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गुरुवार, 14 जनवरी 2010

जवाबदेही

जिस तरह खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है, ठीक उसी प्रकार देश में आऐ दिन चुनावों से प्रभावित होकर जंगल के जानवरों को भी थोड़ा जोश आया कि क्यूं न हम भी अपने एक अच्छे से नेता का चुनाव करें। लेकिन जंगल के राजा बब्बर शेर का विरोध करने की हिम्मत किसी भी जानवर में न थी। हर कोई अपनी जान बचाने के लिये इस मुद्दे पर खुलकर बात करने से कतराता था। इन सारे हालात को देखते हुए बंदर मामा ने चोरी छिपे कुछ जानवरों की चापलूसी करते हुए धीरे-धीरे चुनावों का महौल तैयार कर ही लिया। एक दिन बंदर मामा ने मौका पाकर जंगल में जल्दी से चुनाव करवाये और बहुत ही चलाकी से खुद ही सबसे बड़ा नेता बन बैठा।
अगले ही दिन सुबह जंगल की सबसे खूबसूरत बकरी अन्य कुछ जानवरो के साथ बंदर मामा के पास आई और बोली की शेर मेरे प्यारे से मैमने को उठा कर ले गया है। जल्दी से कुछ करो नही तो वो उसे मार कर खा जायेगा। अब बंदर मामा में इतनी हिम्मत तो थी नही कि वो शेर के घर की तरफ मुंह उठा कर भी देख सके। अपनी इज्जत को दावं पर लगा देख सभी जानवरों को प्रभावित करने के लिये बंदर मामा कभी पेड़ की एक डाल से छंलाग लगा कर दूसरी पर चला जाता और फिर वहां से छंलाग लगा कर किसी और पेड़ की टहनी पर जा बैठता।
काफी देर यह सब कुछ देखने के बाद उस बकरी ने कहा कि बंदर मामा तुम यह सब क्या कर रहे हो? तुम जल्दी से जाकर शेर से बात करो नही तो मेरा बच्चा मुफत में मारा जायेगा। बंदर मामा ने बाकी जानवरों के सामने शेखी बघारते हुए उस बकरी को डांटते हुए कहा कि तुम देख तो रही हो कि मैं सुबह से ही तुम्हारे लिये कितनी दौड़ भाग कर रहा  हूँ। मेरी दौड़ भाग में कहीं कोई कमी है तो बताओ अब इससे ज्यादा इस केस में मैं कुछ नही कर सकता।
इस दिलचस्प कहानी को पढ़ने के बाद आपके मन में भी यह टीस तो जरूर उठ रही होगी की हमारे देश के नेताओ का हाल भी बंदर मामा जैसा ही है। देश में सूखा पड़े या बाढ़ के हालात बन जायें, मंहगाई चाहें आसमान को छोड़ मंगलग्रह को छूने लगे। टूटी सड़को और कभी खुले हुए मैन होल या नालों में गिर कर बच्चो से लेकर बर्जुगो तक की आए दिन मौते हो जायें। न जानें हमारी सरकार और उसके कर्मचारीयों पर कोई असर क्यूं नही होता?
जब कभी ऐसा कोई बड़ा हादसा हो जाता है तो लोग सरकार के खिलाफ रोष प्रकट करते हुए अपने गुस्से का इजाहर हर तरफ तोड़-फोड़ करने के साथ खुलकर दुकानों में लूट-पाट करंते है। ऐसे में आम आदमी की हालत उस मासूम बकरी की तरह हो जाती है, जो न तो खुद हिम्मत करके शेर से अपना बच्चा छुड़ा सकती है और लाचार होकर बंदर जैसे नेताओ के भरोसे रह कर खून के आंसू पीने के अलावा उसके पास कोई चारा नही बचता। हमारे देश की जनता भी इतनी महान है कि अगली सुबह तक हर बड़े से बड़े हादसे को भूल कर अपना सामान्य सा जीवन जीना शुरू कर देते है।
हम इस बात से इंकार नही करते कि हमारे राष्ट्र ने कोई तरक्की नही की, परन्तु अजादी के 63 साल बाद भी कई देशवासीओं को मूलभूत सुविधाऐं मिलना तो दूर आज भी दो वक्त की रोटी नसीब नही होती। आज दाल के भाव 100 रूप्ये किलो तक पहुंच गये है। इसके बावजूद भी देश का किसान और मजदूर आत्महत्या करने को मजबूर है क्योंकि इस सारे खेल में कमाई का मौटा हिस्सा सरकारी दलालों और बिचोलियों की तिजारीयों में चला जाता है। सदियों से हमारे देश में यह कहावत चली आ रही है कि देश का किसान ऋृण में जन्म लेता है, ऋृण में ही बड़ा होता है और ऋृण में ही मर जाता है। अब तो ऐसे हालात पैदा होते जा रहे है कि ऋृण न चुका पाने के कारण उसे आत्महत्या करनी पड़ती है। किसान के साथ मध्यम वर्ग की जनता के लिये बिजली, पानी, घर, रोजगार जैसी जरूरी सुविधायों के अभाव किसी से छिपे हुए नही है।
यदि कोई इंसान जिंदगी की बदहाली से तंग आकर आत्महत्या करने में असफल हो जाता है तो उस समय उस के लिये बाकी का जीवन जीना और भी मुशकिल हो जाता है। हमारे देश का कानून चाहे किसी की रोजी-रोटी का इंतजाम करे या न करे लेकिन किसी को अपनी मर्जी से मरने की इजाजत नही देता। हमारे कानून के मुताबिक आत्महत्या करना एक अपराध है और इसके लिये राष्ट्रपति की इजाजत लेना जरूरी है।
समय की मांग है कि हर समय अपने भाषणों में जनहित की बाते करने वाली सरकार उचित कदम उठाते हुए हर विभाग के संबंधित अधिकारीयों की जिम्मेंदारी तय करे। सरकार सिर्फ अमीरों को ही नही गरीबो की सुरक्षा के लिये भी उचित प्रंबध करे, यदि वो ऐसा नही करती तो आने वाले समय में किसी वक्त भी हालात बेकाबू हो सकते है। जौली अंकल तो बरसों से कहते आ रहे है कि हर बड़े हादसे पर लीपा पोती करके अपराधीयों को बचाने की बजाए जब तक सरकारी अधिकारीयों की उनके कर्तव्य के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित नही होगी उस समय तक इस देश में जनसाधारण को न्याय मिलने की उम्मीद नही की जा सकती।