’’ बुड्डा मिल गया ’’
एक दिन सुबह मसुद्वी लाल जी के बैडरूम से अचानक बहुत जोर से चीखने-चिल्लाने की आवाजे आने लगी। मसुद्वी लाल जी एक ही रट लगाए जा रहे थे कि ऐ भगवान तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकते। इनका नौकर गट्टू दोैड़ता हुआ इनके पास आया और पूछने लगा कि साहब जी ऐसा क्या हो गया जो इतनी जोर से चिल्ला रहे हो? मसुद्वी लाल ने उसे बताया कि कुछ नही यार बस एक डरावना सपना देख लिया बस उसी से डर गया था। अब सारे घर में नौकर गट्टू काका के अलावा कोर्इ्र दूसरा सदस्य तो था नही, इसलिये मसुद्वी लाल जी ने हिम्मत करके अपने मन को हल्का करने की मंषा से उसे बताया कि आज मैने सपना देखा कि मैरी दूसरी षादी हो गई है। लेकिन मेरी नई दुल्हन बहुत ही तेज-तर्रार स्वभाव की निकली। बस उसी से डर कर मैं भगवान से कह रहा था कि ऐ भगवान मुझे फिर से एक बार कुंवारों वाली जिंदगी दे दो। मेरी प्रर्थाना सुन कर अचानक भगवान प्रकट हो गये और उन्होने मुझे डांटते हुए कहा कि मैने तुम्हें मन्नत मांगने के लिए कहा था जन्नत मांगने के लिए नही। इससे पहले की मैं उनसे कुछ और कह पाता वो अलोप हो गये। इसी सपने की दहषत से घबरा गया था कि अब ऐसी औरत के साथ सारी जिंदगी कैसे गुजारूगा। मसुद्वी लाल जी की बाते सुन कर नौकर गट्टू को बड़ा मजा आने लगा था। उसने अपने साहब को थोड़ा मख्खन लगाते हुए कहा कि अब तो आपको सारा किस्सा सुनाना होगा।
मसुद्वी लाल जी ने अपने नौकर को बताना षुरू किया कि तुम तो जानते ही हो कि कुछ समय पहले तक मैं अपनी पत्नी और इकलोते बेटे के साथ सरकारी बंगले में एक राजा की तरह रहता था। लाल बत्ती वाली सरकारी गाड़ी के साथ घर के नौकर चाकर से लेकर अखबार तक का बिल सरकार अपने खज़ाने से कब और केैसे अदा कर देती थी, इस बारे में कभी जानने की जरूरत ही नही पड़ी। अपने बेटे को जब जरूरत से अधिक पढ़ा-लिखा दिया तो उसने ईनाम के तौर पर अपने मां-बाप के साथ देष को बॉय-बॉय कहते हुए परदेस को अपना देष बना लिया। इस जुदाई के सदमें ने मेरी पत्नी को समय से पहले ही मुझसे जुदा करके भगवान के घर भेज दिया। आजकल दिन तो किसी न किसी तरह दोस्तो-यारों से गप्प-षप में कट जाता है लेकिन षाम होते ही घर काटने को दौड़ता है।
नौकर गट्टू ने कहा साहब जी बुरा मत मानना यह घर न सिर्फ आपको काटने के लिए आता है बल्कि हमारा घर षाम होते ही एक भूत बंगले का रूप धारण कर लेता है। इसके लिये कोर्इ्र दूसरा नही बल्कि आप खुद जिम्मेंदार हो। षाम अंधेरा होने के बाद आप सारे घर में एक भी लाईट नही जलाने देते, क्योंकि आपको बिजली, पानी, टेलीफोन और अन्य सभी प्रकार के बिलों को देखते ही बहुत चिढ़ होती है। कल तक सरकारी कुर्सी पर बैठ कर आप आऐ दिन मनमर्जी से जनता पर टैक्स लगाते थे आज सरकार कुछ भी करती है तो आपको चोट लगती है। मसुद्वी लाल जी ने कहा कि आजकल सरकार द्वारा दी गई हर चोट पहले से भी गहरी होती है तो तकलीफ तो होगी ही न। पानी का, गैस का, बिजली का, फोन के इतने बिल आते है कि उन्हें देखते ही एक आम आदमी बिलबिलाने के साथ तिलमिला उठता है। मैने तो कई बार इन बिलो से तंग आ कर खुदकषी करने का मन भी बनाया है लेकिन उसी दिन कोर्इ्र न कोई्र जरूरी काम आन पड़ता है। अब जैसे तेैसे जीवन के आखिरी दिन किसी तरह से तेरे साथ ही बिता रहा हॅू।
नौकर गट्टू ने कहा साहब जी यह सब कुछ तो मैं जानता हॅू लेकिन आप असली बात को क्यूं छिपा रहे हो, अपनी दूसरी षादी के बारे में तो कुछ बताओ। मसुद्वी लाल जी ने भी गट्टू को सच्चा हमदर्द समझते हुए बताना षुरू किया कि आज मैने सपने में अपनी बहुत ही खूबसूरत और गोरी-चिट्टी सैक्ट्री को देखा था। गट्टू ने कहा साहब जी आपको तो मोटे-मोटे लैंस वाला चष्मा लगाने के बावजूद भी आखों के आगे हर समय धुंध सी दिखाई देती है। रंग की बात छोड़ो कि गोरा है या काला कई बार तो आपको इतना भी ठीक से दिखाई नही देता कि सामने आदमी खड़ा है या औरत। मुझे तो इतना भी याद हेै कि एक बार तो आपने गोभी के फूल को ही गुलाब का फूल कह डाला था। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि बरसों पुरानी उस औरत को आपने देखा और पहचाना कैसे? मसुद्वी लाल जी ने कहा कि यार यह तो सपने का किस्सा सुना रहा हॅू और सपने में हर किसी को सब कुछ दिखाई दे जाता है।
वैसे जो कुछ मेरे साथ सपने में हुआ है भगवान न करे वो असल जिंदगी में कभी किसी के हो। मैं युमना के पुराने पुल से जा रहा था कि अचानक वो खूबसूरत सैक्ट्री मिली और हमारी आखें चार हुई तो हम कुछ देर तक एक टक एक दूसरे को देखते रहे। फिर उसने जैसे ही अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा तो मेरी हड्डियों के साथ-साथ लोहे का पुराना पुल भी चरचराने लगा था। मैने उस खूबसूरत औरत से कुछ कहने की कोषिष की, उसने पूछा कि क्या कहा तुमने? वो पता नही क्या समझी कि कुछ नही समझी। फिर उसने मुझ से कुछ कहा, मैं तो उसकी बात को ठीक से नही समझ सका। परंतु जाते-जाते वो इतना जरूर कह गई कि अच्छा फिर ठीक है। इससे पहले की मैं उससे कुछ और कहता है उसने कहा कि जरा इस जासूस जमाने से बच कर चलो, क्योकि मैं भी बच्चो वाली हॅू आप भी बच्चो वाले हो। बातों-बातों में पता नही कब मैने उससे साथ रहने के लिए कह डाला और उसने भी बिना देरी किये हांमी भर दी।
षादी के पहले दिन ही जब वो जींस और टॉप पहन कर मेरे घर आई तो आते ही मुझ से कहने लगी कि तुमने इतने बरसों बाद भी मुझ में ऐसा क्या देखा जो मुझ से षादी के लिए झट तैयार हो गये। मैने कहा कि तुम्हें देखते ही दिल से बस एक ही आवाज आई कि जल्दी से षादी के लिए हां कह दो वरना पीस हाथ से निकल जायेगा। मेरी इस नई पत्नी ने मुझ से कहा कि अब जल्दी से मेरा घूंघट उठाओ और मुंह दिखाई दो। मुझे कहना पड़ा कि तुमने तो टॉप और जींस पहनी हुई है घूंघट है ही नही तो उठाऊ कहां से? उसने कहा कि यह सब फालतू की बातें छोड़ो। मुझे भी मजबूरन कहना पड़ा कि मैं भी हमेषा मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे देता हॅू, तुम्हें तो अभी पसीना आया ही नही। इसी के साथ मैने उससे पूछ लिया कि वैसे आजकल घूंघट उठाने का क्या रेट चल रहा है बाजार में? उस तेज तर्रार औरत ने कहा कि मैने अपना घूंघट उठाने का रेट बताया तो तुम पसीने-पसीने हो जाओगे। मुझे भी उससे कहना पड़ा कि तेरे चक्कर में मेरा पहले ही बहुत पैसा खर्च हो गया है अब तू चाहे जो कुछ मर्जी कह ले मैं तुझे एक पैसा भी और नही दूंगा।
इतना सुनते ही उसने षौर मचा दिया कि मैं लुट-गई, बर्बाद हो गई। न जानें मुझे यह बुड्डा कहां से मिल गया? तुमने मुझे धोखा देकर षादी की है। मैं तुम्हें कही का नही रहने दूगी, अब तुम देखना कि मैं कैसे तुम्हारे ऊपर पुलिस कैस करके तुम्हारी अक्कल ठिकाने लगाती हॅू। अब तुम्हारी बाकी की उम्र कोर्ट कचहरियों में तारीखे भुगतनंे में ही निकलेगी, तुम चाहे कितना ही जोर क्यूं न लगा लो मैं सारी उम्र तुम्हारी जमानत नही होने दूंगी। इन्ही बातो से भयभीत होकर मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि अचानक मेरी आंख खुल गई। मसुद्वी लाल जी की प्रेम गाथा सुन कर जौली अंकल के सामने तो यही नतीजा आता है कि हर इंसान के मन में सदा अच्छे और बुरे विचार चलते रहते है। हर व्यक्ति मन में उठने वाले विचारों को मनचाहा आकार देकर अपना जीवन उसी तरह ढ़ाल सकता है। अब अगर आप बुरे विचारो को नजरअंदाज करके सकारत्मक विचारों से प्रभावित होगे तो फिर कभी कोई लड़की आपसे यह नही कह पायेगी कि मुझे बुड्डा मिल गया।
’’ जौली अंकल ’’