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शुक्रवार, 25 जनवरी 2013
Hindi Story by Jolly Uncle
जन्नत
जौली अंकल
मिश्रा जी शाम को जब दफतर से लौटे तो उन्होनें देखा कि उनका बेटा बड़ा ही परेशान सा होकर घर के बाहर बैठा हुआ है। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने के साथ उन्होनें पूछा कि क्या हुआ, बहुत दुखी लग रहे हो? उनके बेटे ने कहा कि अब आपकी बीवी के साथ मेरा गुजारा होना बहुत मुश्किल है। वो मुझे भी हर समय आपकी तरह गुस्सा करने लगी है। मिश्रा जी ने कहा कि ऐसी क्या बात हो गई जो अपनी मम्मी से इतना नराज़ हो रहे हो। बेटे ने कहा कि मैने स्कूल से आकर मम्मी से कहा कि आज मुझे दोस्तो के साथ खेलने जाना है इसलिये आप जल्दी से मुझे पहले स्कूल का होमवर्क करवा दो। मम्मी ने मुझे कहा कि आज अपना काम खुद ही कर लो, आज तो मुझे सिर खुजलाने की भी फुर्सत नही है। मैने बस इतना कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो, मैं आपका सिर खुजला देता हॅू, आप मेरा होमवर्क कर दो। बस इसी बात को लेकर वो मुझे गुस्सा करने लग गई।
मिश्रा जी ने बेटे का मूड बदलने और उसे खुश करने के लिये कहा कि आओ हम पार्क में खेलने चलते है। अगले ही पल दोनों घर से पार्क की और चल पड़े। रास्ते में एक पुल पर बहुत तेज पानी बह रहा था। मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि डरो मत, मेरा हाथ पकड़ लो। बेटे ने कहा, नही पापा आप मेरा हाथ पकड़ लो। मिश्रा जी ने मुस्करा कर कहा कि मैं तुम्हारा हाथ पकड़ू या तुम मेरा हाथ पकड़ो, इससे क्या फर्क पड़ता है। बेटे ने कहा अगर मैं आपका हाथ पकड़ता हॅू और मुझे अचानक कुछ हो जाए तो शायद मैं आपका हाथ छोड़ दू, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ोगे तो मैं जानता हॅू कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप मेरा हाथ कभी नही छोड़ेगे। कुछ ही देर में दोनों एक सुंदर से पार्क में खेल रहे थे। खेल-खेल में मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि तुम मुझ से तो इतना प्यार करते हो परंतु अपनी मां से हर समय नाराज़ क्यूं रहते हो?
बेटे ने मिश्रा जी से कहा कि मुझे तो लगता है मम्मी को बच्चे ठीक से पालने ही नही आते। मिश्रा जी ने हैरान होकर कहा कि बेटा तुम ऐसा क्यूं कह रहो हो? बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि जब मेरा खेलने का मन होता है तो वो मुझे जब्बरदस्ती सुलाने की कोशिश करती है, जब मैं सो रहा होता हॅू तो जब्बरदस्ती मुझे उठाने की कोशिश करती है। बेटे की मासूमयित भरी शिकायते सुनकर मिश्रा जी को अपना बचपन और अपनी मां की याद आ गई। मन ही मन यह सोचने लगे कि इस नादान को कैसे समझाऊं कि मां जैसा इस दुनियां में तो कोई दूसरा हो ही नही सकता। मां के दिल में बच्चो के प्रति इतना प्यार होता है कि बच्चे चाहे कितनी ही गलतियां क्यूं न कर ले, मां उनकी हर गलती को माफ कर देती है। ज्ञानी और विद्वान लोगो का तो यहां तक मानना है कि मां तो प्रेम-प्यार की वो गंगा-जमुना है जिसके बिना इस सृष्टि की कल्पना करना ही नामुमकिन है। कुछ जगह तो यहां तक पढ़ने को मिलता है कि भगवान के बाद यदि इंसान को किसी की पूजा करनी चाहिये तो वो हक सिर्फ मां को है। मां चाहे किसी की भी हो वो घर में सबसे पहले उठती है। सब की जरूरतों का ध्यान रखते हुए हर किसी के लिये खाना बनाती है। जिस दिन तुम्हें मां का त्याग समझ आयेगा उस दिन तुम अनुभव करोगे कि एक मां ही ऐसी है कि उसका बच्चा चाहे उससे कितना ही गलत क्यूं न बोल ले, वो कभी भी उसका बुरा नही मानती। मां अपने बच्चो की हर खुषी को ही अपना सुख मानती है।
मिश्रा जी को थोड़ा गुमसुम सा बैठा देखकर उनके बेटे ने कहा कि आप यहां मेरे साथ खेलने आये हो या दफतर के काम के बारे में सोचने के लिये। मिश्रा जी ने उससे कहा कि मैं दफतर के बारे में नही बल्कि मां-बेटे के रिश्तों की अहमियत के बारे में ही सोच रहा था। बेटे ने थोड़ा ताज्जुब करते हुए कहा कि मां के इस रिश्ते में ऐसा खास क्या है जो आप इतनी गहरी सोच में डूब गये? मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि यदि इस रिश्ते के बारे में तुम अच्छे से कुछ जानना चाहते हो तो अब थोड़ी देर मेरी बाते ध्यान से सुनो। उन्होनें अफसोस जताते हुए बेटे से कहा कि जिस मां को तुम आज चुप रहना सिखा रहे हो उसने तुम्हें दिन-रात मेहनत करके बोलना सिखाया था। मां चाहे क्रोधी हो, पक्षपाती हो, शंकाशील हो, हो सकता है यह सारी बाते ठीक हो परंतु हमें यह कभी नही भूलना चाहिये कि वो हमारी मां है। कुछ समय बाद तुम्हारी शादी होगी उस समय यह बात जरूर याद रखना कि पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन मां पुण्य से मिलती है। पसंद से मिलनेवाली के लिए पुण्य से मिलने वाली मां रूपी देवी को कभी मत ठुकराना। जो कोई घर की मां को रूला कर और मंदिर की मां को चुनरी ओढ़ाता है तो याद रखना मंदिर की मां उन पर खुश होने की बजाए खफा ही होगी।
बेटा मां को सोने से न मढ़ो तो चलेगा, हीरे मोतियों से न जड़ो तो चलेगा, पर उसका दिल जले और आंसू बहे यह कैसे चलेगा? जिस दिन तुम्हारे कारण मां की आखों में आंसू आते है, याद रखना उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म-कर्म व्यर्थ के आंसूओं में बह जायेगा। बचपन के आठ-दस साल तुझे अंगुली पकड़कर जो मां स्कूल ले जाती थी, उसी मां को बुढ़ापे में चंद साल सहारा बनकर मंदिर ले जाना, शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज, थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा हो जायेगा। मां की आखों में दो बार आसूं आते है, एक बार जब उसकी लड़की घर छोड़ कर जाती है दूसरी बार जब उसका बेटा उससे मुंह मोड़ लेता है।
इन्ही बातो को ध्यान में रख कर शायद हमारे धर्म-ग्रन्थों में मां को इतनी अहमियत देते हुए यह कहा गया है कि ऊपर जिसका अंत नही उसे आसमां कहते है, जहां में जिसका अंत नही उसे मां कहते है। आज तक इस दुनियां में शायद किसी ने भगवान को नही देखा परंतु यदि तुम चाहो तो अपनी मां में ही भगवान को देख सकते हो। मिश्रा जी के अहम विचार सुन कर जौली अंकल हर मां के चरणों में नमन करते हुए यही कहना चाहते है कि इस दुनियां में यदि किसी ने भी जन्नत देखनी हो तो वो सिर्फ मां के कदमों में देखी जा सकती है।
(लेखक-जौली अंकल व्यंग्यकार व वरिष्ठ कथाकार हैं।)
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