मज़ाक – मज़ाक में – जौली अंकल
बंसन्ती ने जैसे ही वीरू के सामने खाने की थाली रखी तो उसने कहा कि तुम्हारी मौसी की मज़ाक करने की आदत अभी तक गई नही। बंसन्ती ने पूछा कि अब उन्होनें तुम्हें ऐसा क्या कह दिया कि फिर से जनवरी के इस ठंड भरे महीने में भी तुम्हारा पारा जून की गर्मी की तरह तेजी से चढ़ रहा है। वीरू ने कहा ऐसी तो कुछ खास बात नही है, बस आज तुम्हारी मौसी मेरे से फिर पूछ रही थी कि तुम मेरी बेटी बंसन्ती के साथ शदी करके खुश तो हो न? बंसन्ती ने नाक भौं चढ़ा कर कहा कि इसमें बुरा मानने की क्या बात है, तुम भी तो हर समय मेरे साथ मज़ाक करते रहते हो, मैने तो तुम्हारी बात का कभी बुरा नही माना। वीरू ने अपने चेहरे को थोड़ा गंभीर बना कर अपनी पत्नी से दिल्लगी करते हुए कहा कि मैने शादी से पहले भगवान से अपने लिये जो कुछ मांगा था वो सब कुछ उसने दे दिया, बस एक जगह न जाने उसने कैसे थोड़ी सी गलती कर दी? बंसन्ती ने अपने पति से कहा कि आखिर मुझे भी तो बताओ कि आपने अपने भगवान से क्या-क्या मांगा था और उसने देने में तुम्हारे साथ कहां नाइंसाफी कर दी। वीरू ने कहा कि मैने कुछ अधिक तो नही बस भगवान से अपने लिये अपनी कमाई 7 अंको में, बचत 6 अंकों में, घर 5 बैडरूम का, एक बढ़िया सी 4 पहियों वाली गाड़ी, महीने में काम से तीन हफते की छुट्टी, 2 प्यारे से बच्चे और एक गूंगी बीवी की मांग की थी। भगवान ने बाकी सभी कुछ तो ठीक से दे दिया बस बीवी देने में चूक कर गये। गूंगी बीवी की जगह ऐसी बीवी दी है जो रेड़ियों और टीवी की तरह कभी चुप ही नही होती। रेड़ियों टीवी में भी उन्हें बंद करने के लिये बटन लगा होता है लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें चुप करवाने के लिये तो सारी दुनियां के वैज्ञानिक मिल कर भी कोई ऐसा स्विज नही बना सकते।
बंसन्ती ने वीरू के इस हंसी के तमाषे को समझे बिना अपने पति से कहा कि तुम्हारे जैसे लोगो को भगवान छप्पड़़ फाड़ कर भी मन की सारी मुरादें दे दे तब भी आप उस का शुक्रिया अदा करने की बजाए उसके दोश ही निकालते रहते हो। शदी से पहले तो तुम ही कहते थे कि मेरी बातों को सुन कर तुम्हारे दिल में फूल खिल जाते है। वो मैं ही थी जिसे पहली नजर में देखते ही तुम्हारे होश उड़ गये थे और तुमने सपनों का महल बनाते हुए अपने घरवालों से कहा था कि जल्द से जल्द इस पूनम के चांद के साथ मेरी शदी करवा दो। जब पंडित जी ने कहा कि अभी कुछ समय तक अच्छा मुर्हत नही है तो तुमने कहा था कि मुर्हत का क्या करना है। आप जल्दी से लड़की के हाथो में मेंहदी लगा दो, हम शहनाई बजाने की तैयारी करते है। घर के बर्जुगो के मना करने पर भी आप उल्टा-सीधा दिमाग लड़ा कर बिना शुभ मुर्हत के ही घोड़ी पर चढ़ कर बारात ले आये थे। जब मेरी डोली तुम्हारे घर पहुंची थी तो तुम्हारे घर वालों ने घी के दीये जलाये थे। तुम्हारे घर में हर किसी की जुबान पर एक ही बात थी कि जन्मों से बिछड़े दो बदन मिल कर एक जान हो गये है। तुम भी बात-बात पर अपने दिल पर हाथ रख कर सारा जीवन साथ निभाने की कसमें खा रहे थे। कल तक मुझे देखते ही जहां तुम्हारे दिल और आखों में ठंडक पड़ती आज मेरी परछाई के करीब आते ही तुम्हारे हाथ पांव ठंडे होने लगते है।
वीरू ने हालात की नाजुकता को समझे बिना मज़ाक का और आंनद लेने की मंशा से उसे तीखा बनाते हुए बसन्ती को उल्टी-सीधी बाते सुनानी शुरू कर दी। उसने बंसन्ती से कहा कि मैं तो तुम्हारा चिकना चेहरा देख कर फिसल गया था। मैने तो ऊपरी मन से शादी के लिये कहा था परंतु तुम्हारे घर वालों ने मेरा मोटा माल देख कर एक चिड़िया की तरह झट से मुझें फंसा लिया था। वीरू यह सब कुछ मज़ाक ही मज़ाक में कह रहा था। लेकिन बंसन्ती एक क्षण के लिये भी वीरू की नीयत को नही समझ पाई और उसका चेहरा नीला- पीला होने लगा था। इन दोनों की नोंक-झोंक को देख कर यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था कि इनमें से कौन अधिक चतुर है। क्योंकि कोई व्यक्ति कितना चतुर है, इसका अंदाजा उसके जवाबों से लगाया जा सकता है, इसी के साथ ही कोई व्यक्ति कितना बुद्विमान है, इसका अंदाजा उसके द्वारा किये गये प्रश्नों से लगाया जा सकता है। लेकिन यहां तो दोनों ही एक दूसरे के ऊपर नहले पर दहला साबित हो रहे थे।
किसी संत ने बिल्कुल सच कहा है कि जीवन को सफल और कामयाब बनाने के लिये दो चीजें बहुत जरूरी है एक हंसी-मज़ाक और दूसरी चुप्पी। इस का तर्क वो इस तरह से बताते है कि हंसी-मज़ाक से हर समस्यां हल हो जाती है और चुप्पी से हर समस्यां को टाला जा सकता है। यदि हम मज़ाक-मज़ाक में किसी बात को मौके के हिसाब से ठीक से बोलना नही जानते तो वहां हमारा चुप रहना ही अच्छा होता है। यह सच है कि हंसी-मज़ाक हर किसी को सदा ही खुषी और आनंद देता है लेकिन हर मज़ाक की एक लक्ष्मण रेखा तह करना जरूरी है। जो लोग इस रेखा को नही समझ पाते वो कुछ छोटी-छोटी बातो पर सदा के लिये बातचीत खत्म कर देते है जबकि असल में अंदर कुछ बात होती ही नही। वीरू बंसन्ती की तरह किसी भी दूसरे इंसान पर बिना बात के बरस पड़ना बहुत आसान है परंतु यदि हम दूसरों के जीवन की राह में फूल नही बिखेर सकते तो कम से कम हंसी-मज़ाक के माध्यम से मुस्कराहट तो बिखेर ही सकते है। दूसरों को खुश करने के लिये बड़प्पन की नही महानता की जरूरत होती है।
जौली अंकल संत जी के विचारों को मन के तराजू में तोलते हुए यही आंकलन कर पायें हैं कि हंसी-मज़ाक सूर्य की तरह अकेला ही वो काम कर सकता है जो हजारों तारे मिल कर भी नही कर पाते। इस बात से तो कोई भी इंकार नही कर पायेगा कि प्यार से जीने के लिये हमारा यह जीवन भी बहुत छोटा है, ऐसे में किसी के दिल को दुखाने की बजाए क्यूं न सारा जीवन हंसी-खुशी के साथ जीते हुए मज़ाक-मज़ाक में गुज़ारा जायें।
जौली अंकल
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