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मंगलवार, 24 अप्रैल 2012
बेवकूफ - जोली अंकल
’’ बेवकूफ ’’
मिश्रा जी की पत्नी ने बाजार में खरीददारी करते हुए उनसे पूछ लिया कि ऐ जी, यह सामने गहनों वाली दुकान पर लगे हुए बोर्ड पर क्या लिखा है, कुछ ठीक से समझ नही आ रहा। मिश्रा जी ने कहा कि बिल्कुल साफ-साफ तो लिखा है कि कही दूसरी जगह पर धोखा खाने या बेवकूफ बनने से पहले हमें एक मौका जरूर दे। मिश्रा जी ने नाराज़ होते हुए कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने सारी बेवकूफियांे करने का ठेका तुम मां-बेटे को ही दे कर भेजा है। इतना सुनते ही पास खड़े मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि घर में चाहे कोई भी सदस्य कुछ गलती करें आप मुझे साथ में बेवकूफ क्यूं बना देते हो?
मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हें बेवकूफ न कहूं तो क्या कहू? तुमसे बड़ा बेवकूफ तो इस सारे जहां में कोई हो ही नही सकता। अपना पेट काट-काट कर और कितने पापड़ बेलने के बाद मुष्किल से तुम्हारी बी,ए, की पढ़ाई पूरी करवाई थी कि तुम मेरे कारोबार में कुछ सहायता करोगे। परंतु अब दुकान पर मेरे काम मे कुछ मदद करने की बजाए सारा दिन गोबर गणेष की तरह घर में बैठ कर न जाने कौन से हवाई किले बनाते रहते हो। तुम्हारे साथ तो कोई कितना ही सिर पीट ले परंतु तुम्हारे कान पर तो जूं तक नही रेंगती। मुझे एक बात समझाओं की सारा दिन घर में घोड़े बेच कर सोने और मक्खियां मारने के सिवाए तुम करते क्या हो? मैं तो आज तक यह भी नही समझ पाया कि तुम किस चिकनी मिट्टी से बने हुए हो कि तुम्हारे ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर क्यूं नही होता?
मिश्रा जी को और नीला-पीला होते देख उनकी पत्नी ने गाल फुलाते हुए कहा कि यहां बाजार में सबके सामने मेरे कलेजे के टुकड़े को नीचा दिखा कर यदि तुम्हारे कलेजे में ठंडक पड़ गई हो तो अब घर वापिस चले क्या? मिश्रा जी ने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हारे लाड़-प्यार की वजह से ही इस अक्कल के दुष्मन की अक्कल घास चरने चली गई है। मुझे तो हर समय यही डर सताता हेै कि तुम्हारा यह लाड़ला किसी दिन जरूर कोई्र उल्टा सीधा गुल खिलायेगा। मैं अभी तक तो यही सोचता था कि पढ़ाई लिखाई करके एक दिन यह काठ का उल्लू अपने पैरां पर खड़ा हो जायेगा, लेेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है। हर समय कौऐ उड़ाने वाला और ख्याली पुलाव पकाने वाला तुम्हारा यह बेटा तो बिल्कुल कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी नही सीधी हो सकती।
मिश्रा जी की पत्नी ने अपने मन का गुबार निकालते हुए कहा कि आप एक बार अपने तेवर चढ़ाने थोड़े कम करो तो फिर देखना कि हमारा बेटा कैसे दिन-दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है। आप जिस लड़के के बारे में यह कह रहे हो कि वो अपने पैरों पर खड़ा नही हो सकता उसमें तो पहाड़ से टक्कर लेने की हिम्मत है। यह तो कुछ दिनों का फेर है कि उसका भाग्य उसका साथ नही दे रहा। बहुत जल्दी ऐसा समय आयेगा कि चारों और हमारे बेटे की तूती बोलेगी उस समय तो आप भी दातों तले उंगली दबाने से नही रह पाओगे। मिश्रा जी का बेटा जो अभी तक पसीने-पसीने हो रहा था अब तो उसकी भी बत्तीसी निकलने लगी थी।
अपनी पत्नी की बिना सिर पैर की बाते सुन कर मिश्रा जी का खून खोलने लगा था। बेटे की तरफदारी ने उल्टा जलती आग में घी डालने का काम अधिक कर दिया। मिश्रा जी ने पत्नी को समझाते हुए हुआ कहा कि मैने भी कोई धूप में बाल सफेद नही किए, मैं भी अपने बेटे की नब्ज को अच्छे से पहचानता हॅू। सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ने से या तीन-पांच करने से कभी डंके नही बजा करते। ऐसे लोग तो लाख के घर को भी खाक कर देते है। तुम पता नही सब कुछ समझते हुए भी बेटे के साथ मिल कर सारा दिन क्या खिचड़ी पकाती रहती हो? क्या तुम इतना भी नही जानती कि जिन लोगो के सिर पर गहरा हाथ मारने का भूत सवार होता है उन्हें हमेषा लेने के देने पड़ते है। यह जो जोड़-तोड़ और हर समय गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग होते है उन्हें एक दिन बड़े घर की हवा भी खानी पड़ती है।
मिश्रा जी के घर की महाभारत को देखने के बाद जौली अंकल कोई परामर्ष या सलाह देने की बजाए यही मंत्र देना चाहते है कि किसी काम से अनजान होना इतने षर्म की बात नही होती जितना की उस काम को करने के लिए कतराना। इसीलिये हर मां-बाप यही चाहते है कि स्ंातान अच्छी होनी चाहिए जो कहने में हो तो वो ही लोक और परलोक में सुख दे सकती है। इस बात को तो कोई भी नही झुठला सकता कि भाग्य के सहारे बैठे रहने वाले को कभी कुछ नही मिलता और ऐसे लोगो को सारी उम्र पछताना पड़ता है इसीलिए जमाना षायद उन्हें बेवकूफ कहता है।
’’जौली अंकल’’
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