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शनिवार, 25 जून 2011

’’ बुड्डा मिल गया ’’ - जोली अंकल का एक नया रोकाक लेख


                                                                      ’’ बुड्डा मिल गया ’’

एक दिन सुबह मसुद्वी लाल जी के बैडरूम से अचानक बहुत जोर से चीखने-चिल्लाने की आवाजे आने लगी। मसुद्वी लाल जी एक ही रट लगाए जा रहे थे कि ऐ भगवान तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकते। इनका नौकर गट्टू दोैड़ता हुआ इनके पास आया और पूछने लगा कि साहब जी ऐसा क्या हो गया जो इतनी जोर से चिल्ला रहे हो? मसुद्वी लाल ने उसे बताया कि कुछ नही यार बस एक डरावना सपना देख लिया बस उसी से डर गया था। अब सारे घर में नौकर गट्टू काका के अलावा कोर्इ्र दूसरा सदस्य तो था नही, इसलिये मसुद्वी लाल जी ने हिम्मत करके अपने मन को हल्का करने की मंषा से उसे बताया कि आज मैने सपना देखा कि मैरी दूसरी षादी हो गई है। लेकिन मेरी नई दुल्हन बहुत ही तेज-तर्रार स्वभाव की निकली। बस उसी से डर कर मैं भगवान से कह रहा था कि ऐ भगवान मुझे फिर से एक बार कुंवारों वाली जिंदगी दे दो। मेरी प्रर्थाना सुन कर अचानक भगवान प्रकट हो गये और उन्होने मुझे डांटते हुए कहा कि मैने तुम्हें मन्नत मांगने के लिए कहा था जन्नत मांगने के लिए नही। इससे पहले की मैं उनसे कुछ और कह पाता वो अलोप हो गये। इसी सपने की दहषत से घबरा गया था कि अब ऐसी औरत के साथ सारी जिंदगी कैसे गुजारूगा। मसुद्वी लाल जी की बाते सुन कर नौकर गट्टू को बड़ा मजा आने लगा था। उसने अपने साहब को थोड़ा मख्खन लगाते हुए कहा कि अब तो आपको सारा किस्सा सुनाना होगा।

मसुद्वी लाल जी ने अपने नौकर को बताना षुरू किया कि तुम तो जानते ही हो कि कुछ समय पहले तक मैं अपनी पत्नी और इकलोते बेटे के साथ सरकारी बंगले में एक राजा की तरह रहता था। लाल बत्ती वाली सरकारी गाड़ी के साथ घर के नौकर चाकर से लेकर अखबार तक का बिल सरकार अपने खज़ाने से कब और केैसे अदा कर देती थी, इस बारे में कभी जानने की जरूरत ही नही पड़ी। अपने बेटे को जब जरूरत से अधिक पढ़ा-लिखा दिया तो उसने ईनाम के तौर पर अपने मां-बाप के साथ देष को बॉय-बॉय कहते हुए परदेस को अपना देष बना लिया। इस जुदाई के सदमें ने मेरी पत्नी को समय से पहले ही मुझसे जुदा करके भगवान के घर भेज दिया। आजकल दिन तो किसी न किसी तरह दोस्तो-यारों से गप्प-षप में कट जाता है लेकिन षाम होते ही घर काटने को दौड़ता है।

नौकर गट्टू ने कहा साहब जी बुरा मत मानना यह घर न सिर्फ आपको काटने के लिए आता है बल्कि हमारा घर षाम होते ही एक भूत बंगले का रूप धारण कर लेता है। इसके लिये कोर्इ्र दूसरा नही बल्कि आप खुद जिम्मेंदार हो। षाम अंधेरा होने के बाद आप सारे घर में एक भी लाईट नही जलाने देते, क्योंकि आपको बिजली, पानी, टेलीफोन और अन्य सभी प्रकार के बिलों को देखते ही बहुत चिढ़ होती है। कल तक सरकारी कुर्सी पर बैठ कर आप आऐ दिन मनमर्जी से जनता पर टैक्स लगाते थे आज सरकार कुछ भी करती है तो आपको चोट लगती है। मसुद्वी लाल जी ने कहा कि आजकल सरकार द्वारा दी गई हर चोट पहले से भी गहरी होती है तो तकलीफ तो होगी ही न। पानी का, गैस का, बिजली का, फोन के इतने बिल आते है कि उन्हें देखते ही एक आम आदमी बिलबिलाने के साथ तिलमिला उठता है। मैने तो कई बार इन बिलो से तंग आ कर खुदकषी करने का मन भी बनाया है लेकिन उसी दिन कोर्इ्र न कोई्र जरूरी काम आन पड़ता है। अब जैसे तेैसे जीवन के आखिरी दिन किसी तरह से तेरे साथ ही बिता रहा हॅू।

नौकर गट्टू ने कहा साहब जी यह सब कुछ तो मैं जानता हॅू लेकिन आप असली बात को क्यूं छिपा रहे हो, अपनी दूसरी षादी के बारे में तो कुछ बताओ। मसुद्वी लाल जी ने भी गट्टू को सच्चा हमदर्द समझते हुए बताना षुरू किया कि आज मैने सपने में अपनी बहुत ही खूबसूरत और गोरी-चिट्टी सैक्ट्री को देखा था। गट्टू ने कहा साहब जी आपको तो मोटे-मोटे लैंस वाला चष्मा लगाने के बावजूद भी आखों के आगे हर समय धुंध सी दिखाई देती है। रंग की बात छोड़ो कि गोरा है या काला कई बार तो आपको इतना भी ठीक से दिखाई नही देता कि सामने आदमी खड़ा है या औरत। मुझे तो इतना भी याद हेै कि एक बार तो आपने गोभी के फूल को ही गुलाब का फूल कह डाला था। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि बरसों पुरानी उस औरत को आपने देखा और पहचाना कैसे? मसुद्वी लाल जी ने कहा कि यार यह तो सपने का किस्सा सुना रहा हॅू और सपने में हर किसी को सब कुछ दिखाई दे जाता है।

वैसे जो कुछ मेरे साथ सपने में हुआ है भगवान न करे वो असल जिंदगी में कभी किसी के  हो। मैं युमना के पुराने पुल से जा रहा था कि अचानक वो खूबसूरत सैक्ट्री मिली और हमारी आखें चार हुई तो हम कुछ देर तक एक टक एक दूसरे को देखते रहे। फिर उसने जैसे ही अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा तो मेरी हड्डियों के साथ-साथ लोहे का पुराना पुल भी चरचराने लगा था। मैने उस खूबसूरत औरत से कुछ कहने की कोषिष की, उसने पूछा कि क्या कहा तुमने? वो पता नही क्या समझी कि कुछ नही समझी। फिर उसने मुझ से कुछ कहा, मैं तो उसकी बात को ठीक से नही समझ सका। परंतु जाते-जाते वो इतना जरूर कह गई कि अच्छा फिर ठीक है। इससे पहले की मैं उससे कुछ और कहता है उसने कहा कि जरा इस जासूस जमाने से बच कर चलो, क्योकि मैं भी बच्चो वाली हॅू आप भी बच्चो वाले हो। बातों-बातों में पता नही कब मैने उससे साथ रहने के लिए कह डाला और उसने भी बिना देरी किये हांमी भर दी।




षादी के पहले दिन ही जब वो जींस और टॉप पहन कर मेरे घर आई तो आते ही मुझ से कहने लगी कि तुमने इतने बरसों बाद भी मुझ में ऐसा क्या देखा जो मुझ से षादी के लिए झट तैयार हो गये। मैने कहा कि तुम्हें देखते ही दिल से बस एक ही आवाज आई कि जल्दी से षादी के लिए हां कह दो वरना पीस हाथ से निकल जायेगा। मेरी इस नई पत्नी ने मुझ से कहा कि अब जल्दी से मेरा घूंघट उठाओ और मुंह दिखाई दो। मुझे कहना पड़ा कि तुमने तो टॉप और जींस पहनी हुई है घूंघट है ही नही तो उठाऊ कहां से? उसने कहा कि यह सब फालतू की बातें छोड़ो। मुझे भी मजबूरन कहना पड़ा कि मैं भी हमेषा मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे देता हॅू, तुम्हें तो अभी पसीना आया ही नही। इसी के साथ मैने उससे पूछ लिया कि वैसे आजकल घूंघट उठाने का क्या रेट चल रहा है बाजार में? उस तेज तर्रार औरत ने कहा कि मैने अपना घूंघट उठाने का रेट बताया तो तुम पसीने-पसीने हो जाओगे। मुझे भी उससे कहना पड़ा कि तेरे चक्कर में मेरा पहले ही बहुत पैसा खर्च हो गया है अब तू चाहे जो कुछ मर्जी कह ले मैं तुझे एक पैसा भी और नही दूंगा।

इतना सुनते ही उसने षौर मचा दिया कि मैं लुट-गई, बर्बाद हो गई। न जानें मुझे यह बुड्डा कहां से मिल गया? तुमने मुझे धोखा देकर षादी की है। मैं तुम्हें कही का नही रहने दूगी, अब तुम देखना कि मैं कैसे तुम्हारे ऊपर पुलिस कैस करके तुम्हारी अक्कल ठिकाने लगाती हॅू। अब तुम्हारी बाकी की उम्र कोर्ट कचहरियों में तारीखे भुगतनंे में ही निकलेगी, तुम चाहे कितना ही जोर क्यूं न लगा लो मैं सारी उम्र तुम्हारी जमानत नही होने दूंगी। इन्ही बातो से भयभीत होकर मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि अचानक मेरी आंख खुल गई। मसुद्वी लाल जी की प्रेम गाथा सुन कर जौली अंकल के सामने तो यही नतीजा आता है कि हर इंसान के मन में सदा अच्छे और बुरे विचार चलते रहते है। हर व्यक्ति मन में उठने वाले विचारों को मनचाहा आकार देकर अपना जीवन उसी तरह ढ़ाल सकता है। अब अगर आप बुरे विचारो को नजरअंदाज करके सकारत्मक विचारों से प्रभावित होगे तो फिर कभी कोई लड़की आपसे यह नही कह पायेगी कि मुझे बुड्डा मिल गया।

                                                                                                                             ’’ जौली  अंकल ’’

मंगलवार, 21 जून 2011

हंसी के जलवे - जोली अंकल का एक और लेख आप के लिए


’’ हंसी के जलवे ’’

वीरू ने अपने दोस्त जय से गप-षप करते हुए कहा कि जब मेरी नई-नई षादी हुई थी तो मुझे मेरी बीवी बंसन्ती इतनी प्यारी लगती थी कि मन करता था कि इसे कच्चा ही खा जाऊ। जय ने पूछा कि अब यह सब कुछ तुम मुझे खुषी से बता रहे हो या दुखी होकर। वीरू ने कहा कि अब सुबह-षाम इसकी फरमाईषें पूरी करते-करते परेषान हो गया हॅू। कल जब बंसन्ती ने मेरे आगे एक और नई मांग रखी तो मैने उससे कहा कि मैं अब तुम्हारी और कोई्र भी मांग पूरी नही कर सकता, मैं तो जा रहा हॅू खुदकषी करने। जानते हो इस बेवकूफ औरत ने क्या कहा, कहने लगी खुदकषी करने से पहले एक अच्छी सी सफेद साड़ी तो ला दो। मेरे पास तुम्हारी क्रिया की रस्म पर पहनने के लिए कोई अच्छी साड़ी नही है। इसकी ऐसी बेवकूफियों को देख कर तो यही सोचता हॅू कि अगर उस समय मैं इसे खा ही जाता तो अच्छा होता। जय ने कहा कि कल तक तो तू बंसन्ती के जलवों का दीवाना था। तेरे दिलोदिमाग पर हर समय बंसन्ती का जादू ही सिर चढ़ कर बोलता था। कभी कही भी जाना होता था तो तू सारे काम छोड़ कर इसके सौंदर्य की और खिंचा चला जाता था। वो एक चीज मांगती थी तो तू चार लेकर आता था। अब वही बंसन्ती तुम्हें एक आंख भी नही भा रही ऐसा क्या हो गया?

वीरू ने अपना दुखड़ा रोते हुए जय से कहा कि तुम जिस औरत के जलवों के बारे में तारीफ कर रहे हो, वो औरत नही जहर की पुड़िया है। मेरे तो कर्म फूटे थे जो मैं इसको जी का जंजाल बना कर अपने घर ले आया। सारा दिन उल्टी-सीधी बाते करने और ऊलजलूल बकने के सिवाए इसे कुछ आता ही नही। यह तो मैं हॅू कि खून के घूंट पीकर किसी तरह से इसके साथ अभी तक निभा रहा हॅू। मेरा तो इस औरत से ही मन खट्टा हो गया है। जय ने वीरू को रोकते हुए कहा कि अब यह अपनी बंदर घुड़किया देनी बंद करो, तुमने अपनी बेसिर पैर की बातो को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर बहुत कुछ कह दिया है। क्या तुम मुझे एक बात बताओगे कि तुमने कभी भी अपनी पत्नी को प्यार से रास्ते पर लाने को प्रयास किया है। क्या सारी गलतियां उसी की है तुम्हारी कोर्इ्र गलती नही। मुझे तो तुम्हारी अक्कल पर हैरानगी हो रही है कि वो क्या घास चरने गई हुर्इ्र है जो सारा दोश अपनी बीवी के माथे मढ़ कर खुद ही अपने मुंह मिया मिट्ठू बनते जा रहे हो।

जय ने वीरू को आगे समझाते हुए कहा कि घरवालों की बात को यदि छोड़ भी दे तो हमारी अपनी आखें, कान, नाक, जीभ आदि सब कुछ अपनी मर्जी मुताबिक समय-समय पर कुछ न कुछ मांग करते रहते है। जब जिंदगी में कुछ चीजे कम होने लगती है या खत्म हो जाती है तो हमें बहुत तकलीफ होती है। अब इससे पहले कि तुम पूछो कि ऐसी कौन सी चीजे है जिन के कारण इंसान का जीवन कश्टदायक बन जाता है, मैं ही तुम्हें बता देता हॅू कि इसमें से कुछ खास है प्यार, रिष्ता, बचपन, दोस्ती, पैसा और सबसे जरूरी चीज है हंसी। वीरू ने जय को टोकते हुए कहा कि बाकी सभी चीजे तो समझ आ रही है, लेकिन हंसी के बिना हमारे जीवन पर क्या असर पड़ सकता है, यह बात कुछ मेरे पल्ले नही पड़ी। जय ने सामने रखी हुई वीरू और बसन्ती की एक तस्वीर को देखते हुए कहा कि जब तुमने यह फोटो खिचवाई थी तो तुम षायद एक-दो सैंकड के लिए मुस्कराऐ होगे, परंतु उस एक-दो सैंकड की मुस्कराहट ने तुम्हारी यह तस्वीर सदा के लिए खूबसूरत बना दी। अब यदि आप लोग हर दिन कुछ पल हंसने की आदत बना लो तो फिर सोचो कि तुम्हारी सारी जिंदगी कितनी षानदार बन सकती है। मेरे यार घर परिवार में रूठने मनाने के साथ जो लोग थोड़ा मुस्कराहना सीख लेते है उन्हें जीवन में संतुलन बनाये रखने में कोई दिक्कत नही आती। हंसी के जलवों की बात करे तो इस में वो षक्ति है कि यह हर प्रकार के तनाव को तो खत्म करती ही है साथ ही आपको कोर्ट-कहचरियों और पुलिस के चंगुल से बचा सकती है। वीरू तुम्हारी सम्सयां यह हेै कि तुम खुद तो हर समय खुष रहना चाहते हो, लेकिन दूसरों की कठिनाईयों से तुम्हें कोई लेना देना नही है। इसमें तुम्हारी भी गलती नही है क्योंकि आजकल किसी के पास भी दूसरों को खुषी देना तो दूर खुद को भी खुष रहने के लिए समय ही नही है। मेरे यार एक बात कभी मत भूलना कि जितनी मेहनत से लोग अपने लिये परेषनियां खड़ी करते है उससे आधी से हंसी के जलवों की बदौलत अपने घर को स्वर्ग बना सकते हैं।

हंसी के जलवों की इतनी सराहना सुनने के बाद जौली अंकल का भी रोम-रोम हर्श से छलकने लगा है। उनके अंग-अंग से यही आवाज आ रही हे कि जीवन का भरपूर आनन्द पाने के लिये जब भी हंसने का मौका मिले खिलखिलाकर हसों। आप भी यदि अपने जीवन को सुखों का सागर बनाना चाहते है तो इसका सबसे सरल उपाय है कि आप अपने मन में सकारात्मक राय रखते हुए हंसी के जलवे बिखेरते रहोे।

                                                                                                                                 ’’ जौली अंकल ’’

बुधवार, 8 जून 2011

बेवक़ूफ़ - जोली अंकल का नया रोचक लेख


                                       ’’ बेवकूफ ’’

मिश्रा जी की पत्नी ने बाजार में खरीददारी करते हुए उनसे पूछ लिया कि ऐ जी, यह सामने गहनों वाली दुकान पर लगे हुए बोर्ड पर क्या लिखा है, कुछ ठीक से समझ नही आ रहा। मिश्रा जी ने कहा कि बिल्कुल साफ-साफ तो लिखा है कि कही दूसरी जगह पर धोखा खाने या बेवकूफ बनने से पहले हमें एक मौका जरूर दे। मिश्रा जी ने नाराज़ होते हुए कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने सारी बेवकूफियांे करने का ठेका तुम मां-बेटे को ही दे कर भेजा है। इतना सुनते ही पास खड़े मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि घर में चाहे कोई भी सदस्य कुछ गलती करें आप मुझे साथ में बेवकूफ क्यूं बना देते हो?

मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हें बेवकूफ न कहूं तो क्या कहू? तुमसे बड़ा बेवकूफ तो इस सारे जहां में कोई हो ही नही सकता। अपना पेट काट-काट कर और कितने पापड़ बेलने के बाद मुष्किल से तुम्हारी बी,ए, की पढ़ाई पूरी करवाई थी कि तुम मेरे कारोबार में कुछ सहायता करोगे। परंतु अब दुकान पर मेरे काम मे कुछ मदद करने की बजाए सारा दिन गोबर गणेष की तरह घर में बैठ कर न जाने कौन से हवाई किले बनाते रहते हो। तुम्हारे साथ तो कोई कितना ही सिर पीट ले परंतु तुम्हारे कान पर तो जूं तक नही रेंगती। मुझे एक बात समझाओं की सारा दिन घर में घोड़े बेच कर सोने और मक्खियां मारने के सिवाए तुम करते क्या हो? मैं तो आज तक यह भी नही समझ पाया कि तुम किस चिकनी मिट्टी से बने हुए हो कि तुम्हारे ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर क्यूं नही होता?

मिश्रा जी को और नीला-पीला होते देख उनकी पत्नी ने गाल फुलाते हुए कहा कि यहां बाजार में सबके सामने मेरे कलेजे के टुकड़े को नीचा दिखा कर यदि तुम्हारे कलेजे में ठंडक पड़ गई हो तो अब घर वापिस चले क्या? मिश्रा जी ने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हारे लाड़-प्यार की वजह से ही इस अक्कल के दुष्मन की अक्कल घास चरने चली गई है। मुझे तो हर समय यही डर सताता हेै कि तुम्हारा यह लाड़ला किसी दिन जरूर कोई्र उल्टा सीधा गुल खिलायेगा। मैं अभी तक तो यही सोचता था कि पढ़ाई लिखाई करके एक दिन यह काठ का उल्लू अपने पैरां पर खड़ा हो जायेगा, लेेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है। हर समय कौऐ उड़ाने वाला और ख्याली पुलाव पकाने वाला तुम्हारा यह बेटा तो बिल्कुल कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी नही सीधी हो सकती।

मिश्रा जी की पत्नी ने अपने मन का गुबार निकालते हुए कहा कि आप एक बार अपने तेवर चढ़ाने थोड़े कम करो तो फिर देखना कि हमारा बेटा कैसे दिन-दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है। आप जिस लड़के के बारे में यह कह रहे हो कि वो अपने पैरों पर खड़ा नही हो सकता उसमें तो पहाड़ से टक्कर लेने की हिम्मत है। यह तो कुछ दिनों का फेर है कि उसका भाग्य उसका साथ नही दे रहा। बहुत जल्दी ऐसा समय आयेगा कि चारों और हमारे बेटे की तूती बोलेगी उस समय तो आप भी दातों तले उंगली दबाने से नही रह पाओगे। मिश्रा जी का बेटा जो अभी तक पसीने-पसीने हो रहा था अब तो उसकी भी बत्तीसी निकलने लगी थी।

अपनी पत्नी की बिना सिर पैर की बाते सुन कर मिश्रा जी का खून खोलने लगा था। बेटे की तरफदारी ने उल्टा जलती आग में घी डालने का काम अधिक कर दिया। मिश्रा जी ने पत्नी को समझाते हुए हुआ कहा कि मैने भी कोई धूप में बाल सफेद नही किए, मैं भी अपने बेटे की नब्ज को अच्छे से पहचानता हॅू। सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ने से या तीन-पांच करने से कभी डंके नही बजा करते। ऐसे लोग तो लाख के घर को भी खाक कर देते है। तुम पता नही सब कुछ समझते हुए भी बेटे के साथ मिल कर सारा दिन क्या खिचड़ी पकाती रहती हो? क्या तुम इतना भी नही जानती कि जिन लोगो के सिर पर गहरा हाथ मारने का भूत सवार होता है उन्हें हमेषा लेने के देने पड़ते है। यह जो जोड़-तोड़ और हर समय गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग होते है उन्हें एक दिन बड़े घर की हवा भी खानी पड़ती है।

मिश्रा जी के घर की महाभारत को देखने के बाद जौली अंकल कोई परामर्ष या सलाह देने की बजाए यही मंत्र देना चाहते है कि किसी काम से अनजान होना इतने षर्म की बात नही होती जितना की उस काम को करने के लिए कतराना। इसीलिये हर मां-बाप यही चाहते है कि स्ंातान अच्छी होनी चाहिए जो कहने में हो तो वो ही लोक और परलोक में सुख दे सकती है। इस बात को तो कोई भी नही झुठला सकता कि भाग्य के सहारे बैठे रहने वाले को कभी कुछ नही मिलता और ऐसे लोगो को सारी उम्र पछताना पड़ता है इसीलिए जमाना षायद उन्हें बेवकूफ कहता है।
                                                                                                                          ’’जौली अंकल’’