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मंगलवार, 5 जुलाई 2011

प्यार की ताकत - सास बहु की रोचक कहानी


                                                              ’’ प्यार  की  ताकत ’’

जीवन में हर प्रकार के दुनियावी रिश्तो में कुछ न कुछ नोंक-झोंक तो चलती ही रहती है, लेकिन सास-बहूॅ का एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें कोई भी आज तक शायद एक दूसरे को खुष नही कर सका। सदियों पुरानी एक महषूर कहावत है, कि सास को अगर सोने का भी बना दिया जाए तो भी बहूॅ उस में कुछ न कुछ कमी निकाल ही देती है। यही हाल सास का होता है, वो भी हर गुणवती बहूं में हजारांे कमियॉ पल भर में गिना देती है। जिस दिन से बंसन्ती का विवाह हुआ था, उसी दिन से उसकी अपनी सास से किसी न किसी बात को लेकर खट-पट जारी थी। क्योंकि दोनो की सोच और स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क था।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था, हर दिन बसंन्ती की अपनी सास को लेकर परेषानियॉ बढ़ती ही जा रही थी। एक-एक दिन अपनी सास के साथ गुजारना मुषकिल होता जा रहा था। किसी न किसी बात को लेकर दोनों में हर समय तलवारे तनी ही रहती थी। इन सब बातो के ऊपर बंसन्ती का पति वीरू जो अपनी मां के बहुत ही करीब और परिवारिक संस्कारो को मानता था, वो हर बार बंसन्ती को अपनी मां से माफी मांगने के लिये दवाब बनाता रहता था। ऐसे में बंसन्ती के पास सिवाए खून का घूंट पीने के इलावा कोई चारा नही होता। एक दिन बंसन्ती ने मन ही मन यह कसम खाई कि वो अब किसी भी हालात में अपनी सास के खूंखार और तानाशही रवैये को बर्दाशत नही करेगी। वो अपनी सास से हमेषा-हमेषा के लिये पीछा छुड़ाने के लिये सोचने लगी। इसी उधेड़-बुन में उसकी नजर अखबार में एक विज्ञापन पर पड़ी, जिसमें एक टोने-टोटके वाले बाबा ने चंद दिनों में हर दुख तकलीफ से छुटकारा पाने, सभी समस्याओं का समाधान और मन चाही इच्छा षक्Ÿिा को गारंटी के साथ प्राप्त करने का दावा किया था।

बंसन्ती जल्दी से घर का काम निपटा कर उसी बाबा को मिलने उनके डेरे पर जा पहंुची। वहां जाते ही उसने बिना किसी हिचकिचाहट के बाबा को अपना सारा दुखड़ा सुनाया। बंसन्ती ने दुखी होते हुए कहा, कि अब मैं एक पल भी अपनी सास के साथ नही निभा सकती। रोते-रोते उसने बाबा से हर हालात में अपनी सास से छुटकारा पाने के लिये, यहां तक कि उसको मारने की बात तक कह डाली। अब चाहे मुझे उसके लिये अपनी सास को जहर ही क्यूं न देना पड़े? बाबा ने बात की गम्भीरता को समझते हुए बंसन्ती को समझाया कि ऐसा कुछ भी करने से वो खुद एक बहुत बड़ी मसुीबत में फंस सकती है। सास के मरते ही पुलिस और बिरादरी का सारा शक तुम पर आ जायेगा, और फिर तुम्हें सजा से कोई भी नही बचा सकता। इसके लिये तुम्हें थोड़े धैर्य से काम लेने की जरूरत है। बंसन्ती ने कहा, आप ही मुझे कोई राह दिखाईये, मैं हर हाल में कुछ भी करने को तैयार हॅू,, बस एक बार यह बता दो कि आखिर मुझे इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिये क्या करना होगा?

बाबा ने बंसन्ती को समझाना शुरू किया कि तुम्हें यह काम प्यार, तस्सली और बहुत ही चौकस होकर करना होगा। मैं तुम्हें कुछ जहरीली जड़ी-बूटीयॉ देता हॅू,। तुम्हें सिर्फ इतना करना है, कि हर दिन अपने हाथ से कोई न कोई सासू मां की पंसद का बढ़ियॉ और स्वादिश्ट खाना बना कर उसमें इन्हें मिला कर अपनी सास को खिलाना होगा। इससे तुम्हारी सास के शरीर में धीरे-धीरे जहर फैलने लगेगा। कुछ ही महीनों में वो अपने आप मर जायेगी। लेकिन यहां एक बात का ध्यान रखना कि इस दौरान तुम कभी भी अपनी सास से झगड़ा नही करना, हर समय उससे प्यार से ही पेष आना है नही तो उसके मरते ही बिरादरी की नजर में तुम शक के घेरे में आ जाओगी। बंसन्ती खुषी-खुषी सभी जड़ी-बूटियों को संभाल कर घर ले आई और अगले दिन से ही बाबा की आज्ञा के मुताबिक बढ़ियॉ से बढ़ियां खाने बना कर अपनी सास को खिलाने लगी। उसने अपने व्यवहार में न चाहते हुए भी काफी बदलाव कर दिया और अपनी सास से हर बात बहुत ही प्यार से करने लगी। बाबा की बात को ध्यान में रखते हुए उसने अपने गुस्से कर पर भी पूरी तरह से काबू रखना सीख लिया। अब अपनी सास को हर समय मां जी या यूं कहें की एक महारानी की तरह समझने लगी थी। यह सब देख सास का मन भी धीरे-धीरे बदलने लगा। उसने भी अपनी बहू को बुरा भला कहना छोड़ कर उसे अपनी बेटियों की तरह प्यार करने लगी। अब अगर थोड़ी देर के लिये भी उसे अपनी बहॅू नजर नही आती तो वो उसके लिये परेषान हो उठती।

कुछ महीनों तक यह सब कुछ इसी तरह से चलता रहा। इस दौरान दोनों में झगड़ा तो दूर कभी उंची आवाज में भी कोई बात नही हुई। एक दिन बंसन्ती की सास अचानक बहुत बीमार हो गई, उसे लगा कि जहर ने अपना काम करना षुरू कर दिया है, लेकिन अब तक बंसती का मन बदल चुका था और वो सास से बहुत प्यार करने लगी थी, कि वो अन्दर ही अन्दर अपनी आत्मा को कोसनें लगी, कि इतनी नेक औरत के साथ मैने यह सब कुछ क्यों किया? खुद को दोश देते हुए बोली कि असल में गलती तो मेरी ही थी। इस दौरान जो कोई भी उसकी सास का बीमारी के दौरान हाल-चाल पूछने आतेे, तो सासू मां बसंन्ती की सच्चे मन से तारीफ करती और बार-बार एक ही बात कहती कि षायद आज अगर मेरी अपनी बेटी भी होती तो वो भी मेरी इतनी सेवा नही कर पाती, जितनी मेरी बहूं ने मेरे लिये अपनी जान लगाई हुई है।

बंसन्ती ने अपने पति वीरू को अपनी गलती तो नही बताई लेकिन अपनी सास को हर हाल में बचाने के लिये आग्रह करने लगी। वीरू भी अपनी पत्नी और मां के इस नये व्यवहार से बहुत हैरान था। इसी दौरान बंसन्ती बिना अपने पति को बताए फिर से उसी बाबा के पास जा पहंुची, और उन्हें सारा किस्सा सुना डाला। बंसन्ती ने रोते हुऐ कहा, कि अब मैं अपनी सास से बहुत प्यार करती हॅू, आप उन्हे किसी भी हाल में बचा लो। बाबा ने ढ़ढास बधाते हुऐ बंसन्ती को समझाया कि मैने कभी भी तुम्हें कोई जहर नही दिया था। मैने तो तुम्हारे मन को शांत करने और षरीर को तन्दुरस्त बनाए रखने के लिये तुम्हें कुछ जड़ी-बूटियॉ दी थी। जहर तो सिर्फ तुम दोनो के मन और दिमाग में भरा हुआ था। सास के प्रति तुम्हारा जलन से भरा रवैया ही तुम्हारे घर-गृहस्थीे के कलेश की असली जड़ था। इन छह महीनों के दौरान तुम्हारे एक दूसरे के प्यार, सत्कार ने तुम दोनो के मन से वो सारा जहर निकाल दिया है। जैसे ही तुम्हारे व्यवहार में सास के प्रति परिवर्तन आया, तुम्हारी सास का मन भी तुम्हारे लिए प्यार से भर गया। सास के प्रति जो सेवा भावना तुमने दिखाई, उससे तुम्हारी सास को तुम्हारी जगह अपनी बेटी दिखाई देने लगी। जौली अंकल इसीलिये तो हमेषा कहते है, कि प्यार तो एक ऐसी ताकत है, जिसे जितना बांटो वो उतना ही बढ़ता है। हर घर-गृहस्थी को एक सूत्र में बांधने का काम सिर्फ सच्चा प्यार ही कर सकता है।














मुमकिन - एक और नया लेख


                                      ’’ मुमकिन ’’

मिश्रा जी ने अपने बेटे को स्कूल का काम करवाते हुए उससे पूछा कि यदि 10 औरते मिल कर एक बगीचे की सफाई दो दिन में करती है तो उसी काम को 20 औरते कितने समय में कर पायेगी। बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि पापा मुझे एक बात समझ नही आती कि जब एक बार बगीचे की सफाई अच्छे से हो ही गई है तो आप उसे दुबारा क्यूं साफ करवाना चाहते हो? अपने बेटे के मुंह से यह जवाब सुन कर मिश्रा जी को कहना पड़ा कि तुम्हारे जैसे आलसी लोग सदा यही सोचते रहते है कि यदि किसी काम को कोई दूसरा आदमी कर रहा है तो उसे ही करने दो, हमें खामख्वाह मुसीबत लेने की क्या जरूरत पड़ी हैं? अपनी बात को थोड़ा आगे बढ़ाते हुए मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि अब जरा एक बात बताओ कि कोई ऐसा काम हो जिसे कोई भी व्यक्ति नही कर सकता और वोहि काम तुम्हें करने को कहा जाये तो तुम उस काम के बारे में क्या कहोगे? अब इस बात का जवाब जरा सोच समझ कर ही देना। मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि इसमें सोचने-समझने वाली क्या बात है जब किसी काम को कोई भी व्यक्ति नही कर सकता तो उसे मैं कैसे कर सकता हॅू?

मिश्रा जी ने बेटे की नदानी को नज़रअंदाज करते हुए उससे कहा कि आमतौर पर तुम्हारे जैसे लोगो का यही मानना होता है कि यदि कोई दूसरा आदमी कोई काम कर सकता है तो आप भी उसे कर सकते हो। परंतु कामयाब लोगो की सोच इससे थोड़ी अलग होती है उनका मानना यह है यदि कोई साधारण व्यक्ति किसी काम को नही कर सकता उसे हम कर सकते है। मिश्रा जी के बेटे ने बड़ी ही हैरानगी से उनकी और देखते हुए कहा कि यह कैसे मुमकिन हो सकता है कि जिस काम को कोई नही कर सकता उसे हम कैसे कर सकते है? आखिर मिश्रा जी को कहना ही पड़ा कि इस दुनियां में ऐसा कोई काम नही है जो नामुमकिन हो। अक्सर किसी काम में मिलने वाली असफलता से हम जल्द घबरा कर उस राह को छोड़ देते है और यह कहने लगते है कि यह काम मुमकिन नही है। ऐसी सोच रखने वाले अक्सर यह भूल जाते है कि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी होती है। जो कोई इस मंत्र को जीवन में अपना लेते है मंजिल दौड़ती हुई उनके कदमों में आ जाती है। कोई भी व्यक्ति किसी क्षेत्र में अपनी मंजिल पाने के लिये यदि बिना पीछे मुड़े लगातार प्रयास करता है तो वो हर कार्य पर आसानी से विजय पा सकता है।

यह सब कुछ सुनने के बाद मिश्रा जी के बेटे ने गर्दन झुकाने की बजाए पिता से बहस करते हुए कहा कि एक और आप खुद ही कहते हो कि भगवान ने हर किसी के हिस्से की धन-दौलत, सुख-सुविधाएंे सब कुछ पहले से ही हमारे नसीब में लिख दी है फिर हर समय अपने हाथ-पैरों को इतना कश्ट देने की क्या जरूरत हैं? ऐसे में क्यूं न चैन की बंसी बजाते हुए सुख-चैन से जिंदगी गुजारी जाये। मिश्रा जी ने अपने बेटे को घूर कर देखते हुए कहा कि मुझे समझ नही आता कि तुम हर समय क्यूं अक्कल के पीछे लठ लिए फिरते रहते हो। माना कि कोई भी व्यक्ति हालात को नही बदल सकता लेकिन कठिन समय में अपनी सकारात्मक सोच से तुम कम से कम अपने विचारों को तो बदल सकते हो। एक विचार ही तुम्हारी जिंदगी बदल देता है। यह भी सच है कि किस्मत किसी के हाथ में नही होती लेकिन मेहनत तो हमारे हाथ में होती है। किस्मत ने कभी भी आज तक किसी के काम पूरे नही किये। लेकिन आपके द्वारा किये गये काम आपकी किस्मत को बदलने की क्षमता रखते है। मेरे प्यारे बेटे यह कभी मत भूलना कि मन के हारे हमारी हार होती है और मन के जीते ही हमारी जीत मुमकिन हो पाती है। कोई भी जीत सिर्फ आपका मन और आपके सकारत्मक विचार ही दिला सकते है। जब तक किसी भी कार्य से डर कर उससे भागते रहोगे वो तुम्हारे पीछे भाग कर तुम्हें परेषान करता रहेगा। एक बार जब आप हिम्मत करके उस का मुकाबला करने के लिये तैयार हो जाते है तो हर किस्म की कामयाबी तुम्हारे करीब आ जाती है।

मिश्रा जी के बेटे ने यह सब कुछ जानने के बाद भी हार न मानते हुए अपने पिता से कहा कि मेरे छोटे से दिमाग में आपकी यह बड़ी-बड़ी ज्ञान की बाते नही आती। मेरी समझ से तो यह बाहर हेै कि किस तरह एक छोटा सा इंसान बड़े-बड़े असंभव कार्यो को अंजाम तक पहुंचा सकता है। मिश्रा जी ने बहुत ही धीरज से बात को संभालते हुए कहा कि इतना तो तुम भी जानते हो कि एक छोटा सा दीपक रात के अंधेरे में उस समय रोषनी कर देता जब सूर्य नही होता। क्या इस बात से यह साबित नही होता कि कोई भी अपने आकार से श्रेश्ठ नही होता बल्कि उद्देषय से ही बड़ा या छोटा होता है। बेटे यदि जीवन में हर नामुमकिन काम को मुमकिन करना है तो कभी भी यह मत सोचो की क्या कुछ हमारे पास नही है, बल्कि यह सोचो कि क्या कुछ हमारे पास है। तुम हर समय किस्मत की बात करते हो लेकिन क्या इस बारे में कभी गौर किया है किस्मत कभी भी उन लोगो का साथ नही देती जो हर समय उस पर भरोसा किये हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते है। इसलिये अपने हर सपने को मुमकिन बनाने के लिये आत्मविष्वास पर भरोसा करते हुए जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करना सीखो।

मिश्रा जी की इतनी अहम और षानदार बाते सुनने के बाद उनके बेटे के नजरिये में कुछ बदलाव हुआ है या नही लेकिन जौली अंकल इतना जरूर जान गये है कि असल जिंदगी में सबसे कामयाब इंसान उसे ही कहा जा सकता है जो विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखता है। ऐसे लोग ही हर नामुमकिन सपने को मुमकिन बना सकते है।