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बुधवार, 7 सितंबर 2011

’’ ज़मीर की आवाज ’’


                                                                       

दूध के पतीले को देखते ही मिश्रा जी की पत्नी ने अंगारे उगलते हुए कहा कि मैं कई दिन से कह रही हॅू कि यह हमारा दूध वाला रोज दूध में पानी डाल कर दे जाता है। परंतु आप भी पता नही किस मिट्टी से बने हुए हो कि रोज मेरा इतना चीखने चिल्लाने के बावजूद भी आपके कान पर जूं तक नही रेंगती। पत्नी का इतना षोर सुनने के बाद मिश्रा जी ने अगले ही पल उस दूध वाले को सबक सिखाने के लिये कमर कस ली। अपनी पत्नी को दिलासा देते हुए बोले कि मैं आज उस बदमाष की अक्कल ठिकाने लगा कर ही रहूंगा। कुछ ही देर बाद मिश्रा जी दूध वाले को दूध में मिलावट करने का आरोपी ठहराते हुए उसे खरी-खरी सुना रहे थे। मिश्रा जी उस दूध वाले को बुरा-भला कहने के साथ कह रहे थे कि मुझे लगता है चंद पैसो के लालच में तुमने अपनी इज्जत तो बेच ही दी है साथ ही तुम्हारा ज़मीर भी मर गया है।

दूध वाले ने कहा कि आपको कैसे मालूम कि मेरा ज़मीर मर चुका है। मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हारी यह बेषर्मी वाली हरकतें ही साफ ब्यां कर रही है कि तुम्हारा ज़मीर मर चुका है। दूध वाले ने हैरान होते हुए कहा कि साहब जी आप तो आज पहली बार मेरी डैयरी पर आए हो और आप मेरे ज़मीर के बारे में सब कुछ कैसे जानते हो? मिश्रा जी ने पूछा कि तुम किस ज़मीर की बात कर रहे हो? दूध वाले ने कहा कि मेरी भैंस के बछड़े का नाम ज़मीर था और वो बेचारा पिछले हफ्ते ही मर गया था। मिश्रा जी को कुछ समझ नही आ रहा था कि यह दूध वाला सच में इतना भोला है कि इसे ज़मीर के बारे में कुछ मालूम नही या यह मुझे ही बेवकूफ बना रहा है। मिश्रा जी ने दूध वाले के मन को टटोलते हुए कहा कि जो लोग चेहरे पर नकली मुखोटे लगा कर अपनी असलियत को छिपाते है उन लोगो के बारे में यह कहा जाता है कि इनका ज़मीर मर गया है।

दूध वाले ने कहा कि मैं तो जैसा हॅू वैसा ही आपके सामने खड़ा हॅू मैने तो अपने चेहरे पर कोइ्र्र मुखोटा नही लगाया हुआ फिर आप यह सब कुछ मुझे क्यूं समझा रहे हो? मिश्रा जी ने उसे डांटने की बजाए प्यार से बात करते हुए कहा कि असल में मेरा कहने का मतलब यह है कि कुछ लोग पैसा कमाने के लालच में अपने ईमान को बेच देते है। मैने यह सब कुछ तुम्हें इस लिये कहा क्योकि कई दिन से मेरी पत्नी षिकायत कर रही है कि तुम दूध में पानी मिला कर लाते हो। दूध वाले ने झट से कसम खाते हुए कहा साहब जी मुझे आपकी कसम, मैने आज तक दूध में कभी पानी नही मिलाया। मिश्रा जी ने उससे कहा कि इतना तो मैं भी जानता हॅू कि जितने भोले तुम दिखते हो असल में इतने भोले तुम हो नही। अगर तुम दूध में पानी नही मिलाते तो फिर मेरी पत्नी कुछ दिनों से दूध पतला होने की षिकायत क्यू कर रही है? देखो भाई, भूल और गलती किसी से भी हो सकती है, अगर तुमने ऐसा कुछ किया है तो मुझे सब कुछ सच-सच बता दो। एक बार तुम यदि सब कुछ सच कह दोगे तो तुम्हारा ज़मीर मरने से बच जायेगा। दूध वाले ने फिर से ज़मीर का जिक्र आते ही पूछा कि साहब जी पहले तो ठीक से यह बताओ कि आप कौन से ज़़मीर की बात कर रहे हो, क्योंकि मैं तो किसी और ज़मीर को जानता ही नही।

मिश्रा जी ने उसकी नादानी को भांपने के बाद उसे सलाह देते हुए कहा कि कुछ लोग अधिक से अधिक पैसा कमाने और सुख पाने की चाह में अपने मन की आवाज को अनसुना करते हुए हताष एवं निराष होकर जब कोई गलत काम करने लगते है। ऐसे में हमारी आत्मा हमें उसके लिये झिझोड़ती है। उस आत्मा की सकारत्मक आवाज को ही ज़मीर कहते है। अब दूध वाले को सारा किस्सा समझ आ गया था। मिश्रा जी के बात करने के तरीके से वो इतना प्रभावित हुआ कि उसने बिना देरी किये यह स्वीकार कर लिया कि वो दूध में पानी नही बल्कि पानी में दूध मिलाता हैं दूध वाले ने यह भी कबूल कर लिया कि जब भी वो यह सब कुछ करता हेै तो उसके मन से जरूर एक आवाज उठती थी कि तुम यह गलत कर रहे हो। लेकिन घर-परिवार की बढ़ती जरूरतों ने मुझे यह सब कुछ करने पर मजबूर कर दिया था। मिश्रा जी ने जब दूध वाले से उसकी मजबूरी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि कुछ मुफ्तखोर दोस्त और रिष्तेदार ऐसे पल्ले पड़े हुए है कि आऐ दिन उनको खुष करने के लिये मुझे काफी खर्चा करना पड़ता है। उन से पिंण्ड छुड़ाने के लिये चाहे उन्हें कुछ भी कहते रहो, लेकिन वो पीछा छोड़ते ही नही।

अब तक मिश्रा जी को दूध वाले की सारी मंषा ठीक से समझ आ चुकी थी। उन्होने उससे कहा कि तुम जिन लोगो के बारे में बता रहे हो, ऐसे लोगो का ज़मीर कभी नही जागता बल्कि इस तरह के लोग तो समझाने पर और अधिक दांत फाड़ कर बेषर्मी पर उतर आते है। ऐसा महसूस होता है कि आजकल लोगो ने अपनी इज्ज़त, सम्मान सब कुछ भूल कर अपने ज़मीर को बाजार में नीलाम कर दिया है। मिश्रा जी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि जिंदगी के रिष्तों को निभाने के लिये कई बार हमारे लिये मन के विपरीत जाना भी जरूरी हो जाता है। हमारे जीवन में बहुत से ऐसे काम होते है जो हमें अच्छे नही लगते परंतु हमें उनको करना पड़ता है। कई दोस्त और रिष्तेदार ऐसे होते जो हमें अच्छे नही लगते लेकिन हर हाल में हमें उनके साथ रहना पड़ता है। लेकिन तुम एक बात अपने पल्ले बांध लो कि जो कोई अपने ज़मीर की आवाज सुन कर भलाई की डगर पर चलने का प्रयास करते है उनके दुख और कश्ट खुद-ब-खुद दूर होने लगते है। उनकी यही सोच उनके जीवन से अधियारों को मिटा कर उज़ालो में तबदील कर देते है। जब आप दूसरों के दुखों को कम करने के लिये कदम उठाते हो तो आपके दुख ओर परेषानियां अपने आप ही कम होनी षुरू हो जाती है।

इस बात से कोई इंकार नही कर सकता कि कुछ भी गलत काम करने से पहले एक बार तो हर किसी का ज़मीर उसको झिझोड़ता ही है। वो बात अलग है कि कुछ लोग अपने फायदे के लिये इधर उधर की दलीलें देकर सच को झुठलाने की नाकाम कोषिष करते है, प्रभु ऐसे लोगो को यह अक्कल दे कि सच हमेषा सच ही होता है। सच कभी भी, किसी भी हालात में नही बदलता। जो कोई सदा ही अपने ज़मीर की बात मान कर चलते है उनका सारा जीवन सुख में ही व्यतीत होता है। मिश्रा जी के प्रवचन सुनने के बाद जौली अंकल प्रभु से यही प्रार्थना करते है कि हमें इतना ज्ञान और षक्ति देना कि हम कोई भी ऐसा गलत काम न करे जिसमें हमारा ज़मीर हमारे ही हक में आवाज न दें सके।

’’ खानापूर्ति ’’


                                                                          ’’ खानापूर्ति ’’

मसुद्वी लाल जी घर का कुछ जरूरी समान लेने के लिए बाजार की और निकले ही थे कि रास्ते में उन्हें मालूम पड़ा कि पड़ोस में रहने वाली मौसी का देहान्त हो गया है। वैसे तो मसुद्वी लाल को मुहल्ले की यह चुगलखोर नाम से महषूर मौसी एक आंख भी न भाती थी लेकिन आज अब दिखावे के लिए ऊपरी मन से खानापूर्ति करने के लिए बाजार का रास्ता छोड़ कर सीधा मौसी के घर उसकी मौत पर अफसोस करने जा पहुंचे। सिर्फ मसुद्वी लाल ही नही मुहल्ले के सभी लोग मौसी को देखते ही कतराकर निकलने में अपनी भलाई समझते थे। हर कोई जानता था कि अगर एक बार मौसी के पास नमस्ते करने के लिये भी रूक गये तो फिर मौसी उसे तब तक नही छोड़ेगी जब तक वो सारे मुहल्ले की खबरों को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर न सुना ले।

मौसी के घर में घुसते ही वहां बैठे सभी लोगो के बीच मसुद्वी लाल जी ने लीपापोती करने की मंषा से अपना चेहरा ऐसे लटका लिया जैसे मौसी के जाने का सबसे अधिक दुख उन्हीं को ही हो। सभी लोग एक दूसरे से कुछ न कुछ मौसी की अच्छाईयों के बारे में बातचीत कर रहे थे। परंतु मसुद्वी लाल जी किसी बात पर ध्यान देने की बजाए उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाले जा रहे थे। चंद क्षण किसी तरह चुप बैठने के बाद मसु़द्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछा कि सुबह तक तो ठीक ठाक थी फिर यह सब कुछ अचानक क्या हो गया मौसी जी को? इससे पहले कि मौसी का बेटा उनकी मौत के बारे में कुछ बताता मसुद्वी लाल जी ने कहा कि जरा पानी तो मंगवा दो, बहुत गर्मी लग रही है। जैसे ही एक लड़का इनके लिये पानी का गिलास लेकर आया तो उसे देखते ही बोले कि यह तो बहुत गर्म है, घर में बर्फ वगैरहा नही है क्या? थोड़ी बर्फ ही मंगवा लेते। पंखा भी नही चलाया आप लोगो ने, कम से कम पंखा तो चला देते। सभी लोग मसुद्वी लाल की और ढेड़ी नजरों से देखने लगे कि यह इस तरह के दुखद मौके पर भी कैसी अजीब बाते कर रहे है।

मसुद्वी लाल जी फिर मौसी के बेटे से बोले कि तुमने बताया नही कि क्या हुआ था मौसी जी को? उनके बेटे ने कहना षुरू किया कि बस ऐसे ही घर में चल फिर रही थी कि। मसुद्वी लाल ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा क्यूं कुछ घर का काम काज नही करती थी। बेटे ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि नही मेरा मतलब यह नही था, दिन में खाना खाया और सो गई थी। मसुद्वी लाल जी ने कहा क्यूं खाना खाते-खाते ही सो गई थी क्या? बेटे ने बात साफ करते हुए कहा नही जी थोड़ी देर बाद सोई थी। मसुद्वी लाल जी ने उसे टोकते हुए कहा बेटा ठीक से सारी बात बताओ न, तुम तो मुझे भी खामख्वाह कन्फूज कर रहे हो। इसी के साथ मसुद्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछ लिया कि तुम्हारे पिता जी दिखाई्र नही दे रहे, वो कही गये हुए है? मौसी के बेटे ने बताया कि पिता जी को तो हार्ट-अटैक आया था वो तो पिछले 15-20 दिन से अस्पताल में दाखिल है।

मसुद्वी लाल जी ने हैरान-परेषान होते हुए कहा कि आप भी कमाल करते हो, मुझे आज तक किसी ने बताया ही नही, कम से कम मैं एक बार उनसे मिल तो आता। चलो अब उनको अफसोस करने अस्पताल तो जाना ही पड़ेगा, साथ ही उनका हाल भी पूछ आऊगा। इसी के साथ मसुद्वी जी बोले कि देखो जी जिसे हार्ट-अटैक से मरना था वो तो अस्पताल में बैठा अपना इलाज करवा रहा है और जो ठीक-ठाक थी वो हम सब को छोड़ कर चली गई। वैसे मेरा तुम्हारी मां से बहुत प्यार था, पूरे मुहल्ले में नंबर वन थी तुम्हारी मां। तुम्हारी मां के बिना मेरा दिल नही लगना इस मुहल्ले में। मौसी के बेटे ने जैसे ही घूर कर देखा तो मसुद्वी लाल जी ने पासा पलटते हुए कहा कि मुझे तो वो अपना छोटा भाई मानती थी, बहुत प्यार करती थी मुझें। महौल को बिगड़ता देख मुसद्वी लाल ने सभी को हाथ जोड़ कर वहां से खिसकना ही उचित समझा। जाते-जाते घरवालों से पूछने लगे कि अब इस मुर्दे को कितने बजे घर से निकालना है, मैं फिर उसी समय आ जाऊगा।

मुसद्वी लाल के जाते ही वहां बैठे लोगो में कुछ बोलने लगे कि इनके अपने घर में तो कोई इनकी बात तक नही पूछता और दूसरों के यहां आकर यह बाल की खाल निकालने से बाज नही आते। मुसद्वी जी तो बिना सोचे विचारे ऐसे बोले जा रहे थे जैसे कोई पागल बिना लक्ष्य के गोली चलाता हो। इन सज्जन की बात सुनते ही मौसी के बेटे ने इषारे से चुप करवाते हुए कहा कि इसी लिये हमारे बर्जुग कहते है कि जिंदगी में रिष्ते निभाना उतना ही मुष्किल होता है जितना हाथ में लिए हुए पानी को गिरने से बचाना। इससे भी बड़ा सच तो यह है कि हर इंसान जिंदगी भर दो चेहरे नही भूल पाता एक जो मुष्किल समय में आपका साथ देते है और दूसरा जो मुष्किल समय में आपका साथ छोड़ जाते है। जौली अंकल सभी लोगो के रंग-ढंग पहचानाने की कोषिष में इतना ही जान पायें है कि एक दूसरे के बारे में बाते करने की बजाए यदि हम एक दूसरे से ढंग से बात करें तो बहुत हद तक हमारी आपसी परेषनियां तो खत्म होगी ही वही खानापूर्ति जैसे समाजिक ढ़ोंग से भी छुटकारा मिल पायेगा।

                                                                                                                                  ’’जौली अंकल’’