बंसन्ती की सहेली ने मुबारक देते हुए कहा कि सुना है तुम्हारे पति आज जेल से छूट कर आ रहे है। बंसन्ती ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा कि मैं तो अपने पति से दुखी हो गई हूँ, न तो इन्हें घर में चैन है और न ही जेल मे। सहेली ने हैरान-परेशान होते हुए कहा कि तुम ऐसा क्यूं कह रही हो? आखिर वो तुम्हारे पति है और पति को तो हमारे यहां परमेश्वर का दर्जा दिया जाता है। सहेली ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि मैने तो यह भी सुना है कि पुलिस ने तुम्हारे पति के अच्छे व्यवहार के कारण ही उन्हें समय से पहले जेल से रिहा किया है। बंसन्ती ने तिलमिलाते हुए कहा कि अच्छा तो किसी इंसान को तभी कहा जा सकता है जब उसमें अच्छाई के कोई गुण हो। षाम होते ही रोज दारू पीना, बात-बात पर लोगो से झगड़ा करना और गालियां देने वाले पति को कौन अच्छा कहेगा? जब कभी कोई इन्हें दारू से परहेज करने को समझाता है तो खुद को मिर्जा गालिब का बड़ा भाई समझते हुए बड़े ही षायरना अंदाज में यही कहते है कि मुझे पीने का शौंक नही, मैं तो पीता हूँ गम भुलाने के लिये। अब पुलिस वाले यदि ऐसे व्यक्ति के व्यवहार को भी अच्छा मानते है तो फिर एक बार उनसे मिलकर अच्छे-बुरे व्यवहार की परिभाशा समझनी होगी ?
बंसन्ती की सहेली ने कहा कि देखने में तो तुम दोनों की जौड़ी राम-सीता जैसी लगती है, लेकिन तुम्हारी बातों से तो यही लग रहा है कि तुम अपने पति के साथ खुश नही हो। बंसन्ती ने कहा कि तुम जिस पति को परमेश्वर मानने को कह रही हो, यदि उसकी सच्चाई तुम्हारे समाने रखूं तो तुम्हारे पांव तले की जमीन अभी खिसक जायेगी। षादी से पहले जब यह मुझे देखने के लिये आये तो मेरे पिता जी ने औपचारिकता निभाते हुए दहेज के बारे में इनसे थोड़ी बहुत बात करना ठीक समझा। जैसे ही मेरे पिता ने पिता ने घड़ी देने की बात शुरू की तो इन्होने गर्म सूट की मांग कर डाली। स्कूटर की बात चली तो मेरे पति के घर वालों ने कार का दावा ठोक दिया। जब मेरे पापा ने घर के निचले हिस्से में बनी दुकानों मे से एक दुकान देने की पेशकश की तो जिस इंसान को तुम परमेश्वर कह रही हो उस बेशर्म आदमी ने बिना किसी झिझक के फलैट का तकाजा कर दिया। मेरे पति ने उस समय तो अपने लालच और कमीनेपन की सभी हदें पार कर दी जब मैं चाय की तश्तरी लेकर अंदर आई। यह झट से बोला कि मुझे इस लड़की से नही इसकी मां से शादी करनी है, क्योकि बातों-बातों में इसे यह मालूम पड़ गया था कि हमारी सारी जमीन जयदाद मेरी मां के नाम पर है। खैर मेरे पिता ने बात को हंसी मजाक का मुद्दा समझ कर बात को टालते हुए शादी के लिये हां कर दी।
बंसन्ती की सहेली यह सब कुछ सुन कर एक अजीब सी सोच में डूब गई कि क्या दुनिया में ऐसे-ऐसे लोग भी होते है? बसन्ती ने कहा कि अभी तो बहुत कुछ और भी तुम्हें बताना है। शादी के बाद ससुराल पहुंचते ही जैसे यह मेरे कमरे में आये तो मैने इनका मूड अच्छा करने के लिये कह दिया कि दिल की धड़कन तेज है, सांसों में बेकरारी है। जानते हो इन्होने क्या किया, झट से अपने पिता के पास जाकर बोले कि मुझे लगता है मेरी पत्नी को दमें की बीमारी है। मैने जोर जोर से रोते हुए कहा, कि हाय मैं तो लुट गई, बर्बाद हो गई, इस पर तुम्हारे होनहार जीजा जी बोले, कि ज्यादा शोर मचाने की जरूरत नही, मैं भी तुम्हारे साथ शादी करके कोई अनिल अंबानी नही बन गया।
कुछ दिन पहले इंडिया गेट घूमते हुऐ मुझ से शेखी मारते हुए कहने लगे कि शादी से पहले मेरे बहुत सारी लड़कियों के साथ अफेयर थे। तुम भी कुछ अपने बारे में बताओ, मैने भी मजाक करते हुए इतना कह दिया कि पडिंत जी ने हमारी जन्म-पत्री और सारे गुण मिला कर ही शादी के लिये हां की थी, आगे आप खुद बहुत समझदार हो। इन्होने मुझे वहीं पीटना शुरू कर दिया। वही पास खड़े एक सज्जन ने कहा कि इस बेचारी को क्यूं मार रहे हो? अगर कोई बात है भी तो घर जाकर अपना गुस्सा निकाल लेना। उसे एक मोटी सी गाली देकर बोले कि यह घर मिलती ही कहां है? कसम से तू मानेगी नही मेरे पति तो नेताओं से भी गये-गुजरे है, वो भी गलती से कोई एक आद वादा तो पूरा कर देते है। लेकिन मेरे पति तो सिर्फ झूठ और फरेब का एक पुलिदां है।
इतना सब सुनने के बाद बंसन्ती की सहेली ने कहा कि मैं जब से यहां आई हूँ तुम अपने पति के दोश गिनवाती जा रही हो। मैं यह नही कहती कि तुम्हारे पति में कोई कमी नही है। परंतु एक बात याद रखो कि दूसरों की गलतियां ढूंढना बहुत आसान है, इंसान को कभी-कभार अपने गिरेबांन में भी झांकने की कोशिश करनी चहिये। मैने माना कि तुम्हारे पति कपटी और मक्कार है, लेकिन ऐसे व्यक्ति को केवल प्यार और ईमानदारी से जीता जा सकता है। बंसन्ती, हमें कभी भी किसी परिस्थिति से घबराना नही चाहिए, बल्कि डटकर उसका मुकाबला करने का प्रयास करना चाहिए। जिस घर में प्यार हो, वही खुषी और प्रसन्नता मिलती है। हर समय मन में नफरत की आग हमें केवल विनाष की और ले जाती है। मैं देख रही हूँ कि पिछले कुछ समय से तुम लगातार अपनी तारीफ करती जा रही हो। पगली, तारीफ का असली मजा तो तभी आता है जब तुम्हारी तारीफ दूसरे लोग करें। जौली अंकल बंसन्ती की सारी रामायण सुनने के बाद सभी पतियों को एक छोटी सी सलाह देना चाहते है कि अपने नाम के साथ परमेश्वर जैसी महान उपाधि की लाज रखते हुए आपको अपनी कथनी और करनी में फर्क खत्म करना होगा, जब तक यह फर्क रहेगा, उस समय तक कोई भी पत्नी अपने पति को पति-परमेश्वर नही मान पायेगी।
4 टिप्पणियां:
ek shiksha prad kahani hai. achchhi lagi. dhanyawad.
bahut bahut accha likha hai......sach padh ke maza aa gaya
pati patni ke rishte mei hassi bhi chipi hai ye aaj jana
Mazak-Mazak main apne achaa sandesh diya hai...
Thanks to all of you for your nice wishes and wonderful comments.
Jolly
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