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शनिवार, 13 मार्च 2010

जुबान संभाल के


एक दिन एक औरत मंदिर में भगवान से झगड़ा कर रही थी कि जब मैं बहू बनी थी, तो तूने मुझे सास अच्छी नहीं दी, अब सास बनीं हूं तो तूने मुझे बहू अच्छी नहीं दी। हम लोग अक्सर अपनी कमियों को छुपाने के लिये सारा दोष भगवान के सिर मढ़ देते हैं।
भगवान ने हमें अनमोल जीवन के साथ इतनी सुख-सुविधाऐ दी है, कि हम जन्मों-जन्मों तक उस का कर्ज नहीं उतार सकते। जहां हमें हर प्रकार के सुख, खाने के लिये एक से एक बढ़िया व्यंजनों के लिये परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिये, वहीं हममें से अधिकतर लोग अपनी जुबान पर काबू न रखते यही शिकायत करते है, कि भगवान तूने आखिर हमें दिया ही क्या है?
हमारे शरीर के हर एक अंग की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। कुदरत ने हमारे शरीर की रचना कुछ इस प्रकार की है, कि हम अपने रोजमर्रा के सारे काम बहुत ही आसानी से बिना किसी के सहारे के कर सके। लेकिन इतने बड़ें शरीर के अनेक अंगों में से सबसे कोमल और नरम अंग है हमारी जुबान। जन्म से मृत्यु तक हर किसी का साथ निभाती है हमारी यह छोटी सी जुबान। दांत हमारे जंन्म के बहुत बाद आते है और जीवन में अक्सर हमारा साथ बहुत पहले छोड़ जाते है। लेकिन हमारी जुबान अपने लचीलेपन गुणों के कारण यह अपना सारा जीवन उन बत्तीस पथ्थर जैसे कठोर दांतो के बीच बड़ी आसानी से गुजार लेती है। हमारे रोजमर्रा के जीवन को चलाने और बोलचाल में इस का बहुत बड़ा योगदान है। हमारी यह छोटी सी जुबान ही हमारे अपनों को पराया और पराये लोगो को अपना बना सकती है। इतना सब कुछ जानते हुए भी हम इस छोटे से अंग पर काबू नहीं रख पाते। अगर हम अपनी जुबान पर काबू रखना सीख लें तो हमारे घर-परिवार के कई रिश्ते टूटने से बच सकते है और समाज में होने वाली अधिकतर परेशनियां खत्म हो सकती हैं।
हमारे नेताओ की तो बिना सोचे समझें कुछ भी बोलने की आदत सी बन गई है। वो एक ही तीर से कई निशाने लगाने की फिराक में रहते है। जब कभी ऐसे लोगो की जुबान से निकली हुई कोई बात गले की हव्ी बन जाती है, तो गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए हमारे नेता झट से कह देते है कि मीडियॉ वालो ने हमारी बात को तरोड़-मरोड़ कर पेश किया है। कभी-कभी सत्ता के नशे में राजनेता ऐसी भाषा का प्रयोग कर जाते है कि पूरे देश का खून खोलने लगता है। आज तो हर कोई जानता है कि हमारी जुबान से निकले हुऐ चंद अक्षर हमारे जीवन को तहस-नहस कर सकते हैं। मंत्रीयों से लेकर कई राजाओं तक को बेजुबानी की बदोलत अपनी गद्दी तक से हाथ धोना पड़ा है।
हमारी जुबान से निकले हुऐ चंद अल्फाज एक पल में किसी गैर को हमारा अपना और कभी-कभी अपने ही खून के रिश्ते को सदा के लिये पराया बना देते हैं। जहां एक ओैर हमारी मीठी बातें समाज में हमें सब का प्रिय बना देती हैं, वहीं दूसरी और हमारी कटुवाणी हमें जीवनभर के लिये दूसरों की नजरों में गिरा सकती है। पूरी दुनिया में अधिकतर परिवारो में कलह और तलाक भी इसी जुबान के कारण ही होते हैं। पति-पत्नी की नोंक-झोंक कई बार इस कद्र बढ़ जाती है, कि यह जुबान दोनों के जन्म-जन्म के रिश्ते को तिनकों की तरह तोड़ देती है। कुदरत द्वारा दी हुई इस बेशकीमती जुबान से जहां हम एक तरफ हर प्रकार के व्यजनों का स्वाद चखना चाहते है, वहीं हमें इसी जुबान से दूसरो की निंदा और बुराई करने में बहुत आनंद और सकून मिलता है।
कुदरत का नियम है, कि किसी भी चीज का गलत तरीके से इस्तेमाल करने से हमें जीवन में हमेशा नुकसान ही उठाना पड़ता है। इसीलिये जीवन में कभी किसी रिश्ते में हल्की सी दरार भी नजर आये, तो उस समस्या को जल्द से जल्द बातचीत से हल कर लेना चहिये। अगर हम बातचीत का रास्ता ही बंद कर दें, या झगड़े को थोड़ा भी बढ़ा दे तो उस रिश्ते को वापिस जिन्दा कर पाना नामुमकिन सा हो जाता है। झगड़ा गली-मुहल्ले के बच्चाें का हो या किन्हीं दो देशों का, उसका हल तो सदा ही प्यार के माहौल में बैठकर, इसी जुबान से ही निकलता है। अब निर्णय तो आपको ही करना है, कि आप अपनी जुबान का सदुपयोग कैसे कर पाते हैं?
जौली अंकल तो सिर्फ इतना ही कह सकते हैं, कि यदि आपकी जुबान सदैव मधुर, नंम्र और सत्य पर आधरित होगी तो आपको हर तरफ से सुख ही सुख मिलेगा। इसीलिये जब भी बोलो, जो भी बोलो, जरा - जुबान संभाल के।