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शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

Exclusive Interview Of Writer Jolly Uncle | Jkk News

Exclusive Interview Of Writer Jolly Uncle | Jkk News

शनिवार, 2 नवंबर 2013

NAYA GHAR - A motivational story by JOLLY UNCLE

"नया घर" नौकर ने आकर शमशेर सिंह को बताया कि आपसे कोई मिलने आया है। शमशेर सिंह ने दरवाजे की ओर देखा तो उनके दफ़्तर का एक साथी मिठाई का डिब्बा और निमत्रंण पत्र हाथ में लिये खड़ा था। अपने मित्र से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि उसने अपना नया घर बनाया है और उसी के लिये न्योता देने आया है। शमशेर सिंह ने अपना दिल खोलते हुए उससे कहा कि मैं भी अगले साल रिटायर हो रहा हूँ, लेकिन मैने तो अभी तक अपना घर बनाने के बारे में सोचा ही नही। शमशेर सिंह जी के बेटे और बहू ने कहा कि हम तो आपसे कई बार कह चुके हैं कि आप भी जल्दी से अपना एक नया घर बना लो। जब तक आप नौकरी में हो तब तक घर बनाने में किसी किस्म की कोई परेशानी नहीं होगी। उसके बाद तो कई लोग टांग अड़ाने के लिये खड़े हो जाते हैं। शमशेर सिंह ने अपने बेटे से कहा कि आज कल घर बनाने के लिये बहुत सारे पैसों की जरूरत पड़ती है। बेटे ने झट से कह दिया कि आप एक बार आवाज तो दे कर देखो, बैंक वाले घर आकर कर्ज दे जायेंगे। आपको किसी प्रकार की जोड़-तोड़ करने की जरूरत ही नहीं। इसी बात को लेकर उनकी पत्नी ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया। भोले-भाले शमशेर सिंह जी अपनी पत्नी और बच्चो को खुशियाँ देने के लिये उनकी इस मांग के आगे झुक गये। अगले दिन से ही बेटे ने कुछ लोगो से सलाह-मशविरा करते हुए घर बनवाने का काम शुरू करवा दिया। घर बनाने के लिये बैंक से मोटा कर्ज भी शमशेर सिंह ने लेकर अपने बेटे को दे दिया। जैसे-जैसे शमशेर सिंह जी का सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आने लगा, बेटे ने काम और तेज करवा दिया ताकि सरकारी बंगला छोड़ कर सीधा अपने घर में ही प्रवेश किया जा सके। एक दिन अचानक बैठे हुए शमशेर सिंह ने अपनी पत्नी से कहा कि हम लोग कई सालों से घूमने नही गये। अगर तुम चाहो तो रिटायर होने से पहले हम सरकारी खर्चे पर घूमने जा सकते हैं। बहू और बेटे ने कहा कि नेकी और पूछ-पूछ। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। जब तक आप लोग घूम-फिर कर वापिस आओगे तब तक घर भी बन कर तैयार हो जायेगा। उसने झट से एक ट्रैवल एजेंसी से कह कर उनका बढ़िया सा घूमने का प्रोग्राम बना दिया। टूर के दौरान बहू-बेटे से घर बनने के बारे में बात लगातार होती रही। कुछ समय बाद जब शमशेर सिंह जी अपना टूर पूरा करके वापिस आये तो अपने आलिशान घर को देख कर फूले नही समा रहे थे। अच्छे से सारे घर को निहारने के बाद इन्होने घर में प्रवेश किया। घर की खूबसूरती देखने के बाद शमशेर सिंह जी ने पूछा कि हमारा कमरा कौन सा है ? बेटे ने कहा कि यह आप क्या कह रहे हो? सारा घर ही आपका है, आप अलग से कमरे की क्या बात कर रहे हो। बहू ने जब खाना खाने के लिये कहा तो शमशेर सिंह जी ने कहा कि मैं काफी थका हुआ हूँ। जरा पहले नहा लूं फिर आराम से खाना खायेंगे। इसी के साथ उन्होंने कहा कि जरा हमारा सामान हमारे कमरे में रखवा दो। इतना सुनते ही शमशेर जी का बेटा फोन का बहाना बना कर बाहर निकल गया। बहू भी कमरे के नाम पर टाल-मटोल करने लगी। शमशेर सिंह की पत्नी ने कहा कि क्या बात है ? परेशान क्यूं हो रही हो? बहू ने घर के ड्राईवर को बुला कर इशारे से कहा कि इनका सामान घर के पीछे बने हुए कमरे में ले जाओ। इतना सुनते ही शमशेर सिंह जी और उनकी पत्नी के पैरों तले जमीन खिसक गई। बहू ने सफाई देते हुए कहा कि असल में जो कमरा आपके लिये बनाया था उसमें आपके बेटे ने अपना दफ़्तर बना लिया है। इस वजह से आपके लिये घर के पीछे अलग से एक कमरा बनवाना पड़ा है। सारी उम्र शानोशौकत के साथ सरकारी बंगले में राज करने वाले शमशेर सिंह जी चुपचाप घर के पिछवाड़े में नौकरों के लिये बने हुए कमरे में रहने के लिये चले गये। कमरे में दाखिल होते ही शमशेर सिंह की पत्नी ने उनसे कहा कि मैं सारी जिंदगी आपको समझाती रही हूँ कि इतने नर्म मत बनो नहीं तो एक दिन यह दुनियां आपको खा जायेगी। यह आपके सीधेपन का ही नतीजा है कि आज आपके अपने बहू-बेटे आपको इस तरह से नचा रहे हैं। शमशेर सिंह ने अपनी पत्नी को दिलासा देते हुए कहा लगता है, तूने वो कहावत नही सुनी कि अगर कोई आपका दिल दुखाए तो उसका बुरा मत मानो, क्योंकि यह कुदरत का नियम है कि जिस पेड़ पर सबसे ज्यादा मीठे फल होते हैं, उसी को सबसे अधिक पत्थर लगते हैं। शमशेर सिंह जी के धैर्य को सलाम करते हुए जौली अंकल उनके बेटे और बहू को बताना चाहते हैं कि मां-बाप तो वो अनमोल नगीने होते है जो हमें मुफ्त में मिलते हैं, मगर इनकी कीमत का उस दिन पता चलता है जब यह खो जाते हैं। आप लोगो ने जिस प्रकार छल-कपट करके अपने माता-पिता से उनका नया घर छीना है, उसके बदले में आज से ही सावधान हो जाओ क्योंकि बहुत जल्द आपका भी नया घर कोई न कोई आपसे छीन सकता है। जौली अंकल

मंगलवार, 7 मई 2013

PEHLA KADAM - Motivational story by JOLLY UNCLE


पहला कदम जौली अंकल वकील साहब के बेटे ने शाम को कहचरी से आकर अपने पिता के पांव छू कर उन्हें खुशी-खुशी बताया कि आपके आर्शीवाद से आज में पहले ही दिन आपके द्वारा दिया हुआ मुकदमा जीत गया हूं। वकील साहब ने खुश होने की बजाए बेटे को गुस्सा करते हुए कहा कि मैं तो तुम्हारी ड्रिगियां और काबलियत देख कर तुम्हें बहुत बुद्विमान समझ रहा था लेकिन तुम तो बड़े ही बेवकूफ किस्म के इंसान निकले हो। अपने पिता का यह रवैया देख कर नया-नया वकील बना बेटा चकरा गया कि पिता जी कैसी अजीब बाते कर रहे है? मैने तो जी तोड़ मेहनत करके केस को अच्छे से तैयार किया था, जिसकी वजह से जज साहब ने पहले ही दिन मेरे हक में फैसला सुना दिया। थोड़ी हिम्मत जुटा कर इस लड़के ने अपने पिता से पूछ ही लिया कि आपको ऐसा क्यूं लग रहा है कि मैने अपना पहला महत्वपूर्ण केस जीत कर कोई बहुत बड़ी गलती कर दी है। वकील साहब ने कहा कि मुझे तुम्हारा पहला केस जीतने से कोई परेशानी नही है। मुझे तो दिक्कत इस बात से हो रही है कि मैने शहर के सबसे बड़े सेठ का केस तुम्हें दिया था। इस केस को तुम बरसों लटका कर आसानी से लाखों रूपये कमा सकते थे। परंतु तुमने तो पहले ही दिन इस केस को निपटा कर आसानी से होने वाली मोटी कमाई पर खुद ही लात मार दी है। अपने पिता का यह व्यवहार देखकर वकील साहब का बेटा अपनी कामयाबी पर खुश होने की बजाए खुद को मन ही मन दोशी समझने लगा था। आज पहले ही दिन बेटे को ऐसा महसूस होने लगा कि उसने शायद अपने पेशे में पहला कदम ही गलत तरीके से रख दिया हो। अपने बेटे को उदास और दुखी देख कर वकील साहब की पत्नी ने अपने बेटे को खुल कर सारी बात बताने को कहा। सारी घटना सुनने के बाद वकील साहब की पत्नी ने उनसे कहा कि आप हमेशा दूसरों को तो आंकते रहते है, क्या कभी आपने अपने आप को भी आंकाने की कोशिश की है। मैं जानती हूं कि आप ऐसा नही कर सकते लेकिन जिस दिन ऐसा करोगे उस दिन आप अपने को काफी खुश महसूस करोगे। जीवन जीने के लिये हर कोई धन कमाता है और धन कमाना कोई बुरी बात नही है। लेकिन एक कामयाब वकील होने के नाते क्या आप गलत तरीके से धन कमाने को उचित ठहरा सकते हो? दुनियां भर के कानून की समझ रखने वाले वकील साहब इतना तो आप भी मानोगे कि अधर्म से की गई कमाई की गिनती तो अधिक हो सकती है, परंतु बरकत सिर्फ ईमानदारी की कमाई में ही होती है। हम सभी यह बात जानते है कि ईमानदारी कभी भी किसी कायदे कानून की मोहताज नही होती। जहां तक धन-दौलत की बात है तो अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा यह सिर्फ बुराई का एक ढ़ेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है। जिस धनवान के पास संतुष्टि नहीं वह सबसे बड़ा गरीब और जिस गरीब के पास संतुश्टि होती है वही सबसे बड़ा अमीर होता है। कोई भी बच्चा जब पैदा होता है तो उसके वस्त्रों में जेब नही होती और जब मनुष्य इस दुनियां से जाता है तब उसके कफन में जेब नही होती। जेब भरने का लालच जन्म और मरण के बीच में आता है। जेब भरने के इस खेल में हर कोई खुद को सबसे बड़ा खिलाड़ी समझते हुए हर प्रकार के गलत काम करने लगता है। हम लोगो को अपने मन से समय-समय पर विकार रूपी खर-पतवार को हटाते रहना चाहिये ताकि वो हमारे नेक विचारों को प्रभावित न कर सकें। इसी के साथ हमें अपना मन और आचरण सदा ही शुद्ध रखने चाहिये, क्योंकि मैले आईने पर तो सूर्य का भी प्रतिविंब दिखाई नही देता। अपनी पत्नी का इतना लंबा-चोड़ा व्याख्यान सुन कर वकील साहब को ऐसा लगने लगा कि वो अपनी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण केस हार रहे है। इसी बौखलाहट में उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वकील साहब की पत्नी ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि हर समय मन में क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी दूसरे पर फेंकने की नीयत से पकड़े रहने के सामान है, इसमें दूसरों से पहले आप ही जलते है। कोई भी व्यक्ति कभी भी क्रोधित हो सकता है, यह आसान है, लेकिन सही व्यक्ति के ऊपर, सही सीमा में, सही समय पर और सही उद्देष्य के साथ सही तरीके से क्रोधित होना सभी के बस की बात नही होती और यह आसान भी नही होता। वकील साहब की पत्नी ने अपने तर्क जारी रखते हुए कहा कि हमारे जीवन का उद्देष्य यह होना चाहिये कि हमारा जीवन उद्देष्यों से भरा हो। पहले कदम से ही हमें वो सब कुछ षुरू करना चाहिये जो हम भविश्य में बनना चाहते है। अपना घर संसार बनाने के लिये एक योजना की आवष्यकता होती है। जिंदगी को सुखमई बनाने के लिये यह और भी जरूरी हो जाता है कि हमारे पास एक अच्छी योजना और एक लक्ष्य हो। एक साफ लक्ष्य एक समय सीमा के साथ देखे गये सपने की तरह होता है। ठीक से कोई लक्ष्य ना होने की दिक्कत यह होती है कि आप अपनी जिंदगी के मैदान में इधर-उधर दौड़ते हुए समय गवां देगे पर एक भी गोल नही कर पाएंगे। आज आपके बेटे ने अपनी जीविका कमाने की दौड़ में पहला कदम रखा है। उसे उस राह की और मत धकेलिये जहां सारी दुनियां आखें बंद करके भागे जा रही है, बल्कि उसे वो राह दिखाईये जहां कोई नही जा रहा ताकि वहां वह अपनी अलग पहचान बना कर उसके निशान छोड़ सके। हर अच्छी बात का जन्म दो बार होता है, पहली बार हमारे दिमाग में दूसरी बार वास्तविकता में। हर चीज में कोई न कोई खूबसूरती होती है लेकिन हर कोई उसे नही देख पाता। आपका बेटा भी एक अनमोल हीरा है, उसे साधारण पथ्थरों के साथ मत मिलाओ। उसे जो कुछ अच्छा दिखाई दे रहा है उसे उस और जाने दो, जब वो वहां पहुंचेगा फिर वह और आगे देख पाएंगा। शिखर तक पहुंचने के लिए सिर्फ ताकत भरे पहले कदम की जरूरत होती है, फिर चाहे वो माउन्ट एवरेस्ट का शिखर हो या आपके पेशे का, आपको वहां पहुंचने से कोई नही रोक सकता। वकील साहब की पत्नी की जोरदार दलीलें सुनकर कर जौली अंकल तो इसी फैसले पर पहुंचे है कि प्रत्येक अच्छा कार्य शुरू में असभ्भव नजर आता है। परंतु महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते है बस सिर्फ शर्त इतनी है कि उनका पहला कदम सही समय पर सही दिशा से शुरू हो। www.jollyuncle.com

MUSKAAN - One more story from JOLLY UNCLE


मुस्कान जौली अंकल स्कूल से आते ही मुस्कान अपना स्कूल बैग एक तरफ रख रोज की तरह मां के गले से लिपट गई। इससे पहले की मां उसके लिए खाना तैयार करती मुस्कान ने मम्मी से पूछा कि यह सैक्स क्या होता है? बच्ची के मुंह से यह अल्फाज सुनते ही मानों मुस्कान की मां के पैरो तले की जमीन खिसक गई हो। आज उसे फिर से मुस्कान के पापा की इस जिद्द पर अफसोस होने लगा कि उन्होने अपनी बेटी को सहशिक्षा स्कूल में क्यूं पढ़ने भेजा? आज यदि हमारी मुस्कान केवल लड़कियों के स्कूल में पढ़ रही होती तो शायद यह दिन देखने को न मिलता। खुद को थोड़ा संभालते हुए उसने अपनी बेटी को कहा कि पहले तुम खाना खा लो, इस विशय में बाद में बात करेगे। खाना खत्म होते ही उत्सुक्तावश मुस्कान ने अपना सवाल मां के सामने रख कर फिर से परेशानी खड़ी कर दी। किसी तरह समझा-बुझा कर मुस्कान की मां ने शाम तक का समय निकाला। जैसे ही मुस्कान के पापा काम से लोटे तो बिना चाय-पानी पूछे अपना सारा दुखड़ा एक ही सांस में उन्हें कह डाला। मुस्कान के पापा ने धीरज से काम लेते हुए बेटी से पूछा कि तुम्हें यह सब कुछ किसने बताया है? मुस्कान ने झट से अपने स्कूल बैग से एक फार्म निकाल कर अपने पापा की और बढ़ाते हुए कहा कि मैंडम ने यह भरने के लिये कहा था। मैने बाकी का सारा फार्म तो भर लिया है, लेकिन एक पंक्ति में सैक्स के बारे में कुछ लिखना है। पिता ने जब ध्यान से फार्म देखा तो हंसते हुए उसे अपनी पत्नी की और बढ़ाया तो उसमें केवल स्त्री या पुरश के बारे में जानकारी मांगी गई थी। मुस्कान के पापा ने अपनी पत्नी की और हंस कर देखते हुए कहा कि खोदा पहाड़ निकली चुहियां। मुस्कान की मम्मी ने चाय के कप के साथ सरकार के शिक्षा विभाग का एक पत्र भी पति को थमा दिया। इस पत्र में शिक्षा विभाग के अधिकारीयों द्वारा सैक्स शिक्षा की जानकारी से जुड़े हर प्रकार के ज्ञान को नई पीढ़ी तक कैसे पहुंचाया जाये इसके बारे में एक लेख लिखने का अनुरोध किया गया था। लेख पंसद आने पर अच्छी रकम का वादा भी किया गया था। एक लेखक होने के नाते मुस्कान के पिता का जीवन भी उस दीपक की तरह था जो खुद अंधेरे में रहते हुए दूसरों को रोषन करता रहता है। यह भी अपनी कलम के माध्यम से समाज को उजाला तो दे रहे थे लेकिन खुद अपना जीवन बहुत ही बुरे हाल में गुजार रहे थे। ऐसे में अच्छी रकम का वादा सुनते ही उन्हे अपने कई अधूरे ख्वाब पूरे होते दिखने लगे। बिना पल भर की देरी किये उन्होने इस विषय पर अपने दिमाग के घोड़े दुड़ाने शुरू कर दिये। मुस्कान के पापा लेखक की हैसयित से इस बात पर गहराई से विचार करने लगे। आज अजादी के 60 बरस बाद भी अभी तक यह क्यूं नही तह कर पा रहे कि बाकी सभी विशयों की तरह इस विशय की जानकारी भी जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम इस बात को क्यूं भूल जाते है कि शिक्षा और ज्ञान चाहे किसी भी विशय से जुड़े हो उसका एक मात्र सबसे बड़ा लक्ष्य समाज को आत्मनिर्भर बनाना ही होता है। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए मुस्कान के पापा ने अपनी कलम के माध्यम से सैक्स शिक्षा से जुड़े हर पहलू को तराशना शुरू किया तो उन्होने पाया कि सैक्स का जाल तो हमारे चारो और फैला हुआ है। समाचार पत्रो से लेकर टेलीविजन सिनेमा और इंटरनेट पर इसकी भरमार है। जैसे ही कलम ने सैक्स शिक्षा पर लिखने का प्रयास शुरू किया तो सबसे पहले उन छोटी बेटियों का ख्याल मन को सताने लगा जो अज्ञानता के चलते नादानी से कच्ची उंम्र में ही भटक जाती है। ऐसे बच्चो के बारे में सोच कर और भी घबराहट होने लगी जो अपने मां-बाप की इकलोती संतान होते हुए भी एच,आई,वी जैसी लाईलाज बीमारी के शिकार है। सारी दुनियां को ज्ञान की रोशनी दिखाने वाला भारत देश इस मामले में इतने गहरे अंधकार में कैसे डूबा हुआ है। इसकी सोच से ही घबराहट होने लगती है। हमारे देश में इस शिक्षा के अभाव में कई बेटियां चाहते हुए भी खुद अपना बचाव नही कर पाती। थोड़ी सी सैक्स शिक्षा भी 11 से 18 साल तक के बच्चो के जीवन में कष्टों को खत्म करते हुए उजालों से भर सकती है। इससे पहले की हमारे फूलों जैसे कोमल किशोर राह भटक कर अंधेरी डगर पर चलने को मजबूर हो जाये, हमे खुशी-खुशी अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। स्कूल के अध्यापको को भी यह बात माननी होगी कि विशय चाहे कोई भी हो, ज्ञान के माध्यम से दूसरों को खुशी देना ही सर्वोत्तम दान है। मुस्कान के पिता की परेशानी उस समय और बढ़ गई जब शिक्षा विभाग वालों ने उनके इस लेख को जनहित में देश के अनेक नामी समाचार पत्रो की सुर्खीयां बना डाला। मुस्कान जो आठवी कक्षा में पढ़ती थी उसकी कक्षा के छात्रों ने सैक्स से जुड़े उल्टे सीधे सवाल पूछ कर उसका क्लास में बैठना दूभर कर दिया। हर छात्र एक ही बात कहता था कि किसी को सैक्स के बारे में कोई भी जानकारी लेनी हो तो वो मुस्कान के घर पहुंचे क्योंकि इसके पिता तो सैक्स गुरू है। धीरे-धीरे उसकी सहेलियां भी मुस्कान से कनी काटने लगी। सभी टीचर भी उसे इस तरह से देखने लगे जैसे इस बच्ची ने कोई बहुत बड़ा जुर्म कर दिया हो। इस तरह के माहौल और तानों को सारा दिन सुन-सुन कर मुस्कान इतनी दुखी और असहाय हो गई कि उसने खुदकशी करने का मन बना लिया। ज्ञानी लोगो की बात का विश्वास करे तो यही समझ आता है कि दूसरों को उम्मीदों का रास्ता दिखाने वालों को सदा ही उम्मीदों भरा सवेरा मिलता है। जौली अंकल का मानना है हमारे देश में सदियों से ज्ञान का प्रकाश फैलाने वालो को शुरू में अनेको विपत्तियों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में सैक्स शिक्षा जैसा काम तो हर किसी को असंभव ही प्रतीत होगा। लेकिन अपने देश और मानव जगत की सबसे अमूल्य धरोहर लाखो बच्चियों के चेहरो पर यदि सदा हंसी, खुशी और मुस्कान देखनी है तो हम सभी को मिलकर इस नेक कार्य को शुरू करने में अब और अधिक देर नही करनी चहिये।

जन्नत - जोली अंकल का एक और लेख


जन्नत जौली अंकल मिश्रा जी शाम को जब दफतर से लौटे तो उन्होनें देखा कि उनका बेटा बड़ा ही परेशान सा होकर घर के बाहर बैठा हुआ है। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने के साथ उन्होनें पूछा कि क्या हुआ, बहुत दुखी लग रहे हो? उनके बेटे ने कहा कि अब आपकी बीवी के साथ मेरा गुजारा होना बहुत मुश्किल है। वो मुझे भी हर समय आपकी तरह गुस्सा करने लगी है। मिश्रा जी ने कहा कि ऐसी क्या बात हो गई जो अपनी मम्मी से इतना नराज़ हो रहे हो। बेटे ने कहा कि मैने स्कूल से आकर मम्मी से कहा कि आज मुझे दोस्तो के साथ खेलने जाना है इसलिये आप जल्दी से मुझे पहले स्कूल का होमवर्क करवा दो। मम्मी ने मुझे कहा कि आज अपना काम खुद ही कर लो, आज तो मुझे सिर खुजलाने की भी फुर्सत नही है। मैने बस इतना कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो, मैं आपका सिर खुजला देता हॅू, आप मेरा होमवर्क कर दो। बस इसी बात को लेकर वो मुझे गुस्सा करने लग गई। मिश्रा जी ने बेटे का मूड बदलने और उसे खुश करने के लिये कहा कि आओ हम पार्क में खेलने चलते है। अगले ही पल दोनों घर से पार्क की और चल पड़े। रास्ते में एक पुल पर बहुत तेज पानी बह रहा था। मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि डरो मत, मेरा हाथ पकड़ लो। बेटे ने कहा, नही पापा आप मेरा हाथ पकड़ लो। मिश्रा जी ने मुस्करा कर कहा कि मैं तुम्हारा हाथ पकड़ू या तुम मेरा हाथ पकड़ो, इससे क्या फर्क पड़ता है। बेटे ने कहा अगर मैं आपका हाथ पकड़ता हॅू और मुझे अचानक कुछ हो जाए तो शायद मैं आपका हाथ छोड़ दू, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ोगे तो मैं जानता हॅू कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप मेरा हाथ कभी नही छोड़ेगे। कुछ ही देर में दोनों एक सुंदर से पार्क में खेल रहे थे। खेल-खेल में मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि तुम मुझ से तो इतना प्यार करते हो परंतु अपनी मां से हर समय नाराज़ क्यूं रहते हो? बेटे ने मिश्रा जी से कहा कि मुझे तो लगता है मम्मी को बच्चे ठीक से पालने ही नही आते। मिश्रा जी ने हैरान होकर कहा कि बेटा तुम ऐसा क्यूं कह रहो हो? बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि जब मेरा खेलने का मन होता है तो वो मुझे जब्बरदस्ती सुलाने की कोशिश करती है, जब मैं सो रहा होता हॅू तो जब्बरदस्ती मुझे उठाने की कोशिश करती है। बेटे की मासूमयित भरी शिकायते सुनकर मिश्रा जी को अपना बचपन और अपनी मां की याद आ गई। मन ही मन यह सोचने लगे कि इस नादान को कैसे समझाऊं कि मां जैसा इस दुनियां में तो कोई दूसरा हो ही नही सकता। मां के दिल में बच्चो के प्रति इतना प्यार होता है कि बच्चे चाहे कितनी ही गलतियां क्यूं न कर ले, मां उनकी हर गलती को माफ कर देती है। ज्ञानी और विद्वान लोगो का तो यहां तक मानना है कि मां तो प्रेम-प्यार की वो गंगा-जमुना है जिसके बिना इस सृष्टि की कल्पना करना ही नामुमकिन है। कुछ जगह तो यहां तक पढ़ने को मिलता है कि भगवान के बाद यदि इंसान को किसी की पूजा करनी चाहिये तो वो हक सिर्फ मां को है। मां चाहे किसी की भी हो वो घर में सबसे पहले उठती है। सब की जरूरतों का ध्यान रखते हुए हर किसी के लिये खाना बनाती है। जिस दिन तुम्हें मां का त्याग समझ आयेगा उस दिन तुम अनुभव करोगे कि एक मां ही ऐसी है कि उसका बच्चा चाहे उससे कितना ही गलत क्यूं न बोल ले, वो कभी भी उसका बुरा नही मानती। मां अपने बच्चो की हर खुषी को ही अपना सुख मानती है। मिश्रा जी को थोड़ा गुमसुम सा बैठा देखकर उनके बेटे ने कहा कि आप यहां मेरे साथ खेलने आये हो या दफतर के काम के बारे में सोचने के लिये। मिश्रा जी ने उससे कहा कि मैं दफतर के बारे में नही बल्कि मां-बेटे के रिश्तों की अहमियत के बारे में ही सोच रहा था। बेटे ने थोड़ा ताज्जुब करते हुए कहा कि मां के इस रिश्ते में ऐसा खास क्या है जो आप इतनी गहरी सोच में डूब गये? मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि यदि इस रिश्ते के बारे में तुम अच्छे से कुछ जानना चाहते हो तो अब थोड़ी देर मेरी बाते ध्यान से सुनो। उन्होनें अफसोस जताते हुए बेटे से कहा कि जिस मां को तुम आज चुप रहना सिखा रहे हो उसने तुम्हें दिन-रात मेहनत करके बोलना सिखाया था। मां चाहे क्रोधी हो, पक्षपाती हो, शंकाशील हो, हो सकता है यह सारी बाते ठीक हो परंतु हमें यह कभी नही भूलना चाहिये कि वो हमारी मां है। कुछ समय बाद तुम्हारी शादी होगी उस समय यह बात जरूर याद रखना कि पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन मां पुण्य से मिलती है। पसंद से मिलनेवाली के लिए पुण्य से मिलने वाली मां रूपी देवी को कभी मत ठुकराना। जो कोई घर की मां को रूला कर और मंदिर की मां को चुनरी ओढ़ाता है तो याद रखना मंदिर की मां उन पर खुश होने की बजाए खफा ही होगी। बेटा मां को सोने से न मढ़ो तो चलेगा, हीरे मोतियों से न जड़ो तो चलेगा, पर उसका दिल जले और आंसू बहे यह कैसे चलेगा? जिस दिन तुम्हारे कारण मां की आखों में आंसू आते है, याद रखना उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म-कर्म व्यर्थ के आंसूओं में बह जायेगा। बचपन के आठ-दस साल तुझे अंगुली पकड़कर जो मां स्कूल ले जाती थी, उसी मां को बुढ़ापे में चंद साल सहारा बनकर मंदिर ले जाना, शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज, थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा हो जायेगा। मां की आखों में दो बार आसूं आते है, एक बार जब उसकी लड़की घर छोड़ कर जाती है दूसरी बार जब उसका बेटा उससे मुंह मोड़ लेता है। इन्ही बातो को ध्यान में रख कर शायद हमारे धर्म-ग्रन्थों में मां को इतनी अहमियत देते हुए यह कहा गया है कि ऊपर जिसका अंत नही उसे आसमां कहते है, जहां में जिसका अंत नही उसे मां कहते है। आज तक इस दुनियां में शायद किसी ने भगवान को नही देखा परंतु यदि तुम चाहो तो अपनी मां में ही भगवान को देख सकते हो। मिश्रा जी के अहम विचार सुन कर जौली अंकल हर मां के चरणों में नमन करते हुए यही कहना चाहते है कि इस दुनियां में यदि किसी ने भी जन्नत देखनी हो तो वो सिर्फ मां के कदमों में देखी जा सकती है। (लेखक-जौली अंकल व्यंग्यकार व वरिष्ठ कथाकार हैं।)