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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

चूं-चूं का मुरब्बा


 चूं-चूं का मुरब्बा

बंसन्ती के घर उसकी षादी की तैयारियां जोर-षोर से चल रही थी। सभी लोग दौड़-भाग कर रहे थे कि बारात के आने से पहले सारे काम ठीक से निपट जायें। इतने में बसन्ती की सबसे करीबी सहेली उसके घर आर्इ और बंसन्ती से बोली कि अब तुम षादी करके ससुराल जा रही हो। लेकिन एक बात याद रखना कि औरत घर की लक्ष्मी होती है, षादी के बाद तुम भी अपने इस लक्ष्मी वाले रूतबे को कायम ही रहना। बंसन्ती ने उससे पूछ लिया कि यदि औरत लक्ष्मी होती है तो फिर पति क्या होता है? सहेली ने जवाब देते हुए कहा कि मेरा माथा तो पहले ही ठनक गया था कि तुम दिखने में जितनी होषियार लगती हो, असल में उतनी है नही। बलिक तुम तो बिल्कुल मिêी की माधो ही हो, जो इतना भी नही जानती कि पति लक्ष्मी का वाहन होता है। बंसन्ती ने कहा कि मैं कुछ समझी नही। उसकी सहेली ने कहा कि तू भी कमाल करती है, सारी दुनियां जानती है कि लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है और यह बात अच्छे से पल्ले बांध कर ससुराल जाना कि पति उल्लू से बढ़ कर कुछ नही होता।

यह पति नाम के प्राणी षादी से पहले तो लड़कियों के पीछे गलियों में मारे-मारे फिरते है परंतु षादी होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेते है। जब तक अपने पतियों को ठीक से काबू में न रखा जाये तो यह हर दिन कोर्इ न कोर्इ नया गुल खिलाने को तैयार रहते है। खुद तो सारा दिन दोस्तो के साथ गुलछर्रे उड़ाते रहेगे और घर आते ही बिना किसी बात पर सारा गुस्सा बीवियों पर निकालने लगते हैं। बंसन्ती ने कहा कि इस मामले में तो तुम बहुत नसीब वाली हो। तुम्हारे पति को जब भी देख लो उनका मुंह तो हर समय लटका रहता है। दूर से देखने में तो बिल्कुल ऐसे लगते है जैसे कि उनके मुंह में जुबान है ही नही। सहेली ने कहा मेरी बात छोड़ मेरे पति तो बहुत ही कायर किस्म के है। बंसन्ती ने कहा कि मुझे तो वो बेचारे कायर कम और सहमे से चूहे की तरह अधिक दिखार्इ देते है। बंसन्ती की सहेली ने कहा कि मेरे सामने चूहे का नाम मत ले। अगर मेरे पति चूहे कि तरह होते तो मै तो उनसे डर कर थर-थर कांप रही होती क्योंकि चुहों को देखते ही मैं बहुत भयभीत हो जाती हू। अब मेरी बात छोड़ और ससुराल में पहले दिन ही पति का मुरब्बा बनाने के लिये तैयारी करनी सीख ले। यदि तूने षुरू में थोड़ी ढ़ील दे दी तो फिर तेरा वोहि हाल होगा कि जैसे मुर्गी बेचारी की जान चली जाती है और खाने वाले कह देते हे कि आज खाने में स्वाद नही आया।

बंसन्ती ने कहा कि मैने 36 प्रकार के अचार मुरब्बों के बारे में सुना है। मैं यह भी जानती हू कि यह सारे बहुत गुणकारी होते है, लेकिन पति के मुरब्बे के बारे में तो आज तक किसी ने कुछ नही बताया कि ऐसा भी कोर्इ मुरब्बा होता है? बंसन्ती की सहेली ने उसे धीरे से बताते हुए कहा कि जिस तरह इंसान सदियों से हर तरह के मुरब्बों का उपयोग करता आ रहा है, ठीक उसी तरह समझदार औरते पति को चूं-चू का मुरब्बा बना कर रखती है। मेरा तो बस नही चलता वरना मैं तो पतियों के इस चंू-चूं वाले मुरब्बे की विधि का विस्तार और प्रचार विष्वस्तर पर करके सभी औरतो का जीवन सुखी बना दूं। इतना कहते-कहते जैसे ही बंसन्ती की सहेली की नजर पीछे खड़ी बंसन्ती की मां की और गर्इ तो वो उन्हें देख कर थोड़ा सा झेंप गर्इ।

बंसन्ती की मां ने उसकी सहेली के कधें पर हाथ रखते हुए कहा कि बेटी मैने तुम्हारी सारी बाते सुन ली है। मैं यह भी मानती हू कि मैं तुम्हारी तरह अधिक पढ़ी-लिखी तो है नही और न ही आज के जमानें के दस्तूर को जानती हू। परंतु दुनियां के हर प्रकार के उतार-चढ़ाव जीवन में अच्छे से देख चुकी हू। घर के बजर्ुगो द्वारा दी हुर्इ षिक्षा और ज्ञान से तो इतना ही सीखा है कि गृहस्थ की गाड़ी को चलाने के लिए अपने-अपने हिस्से के कर्म समय पर करना ही हर पति-पत्नी का कत्र्तव्य होना चाहिये। पति-पत्नी अपने सच्चे प्यार के साहरे ही हर प्रकार की परिसिथतियों को झेलते हुए जीवन को हंसते-हंसते बिता सकते है। बेटी इतना तो तुमने भी जरूर पढ़ा होगा कि केवल अपनी प्रषंसा का ब्खान करने वालों को कभी भी यष नही मिलता, वे केवल उपहास का पात्र बनते है। जबकि पति-पत्नी का सच्चा प्रेम न तो कभी किसी को कश्ट देता है और न ही यह कभी नश्ट होता है। जब दोनो प्राणी एक दूसरे को खुषी देते है और सामने वाला खुषी से खुषी को स्वीकार कर लेता है तो दोनो ही महान बन जाते है। जिस व्यकित के कर्म अच्छे होते है वो दूसरे इंसान को तो क्या अपनी किस्मत को भी अपनी दासी बना सकता है। इतना सब कुछ सुनते ही बंसन्ती की सहेली फबक कर रो पड़ी। बंसन्ती की मां के गले लगते हुए उसने कहा कि मैं तो आजतक यही समझती रही कि पति को सदा अगूठें के नीचे दबा कर रखने से ही औरत सुखी रह सकती है।

वैसे तो मुरब्बो के सेवन और बजर्ुगो की बात का असर कुछ समय के बाद ही दिखार्इ देता है, परंतु इन सभी लोगो की रस भरी बातचीत सुनने के बाद यह तो एकदम साफ हो गया है कि आचरण रहित विचार चाहे कितने भी अच्छे क्यूं न हो वो खोटे सिक्के की तरह ही होते है। वैवाहिक जीवन में सुख और दुख की बात की जाएं तो किसी भी सदस्य को कश्ट देना दुख से कम नही और दूसरों को खुषी देना ही सबसे बड़ा सुख और पुण्य होता है। मुरब्बों के बारे में इतनी मीठी बाते करने के बाद जौली अंकल के मन में ठंडक के साथ दिमाग भी चुस्त होते हुए यह सोचने लगा है दूसरों के साथ सदा वही व्यवहार करो जो आप दूसरों से चाहते हो। इसके बाद फालतू की बातो को सोच कर आपको कभी भी अपनी हुकूमत की षकित दिखाने के लिये चूं-चूं का मुरब्बा बनाने की जरूरत नही पड़ेगी।
                                                                                                                        जौली अंकल