Life Coach - Author - Graphologist

यह ब्लॉग खोजें

फ़ॉलोअर

Article लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Article लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

बातचीत की महान कला का रहस्य है खामोशी

एक नेता की पत्नी ने बहस करते हुए कहा कि मेरे पति तो किसी भी मुद्दे पर घंटो बोल सकते है। सामने बैठी दूसरे नेता की पत्नी ने अंहकारवश कहा कि यह तो कुछ भी नही मेरे पति तो चुनावों के दौरान बिना किसी मुद्दे के घंटो भाषण दे देते है। बात घर की हो या राजनीति की, मंहगाई की हो या मौसम की, देश में फैले भ्रष्टाचार की हो या नेताओं से जुड़े घोटलों की। यदि हम दुनियांदारी की सभी बातो को छोड़ भी दे तो ऐसे बहस करने वाले वक्ता भगवान को ही अपनी बहस का मुद्दा बनाने से नही चूकते। कभी कभार जब कोई भी मुद्दा समझ न आ रहा हो तो बहस करने वाले बिना किसी मुद्दे के ही अपना अनमोल समय घंटो बहस में बिता देते है।
आजकल किसी के पास घर दफतर के जरूरी काम के लिये समय हो या न हो लेकिन फालतू की बहस करने के लिये उन्हें न तो किसी खास विषय की जरूरत महसूस होती है और न ही किसी मुद्दे की। हमारे देश में बहस करने के शौकीन लोगो को भगवान ने न तो मुद्दो की और न ही समय की कोई कमी दी है। बहस करते समय यह सभी लोग अपना खाना-पीना और अन्य सभी जरूरी काम तक भूल जाते है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह लोग सुबह सैर करने से लेकर, बस, गाड़ी में सफर करते हुए, राशन की लाईन में खड़े-खड़े या कहीं भी किसी भी बात को बहस का मुद्दा बना कर अपने साथ-साथ आसपास के सभी लोगो के लियें मुफत का मनोंरंजन शुरू कर देते है।
बहस करने वालों को इस प्रकार की चुस्कीयों में इसलिये भी बहुत आंन्नद मिलता है क्योकि बिना किसी मुद्दे के बहस करने के लिये न तो किसी शोध और न ही किसी तर्क की जरूरत होती है। कई लोग तो बिना किसी विषय की खोजबीन किए ही केवल बहस के बल पर हीरो बनने का दमखम रखते है। यह लोग विषय को अच्छी तरह से समझते है या नही, बहस के मुद्दे के बारे में कुछ ज्ञान है या नही, इससे इन्हें कुछ फर्क नही पड़ता। अब बाकी लोगो का यह हाल है तो आप सोच सकते है कि दारू पीकर बहस करने वालो का क्या हाल होता होगा? ऐसे लोग दारू के नशे में अपने दिमाग को भी पूरी तरह से ताला लगा कर बिना सिर पैर के मुद्दो पर पार्टीयों में घंटो बहस करते देखे जा सकते है।
बहस में कामयाब होने के लिये सिर्फ अपनी आधी-अधूरी जानकारी को सच साबित करने के लिये एक ही बात को बार-बार जोरदार आवाज में कहना आना चाहिये। यदि फिर भी कोई आपकी बात न माने तो आप शोर मचा कर और ऊंची आवाज में बोल कर लगातार बहस करते हुए आप अपनी गलत बात को सही साबित कर सकते है। इतना सब कुछ होने पर भी कोई आपकी बात से सहमत नही हो पाता तो भी ऐसे लोगो को इस बात से कोई सरोकार नही होता।
बहस करने वाले अक्सर यह भूल जाते है कि जो लोग बिना पूर्ण जानकारी के बहस में उलझते है उन्हें कभी भी सम्मान नही मिल पाता। इस तरह के लोग अपनी गर्दन ऊंची रखने की चाह में सदा मुंह के बल गिरते है। किसी विषय पर कितनी ही बहस करने पर भी चाहे उस का कोई हल न निकले लेकिन हम सभी को इस प्रकार के वाद-विवाद में खूब मजा आता है। सत्य यही है कि हमें बिना मुद्दो के बहस करना अच्छा लगता है, क्योंकि हमें ऐसे विषयो को सुलझाने के लिये किसी तरह से भी न तो कोई मेहनत करनी पड़ती है और न ही अपना दिमाग लगाना पड़ता है। परन्तु बिना तथ्यों के क्या किसी भी बात को स्वीकार किया जा सकता है? यदि कोई ऐसा करता है तो इसे उस इंसान की कमजोरी ही कहां जायेगा।
हर मुद्दे पर हम सभी के विचारो में अन्तर हो सकता है, लेकिन एक अच्छा इंसान होने के नाते हमारे स्नेह में कभी अन्तर नही होना चाहिए। हमारी वाणी ही हमारे साथ रहने वाले लोगो को हमारा दोस्त या दुश्मन बनाती है। बिना किसी मुद्दे के बहस करने और बड़ी-बड़ी बातें बनाने के बजाय हमें छोटे-छोटे नेक कामों से पहल करनी चहिये। कुछ न कुछ बुराई या कमी तो सब में होती है, लेकिन दूसरो को इसके बारे में बताने की बजाए पहले हमें अपनी कमीयों को भी देख लेना चाहिएं। हर विषय पर बड़े दावे करने से पहले हमें स्वयं की खोज के लिए स्वयं के प्रति सच्चा बनना पड़ेगा। ज्ञानी लोगो का कहना है कि एक समय के बाद हर इंसान मर जाता है परंन्तु उसके विचार हमेशा जिंदा रहते है।
यह तो कमाल ही हो गया, बिना किसी विषय के बारे में सोचे-समझे बहस करते-करते यह तो पूरा लेख ही बन गया। जौली अंकल अब इस बहस को और अधिक न बढ़ाते हुए केवल यही संदेश देना चाहते है कि बातचीत की महान कला का रहस्य है - खामोशी।

समझौता


चंम्पू ने अपने पापा से पूछा कि मैने सुना है कि इंग्लैंड में शादी के कई बरस बाद तक पति-पत्नी एक दूसरे को ठीक से समझ नही पाते। पापा ने गहरी सांस लेते हुए कहा, इंग्लैंड में ही क्यूं हमारे देश में भी ऐसा ही होता है। हर शादी-शुदा व्यक्ति यह अच्छी तरह से जानता है कि शादी का दूसरा नाम ही ंजिदगी से समझोता है। न चाहते हुए भी तुम्हें बहुत से ऐसे काम करने पड़ते है जो सिर्फ तुम्हारे पार्टनर को अच्छे लगते है और जिसमें आपकी कोई रूचि नही होती। किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि हर किसी को पूरा जहां तो नही मिलता, किसी को जमीन नही मिलती तो किसी को आसमान नही मिलता। हर किसी को गुहस्थ जीवन की गाड़ी शंतिमय तरीके से चलाने के लिए कहीं न कहीं हालात से समझोता करना ही पड़ता है, अब चाहे वो आपका घर हो दफतर।
रोजमर्रा की जिंदगी से लेकर बात चाहे खाने पीने की हो या कठिन हालात में जीने की असैनिक लोगो के मुकाबले सैनिको को जिंदा रहने के लिए हर प्रकार की नाजुक स्थितियो से रोजमर्रा के जीवन में अधिक समझोता करना पड़ता है। खड़क सिंह ने अपना सारा जीवन देश की सैन्य सेवा को समर्पित करके कुछ अरसा पहले कारगिल युध्द के बाद सेवा-निवृती लेकर अपने घर वापिस आ गया। सेना में नौकरी के दौरान फौजी कुत्तो को प्रशिक्षण्ा देने की जिम्मेदारी निभाते हुए उन्हें कुत्तो से बहुत प्यार हो गया था। सरकारी नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद वो अपने आप को अकेला सा महसूस करने लगा था।
कुत्तो के प्रति इसी आर्कषण के कारण वो अपने लिए एक सुन्दर सा कुत्ता खरीदने के लिए अपने इलाके के महशूर जानवरो के डाक्ॅटर के पास पहुंचे जो कुत्तो का इलाज करने के साथ उनको खरीदता और बेचता भी था। उन्होने ने वहां बहुत से सुन्दर-सुन्दर नस्ल के कुत्ते देखे लेकिन वो सभी बहुत ही मंहगे थे। इतनी अधिक कीमत सुनने के बाद फौजी को लगा कि यहां से कोई भी कुत्ता खरीदना उनकी हैसीयत से बाहर था। जब निराश होकर दुकान से बाहर जाने लगे तो खड़क सिंह की नजर उसी दुकान के एक कोने में सोते हुए सुस्त से कुत्ते पर पड़ी। खड़क सिंह ने उस कुत्ते की कीमत पूछी तो दुकानदार ने कहा कि उसको लेकर क्या करोगे? वो तो बहुत बीमार और कमजोर है। खड़क सिंह ने कहा कि तुम वो सब छोड़ो यह बताओ कि तुम वो कुत्ता कितने में दोगे? दुकानदार ने कहा अगर वो तुम्हें इतना ही पंसद है, तो तुम जो भी ठीक समझो वो कीमत दे दो, क्यूंकि मुझे तो उसकी बीमारी पर काफी पैसे खर्च करने पड़ रहे है। लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि न तो वो तुम्हारे साथ ज्यादा खेल पायेगा और न ही दौड़-भाग कर सकेगा, क्योंकि उसकी एक टांग बिल्कुल खराब है जिससे वो लगड़ा कर धीरे-धीरे ही मुशकिल से चल पाता है।
खड़क सिंह कुछ पल के लिये गहरी सोच में डूब गया। दुकानदार ने कहा कि मुझे पहले से ही मालूम था कि लंगड़ा कुत्ता जो ठीक से चल फिर और भाग नही सकता उसे कोई नही खरीदेगा? खड़क सिंह ने कहा यह बात नही है, मुझे तो कुछ इसी प्रकार का कुत्ता ही चाहिए। लेकिन आज मेरे पास पैसे कुछ कम है। दुकानदार ने कहा, तुम कुत्ते को ले जाओ बाकी के पैसे बाद में भिजवा देना। लेकिन इसको ले जाने से पहले मुझे एक बात बताओ कि तुम इतने अच्छी नस्ल के कुत्तो को छोड़ कर इस लंगड़े और बीमार कुत्ते को ही क्यूं लेकर जा रहे हो।
बार-बार लंगड़ा शब्द खड़क सिंह को गाली की तरह सीने में चुभ रहा था। उसने अपनी पैन्ट का एक हिस्सा ऊपर उठा कर उस दुकानदार को दिखाते हुए कहा कि यह देखो मैं भी एक टांग से लंगड़ा ही  हूँ। मेरी भी एक टांग दुश्मन के साथ युध्द में गोली लगने से कट गई थी। मेरी यह नकली टांग लकडी की बनी हुई है। किसी भी चीज को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है, किन्तु उसे महसूस करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है। परंतु यह कितने आश्चर्य की बात है कि कभी-कभी हम अपने सारे जीवन में यह भी नही जान पाते कि कौन हमारा सच्चा दोस्त है और कौन दुश्मन।
जब तक खुद को दर्द नही होता हम लोग किसी दूसरे का दर्द नही समझ सकते। मैं बहुत समय से ऐसे ही कुत्ते की तालश कर रहा था जो मेरी जिंदगी के साथ समझोता कर सके और मेरी तरह मेरे साथ धीरे-धीरे ही चले। अब अगर यह मेरे साथ रहेगा तो हम दोनो एक दूसरे के दर्द और तकलीफ को अच्छी तरह से समझते हुए एक दूसरे का साथ अच्छी तरह से निभा पायेगे। खड़क सिंह जब वो कुत्ता वहां से लेकर जाने लगा तो डॉक्टर ने कहा कि दूसरों की जान बचाने से बड़ा परोपकार कोई नही होता, ऐसे कार्य को केवल इंसान ही नही ईश्वर भी देखते है। खड़क सिंह ने जाते-जाते पीछे मुड़ कर देखते हुए बिना कुछ कहे भी मानों डॉक्टर को यह कह दिया हो कि किसी भी पतिरस्थिति में घबराना नही चाहिए, बल्कि हर हाल में डटकर मुकाबला करना चाहिए।
जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई तो यह है कि दूसरो की सेवा करने वालों को स्वयं कभी कोई कष्ट महसूस नही होता। जौली अंकल विध्दवानों की बात को दोहराते हुए सदैव ही कहते है कि जो इंसान अपनी कमीयों को जानता और समझता है, उसे स्वप्न में भी किसी पराये में कोई कमी नही दिखाई देती। वो हर हालात में दीन-दुखीयो के साथ आसानी से समझौता कर लेता है। 

अंग दान - महादान

भगवान की लीला भी निराली और अपरमपार है। जो परिवार ठीक से बच्चो को पाल नही सकते उन्हे तो वो ढेरो बच्चे दे देता है और कुछ माता-पिता बेशुमार दौलत के मालिक होने के बावजूद भी एक मासूम बच्चे की किलकारी सुनने के लिए सारी उंम्र तरसते रहते है। इनसे भी अधिक बदनसीब वो लोग होते है, जिन की केवल एक ही संन्तान होती है और मौत के करूर पंजे उसे भी समय से पहले ही उनसे छीन लेते है। इसके बावजूद भी कोई भगवान से यह नही कह पाता कि वो ऐसा क्यों कर रहे हो? क्या कोई आज तक भगवान को समझा सका है कि तू ऐसे नही ऐसे कर? हमसे कोई भी इतना ताकतवर नही है कि हम उसके ध्दारा रचे हुए इस खेल में किसी प्रकार की आनाकानी कर सके।
ऐसी ही एक दुखयारी मां के 14 साल की नाजुक उंम्र के फूल जैसे कोमल बेटे का कैंन्सर के इलाज दौरान अस्पताल में आप्ररेशन चल रहा था। बार-बार उस लाचार मां की आखें आप्रेशन थियेटर के दरवाजे की और उठ रही थी कि किस पल डाक्टर आकर कहेगा कि सब कुछ ठीक ठाक हो गया है। वो उस घड़ी के लिये बेकरार थी जब अपने बेटे की एक झलक देख पायेगी। इसी उधेड़-बुन में खोई मां को पता ही नही चला कि किस समय डाक्टर साहब उसके पास आये और माफी मांगते हुए बड़े ही अफसोस के साथ बोले कि हमारी सारी कोशिशे बेकार हो गई। हम आपके बेटे को नही बचा सके। एक ही पल में मां की आंखो के आगे अंधेरा छा गया, वो एक पथ्थर की तरह फटी नजरों से डाक्टर के चेहरे को देखे जा रही थी। डाक्टर ने उस मां को होश में लाने के बाद कहा कि आप अंतिम बार अपने बेटे को देख लो फिर हमें उसके शरीर से महत्वपूर्ण अंगो को जरूरतमंदो को दान करने के लिए मैडीकल कालेज लेकर जाना है।
यह सुनते ही उस मां का कलेजा फट गया उसके मुख से अनगिनत चीखे निकल गई, उसने कहा कि आप मेरे फूल जैसे बच्चे के साथ ऐसा अन्याय कैसे कर सकते हो? शिष्टाचार की परवाह किया बिना उसने डाक्टर से कहा कि आपन डॉक्टर नही एक जल्लाद है। डाक्टर ने उन्हे हौसला देते हुए कहा कि मैं आपके इस असाहय दुख-दुर्द और परेशानी को समझता  हूँ। लेकिन आपके बेटे ने आपरेशन से पहले अपनी अंतिम इच्छा जाहिर की थी कि अगर किसी कारण उसे बचाया न जा सके तो उसके सभी जरूरी अंग जरूरतमंदो का जीवन बचाने में काम आ सके तो उसे बहुत सुकून मिलेगा। उसने यह भी कहा था, कि उसने यह सब कुछ लिख कर अपने बिस्तर के ऊपर रखे तकिए के साथ रख दिया है।
कुछ ही पल के बाद अस्पताल के कर्मचारी उस बच्चे की लाश को एक ऐम्बूलैंन्स में लेकर चले गये। मां रोते बिलखते हुए अपने बेटे की आखिरी चिट्ठी पढ़ रही थी। दुनियां की सबसे अच्छी और प्यारी मां मैं तुम्हें बहुत प्यार करता  हूँ और यह भी जानता  हूँ कि तुम मेरे बिना आसानी से नही जी पाओगी। अब अगर मुझे कुछ हो जाता है, तो तुम किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लेना, इससे किसी अनाथ बच्चे को मां और तुम्हे मेरे जैसा सुन्दर और लाडला बेटा मिल जायेगा। मेरी पुस्तके, कपड़े और खेलने का सारा सामान भी उसको दे देना। इससे वो सभी चीजे बेकार होने से बच जायेगी और एक अनाथ को ढ़ेरो खुशीयां नसीब हो जायेगी।
जैसा कि मैने टी.वी. में कई बार देखा था कि बहुत से ऐसे बर्जुग और जरूरतमंद मरीज है जो किसी न किसी अंग की कमी के कारण जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे है। जहां तक मैं समझ पाया  हूँ कि एक मृत षरीर से छह लोगो को जीवन मिल सकता है। चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के जरिये उन्हें मुर्दा शरीर से ंअंग लगा कर मौत से झूझते लोगो के जीवन में फिर से आषा की किरण जगा सकते है। मां तुम्हारे दिल के दर्द को समझते हुए अपने जीते जी तो मैं यह सब कुछ तुम से नही कह सका, लेकिन मेरी आंखे, किडनी और अन्य जरूरी अंग जो अब मेरे मरने के बाद बेकार हो चुके है, उन से कुछ लोगो को नया जीवन मिल सकता है।
मेरी दो आखों से दो लोगो की दुनियॉ रौशन हो सकती है। ऐसे ही मेरे गुर्दे एवं अन्य जरूरी अंग कई अन्य किसी न किसी परिवार को खुशीयां दे पायेगे। हमारे देश में हर साल लाखों लोग मरते है, लेकिन महज कुछ सो लोग ही अपने अंग दान करते है। इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए मैने अपने शरीर के सभी जरूरी अंग दान में देने का मन बनाया था। मां मैं तुम्हारी हालत को समझ सकता  हूँ कि इन बातो को स्वीकार करना कितना कठिन है। परन्तु मुझे विश्वास है कि मेरे इस तरह जाने के बाद इन सभी लोगो के माध्यम से मुझे हमेशा अपने आस-पास ही पाओगी। यदि हम सभी लोग प्रण कर लें कि अपने प्रियजन की मृत्यु के बाद उसकी आखें व जरूरी अंग दान करेगे तो आने वाले समय में बहुत हद तक विकलांगता कम हो सकती है। हमारे धर्म में तो छोटे से दान का भी बहुत बड़ा महत्व है, मेरा यह अंग दान तो शायद महादान होने के साथ-साथ बहुत से लोगो के लिये प्रेरणा का स्त्रोत भी बन जाए।
हमारे देश के हर धर्म में दान का बहुत महत्व है। यह जानते हुए भी कि नियमित दान करने की आदत से इंसान अपने खाते में पुण्य जोड़ सकता है, हम इस और ध्यान नही देते। किसी भी प्रकार का दान देने वाले की प्रंशसा तो बहुत होती है लेकिन इसी के साथ यदि उसका आचरण अच्छा है वह और भी ज्यादा प्रंशसनीय है। जब भी किसी प्रकार का दान जरूरतमंद की जरूरत पूरी करता है तो उससे प्राप्त होने वाली संतुष्टि उसके रोम-रोम से फूटकर दान करने वाले को आशीर्वाद देती है। जौली अंकल की नम आखें अब उनकी कलम का साथ नही दे पा रही। आगे और कुछ न कहते हुए मैं उस महान और पवित्र आत्मा के इस महादान को सलाम करता  हूँ, जिसने मरने के बाद भी महादान करके आने वाली पीढ़ियो के लिए ऐसी अनोखी मिसाल कायम की है। 

औकात

एक बार महाराज अकबर को पड़ोसी राज्य से एक खास मौके के लिये न्यौता मिला। उन्होंने झट से बीरबल को बुलाकर कहा, कि इस खास मौके पर जाने के लिये एक बढ़िया सी पोशाक तैयार करवाई जाए। बीरबल ने उसी समय महाराज के शाही दर्जी को बुला भेजा। दर्जी सिलाई-कढ़ाई के लिये अपना सभी जरूरी समान लेकर दरबार में हाजिर हो गया। महाराज अकबर का ठीक से नाप वगैरह लेकर उसने महल में पोशाक सिलने का काम शुरू कर दिया। अब क्योंकि महाराज अकबर की बहुत ही खास मौके के लिये पोशाक बन रही थी तो वो भी कौतूहलवश कुछ देर के लिये वहीं दर्जी के सामने बैठ गये।
दर्जी ने अपना काम शुरू करते हुए सबसे पहले कैंची से कपड़े को अलग-अलग कई टुकड़ो में काट कर कैंची को नीचे जमीन पर एक तरफ रख दिया। फिर सुई से कुछ काम करने के बाद उस दर्जी ने अपनी पुरानी आदतानुसार सुई को अपनी शाही दरबार से मिली हुई पगड़ी में टांक दिया। महाराज अकबर को कुछ अजीब सा लगा, कि इतनी महंगी और सुन्दर कैंची तो दर्जी ने अपने पैरों में रखी हुई है, और छोटी सी सुई को अपनी बेशकीमती महंगी शाही पगड़ी में टांक दिया। महाराज अकबर से रहा नहीं गया और उन्होंने बीरबल से इसका कारण पूछा। बीरबल ने कहा महाराज दर्जी ने दोनों चीजों को उनकी असली औक़ात के मुताबिक ठीक जगह पर ही रखा है और मेरे हिसाब से उसने यह बिल्कुल ठीक ही किया है।
महाराज अकबर ने गुस्से में बीरबल को डांटते हुए कहा, तुम बिना सोचे समझे हर बात का जवाब झट से दे देते हो। तुम यह सब कुछ इतने विश्वास के साथ कैसे कह रहे हो कि दर्जी ने कोई गलती नही की? तुम क्या जानो की चंद पैसों की सुई के सामने हमारे दरबार की शाही कैंची कितनी कीमती है, और तुम साथ ही यह भी कह रहे हो कि उसने यह बिल्कुल ठीक किया है। क्या तुम मुझे इस का कोई एक भी ठोस कारण बता सकते हो?
बीरबल ने महाराज को बताना शुरू किया कि अगर आपने गौर किया हो तो कैंची का काम सिर्फ हर चीज़ को काट कर टुकड़ों में बांटने का है फिर चाहे वो कपड़ा हो या अन्य कोई और वस्तु। दूसरी तरफ सुई बहुत छोटी होते हुए भी सिर्फ हर चीज़ को जोड़ने का काम करती है। वो हर छोटी बड़ी चीज़ को जोड़कर उसे हमारी ज़रूरत के मुताबिक हमारे इस्तेमाल करने के लायक बना देती है, जिससे कि साधारण सी चीज की कीमत में भी कई गुना का इज़ाफा हो जाता है। यह छोटी सी सुई का ही कमाल है, कि कैंची से काटे हुए चंद कपड़े के टुकडों पर बेशकीमती कढ़ाई आदि करने के बाद उन्हें आपस में जोड़कर आपकी यह अनमोल और बेहतरीन पोशाक तैयार कर दी है।
बीरबल ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा महाराज हर चीज की कीमत उसकी खूबसरती या कीमत को देखकर नही बल्कि उसकी उपयोगिता के अनुसार ही आंकी जाती है। कुछ ऐसे ही लोग आपको हमारे आस-पास देखने को मिल जायेंगे। एक श्रेणी में तो वो लोग आते हैं, जो समाज को धर्म, जाति, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर का भेदभाव दिखा कर एक दूसरे से तोड़ने का काम करते हैं, और दूसरी तरफ साधु-संत अपने नेक कर्मों से हर वर्ग को जोड़ने का प्रयत्न करते रहते हैं। कोई भी कार्य कभी भी अकेले करने से सिद्व नही होता, और मिल-जुल कर किया गया कार्य कभी व्यर्थ नही जाता। आप तो खुद हमें समझाते हैं कि सरलता में महान सौन्दर्य होता है, जो सरल है, वह सत्य के समीप है। सभी को साथ लेकर चलने वालो को तो दुनिया हमेशा सिर आंखों पर बिठाती है और भगवान का रूप मानकर पूजती है। जो कोई अपनी गर्दन ऊंची रखता है, वह सदा मुंह के बल गिरता है। बीरबल के इस कथन से महाराज अकबर भी यह मान गये कि योग्यता, ईमानदारी और धैर्य शीलता के समक्ष हर कोई घुटने टेकने पर मजबूर हो जाता है।
जौली अंकल इसीलिये तो अक्सर कहते हैं, कि हर काम पूरी लगन और जान लगाकर करें, अधूरे मन से किया काम आपके श्रेष्ठ बनने का मौका छीन लेता है। अगर आप अपने जीवन में सुख और शंति देखना चाहते हो तो हर छोटे से छोटे रिश्ते की औकात को भूलकर कैंची की तरह काटने की बजाए सुई की तरह जोड़ते रहो।

गम से न घबराना


पार्क में सैर करते हुए मिश्रा जी के एक दोस्त ने उनसे पूछ लिया कि अक्सर लोग यह कहते है कि मौहब्बत नाकाम हो जायें तो इंसान गमों में डूबने लगता है। परंतु कभी किसी ने यह नही बताया कि यदि किसी खुशनसीब की मौहब्बत कामयाब हो जायें तो क्या होता है? मिश्रा जी ने अपनी खास चुटकी भरी शैली में अपने उस मित्र को समझाते हुए कहा कि यदि मोहब्बत कामयाब हो जाये तो फिर सारी जिंदगी गम आंसू बन कर रास्ता बदल-बदल कर निकलते है। अगर आप को मेरी बात पर ऐतबार न हो तो कभी किसी शादीशुदा से एक पल के लिए उसके दिल का हाल पूछ कर देख लेना। एक क्षण में दूध का दूध और पानी का पानी कर के दिखा देगा। किसी और का क्या मैं अपने ही बहू-बेटे का एक मजेदार किस्सा आपको बताता  हूँ। इतना तो आप भी जानते ही हो कि मेरे बेटे ने हमारे लाख मना करने पर भी अपनी मर्जी से दफतर में साथ काम करने वाली एक लड़की से शादी की हैै। कल रात ही दोनो के बीच किसी बात को लेकर जोरदार तकरार हो गई। बहू ने चीखते हुए कहा कि मैं तो तुम्हारे साथ शादी करके लुट गई, बर्बाद हो गई। मेरे बेटे ने कल तक हूर परी दिखने वाली अपनी पत्नी से कहा, कि मैं भी तुम्हारे साथ शादी करके कोई अनिल अंबानी नही बन गया, बल्कि जो कुछ भी मेरे पास था वो भी सब कुछ लुट गया है।
अपनी बात को जारी रखते हुए मिश्रा जी ने कहा कि जीवन में खुशी और गम का तो चौली दामन का साथ है। अगर आप सोच रहे है कि गम सिर्फ इश्क और मोहब्बत की राह में ही मिलते है तो आप थोड़ा गलत सोच रहे है। इस बात से इंकार करना जरूर थोड़ा कठिन है कि इश्क और प्यार की जुदाई के चलते इंसान अक्सर गमों के अंधकर में खो जाता है। अगर अपनी अच्छी किस्मत के चलते जिंदगी में कोई किसी ऐसे एक गम से बच भी जाता है तो जरूर उसे कोई न कोई दूसरा गम सता रहा होता है। गरीब बेचारा बच्चो की पढ़ाई, मंहगाई की मार और बीमारी के मंहगे इलाज से, अमीर अपने खोखले दिखावेपन से, सरकार रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार से, भारतमाता अपने लुटते हुए गुलजार के गमों से दुखी है। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार को बैमौसम बरसात का, किसान को सूखे की मार का गम तो सदा ही सताता रहता है। किसी को बिन बुलाऐ मेहमानों के आने से, किसी को अपने करीबी के खो जाने से गम के सागर में डुबकियां लगाने पर मजबूर होना पड़ता है। गम सिर्फ कमजोर, मजबूर और लाचार लोगो को ही दुखी और परेशान करता है ऐसी बात नही है। जमाने ने बड़ी-बड़ी हस्तीयां को भी इस लाइलाज बीमारी के प्रकोप से घबरा कर अक्सर मौत को गले लगाते हुए देखा है।
कमर तोड़ मंहगाई के गमों से लाचार और बेजार जनता अपने गमों की हा-हा कार का दुखड़ा रोये भी तो किस के आगे? देश के नेता कुछ उपकार करने की बजाए सभी हदों को पार करते हुए खुल कर चोर बाजारी और जनता के माल को लूट कर हर देशवासी के गमों में इजाफा कर रहे है। सब कुछ जानते हुए भी हमारी सरकार कान में रूई डालकर चैन से सो रही है। लेखक महाशय टूटी हुई पतवार से अपनी जीवन नैया को खींचते हुए चीख-चीख कर जमानें के गमों का हाल ब्यां कर रहे है, लेकिन उस बेचारे की चीख दुनियां के बड़े-बड़े गमों में न जानें कहां दब कर रह जाती है? चारों और छाये हुए गमों के बादलों को देख ऐसा लगने लगा है कि जैसे दुनियां का कोई भी व्यक्ति इनसे नही बच पाया। कुछ लोग गमों को हिम्मत से सहने की बजाए मैहखानो में नशे का साहरा लेकर गम को भुलाने की नाकाम कोशिश करते है। ऐसे लोग खुद को गम से बचाने की बजाए अंधेरी गलीयों में भटकते हुए खो जाते है।
हमारे बर्जुग अपने जीवन के तर्जुबे के मद्देनजर यही सीख देते है कि जिस प्रकार घर में आई हुई खुशी को अपनों के साथ बांट लिया लाये तो वो दुगनी हो जाती है, ठीक उसी तरह गम कितना भी बड़ा क्यूं न हो उसे अपने प्रियजनों के साथ बांटने से यह नामुराद आधा रह जाता है। बर्जुगो का यह भी मानना है कि इस दुनियां में कोई भी काम मुश्किल नहीं है, इसलिए काम करने से डर कर गम को पालने की जरूरत नही होती। कोई भी बड़े से बड़ा ताकतवर इंसान भी दुनियां के सभी काम अकेले नही कर सकता, ऐसे में घबरा कर गम को दिल में जगह देने से अच्छा है कि सच्ची लगन से काम करते हुए अपनी सारी उम्मीदें और उसका फल भगवान पर छोड़ दे। कुछ ही समय में आप देखेगे कि आपकी मंजिल आपके सामने होती है।
गमों से घबराने की जगह उनको भूलने के लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि परमात्मा को याद करने के साथ-साथ अपने काम में महारत हासिल की जाये। इस तरह इंसान अपने सभी गमों को धीरे-धीरे भूलने लगता है। इससे पहले की गम हमारे अपने ही प्यारे चमन को जला कर राख कर दे, हमें गुजरे हुए वक्त के हर गम को हंसी-खुशी में तबदील करना होगा। आयु के अनुसार बूढ़ा होना चिंता की बात नहीं, किंतु व्यर्थ के गमों से समय से पहले ही बूढ़ा होना कोई अक्कलमंदी नही है। जो कोई सभी गमों को भूलकर विकट परिस्थितियों का हंसी-खुशी सामना करता है, जमाना उसे एक जनसाधारण से महावीर बना देता है। जीवन में मिलना-बिछुड़ना, उतार-चढ़ाव, नफा-नुकसान सभी कुछ भगवान की मर्जी से ही होता है। गमों के इतने दुश्प्रभावों के बारे में सब कुछ जानने के बाद जौली अंकल की सोच तो यही कहती है कि ईश्वर और समय हर गम को मिटाने के दो परम चिकित्सक है, इसलिये हमारा जीवन चाहे कैसा भी हो, कभी भी गम से न घबराना। 

तोल मोल के बोल


जीवन से जुड़े अनेक पहलूओं पर गौर करे, तो हम पायेंगे कि अपने मन की बात को ठीक तरह से कहना भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण कला है। गली मुहल्ले में बढ़-चढ़ कर बोलने वालों को यदि किसी संजीदा मुद्दे पर चंद अलफाज बोलने के लिए कह दिया जायें तो ऐसे लोगो की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। कुछ लोग तो मौत से इतना नही डरते जितना कि उनको किसी स्टेज पर बोलने से घबराहट होती है। जबकि एक अच्छा वक्ता अपने दिल की बात को कुछ इस ढंग से कहता है कि उसकी बात का हर अक्षर सभी सुनने वालो के मन में उतर जाता है। किसी भी बात को गहराई से सुनने और समझने वाले इस तरह की महत्वपूर्ण बातों को सुनते हुए इन्हें मन में उतार कर अमल में लाने के लिये विवश हो जाते है।
अधिकाश: लोग बोलते समय दूसरों की बुराई और अपनी अच्छाई सुन कर प्रसन्न होते है। कमजोर और शरीफ लोगो को बिना कोई गुनाह किये हुए भी अक्सर निंदा का शिकार होना पड़ता है। इतिहास के पन्ने इस तथ्य को पुख्ता करने के लिये अनेको उदारण अपने अंदर समेटे हुए है। भक्त कबीर पर भी उस समय के बड़बोले लोगो ने चोरी, यारी और दुर्राचारी होने के न सिर्फ इल्जाम लगाये बल्कि उनको सजा तक दे दी। अधिक बोलने वाले दूसरो की निंदा केवल इसलिये करते है कि समाज में उनकी बढ़ाई हो सके। धनवान और ताकतवर आदमी कितना भी दुष्ट क्यूं न हो उसके खिलाफ कोई भी बोलने की हिम्मत नही करता। सारी दुनियां खुशामंद और निंदा करने वालों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। फूल को फूल कहना अच्छी बात है परन्तु खुशामंद करने वाले कांटे को फूल और फूल को कांटा कहने से भी नही चूकते।
यह जरूरी नही होता कि हर बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहा जायें तो तभी उस का प्रभाव होता है, कई बार मौन रह कर भी आदमी ऐसी बात कह देता है कि सामने वाले को बिना कुछ कहें-सुने ही आपकी बात को स्वीकार करना पड़ता है। अफसोस तो उस समय होता है जब कुछ लोग विषय में बारे में कुछ न जानते हुए भी अपनी बात को दूसरों पर थोपने का प्रयत्न करते है। ऐसे लोग शायद यह नही जानते कि अज्ञानता के समान कोई दूसरा शत्रु नही है। कई बार लोग बिना किसी जांच पड़ताल के दूसरों पर इल्जाम लगा देते है, ऐसे में आप अपने बारे में कही जाने वाली बुरी बातों पर ध्यान न दें, इससे उन लोगों को भी आपकी बुराई के बारे में पता चल जाएगा, जो अभी तक कुछ नही जानते थे।
जिस तरह अच्छा बोलना एक कला है, ठीक उसी तरह किसी की बात को ध्यान से सुनना और समझना भी किसी कला से कम नही है। शौधकर्ता इस बात को मानते है कि एक आम आदमी धर्मिक, सामाजिक या अन्य किसी भी विषय को चार या पांच मिनट से अधिक लगातार ध्यान लगा कर नही सुन सकता। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारा मन और मस्तिष्क चंचल स्वभाव होने के कारण हर समय भटकते रहते है। किसी सभा में बैठे होने के बावजूद भी हमारा मन भूतकाल और भविष्य की बातों को लेकर सदैव चितिंत रहता है।
जनसाधारण से लेकर योगी और तपस्वी तक सभी सुख की कामना करते है। इस सुख को पाने के लिये हम दूसरों को अपने विचारो से प्रभावित करके बदलने का प्रयत्न करते है। परन्तु यदि जीवन में सच्चा सुख पाना है तो दूसरों को बदलने की बजाए स्वयं को बदल लेना कहीं अधिक अच्छा होता है। जो व्यक्ति नम्रता के आधार पर सबसे तालमेल बनाये रख सकता है, वह महान है। महान व्यक्ति का मुख्य लक्ष्ण ही उसकी नम्रता है। हम यह तो चाहते है कि दूसरे सभी लोग हमसे अच्छा व्यवहार और हमारा सम्मान करे, लेकिन इससे पहले क्या वो लोग इस सम्मान के हकदार नही। आम आदमी अक्सर अपनी प्रंशसा व ख्याति सुनकर फूला नही समाता, ऐसे में वो खुद को निन्दा व अपमान सन्तुलित कैसे रख सकता है? हम अपने छोटो से यदि यह उम्मीद करते है कि वो हमें प्यार और इज्जत से पेश आये तो हमें अपने बड़ो के साथ भी ऐसा ही करना होगा।
इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद अब जौली अंकल से पूछे कि वो इस विषय में क्या बोलते है? उनकी जुबांन तो केवल एक बात में ही विश्वास रखती है कि जीवन में सभी से सदा प्रेमयुक्त, मधुर व सत्य वचन बोलें। इस एक छोटे से संकल्प और अपने मीठे बोलो से आपके ऊपर ईश्वर सदा ही सुख की बरसात करते रहेगे। तोल मोल के बोले गये अच्छे बोल आपके मन की शंति, सुख एवं समृद्वि के द्वार खोलती है। अब और अधिक कुछ न बोलते हुए एक शैर आपकी नजर करता  हूँ :
कहनी हो जब भी दिल की बात, कुछ इस तरह से कहा करें,
कि मकसद तो पूरा हो जाऐं, लेकिन किसी का दिल ना दुखा करें।

ऐसी की तैसी


चीकू ने अपने दादा से पूछा कि जब भी मेरे से कोई गलती हो जाती है तो आप झट से कह देते हो कि तेरी ऐसी की तैसी। आखिर यह ऐसी की तैसी होती क्या है? दादा अभी कोई अच्छा सा जवाब देने की सोच ही रहे थे कि चीकू के भाई ने उसे समझाया कि जब किसी को खुल्ले दस्त लगे हो और पायजमें का नाड़ा न खुल रहा हो तो उस समय आदमी की ऐसी की तैसी होती है। चीकू ने बात को साफ करते हुए कहा कि न तो मुझे खुले दस्त लगे है और न ही मै कभी पायजमा पहनता  हूँ, तो फिर दादा जी हर समय मेरी ऐसी की तैसी क्यूं करते रहते है? दादा ने चीकू को बड़े ही प्यार से समझाया कि ऐसी की तैसी कुछ नही केवल एक मुहावरा है, लेकिन यह तुम्हारे जैसे अक्कल के अंधे को समझ नही आ सकता। इतना सुनते ही चीकू जोर जोर से रोते हुए अपनी मां से बोला कि दादा जी मुझे अंधा कह रहे है। अपने कलेजे के टुकडे की आखों में आसूं देखते ही चीकू की मां का खून खोलने लगा, उसने बात की गहराई को समझे बिना कांव-कांव करते हुए दादा के कलेजे में आग लगा दी।
दादा ने एक तीर से दो शिकार करते हुए अपनी बहू को डांटते हुए कहा कि लगता है कि बच्चो के साथ तुम्हारी अक्कल भी घास चरने गई है। न जानें इस परिवार का क्या होगा जहां हर कोई खुद को नहले पर दहला समझता है। बहू तुम तो अच्छी पढ़ी लिखी हो, मुझे तुम से यह कद्पि उम्मीद नही थी कि तुम कान की इतनी कच्ची हो। लगता है कि बच्चो की जरा सी बात सुनते ही इस तरह अंगारे उगल कर तुम्हारे दिल में जरूर ठंडक पड़ गई होगी। मै तो तुम्हारे बेटे को सिर्फ मुहावरो के बारे में बताने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरी बाते तो आप लोगो के सिर के ऊपर से ही निकल जाती है। इतना कहते-कहते दादा जी सांस फूलने लगी थी। परंतु उन्होने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि मुहावरे किसी भी भाषा की नींव के पत्थर की तरह होते है, जो उसे जिंदा रखने में मदद करते है। सारा गांव मेरी इतनी इज्जत करता है लेकिन तुम्हारे लिए तो मैं घर की उस मुर्गी की तरह  हूँ जिसे दाल बराबर समझते है। लोग तो अच्छी बात सीखने के लिए गधे को भी बाप बना लेते है,
इससे पहले की दादा मुहावरों के बारे में और भाषण देते, चीकू ने कहा कि लोग गधे को ही क्यूं बाप बनाते है, हाथी या घोड़े को क्यूं नही? दादा जी ने प्यार से चीकू को समझाया कि सभी मुहावरे किसी न किसी व्यक्ति के अनुभव पर आधरित होते हुए हमारी भाषा को गतिशील और रूचिकर बनाने के लिये होते है। हां कुछ मुहावरे ऐसे होते है जो किसी एक खास धर्म और जाति के लोगो पर लागू नही होते। चीकू ने हैरान होते हुए पूछा कि यह कैसे मुमकिन है? दादा जी ने चीकू को बताया कि अब एक मुहावरा है सिर मुढ़ाते ही ओले पड़े। अब तो आप मान गये कि यह मुहावरा किसी तरह भी सिख लोगो पर लागू नही होता। क्योंकि सिर तो सिर्फ हिंदु लोग ही मुडंवाते है। ऐसा ही एक और मुहावरा है कल जब मैं रात को कल्ब से रम्मी खेल कर आया तो मेरी हजामत हो गई। इतना तो आप भी मानते होगे कि सब कुछ मुमकिन हो सकता है, लेकिन किसी सरदार जी की हजामत करने के बारे में कोई सोच भी नही सकता। अजी जनाब आप ठहरिये तो सही अभी एक और बहुत बढ़ियां मुहावरा आपको बताना है वो है हुक्का पानी बंद कर देना। अब सिख लोग ऐसी चीजो का इस्तेमाल करते ही नही तो उनका हुक्का पानी कैसे बंद हो सकता है? इतना सुनते ही चीकू ने दातों तले उंगली दबाते हुए दादा से पूछा कि अगर आपको उंगली दबानी पड़े तो कहां दबाओगे क्योंकि आप के दांत तो है नही?
यही नही, ऐसे बहुत से और भी मुहावरे है जिन को बनाते समय लगता है, हमारे बर्जुगो ने बिल्कुल ध्यान नही दिया। सदियों पहले इनके क्या मायने थे यह तो मैं नही जानता लेकिन आज के वक्त में तो इनके मतलब बिल्कुल बदल चुके है। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही महशुर मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर थोड़ा सा भी तेल गिर जाये तो राधा तो बेचारी फिसल कर गिर नही जायेगी। वैसे भी आज के इस मंहगाई के दौर में नौ मन तेल लाना किस के बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है। बहुत देर से चुप बेठा चीकू अपने दादा से बोला कि लोगो को नाच-गाने के लिए दारू लाते तो मैने अक्सर देखा है कभी किसी को तेल लाते तो नही देखा।
दादा ने चीकू से एक और मुहावरे की बात करते हुए कहा कि यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। मैं बात कर रहा  हूँ 100 चूहें खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नही खाया। अगर उसने कोई चूहा नही खाया तो रास्ते में उसने क्या खाया था? वैसे क्या कोई यह बता सकता है कि बिल्लीयां हज करने जाती कहां है? कुछ भी हो यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 100 चूहें खाकर हज को चली गई। आखिर में मैं एक ऐसा मुहावरा आपको बताऊगा, जिसे सुनते ही कई लोग ऐसे गायब हो जाते है, जैसे गधे के सिर से सींग। मैं बात कर रहा  हूँ दौड़ने भागने की। इससे पहले की आप मेरे मुहावरो की ऐसी की तैसी करे मैं तो यहां से 9 दो 11 हो जाता  हूँ।


नकली का है ज़माना


कुछ दिन पहले एक विदेशी पर्यटक ने पुलिस विभाग में शिकायत दर्ज करवाई की मैने दिल्ली की एक महशूर दुकान से हाथी दांत का कुछ समान खरीदा था लेकिन जैसे ही मैने होटल पहुंच कर उसको ध्यान से देखा तो वो सारा समान नकली था। पुलिस वालो ने दुकानदार को बुला कर जैसे ही धमकाया तो उसने कहा कि मैने तो सारा समान हाथी दांत से ही बनाया है, अब अगर हाथी ने ही नकली दांत लगवाये हो तो उसमें मैं क्या कर सकता  हूँ? अब पुलिस वालो को विदेशी पर्यटक से तो कुछ चाय-पानी मिलने की उम्मीद नही थी इसलिए उन्होनें ने उस दुकानदार का पक्ष लेते हुए कहा कि इस मामले में हमारा कानून आपकी कोई मदद नही कर सकता, क्योकि दुकानदार अपनी जगह बिल्कुल ठीक कह रहा है। नकली वस्तुऐं हमारे जीवन में इस तरह घुलमिल चुकी है कि आजकल हर वस्तु की पूरी कीमत चुकाने के बाद भी हमें यह विश्वास नही होता कि जो कुछ समान हम खरीद कर अपने घर ले जा रहे है, वो असली है या नकली। नकली चीजो की बात करें तो यह लिस्ट इतनी लंबी है कि इस लेख में तो क्या शायद सैंकड़ो ऐसे लेखो में भी यह पूरी न हो पाये।
नकली समान बनाने की प्रथा हमारे देश में ही पूरे विश्व में सदियों से चलती आ रही है। वो बात अलग है कि कुछ अरसां पहले तक सोने-चांदी या इसी प्रकार की अन्य मंहगी वस्तुओं में मिलावट करने का यह चलन अब देश के हर भाग और हर व्यापार में अपने पांव अच्छी तरह से जमां चुका है। विज्ञान और कम्पूयटर की तरक्की का लाभ चाहे किसी जरूरतमंद के पास पहुंचे या न पहुंचे लेकिन इन सभी सुविधाओं के चलते नकली समान बनाने वालो के जरूर वारे-न्यारे हो रहे है। पहले जहां लोग किसी फैक्ट्री में मिस्त्री, मजदूर या हेल्पर का काम करके परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने में अपनी इज्जत समझते थे, वही आज आधा-अधूरा सा ज्ञान लेकर हर प्रकार का नकली समान बना कर देश और जनता को चूना लगा कर गर्व महसूस करते है। नकली घड़ीयां तेल, साबुन, दवाईयां, मिठाईयां और इसी तरह का रोजमर्रा की जरूरत का सारा समान इतने बढ़ियां तरीके से बाजार में उतारा जाता है कि पारखी नजर भी नकली-असली का पहचनाने में आसानी से धोखा खा जाती है।
उस समय तो और भी अधिक हैरानगी होती है जब यह मालूम पड़ता है कि नकली समान बनाने वाले बाजीगरों ने पढ़ाई करना तो दूर जीवन में कभी किसी स्कूल का दरवाजा तक भी नही देखा। इनकी कलाकारी को उस समय दाद देने का मन करता है जब यह लोग खाने-पीने से लेकर हर प्रकार की नकली दवां बनाने में यह अच्छे पढ़े लिखे लोगो को भी चुटकियों में फेल कर देते है। अब अगर नकली करेंसी की बात करे तो बरसों से बैंक में काम कर रहे कर्मचारी भी असली और नकली नोट में फर्क नही कर पाते। नकली चीजे बनाने वालो के तेज दिमाग की जितनी भी तारीफ की जायें वो शायद कम ही होगी। आजकल तो समाचार पत्रों में यह भी खबर छप रही कि अब दूसरी सभी वस्तुओं के इलावा सरकार द्वारा अनचाहे गर्भ और एच,आई,वी एड्स जैसे खतरनाक रोगो से जनसाधारण को बचाने के लिये नि:शुल्क बांटने के लिए पेश किए जाने वाले निरोध (कंडोम) को विदेशी ब्रांडो के नाम से बेचा जा रहा है।
वैसे तो हम सभी सस्ते से सस्ता समान खरीद कर खुद को दुनियां का सबसे समझदार इंसान साबित करने में कोई कमी नही छोड़ते परन्तु कभी कभार कुछ लोग नकली समान बनाने वालो की चुगली करने से बाज नही आते। ऐसे लोगो से कोई यह पूछे कि जब हमारे देश के नेता, सरकारी बाबू, पुलिस वाले सरेआम खुल्मा-खुल्ला देश की जनता को लूट कर जिंदगी का लुत्फ ले रहे है तो नकली माल बना कर बेचने वाले तो फिर भी जनता को चाहे घटिया किस्म का ही सही कुछ न कुछ समान देकर ही अपना धंधा चला रहे है। अब आपके मन में एक प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि नकली समान बनाने वाले आखिर इतना जोखिम क्यूं उठाते है? अजी जनाब नकली समान बनाने और बेचने के बहुत फायदे है। इस धंधे को शुरू करने के लिए न तो किसी नेता की सिफरिश एवं न ही सरकारी दफतरों के चक्कर काटने की जरूरत होती है और न ही किसी प्रकार का लाईसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता। सबसे बड़ा फायदा तो यह भी है कि न कोई बिजली का बिल अदा करना पड़ता है और न ही कोई टैक्स लगता है। यह सारे काम थोड़ा सा सुविधा शुल्क जिसे कुछ लोग रिश्वत जैसे घटिया शब्द से भी नवाजते है, उसे चुकाते ही घर बैठे आसानी से हो जाते है। अब तो आप भी मान गये होगे कि असली समान बनाने से तो नकली का धंधा करना लाख दर्जे अच्छा है।
नकली चीजे सिर्फ हमें सदा नुकसान ही पहुंचाती है ऐसा सोचना तो सरासर गलत होगा। क्योंकि जब कभी हमारे शरीर में कोई भी गड़बड़ी आ जाती है तो डॉक्टर लोग हमारी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के लिए नकली चीजों का ही साहरा लेते है। आये दिन लोगो के दिलों में नकली वाल्व, दुर्घटना में घायल होने पर नकली दांत, टांग, बाजू और आंख लगाऐ हुए लोग तो अक्सर हमें दिखाई देते है। 





छोटी छोटी बाते

पंडित जी ने अपनी तोंद पर हाथ फैरने के साथ बड़ा सा डकार लेते हुए दूध का गिलास मेज पर रखते हुए मिश्रा जी से कहा कि आज बहुत दिनों बाद इतना बढ़िया और खालिस मलाई वाला दूध पीने को मिला है। जजमान सच्चे दिल से कह रहा  हूँ कि मन तृप्त हो गया। पास ही खेलते मुन्ने ने मजाक से कह डाला कि पंडित जी यदि आज बिल्ली दूध में मुंह न मारती तो आपको और भी अधिक मजा आना था। यह सुनते ही वहां बैठे सभी लोगो की हंसी छूट गई और पंडित जी का गुस्सा सांतवे आसमान पर जा पहुंचा। कुछ पल पहले जो पंडित जी हंस-हंस कर मिश्रा जी को आर्शीवाद देते हुए बतिया रहे थे, अगले पल ही वो मिश्रा जी को बुरा भला कहने लगे। मिश्रा जी की सभी दलीलों को अनसुना करते हुए पंडित जी आग बबूला होते हुए गुस्से में बुदबुदाते हुए वहां से निकल गये।
इस तरह की छोटी छोटी बाते हम सभी के जीवन में आऐ दिन घटती रहती है। हमारे बर्जुग एक जमाने से यूं ही तो नही कहते आ रहे कि तलवार का घाव तो समय पा कर भर जाता है, परन्तु जुबान से निकली हुई तीरो से भी अधिक तेज धार वाली छोटी-छोटी बातों के घाव सारी उंम्र नही भर पाते। इतना सब कुछ जानते और समझते हुए भी हम जानें अनजानें कुछ ऐसी बाते अपनी जुबान से कह देते है कि फिर लाख प्रयासों के बाद भी अपने सगे-संबंधीयों से जीवन भर के लिये रिश्ता तोड़ बैठते है।
हो सकता है कि आपको यह छोटी-छोटी बाते बड़ी ही बैमानी सी लग रही हो। अजी जनाब यदि आपको मुझ पर यकीन नही आ रहा तो मैं आपको मिश्रा जी के घर का ही एक सच्ची घटना सुनाता  हूँ। पिछले साल जब इनके बेटे की शादी हुई और दुल्हन बेगम घर पर पधारी तो चारों और हंसी और कहकहे गूंज रहे थे। जैसे ही बहू के स्वागत की रसमें पूरी हुई तो मिश्रा जी ने वहां बैठी सभी लड़कियो और औरतो से कहा कि अब आप लोग दूसरे कमरे में बैठ जाओ ताकि बहू बैचारी थोड़ा आराम कर सके।
एक दो बार तो मिश्रा जी की बात को बहू ने चुपचाप सहन कर लिया परन्तु जैसे ही मिश्रा जी ने तीसरी बार बहू को बेचारी कह के संबोधित किया तो अमीर घराने की अग्रेजी स्कूल में पढ़ी लिखी और विदेशी कम्पनी में एक ऊंचे पद पर कार्यरत नई नवेली दुल्हन ने सभी मर्यादयों को तोड़ते हुए बेचारी शब्द पर घोर आपति जता दी। वहां बैठे सभी रिश्तेदारो के सामने उसने अपने सीधे-साधे ससुर को आड़े हाथो लेते हुए कहा कि मैं आपको किस और से बेचारी लग रही  हूँ। क्या मैं आपको पढ़ाई लिखाई या पहनावें से किसी गरीब और लाचार परिवार की लड़की दिखाई दे रही  हूँ। क्या मेरे दहेज में कोई कमी दिखाई दे रही है? यदि नही तो आप बार-बार सभी रिश्तेदारों के सामने मुझे नीचा दिखाने के लिये यह बेचारी-बेचारी का राग क्यूं अलाप रहे हो?
बहू की जुबान से निकला हुआ एक-एक शब्द मिश्रा जी के मन को किसी तीखे कांटे की तरह चुभ रहा था। उन्हें जीवन में पहली बार अधिक पढ़ी लिखी बहू को अपनाने के अपने जल्दबाजी के निर्णय पर दुख महसूस हो रहा था। आज तक मिश्रा जी यही समझते थे कि पढ़-लिख लेने से ही इंसान विद्ववान हो जाता है। आज उन्हे पहली बार ऐसा प्रतीत हुआ कि शिक्षा में जब तक नैतिक शिक्षा का समावेश नहीं होता, तब तक शिक्षा का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता।
मिश्रा जी की पत्नी ने पिछले कई दशको से अपने पति को इससे पहले कभी इतना दुखी नही देखा था। उसने अपने आंसूओ पर काबू रखते हुए पति को ढंढास बंधाते हुए कहा कि आप तो हम सभी को सदैव यही ज्ञान देते रहे हो कि वृक्ष पर जब बहुत सारे फल लगते हैं तो वो झुक जाता है, ठीक इसी प्रकार जैसे-जैसे हमारे अंदर गुणो का विकास होता है, हमें खुद-ब-खुद झुकना सीख लेना चाहिए। गुणवान व्यक्ति कभी अभिमानी नही होता, फल वाली डाली सदैव झुकी रहती है। आप तो आज तक अपने बच्चो को भी सदा यही शिक्षा देते रहे हो कि मान-अपमान मिलने पर इंसान को बहुत ज्यादा खुश या दुखी नही होना चाहिए, क्योंकि ये सब भाग्य की देन है। इसी के साथ आप का ही यह कहना है कि नंम्र होकर चलना, मधुर बोलना और बांटकर खाना, यह तीन गुण आदमी को ईश्वरीय पद पर पहुंचा देते है। मैं तो हैरान  हूँ कि आप जैसा सूझ-बूझ वाला आदमी यह जानते हुए भी कि किसी भी आदमी की महानता उसके गुणों के साथ उसके व्यवहार से ही पहचानी जाती है, बहू की इतनी छोटी सी बात को लेकर परेशान हो रहा है।
इतिहास साक्षी है कि हमारी वाणी ही हमारे दोस्त या दुश्मन बनाती है। कई बार बैठको में मौन रहने से मान बढ़ता है, बड़े-बड़े तर्क देने वाले विद्ववान होने के बावजूद भी किनारे कर दिए जाते है। इसलिये जीवन में यदि सुख पाना है तो सदैव प्रेमयुक्त, मधुर व सत्य वचन बोलें क्योंकि मीठा बोलने में एक कोड़ी भी खर्च नहीं होती। अंत में जौली अंकल छोटी-छोटी बातो के बारे में बात करते हुए इतनी ही बात कहते है कि अगर आप सदा मीठा बोलोगे तो आपको हर और से सम्मान ही सम्मान मिलेगा, यदि कड़वे बोल बोलोगे तो फिर आपकी झोली में अपमान को आने से कोई नही रोक पायेगा। 

ईमानदारी

मिश्रा जी अपने बेटे को स्कूल का होमवर्क करवाते हुए ईमानदारी का पाठ पढ़ा रहे थे कि अचानक दरवाजे पर घंटी बजी। जैसे ही उन्होने थोड़ा सा परदा हटा कर खिड़की में से देखा तो मुहल्लें के कुछ लोग दरवाजे पर खड़े थे। मिश्रा जी को अंदाजा लगाने में देर नही लगी कि यह सभी लोग रामलीला के आयोजन के लिये चंदा लेने आये है। उन्होने ने अपने बेटे से कहा कि बाहर जाकर इन लोगो से कह दो कि पापा घर पर नही है। मिश्रा जी के बेटे ने बड़े ही भोलेपन से कहा, अंकल पापा कह रहे है कि वो घर पर नही है। यह सुनते ही दरवाजे पर खड़े सभी लोगो की हंसी छूट गई और मिश्रा जी को न चाहते हुए भी शर्मिदा सा होकर उन्हें चंदा देना ही पड़ा। घर के अंदर आते ही उन्होने अपने बेटे को सच बोलने की एंवज में दो चपत लगा दी। किसी ने सच ही कहा है कि आज के इस जमाने में सच बोलो तो इंसान मारता है, झूठ बोलो तो भगवान मारता है। ऐसे में कोई ईमानदारी की राह पर चलना भी चाहे तो कैसे चले?
जैसे ही मिश्रा जी ने फिर से अपने बेटे को ईमानदारी का पाठ आगे पढ़ाना शुरू किया तो उनकी पत्नी बोली की आज सुबह दूध वाला 100 रूप्ये का नकली नोट दे गया था। मिश्रा जी ने आव देखा न ताव बोले, लाओ कहां है वो नोट, मैं अभी उस हरामखोर से बदल कर लाता  हूँ। उनकी पत्नी ने कहा कि वो तो मैने सब्जी वाले को देकर उससे सब्जी ले ली। समाज में छोटे व्यापारी से लेकर बड़े से बड़ा उद्योगपति अपने यहां काम करने वाले हर इंसान से तो ईमानदारी की उम्मीद करता है, जबकि वो खुद नकली समान बनाने, तोल-मोल में गड़बड़ी करने से लेकर हर प्रकार के टैक्स की चोरी करना अपना जन्मसिद्व अधिकार मानता है। ऐसे लोगो का कहना है कि आज के समय में ईमानदारी से तो रईसी ठाठ-बाठ से रहना तो दूर इंसान दो वक्त की दाल रोटी भी ठीक से नही कमा सकता। शायद इसीलिये आजकल लोग शादी-विवाह के विज्ञापनों में भी बच्चो की तनख्वाह के साथ ऊपर की कमाई का जिक्र करना नही भूलते।
कुछ दिन पहले जब मिश्रा जी की बेटी के रिश्ते की बात विदेश में बसे एक रईस परिवार में चली तो उनकी बरसो पुरानी सारी ईमानदारी धरी की धरी रह गई। अपनी बेटी की पढ़ाई लिखाई से लेकर घर के काम-काज करने के बारे में जितना भी झूठ बोला जा सकता है, उसकी सारी हदें मिश्रा जी पलक झपकते ही पार कर गये। जबकि इनके आसपास रहने वाले सभी लोगो के दिल में मिश्रा जी की छवि एक स्वछ और सच्चे इंसान की थी। इन लोगो ने अभी तक मिश्रा जी के चेहरे पर सिर्फ और सिर्फ ईमानदारी का मुखोटा ही देखा था। इनके कुछ चाहने वाले तो इन्हें संत जी तक कह कर पुकारते है। मिश्रा जी की मजबूरी कहो या बेबसी उनकी तो केवल एक ही प्रबल इच्छा थी कि किसी तरह से डालरों में कमाई करने वाले लड़के से उनकी बेटी का रिश्ता पक्का हो जाये।
इससे पहले की लड़के वालो की तरफ से शादी के बारे में कोई खुशखबरी मिले, मिश्रा जी अपने अनपढ़ और आवारा बेटे के लिये विदेश में बढ़िया सा कारोबार और अपने बुढ़ापे को शानदार तरीके से विदेश में जीने का हसीन सपना देखने लगे थे। बर्जुग लोग अक्सर समझाते है कि ज्यादा होशियिरी दिखाना अच्छा नही होता क्योंकि हर नहले पर दहला जरूर होता है। बिल्कुल ठीक उसी तरह मिश्रा जी के होने वालें रिश्तेदार इनको सेर पर सवा सेर बन कर टकरे थे। कुछ देर पहले जिस लड़के के बारे में होटल की शाही नौकरी और लाखो रूप्ये महीने की आमदनी बताई जा रही थी, वो असल में कनाडा के किसी होटल में वेटर का काम करता था। पैसे के लालच में मिश्रा जी यह भी भूल गये कि यदि धन से सारे सुख मिल सकते तो शायद इस दुनिया में कोई दुखी नहीं होता। लालच की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी सुख नही मिलता। यह भी सच है कि ईमानदार व्यक्ति को थोड़ी तकलीफ तो झेलनी पड़ती है, परन्तु लंबी अवधि में ताकत उसी की बढ़ती है। किसी भी प्रकार की कोई भी अच्छाई या बुराई कहीं बाहर ढूंढने से नही मिलती बल्कि वो तो हमारे अंदर ही छिपी रहती है।
इंसान कितना भी ईमानदारी का ढ़ोंग क्यूं न रचने की कोशिश करे, परन्तु मौका मिलते ही वो झूठ बोलने से लेकर किसी भी प्रकार की बेईमानी करने से नही चूकता। दीवाली के दिनों में जब मिश्रा जी के एक करीबी दोस्त ने ताश खेलने की इच्छा जताई तो उन्होने झट से कह दिया कि तुम ताश खेलते समय बहुत हेराफेरी करते हो। मैं तुम्हारे साथ केवल एक ही शर्त पर ताश खेलूगां यदि तुम वादा करो कि इस बार तुम ताश के पत्तो में कोई हेराफेरी नही करोगे। मिश्रा जी के दोस्त ने भी छाती ठोक कर कह दिया कि मैं वादा करता  हूँ कि यदि इस बार पत्ते अच्छे आ गये तो मैं किसी किस्म की कोई हेराफेरी नही करूगा।
अपनी बुद्वि को महान समझते हुए हम महापुरषो की उन बातो को भूलते जा रहे है, जिसमें उन्होनें हम लोगो को समझाने का प्रयास किया था कि कपटी और मक्कार थोड़ी देर के लिये ही खुश होता है, परंन्तु ईमानदारी के सामने वह बाद में हमेशा रोता ही है। जौली अंकल भी तो यही कहते है कि झूठ बोलने वाला अल्पकाल के लिए ही जीतता है लेकिन असली आनंद तो सच बोलने वाले ईमानदार इंसान को ही मिलता है।

मुस्कान

स्कूल से आते ही मुस्कान अपना स्कूल बैग एक तरफ रख रोज की तरह मां के गले से लिपट गई। इससे पहले की मां उसके लिए खाना तैयार करती मुस्कान ने मम्मी से पूछा कि यह सैक्स क्या होता है? बच्ची के मुंह से यह अल्फाज सुनते ही मानों मुस्कान की मां के पैरो तले की जमीन खिसक गई हो। आज उसे फिर से मुस्कान के पापा की इस जिद्द पर अफसोस होने लगा कि उन्होने अपनी बेटी को सहशिक्षा (Co-Education½ स्कूल में क्यूं पढ़ने भेजा? आज यदि हमारी मुस्कान केवल लड़कियों के स्कूल में पढ़ रही होती तो शायद यह दिन देखने को न मिलता। खुद को थोड़ा संभालते हुए उसने अपनी बेटी को कहा कि पहले तुम खाना खा लो, इस विषय में बाद में बात करेगे। खाना खत्म होते ही उत्सुक्तावश मुस्कान ने अपना सवाल मां के सामने रख कर फिर से परेषानी खड़ी कर दी। किसी तरह समझा-बुझा कर मुस्कान की मां ने शाम तक का समय निकाला। जैसे ही मुस्कान के पापा काम से लोटे तो बिना चाय-पानी पूछे अपना सारा दुखड़ा एक ही सांस में उन्हें कह डाला। मुस्कान के पापा ने धीरज से काम लेते हुए बेटी से पूछा कि तुम्हें यह सब कुछ किसने बताया है? मुस्कान ने झट से अपने स्कूल बैग से एक फार्म निकाल कर अपने पापा की और बढ़ाते हुए कहा कि मैंडम ने यह भरने के लिये कहा था। मैने बाकी का सारा फार्म तो भर लिया है, लेकिन एक पंिक्त में सैक्स के बारे में कुछ लिखना है। पिता ने जब ध्यान से फार्म देखा तो हंसते हुए उसे अपनी पत्नी की और बढ़ाया तो उसमें केवल स्त्री या पुरष के बारे में जानकारी मांगी गई थी। मुस्कान के पापा ने अपनी पत्नी की और हंस कर देखते हुए कहा कि खोदा पहाड़ निकली चुहियां। दोनो ने एक दूसरे की तरफ ऐसे देखा जैसे किसी बड़ी मसुीबत से राहत मिल गई हो। 
मुस्कान की मम्मी ने चाय के कप के साथ ही घर में आया हुआ एक पत्र भी पति को थमा दिया। यह पत्र सरकार के शिक्षा विभाग की और से लेखक महोदय के नाम था। इस पत्र में शिक्षा विभाग के अधिकारीयों द्वारा सैक्स शिक्षा की जानकारी से जुड़े हर प्रकार के ज्ञान को नई पीढ़ी तक कैसे पहुंचाया जाये इसके बारे में एक लेख लिखने का अनुरोध किया गया था। लेख पंसद आने पर अच्छी रकम का वादा भी किया गया था। एक लेखक होने के नाते मुस्कान के पिता का जीवन भी उस दीपक की तरह था जो खुद अंधेरे में रहते हुए दूसरों को रोशन करता रहता है। यह भी अपनी कलम के माध्यम से समाज को उजाला तो दे रहे थे लेकिन खुद अपना जीवन बहुत ही बुरे हाल में गुजार रहे थे। ऐसे में अच्छी रकम का वादा सुनते ही उन्हे अपने कई अधूरे ख्वाब पूरे होते दिखने लगे। बिना पल भर की देरी किये उन्होने इस विष्य पर अपने दिमाग के घोड़े दुड़ाने शुरू कर दिये। मुस्कान के पापा लेखक की हैसयित से इस बात पर गहराई से विचार करने लगे कि यह जानते हुए भी कि इंसान के सबसे बड़े पांच दुश्मन काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार है। परंतु फिर भी हमारे यहां आम आदमी से लेकर ज्ञानी, विद्वान तक सबसे पहले नंबर पर खड़े इंसानियत के दुश्मन काम यानि सैक्स के बारे में बात करने से क्यूं कतराते है? आज अजादी के 60 बरस बाद हम दुनियां के साथ नये जमाने की नई राह पर चलने का दम तो भरते है मगर हम अभी तक यह क्यूं नही तह कर पा रहे कि बाकी सभी विषयों की तरह इस विषय की जानकारी भी जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम पढ़े लिखे होने के बावजूद इस बात को क्यूं भूल जाते है कि शिाक्षा और ज्ञान चाहे किसी भी विष्य से जुड़े हो उसका एक मात्र सबसे बड़ा लक्ष्य समाज को आत्मनिर्भर बनाना ही होता है।
इसी बात को मद्देनजर रखते हुए मुस्कान के पापा ने अपनी कलम के माध्यम से सैक्स शिक्षा से जुड़े हर पहलू को तराशना शुरू किया तो उन्होने पाया कि सैक्स का जाल तो हमारे चारो और फैला हुआ है। समाचार पत्रो से लेकर टेलीविजन सिनेमा और इंटरनैट पर इसकी भरमार है। जैसे ही कलम ने सैक्स शिक्षा पर लिखने का प्रयास शुरू किया तो सबसे पहले उन छोटी बच्चीयों का ख्याल मन को सताने लगा जो अज्ञानता के चलते नादानी से कच्ची उंम्र में ही गर्भवती हो जाती है। ऐसे बच्चो के बारे में सोच कर और भी घबराहट होने लगी जो अपने मां-बाप की इकलोती संतान होते हुए भी एच,आई,वी जैसी लाईलाज बीमारी के षिकार है। सारी दुनियां को ज्ञान की रोशनी दिखाने वाला भारत देश इस मामले में इतने गहरे अंधकार में कैसे डूबा हुआ है। इसकी सोच से ही घबराहट होने लगती है। क्या हमारा सविधान बच्चो को बाकी के सभी विषयों के साथ सैक्स शिक्षा का अधिकार नही देता? हमारे देश में इस शिक्षा के अभाव में कई बेटियां चाहते हुए भी खुद अपना बचाव नही कर पाती। थोड़ी सी सैक्स शिक्षा भी 11 से 18 साल तक के बच्चो के जीवन में कष्टो को खत्म करते हुए उजालाें से भर सकती है। इससे पहले की हमारे फूलों जैसे कोमल किशोर राह भटक कर अधेंरी डगर पर चलने को मजबूर हो जाये, हमे खुशी-खुशी अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। स्कूल के अध्यापको को भी यह बात माननी होगी कि विषय चाहे कोई भी हो, ज्ञान के माध्यम से दूसरों को खुशी देना ही सर्वोत्तम दान है।
मुस्कान के पिता की परेशानी उस समय और बढ़ गई जब शिक्षा विभाग वालों ने उनके इस लेख को जनहित में देश के अनेक नामी समाचार पत्रो की सुर्खीयां बना डाला। मुस्कान जो आठवी कक्षा में पढ़ती थी उसकी कक्षा के छात्रों ने सैक्स से जुड़े उल्टे सीधे सवाल पूछ कर उसका स्कूल आना और क्लास में बैठना दूभर कर दिया। हर छात्र एक ही बात कहता था कि किसी को सैक्स के बारे में कोई भी जानकारी लेनी हो तो वो मुस्कान के घर पहुंचे क्योंकि इसके पिता तो सैक्स गुरू है। धीरे-धीरे उसकी सहेलियां भी मुस्कान से कनी काटने लगी। सभी टीचर भी उसे इस तरह से देखने लगे जैसे इस बच्ची ने कोई बहुत बड़ा जुर्म कर दिया हो। इस तरह के महोल और तानों को सारा दिन सुन-सुन कर मुस्कान इतनी दुखी और असहाय हो गई कि उसने खुदकशी करने का मन बना लिया। जबकि इंसान को ऐसे हालात में घबराने की बजाए सदैव यही बात याद रखने की जरूरत होती है कि जब लोग न समझी के कारण आपकी बात नहीं सुनते हैं उस समय परमात्मा आपका साथ देता है। ज्ञानी लोगो की बात का विश्वास करे तो यही समझ आता है कि दूसरों को उम्मीदों का रास्ता दिखाने वालों को सदा ही उम्मीदों भरा सवेरा मिलता है। जौली अंकल का मानना है हमारे देश में सदियों से ज्ञान का प्रकाश फैलाने वालो को शुरू में अनेको विपतियों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में सैक्स शिक्षा जैसा काम तो हर किसी को असंभव ही प्रतीत होगा। लेकिन अपने देश और मानव जगत की की सबसे अमूल्य धरोहर लाखो बच्चीयां के चेहरो पर यदि सदा हंसी, खुशी और मुस्कान देखनी है तो हम सभी को मिलकर इस नेक कार्य को शुरू करने में अब और अधिक देर नही करनी चहिये। 

आखिरी पहर


कुछ दिन पहले चुनाव अधिकारी जब मेरे पड़ोसी के घर मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए आये तो उन्होने घर की मालकिन से उसकी उंम्र जाननी चाही तो उसने झट से कह दिया कि 25 साल। पीछे खड़े उसके पति ने उसे डांटते हुए कहा कि यह सरकारी अधिकारी है। इन्हें बिल्कुल ठीक-ठीक और सही जानकारी देनी होती है। तुम 25-30 साल पहले भी खुद को 25 साल का कहती थी। आज भी अपने आप को 25 साल का बता रही हो। तुम क्या सारी उंम्र 25 साल की ही रहोगी? उस औरत ने पलटवार करते हुए कहा कि मैं तुम्हारी तरह नही हूँ कि एक बार कुछ कहूं और कुछ ही देर में अपनी बात से पलट जाऊ। मैं तो जो भी बात एक बार कह देती  हूँ, हमेशा उसी पर कायम रहती  हूँ। मेरे पड़ोसी ने कहा, मेरे से बाद में झगड़ा कर लेना पहले इन लोगो को अपनी उंम्र ठीक से बता दो। अब वो औरत बोली कि आप लिख दो 25 साल और कुछ महीने। अधिकारी ने कहा कि कितने महीने? परेशान पति बोला, जी आप 25 साल और 200 महीने लिख दो।
आए दिन हम सभी देखते है कि सिर्फ औरते ही नही आदमी भी अपने बालो को रंग और चेहरे पर अनेक प्रकार के तेल एवं क्रीम लगा कर अपनी उंम्र को छुपाने की कोशिश करते है। कारण कोई भी हो इन्सान उंम्र के किसी भी पढ़ाव पर अपने आप को बुढ़ा मानने को तैयार नही होता। बुढ़ापे के नाम से ही लोगो को घबराहट और चिंता सताने लगती है। हालंकि हर कोई यह जानता है कि आज तक चिंता करने से कभी किसी सम्सयॉ का हल नही निकला। उल्टा ंचिंता आदमी को चिता के और नजदीक ले जाती है। हम भारतीय बहुत खुशनसीब है कि अभी तक हमारे देश में पूरे परिवार के सभी सदस्य बर्जुगो को बहुत ही इज्जत और प्यार देते है। जब कभी कोई विदेशी हमारे यहां आते है तो वो यह देख कर हैरान होते है कि हमारे यहां किस तरह से बच्चो को बर्जुगो के प्रति भरपूर प्यार, इज्जत और सम्मान करना बचपन से ही सिखाया जाता है। विदेशो की तरह उनको आश्रम में मौत का इंन्तजार करने के लिये नही छोड़ दिया जाता।
अब अगर हम हकीकत को समझने की कोशिश करे, तो यह पायेगे कि आदमी की सोच और विचारो के बदलते ही आदमी का खान-पान, रहन-सहन, यहां तक की उसकी सारी दुनियां ही बदल जाती है। यह बात भी ठीक है कि बढ़ती उंम्र के साथ शरीर में पहले जैसी ताकत नही रहती लेकिन अगर आप मन से अपने आप को जवां महसूस करते है तो आप सदा के लिए जवान रह सकते है। जिंदगी के प्रति सदा सकारात्मक दृष्टिकोण इसमें काफी हद तक मदद करता है। इस बात को कोई नही झुठला सकता कि बर्जुगो का भी परिवार और समाज की तरक्की में अहम योगदान होता है। आपके ध्दारा किया हुआ एक भी समाजिक नेक कार्य आपको बेशकीमती लाखो दुआऐं दिला देता है। विध्दवान और गुणी लोग सच ही कहते है कि बुढ़ापा शरीर से नही इंसान की सोच में होता है। हर आदमी के अंन्दर एक अच्छा इंन्सान छुपा होता है। जरूरत है उसे जगा कर बाहर लाने की। जो कोई थोड़ा सा प्रयत्न करते है, उन्हें इस कार्य में सदैव सफलता मिलती है। आप चाहे एक आम इंन्सान हो या कोई सेलिब्रिटी, आप अपनी पहचान को भुला कर जिंदगी के हर रंग और हर पल में खुशी पा सकते है।
आप अपनी गली, मुहल्ले या सोसाईटी में होली, दीवाली या नये साल के मौके पर अपनी हिचकिचाहट को मिटा कर बच्चो के साथ-साथ रंगारंग कार्यक्रमों में भाग ले सकते है। इससे आपके अंदर छुपी हुई प्रतिभा को देख कर आपके प्रियजनों को दातों तले उंगुलीयॉ दबाने पर मजबूर होना पड़ेगा। आप जीवन के इस मोड़ पर भी यह साबित कर सकते है कि आपके अंदर पहले जैसा जोश अभी बाकी है। बच्चो की तरह आप सब बर्जुग मिल कर वर्ल्ड सीनियर डे आदि मना सकते है। अपने परिवार के सदस्यो से कुछ अधिक इच्छा रखने की बजाए समय-समय पर उनको मोके के अनुसार कुछ न कुछ प्यारा सा तोहफा भेंट करे, इससे सारे परिवार का भरपूर स्नेह आपको मिलने लगेगा।
छोटे-मोटे दुख एवं परेशानीयॉ तो हमारी जिंदगी का ही एक अंग है। ऐसे में बढ़ती उंम्र के साथ अपनी इच्छाओं पर काबू रखने का प्रयास करते हुए बच्चो और रिश्तेदारो से जरूरत से अधिक अपेक्षाएं न रखें। जीवन के आखिरी पहर में घर वालो की मजबूरीओ को समझते हुए बर्जुगो को छोटी-छोटी बातो पर जिद्द करने से बचने की जरूरत है। बुढ़ापे में अक्सर अनेक लोग क्रोध को एक हथियार के रूप में प्रयोग करते हैं। जबकि मनुष्य क्रोध में, समुंद्र की तरह बहरा एवं आग की तरह उतावला हो जाता है। क्रोध की जगह यदि इंसान नम्रता का कवच पहनता है तो घर वालो के साथ समाज का हर व्यक्ति खुशी-खुशी सहयोग करने को तैयार रहता है। जीवन के सभी उतार चढ़ाव देखने के बाद तो इंसान बुढ़ापे में उस वृक्ष की तरह बन जाता है जो खुद तो हर तरह के तुफानी थपेड़ो को सहते हुए दूसरों को शीतलता प्रदान करता है। बुढ़ापे के सफर में यह छोटे छोटे बदलाव जहां एक और आपके अंदर आत्मविश्वास भर देगे वही आपके जीवन से आपकी सभी परेशानीयॉ को छूमंतर कर देते है। जिंदगी के इस आखिरी पहर में इस जादुई चमत्कार के बाद आप देखेगे कि न सिर्फ आपके घर वाले बल्कि जौली अंकल भी सुबह शाम आपको सलाम करेगे।

आम आदमी

आंधी और तुफान की तरह तेज भागती जिंदगी ने आज हर किसी को एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ ने दीवाना सा बना दिया है। चंद दिन पहले इसी जल्दबाजी के चलते एक कार वाले ने मुसद्दी लाल जी की साईकल को टक्कर मार दी। एक तो चोरी और उस पर सीनाजोरी की कहावत को चिरतार्थ करते हुए कार वाले ने बिना सोचे समझे सारा इलजाम मुसद्दी लाल के सिर पर मढ़ दिया। कार के मालिक ने अपनी दौलत के नशे में तो यहां तक कह डाला की तुम्हारे जैसे साईकल चलाने वाले आम आदमी को सड़क पर चलने की समझ तक नही होती। टक्कर मारने और मुसद्दी लाल जी को बुरी तरह से घायल करने के बावजूद कार वाले ने उनकी मां-बहन को खूब अच्छी तरह से याद किया गया। उसके तुंरत बाद जेब से मोबइल फोन बाहर आ गये और हाथो की उंगुलियां अपनी हस्ती के मुताबिक अपनी पहुंच तक पहुंचने में व्यस्त हो गई। बीच-बीच में कार वाला मुसद्दी लाल जी को धमकी दे रहा था कि तुम मुझे जानते नही कि मैं कौन  हूँ? आखिर मुसद्दी लाल जी ने तंग आकर पूछ ही लिया कि पहले तुम यही बता दो कि भाई तुम हो कौन? अब कार वाले ने कहा कि मैं इस शहर के सबसे बड़े नेता का बेटा  हूँ। मुसद्दी लाल जी ने इतने गंभीर महौल में भी अपनी आदतनुसार मजाक करते हुए कहा कि क्या नेता जी इस बात को जानते है? इतना सुनते ही नेता जी के बेटे का खून खोलने लगा और उसने अपनी गालीयो की बौछार और उनका वजन और अधिक बढ़ा दिया।
इससे पहले की इस दुर्घटना की बात नेता जी के कान तक पहुंचती, पास से गुजरते एक टी,वी, चैनल वाले की नजर मुसद्दी लाल जी जैसे आम आदमी की टूटी हुई साईकल पर पड़ गई। जैसे ही टी,वी, चैनल वालो को यह मालूम हुआ कि साईकल को टक्कर मारने वाला एक बड़े नेता का बेटा है तो उनकी बांछे खिल गई। दिल्ली जैसे बड़े शहर में एक आम आदमी की इतनी दुर्गति देख कर टी,वी, चैनल वालो की पिछले सात जन्मों की हमदर्दी पल भर में आम आदमी के हित में जाग उठी। वो बात अलग है कि चैनल वालों के लिये इससे अच्छी मसालेदार खबर और क्या हो सकती थी। आम आदमी के प्रति सहानुभूति जताते हुए इस छोटी सी खबर को देश की सबसे बड़ी खबर बना दिया। कुछ ही देर में मुसद्दी लाल जी जैसे आम आदमी से लेकर उनके गली मुहल्ले वालो के इन्टरव्यू अलग-अलग टी,वी, चैनलों पर प्रसारित हो रहे थे।
इसीलिये शायद जो नेता अपने मां-बाप तक को नही पहचानते चुनावों के आस-पास वो भी आम आदमी के लिये घर में गाड़ी, पैसे और दारू तक भिजवा देते है। चापलूसी में माहिर नेता एक दिन के लिये ही सही आम आदमी को शंहशाह बना देते है। इसी भ्रंम के चलते भारत देश के गांव से लेकर राजधानी दिल्ली में रहने वाले आम आदमी की हैसीयत चाहे कुछ भी न हो लेकिन वो खुद को किसी से कम नही समझता। क्योकि वो इस बात को अच्छी तरह से समझता है कि हमारे मंत्री और सरकार को यह मालूम है कि यदि राजगद्दी पर टिके रहना है तो आम आदमी को खुश रखना ही पड़ेगा। वो बात अलग है कि चुनावों के बाद आम आदमी के लिए छोटे से छोटे काम को पूरा करने में सरकार बरसों तक का समय लगा देती है। कहने को सड़क से लेकर हर शहर में पुलों तक का निर्माण केवल और केवल आम आदमी के लिए किया जाता है। कुछ लाखों रूप्यों के बजट में होने पर काम पर करोड़ो-अरबों रूप्ये खर्च करने के बाद भी सड़क और पुल केवल सरकारी फाईलों में ही दिखाई देते है।
आम आदमी की हस्ती चाहे कुछ भी न हो परंतु हमारे नेता लोग इसकी नराजगी से बचने के लिये चुनावों में किये गये वादो में से कुछ को पूरा करने का अक्सर इन्हें झांसा देते रहते है। सारी दुनियां के लिए चावल, दाल 50 रूप्ये किलो बिकती है परंतु आम आदमी के लिए सरकार इसे दो रूप्ये किलो बेचती है। बाकी लोगो के लिए बिजली के दाम चाहें आकाश को छू रहे हो, लेकिन आम आदमी के लिए यह मुफत बिजली देने का दम भरते है। वो बात अलग है कि आम आदमी को दो रूप्ये किलो वाली दाल और चावल कभी सपने में भी देखने को नही मिलते। मुफत में मिलने वाली बिजली रानी के दर्शन तो शायद आज तक कभी किसी आम आदमी को नही हुऐ होगे। हमारे देश के नेता यह जानते हुए भी कि उन्हें सारी शक्ति आम आदमी से ही मिलती है वो कभी भी आम लोगो के लिए बराबर न्याय की बात सोचते तक नही। ऐसा लगता है बिना भ्रष्टाचार और पक्षपात के काम करना उनके स्वभाव में ही नही है। हालिंक राजनेता का मुख्य दायित्व जनसेवा ही होता है और हर मंत्री को आम आदमी का सच्चा सेवक होना चहिए, परंतु व्यवाहरिक जीवन में ऐसा नही होता। हमारे देश में राजनीति कुछ लोगो के लिए सिर्फ पैसा कमाने और मनोविनोद का साधन बन कर रह गया है। आज आम आदमी के कान नेताओं के झूठे वादे सुन-सुन कर पक चुके है, इससे आगे कुछ और सुनने की हिम्मत उसमें नही बची।
आम आदमी की और से जौली अंकल देश के रहनुमाओं से यही अनुरोध करते है कि आपके पास धन, दौलत और ताकत सब कुछ है। इन्ही के बल पर हर कोई आम आदमी को झुकाने की कोशिश करता है, असल में जरूरत है खुद को थोड़ा सा झुकाने की, क्योंकि जनहित के कार्यो से ही इंसान महान बनता है। नेता लोग चाहे कितने ही ऊंचे ओदे पर क्यूं न पहुंच जाये उन्हें यह बात जीवन में कभी नही भूलनी चहिये कि आम आदमी की आवाज ही ईश्वर की आवाज होती है। इसलिये सदैव अपने जीवन काल में नंम्र बनो तो आम आदमी आपको नमन करते हुए हर कार्य में सहयोग देगा।

बच्चे मन के सच्चे

दरवाजे पर अचानक जैसे ही जोर से घंटी बजी तो सभी परिवार वालों का ध्यान पूजा से भटक गया। दूसरों को सच का पाठ पढ़ाने और खुद झूठ बोलने में माहिर मिश्रा जी ने अपने बेटे को दरवाजा खोलने के साथ उसे यह आदेष भी दे डाला कि दरवाजे पर कोई भी हो कह देना कि मैं घर पर नही  हूँ। मिश्रा जी के बेटे ने भाग कर दरवाजा खोला तो सामने मुहल्ला समीति के लोग रामलीला के लिए चंदा इक्ट्ठा करने के लिए पर्ची हाथ में पकड़े खड़े थे। छोटे से बच्चे ने बड़ी ही मासूमयित से दरवाजे पर खड़े लोगो से कह दिया कि पापा कह रहे है कि वो घर पर नही है। नन्हें से बच्चे के मुख से निकली बिल्कुल सच्ची बात सुनते ही सभी लोगो की हंसी छूट गई।
कुछ ही देर में जब मिश्रा जी का बेटा वापिस कमरे में दाखिल हुआ तो फोन की घंटी टर्न-टर्न करते हुए सभी का ध्यान अपनी और खींच रही थी। अब मिश्रा जी ने अपनी इकलोती पत्नी को हुक्म दे डाला कि फोन पर कोई मेरे बारे में पूछे तो उसे मना कर देना कि मैं घर पर नही  हूँ। मिश्रा जी की पत्नी ने अपनी आदतनुसार फोन उठाते ही हंस-हंस कर बाते करनी षुरू कर दी। अगले ही पल उधर से आवाज आई कि तुम्हारा बुव गया काम पर या अभी घर पर ही हेै? मिश्रा जी की पत्नी ने भी हंसते हुए कह दिया कि आज तो अभी यह घर पर ही है। इतना सुनते ही मिश्रा जी का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा। पत्नी को डांटते हुए बोले मैने तुम्हें जब पहले से ही समझाया था कि कह देना कि मैं घर पर नही  हूँ तो फिर भी तुम्हें यह कहने की क्या जरूरत थी कि मैं घर पर ही बैठा हुआ  हूँ? मिश्रा जी की पत्नी ने बात को टालते हुए कहा कभी तो अपना गुस्सा नाक से उतार कर नीचे रख दिया करो। यह फोन तुम्हारे लिए नही था, मेरी सहेली का था। असल में मेरी कुछ सहेलियां आज गप-षप के मूड में मेरे यहां आना चाहती थी, परंतु जब मैने उन्हें तुम्हारे घर में होने की खबर दी तो उन्होने आने से मना कर दिया।
बड़े लोग अपने बच्चो को सदा ही झूठ न बोलने की नसीहत देते है और उम्मीद करते है कि बच्चे सदा मन के सच्चे होने चहिये। बच्चो को सच बोलने के संस्कारों की घुटटी तो हम उन्हें जन्म से ही पिलाते है, लेकिन खुद हर कदम पर झूठ का साहरा लेकर ही चलते है। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जाने-अनजानें अनेको बार हम लोग बच्चो के सामने झूठ बोलने से नही कतराते। समय-समय पर अपनी झूठी बात को सच साबित करने में ही अपनी षान समझते है। झूठ एक ऐसा रोग है जिसे समाज का कोई वर्ग भी पंसद नही करता, लेकिन मौका मिलते ही हर कोई इसे इस्तेमाल करने से भी नही चूकता। ऐसे में यदि हमारे बच्चे झूठ बोलते है तो इसके लिए हम यह कद्पि मानने को तैयार नही होते कि अधिकाश: मामलों में दोषी हम लोग ही है। छोटे बच्चे तो मन से बिल्कुल सच्चे होते है लेकिन षुरू-षुरू में अक्सर मां-बाप के डर, सजा या पिटाई के कारण कई बार झूठ बोल देते है। समय रहते यदि उनकी इस आदत में सुधार न किया जाये तो उनकी झूठ बोलने की यह आदत पक जाती है। झूठ बोलने के पीछे मंषा चाहे कुछ भी हो, इसे किसी भी हालात में सही नही ठहराया जा सकता। बच्चा हो या बड़ा, झूठ बोलने का कारण कुछ भी हो यह एक खतरनाक संकेत है। इस एक आदत के कारण बच्चा गलत संगत में पड़ कर बुरी आदतो का षिकार हो सकता है। इससे बच्चे के व्यक्तित्व और आने वाले समय में सामाजिक रिष्तों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
लोगो के मन में यह धारणा घर चुकी है कि इस दुनियां में झूठ बोले बिना काम चल ही नही सकता। यह भी सत्य है कि कई बार सच्चाई बहुत कडुवी होती है और इसे बोलना बहुत कठिन हो जाता है। जैसे किसी अंधे को अंधा या लंगड़े को लंगड़ा कहने की हिम्मत आम आदमी नही जुटा पाता। कुछ लेकिन हमें सदा ही बच्चों मे सच बोलने के लिए उत्साह पैदा करना चहिये। यदि बच्चे से कोई गलती हो भी जाती है और वो आपको सच बता देता है, तो उसे सजा देने की बजाए उसकी सच बोलने की हिम्मत की तारीफ करनी चहिये। उसमें इतना विश्वास भरने का प्रयत्न करे कि तुम एक सच्चे और बहादुर इंसान हो और कभी किसी को जीवन में धोखा नही दोगे।
संसार में ऐसा कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जो सच और झूठ के फर्क को न समझता हो, लेकिन हम लोग दूसरों को सच्चाई का उपदेश देने से पहले कभी भी खुद को आंकने की कोशिश नही करते। यदि किसी बच्चे ने भूल से झूठ बोलने की कोई गलती कर ही दी है तो उसे असानी से सुधारा जा सकता है। बचपन से ही हमें बच्चो को यह समझाना चहिये कि सच बोलने वाले इंसान का व्यवहार ही उसके व्यकितत्व को निखारता है। परेशानी सिर्फ उन लोगो को हो सकती है जो इस आदत में सुधार की उम्मीद खो बैठते है। सच बोलने वाले व्यक्ति से सदा सभी लोग खुश रहते है और वो खुद भी भी हमेशा खुद से खुश रह सकता है।
जौली अंकल तो सदा से ही इस बात पर यकीन रखते है बच्चे जहां एक और जहां ऐसे कोमल फूल की तरह होते जो भगवान को भी प्यारे लगते है वहीं यह सदा मन से भी बिल्कुल सच्चे होते है। इस बात से ज्ञानी लोग भी इंकार नही कर सकते कि केवल 'सत्य का ही अस्तित्व' होता है और सत्य की महानता ही आपको महान बनाती है। इसी लिये बच्चो को सच का पाठ पढ़ाने से पहले जरूरत है हमें अपने अंदर बदलाव लाने की। इसी राह पर चलते हुए हम भी बच्चो की तरह मन से सच्चे होते हुए जीवन में सच्चाई पर विजय पा सकते है।