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शनिवार, 16 जनवरी 2010

संतोष की दौलत

बहुत ही पुराने समय की बात है कि एक बार एक राजा राज्य की प्रजा का हाल जानने के लिये अपने मंत्रीयों के साथ दौरे पर निकला। कुछ ही दूरी पर उन्हे एक भिखारी मिल गया। राजा ने अपने साथ चल रहे दरबारीयों से कहा कि इस भिखारी से पूछो कि इसे किस चीज की जरूरत है, और उसकी हर मांग को तुंरत पूरा किया जाये। भिखारी ने हंसते हुए कहा कि तुम्हारा राजा मेरी कोई भी इच्छा पूरी नही कर सकता। राजा के मंत्रीयो को काफी गुस्सा आया कि सड़क पर भीख मांगने वाला एक भिखारी उनके राजा की इस तरह खुल्ले आम बेईज्जती कर रहा है। बात जब राजा तक पहुंची तो उसने कहा कि तुम मुझे बताओ कि तुम्हें क्या चहिये? मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूगा।
भिखारी ने कहा कि कुछ भी कहने से पहले एक बार अच्छी तरह सोच लो। क्योंकि आज तक कोई भी आदमी मेरी इच्छा पूरी नही कर सका। राजा ने उस भिखारी की चुनोती को स्वीकार करते हुए कहा कि मेरे पास बेशुमार दौलत है। मेरे खजाने में कभी न खत्म होने वाले धन के अंबार लगे हुए है। शायद तुम जानते नही कि मैं एक बहुत ही ताकतवर राजा  हूँ। तुम एक बार अपनी जुबान से कुछ मांग कर तो देखो, मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकता  हूँ।
राजा के बार-बार जिद्द करने पर भिखारी ने कहा कि क्या तुम मेरा यह भीख मांगने वाला कटोरा किसी भी कीमती चीज से भर सकते हो? राजा ने जोर से हंसते हुए कहा बस इतनी सी बात थी। मैं खाने-पीने के सामान से तो क्या इसे सोने चांदी और हीरे मोतियो से भर सकता  हूँ। राजा ने पास खड़े अपनी वजीरो को हुक्म दिया कि इस भिखारी का कटोरा जल्दी से सोने की मुद्राओ से भर दो। कुछ ही देर में राजा के हुक्म के मुताबिक वजीरो ने उस भिखारी का कटोरा सोने की मुद्राओ से भर दिया। लेकिन यह क्या हुआ, वो अगले ही पल फिर बिल्कुल खाली था।
राजा ने फिर से हुक्म दिया की इस भिखारी के कटोरे को दुबारा से भर दो। परन्तु हर बार कटोरा भरते ही वो कुछ पलों में ही खाली हो जाता। आस पास खड़े सभी लोग भी इस नजारे को देख बहुत हैरान हो कर देख रहे थे। धीरे-धीरे यह बात पूरे इलाके में फैल गई, और पूरे राज्य की जनता वहां आ पहुंची। अब राजा की इज्जत और गौरव दांव पर था। राजा ने अपने वजीरो से कहा कि आज चाहे सारे राज्य की दौलत खत्म हो जाये, लेकिन इस भिखारी का यह कटोरा हर हाल में भरना ही चाहिये। जब रात तक यही सिलसिला चलता रहा तो राजा उस भिखारी के पैरो में गिर कर माफी मांगने लगा। उसने कहा कि अब मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नही बचा। तुम जीत गये और मैं अपनी हार स्वीकार करता  हूँ।
इतना सुनते ही भिखारी वहां से जाने लगा तो राजा ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिये उस भिखारी से यह पूछा कि तुम मुझे सिर्फ एक बात बता दो कि तुम्हारा यह भीख मांगने वाला कटोरा किस मिट्टी या धातू से बना हुआ है। भिखारी ने हंसते हुए कहा कि इसमें छुपाने वाली कोई राज की बात नही है। यह किसी धातू से नही आदमी के दिमाग की खोपड़ी से बना है। इसीलिये एक इच्छा पूरी होते ही इसमें सैंकड़ो और इच्छा जन्म ले लेती है। जो वस्तु इसे इसकी जरूरत के लिये मिलती है, उसी को और अधिक पाने की लालसा लिये इसका लोभ बढ़ता जाता है। इसी कारण आदमी सारी उंम्र भिखारी बन कर ही जीता है। जो व्यक्ति संतुष्ट है, चाहे उसके पास थोड़ा सा ही धन हो, फिर भी वह स्वयं को बहुत धनाढय समझता है।
जौली अंकल भी महापुरषो की इस बात को पूरे तौर से सत्य मानते है कि बड़ी से बड़ी दौलत से भी संतोष अच्छा है। इसीलिये याचक को अपने स्वामी से कुछ भी नही मांगना चाहिए, क्योंकि सबको सब कुछ देने वाला तो भगवान है। जब भी कुछ मांगना है, उसी से मांगो, क्योंकि वह देते-देते कभी नही थकता, इंसान ही उससे मुख मोड़ लेता है।         

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