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बुधवार, 7 सितंबर 2011

’’ खानापूर्ति ’’


                                                                          ’’ खानापूर्ति ’’

मसुद्वी लाल जी घर का कुछ जरूरी समान लेने के लिए बाजार की और निकले ही थे कि रास्ते में उन्हें मालूम पड़ा कि पड़ोस में रहने वाली मौसी का देहान्त हो गया है। वैसे तो मसुद्वी लाल को मुहल्ले की यह चुगलखोर नाम से महषूर मौसी एक आंख भी न भाती थी लेकिन आज अब दिखावे के लिए ऊपरी मन से खानापूर्ति करने के लिए बाजार का रास्ता छोड़ कर सीधा मौसी के घर उसकी मौत पर अफसोस करने जा पहुंचे। सिर्फ मसुद्वी लाल ही नही मुहल्ले के सभी लोग मौसी को देखते ही कतराकर निकलने में अपनी भलाई समझते थे। हर कोई जानता था कि अगर एक बार मौसी के पास नमस्ते करने के लिये भी रूक गये तो फिर मौसी उसे तब तक नही छोड़ेगी जब तक वो सारे मुहल्ले की खबरों को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर न सुना ले।

मौसी के घर में घुसते ही वहां बैठे सभी लोगो के बीच मसुद्वी लाल जी ने लीपापोती करने की मंषा से अपना चेहरा ऐसे लटका लिया जैसे मौसी के जाने का सबसे अधिक दुख उन्हीं को ही हो। सभी लोग एक दूसरे से कुछ न कुछ मौसी की अच्छाईयों के बारे में बातचीत कर रहे थे। परंतु मसुद्वी लाल जी किसी बात पर ध्यान देने की बजाए उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाले जा रहे थे। चंद क्षण किसी तरह चुप बैठने के बाद मसु़द्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछा कि सुबह तक तो ठीक ठाक थी फिर यह सब कुछ अचानक क्या हो गया मौसी जी को? इससे पहले कि मौसी का बेटा उनकी मौत के बारे में कुछ बताता मसुद्वी लाल जी ने कहा कि जरा पानी तो मंगवा दो, बहुत गर्मी लग रही है। जैसे ही एक लड़का इनके लिये पानी का गिलास लेकर आया तो उसे देखते ही बोले कि यह तो बहुत गर्म है, घर में बर्फ वगैरहा नही है क्या? थोड़ी बर्फ ही मंगवा लेते। पंखा भी नही चलाया आप लोगो ने, कम से कम पंखा तो चला देते। सभी लोग मसुद्वी लाल की और ढेड़ी नजरों से देखने लगे कि यह इस तरह के दुखद मौके पर भी कैसी अजीब बाते कर रहे है।

मसुद्वी लाल जी फिर मौसी के बेटे से बोले कि तुमने बताया नही कि क्या हुआ था मौसी जी को? उनके बेटे ने कहना षुरू किया कि बस ऐसे ही घर में चल फिर रही थी कि। मसुद्वी लाल ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा क्यूं कुछ घर का काम काज नही करती थी। बेटे ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि नही मेरा मतलब यह नही था, दिन में खाना खाया और सो गई थी। मसुद्वी लाल जी ने कहा क्यूं खाना खाते-खाते ही सो गई थी क्या? बेटे ने बात साफ करते हुए कहा नही जी थोड़ी देर बाद सोई थी। मसुद्वी लाल जी ने उसे टोकते हुए कहा बेटा ठीक से सारी बात बताओ न, तुम तो मुझे भी खामख्वाह कन्फूज कर रहे हो। इसी के साथ मसुद्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछ लिया कि तुम्हारे पिता जी दिखाई्र नही दे रहे, वो कही गये हुए है? मौसी के बेटे ने बताया कि पिता जी को तो हार्ट-अटैक आया था वो तो पिछले 15-20 दिन से अस्पताल में दाखिल है।

मसुद्वी लाल जी ने हैरान-परेषान होते हुए कहा कि आप भी कमाल करते हो, मुझे आज तक किसी ने बताया ही नही, कम से कम मैं एक बार उनसे मिल तो आता। चलो अब उनको अफसोस करने अस्पताल तो जाना ही पड़ेगा, साथ ही उनका हाल भी पूछ आऊगा। इसी के साथ मसुद्वी जी बोले कि देखो जी जिसे हार्ट-अटैक से मरना था वो तो अस्पताल में बैठा अपना इलाज करवा रहा है और जो ठीक-ठाक थी वो हम सब को छोड़ कर चली गई। वैसे मेरा तुम्हारी मां से बहुत प्यार था, पूरे मुहल्ले में नंबर वन थी तुम्हारी मां। तुम्हारी मां के बिना मेरा दिल नही लगना इस मुहल्ले में। मौसी के बेटे ने जैसे ही घूर कर देखा तो मसुद्वी लाल जी ने पासा पलटते हुए कहा कि मुझे तो वो अपना छोटा भाई मानती थी, बहुत प्यार करती थी मुझें। महौल को बिगड़ता देख मुसद्वी लाल ने सभी को हाथ जोड़ कर वहां से खिसकना ही उचित समझा। जाते-जाते घरवालों से पूछने लगे कि अब इस मुर्दे को कितने बजे घर से निकालना है, मैं फिर उसी समय आ जाऊगा।

मुसद्वी लाल के जाते ही वहां बैठे लोगो में कुछ बोलने लगे कि इनके अपने घर में तो कोई इनकी बात तक नही पूछता और दूसरों के यहां आकर यह बाल की खाल निकालने से बाज नही आते। मुसद्वी जी तो बिना सोचे विचारे ऐसे बोले जा रहे थे जैसे कोई पागल बिना लक्ष्य के गोली चलाता हो। इन सज्जन की बात सुनते ही मौसी के बेटे ने इषारे से चुप करवाते हुए कहा कि इसी लिये हमारे बर्जुग कहते है कि जिंदगी में रिष्ते निभाना उतना ही मुष्किल होता है जितना हाथ में लिए हुए पानी को गिरने से बचाना। इससे भी बड़ा सच तो यह है कि हर इंसान जिंदगी भर दो चेहरे नही भूल पाता एक जो मुष्किल समय में आपका साथ देते है और दूसरा जो मुष्किल समय में आपका साथ छोड़ जाते है। जौली अंकल सभी लोगो के रंग-ढंग पहचानाने की कोषिष में इतना ही जान पायें है कि एक दूसरे के बारे में बाते करने की बजाए यदि हम एक दूसरे से ढंग से बात करें तो बहुत हद तक हमारी आपसी परेषनियां तो खत्म होगी ही वही खानापूर्ति जैसे समाजिक ढ़ोंग से भी छुटकारा मिल पायेगा।

                                                                                                                                  ’’जौली अंकल’’

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