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शनिवार, 13 मार्च 2010

नामकरण

हर दिन सरकार और व्यापारी वर्ग मंहगाई को बढ़ाते हुए आम आदमी का जीना दूभर करते जा रहे है। आम आदमी की थाली से दाल-रोटी गायब होती जा रही है। बिजली-पानी के बढ़ते बिल एवं दाल-सब्जियों के आसमान छूते भावों के कारण औरतों को घर खर्च चलाना मुश्किल होता जा रहा है। इस एक तरफ हम सब लोग बढ़ती महंगाई की मार से परेशान हो रहे है। हैं। दूसरी तरफ घर परिवार में कोई खुशी का मौका आते ही हम सबको महंगाई कुछ नहीं कहती। उस समय तो हमारा मकसद सिर्फ रिश्तेदाराें और बिरादरी वालों के सामने अपनी नाक को सबसे उंचा दिखाना ही होता है। इसके लिये चाहे हमारी बरसों की जमा पूंजी भी क्यूं ना लग जाए? जहां-जहां से भी कर्ज मिलने की आस होती है हम कोई मौका नहीं छोड़ते, बाद में इस कर्ज को चुकाने की कुछ भी कीमत अदा करनी पडे उसकी फिक्र किसे होती है?
ऐसा ही आजकल हमारे मुहल्ले में शर्मा जी के घर पर चल रहा है। उनके पोते के नामकरण की तैयारी तकरीबन एक-डेढ़ महीने पहले से शुरू हो गई थी। पूरे घर की रंगाई-पुताई का काम जोर-शोर से चल रहा है। घर के साथ-साथ गली की सड़क को भी ठीक कराने में शर्मा जी दिन रात दौड़धूप कर रहे हैं। पहली बार घर आने वाले रिश्तेदारों के सामने अपना रौब जताने के लिये आदमी क्या-क्या नहीं करता? यह सब तो हम अच्छी तरह से जानते हैं। नामकरण से पहले ही घर के सभी सदस्याें ने बच्चे का कोई ना कोई नाम सोच रखा है। और हर सदस्य यही चाहता है, कि पंडित जी उसी के सुझाये हुऐ नाम पर अन्तिम मोहर लगा दें। बच्चे के पिता जिन्होंने अपनी पत्नी और पिता को खुश करने के लिये इतना बड़ा प्रयोजन रचा है, परन्तु उनसे कोई नहीं पूछ रहा की उसके मन में क्या है? पिता को अपने बेटे के नाम से ज्यादा फिक्र रिश्तेदारों की आवभगत की है। गांव से पहली बार आनेवाले रिश्तेदारों को ठहराने की व्यवस्था भी अभी तो ठीक से नहीं हो पा रही है।
पंडित जी नामकरण करके कोई भी नाम बच्चे को दे दें, लेकिन बाद में कई बार बच्चे के नाम का मज़ाक बन जाता है। एक मां-बाप ने अपने बच्चे का नाम बड़े ही प्यार से नैनसुख रखा था, लेकिन एक हादसे में उस बेचारे की दोनों आखें चली गईं। एक फेरीवाला हमारी गली में सब्जी बेचने आता है, एक दिन बातचीत के दौरान उससे उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम रामभूल बताया। नाम सुनकर कुछ अजीब सा लगा। मैंने कहा हमने आज तक रामचन्द्र, रामलाल, रामप्रसाद, रामप्यारी आदि नाम तो सुने हैं लेकिन रामभूल नाम तो पहली बार सुन रहे है। उसने विस्तार से बताया कि मेरे पहले से ही सात भाई बहन थे, मेरे मॉ-बाप और बच्चा नहीं चाहते थे। लेकिन मैं फिर भी पैदा हो गया, तो मेरे माता पिता ने बिना किसी पंडित को पूछे ही मेरा नाम रामभूल रख दिया क्याेंकि मैं इस दुनिया में रामजी की भूल की वजह से ही आ पाया था।

शर्मा जी के घर मेहमानों का आना शुरू हो चुका था। एक दिन शाम को सब बच्चे गली में खेल रहे थे कि अचानक एक ऑटोरिक्शा आकर रूका और उसमें से एक बुजुर्ग की कड़कती आवाज आई ''ऐ छोरो इधर घासीराम का घर कहां है?'' सब बच्चे एक दूसरे के चेहरे की तरफ देखने लगे क्याेंकि किसी ने भी यह नाम पहले कभी नहीं सुना था। बच्चों के मना करने पर उस ताऊजी ने कुछ और लोगों से घासीराम के घर के बारे में पूछा तो सबने अपनी असमर्थता जाहिर की। ताऊजी ऑटोरिक्शा लेकर कालोनी में आगे बढ़ गये। काफी देर बाद ताऊजी थकेमांदे से फिर उसी ऑटोरिक्शा से गली में घासीराम का घर ढूंढते-ढूंढते आ पहुचें। इससे पहले कि वो किसी और से पूछते, सामने से मुहल्ले के प्रधान शर्मा जी आ गये। शर्मा जी को देखते ही ताऊजी की बांछें खिल गई। दूर से ही चिल्ला कर बोले डेढ़ घंटे से तेरा घर ढूंढ रहा हूं घासीराम।
तू तो कहता था कि दिल्ली शहर में तेरा बहुत रूतबा है यहां तो तुझे कोई पहचानता तक नहीं कम से 50 लोगों से तेरे घर के बारे में पूछ चुका हूं। शर्मा जी ने कहा क्या पूछा था आपने? ताऊ ने कहा, तेरे नाम से ही पूछ रहा था कि घासीराम का घर कहां है। शर्मा जी को यह सुनते ही जैसे तन बदन में आग सी लग गई। पूरी कालोनी मे उन्होंने अपने नाम को जी.आर. शर्मा (G.R. Sharma) के नाम से ही महषूर कर रखा था और ताऊ जी ने बरसों पुरानी मेहनत पर एक मिनट में पानी फेर दिया। शर्मा जी गुस्से में आगबबूला होते हुऐ बोले यह घासीराम क्या होता है? जी. आर. शर्मा कहते तो क्या तुम्हारी जुबान कट जाती। पूरी कालोनी में मेरे नाम की मिट्टी खराब कर दी।

इतनी दूर से आए मेहमानों की आवभगत तो दूर उनका स्वागत शर्मा जी ने गुस्से और गालियों से कर डाला। ताऊजी को कुछ देर तो बात ही समझ नहीं आई, कि आखिर यह सब हुआ क्या? जिस घासीराम को बचपन से उन्हाेंने अपनी गोद में खिलाया था, आज उसी को बचपन के नाम से बुलाने पर इतना बुरा क्यूं लग रहा है? खैर, पंडितजी तो जब पोते का नामकरण करेंगे वो तो तभी होगा। लेकिन शर्मा जी के गांव से आऐ सीधेसादे रिश्तेदारों ने शर्मा जी के नाम का बिना पूजापाठ के एक बार फिर से नामकरण कर डाला। वर्षों तक शर्मा जी जिस तख्ती पर बडे रौब से जी.आर. शर्मा लिखवाते रहे, उनके रिश्तेदारों ने उन्हें एक मिनट में फिर से उन्हें बरसों पुराना घासीराम बना दिया। जौली अंकल को ऐसे लोगो को देख बहुत दुख होता है, जो अपने बच्चो के बड़े-बडे नाम तो भगवान के नाम से जोड़ कर रख लेते है लेकिन उन्हे उस नाम की लाज बचाने के लिये अच्छें परिवारिक संस्कार देने में चूक कर जाते है। 

लकड़हारे की चतुराई


कभी-कभी जीवन में पुरानी बातों को याद करके बहुत आंनद मिलता है। आज आपको बचपन की यादों की गठरी में से एक बहुत पुरानी कहानी याद करवाता  हूँ, बचपन में हम सभी ने यह कहानी जरूर पढ़ी या सुनी होगी। एक बार एक गांव में एक लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसके पास अपनी कोई जमीन-जयदाद नहीं थी, इसलिये वो सारा दिन पेड़ से लकड़ियां काट कर ही अपना और अपने परिवार का पेट भरता था। एक दिन वो लकड़हारा एक पेड़ से लकड़ियां काट रहा था, कि अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूट कर पास बहती एक नदी में जा गिरी। उसने पेड़ से नीचे उतर कर नदी में से कुल्हाड़ी निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस बेचारे को कोई सफलता नहीं मिली। लकड़हारे के पास कमाई का कोई दूसरा जरिया न होने की वजह से वो बहुत ही निराश होकर नदी के किनारे बैठ कर जार-जार रोने लगा।
भगवान जी यह सारा नजारा काफी देर से देख रहे थे। कुछ ही देर में ही उनका मन दया से पसीज गया, और उन्होंने तरस खाकर उस लकड़हारे की मदद करने का मन बना लिया। वो झट से उसके सामने प्रकट हुए और उसके दुखी होने का कारण विस्तार से जाना। उसका दुखड़ा सुनते ही भगवान जी नदी में गये, और एक चांदी की कुल्हाड़ी निकाल कर ले आये। लकड़हारे ने भगवान से कहा, महाराज यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो बहुत ही पुरानी और वो भी लोहे की है। भगवान जी ने फिर नदी में डुबकी लगाई, और इस बार वो सोने की कुल्हाड़ी निकाल कर ले आये। लकड़हारे ने बड़ी ही नम्रतापूर्वक इस कुल्हाड़ी को भी लेने से मना कर दिया और भगवान से अपनी लोहे की कुल्हाड़ी ही ढूंढने की प्रार्थना की। भगवान जी ने तीसरी बार फिर नदी में डुबकी मारी और इस बार हीरे जवाहरातों से जड़ी एक बहुत ही बेशकीमती कुल्हाड़ी निकाल कर ले आये।
लकड़हारे ने हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुऐ, इस कुल्हाड़ी को भी लेने से मना कर दिया। उसने फिर से अपनी लोहे की कुल्हाड़ी ढूंढने की प्रार्थना की। भगवान जी उसकी ईमानदारी से बहुत ही प्रसन्न हुए और उस लकड़हारे को उसकी लोहे वाली कुल्हाडी के साथ चांदी, सोने और हीरे-जवाहरातों से जड़ी सभी कुल्हाड़ियां उसको ईनाम में दे दी और साथ ही वादा किया कि जीवन में कभी भी कोई कष्ट हो तो वो उसकी सदा मदद करेंगे। वो खुशी-खुशी सारी कुल्हाड़ियां लेकर अपने घर चला गया और अपने परिवार के साथ सुखी-सुखी रहने लगा।
समय पाकर वो लकड़हारा एक बहुत ही धनवान आदमी बन गया। एक दिन वो अपनी पत्नी के साथ बाग में टहल रहा था कि अचानक उसकी पत्नी का पैर फिसला और वो कुएं में जा गिरी। उसने झट से अपने भगवान का ध्यान किया, और भगवान जी प्रकट हो गये। सारी व्यथा सुनने के बाद भगवान जी ने उसकी मदद करने के पहले उसकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया। वो कुएं में गये, और जाकर सबसे सुंदर हीरोईन मल्लिका शहरावत को निकाल कर ले आए। वो लकड़हारा तुंरत ही भगवान जी को धन्यवाद देकर वहां से जाने लगा।
भगवान जी ने उसे रोककर कहा पहले तो बहुत ईमानदार थे। आज एक सुन्दर और खूबसूरत औरत को देखते ही तुम्हारा मन बेईमान हो गया। उसने माफी मांगते हुए कहा, भगवन, ऐसी बात बिल्कुल नहीं है, मैं आज भी उतना ही ईमानदार  हूँ, जितना पहले था। लेकिन इस पहली औरत को स्वीकार करना मेरी मजबूरी है। भगवान जी ने पूछा कि अपनी पत्नी को छोड़ कर पराई औरत को स्वीकार करना तुम्हारी किस तरह तुम्हारी मजबूरी हो सकती है?
लकड़हारे ने बड़ी ही नम्रता से कहा अगर मैं इस औरत को स्वीकार नहीं करता, तो आप मेरी पत्नी को निकालने से पहले फिर से कुएं में जाकर विपाशा बासु और श्रीदेवी जैसी दो-तीन सुन्दर औरतें ले आते। मेरे बार-बार मना करने पर भी यदि आप खुश होकर कुल्हाड़ी की तरह सब औरतों को मेरे पास छोड़ जाते, तो मैं इन सभी को कैसे संभाल पाता? महाराज आजकल इस महंगाई के समय में एक औरत को पालना और संभालना ही बहुत मुश्किल काम है। ऐसे हालात में चार-चार सुन्दर औरतो को कैसे पाल सकता  हूँ? इस मजबूरी की वजह से ही मैंने पहली औरत को ही स्वीकार करने में ही भलाई समझी। उस लकड़हारे की चतुराई को समझते हुए भगवान के साथ-साथ जौली अंकल भी मुस्करा दिये। 


ओवर टाईम


शाम होते ही गप्पू के सभी दोस्त अपने मम्मी पापा के साथ बाजार घूमने-फिरने या कोई फिल्म देखने निकल जाते। गप्पू अपने मां-बाप की इकलोती संतान होने के कारण बिल्कुल अकेला और उदास सा अपने पापा मम्मी के इंन्तजार में घर में बैठा रहता। वो कभी भी अपने पापा के साथ घूमने नही गया था। जब कभी गप्पू के दोस्त उससे किसी फिल्म या होटल में खाने के बारे में जिक्र करते हो उसका मन बहुत ही बैचेन सा हो जाता था। उसके मन में रह-रह कर एक ही सवाल बार-बार उठता कि उसके पापा कभी भी न तो उसे घुमाने ले जाते है और न ही उसके साथ खेलते है। मुहल्ले के बाकी सभी लोगो की तरह समय पर घर क्यूं नही आते? मेरे पापा ही सदा देरी से क्यूं आते है, और न ही उसे अपना समय देते है। आज चाहे कुछ भी हो जायें मैं पापा के आने तक उनका इंन्तजार करूगा और दफतर से रोज देरी से आने का कारण भी जरूर पूंछूगा।
काफी रात बीत जाने के बाद जब गप्पू के पापा घर आये तो गप्पू ने अपने दिल की सारी बात उनसे कह डाली। पहले तो उसके पापा ने उसे प्यार से टालने का विफल प्रयास किया, परन्तु जब वो अपनी हठ पर अड़ा रहा तो उसके पापा ने उसे समझाया कि हमनें अपने घर और कार के लिये बैंक से बहुत सा पैसा कर्ज पर लिया हुआ है। उसकी किश्ते देने के लिये मुझे दफतर में रोज औेवर-टाईम करना पड़ता है। पापा यह औवर टाईम क्या होता है? उसने जोश-जोश में अपने पापा से पूछा। अब तक गप्पू का मूड काफी ठीक हो चुका था। जवाब में उसके पापा ने उसे समझाया कि नियमित समय से अतिरिक्त कार्यकाल में जो काम किया जाए उसे ओवर टाईम कहते है। इस काम से जो पैसे मुझे मिलते है उनसे मैं बैंक की किश्ते चुका पाता  हूँ।
अब गप्पू ने पूछा कि एक दिन ओवर टाईम करने से आपको कितने पैसे मिल जाते है? गप्पू के पापा ने कहा मुझे एक दिन औवर टाईम करने से 300 रूप्ये मिल जाते है। कुछ देर सोचने के बाद गप्पू ने अपने पापा से कहा कि आप इतने सारे पैसे कमाते हो, लेकिन आपने मुझे तो कभी कुछ पैसे नही दिये। गप्पू के पापा ने खुशी-खुशी झट से गप्पू को 20 रूप्ये दे दिये। कुछ दिन बाद गप्पू ने फिर इसी तरह अपने पापा से पैसे मांगे तो उन्होनें पूछा कि वो इन पैसो का क्या करेगा? गप्पू ने कहा कि मैं यह सारे पैसे अपनी छोटी सी गुलक में जमा कर रहा  हूँ, मुझे एक बहुत ही जरूरी चीज खरीदनी है। उसके पापा को गप्पू की यह बचत करने की आदत अच्छी लगी और वो रोज ही उसे कभी 5 कभी 10 रूप्ये देने लगे।
एक दिन सुबह जब गप्पू के पापा दफतर जाने लगे तो उसने बड़े ही प्यार से कहा कि क्या आप आज शाम को दफतर से थोड़ा जल्दी घर आ सकते हो? उसके पापा ने कहा कि मैने कुछ दिन पहले ही तुम्हें अच्छी तरह से समझाया था कि मुझे दफतर में ओवर टाईम के लिये रूकना पड़ता है। गप्पू ने कहा कि पापा आज मेरा जन्मदिन है, मैने अपने कुछ दोस्तो को घर पर बुलाया है। क्या आप एक दिन के लिये भी औवर टाईम नही छोड़ सकते? जब उसके पापा ने फिर से अपनी मजबूरी बतानी शुरू की तो उनकी बात को बीच में अनसुना सा करके गप्पू दौड़ कर अपने कमरे में गया और अपना पिगी बैंक उठा लाया। उसने उसमें से सारे पैसे निकाल कर पापा के सामने ढेरी कर दिये और बोला कि उस दिन मैने आपको कहा था कि मुझे एक बहुत ही जरूरी चीज खरीदनी है। मैने यह सारे पैसे आज के दिन आपका ओवर टाईम खरीदने के लिये इक्ट्ठे किये है। यह पूरे 300 रूप्ये है। आप यह सारे पैसे ले लो, लेकिन आप आज एक दिन के लिये अपना औवर टाईम छोड़ दो। एक दिन यदि ओवर टाईम नही करोगे तो कुछ नही होगा, मुझे आज अपना जन्मदिन आपके साथ मनाना है। पापा आज मैं अकेला नही रहना चाहता, अपनी यह बात कहते-कहते गप्पू फूट-फूट कर रोने लगा।
मासूम बच्चे के प्यार का यह नजारा देख गप्पू के पापा के उसकी मम्मी की आंखों में से भी गंगा-जमुना बहने लगी थी। हम सभी जानते है कि परिवार के लिये सुख-सुविधाऐ जुटाने के लिये मेहनत करना बहुत अच्छी बात है। जौली अंकल का तर्जुबा तो यही कहता है कि जो कुछ आपके भाग्य में है उसे दुनियॉ की कोई भी शक्ति आपसे छीन नही सकती और जो कुछ आपके भाग्य में नही है उसे दुनियॉ की कोई भी शकित आपको दे नही सकती। ऐसे में पैसा कमाने की होड़ में बच्चो की छोटी-छोटी खुशीयॉ की कुर्बानी देना बच्चो के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी होगी। 

पापा, आई लव यू


गुनगुन अपने घर के आंगन में अपनी कुछ छोठी-छोटी सहेलीयों के साथ खेल रही थी, कि अचानक उसके घर के सामने एक चमचमाती हुई कार आ कर रूकी। गुनगुन अपना खेल छोड़ कर उस कार को हसरत भरी निगाहो से देखने लगी। यह कार उनके पड़ोसी अभी-अभी खरीद कर लाए थे। गुनगुन दौड़ते हुए अपनी मम्मी को यह खबर बताने के लिये घर के अंन्दर भागी और अपनी मम्मी से पूछने लगी कि मम्मी हम अपनी कार कब लेगे? हमारे पड़ोसीयो के पास तो पहले से ही दो कारे है। आखिर मेरे पापा कार क्यूं नही खरीदते?
गुनगुन की मां को समझ नही आ रहा था कि वो उसको अपनी मजबूरी और लाचारी अपनी गुड़ियॉ जैसी लाडली को कैसे बताऐ कि इस कमर तोड़ मंहगाई में उसके पिता की कमाई से तो घर का भरण-पोषण करने के बाद मुश्किल से तो हम स्कूटर चलाने का खर्चा निकल पाते है। ऐसे हालात में हम लोग कार लेने की कैसे सोच सकते है? अपने गम और आंसूओ को छिपाते हुए उसकी मां ने उसे समझाया कि हमारी सभी जरूरते भगवान जी पूरी करते है। तुम भी रोज सुबह उठ कर भगवान से प्रार्थना किया करो, वो तुम्हें भी बहुत जल्द सुन्दर सी कार ले देगे। गुनगुन के दिल को यह बात छू गई, उसने अपनी मां से कहा कि अब वो रोज भगवान से ही प्रार्थना किया करेगी कि हमें भी एक सुन्दर सी कार दिलवा दो।
कुदरत का करशिमा कहिए या बच्चे के कोमल मन से निकली हुई भगवान के चरणों में प्रार्थना का असर, चंद ही दिनों में गुनगुन के पापा को दफतर से बहुत लंम्बे अरसे से रूकी हुई एक मोटी रकम का बकाया चैक मिल गया। पति-पत्नी ने आपस में सलाह करके अपनी इकलोती बिटियॉ के ख्वाब को पूरा करने की कोशिश में कुछ रकम बैंक से कर्ज के रूप में ले ली। चंद ही दिनों बाद वो भी बिटियॉ की मन-पसंन्द लाल रंग की चमचमाती हुई कार अपने घर ले आये।
घर पहुंचते ही वो दोनो भगवान का शुक्रीयॉ अदा करने के लिये पूजा करने में जुट गये। गुनगुन कार की चाबी लेकर खेलते-खेलते कार के पास चली गई। कुछ देर बाद जब वो पूजा खत्म करके बाहर आये तो गुनगुन के पापा ने देखा कि गुनगुन नई नवेली दुलहन की तरह खूबसूरत कार के ऊपर कुछ टेढ़ी-सीधी लाईने खींच कर उसे खुरच रही थी। यह सब देखते ही वो आग बबूला हो उठे। वो अपने गुस्से पर काबू न रख पाये, उन्होने आव देखा न ताव, गुनगुन के ऊपर थप्पड़ो की बरसात कर दी। उस समय वह यह भी भूल गये कि जब आदमी क्रोधित होता हैं तो बहुत सारी शक्ति नष्ट हो जाती है, अत: हमें शक्ति का प्रयोग बुद्विमता से करना चहिये। फूल जी नाजुक और कोमल गुनगुन अपने पापा की मार से इतनी सहम गई कि रोते-बिलखते हुए घर के कोने में जाकर सो गई। घर के बाकी सदस्यों ने भी नई कार की खुशी तो क्या मनानी थी सभी बुझे हुए दुखी मन से बिना कुछ खाये-पीये ही सो गये।
अगले दिन सुबह जब गुनगुन के पापा दफतर जाने लगे, तो उन्होने अपनी बेटी गुनगुन ध्दारा कार के ऊपर खींची हुई उन ढेड़ी-सीधी लाईनो को कम करने के प्रयास से उन्हें एक कपड़े से उन्हें मिटाने का प्रयास किया। इसी दौरान उन्होने ध्यान से उन लकीरो को देखा तो उनकी आंखो से अश्रू धारा बह निकली। वो अपने आप को कोसने लगे कि मैंने रात को बिना सोचे समझे उस बच्ची की इतनी पिटाई क्यूं की? अपने पति को इस तरह से फूट-फूट कर रोते देख गुनगुन की मम्मी बाहर आई और पति से परेशानी का कारण जानना चाहा, तो उसके पापा ने बिना एक भी अक्षर बोले कार की तरफ इशारा कर दिया। चाबी से रगड-रगड़ क़र ढेड़ी-सीधी लाईनो से गुनगुन ने लिखा था - 'पापा, आई लव यू'
मौका चाहे कोई भी हो, हमारे प्यारे मासूम बच्चे भी अपने मन की भावना को व्यक्त करना चाहते है, लेकिन नासमझी के कारण कई बार उनकी बात कहने का तरीका थोड़ा गलत हो जाता है। किसी बच्चे को उसकी गलती पर कोई प्रतिक्रिया या सजा देने से पहले हमें एक बार जरूर सोचना चहिये कि आखिर उनके मन की मंन्शा क्या है? जौली अंकल का तर्जुबा तो यही कहता है कि फूलो की तरह कोमल हृदय के बच्चे कभी किसी का बुरा करने के बारे में तो सोच ही नही सकते। वो तो अपनी हर छोटी सी खुशी और इच्छा पूर्ति पर केवल इतना ही कहना जानते है कि - पापा, आई लव यू। 

बाप तो आखिर बाप ही होता है


एक बार अमन के पिता गांव से अचानक अपने बेटे को मिलने शहर पहुंच गये। जहां वो कालेज की पढ़ाई कर रहा था। जैसे ही वो स्टेशन से उसके घर पहुंचे वहां उन्होने देखा कि अमन एक लड़की रेखा के साथ एक ही घर में रह रहा था। दोनो का सारा समान भी एक ही कमरे में पड़ा हुआ था। अमन के पिता ने उन दोनों को इक्ट्ठे रहते देख कुछ कहा तो नही लेकिन उनके मन ने इस रिश्ते को शक की नजर से देखना शुरू कर दिया। वो उन दोनों के रिश्ते के बारे में जानने को काफी अधिक आतुर हो रहे थे। शाम को जब वो जब अपने बेटे के साथ सैर करने के लिये निकले तो पिता ने अपने बेटे अमन से लड़की के बारे में कुछ जानने की मंशा और उसके साथ रहने का कारण पूछ ही लिया। बेटे अमन ने शहर में महंगी और अच्छी जगह की कमी जैसी कई मजबूरीयॉ अपने पिता को बता दी।
जैसा की अक्सर एक कहावत में कहते है, कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है, ठीक उसी तरह से अमन ने अपने पिता के सामने बिना और कुछ पूछे ही अपने रिश्ते को पाक साबित करने की कई दलीलें दे डाली। रात को जब खाना खाने के लिये तीनों इक्ट्ठे बैठे तो अमन ने फिर से अपने पिता को हर प्रकार की सफाई देने की कोशिश करता रहा। उसने उन्हें बताया कि रेखा बहुत ही अच्छे परिवार से है और स्वभाव की भी बहुत अच्छी है। पढ़ार्इ्र के साथ खाने-पीने में भी मेरी हर तरह से और हर समय मदद करती है।
पिता के शक को कुछ हद तक कम करते हुए उसने आगे कहा कि वैसे भी हम दोनों अलग-अलग कमरे में ही रहते है। सिर्फ दिन में ही थोड़ी देर के लिये कभी-कभी जरूरी काम से मिलते है। बच्चे कितने भी बड़े और चतुर क्यों न हो जाए बाप तो आखिर बाप ही होता है। ठीक उसी तरह अमन के पिता ने भी उन दोनों के हाव-भाव और आखों की बातचीत सें अंदाजा लगा लिया कि दोनो की दोस्ती काफी गहरी हो चुकी है। ज्ञानी लोग एक बात कहते है कि हमारी जुबान कितना भी झूठ बोलने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन हमारी आखें कभी भी जुबान और चेहरे का साथ नही देती। न चाहते हुए भी हमारी आखें सारी सच्चाई ब्यां कर ही देती है और समझदार लोग इस भाषा को पढ़ने में कभी कोई चूक नही करते।
एक दो दिन वहां रूकने के बाद जब अमन के पिता घर वापिस आ गए तो उन्होने अपनी पत्नी को सब कुछ बताया। मां ने बेटे की तरफदारी करते हुए कहा कि आप को तो हर आदमी में कुछ न कुछ कमी नजर आती है। हर किसी पर शक करना तो तुम्हारा पुराना स्वभाव है। कुछ भी हो जाऐ हमारा बेटा ऐसा नही हो सकता। उसकी शादी तो मैं अपनी ही बिरादरी में परिवार द्वारा पंसन्द की हुई लड़की के साथ बड़ी ही धूमधाम से करूंगी।
उधर अमन के पिता के जाने के बाद रेखा ने अमन से कहा, कि जब से तुम्हारे पिता यहां रह कर गए है, तब से मेरी एक महंगी वाली घड़ी नही मिल रही। अगर तुम बुरा न मानों तो एक बार पत्र लिख कर उनसे पूछ लो, कि कही गलती से उनके सूटकेस में तो नही चली गई। अमन को यह बात काफी अजीब सी लगी, कि रेखा एक तरीके से उसके पिता पर शक कर रही है। जैसा की हम सब जानते है, कि प्यार अंधा होता है, और प्यार में आदमी कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। न चाहते हुए भी अमन ने रेखा के दबाव में अपनी मां को इस बारे में एक पत्र लिख ही डाला।
एक दिन जब अमन के पिता शाम को दफतर से घर वापिस आऐ तो अमन की मां ने उन्हें बताया कि अमन की चिट्ठी आई है। उसने आपसे माफी मांगते हुए पूछा है, कि कहीं गलती उसके साथ रहने वाली लड़की रेखा की घड़ी तो आपके सामान में नही आ गई। उसके पिता ने उसी समय उस पत्र का जवाब बहुत ही सलीके से देते हुए लिखा कि मेरे प्यारे बेटे, मैं यह नही कहता कि तुम दोनों एक ही कमरे में रहते हो या रेखा तुम्हारे ही कमरे में सोती है। परन्तु अगर वो अपने कमरे में रहती होती तो उसको उसकी घड़ी उसे पहले दिन ही अपने तकिये के नीचे ही मिल जाती। आखिर में मैं इतना ही कहना चाहूंगा, कि झूठ बोलने वाला अल्पकाल के लिए ही जीतता है लेकिन असली आनंद तो सच बोलने वाले को ही मिलता है।
जीवन में एक बात सदैव याद रखो कि इंसान का व्यवहार ही उसके व्यकितत्व को निखारता है। जीवन में कई मौके ऐसे भी होते है, जब इंसान चुप रह कर बहुत कुछ कहने और सुनने की समर्था रखता है। भगवान ने माता पिता को धरती पर विधाता का रूप देकर भेजा है, इसलिये बड़े बर्जुगों के साथ छल की जगह उनकी सेवा करने वाले की आयु, यश, विद्या और शक्ति में सदैव वृद्वि होती है।
अंत में जौली अंकल इस विषय में जमाने की हवा से भी तेज भागने वाले युवाओं को केवल इतना ही संदेश देना चाहते है कि आप कितने भी चतुर और होशियार क्याेंं न बन जाओ, लेकिन एक बात कभी मत भूलना कि बाप तो आखिर बाप ही होता है। 


दूर के ढ़ोल .......

चरण दास रोज काम पर जा-जाकर बहुत थक चुका था, उसे लगता था, कि उसकी पत्नी तो सारा दिन आराम से घर में बैठी रहती है। पूरे परिवार के लिये सारा काम तो मुझे अकेले ही करना पड़ता है। सारा दिन मेहनत करके पैसे मैं कमा कर लाता हूं और मेरी बीवी तो बस उस पैसे से मौज-मस्ती करती है। एक दिन उसने भगवान से प्रार्थना की, कि मेरी पत्नी को एक दिन के लिये आदमी और मुझे औरत बना दो। ताकि मैं भी जिंदगी में एक दिन सुख से जी सकूं। भगवान जी बहुत अच्छे मूड में बैठे थे, उन्होने झट से चरण दास की प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन दोनों की आत्मा को एक दूसरे के षरीर में डाल दिया।
अगले दिन सुबह जब चरण दास उठा तो वो एक औरत बन चुका था। उठते ही बच्चों को स्कूल भेजने की ंचिंता शुरू हो गई, फिर उनका नाश्ता और लंच पैक करना शुरू कर दिया। भाग-भाग कर किसी तरह से उनको स्कूल बस तक पहुंचाया। आते समय बाजार से घर के बाकी लोगों के लिये नाश्ते का सामान और सब्जी वगैरह लेनी थी। घर का कुछ राषन भी खत्म था, वो भी लेना जरूरी था। घर पहुंचते ही देखा तो कुत्ते ने रास्ते में गन्द कर दिया था, अब सफाई वाली तो अभी तक आई नहीं थी, इसलिये वो भी खुद ही साफ करके कुत्ते को भी फालतू में नहलाना पड़ा।
पति को नाश्ता देकर दफतर भेजा, तो वो जाते-जाते बिजली और पानी का बिल जमा करवाने को कह गये। बैंक में बैलेन्स कम था, इसलिये वहां भी कुछ पैसे जमा करवाने का फरमान मिल गया। यह सब कुछ निपटा कर जब तक घर पहुंची तो एक बज चुका था। अभी घर की साफ-सफाई और कपड़े धुलवाने बाकी थे। रसोईघर भी बुरी तरह से बिखरा पड़ा था। एक कप चाय पीने का मन हुआ तो घड़ी की तरफ नजर गई, तो छोटे बेटे बंटी का स्कूल से वापिस आने का समय हो चुका था। चाय का इरादा छोड़कर उसे लेने बस स्टैंड पर भागना पड़ा। रास्ते में ही बंटी ने स्कूल और टीचर की षिकायतें षुरू कर दी। ढेर सारा होमवर्क भी बता दिया। घर आते ही बच्चों के कपड़े वगैरह बदल कर उनको खाना दिया। फिर दोनों बच्चों में टी.वी. को देखने में झगड़ा हो गया। एक बच्चे के माथे पर चोट लग गई, बाकी सब काम छोड़ कर डाक्टर के पास भागना पड़ा। दिन के 3 बज चुके थे, सुबह से खाना तो दूर एक कप चाय भी नसीब नहीं हुई।

जैसे-तैसे बच्चे खाना खाकर थोड़ी देर आराम करने के लिये लेटे, तो डाकियॉ डाक लेकर आ गया। अन्दर आकर कुछ पल टी.वी. देखने का मन बनाया ही था, कि दरवाजे पर फिर जोर से घंटी बजी, देखा तो वहां एक सेल्सगर्ल कुछ घरेलू सामान बेचने के लिये आई थी। अभी उस को निपटा ही रही थी, कि अन्दर से फोन की घंटी फायर ब्रिगेड के अलार्म की तरह से बजने लगी। सारे दिन में 5 मिनट का आराम भी नहीं मिल सका। अभी अगले दिन के लिये बच्चों की यूनिफॉर्म तैयार करनी थी, क्याेंकि दोनों बच्चों को फैन्सी डै्रस में स्कूल जाना था। पति ने रात को एक पार्टी में जाना था, उनके कपड़े भी खास तौर से तैयार करने का हुक्म भी पूरा करना था। घर के सभी सदस्याें के लिये रात का खाना भी तैयार करना था।
किसी तरह मन मार कर 5 मिनिट के लिये पड़ोस में एक सहेली के घर गई, तो उसी समय संदेशा मिला कि घर में कुछ मेहमान आये हैं। सब कुछ छोड़ कर उनकी सेवा शुरू करनी पड़ी। कहने को तो वो एक निमंत्रण पत्र देने आये थे, लेकिन अगर उनका बस चलता तो रात को भी हमारे यहां ही रुकते। रात के 9 बज चुके थे, शरीर थक कर चूर हो चुका था। टांगों और पीठ में बुरी तरह से दर्द था। लेकिन उधर बच्चे डिनर के लिये षोर मचा रहे थे। पति को पार्टी में जाने की जल्दी हो रही थी। एक अकेली औरत किस किस की कितनी सेवा करे। किसी तरह से घर के सारे काम निपटा कर रात को 12 बजे बिस्तर नसीब हुआ, लेकिन अभी तो पतिदेव के पार्टी से वापिस आने के इन्तजार में सो नहीं सकती थी। रात को दो बजे जब पतिदेव घर पहुंचे तो वो मस्ती के मूड में थे। जैसे तैसे रात निकली। सुबह होते ही चरण दास भगवान के चरणों में पहुंच गये और रो-रोकर प्रार्थना करने लगे कि मुझे यह सौदा नहीं मन्जूर। भगवान मुझे जल्दी से वापिस आदमी बना दो। भगवान जी फिर से प्रकट हुए और चरण दास की हालत देख कर मन्द-मन्द मुस्काने लगे। चरणदास रोते-रोते एक ही प्रार्थना कर रहा था, कि ऐ भगवान मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई, जो मैंने औरतों के बारे में ऐसा सोचा। अब आगे से जिंदगी में यह गलती कभी नहीं करूंगा।
भगवान जी ने कहा, कि लगता है, तुम्हें अपनी भूल का अच्छी तरह से एहसास हो गया है। अब तुम कभी कुदरत के नियमों के विरूध्द कुछ नहीं कहोगे। लेकिन अब मैं अभी तुम्हे वापिस आदमी नही बना सकता, तुम्हें औरत बन कर ही जीना पड़ेगा, कारण पूछने पर भगवान जी ने बताया कि अब तुम गर्भवती हो चुकी हो, और तुम्हें अपने आने वाले बच्चे को पालना है। इसीलिये जौली अंकल सदा कहते हैं, कि दूर के ढ़ोल हमेशा सुहावने लगते हैं। 

प्यार की ताकत


जीवन में हर प्रकार के दुनियावी रिश्तो में कुछ न कुछ नोंक-झोंक तो चलती ही रहती है, लेकिन सास-बहूँ का एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें कोई भी आज तक शायद एक दूसरे को खुश नही कर सका। सदियों पुरानी एक महशूर कहावत है, कि सास को अगर सोने का भी बना दिया जाए तो भी बहूँ उस में कुछ न कुछ कमी निकाल ही देती है। यही हाल सास का होता है, वो भी हर गुणवती बहूं में हजाराें कमियॉ पल भर में गिना देती है। बंसन्ती की कहानी भी कुछ इस से अलग नही थी। जिस दिन से बंसन्ती का विवाह हुआ था, उसी दिन से उसकी अपनी सास से किसी न किसी बात को लेकर खट-पट जारी थी। क्योंकि दोनो की सोच और स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क था।
जैसे-जैसे समय बीत रहा था, हर दिन बसंन्ती की अपनी सास को लेकर तनाव और परेशानीयॉ बढ़ती ही जा रही थी। एक-एक दिन अपनी सास के साथ गुजारना मुशकिल होता जा रहा था। किसी न किसी बात को लेकर दोनों में हर समय तलवारे तनी ही रहती थी। इन सब बातो के ऊपर बंसन्ती का पति वीरू जो अपनी मां के बहुत ही करीब और परिवारिक संस्कारो को मानता था, वो हर बार बंसन्ती को अपनी मां से माफी मांगने के लिये दवाब बनाता रहता था। ऐसे में बंसन्ती के पास सिवाए खून का घूंट पीने के इलावा कोई चारा नही बचता। एक दिन बंसन्ती ने मन ही मन यह कसम खाई कि वो अब किसी भी हालात में अपनी सास के खूंखार और तानाशाही रवैये को बर्दाशत नही करेगी। वो अपनी सास से हमेशा-हमेशा के लिये पीछा छुड़ाने के लिये सोचने लगी। इसी उधेड़-बुन में उसकी नजर अखबार में एक विज्ञापन पर पड़ी, जिसमें एक टोने-टोटके वाले बाबा ने चंद दिनों में हर दुख तकलीफ से छुटकारा पाने, सभी समस्याओं का समाधान और मन चाही इच्छा शक्त्ति को गारंटी के साथ प्राप्त करने का दावा किया था।
बंसन्ती जल्दी से घर का काम निपटा कर उसी बाबा को मिलने उनके डेरे पर जा पहुंची। वहां जाते ही उसने बिना किसी हिचकिचाहट के बाबा को अपना सारा दुखड़ा सुनाया। बंसन्ती ने दुखी होते हुए कहा, कि अब मैं एक पल भी अपनी सास के साथ नही निभा सकती। रोते-रोते उसने बाबा से हर हालात में अपनी सास से छुटकारा पाने के लिये उसको मारने की बात तक कह डाली। अब चाहे मुझे उसके लिये अपनी सास को जहर ही क्यूं न देना पड़े? बाबा ने बात की गम्भीरता को समझते हुए बंसन्ती को समझाया कि ऐसा कुछ भी करने से वो खुद एक बहुत बड़ी मसुीबत में फंस सकती है। सास के मरते ही पुलिस और बिरादरी का सारा शक तुम पर आ जायेगा, और फिर तुम्हें सजा से कोई भी नही बचा सकता। इसके लिये तुम्हें थोड़े धैर्य से काम लेने की जरूरत है। बंसन्ती ने कहा, आप ही मुझे कोई राह दिखाईये, मैं हर हाल में कुछ भी करने को तैयार  हूँ,, बस एक बार यह बता दो कि आखिर मुझे इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिये क्या करना होगा?
बाबा ने बंसन्ती को समझाना शुरू किया कि तुम्हें यह काम प्यार, तस्सली और बहुत ही चौकस होकर करना होगा। मैं तुम्हें कुछ जहरीली जड़ी-बूटीयॉ दवा के रूप में दे देता  हूँ,। तुम्हें सिर्फ इतना करना है, कि हर दिन अपने हाथ से कोई न कोई सासू मां की पंसद का बढ़ियॉ और स्वादिष्ट खाना बना कर उसमें इन्हें मिला कर अपनी सास को खिलाना होगा। इससे तुम्हारी सास के शरीर में धीरे-धीरे जहर फैलने लगेगा। कुछ ही महीनों में वो अपने आप मर जायेगी और किसी को तुम पर शक भी नही होगा। लेकिन यहां एक बात का ध्यान रखना कि इस दौरान तुम कभी भी अपनी सास से झगड़ा नही करना, हर समय उससे प्यार से ही पेश आना है नही तो उसके मरते ही बिरादरी की नजर में तुम शक के घेरे में फंस जाओगी।
बंसन्ती खुशी-खुशी सभी जड़ी-बूटियों को संभाल कर घर ले आई और अगले दिन से ही बाबा के निर्देशो के मुताबिक बढ़ियॉ से बढ़ियां खाने बना कर अपनी सास को खिलाने लगी। उसने अपने व्यवहार में न चाहते हुए भी काफी बदलाव कर दिया और अपनी सास से हर बात बहुत ही प्यार से करने लगी। बाबा की बात को ध्यान में रखते हुए उसने अपने गुस्से कर पर भी पूरी तरह से काबू रखना सीख लिया। अब अपनी सास से हर समय मां जी या यूं कहें की एक महारानी की तरह व्यवहार करने लगी थी। यह सब देख सास का मन भी धीरे-धीरे बदलने लगा। उसने भी अपनी बहू को बुरा भला कहना छोड़ कर उसे अपनी बेटीयों की तरह प्यार करने लगी। अब अगर थोड़ी देर के लिये भी उसे अपनी ब हूँ नजर नही आती तो वो उसके लिये परेशान हो उठती।
कुछ महीनों तक यह सब कुछ इसी तरह से चलता रहा। इस दौरान दोनों में झगड़ा तो दूर कभी उंची आवाज में भी कोई बात नही हुई। एक दिन बंसन्ती की सास अचानक बहुत बीमार हो गई, उसे लगा कि जहर ने अपना काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन अब तक बंसती का मन बदल चुका था और वो सास से बहुत प्यार करने लगी थी, कि वो अन्दर ही अन्दर अपनी आत्मा को कोसनें लगी, कि इतनी नेक औरत के साथ मैने यह सब कुछ क्यों किया? खुद को दोष देते हुए बोली कि असल में गलती तो मेरी ही थी। इस दौरान जो कोई भी उसकी सास का बीमारी के दौरान हाल-चाल पूछने आते, तो सासू मां बसंन्ती की सच्चे मन से तारीफ करती और बार-बार एक ही बात कहती कि शायद आज अगर मेरी अपनी बेटी भी होती तो वो भी मेरी इतनी सेवा नही कर पाती, जितनी मेरी बहूं ने मेरे लिये अपनी जान लगाई हुई है।

बंसन्ती ने अपने पति वीरू को अपनी गलती तो नही बताई लेकिन अपनी सास को हर हाल में बचाने के लिये आग्रह करने लगी। वीरू भी अपनी पत्नी और मां के इस बदले हुए व्यवहार से बहुत हैरान था। इसी दौरान बंसन्ती बिना अपने पति को बताए फिर से उसी बाबा के पास जा पहुंची, और उन्हें सारा किस्सा सुना डाला। बंसन्ती ने रोते हुऐ बाबा से कहा, कि अब मैं अपनी सास से बहुत प्यार करती  हूँ, आप उन्हे किसी तरह से भी बचा लो। 

बाबा ने ढ़ढास बधाते हुऐ बंसन्ती को समझाया कि मैने कभी भी तुम्हें कोई जहर नही दिया था। मैने तो तुम्हें मन को शांत करने और शरीर को तन्दुरस्त बनाए रखने के लिये तुम्हें कुछ जड़ी-बूटीयॉ दी थी। जहर तो सिर्फ तुम दोनो के दिल और दिमाग में भरा हुआ था। सास के प्रति तुम्हारा जलन से भरा रवैया ही तुम्हारे घर-गृहस्थीे के कलेश की असली जड़ था। इन छह महीनों के दौरान तुम्हारे एक दूसरे के प्यार, सत्कार ने तुम दोनो के मन से वो सारा जहर निकाल दिया है। जैसे ही तुम्हारे व्यवहार में सास के प्रति परिवर्तन आया, तुम्हारी सास का मन भी तुम्हारे लिए प्यार से भर गया। सास के प्रति जो सेवा भावना तुमने दिखाई, उससे तुम्हारी सास को तुम्हारी जगह अपनी बेटी दिखाई देने लगी।
जौली अंकल इसीलिये तो हमेशा कहते है, कि हर घर-गृहस्थी को एक सूत्र में बांधने का काम सिर्फ सच्चा प्यार ही कर सकता है। प्यार तो एक ऐसी ताकत है, जिसे जितना बांटो वो उतना ही बढ़ता है।


एहसान सासू मां का


मजाक करने वाले खुश रहने के लिए हर किसी से हंसी ठिठोली कर लेते है। कुछ लोग तो भगवान के नाम से भी मजाक करने से नही चूकते। एक ऐसा ही मजाक कुछ दिन पहले पढ़ने को मिला कि भगवान राम को उनके पिता ने जब दुखी मन से वनवास जाने का आदेश दिया तो उस समय सीता माता भी अपना जरूरी सामान लेकर उनके साथ चल पड़ी। जब यह दोनों महल के सभी लोगो से विदाई ले रहे थे तो वहां खड़े लोगो ने सीता माता से पूछा कि आपको तो वनवास जाने का हुक्म नही मिला, फिर भी आप इनके साथ जंगल में रहने क्यों जा रही है? सीता माता ने मंद सा मुस्कराहते हुए कहा कि एक सास से तो निभाना मुश्किल होता है, यहां मैं अकेली, बिना पति के 3-3 सासू मां से कैसे निभा पाऊंगी? ऐसे में यहां महल में रहने से तो जंगल में रहना ही उचित होगा।
कहने वाले तो अक्सर कहते है कि औरत के चरित्र और आदमी के भाग्य को कोई नही समझ सकता, फिर सास तो आखिर सास होती है, उसके मन की गहराई को तो आज तक कोई इंसान तो क्या भगवान भी नही समझ पाऐं। यदि कोई गरीब अपनी बेटी को मंहगी कार, मोटरसाइकिल, धुलाई की मशीन, टी.वी. फ्रिज आदि नही दे पाता तो उस बदकिस्मत बहू को सारी उंम्र के लिए सासू मां के ताने सुनने पड़ते है। बेटा चाहे दो कोड़ी का भी न हो, लेकिन हर मां अपने बेटे के लिए उसके जन्म से ही चांद जैसी खूबसूरत बहू के सपने संजोने लगती है। सबसे सुंदर, सुशील कंन्या को दुनियां की हर मां अपनी बहू के रूप में देखना चाहती है। आजकल अधिकाश: परिवार तो ऐसी कामकाजी बहू पाना चाहते है जो घर की जिम्मेंदारी निभाने के साथ हर महीने दफतर से एक मोटी रकम का बंडल भी ला सके।
जो परिवार कामकाजी बहू नही लेते वो अक्सर उम्मीद करते है कि उनकी बहू चाहे कितनी भी पढ़ी लिखी क्यों न हो, घर के सभी सदस्यों के उठने से पहले सबकी पंसद का बढ़ियां सा नाश्ता तैयार रखे। नाश्ता निपटाते समय सभी की इच्छानुसार लंच के खाने की लिस्ट भी तैयार कर ले। शाम ढ़लते ही पति और ससुर के काम से लौटते ही गर्मा-गर्म चाय और पकोड़ो की थोड़ी सी देरी भी सासू मां का तापमान झट से बढ़ा देती है। चाय-पकोड़ो के बर्तन साफ करने के साथ ही लजीज डिनर की तैयारी करना भी ऐसी बहूओं की एक मजबूरी होती है। रोटी तरकारी बनाने मे जरा सी भूल होते ही बहू के सारे खानदान की कमियां निकालना और उसके मां-बाप को कोसने का तो सासू मां के पास जैसे जन्मसिद्व अधिकार हो। जमीन जयदाद, पति के करोबार और किसी प्रकार के आर्थिक मामलों में आज भी बहू को अपनी जुबान खोलने को कोई हक नही दिया जाता। ऐसे मसलों में बहू के बोलने का सीधा मतलब ससुराल वालो का अपमान माना जाता है।
बहू के माता पिता कितनी भी परेशानी में क्यों न हो, लेकिन यदि बहू ससुराल वालों को नजरअंदाज करके उनका पक्ष लेती है तो ऐसे में अक्सर सासूं मां के साथ दुल्हे राजा के बिगड़ने में पल भर की भी देरी नही लगती। बहू द्वारा मजाक में भी कही गई बात से भी ससुराल वालाें की शंति भंग होने का खतरा बना रहता है। बहू के मायके से हर दिन त्यौहार पर क्या-क्या और कितना कुछ आया है, इस बात पर भी सासू मां अपनी तीखे बाणो वाली टिंपणी देने का कोई मौका नही छोड़ती।
अधिकाश: ससुराल वाले आज भी बहू को एक पालतू जानवर की तरह घर के खूंटे से बंधकर रहने को ही अपनी मर्यादा समझते है। परिवार को आगे बढ़ाने के लिए ससुराल वालों की इच्छानुसार सहयोग करने के सिवाए बहू के पास कोई चारा नही होता। बहू को हर छोटी से छोटी खुशी परोसते समय सासू मां अपनी एहसान रूपी टांग उसके ऊपर रखना नही भूलती। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी उस बेचारी को हर समय यहीं सुनने को मिलता है कि तुम्हारी जैसी बहू को अपने परिवार में जगह देकर हम लोगों ने तुम्हारे सारे खानदान पर एहसान किया है।
ऐसी सासू मांओं को वैसे तो सदीयों से आज तक कोई नही समझा पाया लेकिन जौली अंकल फिर भी इतना जरूर कहना चाहते है कि हर सास को अधिकार है कि वो अपनी बहू के साथ जैसा चाहे व्यवहार करे, लेकिन एक बात पर जरूर गौर करे कि एक दिन वो भी किसी की बहू बन कर आई थी। एक पल के लिए अपने उस अतीत में झांकते ही उन्हें इस प्यारे से रिश्ते की सारी हकीकत समझ आ जायेगी। इसी के साथ उसे यह समझने में देर नही लगेगी कि कभी उसकी सास ने भी उस पर ऐसा ही एहसान किया था।

मम्मी, मैने सास पटा ली


हर लड़की का बचपन से ही एक सुनहरा ख्वाब होता है, कि एक दिन परी लोक से सोने के रथ पर सवार एक सुन्दर सा राजकुमार उसे ब्याह कर ससुराल ले जाएगा। वहां उसका अपना एक खूबसूरत सुन्दर सा घर होगा। परन्तु जीवन की हकीकत किताबों-कहानियों से बिल्कुल जुदा होती है। आज के समय में लड़कियां कितनी भी पढ़ी लिखी क्यूं न हो, ससुराल में जाकर नए लोगों के बीच रहने की सोच से ही एक अजीब सी घबराहट और डर हर लडकी के दिल में कहीं न कहीं अनजानी सी परेशानी पैदा कर देता है। यह भी कटु सत्य है कि कोई मां-बा पतो क्या राजे-महाराजे भी आज तक अपनी बेटी को सदा के लिये अपने घर नहीं रख पाये। एक न एक दिन हर मां अपने जिगर के टुकड़े को अपने हाथों से डोली में बिठा कर विदा कर देती है। ससुराल में जाकर रहना हर लड़की का एक नये जन्म की तरह होता है, फिर से उसकी किस्मत नये सिरे से लिखी जाती है। ससुराल में लड़की के मन में क्या-क्या भावनाऐं उठती है, यह तो वो ही बता सकती है। ऐसी ही एक लड़की ने अपने विचार कुछ इस तरह ब्यां किये हैं।
मम्मी, मेरी शादी से पहले जो घबराहट और डर आपको भी था, वो सच ही निकला। 22-23 साल तक अपने घर में हर तरह की आजादी से रहने के बाद एकदम नये-अनजान लोगों के बीच में आकर रहना सच में ही बहुत कठिन काम है। बार-बार बचपन से ससुराल के बारे में सुनी हुई बातें याद आ रही थीं कि अगर काम ढंग से नहीं करो, तो सास चोटी पकड़ कर ससुराल से निकाल देती है। मेरी हालत तो ऐसे हो गई, जैसे किसी ने मुझे नदी के मझदार में लाकर छोड़ दिया हो। शुरू के कुछ दिन तो रिश्तेदारों के आने जाने में और हनीमून के सैर-सपाटे में बीत गये। उसके बाद मैं अपने आपको अकेला और असहाय सा महसूस करने लगी। भगवान की कृपा से घर में सब कुछ होते हुए भी मेरा मन किसी न किसी अनजानी सी उलझन में फंसा रहता है। सुबह थोड़ी देर से उठने पर कोई कुछ बोले या नहीं, लेकिन घर वालों की खामोश आखें देख कर मुझे लगता कि मेरे से कोई बहुत बड़ी गलती हो गई है।
अब तक सभी ज्ञान और आपके द्वारा दिये गये सभी संस्कारों से कहीं कोई मदद की किरण दिखाई नहीं दे रही थी। मैंने हार मानने की बजाए आपके द्वारा दी गई सलाह को मन में रखते हुए, ससुराल के तौर तरीकों को समझना और अपने मिजाज पर काबू रखने को ही बेहतर समझा। जल्दबाजी करने की बजाए थोड़ा धैर्य और अपनी छोटी सी जुबान को काबू में रखने से मेरी बहुत सी मुश्किलें आसान हो गईं। कुछ दिन पहले आपके जमाई राजा को व्यापार के सिलसले में कुछ दिन के लिये टूर पर जाना पड़ा, उनकी गैरहाज़िरी में, मैं सारी-सारी रात आगे आने वाले समय के बारे में सोच के परेशान होती रही। पूरी रात नये घर और नये लोगों के साथ जिंदगी निभाने की उधेड़-बुन में न जाने कब निकल जाती। अगले दिन जब सुबह, सोकर उठी तो मन में एक नये आत्मविश्वास का आभास सा प्रतीत हुआ। कल तक जो परेशानी हर समय एक साये की तरह मेरे साथ जुड़ी हुई थी, आज वो एक आत्मविश्वास में बदल चुकी थी।
घर में अकेले होने की वजह से मैंने सुबह जल्दी उठना शुरू कर दिया। सुबह जल्दी उठी तो सासू मां के साथ रसोई बनाने का काम भी अच्छा लगने लगा। एक-दो दिन मैंने पूरे परिवार के साथ सासू जी को भी बढ़िया सा नाश्ता बना कर खिलाया। कुछ कमियों के बावजूद भी घर के सब सदस्याें के बीचं मेरे बनाये हुऐ खाने की चर्चा होने लगी। दिन में सासू मां के साथ उनके पसन्द के टी.वी. के प्रोग्राम भी देखने का काफी समय मिलने लगा। इसी बीच कुछ रिश्तेदारों और सासू मां की कुछ सहेलियों की सेवा करने का अवसर मिला। जिसका मैंने भरपूर फायदा उठाया। सासू जी की सहेलियों की आंखों ही आंखों में अपनी तारीफ मुझे भी समझ आने लगी थी।
एक दिन घर के कुछ काम से छोटी ननद के साथ बाजार जाना पड़ा, तो वहां से मैं अपनी सासू मां के लिये कुछ खाने-पीने के सामान के साथ एक बढ़िया सी मेकअप किट भी ले आई। मेरी इस छोटी सी चेष्टा ने मुझे पूरे परिवार के बहुत ही करीब ला दिया। पहले वाला अनजाना सा डर अब एक बीते समय की बात बन चुका था। अब सासू मां बाजार या किटी पार्टी में जाते समय मुझे साथ ले जाना कभी नहीं भूलती। अब उनके चेहरे से हर समय प्यार झलकने लगा था। मुझे पता ही नहीं लगा कि कब हमारा सास-बहू का रिश्ता एक दोस्ती में बदल गया। बल्कि सच कहूं तो अब सासू मां में मुझे आपकी झलक दिखने लगी है।
अब हम सारा परिवार जब भी इकट्ठे मिल बैठते हैं, तो पूरे घर में हंसी के ठहाके गूंजते हैं। आखिर में, मैं अपने दिल की एक सच्ची बात कहना चा हूँगी, और वो सच्चाई यह है कि अब तो आप लोगों की याद भी बहुत कम आती है। मैं भगवान से सदैव एक ही प्रार्थना करती हूं कि मुझे हर जन्म में ऐसी ही ससुराल और सास मिले। पिछले कुछ बरसों में आपके द्वारा दिये गये अच्छे गुणों एवं संस्कारों के कारण मुझे पता ही नहीं चला, कि कब मैं ससुराल वालो के रंग में रंग गई, और कब मैंने सास को पटा लिया। जौली अंकल भी तो अक्सर यही कहते है कि नंम्र होकर चलना, मधुर बोलना और बांटकर खाने से न सिर्फ हमारा परिवारिक जीवन शांतमई बन जाता हे बल्कि यह तीन गुण आदमी को ईश्वरीय पद तक पहुंचाते है।

मार्डन बहू


जब से मिश्रा जी के बेटे की एक विदेशी कम्पनी में नौकरी लगी है, तभी से उनके बेटे के लिये एक से एक बढियां रिश्तो के प्रस्ताव आ रहे थे। आखिर आए भी क्यों न? बेटे को 2 लाख रूप्ये महीने की तन्खवाह के साथ सुन्दर सा बंगला और मर्सीडिज कार जो कम्पनी से मिली है। हर मौके पर मिश्रा जी के दूर नजदीक के दोस्त और रिश्तेदार किसी न किसी बहाने से बात को घुमा-फिरा कर उनके बेटे के रिश्ते की बात पर ही आ कर रूकते थे।
एक बार जब मिश्रा जी की पत्नी ने अपने बेटे से इस बारे में पूछा कि वो किस तरह की लड़की से शादी करना पंसद करेगा। उसने हंसते हुए जवाब दिया कि मुझे तो बिल्कुल चांद जैसी बहू चहिये। मिश्रा जी की पत्नी ने कहा कि बेटा चांद में तो पहले से ही बहुत दाग है, फिर भी तुम्हें चांद जैसी बहू ही क्यों चहिये? बेटे ने मां को समझाते हुए कहा अब अगर बहू चांद जैसी होगी तो वो सिर्फ रात को आया करेगी और सुबह होते ही चली जायेगी। इससे सारा दिन सास-बहू में किसी प्रकार की खट-पट होने का कोई डर नही रहता और न ही मुझ से खर्चे के लिये पैसे मांग सकेगी। ऐसे ही हंसते खेलते पता ही नही चला कि कब मिश्रा जी के बेटे का रिश्ता पक्का हो गया और एक सुन्दर सी मार्डन बहू उनके घर आ गई। बहू के माता पिता ने बाजार से खरीदी जाने वाली हर सुख-सुविधा का सामान भी अपनी बेटी की डोली के साथ भेजा था।
करोड़पति दुल्हन के आते ही घर के सभी सदस्यों ने भारतीय पंरम्पराओं से बहू का स्वागत किया गया और सभी रिश्तेदारो से उसका परिचय भी करवाया गया। ऐसे मौके की सभी रस्में भी मिश्रा जी के परिवार ने खुशी-खुशी निभाई। इसी हंसी मजाक के महौल में दुल्हे के जीजा ने नई दुल्हन से अपने बारे में कुछ बताने को कहा। दुल्हन ने पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़े होकर सबसे पहले पूरे परिवार का बहुत अच्छे तरीके से स्वागत करने के लिये धन्यवाद किया। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा कि आप सभी सोच रहे होगे कि मेरे आने से आपके जीवन और घर में न जाने क्या-क्या बदलाव आ जायेगे?
आप सभी को किसी प्रकार की फिक्र करने की जरूरत नही है। क्योंकि मैं ऐसा कुछ भी नही करूगी जिससे आपको अपने व्यवहार और नित्यकर्म में किसी तरह का बदलाव करना पड़े या आपको कोर्इे भी दिक्कत आऐ। यह मैं सिर्फ अभी दिखावे के लिये ही नही बल्कि आने वाले बरसो या यूं कहिये कि हमेशा के लिये वादा करती  हूँ। यह सब कुछ सुन कर सास-ससुर से लेकर घर के सभी सदस्य मन ही मन खुश हो रहे थे कि इतने बड़े घराने से ताल्लुक होने के बावजूद भी इसमें किसी प्रकार का कोई घंमड नही है।
सास ने चेहरे पर लंम्बी सी मुस्कराहट बिखरते हुए कहा, बेटी तुम ऐसा क्यों सोच रही हो। हम सभी तुम्हारे साथ है, तुम जैसा चाहोगी सभी वैसा ही करेगे। बहू ने कहा सासू जी आप शायद मेरी बात को ठीक से नही समझी। मेरा कहने का मतलब यह था कि घर के सदस्य अभी जो कुछ घर का काम कर रहे है, वो सभी उसी प्रकार अपना-अपना काम करते रहेगे। जैसा कि मुझे बताया गया है, कि रसोई की सारी जिम्मेंदारी सासू जी संभलती है, घर की साफ-सफाई और कपड़ो की धुलाई का जिम्मा बड़ी भाभी का है। बाजार से हर प्रकार का सामान लाने की डयूटी ससुर जी बहुत सालो से अच्छे तरीके से निभा रहे है। बर्तन और गाड़ीयों को साफ-सुथरा रखने के लिये घर में एक नौकर मौजूद है।
अब तक सासू मां का पारा सांतवे आसमान पर पहुंच चुका था। सभी मर्यादयों को तोड़ते हुए उसने कहा कि तुमने हम सभी के काम तो हमें याद करवा दिये, अब जरा यह भी बता दो कि हमारी दुल्हन महारानी इस घर में क्या-क्या करेगी? दुल्हन ने हल्की सी मुस्कराहट चेहरे पर लाते हुए कहा कि आपके बेटे के चित को प्रसन्न रखने और उसको खुश रखने की सारी जिम्मेंदारी में अकेले ही निभाऊगी। ऐसी मार्डन लड़कीयो को जौली अंकल एक छोटा सा संदेश देना चाहते है कि अपने से बड़ो को खुशी देने के लिए केवल कीमती सामान नहीं थोड़ा से सम्मान की जरूरत होती है। 


कम्पूयटर की दुनियॉ

इंसान के बहुत से सपनो को विज्ञान की तेज तरक्की ने हकीकत में बदल दिया है, सात समुन्द्र पार बसी दुनियॉ को एक दूसरे के करीब लाकर खड़ा कर दिया है। एक समय ऐसा भी था जब किसी का संदेश उसके वहां पहुंचने के कई दिन बाद मिलता था। इतिहास में ऐसे कई प्रमाण दर्ज है कि कुछ पत्र तो 20 से 30 साल बाद अपनी मंजिल पर पहुंच पाये थे। महीनों बाद पत्रो के माध्यम से मिलने वाले संदेश अब पलक झपकते ही ई-मेल के जरिये दुनियॉ के हर कोने में पहुंच जाते है। अब तो डाकिये का चेहरा भी सिर्फ दीवाली के मौके पर बक्शीश लेते समय ही नजर आता है। स्कूली बच्चो से लेकर हर दफतर, व्यापारी और बैंक के संदेशो का अदान-प्रदान ई-मेल से ही होता है।
एक दिन समाचार पत्र में क्लर्क की नौकरी का विज्ञापन देख कर चमकू मियॉ भी अपनी किस्मत आजमाने के लिये पहुंच गये। इंन्टरव्यू पूरा होने के बाद कम्पनी वालो को चमकू मियॉ में वो सभी खूबीयॉ नजर आई जिनकी उन्हें जरूरत थी। उन्होने पूरी जांच-पड़ताल के बाद अंत में उसे नौकरी के लिये चुन लिया और उससे कहा कि वो अपना ई-मेल का पता वहां छोड़ जाऐ। कुछ ही दिनों में उसे नियुक्त्ती पत्र भेज दिया जायेगा।
यह सुनते ही चमकू मियॉ ने गहरी सांस लेते हुए कहा, सर न तो मेरे पास कोई कम्पूयटर है और न ही कोई ई-मेल का पता। मुझे तो कम्पूंयटर चलाना ही नही आता। कंम्पनी के मालिक ने कहा, अगर तुम्हारे पास अभी तक कम्पूयटर या ई-मेल के बारे में कोई जानकारी नही है, तो तुम हमारे दफतर में क्या काम करोगे? हम तुम्हें किसी भी हाल में यह नौकरी नही दे सकते। कम्पनी ने वादे के मुताबिक चमकू को आने-जाने के किराये के रूप में 300 रूप्ये देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया।
बुझे हुए मन से घर वापिसी में भूख और प्यास के कारण वो एक नारियल पानी वाले के पास रूक गया। ठंडा-ठंडा और स्वादिष्ट नारियल पानी पी कर चमकू में फिर से जैसे जान आ गई। इससे पहले उसने कभी भी इतना अच्छा और स्वादपूर्ण नारियल पानी नही पीया था। जब उसने दुकानदार को पैसे दिये तो उसने पाया कि यह नारियल तो हमारे इलाके से कही बढ़िया और बहुत ही सस्ता है।
चमकू ने कंम्पनी से मिले 300 रूप्यो के नारियल खरीद लिये और अपने शहर में आकर कुछ ही दिनों में उन्हे अच्छे मुनाफे में बेच दिया। फिर तो यह सिलसिला लगातार ही चल निकला। अब तो चमकू ट्रक भर कर नारियल मंगवाने लग गया। पूरे इलाके में उसके नारियल सबसे बेहतर और उमदा माने जाते थे। पुरानी कहावत है, कि पैसा आते ही इंसान को अक्कल भी अपने आप आ जाती है। कल तक बेरोजगार चमकू आज बहुत बड़ा समझदार सेठ और एक कामयाब व्यापारी बन चुका था।
अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के मद्देनजर एक दिन चमकू मियॉ ने एक बीमा एजेंट को बुलाया और परिवार के सभी सदस्यों का बीमा करने को कहा। कुछ जरूरी जानकारी, फार्म आदि भरने के बाद उस एजेंट ने कहा, सर यहा अपना ई-मेल का पता लिख दो। चमकू मियॉ ने कहा, कि उसके पास न तो कम्पूयटर है और न ही कोई ई-मेल का पता। एजेंट ने हैरान होते हुए कहा, सर अभी तक आपने कम्पूयटर और ई-मेल के बारे में कुछ नही सीखा तो भी आप शहर के सबसे धनी लोगो में से एक है। अगर आप कम्पूयटर का उपयोग सीख लेते तो फिर तो न जाने आपका व्यापार दुनियां में कहां से कहां पहुंच गया होता। चमकू सेठ ने मंद-मंद मुस्कराहते हुए कहा अगर मेरे पास कम्पूयटर और ई-मेल होता तो मैं आज भी शायद एक प्राईवेट कम्पनी में कर्ल्क की नौकरी ही कर रहा होता।
अब जौली अंकल से पूछे कि ई-मेल के बारे में उनके क्या विचार है। वो तो साफ-साफ यही कहेगे कि बदलते जमाने के साथ चलना अच्छी बात है, लेकिन यह जरूरी नही कि आप उसके बिना अपने जीवन में तरक्की कर ही नही सकते। कम्पूयटर जैसी छोटी मोटी रूकावटो के बावजूद आगे बढ़ना और दुखों को हंसी से झेलना ही जिंदगी है।


जुबान संभाल के


एक दिन एक औरत मंदिर में भगवान से झगड़ा कर रही थी कि जब मैं बहू बनी थी, तो तूने मुझे सास अच्छी नहीं दी, अब सास बनीं हूं तो तूने मुझे बहू अच्छी नहीं दी। हम लोग अक्सर अपनी कमियों को छुपाने के लिये सारा दोष भगवान के सिर मढ़ देते हैं।
भगवान ने हमें अनमोल जीवन के साथ इतनी सुख-सुविधाऐ दी है, कि हम जन्मों-जन्मों तक उस का कर्ज नहीं उतार सकते। जहां हमें हर प्रकार के सुख, खाने के लिये एक से एक बढ़िया व्यंजनों के लिये परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिये, वहीं हममें से अधिकतर लोग अपनी जुबान पर काबू न रखते यही शिकायत करते है, कि भगवान तूने आखिर हमें दिया ही क्या है?
हमारे शरीर के हर एक अंग की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। कुदरत ने हमारे शरीर की रचना कुछ इस प्रकार की है, कि हम अपने रोजमर्रा के सारे काम बहुत ही आसानी से बिना किसी के सहारे के कर सके। लेकिन इतने बड़ें शरीर के अनेक अंगों में से सबसे कोमल और नरम अंग है हमारी जुबान। जन्म से मृत्यु तक हर किसी का साथ निभाती है हमारी यह छोटी सी जुबान। दांत हमारे जंन्म के बहुत बाद आते है और जीवन में अक्सर हमारा साथ बहुत पहले छोड़ जाते है। लेकिन हमारी जुबान अपने लचीलेपन गुणों के कारण यह अपना सारा जीवन उन बत्तीस पथ्थर जैसे कठोर दांतो के बीच बड़ी आसानी से गुजार लेती है। हमारे रोजमर्रा के जीवन को चलाने और बोलचाल में इस का बहुत बड़ा योगदान है। हमारी यह छोटी सी जुबान ही हमारे अपनों को पराया और पराये लोगो को अपना बना सकती है। इतना सब कुछ जानते हुए भी हम इस छोटे से अंग पर काबू नहीं रख पाते। अगर हम अपनी जुबान पर काबू रखना सीख लें तो हमारे घर-परिवार के कई रिश्ते टूटने से बच सकते है और समाज में होने वाली अधिकतर परेशनियां खत्म हो सकती हैं।
हमारे नेताओ की तो बिना सोचे समझें कुछ भी बोलने की आदत सी बन गई है। वो एक ही तीर से कई निशाने लगाने की फिराक में रहते है। जब कभी ऐसे लोगो की जुबान से निकली हुई कोई बात गले की हव्ी बन जाती है, तो गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए हमारे नेता झट से कह देते है कि मीडियॉ वालो ने हमारी बात को तरोड़-मरोड़ कर पेश किया है। कभी-कभी सत्ता के नशे में राजनेता ऐसी भाषा का प्रयोग कर जाते है कि पूरे देश का खून खोलने लगता है। आज तो हर कोई जानता है कि हमारी जुबान से निकले हुऐ चंद अक्षर हमारे जीवन को तहस-नहस कर सकते हैं। मंत्रीयों से लेकर कई राजाओं तक को बेजुबानी की बदोलत अपनी गद्दी तक से हाथ धोना पड़ा है।
हमारी जुबान से निकले हुऐ चंद अल्फाज एक पल में किसी गैर को हमारा अपना और कभी-कभी अपने ही खून के रिश्ते को सदा के लिये पराया बना देते हैं। जहां एक ओैर हमारी मीठी बातें समाज में हमें सब का प्रिय बना देती हैं, वहीं दूसरी और हमारी कटुवाणी हमें जीवनभर के लिये दूसरों की नजरों में गिरा सकती है। पूरी दुनिया में अधिकतर परिवारो में कलह और तलाक भी इसी जुबान के कारण ही होते हैं। पति-पत्नी की नोंक-झोंक कई बार इस कद्र बढ़ जाती है, कि यह जुबान दोनों के जन्म-जन्म के रिश्ते को तिनकों की तरह तोड़ देती है। कुदरत द्वारा दी हुई इस बेशकीमती जुबान से जहां हम एक तरफ हर प्रकार के व्यजनों का स्वाद चखना चाहते है, वहीं हमें इसी जुबान से दूसरो की निंदा और बुराई करने में बहुत आनंद और सकून मिलता है।
कुदरत का नियम है, कि किसी भी चीज का गलत तरीके से इस्तेमाल करने से हमें जीवन में हमेशा नुकसान ही उठाना पड़ता है। इसीलिये जीवन में कभी किसी रिश्ते में हल्की सी दरार भी नजर आये, तो उस समस्या को जल्द से जल्द बातचीत से हल कर लेना चहिये। अगर हम बातचीत का रास्ता ही बंद कर दें, या झगड़े को थोड़ा भी बढ़ा दे तो उस रिश्ते को वापिस जिन्दा कर पाना नामुमकिन सा हो जाता है। झगड़ा गली-मुहल्ले के बच्चाें का हो या किन्हीं दो देशों का, उसका हल तो सदा ही प्यार के माहौल में बैठकर, इसी जुबान से ही निकलता है। अब निर्णय तो आपको ही करना है, कि आप अपनी जुबान का सदुपयोग कैसे कर पाते हैं?
जौली अंकल तो सिर्फ इतना ही कह सकते हैं, कि यदि आपकी जुबान सदैव मधुर, नंम्र और सत्य पर आधरित होगी तो आपको हर तरफ से सुख ही सुख मिलेगा। इसीलिये जब भी बोलो, जो भी बोलो, जरा - जुबान संभाल के।

टी. वी. बाबा की जय हो

सारी दुनियां चाहे मंदी की मार से परेशान हो रही है, लेकिन टी.वी. के विज्ञापनों को देख कर तो यही लगता है कि हमारे चारों और लक्ष्मी मां की कृपा बरस रही है। टी.वी. बाबा की महिमा अपरमपार है। हर दुख-दर्द, परेशानी और तकलीफ का हल चंद घंटो में टी.वी बाबा कर देते है। अब आप की समस्यां चाहे सेहत की हो या घर में कलेश की, शादी में रूकावट, प्रेम विवाह, रूठे को मनाना, मियां-बीवी में अनबन रहना, संतान न होना, फिल्म मे हीरो-हीरोईन बनना, वजन घटाने से लेकर जादू-टोना टोटका, कारोबार में परेशानी, विदेश यात्रा में अड़चन। ऐसी सभी परेशानीयों का हल आपके घर में बैठे टी.वी. बाबा के पास है।
न जाने यह तरक्की की आंधी किस तेजी से चल रही है कि कल तक जहां घर के जरूरी सामान की खरीददारी से लेकर शादी-विवाह जैसे हर मसले में घर के बड़े-बर्जुगो की सलाह और मदद ली जाती थी, वह सारे काम अब यह मुआ टी.वी. करने लगा है। कुछ अरसा पहले तक जहां घर के मुखिया चारपाई डाल कर शान से आराम फरमाते थे, अब वहां टी.वी. बाबा का आसान लग गया है। घर में खाने के लिये क्या कुछ और कहां से आना है, इस बारे में जो कुछ टी.वी. महाराज आदेश जारी करेगे, केवल वो निर्णय ही अन्तिम माना जाता है। बच्चो के जूतो से लेकर घर की औरतो के मैकअप, खान-पान और रहन-सहन के बारे में सदीयों पुराने बर्जुगो के तर्जुबे की जानकारीयों को फेल करते हुए टी.वी. बाबा अपना फरमान जारी करते है। दादी-नानी के सभी घरेलू नियमों को ताक पर रख कर रसोई घर में पकवान भी टी.वी. बाबा की इच्छानुसार बनने लगे है।
आधुनिकीकरण और नवीकरण के नाम पर महिलाओं के सिर से घूंघट और पल्लू को हवा में गायब करके समाज में नंगे पन की हौड़ शुरू करने में तो टी.वी. बाबा ने तो कमाल ही कर दिया है। रियालिटी शो की बदौलत दर्शको को चंद पल की खुशी देने के लिये सदीयों पुराने रीति-रिवाजों की धज्जीयां उड़ाने में टी.वी. बाबा का कोई मुकाबला नही कर सकता। कल तक जो बच्चे अपने पायजामें का नाड़ा तक ठीक से नही बांध सकते थे, आज इस टी.वी. की बदौलत इतना समझने लगे है कि बच्चे कैसे पैदा होते है? यही नही कुछ तो इतना भी जानते है कि बच्चे पैदा कैसे नही होते? बच्चो के इस ज्ञान की बढ़ोतोरी के लिये हम टी.वी. बाबा के बहुत एहसान मंद है।
टी.वी. बाबा के आर्शीवाद से आपको घर के लिये स्कूटर कार से लेकर कोई भी सामान खरीदना है तो अब आपको सर्दी -गर्मी में बाजार जाकर धक्के खाते हुए खरीददारी करने की कोई जरूरत नही। बस आपके पास एक फोन और कुछ बड़े-बड़े बैंको के कै्रडिट कार्ड होने चहिये। आपकी हर सुख-सुविधा का सारा सामान टी.वी. बाबा आपके घर पर ही मुहैया करवा देते है। ंटी.वी. बाबा के इतने चम्तकारों को देखने के बाद भी न जानें हमारी सरकार देश में बिजली, पानी और दूसरी सभी कठिनाईयों को खत्म करने के लिये अभी तक टी.वी. बाबा की छत्र-छाया में क्यों नही पहुंची?
अब अगर आपकी बेटी को भगवान सुदर रंग-रूप देने में चूक कर गये और आपको उसके लिये अच्छा वर खोजने में दिक्कत आ रही है तो आप झट से टी.वी. बाबा की शरण में आ जाऐं। आपकी बेटी के लिये अच्छा वर ढूंढने के लिये टी.वी. बाबा ऐसा स्वंयवर रचायेगे कि आपकी बेटी से शादी करने के लिये देश-विदेश से दुल्हों की लाईन लग जायेगी। इस स्वंयवर का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि आपको अपनी बेटी की शादी में दहेज के लिये मोटी रकम खर्च नही करनी पड़ेगी, उल्टा आपको लाखो रूप्ये की अच्छी-खासी आमदनी हो सकती है।
किसी साधू-संत के पास दो-चार शक्तियां होती है परन्तु हमारे टी.वी. बाबा सर्वशक्तिमान है। यह योग से लेकर दुनियां भर के फैशन की जानकारी एक रिमोट के इशारे पर आपको मुहैया करवा देते है। जिस प्रकार छोटे-छोटे ग्रहो का जीवन किसी एक बड़े ग्रह की कृपा से चलता है ठीक उसी प्रकार समाज में बरसों से साधना करने के बाद भी मनचाहे फल न मिलने वाले हर प्रकार के तंत्रिक, ज्योतिषी, योग गुरूओ एवं अन्य क्षेत्रो से जुड़े लोगो का भाग्य टी.वी. बाबा चंद दिनाें में बदल देते है।
यह सच है कि सफलता और विवादों का तो आपस में चोली दामन का रिश्ता होता है, परन्तु आचरण अच्छा हो तो मन में अच्छे विचार ही आते है। जौली अंकल तो केवल इतना मानते है कि क्या खो दिया यह मत सोचो बल्कि अगर वर्तमान में कुछ न किया तो फिर कुछ नही पाओगे। यदि आप सच्चे हृदय से कर्म करते हो तो आपकों किसी प्रकार की भी सफलता के लिये टी.वी बाबा की और देखने की जरूरत नही पड़ेगी। 

हनीमून


शिमला की हसीन वादीयों में वीरू को अकेले घूमता देख उसके दोस्त जय ने उससे पूछा कि यहां शिमला में क्या कर रहे हो? वीरू ने खुशी-खुशी बताया कि कुछ दिन पहले उसकी शादी हो गई है और वो हनीमून मनाने के लिये यहां आया है। जय ने शादी की मुबारक देते हुए कहा कि हनीमून पर आये हो और यहां अकेले घूम रहे हो, हमारी प्यारी भाभी कहां है? वीरू ने सफाई देते हुए कहा कि वो कह रही थी कि मैने तो शिमला कई बार देख रखा है, अगर आप कहीं दूसरी जगह चलो तो ठीक है वरना शिमला तो आप अकेले ही हनीमून मना आओ। इसीलिये मुझे मजबूरी में यहां अकेले ही हनीमून मनाने आना पड़ा।
अजी जनाब यह तो कुछ भी नही हनीमून से जुड़े ऐसे सैंकड़ो किस्सो से इस तरह का इतिहास भरा पड़ा है। एक बार दो कजूंस अपने बच्चो के हनीमून के किस्से एक दूसरे को सुना रहे थे। एक कजूंस ने कहा कि मैने तो हनीमून के पैसे बचाने के लिये अपने बेटे को अकेले ही हनीमून पर भेज दिया था। दूसरे कजूंस ने और अधिक शेखी बघारते हुए कहा तूने तो सिर्फ आधे पैसे ही बचाए थे, मैने तो हनीमून का सारा खर्च ही बचा लिया था। अब जब पहले कजूंस ने हैरान होकर जानना चाहा तो उसने बताया कि मेरे पड़ोसी का बेटा अपने हनीमून के लिये जा रहा था, तो मैने अपनी बहू को उन्ही लोगो के साथ हनीमून मनाने भेज दिया था।
दुनियां में कोई भी व्यक्ति किसी धर्म, जात या देश से ताल्लुक रखता हो, अमीर हो या गरीब, शादी के लिये चाहे हजारों-लाखो रूप्यों का कर्ज सिर पर चढ़ जाये, लेकिन हर दुल्हा अपनी दुहलन को खुश करने के लिये अपना हनीमून जरूर मनाना चाहता है। आज तक हम में से कभी भी किसी ने चाहे अपने देश का गणतंत्र दिवस या आजादी का दिन न मनाया हो, लेकिन हनीमून मनाना हमारे देश वासीयों की पहली प्राथमिकताओं में से एक होती है। कुछ लोग शादी-विवाह में बहुत अधिक खर्चा हो जाने के कारण हनीमून के लिये बैंक से कर्ज लेने से भी नही चूकते। वो बात अलग है कि हमारे बैंक कई बार हनीमून का कर्ज पहले बच्चे की डिलवरी तक ही मुहैया करवा पाते है।
हनीमून का क्या मतलब है, इसे मनाने के पीछे क्या उद्दे्श्य है, इन सभी बातो को समझे बिना हर कोई हनीमून के सुहावने सपनों में खो जाना चाहता है। हनीमून मनाने की पंरपरा कब और कहां से शुरू हुई, इस बारे में कोई भी ठीक से नही जानता। बरसों पहले विदेशो में अपनी शादी के उत्सव को दुल्हा-दुलहन कुछ और अधिक समय तक मनाने के लिये घर से दूर नई-नई जगह पर चले जाते थे। जबकि हमारे यहां पुराने जमाने में माता-पिता बच्चो की शादी करते ही लंबी तीर्थ यात्रा पर निकल जाते थे। उस समय के शादी-शुदा जोड़ो को मजबूरन अपना हनीमून घर की चार दीवारी में ही मनाना पड़ता था।
असल में हनीमून मनाने से मुराद यह होती है कि दो अनजान लोग जो शादी के बंधन में बंध कर अपना गृहस्थ जीवन शुरू करने जा रहे है, वो एक दूसरे का विश्वास जीतने के साथ और करीब आते हुए अपने जीवन साथी को अच्छी तरह से समझ सके। इसी के साथ पति-पत्नी की इच्छा और घर के महौल के अनुरूप खुद को अच्छी तरह से ढ़ाल सके। वैसे भी हनीमून के यह पल जीवन का वो हिस्सा होते है, जो पति पत्नी की शादी-शुदा जिंदगी को सबसे रंगीन और हसीन बना देते है। अक्सर देखने में आता है कि प्रेम विवाह करने वाले जोड़ो का प्यार जिस तेजी से हिलोरे मारता हुआ ऊपर की और उठता है, उतनी ही तेजी से राजनीतिक पार्टीयो के गठबंधन की तरह उनका यह नशा हनीमून से पहले ही उतर जाता है।
कुछ लोग दहेज के लालच की लालसा मन में रख कर अपने दांम्पतय जीवन की नींव रखते है, ऐसे लोगो को जीवन में कभी सुख नही मिलता। पराये धन से अगर सुख मिल सकते तो शायद इस दुनिया में कभी कोई दुखी नहीं होता। गृहस्थ जीवन में जो इंसान सदा ही अपनी गर्दन ऊंची रखता है, वह सदा मुंह के बल गिरता है। महापुरषो का कथन है कि स्वर्ग-नर्क सब कुछ इसी लोक में है, आज जो कुछ बोओगे कल तुम्हें वही सब कुछ काटाना पड़ेगा, इसीलिये जीवन में सदैव अच्छा करो, अच्छा पाओ। बड़े-बर्जुगो के विचार से हमारा दांम्पतय जीवन तभी सार्थक है, जब उसमें परोपकार भी शामिल हो। अब यदि अपने वैवाहिक जीवन को हमेशा ही हनीमून की तरह महकदार है तो अपनी वाणी को सदा सत्य पर आधरित रखने का प्रयास करो तभी जीवन का सच्चा सुख मिल पायेगा।
अंत में आप सभी के लिये जौली अंकल भगवान से यही प्रार्थना करते है कि तेरे फूलो से भी प्यार, तेरे कांटो से भी प्यार, जौली अंकल की यही दुआ है कि सदा सुखी रहे आप सभी का संसार।

बीवी से कौन नही डरता

एक बार महाराज अकबर बीरबल के साथ शाम को बाग में टहल रहे थे। कुछ राज-काज की बातें करते-करते महाराज अकबर ने अचानक बीरबल से पुछा, सुना है कि तुम बहुत बड़े जोरू के गुलाम हो और अपनी बीवी से बहुत डरते हो। बीरबल को महाराज अकबर से इस तरह के सवाल का अंदेशा न था। उसने संभलते हुए कहा-जी, मैं ही क्या हमारी सल्तनत (राज्य) का हर आदमी अपनी बीवी से डरता है। महाराज अकबर ने बीरबल की तरफ टेडी नजर से देखते हुऐ कहा, तुम अपनी कमजोरी छुपाने के लिये इलाके के सभी लोगों पर इल्जाम नहीं लगा सकते। बीरबल ने कहा, महाराज मैं जो भी कह रहा हूँ वो एक कड़वी सच्चाई है। कोई मुंह से बोले या न बोले, आपके सामने मानें या न माने लेकिन हर इन्सान अपनी बीवी से डरता जरूर है। महाराज ने कहा क्या तुम अपने इस दावे को साबित कर सकते हो? बीरबल ने झट से हामी भर दी॥ अपनी आदतानुसार महाराज अकबर ने यह हुक्म भी दे डाला कि तुम अगर यह साबित नहीं कर पाये, तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जायेगा। बीरबल ने चुनौती को स्वीकार करते हुए महाराज से एक जनसभा बुलाने का आदेश जारी करवा दिया।
एक निश्चित तिथि को सारे प्रदेश के लोगों को एक जगह एकत्रित होने के लिये कहा गया। जब सब मर्द वहां आ पहुंचे, तो महाराज अकबर ने बीरबल को उसका वादा याद करवाया। बीरबल ने भी पूरे विश्वास के साथ अपना काम षुरू कर दिया। बीरबल ने हर एक आदमी से पूछना शुरू किया, कि क्या वो अपनी बीवी से डरते है? तो अधिकतर लोगो ने कोई न कोई बहाना बना कर कबूल कर लिया, कि वो किसी न किसी कारणवश अपनी अपनी बीवी से डरते है। कुछ लोगो का कहना था कि मैं डरता तो नही लेकिन घर में झगड़ा होने के डर से बीवी की हर बात मान लेता  हूँ। बीरबल ने ऐसे सभी लोगो को एक-एक अंड़ा पकड़ा कर एक तरफ बैठने को कहा। यह सब कुछ देख महाराज अकबर भी परेशान होने लगे, कि यह सब क्या हो रहा है? हमारी फौज का एक से एक बहादुर योध्दा भी यहां तो भीगी बिल्ली बना हुआ नजर आ रहा है।
काफी समय के बाद एक हट्टे-कट्टे नौजवान की बारी आई तो उससे भी यही सवाल पूछा गया। तो उसने कहा बीवी से कैसा डरना? बीवी तो पैर की जूती के बराबर होती है। उसकी क्या हिम्मत जो आदमी के सामने कुछ भी बोल जाए। महाराज अकबर को थोड़ी तसल्ली हुई कि चलो देर से ही आखिर कोई तो शेर निकला, जिसने इतनी बात कहने की हिम्मत की। जब हर तरीके से बीरबल ने उसे परख लिया, तो महाराज ने उसे महल का सबसे सुन्दर घोड़ा इनाम में देने की घोषणा की। जैसे ही वो खुशी-खुशी घोड़ा लेकर अपने घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने हैरान होते हुए पूछा, सुबह तो पैदल धक्के खाते हुए काम पर गये थे, अब यह घोड़ा किस का उठा लाये हो? उसने सारा किस्सा अपनी पत्नी को बताया। उसकी पत्नी ने कहा, तुम्हें सारी उंम्र अक्ल नहीं आ सकती। अगर गलती से जिंदगी में पहली बार इतना बड़ा इनाम जीते ही थे, तो कम से कम दरबार से सफेद घोड़ा तो लेकर आते। यह क्या काले रंग का भद्दा सा घोड़ा उठा कर ले आये हो? उसने कहा, भाग्यवान तुम चिंता मत करो, आज महाराज मेरे से बहुत खुश है। आज तो उनसे जो कुछ भी मांगूगा, वो मुझे मना नही करेगे। यह काला घोड़ा तो मैं अभी बदल कर ले आता हूं।
कुछ देर बाद ही वो काला घोड़ा लेकर वापिस दरबार में पहुंचा और बीरबल से प्रार्थना करने लगा कि मेरी बीवी को यह काला घोड़ा पसन्द नहीं है, आप कृप्या मुझे कोई सफेद घोड़ा दे दो। बीरबल ने कहा, यह घोड़ा उधर बांध दो और यह अंडा लेकर घर जाओ। यह सब देखते हुए महाराज अकबर भी परेशान हो गये, कि अभी तो यह आदमी इतनी शेखियां बघार रहा था। महाराज ने बीरबल से सारी बात जानने की कोशिश की। बीरबल ने बताया, महाराज इसकी बीवी बहुत सुन्दर है। देखने में तो वो बिल्कुल परी लगती है। उसको यह तो क्या, कोई भी आदमी किसी काम के लिये ना नहीं कह सकता।
महाराज ने बीरबल से कहा, ऐसी खूबसूरत औरत को तो हम भी एक बार जरूर देखना चाहते है। तुम किसी तरह जल्द से जल्द इस मुलाकात का इन्तजाम करवाओ। बीरबल ने कहा महाराज यह तो कोई मुश्किल काम नहीं है। मैं कल ही उस औरत से आपकी मुलाकात करवा देता हूं। बीरबल की बात को बीच में ही काटते हुए महाराज बोले, लेकिन एक बात का ध्यान रहे कि हमारी बेगम साहिबा को इस बात की भनक भी नहीं लगनी चाहिये। बीरबल ने थोड़ा डरते और मुस्कराते हुए कहा कि उसकी आप बिल्कुल ंचिंन्ता मत करो। साथ ही बीरबल ने कहा कि महाराज अब आखिर में आप ही अकेले जोरू के गुलाम बचे थे। अब अगर इजाजत हो तो आप को भी यह अंड़ा दे दूं। बीरबल ने सदा की तरह अपनी अक्ल का सबूत पेश करते हुऐ, अपनी जान भी बचा ली। बादशाह अकबर आखिर यह मान ही गये कि हर मर्द किसी न किसी कमजोरी के चलते अपनी बीवी से जरूर डरता है। महाराज अकबर के पास अब झेंपने के अलावा कोई चारा नहीं था। जौली अंकल चाहे कुछ भी कहते रहे लेकिन हर कोई जानता है कि वो भी किसी और खास मिट्टी से तो बने नही कि वो यह दावा कर सके कि वो जोरू के गुलाम नही है।