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रविवार, 21 अक्टूबर 2012

http://www.sikhfoundation.org/2012/people-events/uncle-jolly-having-the-last-laugh/

Jolly Uncle's interview with SIKH FOUNDATION.ORG

http://www.sikhfoundation.org/2012/people-events/uncle-jolly-having-the-last-laugh/

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012

Having the last laugh | GulfNews.com

Having the last laugh | GulfNews.com

JOLLY  UNCLE's interview published in GULF NEWS dt. 4.10.2012

बुधवार, 27 जून 2012

पूजा के फूल मां ने अपने बेटे अमन को बड़े ही प्यार से उठा कर उसे उसके जन्मदिन की मुबारक देते हुए कहा कि अब जल्दी से उठ जाओ। देखो सूरज कब से निकल आया है। अमन ने मां से कहा कि आपको सूरज के जल्दी निकलने का तो मालूम है लेकिन आप षायद यह नही जानती की वो सोता भी तो मुझ से पहले है। बेटा आज घर में तेरे जन्मदिन की पूजा रखवार्इ है। तू जल्दी से नहां कर मुझे पूजा के फूल ला दे। अमन ने मसखरी करते हुए पूछा कि मां कौन सी पूजा के फूल चाहिये, पूजा बेदी के या पूजा भê के। अब मां को थोड़ा तल्ख होते हुए कहना पड़ा कि हर समय मज़ाक अच्छा नही लगता। तू अपने घर के सामने वाले पार्क से अच्छे वाले फूल तोड़ कर ला दे। लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि कालोनी के प्रधान वहां ना बैठे हो। मां अगर बैठे भी हो तो हमें क्या फर्क पड़ता है, यह पार्क कोर्इ उनका निजी तो है नही। मां ने बेटे को समझाया कि यह बात नही है। असल में सारे बाग-बगीचे की देख रेख वो प्रधान जी ही करते है। वो एक-एक पौधे को अपने बच्चो की तरह संभाल कर पालते है। इसलिये जब कोर्इ फूल तोड़ता है तो उन्हें बहुत तकलीफ होती है और वो गुस्सा करने लगते है। फिर अगर वो पार्क में बैठे हो तो मैं फूल कैसे तोड़ूगा, बेटे ने पूछा? मां ने कहा, तू उन्हें किसी बहाने से पार्क के बाहर भेज देना। कुछ देर बाद जब अमन पार्क में फूल तोड़ने के लिये पहुंचा तो उसने देखा कि प्रधान अंकल वही सामने बैंच पर बैठे हुए है। अमन ने होषियारी दिखाते हुए कहा कि अंकल आपको घर में बुला रहे है। प्रधान अंकल जल्दी से अपने घर की और चले गये। अमन ने बड़े चैन से पार्क से अच्छे-अच्छे ढ़ेर सारे फूल तोड़ कर अपना थैला भर लिया। घर आते ही इतने खुषबूदार फूल देख कर अमन की मम्मी बहुत खुष हुर्इ। अमन का ध्यान जैसे ही सामने पड़े लìूओं के थाल की और गया तो उसने उसमें से झट एक लìू उठा लिया। उसकी मम्मी ने कहा कि बेटा यह क्या कर रहे हो, यह तो प्रसाद है। अगर तुमने यह झूठा कर दिया तो भगवान जी नाराज हो जायेगे। अमन ने पूछा लेकिन भगवान को कैसे मालूम पड़ेगा कि मैने प्रसाद के थाल में से एक लìू खा लिया है। मम्मी ने प्यार से समझाया कि भगवान हमारे हर कर्म को हर समय देखते रहते है। कुछ देर बाद अमन के घर में उसके जन्मदिन की पूजा षुरू हो गर्इ। सारा परिवार पूजा में षामिल हो गया, परंतु अमन उदास सा होकर अपने कमरे में जा बैठा। कर्इ बार बुलाने पर भी वो पूजा में षामिल नही हुआ। जब पूजा खत्म हो गर्इ तो पुजारी जी ने अमन से उसकी उदासी का कारण पूछा। अमन ने कहा कि ऐसी पूजा का क्या फायदा? जिसको करने के लिये हम समाज के साथ भगवान को भी धोखा दे रहे है। एक तरफ तो मेरी मम्मी कहती है कि भगवान हर समय हमारे साथ रहते है और हमारी हर अच्छी बुरी बात पर नज़र रखते है। दूसरी और मुझे झूठ बोलने और चोरी करने के लिये कहती है। आज हमने यह जो फूल चोरी करके भगवान को अर्पण किये है क्या इसके बदले वो मुझे सच में कोर्इ अच्छा सा आर्षीवाद देगे? पुजारी जी ने कहा कि आज तक तो मैं दुनियां को ज्ञान-ध्यान की बाते समझाता रहा हू। परंतु आज इस नन्हें से बालक की बाते सुन कर मेरी भी आखें खुल गर्इ है। मैं वादा करता हू कि आज से अपने हर प्रवचन में सभी भक्तजनों को यह बात जरूर समझाऊगा कि यदि हम पेड़-पौधे लगा नही सकते तो हमें उन पर लगे हुए फूलों को तोड़ने का भी कोर्इ हक नही बनता। अमन की बातो से प्रभावित होकर जौली अंकल भी यह प्रण लेते है कि आज के बाद मुझे जब भी र्इष्वर के चरणों में फूल अर्पित करने होगे तो मैं या उन्हें अपनी मेहनत से लगाऐ हुए बगीचे से लाऊगा या अपनी नेक कमार्इ से खरीद कर। क्योंकि यह बात सच है कि भगवान चोरी की कोर्इ भी चीज कभी स्वीकार नही करते फिर चाहे वो पूजा के फूल ही क्यों ना हो? • जौली अंकल

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

बेवकूफ - जोली अंकल

’’ बेवकूफ ’’ मिश्रा जी की पत्नी ने बाजार में खरीददारी करते हुए उनसे पूछ लिया कि ऐ जी, यह सामने गहनों वाली दुकान पर लगे हुए बोर्ड पर क्या लिखा है, कुछ ठीक से समझ नही आ रहा। मिश्रा जी ने कहा कि बिल्कुल साफ-साफ तो लिखा है कि कही दूसरी जगह पर धोखा खाने या बेवकूफ बनने से पहले हमें एक मौका जरूर दे। मिश्रा जी ने नाराज़ होते हुए कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने सारी बेवकूफियांे करने का ठेका तुम मां-बेटे को ही दे कर भेजा है। इतना सुनते ही पास खड़े मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि घर में चाहे कोई भी सदस्य कुछ गलती करें आप मुझे साथ में बेवकूफ क्यूं बना देते हो? मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हें बेवकूफ न कहूं तो क्या कहू? तुमसे बड़ा बेवकूफ तो इस सारे जहां में कोई हो ही नही सकता। अपना पेट काट-काट कर और कितने पापड़ बेलने के बाद मुष्किल से तुम्हारी बी,ए, की पढ़ाई पूरी करवाई थी कि तुम मेरे कारोबार में कुछ सहायता करोगे। परंतु अब दुकान पर मेरे काम मे कुछ मदद करने की बजाए सारा दिन गोबर गणेष की तरह घर में बैठ कर न जाने कौन से हवाई किले बनाते रहते हो। तुम्हारे साथ तो कोई कितना ही सिर पीट ले परंतु तुम्हारे कान पर तो जूं तक नही रेंगती। मुझे एक बात समझाओं की सारा दिन घर में घोड़े बेच कर सोने और मक्खियां मारने के सिवाए तुम करते क्या हो? मैं तो आज तक यह भी नही समझ पाया कि तुम किस चिकनी मिट्टी से बने हुए हो कि तुम्हारे ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर क्यूं नही होता? मिश्रा जी को और नीला-पीला होते देख उनकी पत्नी ने गाल फुलाते हुए कहा कि यहां बाजार में सबके सामने मेरे कलेजे के टुकड़े को नीचा दिखा कर यदि तुम्हारे कलेजे में ठंडक पड़ गई हो तो अब घर वापिस चले क्या? मिश्रा जी ने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हारे लाड़-प्यार की वजह से ही इस अक्कल के दुष्मन की अक्कल घास चरने चली गई है। मुझे तो हर समय यही डर सताता हेै कि तुम्हारा यह लाड़ला किसी दिन जरूर कोई्र उल्टा सीधा गुल खिलायेगा। मैं अभी तक तो यही सोचता था कि पढ़ाई लिखाई करके एक दिन यह काठ का उल्लू अपने पैरां पर खड़ा हो जायेगा, लेेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है। हर समय कौऐ उड़ाने वाला और ख्याली पुलाव पकाने वाला तुम्हारा यह बेटा तो बिल्कुल कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी नही सीधी हो सकती। मिश्रा जी की पत्नी ने अपने मन का गुबार निकालते हुए कहा कि आप एक बार अपने तेवर चढ़ाने थोड़े कम करो तो फिर देखना कि हमारा बेटा कैसे दिन-दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है। आप जिस लड़के के बारे में यह कह रहे हो कि वो अपने पैरों पर खड़ा नही हो सकता उसमें तो पहाड़ से टक्कर लेने की हिम्मत है। यह तो कुछ दिनों का फेर है कि उसका भाग्य उसका साथ नही दे रहा। बहुत जल्दी ऐसा समय आयेगा कि चारों और हमारे बेटे की तूती बोलेगी उस समय तो आप भी दातों तले उंगली दबाने से नही रह पाओगे। मिश्रा जी का बेटा जो अभी तक पसीने-पसीने हो रहा था अब तो उसकी भी बत्तीसी निकलने लगी थी। अपनी पत्नी की बिना सिर पैर की बाते सुन कर मिश्रा जी का खून खोलने लगा था। बेटे की तरफदारी ने उल्टा जलती आग में घी डालने का काम अधिक कर दिया। मिश्रा जी ने पत्नी को समझाते हुए हुआ कहा कि मैने भी कोई धूप में बाल सफेद नही किए, मैं भी अपने बेटे की नब्ज को अच्छे से पहचानता हॅू। सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ने से या तीन-पांच करने से कभी डंके नही बजा करते। ऐसे लोग तो लाख के घर को भी खाक कर देते है। तुम पता नही सब कुछ समझते हुए भी बेटे के साथ मिल कर सारा दिन क्या खिचड़ी पकाती रहती हो? क्या तुम इतना भी नही जानती कि जिन लोगो के सिर पर गहरा हाथ मारने का भूत सवार होता है उन्हें हमेषा लेने के देने पड़ते है। यह जो जोड़-तोड़ और हर समय गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग होते है उन्हें एक दिन बड़े घर की हवा भी खानी पड़ती है। मिश्रा जी के घर की महाभारत को देखने के बाद जौली अंकल कोई परामर्ष या सलाह देने की बजाए यही मंत्र देना चाहते है कि किसी काम से अनजान होना इतने षर्म की बात नही होती जितना की उस काम को करने के लिए कतराना। इसीलिये हर मां-बाप यही चाहते है कि स्ंातान अच्छी होनी चाहिए जो कहने में हो तो वो ही लोक और परलोक में सुख दे सकती है। इस बात को तो कोई भी नही झुठला सकता कि भाग्य के सहारे बैठे रहने वाले को कभी कुछ नही मिलता और ऐसे लोगो को सारी उम्र पछताना पड़ता है इसीलिए जमाना षायद उन्हें बेवकूफ कहता है। ’’जौली अंकल’’

सहनशीलता - जोली अंकल


’’ सहनषीलता ’’ जैसे ही बंसन्ती के बेटे ने घर आकर अपनी मां को बताया कि मिश्रा जी के बेटे ने उसको गालियां निकाली है वो झट से षिकायत करने उनके घर पहुंच गई। मिश्रा जी ने बंसन्ती से पूछा कि थोड़ा षांति से बताओ कि मेरे बेटे ने ऐसी कौन सी गाली दे दी जो तुम इतना भड़क रही हो? बंसन्ती ने कहा कि वो तो मैं आपको नही बता सकती। मिश्रा जी ने फिर से पूछा कि क्या बहुत गंदी-गंदी गालियां दी है तुम्हारे बेटे को? बंसन्ती ने तपाक् से कहा कि मिश्रा जी आप दिमाग तो ठीक है, क्या आप इतना भी नही जानते कि गालियां हमेषा गंदी ही होती है। आपने क्या कभी अच्छी गालियां भी सुनी है? बंसन्ती और उसका बेटा जिस तरह से मिश्रा जी को उल्टे सीधे जवाब दे रहे थे उनके दिलों-दिमाग का सतंुलन भी बिगड़ने लगा था। सारी उम्र सहनषीलता का पाठ पढ़ने और पढ़ाने वाले मिश्रा जी को कुछ समझ नही आ रहा था कि इस औरत को कैसे समझाया जाये कि जब तक सभी तथ्यों को अच्छे से न जान लिया जाये उस समय तक किसी से झगड़ा करना तो दूर उन पर कभी भरोसा भी नही करना चाहिए। इतनी छोटी सी बात पर बंसन्ती ने इतना झगड़ा कर दिया कि मिश्रा जी का दिल कर रहा था कि इन लोगो को धक्के मार कर अपने घर से निकाल दे। लेकिन फिर यह सोच कर सहम गये कि यदि मैने भी इन्हें कुछ उल्टा सीधा कह दिया तो बंसन्ती का पति आ जायेगा। वो तो मेरे से सेहत में बहुत तगड़ा है और उसके आने से परेषानी और भी बढ़ जायेगी। इसी के साथ मिश्रा जी मन ही मन यह सोचने लगे कि हर आदमी की सोच उसकी बुद्वि अनुसार अलग-अलग होती है। वैसे भी बच्चोे की इस आधी अधूरी बात को सुन कर आपे से बाहर होने को मैं तो क्या कोई भी व्यक्ति इसे समझदारी नही मानेगा। ऐसे महौल में किसी तरह से खुद को षांत रखते हुए हमें अपनी सहनषक्ति की परीक्षा लेनी चाहिए। इस विचार के मन में आते ही मिश्रा जी ने बात को बदलते हुए बंसन्ती से कहा कि आप दुनियां की दूसरी सबसे खूबसूरत औरत हो? बंसन्ती तिलमिलाते हुए बोली वो तो ठीक है मुझे पहले यह बताओ कि दुनियां की पहली खूबसूरत औरत कौन है? मिश्रा जी ने हंसते हुए कहा कि पहली खूबसूरत औरत भी तुम ही हो लेकिन वो सिर्फ उस समय जब तुम हंसती और मुस्कराहती हो। मिश्रा जी ने बंसन्ती को थोड़ा और समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि इर इंसान को हमेषा यह मान कर चलना चलिए कि आप सारी दुनियां को अपनी मर्जी मुताबिक नही चला सकते और न ही आपकी हर इच्छा पूरी हो सकती हैं। जिस प्रकार हम यह सोचते है कि हर कोई हमारे कुछ भी बोले बिना सभी कार्य हमारी इच्छानुसार कर दे। इसी तरह हमें यह भी यह सोचना चाहिए कि हम भी वोहि सभी काम करे जो दूसरे लोग बिना बोले हम से चाहते है। जिस तरह पानी हर जगह अपना स्तर ढूंढ लेता है, हमें भी सहनषीलता अपनाते हुए खुद को भी अपने स्तर व गरिमा के अनुसार दूसरों से मधुर संबंध बनाए रखने चाहिए। सहनषीलता का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि नदियां जब तक षांत भाव से अपने किनारों के बीच बहती रहती है तो दुनियां उनकी पूजा करती है। परंतु जब कोई नदी अपने किनारों को तोड़ कर बाढ़ का रूप धारण कर लेती है तो वही नदियां हत्यारी बन जाती है। सहनषीलता की खूबियों को यदि गौर से देखे तो यही समझ आता है कि सहनषीलता से जहां हमें जीवन में हर चीज बड़ी सुगमता से मिल जाती है वहीं यह हमारे व्यक्तित्व को निखारती है। दूसरों से हर समय अपेक्षा रखने की बजाए खुद अपने आप से अधिक उम्मीद करनी चाहिए क्योंकि दूसरों से जब हमारी उम्मीद पूरी नही होती तो हमारे मन को बहुत दुख होता है। जबकि खुद से उम्मीद करने पर हमें सहनषीलता की प्रेरणा मिलती है। सहनषीलता ही एक मात्र ऐसा अस्त्र है जिससे आप ताकतवर इंसान को भी षिकस्त देने में कामयाब हो सकते है। मिश्रा जी की बात खत्म होने के साथ ही बंसन्ती ने कहा कि आज तक हर कोई यह तो जरूर समझाता था कि यदि षांति को पाना है तो धैर्य का समझो, धीरज को समझो। परंतु इतने सब्र से किसी ने भी सहनषीलता को समझाने की हिम्मत नही दिखाई। षायद इसीलिये जिस चीज को समझने की चाह बरसों से मन में थी उसे भी ठीक से न तो कोई समझा पाया न ही मैं समझ पाई। जो बात कई किताबी कीड़े भी ठीक से नही कह पाते आपने तो वो भी सादगी से कहते हुए मेरे मन से षंका के सारे कांटे निकाल दिये। अब जो कुछ मेरी तरफ से कहा-सुनी हुई हो उसके लिये नम्रतापूर्वक आप से क्षमा मांगती हॅू। मिश्रा जी ने बंसन्ती को इस बात का तर्क देते हुए कहा कि सिर्फ कोरी बाते करने से कुछ नही होता, किसी को कुछ भी समझाने से पहले उसे जीवन में अपनाना पड़ता है तभी तो आप किसी दूसरे की दिषा को बदल सकते हैे। मिश्रा जी द्वारा सहनषीलता के गुणो के ब्खान से प्रभावित होकर जौली अंकल को यह स्वीकार करने में कोई संदेह नही है कि जैसे चमक के बिना हीरे मोतियों की कोई कद्र नही होती, ठीक इसी प्रकार सदाचार और सहनषीलता के बिना मनुश्य किसी काम का नही होता। सहनषीलता ही हमारे मन को षीतलता देने के साथ संतुश्टता एवं खुषी देती है। सहनषीलता के इन्हीं गुणों से ही हमारा स्वभाव सरल बनने के साथ दूसरों को स्वतः हमारी और आकर्शित करते है। अंत में तो इतना ही कहा जा सकता है कि जैसे क्रिकेट व्लर्ड कप जीतने से घर-घर में जुनून व ऊर्जा पैदा हुई है यदि ऐसे ही सहनषीलता जैसे बहुमूल्य और दुर्लभ गुण को हर देषवासी अपना ले तो हमारे घर संसार से लेकर सारा देष सुंदर और खूबसूरत बन जायेगा। ’’जौली अंकल’’

थानेदार साहिब - रोचक लेख

’’ थानेदार साहब ’’ थानेदार साहब ने अपनी मूछों तो ताव देते हुए थाने के एक सिपाही को राषन की लंबी सी लिस्ट पकड़ाते हुए कहा कि कल मेरी माता जी की तेरहवीं है, तुम बाकी के सभी काम छोड़ कर पहले बाजार से जरा यह सारा खाने-पीने का सामान ले आओ। सिपाही थानेदार साहब को सलाम करके बरसों पुरानी खड़कती हुई जीप में बैठ कर इलाके की सबसे बड़ी राषन की दुकान पर जा पहुंचा। सिपाही के हाथ में राषन की लंबी सी लिस्ट को देखते ही दुकान के लाला जी की सांस उखड़ने लगी। सिपाई ने लाला को लिस्ट थमाते हुए कहा कि सारा राषन बहुत बढ़िया किस्म का होना चाहिये क्योकि तुम तो जानते हो कि थानेदार साहब की मां मर गई है और कल उनकी तेरहवीं है। इस मौके पर इलाके के सभी नामी लोगो ने थानेदार साहब के यहां ही खाना खाना है, इसलिये किसी प्रकार की कोई कमी नही रहनी चाहिये। लाला जी ने जैसे ही दाल-चावल, तेल, घी के साथ चाय-पत्ती और षक्कर की लिस्ट देखीे तो उनके मन से यही टीस उठी कि मुझे लग रहा है कि आज थानेदार साहब की नही मेरी मां मर गई है। थाने का सिपाही जैसे ही राषन की लिस्ट लेकर बाजार की और गया तो थानेदार साहब की पत्नी ने कहा कि आप आऐ दिन हर किसी का छोटा-बड़ा काम करने पर रिष्वत लेते हो। घर का खाने-पीने से लेकर बाकी का सारा सामान भी आप सरकारी डंडे के जोर पर ले आते हो। कम से कम आज अपनी मां के क्रियाकर्म पर तो अपनी कमाई में से कुछ खर्च कर देते ताकि उनकी आत्मा को षांति मिल सकती। आपके थाने में तो कोई बेचारा चोरी-डकेती की रिपोर्ट दर्ज करवाने आ जाये उसका सामान वापिस दिलवाना तो दूर आप लोग उससे भी रिष्वत लिये बिना नही छोड़ते। क्या आपने कभी सोचा हे कि लोग तुम्हारे से डर कर तुम्हारे मुंह पर कुछ बोले या न बोले लेकिन आपकी पीठ पीछे आपको हर समय गालियां देते है। आप जैसे लोगो की हरकतो ने सारे पुलिस विभाग की मिट्टी खराब की हुई है। जैसे ही थानेदार साहब कुछ बोलने लगे तो उनकी बीवी ने कहा कि यह आपका थाना नही हमारा घर है, इसलिये मुझसे जरा आराम से बात करो। एक बात और सुन लो जब आप क्रोध करते हैं तो आपका स्वभाव ही नही बिगड़ता, बल्कि और भी बहुत कुछ बिगड़ जाता है। सारी दुनियां आप लोगो को समझा-समझा कर थक गई है लेकिन मुझे समझ नही आता कि आप रिष्वत लेना कब छोड़ोगे? थानेदार की पत्नी ने कहा कि मुझे इस बात पर भी हैरानगी होती है कि तुम्हारे अफसर भी इस बारे में तुम्हें कभी कुछ नही कहते। थानेदार साहब ने अपनी टोपी सीधी करते हुए कहा कि हमारे अफसर हम से क्या कह्रेगे क्योकि रिष्वत लेना उनकी भी मजबूरी है, वो भी अच्छे मलाईदार थाने में नौकरी पाने के लिये मोटी रिष्वत देकर आते है। हां यह बात जरूर है कि कभी कभार उनकी मर्जी मुताबिक काम न होने पर उनका उलाहना जरूर मिल जाता है। वैसे तुम मुझे मेरी पत्नी कम और मीडिया वालो की जासूस अधिक लगती हो। न जाने तुम मेरे साथ किस जन्म की दुष्मनी निकाल रही हो कि तुम्हें हर समय मीडिया वालो की तरह पुलिस में कमियां ही कमियां दिखाई देती है। थानेदार साहब की पत्नी ने भी हार न मानते हुए कहा कि आप लोग अगर थोड़ा बहुत किसी से डरते हो तो वो सिर्फ मीडिया वालो से, अब आम आदमी तो बेचारा आपके आगे बोल नही सकता। थानेदार ने पत्नी को घूर कर देखते हुए कहा कि इस गलतफहमी में मत रहना कि हम मीडिया वालो से डरते है। हम तो सिर्फ उनकी खबरों से डरते है जो सुबह से देर रात तक उस समय तक तक बार-बार टीवी में चलती रहती है जब तक की पुलिस अफसर निलंबित न हो जाये। बाकी रही रिष्वत की बात तो यह सब कुछ मैं अपने लिये नही तुम्हारी खुषी और सुख के लिये करता हॅू। अब तुम ही बताओ की आजकल घर का खर्चा चलाना कितना कठिन है। जो तनख्वाह सरकार से हमें मिलती है उससे बच्चो की पढ़ाई-लिखाई तो दूर दो वक्त दाल-रोटी भी ठीक से नही खा सकते। थानेदार की बीवी ने कहा कि यह तो आप लोगो ने सिर्फ रिष्वत लेने का एक बहाना बना रखा है। यह सच है कि मंहगाई बहुत बढ़ गई है लेकिन इसी के साथ सरकार ने आप लोगो की तन्खवाहे भी तो बढ़ा दी है। थानेदार साहब ने किसी तरह अपने गुस्से को काबू में रखते हुए कहा ओये बात सुन पहले चीनी होती थी 10-12 रूप्ये किलो आजकल चीनी का भाव हो गया है 50-60 रूप्ये किलो। अब तुम क्या चाहती हो कि हम लोग चाय भी फीकी पीये और सरकार की नौकरी भी फीकी करे। सरकार चीनी और खाने-पीने की चीजो के हिसाब से ही हमारा वेतन बढ़ा दे तो भी हमे रिष्वत लेने की जरूरत ही नही पड़ेगी। थानेदार साहब ने अपनी पुलिसियां भाशा में अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा कि सबसे आसान है बोलना और शिकायते करना, सबसे कठिन है कुछ काम करके दिखाना। क्या कभी तुम ने यह सोचा है कि हम लोग किस तरह 20-20 घंटे की नौकरी बिना कुछ खाये-पीये करते है। दिन हो या रात अपनी जान हथेली पर रख कर हम पुलिस वालो को किस तरह हर प्रकार के खतरनाक मुजरिमों से दो-दो हाथ होना पड़ता है। वैसे भी आप सभी लोग मिल कर हम पुलिस वालों को कुछ अधिक ही बुरा-भला कहते हो जबकि दूसरे सरकारी विभागो में हमारे यहां से कही अधिक रिष्वत चलती है। थानेदार की पत्नी ने अपने तर्क को लगाम लगाते हुए कहा कि थानेदार साहब दूसरों को बदलने का प्रयत्न करने के बजाए स्वयं को बदल लेना कहीं अधिक अच्छा होता है। वैसे भी आप काफी समझदार और पढ़े लिखे हो, इसलिये इतना तो आप भी जानते होगे कि ज्यादा इच्छा रखने वाले को कभी सुख नही मिलता। सच्चा धनवान वही व्यक्ति होता है जो अपनी इच्छाओं पर काबू रख सके, इसलिये यदि आप चाहते है कि आपके परिवार और बच्चों के पांव जमीन पर ही रहें, तो उनको रिष्वत की कमाई से पालने की बजाए उनके कंधों पर कुछ जिम्मेंदारी डालने का प्रयास करो। एक बात तो हर कोई जानता है कि खल्ली जैसे विष्व प्रसिद्व पहलवान में भी इतनी हिम्मत नही है कि थानेदार साहब को कोई सुझाव दे सके, लेकिन जौली अंकल सरकारी डंडे से डरते-डरते दबी हुई आवाज में थानेदार साहब को इतना जरूर कहना चाहते है कि हर समय पैसे की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी चैन नही मिलता क्योकि यदि धन और बल के जोर पर सारे सुख मिल सकते तो षायद इस दुनिया में हर इंसान सारे कामकाज छोड़ कर किसी न किसी थाने में थानेदार होता। जौली अंकल’’