दरवाजे पर अचानक जैसे ही जोर से घंटी बजी तो सभी परिवार वालों का ध्यान पूजा से भटक गया। दूसरों को सच का पाठ पढ़ाने और खुद झूठ बोलने में माहिर मिश्रा जी ने अपने बेटे को दरवाजा खोलने के साथ उसे यह आदेष भी दे डाला कि दरवाजे पर कोई भी हो कह देना कि मैं घर पर नही हूँ। मिश्रा जी के बेटे ने भाग कर दरवाजा खोला तो सामने मुहल्ला समीति के लोग रामलीला के लिए चंदा इक्ट्ठा करने के लिए पर्ची हाथ में पकड़े खड़े थे। छोटे से बच्चे ने बड़ी ही मासूमयित से दरवाजे पर खड़े लोगो से कह दिया कि पापा कह रहे है कि वो घर पर नही है। नन्हें से बच्चे के मुख से निकली बिल्कुल सच्ची बात सुनते ही सभी लोगो की हंसी छूट गई।
कुछ ही देर में जब मिश्रा जी का बेटा वापिस कमरे में दाखिल हुआ तो फोन की घंटी टर्न-टर्न करते हुए सभी का ध्यान अपनी और खींच रही थी। अब मिश्रा जी ने अपनी इकलोती पत्नी को हुक्म दे डाला कि फोन पर कोई मेरे बारे में पूछे तो उसे मना कर देना कि मैं घर पर नही हूँ। मिश्रा जी की पत्नी ने अपनी आदतनुसार फोन उठाते ही हंस-हंस कर बाते करनी षुरू कर दी। अगले ही पल उधर से आवाज आई कि तुम्हारा बुव गया काम पर या अभी घर पर ही हेै? मिश्रा जी की पत्नी ने भी हंसते हुए कह दिया कि आज तो अभी यह घर पर ही है। इतना सुनते ही मिश्रा जी का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा। पत्नी को डांटते हुए बोले मैने तुम्हें जब पहले से ही समझाया था कि कह देना कि मैं घर पर नही हूँ तो फिर भी तुम्हें यह कहने की क्या जरूरत थी कि मैं घर पर ही बैठा हुआ हूँ? मिश्रा जी की पत्नी ने बात को टालते हुए कहा कभी तो अपना गुस्सा नाक से उतार कर नीचे रख दिया करो। यह फोन तुम्हारे लिए नही था, मेरी सहेली का था। असल में मेरी कुछ सहेलियां आज गप-षप के मूड में मेरे यहां आना चाहती थी, परंतु जब मैने उन्हें तुम्हारे घर में होने की खबर दी तो उन्होने आने से मना कर दिया।
बड़े लोग अपने बच्चो को सदा ही झूठ न बोलने की नसीहत देते है और उम्मीद करते है कि बच्चे सदा मन के सच्चे होने चहिये। बच्चो को सच बोलने के संस्कारों की घुटटी तो हम उन्हें जन्म से ही पिलाते है, लेकिन खुद हर कदम पर झूठ का साहरा लेकर ही चलते है। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जाने-अनजानें अनेको बार हम लोग बच्चो के सामने झूठ बोलने से नही कतराते। समय-समय पर अपनी झूठी बात को सच साबित करने में ही अपनी षान समझते है। झूठ एक ऐसा रोग है जिसे समाज का कोई वर्ग भी पंसद नही करता, लेकिन मौका मिलते ही हर कोई इसे इस्तेमाल करने से भी नही चूकता। ऐसे में यदि हमारे बच्चे झूठ बोलते है तो इसके लिए हम यह कद्पि मानने को तैयार नही होते कि अधिकाश: मामलों में दोषी हम लोग ही है। छोटे बच्चे तो मन से बिल्कुल सच्चे होते है लेकिन षुरू-षुरू में अक्सर मां-बाप के डर, सजा या पिटाई के कारण कई बार झूठ बोल देते है। समय रहते यदि उनकी इस आदत में सुधार न किया जाये तो उनकी झूठ बोलने की यह आदत पक जाती है। झूठ बोलने के पीछे मंषा चाहे कुछ भी हो, इसे किसी भी हालात में सही नही ठहराया जा सकता। बच्चा हो या बड़ा, झूठ बोलने का कारण कुछ भी हो यह एक खतरनाक संकेत है। इस एक आदत के कारण बच्चा गलत संगत में पड़ कर बुरी आदतो का षिकार हो सकता है। इससे बच्चे के व्यक्तित्व और आने वाले समय में सामाजिक रिष्तों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
लोगो के मन में यह धारणा घर चुकी है कि इस दुनियां में झूठ बोले बिना काम चल ही नही सकता। यह भी सत्य है कि कई बार सच्चाई बहुत कडुवी होती है और इसे बोलना बहुत कठिन हो जाता है। जैसे किसी अंधे को अंधा या लंगड़े को लंगड़ा कहने की हिम्मत आम आदमी नही जुटा पाता। कुछ लेकिन हमें सदा ही बच्चों मे सच बोलने के लिए उत्साह पैदा करना चहिये। यदि बच्चे से कोई गलती हो भी जाती है और वो आपको सच बता देता है, तो उसे सजा देने की बजाए उसकी सच बोलने की हिम्मत की तारीफ करनी चहिये। उसमें इतना विश्वास भरने का प्रयत्न करे कि तुम एक सच्चे और बहादुर इंसान हो और कभी किसी को जीवन में धोखा नही दोगे।
संसार में ऐसा कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जो सच और झूठ के फर्क को न समझता हो, लेकिन हम लोग दूसरों को सच्चाई का उपदेश देने से पहले कभी भी खुद को आंकने की कोशिश नही करते। यदि किसी बच्चे ने भूल से झूठ बोलने की कोई गलती कर ही दी है तो उसे असानी से सुधारा जा सकता है। बचपन से ही हमें बच्चो को यह समझाना चहिये कि सच बोलने वाले इंसान का व्यवहार ही उसके व्यकितत्व को निखारता है। परेशानी सिर्फ उन लोगो को हो सकती है जो इस आदत में सुधार की उम्मीद खो बैठते है। सच बोलने वाले व्यक्ति से सदा सभी लोग खुश रहते है और वो खुद भी भी हमेशा खुद से खुश रह सकता है।
जौली अंकल तो सदा से ही इस बात पर यकीन रखते है बच्चे जहां एक और जहां ऐसे कोमल फूल की तरह होते जो भगवान को भी प्यारे लगते है वहीं यह सदा मन से भी बिल्कुल सच्चे होते है। इस बात से ज्ञानी लोग भी इंकार नही कर सकते कि केवल 'सत्य का ही अस्तित्व' होता है और सत्य की महानता ही आपको महान बनाती है। इसी लिये बच्चो को सच का पाठ पढ़ाने से पहले जरूरत है हमें अपने अंदर बदलाव लाने की। इसी राह पर चलते हुए हम भी बच्चो की तरह मन से सच्चे होते हुए जीवन में सच्चाई पर विजय पा सकते है।
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