’’ चक्कर पे चक्कर ’’
बंसन्ती ने जब बार-बार खाना खाने के लिये मना किया तो उसकी मौसी ने डांटते हुए उससे खाना न खाने का कारण पूछा। बंसन्ती ने डरते हुए बताया कि उसे उल्टी के साथ चक्कर आ रहे है। मौसी ने पूछा कि तेरा पति तो तुझे कब से छोड़ कर जा चुका है, फिर अब यह कैसी उल्टी और कैसे चक्कर आ रहे है? बंसन्ती ने थोड़ा झिझकते हुए कहा मौसी वो बीच में कभी-कभी माफी मांगने आ जाते है बस उसी कारण से यह चक्कर आ रहे है। इतना सुनते ही मौसी को ऐसा लगा जैसे उसके सिर पर घड़ों पानी पड़ गया हो। इससे पहले की मौसी कुछ और कह पाती वो चक्कर खाने के साथ बेहोष होकर गिर पड़ी। कुछ देर जब मौसी को होष आया तो उसने कहा कि तेरा पति तो बहुत चलता-पुर्जा है ही तू भी चकमा देने में कम नही है। मेरे सामने तो हर समय उसकी बुराई करते नही थकती लेकिन मेरी पीठ पीछे झट से उसके साथ घी-खिचड़ी हो जाती है। तेरी इन्ही बेवकूफियों के कारण वो तुझे अपने चक्कर में फंसाने में कामयाब हो जाता है। यह सब कहते सुनते बंसन्ती का चेहरा फ़क पड़ता जा रहा था वही मौसी का चेहरा गुस्से में और अधिक तमतमाने लगा था।
वैसे तो चक्कर आने के अलग-अलग कारण और परिस्थितियां होती भी है। कभी सेहत की गड़बड़ी से, कभी दिल के लगाने से और कभी दिल के टूटने से। परंतु तेजी से बदलते जमाने में यदि मुहावरों पर गहराई से विचार किया जाये तो इन्हें देख कर भी कई लोगो को चक्कर आने लगते है। बहुत से ऐसे मुहावरे है जिन को बनाते समय लगता है, कि हमारे बर्जुगो ने बिल्कुल ध्यान नही दिया। सदियों पहले इनके क्या मायने थे यह तो हम नही जानते लेकिन आज के वक्त की पीढ़ी को इनका मतलब समझाते-समझाते सिर चक्कर खाने लगता है। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही लोकप्रिय मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर 50-100 ग्राम भी तेल गिर जाये तो राधा तो बेचारी फिसल कर गिर नही जायेगी। क्या मुहावरा बनाने वालों ने इतना भी नही सोचा कि नीचे गिरते ही राधा के हाथ पांव में प्लास्टर लगवाना पड़ेगा। वैसे भी जहां नाच गाने का कोई प्रोग्राम होता है, वहां तो साफ सफाई की जाती है न कि वहां तेल मंगवा कर गिराया जाता है। अब जहां इतना तेल होगा, वहां तो आदमी खड़ा भी नही हो सकता, नाचना गाना तो बहुत दूर की बात है। वैसे भी मंहगाई के इस दौर में नौ मन तेल लाना किस के बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है। महीने के षुरू में तो कुछ दिन तेल-घी वाली रोटी के दर्षन हो भी जाते है, लेकिन बाकी का सारा महीना तो सूखी रोटी से ही पेट भरना पड़ता है। तेल की बढ़ती हुई कीमतो को देख कर तो बड़े से बडा रईस भी आज अपने घर में नौ मन तेल नही ला सकता। वैसे भी मुहावरा बनाने वालो से यह पूछा जाये कि इतना तेल मंगवा कर क्या राधा को उसमें नहलाना है? लोगो को नहाने के लिए पानी तक तो ठीक से नसीब होता नही, यह राधा को तेल से नहलायेगे क्या? इस मुहावरे को बनाने वालों ने यह भी नही बताया कि राधा को कौन सा तेल चाहिए? खाने वाला या गाड़ी में डालने वाला, सरसों का या नारियल का। क्या आज तक आपने कभी किसी को तेल पी कर नाचते देखा है। नाचने वालो को तो दारू के दो पैग मिल जाऐं बस वो ही काफी होते है। जिस आदमी ने जिंदगी में कभी डांस न किया हो, दारू के 2-4 पैग पीने के बाद तो वो भी डिस्को डांसर बन जाता है।
सिर्फ इंसानो के मुहावरे ही नही जानवरों के मुहावरे भी चक्कर देने में कम नही है। जी हंा यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। एक बात तो हमें यह नही समझ आती की आदमियों के मुहावरो में बिल्ली चूहे का क्या काम? खैर हमें उससे क्या लेना-देना जिस किसी ने भी यह मुहावरा बनाया होगा, कुछ सोच समझ कर ही बनाया होगा, या उसे चूहे बिल्लियों से बहुत प्यार रहा होगा। हम बात कर रहे है 900 चूहें खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नही खाया था। अगर उसने कोई चूहा नही खाया तो रास्ते में उसने क्या पीजा-बर्गर खाया था। मुहावरो बनाने वाले यह भी तो नही बताते कि बिल्लियां हज करने जाती कहां है? अजी छोड़ो इन बातो को हमें इससे क्या लेना है, बिल्ली जितने चूहे खाती है, खाने दो। वैसे यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 900 चूहें खाकर हज को चली गई, क्योकि एक आम आदमी की तो दो-चार नान खाने से ही जान निकलने लगती है।
यह क्या, अगले मुहावरे में तो और भी कमाल हो गया, इसमें तो किसी ने बेचारी भैंसो को ही घसीट लिया है, जी आपका अंदाजा बिल्कुल ठीक है। यह मुहावरा है भैंस के आगे बीन बजाना। यार अगर भैंस को कुछ सुनाना ही है, तो कोई तबला या कोई बढि़या सी गिटार पर धुन सुना दो। यदि यह नही बजा सकते तो कम से कम ढोल ही बजा दो। भैंस को कुछ मजा तो आये। भैंस बेचारी बीन सुन कर क्या करेगी? वैसे भी बीन तो सांप को खुष करने के लिये बजाई जाती है। अब छोटी सी बीन से भैंस को क्या मजा आयेगा? क्या कहा आपको तो अभी से ही चक्कर आने लगे है। अभी तो भैंस की और भी बहुत सारी बाते आपसे करनी है। भैंस का एक और बहुत ही महषूर मुहावरा है, लो गई भैंस पानी में। अब एक बात बताओ कि भैंस यदि पानी में नही जायेगी तो क्या बाथरूम में नहाने जायेगी। हम सभी को गर्मी लगती है, हम भी तो पानी के साथ ही नहाते है, अब अगर भैंस पानी में चली गई तो उस बेचारी ने क्या गुनाह कर दिया?
मुहावरे बनाने वाले विद्वान लोग भाशा को अधिक प्रभावी बनाने के लिये तथ्य ढूंढने का काम करते हेै न कि उनमे दोश ढूंढने का। भाशा से अनजान लोगों को हो सकता है कि मुहावरे सुनते ही चक्कर आते हो। जौली अंकल की राय तो यही है कि असल में मुहावरो का इस्तेमाल तो इसलिये किया जाता है ताकि किसी बात को साधारण तरीके से न कह कर विषेश अर्थो के साथ आसानी से व्यक्त किया जा सके ताकि पढ़ने सुनने वालों को चक्कर पे चक्कर न आयें।
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