घटनाओं के बारे में सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहना चाहते है। उन्हें यह नही भूलना चहिये कि समय आने पर जनता नेताओ को बिना किसी आहट के ही पटक देती है। समझदार लोग इस गुम चोट से बचते हुए सबक सीख लेते है और जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न करते है।
समस्याएं कितनी भी अधिक और बड़ी क्यूं न हो, हर समस्यां का कोई न कोई समाधान भी जरूर होता है। सिर्फ जरूरत होती है कि हर समस्या को सदा एक-एक करके ही उठाया जाये। ज्ञानी लोगो का मानना है कि थोड़े से प्रयास के साथ सब कुछ संभ्भव हो सकता है। हमारा जीवन तभी सार्थक है, जब तक उसमें परोपकार शामिल हो। चिकित्सा व्यवसाय से जुडे हर शक्स को यह याद रखना चहिये कि संसार का कोई भी धर्म सेवा के धर्म से बड़ा नही है। केवल धन से अगर सुख मिल सकते तो शायद इस दुनिया में कोई दुखी नहीं होता।
धन के लालच की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी सुख नही मिलता। भगवान रूपी डॉक्टरो से एक ही प्रार्थना है कि मेहनत करके धन कमाना कोई बुरी बात नही लेकिन लोगो के दिलों में विश्वास को कायम रखने का प्रयास करो।
ऐसे हालात में जौली अंकल के मन से तो केवल एक ही आवाज बार-बार उठती है, कि अगर दुख-दर्द से कहारहते मरीज की मदद डॉक्टर लोग भी नही करेगे तो हमे सिर्फ इतना बना दो कि एक आम आदमी जायें तो जायें कहां?