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रविवार, 27 नवंबर 2011


आवाज दे तू कहाँ है
एक दिन वीरू अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठ कर दारू पी रहा था. पास से गुजरते हुए मोहल्ले के एक बुजर्ग सज्जन ने कहा की बेटा में तुम्हे पहले भी कही बार कह चुका हूँ की दारू पीना बहुत बुरी बात होती है. तुम मेरी बात मानो या न मानो लेकिन तुम बिलकुल गलत रास्ते पर जा रहे हो. इस तरह बहुत जल्द तुम अपने परिवार के साथ-साथ भगवान से भी दूर हो जाओगे. यदि अब भी तुम ने अपनी आदत न बदली तो  भगवान से मिलना तो दूर तुम सारी उम्र उसके कभी दर्शन भी नहीं कर पाओगे. जैसा की अक्सर होता है की दारू पीने वाले बिना सिर पैर की बातो पर बहस करने लगते है. इसी तरह वीरू भी उस बुजर्ग के साथ इस विषय को लेकर उलझ गया की में तुम्हारी यह फालतू की किसी बात को नहीं मानता, क्यू की भगवान इस दुनिया में है ही नहीं. क्या तुम मुझे किसी भी एक ऐसे आदमी से मिलवा सकते हो जिस ने भगवान को अपने जीवन में देखा हो? उस बुजर्ग ने वीरू से कहा की क्या तुम यह साबित कर सकते हो यदि भगवान नहीं है तो इतनी बड़ी दुनिया खुद ब खुद कैसे बन गयी? वीरू ने दारू का घूँट पीते हुए कहा की में यह तो नहीं जानता की इस दुनिया को किस ने और कैसे बनाया लेकिन में यह सिद्ध कर सकता हूँ की भगवान नाम की कोई चीज़ इस दुनिया में मौजूद नहीं है. वीरू के इस दावे को सुन कर एक बार तो वोह बजुर्ग भी सन्न रह गए. एक लंबी सी सांस लेने के बाद उस बजुर्ग ने कहा की तुम्हारे पास ऐसा कौन सा विज्ञान है जिस के दम पर तुम यह इतना बड़ा दावा कर रहे हो.

वीरू ने कहा जब कुछ दिन पहले भी हमारी इस मुद्दे पर बहस हुई थी तो आप ने कहा था की भगवान तो कण-कण में रहता है. मैंने उसी दिन एक पत्र भगवान के नाम लिख भेजा था. मैंने उस चिठ्ठी में भगवान को लिखा था की ऐह प्यारे भगवान जी यदि आप इस दुनिया में कही भी रहते हो तो एक बार हमारे मोहल्ले में ज़रूर आओ ताकि हम लोग यह फैसला कर सके की तुम सच में हो या नहीं. जैसा आप ने कहा था मैंने यह खत ईश्वर सर्वशक्तिमान सर्वत्र व्यापत के नाम से डाक में भेज दिया था. वैसे तो अब तक में भी इस बात को पूरी तरह से भूल चुका था लेकिन कल ही अचानक भगवान जी की चिठ्ठी डाकखाने वालों ने यह लिख कर वापिस भेज दी की इस पत्र को पाने वाला कोई नहीं मिला इसलिए भेजने वाले को वापिस किया जाता है. इस चिठ्ठी के वापिस आने से पहले तो मेरे मन में भी कई बार ग़लतफहमी होती थी की शायद भगवान दुनिया के किसी कोने में रहते होगे, परन्तु अब तो हमारी सरकार ने भी मेरी बात को मानते हुए इस पर अपनी मोहर लगा कर यह प्रमाणित कर दिया है की भगवान इस जगत में कही नहीं रहता.

वीरू की सारी दलीले सुनने के बाद यह बजुर्ग एक बार तो बुरी तरह से चकरा गए की इस नास्तिक को कैसे बताया जाये की जिस ने सूरज, चाँद और सारी दुनिया बनाई है जब तक हम उसके करीब नहीं जायेगे तो हम उसके बारे में कैसे जान सकते है. इतना तो हर कोई जानता है की ईश्वर का न कोई रंग है, न कोई रूप और न ही उस का कोई आकार होता है. मुश्किल की घडी में जब दिल के किसी कोने से भगवान के होने का हल्का सा भी एहसास होता है तो बड़ा ही सकून मिलता है. इस बात से हम कैसे इंकार कर सकते है की जब हमारे साथ कोई नहीं होता उस समय केवल भगवान ही हमारा साथ देते है. जिन लोगो ने इस चीज़ को अनुभव किया है उन लोगो का यकीन देखने लायक होता है. यह सारे तर्क सुनने के बाद वीरू ने बजुर्ग महाशय का मजाक उड़ाते हुए कहा की आप की इन सारी बातों से भगवान की मौजदूगी तो साबित नहीं होती.

बजुर्ग महाशय ने सोचा की इस अक्कल के अंधे से और अधिक बहस क्या की जाये की क्युकि जिस हालत में यह है उसमे तो यह खुद को भी नहीं पहचान पा रहा तो ऐसे में यह भगवान को क्या समझेगा. यही बात सोच कर वोह वहाँ से उठ कर उसी इमारत की छत पर चले गए. वीरू को थोड़ी हैरानगी हुई की यह आदमी इस समय रात के अँधेरे में छत पर क्या करने गया होगा. दारू का गिलास वोही छोड कर वीरू ने इस बुजर्ग से पुछा की इतने अँधेरे में यहाँ क्या कर रहे हो? बुजर्ग ने जवाब दिया की मेरा ऊंट गुम गया है उसे ढूँढने आया हूँ. वीरू ने कहा की कही आपका सिर तो नहीं चकरा गया जो ऊंट को इस छत पर ढूँढ रहे हो. बजुर्ग ने वीरू से कहा यदि इतनी बात समझते हो तो फिर यह भी ज़रूर जानते होगे की एक बीज से अच्छा पेड बनने और उस पर फल फूल पाने के लिए बीज को अपना अस्तित्व खत्म करके मिट्टी से प्रीत करनी पड़ती है. जब तक कोई बीज अपने अंदर का अंहकार खत्म करके पूर्ण रूप से खुद को मिट्टी में नहीं मिलाता उस समय तक वोह एक अच्छा पेड बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता.

वीरू के कंधे पर हाथ रख कर बजुर्ग ने कहा मेरे भाई जब तक हमारी दृष्टि में खोट होता है उस समय तक हमें सारी दुनिया में ही खोट दिखाई देता है. ऐसी सोच रखने वाले इंसान को कोई कैसे समझा सकता है की भगवान में विश्वास तन से नहीं मन से अधिक होता है. पूजा पाठ, इबादत का आनंद भी तभी मिलता है जब हमारा मन हमारे साथ होता है. जब कुछ देर बाद वीरू का नशा उतरा तो वोह इन बजुर्ग सज्जन के पास माफ़ी मांगने के लिए आया. माफ़ी मांगने के साथ वीरू ने कहा की एक बात तो समझा दो की मुझ जैसे अनजान लोग भगवान को कैसे पा सकते है? बजुर्ग सज्जन ने कहा की उसको पाने का सबसे आसान तरीका है अच्छी संगत करना. इससे यह फायदा होता है की हमारी सोच भी अच्छी बनने लगती है. इसका एक उदारण यह है की जिस प्रकार पानी की एक बूँद भी कमल के फूल के ऊपर गिरते ही साधारण पानी की जगह एक मोती की तरह दिखाई देने लगती है. बजुर्ग सज्जन की बात कहने के तरीके से प्रभावित होकर जोली अंकल यही दुआ करते है की ऐह भगवान मेरे जैसे लाखो-करोडों नासमझ लोगो को सही राह पर लाने के लिए तू ही आवाज़ दे कर बता की तू कहाँ है.  

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

’’ चांद की सैर ’’ 

एक षाम वीरू काम से लौट कर अपने घर में टीवी पर समाचार देख रहा था। हर चैनल पर मारपीट, हत्या, लूटपाट और सरकारी घौटालों के अलावा कोई ढंग का समाचार उसे देखने को नही मिल रहा था। इन खबरों से ऊब कर वीरू ने जैसे ही टीवी बंद करने के रिर्मोट उठाया तो एक चैनल पर बेै्रकिंग न्यूज आ रही थी कि वैज्ञनिकों ने दावा किया है कि उन्हें चांद पर पानी मिल गया है। इस खबर को सुनते ही वीरू ने पास बैठी अपनी पत्नी बंसन्ती से कहा कि अपने षहर में तो आऐ दिन पानी की किल्लत बहुत सताती रहती है, मैं सोच रहा हॅू कि क्यूं न ऐसे मैं चांद पर ही जाकर रहना षुरू कर दूं। बंसन्ती ने बिना एक क्षण भी व्यर्थ गवाएं हुए वीरू पर धावा बोलते हुए कहा कि कोई और चांद पर जायें या न जायें आप तो सबसे पहले वहां जाओगे। वीरू ने पत्नी से कहा कि तुम्हारी परेषानी क्या है, तुम्हारे से कोई घर की बात करो या बाहर की तुम मुझे हर बात में क्यूं घसीट लेती हो। वीरू की पत्नी ने कहा कि मैं सब कुछ जानती हॅू कि तुम चांद पर क्यूं जाना चाहते हो? कुछ दिन पहले खबर आई थी चांद पर बर्फ मिल गई है और आज पानी मिलने का नया वृतान्त टीवी वालों ने सुना दिया है। मैं तुम्हारे दारू पीने के चस्के को अच्छे से जानती हॅू। हर दिन षाम होते ही तुम्हें दारू पीकर गुलछर्रे उड़ाने के लिये सिर्फ इन्हीं दो चीजो की जरूरत होती है। अब तो सिर्फ दारू की बोतल अपने साथ ले जा कर तुम चांद पर चैन से आनंद उठाना चाहते हो। 

वीरू ने बात को थोड़ा संभालने के प्रयास में बंसन्ती से कहा कि मेरा तुम्हारा तो जन्म-जन्म से चोली-दामन का साथ है। मेरे लिये तो तुम ही चांद से बढ़ कर हो। बंसन्ती ने भी घाट-घाट का पानी पीया हुआ है इसलिये वो इतनी जल्दी वीरू की इन चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाली नही थी। वीरू द्वारा बंसन्ती को समझाने की जब सभी कोषिषें बेकार होने लगी तो उसने अपना आपा खोते हुए कहा कि चांद की सैर करना कोई गुडियों का खेल नही। वैसे भी तुम क्या सोच रही हो कि सरकार ने चांद पर जाने के लिये मेरे राषन कार्ड पर मोहर लगा दी है और मैं सड़क से आटो लेकर अभी चांद पर चला जाऊगा। अब इसके बाद तुमने जरा सी भी ची-चुपड़ की तो तुम्हारी हड्डियां तोड़ दूंगा। वैसे एक बात बताओ कि आखिर तुम क्या चाहती हो कि सारी उम्र कोल्हू का बैल बन कर बस सिर्फ तुम्हारी सेवा में जुटा रहूं। तुम ने तो कसम खाई हुई है कि हम कभी भी कहीं न जायें बस कुएं के मैंढ़क की तरह सारा जीवन इसी धरती पर ही गुजार दें। 

बसन्ती के साथ नोंक-झोंक में चांद की सैर के सपने लिए न जाने कब वीरू नींद के आगोष में खो गया। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि उसने चांद पर जाने की सारी तैयारियां पूरी कर ली है। वीरू जैसे ही अपना सामान लेकर चांद की सैर के लिये निकलने लगा तो बंसन्ती ने पूछा कि अभी थोड़ी देर पहले ही चांद के मसले को लेकर हमारा इतना झगड़ा हुआ है और अब तुम यह सामान लेकर कहां जाने के चक्कर में हो? वीरू ने उससे कहा कि तुम तो हर समय खामख्वाह परेषान होती रहती हो, मैं तो सिर्फ कुछ दिनों के लिये चांद की सैर पर जा रहा हॅू। वो तो ठीक है लेकिन पहले यह बताओ कि जिस आदमी ने दिल्ली जैसे षहर में रहते हुए आज तक लालकिला और कुतबमीनार नही देखे उसे चांद पर जाने की क्या जरूरत आन पड़ी है? इससे पहले की वीरू बंसन्ती के सवालों को समझ कर कोई जवाब देता बंसन्ती ने एक और सवाल का तीर छोड़ते हुए कहा कि यह बताओ कि किस के साथ जा रहे हो। क्योंकि मैं तुम्हारे बारे में इतना तो जानती हॅू कि तुममें इतनी हिम्मत भी नही है कि अकेले रेलवे स्टेषन तक जा सको, ऐसे में चांद पर अकेले कैसे जाओगे? मुझे यह भी ठीक से बताओ कि वापिस कब आओगे?

बंसन्ती के इस तरह खोद-खोद कर सवाल पूछने पर वीरू का मन तो उसे खरी-खरी सुनाने को कर रहा था। इसी के साथ वीरू के दिल से यही आवाज उठ रही थी कि बंसन्ती को कहे कि ऐ जहर की पुढि़या अब और जहर उगलना बंद कर। परंतु बंसन्ती हाव-भाव को देख ऐसा लग रहा था कि बंसन्ती ने भी कसम खा रखी है कि वो चुप नही बैठेगी। दूसरी और चांद की सैर को लेकर वीरू के मन में इतने लड्डू फूट रहे थे कि उसने महौल को और खराब करने की बजाए अपनी जुबान पर लगाम लगाऐ रखने में ही भलाई समझी। वीरू जैसे ही सामान उठा कर चलने लगा तो बंसन्ती ने कहा कि सारी दुनियां धरती से ही चांद को देखती है तुम भी यही से देख लो, इतनी दूर जाकर क्या करोगे? अगर यहां से तुम्हें चांद ठीक से नही दिखे तो अपनी छत पर जाकर देख लो। बंसन्ती ने जब देखा कि उसके सवालों के सभी आक्रमण बेकार हो रहे है तो उसने आत्मसमर्पण करते हुए वीरू से कहा कि अगर चांद पर जा ही रहे हो तो वापिसी में बच्चो के वहां से कुछ खिलाने और मिठाईयां लेते आना। वीरू ने भी उसे अपनी और खींचते हुए कहा कि तुम अपने बारे में भी बता दो, तुम्हारे लिये क्या लेकर आऊ? बंसन्ती ने कहा जी मुझे तो कुछ नही चाहिये हां आजकल यहां आलू, प्याज बहुत मंहगे हो रहे है, घर के लिये थोड़ी सब्जी लेते आना। कुछ देर से अपने सवालों पर काबू रख कर बेैठी बंसन्ती ने वीरू से पूछा कि जाने से पहले इतना तो बताते जाओ कि यह चांद दिखने में कैसा होता है? अब तक वीरू बंसन्ती के सवालों से बहुत चिढ़ चुका था, उसने कहा कि बिल्कुल नर्क की तरह। क्यूं वहां से कुछ और लाना हो तो वो भी बता दो। बंसन्ती ने अपना हाथ खींचते हुए कहा कि फिर तो वहां से अपनी एक वीडियो बनवा लाना, बच्चे तुम्हें वहां देख कर बहुत खुष हो जायेगे। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि वो राकेट में बैठ कर चांद की सैर करने जा रहा है। रास्ते में राकेट के ड्राईवर से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि आज तो अमावस है, आज चांद पर जाने से क्या फायदा क्योंकि आज के दिन तो चांद छुªट्टी पर रहता है। 

इतने में गली से निकलते हुए अखबार वाले ने अखबार का बंडल बरामदे में सो रहे वीरू के मुंह पर फेंका तो उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे चांद से धक्का देकर नीचे धरती पर फैंक दिया हो। वीरू की इन हरकतों को देखकर तो कोई भी व्यक्ति यही कहेगा कि जो मूर्ख अपनी मूर्खता को जानता है, वह तो धीरे-धीरे सीख सकता है, परंतु जो मूर्ख खुद को सबसे अधिक बुद्विमान समझता हो, उसका रोग कोई नही ठीक कर सकता। वीरू के इस ख्वाब को देख जौली अंकल उसे यही सलाह देना चाहते है कि ख्वाब देखने पर हर किसी को पूरा अधिकार है। लेकिन यदि आपके कर्म अच्छे है और आप में एकाग्रता की कला है तो हर क्षेत्र में आपकी सफलता निष्चित है फिर चाहे वो चांद की सैर ही क्यूं न हो?

’’ चक्कर पे चक्कर ’’

बंसन्ती ने जब बार-बार खाना खाने के लिये मना किया तो उसकी मौसी ने डांटते हुए उससे खाना न खाने का कारण पूछा। बंसन्ती ने डरते हुए बताया कि उसे उल्टी के साथ चक्कर आ रहे है। मौसी ने पूछा कि तेरा पति तो तुझे कब से छोड़ कर जा चुका है, फिर अब यह कैसी उल्टी और कैसे चक्कर आ रहे है? बंसन्ती ने थोड़ा झिझकते हुए कहा मौसी वो बीच में कभी-कभी माफी मांगने आ जाते है बस उसी कारण से यह चक्कर आ रहे है। इतना सुनते ही मौसी को ऐसा लगा जैसे उसके सिर पर घड़ों पानी पड़ गया हो। इससे पहले की मौसी कुछ और कह पाती वो चक्कर खाने के साथ बेहोष होकर गिर पड़ी। कुछ देर जब मौसी को होष आया तो उसने कहा कि तेरा पति तो बहुत चलता-पुर्जा है ही तू भी चकमा देने में कम नही है। मेरे सामने तो हर समय उसकी बुराई करते नही थकती लेकिन मेरी पीठ पीछे झट से उसके साथ घी-खिचड़ी हो जाती है। तेरी इन्ही बेवकूफियों के कारण वो तुझे अपने चक्कर में फंसाने में कामयाब हो जाता है। यह सब कहते सुनते बंसन्ती का चेहरा फ़क पड़ता जा रहा था वही मौसी का चेहरा गुस्से में और अधिक तमतमाने लगा था।

वैसे तो चक्कर आने के अलग-अलग कारण और परिस्थितियां होती भी है। कभी सेहत की गड़बड़ी से, कभी दिल के लगाने से और कभी दिल के टूटने से। परंतु तेजी से बदलते जमाने में यदि मुहावरों पर गहराई से विचार किया जाये तो इन्हें देख कर भी कई लोगो को चक्कर आने लगते है। बहुत से ऐसे मुहावरे है जिन को बनाते समय लगता है, कि हमारे बर्जुगो ने बिल्कुल ध्यान नही दिया। सदियों पहले इनके क्या मायने थे यह तो हम नही जानते लेकिन आज के वक्त की पीढ़ी को इनका मतलब समझाते-समझाते सिर चक्कर खाने लगता है। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही लोकप्रिय मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर 50-100 ग्राम भी तेल गिर जाये तो राधा तो बेचारी फिसल कर गिर नही जायेगी। क्या मुहावरा बनाने वालों ने इतना भी नही सोचा कि नीचे गिरते ही राधा के हाथ पांव में प्लास्टर लगवाना पड़ेगा। वैसे भी जहां नाच गाने का कोई प्रोग्राम होता है, वहां तो साफ सफाई की जाती है न कि वहां तेल मंगवा कर गिराया जाता है। अब जहां इतना तेल होगा, वहां तो आदमी खड़ा भी नही हो सकता, नाचना गाना तो बहुत दूर की बात है। वैसे भी मंहगाई के इस दौर में नौ मन तेल लाना किस के बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है। महीने के षुरू में तो कुछ दिन तेल-घी वाली रोटी के दर्षन हो भी जाते है, लेकिन बाकी का सारा महीना तो सूखी रोटी से ही पेट भरना पड़ता है। तेल की बढ़ती हुई कीमतो को देख कर तो बड़े से बडा रईस भी आज अपने घर में नौ मन तेल नही ला सकता। वैसे भी मुहावरा बनाने वालो से यह पूछा जाये कि इतना तेल मंगवा कर क्या राधा को उसमें नहलाना है? लोगो को नहाने के लिए पानी तक तो ठीक से नसीब होता नही, यह राधा को तेल से नहलायेगे क्या? इस मुहावरे को  बनाने वालों ने यह भी नही बताया कि राधा को कौन सा तेल चाहिए? खाने वाला या गाड़ी में डालने वाला, सरसों का या नारियल का। क्या आज तक आपने कभी किसी को तेल पी कर नाचते देखा है। नाचने वालो को तो दारू के दो पैग मिल जाऐं बस वो ही काफी होते है। जिस आदमी ने जिंदगी में कभी डांस न किया हो, दारू के 2-4 पैग पीने के बाद तो वो भी डिस्को डांसर बन जाता है।

सिर्फ इंसानो के मुहावरे ही नही जानवरों के मुहावरे भी चक्कर देने में कम नही है। जी हंा यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। एक बात तो हमें यह नही समझ आती की आदमियों के मुहावरो में बिल्ली चूहे का क्या काम? खैर हमें उससे क्या लेना-देना जिस किसी ने भी यह मुहावरा बनाया होगा, कुछ सोच समझ कर ही बनाया होगा, या उसे चूहे बिल्लियों से बहुत प्यार रहा होगा। हम बात कर रहे है 900 चूहें खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नही खाया था। अगर उसने कोई चूहा नही खाया तो रास्ते में उसने क्या पीजा-बर्गर खाया था। मुहावरो बनाने वाले यह भी तो नही बताते कि बिल्लियां हज करने जाती कहां है? अजी छोड़ो इन बातो को हमें इससे क्या लेना है, बिल्ली जितने चूहे खाती है, खाने दो। वैसे यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 900 चूहें खाकर हज को चली गई, क्योकि एक आम आदमी की तो दो-चार नान खाने से ही जान निकलने लगती है।

यह क्या, अगले मुहावरे में तो और भी कमाल हो गया, इसमें तो किसी ने बेचारी भैंसो को ही घसीट लिया है, जी आपका अंदाजा बिल्कुल ठीक है। यह मुहावरा है भैंस के आगे बीन बजाना। यार अगर भैंस को कुछ सुनाना ही है, तो कोई तबला या कोई बढि़या सी गिटार पर धुन सुना दो। यदि यह नही बजा सकते तो कम से कम ढोल ही बजा दो। भैंस को कुछ मजा तो आये। भैंस बेचारी बीन सुन कर क्या करेगी? वैसे भी बीन तो सांप को खुष करने के लिये बजाई जाती है। अब छोटी सी बीन से भैंस को क्या मजा आयेगा? क्या कहा आपको तो अभी से ही चक्कर आने लगे है। अभी तो भैंस की और भी बहुत सारी बाते आपसे करनी है। भैंस का एक और बहुत ही महषूर मुहावरा है, लो गई भैंस पानी में। अब एक बात बताओ कि भैंस यदि पानी में नही जायेगी तो क्या बाथरूम में नहाने जायेगी। हम सभी को गर्मी लगती है, हम भी तो पानी के साथ ही नहाते है, अब अगर भैंस पानी में चली गई तो उस बेचारी ने क्या गुनाह कर दिया?

मुहावरे बनाने वाले विद्वान लोग भाशा को अधिक प्रभावी बनाने के लिये तथ्य ढूंढने का काम करते हेै न कि उनमे दोश ढूंढने का। भाशा से अनजान लोगों को हो सकता है कि मुहावरे सुनते ही चक्कर आते हो। जौली अंकल की राय तो यही है कि असल में मुहावरो का इस्तेमाल तो इसलिये किया जाता है ताकि किसी बात को साधारण तरीके से न कह कर विषेश अर्थो के साथ आसानी से व्यक्त किया जा सके ताकि पढ़ने सुनने वालों को चक्कर पे चक्कर न आयें।

शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

चूं-चूं का मुरब्बा


 चूं-चूं का मुरब्बा

बंसन्ती के घर उसकी षादी की तैयारियां जोर-षोर से चल रही थी। सभी लोग दौड़-भाग कर रहे थे कि बारात के आने से पहले सारे काम ठीक से निपट जायें। इतने में बसन्ती की सबसे करीबी सहेली उसके घर आर्इ और बंसन्ती से बोली कि अब तुम षादी करके ससुराल जा रही हो। लेकिन एक बात याद रखना कि औरत घर की लक्ष्मी होती है, षादी के बाद तुम भी अपने इस लक्ष्मी वाले रूतबे को कायम ही रहना। बंसन्ती ने उससे पूछ लिया कि यदि औरत लक्ष्मी होती है तो फिर पति क्या होता है? सहेली ने जवाब देते हुए कहा कि मेरा माथा तो पहले ही ठनक गया था कि तुम दिखने में जितनी होषियार लगती हो, असल में उतनी है नही। बलिक तुम तो बिल्कुल मिêी की माधो ही हो, जो इतना भी नही जानती कि पति लक्ष्मी का वाहन होता है। बंसन्ती ने कहा कि मैं कुछ समझी नही। उसकी सहेली ने कहा कि तू भी कमाल करती है, सारी दुनियां जानती है कि लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है और यह बात अच्छे से पल्ले बांध कर ससुराल जाना कि पति उल्लू से बढ़ कर कुछ नही होता।

यह पति नाम के प्राणी षादी से पहले तो लड़कियों के पीछे गलियों में मारे-मारे फिरते है परंतु षादी होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेते है। जब तक अपने पतियों को ठीक से काबू में न रखा जाये तो यह हर दिन कोर्इ न कोर्इ नया गुल खिलाने को तैयार रहते है। खुद तो सारा दिन दोस्तो के साथ गुलछर्रे उड़ाते रहेगे और घर आते ही बिना किसी बात पर सारा गुस्सा बीवियों पर निकालने लगते हैं। बंसन्ती ने कहा कि इस मामले में तो तुम बहुत नसीब वाली हो। तुम्हारे पति को जब भी देख लो उनका मुंह तो हर समय लटका रहता है। दूर से देखने में तो बिल्कुल ऐसे लगते है जैसे कि उनके मुंह में जुबान है ही नही। सहेली ने कहा मेरी बात छोड़ मेरे पति तो बहुत ही कायर किस्म के है। बंसन्ती ने कहा कि मुझे तो वो बेचारे कायर कम और सहमे से चूहे की तरह अधिक दिखार्इ देते है। बंसन्ती की सहेली ने कहा कि मेरे सामने चूहे का नाम मत ले। अगर मेरे पति चूहे कि तरह होते तो मै तो उनसे डर कर थर-थर कांप रही होती क्योंकि चुहों को देखते ही मैं बहुत भयभीत हो जाती हू। अब मेरी बात छोड़ और ससुराल में पहले दिन ही पति का मुरब्बा बनाने के लिये तैयारी करनी सीख ले। यदि तूने षुरू में थोड़ी ढ़ील दे दी तो फिर तेरा वोहि हाल होगा कि जैसे मुर्गी बेचारी की जान चली जाती है और खाने वाले कह देते हे कि आज खाने में स्वाद नही आया।

बंसन्ती ने कहा कि मैने 36 प्रकार के अचार मुरब्बों के बारे में सुना है। मैं यह भी जानती हू कि यह सारे बहुत गुणकारी होते है, लेकिन पति के मुरब्बे के बारे में तो आज तक किसी ने कुछ नही बताया कि ऐसा भी कोर्इ मुरब्बा होता है? बंसन्ती की सहेली ने उसे धीरे से बताते हुए कहा कि जिस तरह इंसान सदियों से हर तरह के मुरब्बों का उपयोग करता आ रहा है, ठीक उसी तरह समझदार औरते पति को चूं-चू का मुरब्बा बना कर रखती है। मेरा तो बस नही चलता वरना मैं तो पतियों के इस चंू-चूं वाले मुरब्बे की विधि का विस्तार और प्रचार विष्वस्तर पर करके सभी औरतो का जीवन सुखी बना दूं। इतना कहते-कहते जैसे ही बंसन्ती की सहेली की नजर पीछे खड़ी बंसन्ती की मां की और गर्इ तो वो उन्हें देख कर थोड़ा सा झेंप गर्इ।

बंसन्ती की मां ने उसकी सहेली के कधें पर हाथ रखते हुए कहा कि बेटी मैने तुम्हारी सारी बाते सुन ली है। मैं यह भी मानती हू कि मैं तुम्हारी तरह अधिक पढ़ी-लिखी तो है नही और न ही आज के जमानें के दस्तूर को जानती हू। परंतु दुनियां के हर प्रकार के उतार-चढ़ाव जीवन में अच्छे से देख चुकी हू। घर के बजर्ुगो द्वारा दी हुर्इ षिक्षा और ज्ञान से तो इतना ही सीखा है कि गृहस्थ की गाड़ी को चलाने के लिए अपने-अपने हिस्से के कर्म समय पर करना ही हर पति-पत्नी का कत्र्तव्य होना चाहिये। पति-पत्नी अपने सच्चे प्यार के साहरे ही हर प्रकार की परिसिथतियों को झेलते हुए जीवन को हंसते-हंसते बिता सकते है। बेटी इतना तो तुमने भी जरूर पढ़ा होगा कि केवल अपनी प्रषंसा का ब्खान करने वालों को कभी भी यष नही मिलता, वे केवल उपहास का पात्र बनते है। जबकि पति-पत्नी का सच्चा प्रेम न तो कभी किसी को कश्ट देता है और न ही यह कभी नश्ट होता है। जब दोनो प्राणी एक दूसरे को खुषी देते है और सामने वाला खुषी से खुषी को स्वीकार कर लेता है तो दोनो ही महान बन जाते है। जिस व्यकित के कर्म अच्छे होते है वो दूसरे इंसान को तो क्या अपनी किस्मत को भी अपनी दासी बना सकता है। इतना सब कुछ सुनते ही बंसन्ती की सहेली फबक कर रो पड़ी। बंसन्ती की मां के गले लगते हुए उसने कहा कि मैं तो आजतक यही समझती रही कि पति को सदा अगूठें के नीचे दबा कर रखने से ही औरत सुखी रह सकती है।

वैसे तो मुरब्बो के सेवन और बजर्ुगो की बात का असर कुछ समय के बाद ही दिखार्इ देता है, परंतु इन सभी लोगो की रस भरी बातचीत सुनने के बाद यह तो एकदम साफ हो गया है कि आचरण रहित विचार चाहे कितने भी अच्छे क्यूं न हो वो खोटे सिक्के की तरह ही होते है। वैवाहिक जीवन में सुख और दुख की बात की जाएं तो किसी भी सदस्य को कश्ट देना दुख से कम नही और दूसरों को खुषी देना ही सबसे बड़ा सुख और पुण्य होता है। मुरब्बों के बारे में इतनी मीठी बाते करने के बाद जौली अंकल के मन में ठंडक के साथ दिमाग भी चुस्त होते हुए यह सोचने लगा है दूसरों के साथ सदा वही व्यवहार करो जो आप दूसरों से चाहते हो। इसके बाद फालतू की बातो को सोच कर आपको कभी भी अपनी हुकूमत की षकित दिखाने के लिये चूं-चूं का मुरब्बा बनाने की जरूरत नही पड़ेगी।
                                                                                                                        जौली अंकल

बुधवार, 7 सितंबर 2011

’’ ज़मीर की आवाज ’’


                                                                       

दूध के पतीले को देखते ही मिश्रा जी की पत्नी ने अंगारे उगलते हुए कहा कि मैं कई दिन से कह रही हॅू कि यह हमारा दूध वाला रोज दूध में पानी डाल कर दे जाता है। परंतु आप भी पता नही किस मिट्टी से बने हुए हो कि रोज मेरा इतना चीखने चिल्लाने के बावजूद भी आपके कान पर जूं तक नही रेंगती। पत्नी का इतना षोर सुनने के बाद मिश्रा जी ने अगले ही पल उस दूध वाले को सबक सिखाने के लिये कमर कस ली। अपनी पत्नी को दिलासा देते हुए बोले कि मैं आज उस बदमाष की अक्कल ठिकाने लगा कर ही रहूंगा। कुछ ही देर बाद मिश्रा जी दूध वाले को दूध में मिलावट करने का आरोपी ठहराते हुए उसे खरी-खरी सुना रहे थे। मिश्रा जी उस दूध वाले को बुरा-भला कहने के साथ कह रहे थे कि मुझे लगता है चंद पैसो के लालच में तुमने अपनी इज्जत तो बेच ही दी है साथ ही तुम्हारा ज़मीर भी मर गया है।

दूध वाले ने कहा कि आपको कैसे मालूम कि मेरा ज़मीर मर चुका है। मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हारी यह बेषर्मी वाली हरकतें ही साफ ब्यां कर रही है कि तुम्हारा ज़मीर मर चुका है। दूध वाले ने हैरान होते हुए कहा कि साहब जी आप तो आज पहली बार मेरी डैयरी पर आए हो और आप मेरे ज़मीर के बारे में सब कुछ कैसे जानते हो? मिश्रा जी ने पूछा कि तुम किस ज़मीर की बात कर रहे हो? दूध वाले ने कहा कि मेरी भैंस के बछड़े का नाम ज़मीर था और वो बेचारा पिछले हफ्ते ही मर गया था। मिश्रा जी को कुछ समझ नही आ रहा था कि यह दूध वाला सच में इतना भोला है कि इसे ज़मीर के बारे में कुछ मालूम नही या यह मुझे ही बेवकूफ बना रहा है। मिश्रा जी ने दूध वाले के मन को टटोलते हुए कहा कि जो लोग चेहरे पर नकली मुखोटे लगा कर अपनी असलियत को छिपाते है उन लोगो के बारे में यह कहा जाता है कि इनका ज़मीर मर गया है।

दूध वाले ने कहा कि मैं तो जैसा हॅू वैसा ही आपके सामने खड़ा हॅू मैने तो अपने चेहरे पर कोइ्र्र मुखोटा नही लगाया हुआ फिर आप यह सब कुछ मुझे क्यूं समझा रहे हो? मिश्रा जी ने उसे डांटने की बजाए प्यार से बात करते हुए कहा कि असल में मेरा कहने का मतलब यह है कि कुछ लोग पैसा कमाने के लालच में अपने ईमान को बेच देते है। मैने यह सब कुछ तुम्हें इस लिये कहा क्योकि कई दिन से मेरी पत्नी षिकायत कर रही है कि तुम दूध में पानी मिला कर लाते हो। दूध वाले ने झट से कसम खाते हुए कहा साहब जी मुझे आपकी कसम, मैने आज तक दूध में कभी पानी नही मिलाया। मिश्रा जी ने उससे कहा कि इतना तो मैं भी जानता हॅू कि जितने भोले तुम दिखते हो असल में इतने भोले तुम हो नही। अगर तुम दूध में पानी नही मिलाते तो फिर मेरी पत्नी कुछ दिनों से दूध पतला होने की षिकायत क्यू कर रही है? देखो भाई, भूल और गलती किसी से भी हो सकती है, अगर तुमने ऐसा कुछ किया है तो मुझे सब कुछ सच-सच बता दो। एक बार तुम यदि सब कुछ सच कह दोगे तो तुम्हारा ज़मीर मरने से बच जायेगा। दूध वाले ने फिर से ज़मीर का जिक्र आते ही पूछा कि साहब जी पहले तो ठीक से यह बताओ कि आप कौन से ज़़मीर की बात कर रहे हो, क्योंकि मैं तो किसी और ज़मीर को जानता ही नही।

मिश्रा जी ने उसकी नादानी को भांपने के बाद उसे सलाह देते हुए कहा कि कुछ लोग अधिक से अधिक पैसा कमाने और सुख पाने की चाह में अपने मन की आवाज को अनसुना करते हुए हताष एवं निराष होकर जब कोई गलत काम करने लगते है। ऐसे में हमारी आत्मा हमें उसके लिये झिझोड़ती है। उस आत्मा की सकारत्मक आवाज को ही ज़मीर कहते है। अब दूध वाले को सारा किस्सा समझ आ गया था। मिश्रा जी के बात करने के तरीके से वो इतना प्रभावित हुआ कि उसने बिना देरी किये यह स्वीकार कर लिया कि वो दूध में पानी नही बल्कि पानी में दूध मिलाता हैं दूध वाले ने यह भी कबूल कर लिया कि जब भी वो यह सब कुछ करता हेै तो उसके मन से जरूर एक आवाज उठती थी कि तुम यह गलत कर रहे हो। लेकिन घर-परिवार की बढ़ती जरूरतों ने मुझे यह सब कुछ करने पर मजबूर कर दिया था। मिश्रा जी ने जब दूध वाले से उसकी मजबूरी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि कुछ मुफ्तखोर दोस्त और रिष्तेदार ऐसे पल्ले पड़े हुए है कि आऐ दिन उनको खुष करने के लिये मुझे काफी खर्चा करना पड़ता है। उन से पिंण्ड छुड़ाने के लिये चाहे उन्हें कुछ भी कहते रहो, लेकिन वो पीछा छोड़ते ही नही।

अब तक मिश्रा जी को दूध वाले की सारी मंषा ठीक से समझ आ चुकी थी। उन्होने उससे कहा कि तुम जिन लोगो के बारे में बता रहे हो, ऐसे लोगो का ज़मीर कभी नही जागता बल्कि इस तरह के लोग तो समझाने पर और अधिक दांत फाड़ कर बेषर्मी पर उतर आते है। ऐसा महसूस होता है कि आजकल लोगो ने अपनी इज्ज़त, सम्मान सब कुछ भूल कर अपने ज़मीर को बाजार में नीलाम कर दिया है। मिश्रा जी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि जिंदगी के रिष्तों को निभाने के लिये कई बार हमारे लिये मन के विपरीत जाना भी जरूरी हो जाता है। हमारे जीवन में बहुत से ऐसे काम होते है जो हमें अच्छे नही लगते परंतु हमें उनको करना पड़ता है। कई दोस्त और रिष्तेदार ऐसे होते जो हमें अच्छे नही लगते लेकिन हर हाल में हमें उनके साथ रहना पड़ता है। लेकिन तुम एक बात अपने पल्ले बांध लो कि जो कोई अपने ज़मीर की आवाज सुन कर भलाई की डगर पर चलने का प्रयास करते है उनके दुख और कश्ट खुद-ब-खुद दूर होने लगते है। उनकी यही सोच उनके जीवन से अधियारों को मिटा कर उज़ालो में तबदील कर देते है। जब आप दूसरों के दुखों को कम करने के लिये कदम उठाते हो तो आपके दुख ओर परेषानियां अपने आप ही कम होनी षुरू हो जाती है।

इस बात से कोई इंकार नही कर सकता कि कुछ भी गलत काम करने से पहले एक बार तो हर किसी का ज़मीर उसको झिझोड़ता ही है। वो बात अलग है कि कुछ लोग अपने फायदे के लिये इधर उधर की दलीलें देकर सच को झुठलाने की नाकाम कोषिष करते है, प्रभु ऐसे लोगो को यह अक्कल दे कि सच हमेषा सच ही होता है। सच कभी भी, किसी भी हालात में नही बदलता। जो कोई सदा ही अपने ज़मीर की बात मान कर चलते है उनका सारा जीवन सुख में ही व्यतीत होता है। मिश्रा जी के प्रवचन सुनने के बाद जौली अंकल प्रभु से यही प्रार्थना करते है कि हमें इतना ज्ञान और षक्ति देना कि हम कोई भी ऐसा गलत काम न करे जिसमें हमारा ज़मीर हमारे ही हक में आवाज न दें सके।

’’ खानापूर्ति ’’


                                                                          ’’ खानापूर्ति ’’

मसुद्वी लाल जी घर का कुछ जरूरी समान लेने के लिए बाजार की और निकले ही थे कि रास्ते में उन्हें मालूम पड़ा कि पड़ोस में रहने वाली मौसी का देहान्त हो गया है। वैसे तो मसुद्वी लाल को मुहल्ले की यह चुगलखोर नाम से महषूर मौसी एक आंख भी न भाती थी लेकिन आज अब दिखावे के लिए ऊपरी मन से खानापूर्ति करने के लिए बाजार का रास्ता छोड़ कर सीधा मौसी के घर उसकी मौत पर अफसोस करने जा पहुंचे। सिर्फ मसुद्वी लाल ही नही मुहल्ले के सभी लोग मौसी को देखते ही कतराकर निकलने में अपनी भलाई समझते थे। हर कोई जानता था कि अगर एक बार मौसी के पास नमस्ते करने के लिये भी रूक गये तो फिर मौसी उसे तब तक नही छोड़ेगी जब तक वो सारे मुहल्ले की खबरों को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर न सुना ले।

मौसी के घर में घुसते ही वहां बैठे सभी लोगो के बीच मसुद्वी लाल जी ने लीपापोती करने की मंषा से अपना चेहरा ऐसे लटका लिया जैसे मौसी के जाने का सबसे अधिक दुख उन्हीं को ही हो। सभी लोग एक दूसरे से कुछ न कुछ मौसी की अच्छाईयों के बारे में बातचीत कर रहे थे। परंतु मसुद्वी लाल जी किसी बात पर ध्यान देने की बजाए उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाले जा रहे थे। चंद क्षण किसी तरह चुप बैठने के बाद मसु़द्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछा कि सुबह तक तो ठीक ठाक थी फिर यह सब कुछ अचानक क्या हो गया मौसी जी को? इससे पहले कि मौसी का बेटा उनकी मौत के बारे में कुछ बताता मसुद्वी लाल जी ने कहा कि जरा पानी तो मंगवा दो, बहुत गर्मी लग रही है। जैसे ही एक लड़का इनके लिये पानी का गिलास लेकर आया तो उसे देखते ही बोले कि यह तो बहुत गर्म है, घर में बर्फ वगैरहा नही है क्या? थोड़ी बर्फ ही मंगवा लेते। पंखा भी नही चलाया आप लोगो ने, कम से कम पंखा तो चला देते। सभी लोग मसुद्वी लाल की और ढेड़ी नजरों से देखने लगे कि यह इस तरह के दुखद मौके पर भी कैसी अजीब बाते कर रहे है।

मसुद्वी लाल जी फिर मौसी के बेटे से बोले कि तुमने बताया नही कि क्या हुआ था मौसी जी को? उनके बेटे ने कहना षुरू किया कि बस ऐसे ही घर में चल फिर रही थी कि। मसुद्वी लाल ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा क्यूं कुछ घर का काम काज नही करती थी। बेटे ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि नही मेरा मतलब यह नही था, दिन में खाना खाया और सो गई थी। मसुद्वी लाल जी ने कहा क्यूं खाना खाते-खाते ही सो गई थी क्या? बेटे ने बात साफ करते हुए कहा नही जी थोड़ी देर बाद सोई थी। मसुद्वी लाल जी ने उसे टोकते हुए कहा बेटा ठीक से सारी बात बताओ न, तुम तो मुझे भी खामख्वाह कन्फूज कर रहे हो। इसी के साथ मसुद्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछ लिया कि तुम्हारे पिता जी दिखाई्र नही दे रहे, वो कही गये हुए है? मौसी के बेटे ने बताया कि पिता जी को तो हार्ट-अटैक आया था वो तो पिछले 15-20 दिन से अस्पताल में दाखिल है।

मसुद्वी लाल जी ने हैरान-परेषान होते हुए कहा कि आप भी कमाल करते हो, मुझे आज तक किसी ने बताया ही नही, कम से कम मैं एक बार उनसे मिल तो आता। चलो अब उनको अफसोस करने अस्पताल तो जाना ही पड़ेगा, साथ ही उनका हाल भी पूछ आऊगा। इसी के साथ मसुद्वी जी बोले कि देखो जी जिसे हार्ट-अटैक से मरना था वो तो अस्पताल में बैठा अपना इलाज करवा रहा है और जो ठीक-ठाक थी वो हम सब को छोड़ कर चली गई। वैसे मेरा तुम्हारी मां से बहुत प्यार था, पूरे मुहल्ले में नंबर वन थी तुम्हारी मां। तुम्हारी मां के बिना मेरा दिल नही लगना इस मुहल्ले में। मौसी के बेटे ने जैसे ही घूर कर देखा तो मसुद्वी लाल जी ने पासा पलटते हुए कहा कि मुझे तो वो अपना छोटा भाई मानती थी, बहुत प्यार करती थी मुझें। महौल को बिगड़ता देख मुसद्वी लाल ने सभी को हाथ जोड़ कर वहां से खिसकना ही उचित समझा। जाते-जाते घरवालों से पूछने लगे कि अब इस मुर्दे को कितने बजे घर से निकालना है, मैं फिर उसी समय आ जाऊगा।

मुसद्वी लाल के जाते ही वहां बैठे लोगो में कुछ बोलने लगे कि इनके अपने घर में तो कोई इनकी बात तक नही पूछता और दूसरों के यहां आकर यह बाल की खाल निकालने से बाज नही आते। मुसद्वी जी तो बिना सोचे विचारे ऐसे बोले जा रहे थे जैसे कोई पागल बिना लक्ष्य के गोली चलाता हो। इन सज्जन की बात सुनते ही मौसी के बेटे ने इषारे से चुप करवाते हुए कहा कि इसी लिये हमारे बर्जुग कहते है कि जिंदगी में रिष्ते निभाना उतना ही मुष्किल होता है जितना हाथ में लिए हुए पानी को गिरने से बचाना। इससे भी बड़ा सच तो यह है कि हर इंसान जिंदगी भर दो चेहरे नही भूल पाता एक जो मुष्किल समय में आपका साथ देते है और दूसरा जो मुष्किल समय में आपका साथ छोड़ जाते है। जौली अंकल सभी लोगो के रंग-ढंग पहचानाने की कोषिष में इतना ही जान पायें है कि एक दूसरे के बारे में बाते करने की बजाए यदि हम एक दूसरे से ढंग से बात करें तो बहुत हद तक हमारी आपसी परेषनियां तो खत्म होगी ही वही खानापूर्ति जैसे समाजिक ढ़ोंग से भी छुटकारा मिल पायेगा।

                                                                                                                                  ’’जौली अंकल’’

बुधवार, 17 अगस्त 2011

’’ चूं-चूं का मुरब्बा ’’


                                                                        ’’ चूं-चूं का मुरब्बा ’’                                           

बंसन्ती के घर उसकी षादी की तैयारियां जोर-षोर से चल रही थी। सभी लोग दौड़-भाग कर रहे थे कि बारात के आने से पहले सारे काम ठीक से निपट जायें। इतने में बसन्ती की सबसे करीबी सहेली उसके घर आई और बंसन्ती से बोली कि अब तुम षादी करके ससुराल जा रही हो। लेकिन एक बात याद रखना कि औरत घर की लक्ष्मी होती है, षादी के बाद तुम भी अपने इस लक्ष्मी वाले रूतबे को कायम ही रहना। बंसन्ती ने उससे पूछ लिया कि यदि औरत लक्ष्मी होती है तो फिर पति क्या होता है? सहेली ने जवाब देते हुए कहा कि मेरा माथा तो पहले ही ठनक गया था कि तुम दिखने में जितनी होषियार लगती हो, असल में उतनी है नही। बल्कि तुम तो बिल्कुल मिट्टी की माधो ही हो, जो इतना भी नही जानती कि पति लक्ष्मी का वाहन होता है। बंसन्ती ने कहा कि मैं कुछ समझी नही। उसकी सहेली ने कहा कि तू भी कमाल करती है, सारी दुनियां जानती है कि लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है और यह बात अच्छे से पल्ले बांध कर ससुराल जाना कि पति उल्लू से बढ़ कर कुछ नही होता।

यह पति नाम के प्राणी षादी से पहले तो लड़कियों के पीछे गलियों में मारे-मारे फिरते है परंतु षादी होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेते है। जब तक अपने पतियों को ठीक से काबू में न रखा जाये तो यह हर दिन कोई न कोई नया गुल खिलाने को तैयार रहते है। खुद तो सारा दिन दोस्तो के साथ गुलछर्रे उड़ाते रहेगे और घर आते ही बिना किसी बात पर सारा गुस्सा बीवियों पर निकालने लगते हैं। बंसन्ती ने कहा कि इस मामले में तो तुम बहुत नसीब वाली हो। तुम्हारे पति को जब भी देख लो उनका मुंह तो हर समय लटका रहता है। दूर से देखने में तो बिल्कुल ऐसे लगते है जैसे कि उनके मुंह में जुबान है ही नही। सहेली ने कहा मेरी बात छोड़ मेरे पति तो बहुत ही कायर किस्म के है। बंसन्ती ने कहा कि मुझे तो वो बेचारे कायर कम और सहमे से चूहे की तरह अधिक दिखाई देते है। बंसन्ती की सहेली ने कहा कि मेरे सामने चूहे का नाम मत ले। अगर मेरे पति चूहे कि तरह होते तो मै तो उनसे डर कर थर-थर कांप रही होती क्योंकि चुहों को देखते ही मैं बहुत भयभीत हो जाती हॅू। अब मेरी बात छोड़ और ससुराल में पहले दिन ही पति का मुरब्बा बनाने के लिये तैयारी करनी सीख ले। यदि तूने षुरू में थोड़ी ढ़ील दे दी तो फिर तेरा वोहि हाल होगा कि जैसे मुर्गी बेचारी की जान चली जाती है और खाने वाले कह देते हे कि आज खाने में स्वाद नही आया।

बंसन्ती ने कहा कि मैने 36 प्रकार के अचार मुरब्बों के बारे में सुना है। मैं यह भी जानती हॅू कि यह सारे बहुत गुणकारी होते है, लेकिन पति के मुरब्बे के बारे में तो आज तक किसी ने कुछ नही बताया कि ऐसा भी कोई मुरब्बा होता है? बंसन्ती की सहेली ने उसे धीरे से बताते हुए कहा कि जिस तरह इंसान सदियों से हर तरह के मुरब्बों का उपयोग करता आ रहा है, ठीक उसी तरह समझदार औरते पति को चूं-चू का मुरब्बा बना कर रखती है। मेरा तो बस नही चलता वरना मैं तो पतियों के इस चंू-चूं वाले मुरब्बे की विधि का विस्तार और प्रचार विष्वस्तर पर करके सभी औरतो का जीवन सुखी बना दूं। इतना कहते-कहते जैसे ही बंसन्ती की सहेली की नजर पीछे खड़ी बंसन्ती की मां की और गई तो वो उन्हें देख कर थोड़ा सा झेंप गई।

बंसन्ती की मां ने उसकी सहेली के कधें पर हाथ रखते हुए कहा कि बेटी मैने तुम्हारी सारी बाते सुन ली है। मैं यह भी मानती हॅू कि मैं तुम्हारी तरह अधिक पढ़ी-लिखी तो है नही और न ही आज के जमानें के दस्तूर को जानती हॅू। परंतु दुनियां के हर प्रकार के उतार-चढ़ाव जीवन में अच्छे से देख चुकी हॅू। घर के बर्जुगो द्वारा दी हुई षिक्षा और ज्ञान से तो इतना ही सीखा है कि गृहस्थ की गाड़ी को चलाने के लिए अपने-अपने हिस्से के कर्म समय पर करना ही हर पति-पत्नी का कत्र्तव्य होना चाहिये। पति-पत्नी अपने सच्चे प्यार के साहरे ही हर प्रकार की परिस्थितियों को झेलते हुए जीवन को हंसते-हंसते बिता सकते है। बेटी इतना तो तुमने भी जरूर पढ़ा होगा कि केवल अपनी प्रषंसा का ब्खान करने वालों को कभी भी यष नही मिलता, वे केवल उपहास का पात्र बनते है। जबकि पति-पत्नी का सच्चा प्रेम न तो कभी किसी को कश्ट देता है और न ही यह कभी नश्ट होता है। जब दोनो प्राणी एक दूसरे को खुषी देते है और सामने वाला खुषी से खुषी को स्वीकार कर लेता है तो दोनो ही महान बन जाते है। जिस व्यक्ति के कर्म अच्छे होते है वो दूसरे इंसान को तो क्या अपनी किस्मत को भी अपनी दासी बना सकता है। इतना सब कुछ सुनते ही बंसन्ती की सहेली फबक कर रो पड़ी। बंसन्ती की मां के गले लगते हुए उसने कहा कि मैं तो आजतक यही समझती रही कि पति को सदा अगूठें के नीचे दबा कर रखने से ही औरत सुखी रह सकती है।

वैसे तो मुरब्बो के सेवन और बर्जुगो की बात का असर कुछ समय के बाद ही दिखाई देता है, परंतु इन सभी लोगो की रस भरी बातचीत सुनने के बाद यह तो एकदम साफ हो गया है कि आचरण रहित विचार चाहे कितने भी अच्छे क्यूं न हो वो खोटे सिक्के की तरह ही होते है। वैवाहिक जीवन में सुख और दुख की बात की जाएं तो किसी भी सदस्य को कश्ट देना दुख से कम नही और दूसरों को खुषी देना ही सबसे बड़ा सुख और पुण्य होता है। मुरब्बों के बारे में इतनी मीठी बाते करने के बाद जौली अंकल के मन में ठंडक के साथ दिमाग भी चुस्त होते हुए यह सोचने लगा है दूसरों के साथ सदा वही व्यवहार करो जो आप दूसरों से चाहते हो। इसके बाद फालतू की बातो को सोच कर आपको कभी भी अपनी हुकूमत की षक्ति दिखाने के लिये चूं-चूं का मुरब्बा बनाने की जरूरत नही पड़ेगी।
                                                                                                                             ’’ जौली अंकल ’’

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

प्यार की ताकत - सास बहु की रोचक कहानी


                                                              ’’ प्यार  की  ताकत ’’

जीवन में हर प्रकार के दुनियावी रिश्तो में कुछ न कुछ नोंक-झोंक तो चलती ही रहती है, लेकिन सास-बहूॅ का एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें कोई भी आज तक शायद एक दूसरे को खुष नही कर सका। सदियों पुरानी एक महषूर कहावत है, कि सास को अगर सोने का भी बना दिया जाए तो भी बहूॅ उस में कुछ न कुछ कमी निकाल ही देती है। यही हाल सास का होता है, वो भी हर गुणवती बहूं में हजारांे कमियॉ पल भर में गिना देती है। जिस दिन से बंसन्ती का विवाह हुआ था, उसी दिन से उसकी अपनी सास से किसी न किसी बात को लेकर खट-पट जारी थी। क्योंकि दोनो की सोच और स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क था।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था, हर दिन बसंन्ती की अपनी सास को लेकर परेषानियॉ बढ़ती ही जा रही थी। एक-एक दिन अपनी सास के साथ गुजारना मुषकिल होता जा रहा था। किसी न किसी बात को लेकर दोनों में हर समय तलवारे तनी ही रहती थी। इन सब बातो के ऊपर बंसन्ती का पति वीरू जो अपनी मां के बहुत ही करीब और परिवारिक संस्कारो को मानता था, वो हर बार बंसन्ती को अपनी मां से माफी मांगने के लिये दवाब बनाता रहता था। ऐसे में बंसन्ती के पास सिवाए खून का घूंट पीने के इलावा कोई चारा नही होता। एक दिन बंसन्ती ने मन ही मन यह कसम खाई कि वो अब किसी भी हालात में अपनी सास के खूंखार और तानाशही रवैये को बर्दाशत नही करेगी। वो अपनी सास से हमेषा-हमेषा के लिये पीछा छुड़ाने के लिये सोचने लगी। इसी उधेड़-बुन में उसकी नजर अखबार में एक विज्ञापन पर पड़ी, जिसमें एक टोने-टोटके वाले बाबा ने चंद दिनों में हर दुख तकलीफ से छुटकारा पाने, सभी समस्याओं का समाधान और मन चाही इच्छा षक्Ÿिा को गारंटी के साथ प्राप्त करने का दावा किया था।

बंसन्ती जल्दी से घर का काम निपटा कर उसी बाबा को मिलने उनके डेरे पर जा पहंुची। वहां जाते ही उसने बिना किसी हिचकिचाहट के बाबा को अपना सारा दुखड़ा सुनाया। बंसन्ती ने दुखी होते हुए कहा, कि अब मैं एक पल भी अपनी सास के साथ नही निभा सकती। रोते-रोते उसने बाबा से हर हालात में अपनी सास से छुटकारा पाने के लिये, यहां तक कि उसको मारने की बात तक कह डाली। अब चाहे मुझे उसके लिये अपनी सास को जहर ही क्यूं न देना पड़े? बाबा ने बात की गम्भीरता को समझते हुए बंसन्ती को समझाया कि ऐसा कुछ भी करने से वो खुद एक बहुत बड़ी मसुीबत में फंस सकती है। सास के मरते ही पुलिस और बिरादरी का सारा शक तुम पर आ जायेगा, और फिर तुम्हें सजा से कोई भी नही बचा सकता। इसके लिये तुम्हें थोड़े धैर्य से काम लेने की जरूरत है। बंसन्ती ने कहा, आप ही मुझे कोई राह दिखाईये, मैं हर हाल में कुछ भी करने को तैयार हॅू,, बस एक बार यह बता दो कि आखिर मुझे इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिये क्या करना होगा?

बाबा ने बंसन्ती को समझाना शुरू किया कि तुम्हें यह काम प्यार, तस्सली और बहुत ही चौकस होकर करना होगा। मैं तुम्हें कुछ जहरीली जड़ी-बूटीयॉ देता हॅू,। तुम्हें सिर्फ इतना करना है, कि हर दिन अपने हाथ से कोई न कोई सासू मां की पंसद का बढ़ियॉ और स्वादिश्ट खाना बना कर उसमें इन्हें मिला कर अपनी सास को खिलाना होगा। इससे तुम्हारी सास के शरीर में धीरे-धीरे जहर फैलने लगेगा। कुछ ही महीनों में वो अपने आप मर जायेगी। लेकिन यहां एक बात का ध्यान रखना कि इस दौरान तुम कभी भी अपनी सास से झगड़ा नही करना, हर समय उससे प्यार से ही पेष आना है नही तो उसके मरते ही बिरादरी की नजर में तुम शक के घेरे में आ जाओगी। बंसन्ती खुषी-खुषी सभी जड़ी-बूटियों को संभाल कर घर ले आई और अगले दिन से ही बाबा की आज्ञा के मुताबिक बढ़ियॉ से बढ़ियां खाने बना कर अपनी सास को खिलाने लगी। उसने अपने व्यवहार में न चाहते हुए भी काफी बदलाव कर दिया और अपनी सास से हर बात बहुत ही प्यार से करने लगी। बाबा की बात को ध्यान में रखते हुए उसने अपने गुस्से कर पर भी पूरी तरह से काबू रखना सीख लिया। अब अपनी सास को हर समय मां जी या यूं कहें की एक महारानी की तरह समझने लगी थी। यह सब देख सास का मन भी धीरे-धीरे बदलने लगा। उसने भी अपनी बहू को बुरा भला कहना छोड़ कर उसे अपनी बेटियों की तरह प्यार करने लगी। अब अगर थोड़ी देर के लिये भी उसे अपनी बहॅू नजर नही आती तो वो उसके लिये परेषान हो उठती।

कुछ महीनों तक यह सब कुछ इसी तरह से चलता रहा। इस दौरान दोनों में झगड़ा तो दूर कभी उंची आवाज में भी कोई बात नही हुई। एक दिन बंसन्ती की सास अचानक बहुत बीमार हो गई, उसे लगा कि जहर ने अपना काम करना षुरू कर दिया है, लेकिन अब तक बंसती का मन बदल चुका था और वो सास से बहुत प्यार करने लगी थी, कि वो अन्दर ही अन्दर अपनी आत्मा को कोसनें लगी, कि इतनी नेक औरत के साथ मैने यह सब कुछ क्यों किया? खुद को दोश देते हुए बोली कि असल में गलती तो मेरी ही थी। इस दौरान जो कोई भी उसकी सास का बीमारी के दौरान हाल-चाल पूछने आतेे, तो सासू मां बसंन्ती की सच्चे मन से तारीफ करती और बार-बार एक ही बात कहती कि षायद आज अगर मेरी अपनी बेटी भी होती तो वो भी मेरी इतनी सेवा नही कर पाती, जितनी मेरी बहूं ने मेरे लिये अपनी जान लगाई हुई है।

बंसन्ती ने अपने पति वीरू को अपनी गलती तो नही बताई लेकिन अपनी सास को हर हाल में बचाने के लिये आग्रह करने लगी। वीरू भी अपनी पत्नी और मां के इस नये व्यवहार से बहुत हैरान था। इसी दौरान बंसन्ती बिना अपने पति को बताए फिर से उसी बाबा के पास जा पहंुची, और उन्हें सारा किस्सा सुना डाला। बंसन्ती ने रोते हुऐ कहा, कि अब मैं अपनी सास से बहुत प्यार करती हॅू, आप उन्हे किसी भी हाल में बचा लो। बाबा ने ढ़ढास बधाते हुऐ बंसन्ती को समझाया कि मैने कभी भी तुम्हें कोई जहर नही दिया था। मैने तो तुम्हारे मन को शांत करने और षरीर को तन्दुरस्त बनाए रखने के लिये तुम्हें कुछ जड़ी-बूटियॉ दी थी। जहर तो सिर्फ तुम दोनो के मन और दिमाग में भरा हुआ था। सास के प्रति तुम्हारा जलन से भरा रवैया ही तुम्हारे घर-गृहस्थीे के कलेश की असली जड़ था। इन छह महीनों के दौरान तुम्हारे एक दूसरे के प्यार, सत्कार ने तुम दोनो के मन से वो सारा जहर निकाल दिया है। जैसे ही तुम्हारे व्यवहार में सास के प्रति परिवर्तन आया, तुम्हारी सास का मन भी तुम्हारे लिए प्यार से भर गया। सास के प्रति जो सेवा भावना तुमने दिखाई, उससे तुम्हारी सास को तुम्हारी जगह अपनी बेटी दिखाई देने लगी। जौली अंकल इसीलिये तो हमेषा कहते है, कि प्यार तो एक ऐसी ताकत है, जिसे जितना बांटो वो उतना ही बढ़ता है। हर घर-गृहस्थी को एक सूत्र में बांधने का काम सिर्फ सच्चा प्यार ही कर सकता है।














मुमकिन - एक और नया लेख


                                      ’’ मुमकिन ’’

मिश्रा जी ने अपने बेटे को स्कूल का काम करवाते हुए उससे पूछा कि यदि 10 औरते मिल कर एक बगीचे की सफाई दो दिन में करती है तो उसी काम को 20 औरते कितने समय में कर पायेगी। बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि पापा मुझे एक बात समझ नही आती कि जब एक बार बगीचे की सफाई अच्छे से हो ही गई है तो आप उसे दुबारा क्यूं साफ करवाना चाहते हो? अपने बेटे के मुंह से यह जवाब सुन कर मिश्रा जी को कहना पड़ा कि तुम्हारे जैसे आलसी लोग सदा यही सोचते रहते है कि यदि किसी काम को कोई दूसरा आदमी कर रहा है तो उसे ही करने दो, हमें खामख्वाह मुसीबत लेने की क्या जरूरत पड़ी हैं? अपनी बात को थोड़ा आगे बढ़ाते हुए मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि अब जरा एक बात बताओ कि कोई ऐसा काम हो जिसे कोई भी व्यक्ति नही कर सकता और वोहि काम तुम्हें करने को कहा जाये तो तुम उस काम के बारे में क्या कहोगे? अब इस बात का जवाब जरा सोच समझ कर ही देना। मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि इसमें सोचने-समझने वाली क्या बात है जब किसी काम को कोई भी व्यक्ति नही कर सकता तो उसे मैं कैसे कर सकता हॅू?

मिश्रा जी ने बेटे की नदानी को नज़रअंदाज करते हुए उससे कहा कि आमतौर पर तुम्हारे जैसे लोगो का यही मानना होता है कि यदि कोई दूसरा आदमी कोई काम कर सकता है तो आप भी उसे कर सकते हो। परंतु कामयाब लोगो की सोच इससे थोड़ी अलग होती है उनका मानना यह है यदि कोई साधारण व्यक्ति किसी काम को नही कर सकता उसे हम कर सकते है। मिश्रा जी के बेटे ने बड़ी ही हैरानगी से उनकी और देखते हुए कहा कि यह कैसे मुमकिन हो सकता है कि जिस काम को कोई नही कर सकता उसे हम कैसे कर सकते है? आखिर मिश्रा जी को कहना ही पड़ा कि इस दुनियां में ऐसा कोई काम नही है जो नामुमकिन हो। अक्सर किसी काम में मिलने वाली असफलता से हम जल्द घबरा कर उस राह को छोड़ देते है और यह कहने लगते है कि यह काम मुमकिन नही है। ऐसी सोच रखने वाले अक्सर यह भूल जाते है कि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी होती है। जो कोई इस मंत्र को जीवन में अपना लेते है मंजिल दौड़ती हुई उनके कदमों में आ जाती है। कोई भी व्यक्ति किसी क्षेत्र में अपनी मंजिल पाने के लिये यदि बिना पीछे मुड़े लगातार प्रयास करता है तो वो हर कार्य पर आसानी से विजय पा सकता है।

यह सब कुछ सुनने के बाद मिश्रा जी के बेटे ने गर्दन झुकाने की बजाए पिता से बहस करते हुए कहा कि एक और आप खुद ही कहते हो कि भगवान ने हर किसी के हिस्से की धन-दौलत, सुख-सुविधाएंे सब कुछ पहले से ही हमारे नसीब में लिख दी है फिर हर समय अपने हाथ-पैरों को इतना कश्ट देने की क्या जरूरत हैं? ऐसे में क्यूं न चैन की बंसी बजाते हुए सुख-चैन से जिंदगी गुजारी जाये। मिश्रा जी ने अपने बेटे को घूर कर देखते हुए कहा कि मुझे समझ नही आता कि तुम हर समय क्यूं अक्कल के पीछे लठ लिए फिरते रहते हो। माना कि कोई भी व्यक्ति हालात को नही बदल सकता लेकिन कठिन समय में अपनी सकारात्मक सोच से तुम कम से कम अपने विचारों को तो बदल सकते हो। एक विचार ही तुम्हारी जिंदगी बदल देता है। यह भी सच है कि किस्मत किसी के हाथ में नही होती लेकिन मेहनत तो हमारे हाथ में होती है। किस्मत ने कभी भी आज तक किसी के काम पूरे नही किये। लेकिन आपके द्वारा किये गये काम आपकी किस्मत को बदलने की क्षमता रखते है। मेरे प्यारे बेटे यह कभी मत भूलना कि मन के हारे हमारी हार होती है और मन के जीते ही हमारी जीत मुमकिन हो पाती है। कोई भी जीत सिर्फ आपका मन और आपके सकारत्मक विचार ही दिला सकते है। जब तक किसी भी कार्य से डर कर उससे भागते रहोगे वो तुम्हारे पीछे भाग कर तुम्हें परेषान करता रहेगा। एक बार जब आप हिम्मत करके उस का मुकाबला करने के लिये तैयार हो जाते है तो हर किस्म की कामयाबी तुम्हारे करीब आ जाती है।

मिश्रा जी के बेटे ने यह सब कुछ जानने के बाद भी हार न मानते हुए अपने पिता से कहा कि मेरे छोटे से दिमाग में आपकी यह बड़ी-बड़ी ज्ञान की बाते नही आती। मेरी समझ से तो यह बाहर हेै कि किस तरह एक छोटा सा इंसान बड़े-बड़े असंभव कार्यो को अंजाम तक पहुंचा सकता है। मिश्रा जी ने बहुत ही धीरज से बात को संभालते हुए कहा कि इतना तो तुम भी जानते हो कि एक छोटा सा दीपक रात के अंधेरे में उस समय रोषनी कर देता जब सूर्य नही होता। क्या इस बात से यह साबित नही होता कि कोई भी अपने आकार से श्रेश्ठ नही होता बल्कि उद्देषय से ही बड़ा या छोटा होता है। बेटे यदि जीवन में हर नामुमकिन काम को मुमकिन करना है तो कभी भी यह मत सोचो की क्या कुछ हमारे पास नही है, बल्कि यह सोचो कि क्या कुछ हमारे पास है। तुम हर समय किस्मत की बात करते हो लेकिन क्या इस बारे में कभी गौर किया है किस्मत कभी भी उन लोगो का साथ नही देती जो हर समय उस पर भरोसा किये हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते है। इसलिये अपने हर सपने को मुमकिन बनाने के लिये आत्मविष्वास पर भरोसा करते हुए जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करना सीखो।

मिश्रा जी की इतनी अहम और षानदार बाते सुनने के बाद उनके बेटे के नजरिये में कुछ बदलाव हुआ है या नही लेकिन जौली अंकल इतना जरूर जान गये है कि असल जिंदगी में सबसे कामयाब इंसान उसे ही कहा जा सकता है जो विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखता है। ऐसे लोग ही हर नामुमकिन सपने को मुमकिन बना सकते है।

शनिवार, 25 जून 2011

’’ बुड्डा मिल गया ’’ - जोली अंकल का एक नया रोकाक लेख


                                                                      ’’ बुड्डा मिल गया ’’

एक दिन सुबह मसुद्वी लाल जी के बैडरूम से अचानक बहुत जोर से चीखने-चिल्लाने की आवाजे आने लगी। मसुद्वी लाल जी एक ही रट लगाए जा रहे थे कि ऐ भगवान तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकते। इनका नौकर गट्टू दोैड़ता हुआ इनके पास आया और पूछने लगा कि साहब जी ऐसा क्या हो गया जो इतनी जोर से चिल्ला रहे हो? मसुद्वी लाल ने उसे बताया कि कुछ नही यार बस एक डरावना सपना देख लिया बस उसी से डर गया था। अब सारे घर में नौकर गट्टू काका के अलावा कोर्इ्र दूसरा सदस्य तो था नही, इसलिये मसुद्वी लाल जी ने हिम्मत करके अपने मन को हल्का करने की मंषा से उसे बताया कि आज मैने सपना देखा कि मैरी दूसरी षादी हो गई है। लेकिन मेरी नई दुल्हन बहुत ही तेज-तर्रार स्वभाव की निकली। बस उसी से डर कर मैं भगवान से कह रहा था कि ऐ भगवान मुझे फिर से एक बार कुंवारों वाली जिंदगी दे दो। मेरी प्रर्थाना सुन कर अचानक भगवान प्रकट हो गये और उन्होने मुझे डांटते हुए कहा कि मैने तुम्हें मन्नत मांगने के लिए कहा था जन्नत मांगने के लिए नही। इससे पहले की मैं उनसे कुछ और कह पाता वो अलोप हो गये। इसी सपने की दहषत से घबरा गया था कि अब ऐसी औरत के साथ सारी जिंदगी कैसे गुजारूगा। मसुद्वी लाल जी की बाते सुन कर नौकर गट्टू को बड़ा मजा आने लगा था। उसने अपने साहब को थोड़ा मख्खन लगाते हुए कहा कि अब तो आपको सारा किस्सा सुनाना होगा।

मसुद्वी लाल जी ने अपने नौकर को बताना षुरू किया कि तुम तो जानते ही हो कि कुछ समय पहले तक मैं अपनी पत्नी और इकलोते बेटे के साथ सरकारी बंगले में एक राजा की तरह रहता था। लाल बत्ती वाली सरकारी गाड़ी के साथ घर के नौकर चाकर से लेकर अखबार तक का बिल सरकार अपने खज़ाने से कब और केैसे अदा कर देती थी, इस बारे में कभी जानने की जरूरत ही नही पड़ी। अपने बेटे को जब जरूरत से अधिक पढ़ा-लिखा दिया तो उसने ईनाम के तौर पर अपने मां-बाप के साथ देष को बॉय-बॉय कहते हुए परदेस को अपना देष बना लिया। इस जुदाई के सदमें ने मेरी पत्नी को समय से पहले ही मुझसे जुदा करके भगवान के घर भेज दिया। आजकल दिन तो किसी न किसी तरह दोस्तो-यारों से गप्प-षप में कट जाता है लेकिन षाम होते ही घर काटने को दौड़ता है।

नौकर गट्टू ने कहा साहब जी बुरा मत मानना यह घर न सिर्फ आपको काटने के लिए आता है बल्कि हमारा घर षाम होते ही एक भूत बंगले का रूप धारण कर लेता है। इसके लिये कोर्इ्र दूसरा नही बल्कि आप खुद जिम्मेंदार हो। षाम अंधेरा होने के बाद आप सारे घर में एक भी लाईट नही जलाने देते, क्योंकि आपको बिजली, पानी, टेलीफोन और अन्य सभी प्रकार के बिलों को देखते ही बहुत चिढ़ होती है। कल तक सरकारी कुर्सी पर बैठ कर आप आऐ दिन मनमर्जी से जनता पर टैक्स लगाते थे आज सरकार कुछ भी करती है तो आपको चोट लगती है। मसुद्वी लाल जी ने कहा कि आजकल सरकार द्वारा दी गई हर चोट पहले से भी गहरी होती है तो तकलीफ तो होगी ही न। पानी का, गैस का, बिजली का, फोन के इतने बिल आते है कि उन्हें देखते ही एक आम आदमी बिलबिलाने के साथ तिलमिला उठता है। मैने तो कई बार इन बिलो से तंग आ कर खुदकषी करने का मन भी बनाया है लेकिन उसी दिन कोर्इ्र न कोई्र जरूरी काम आन पड़ता है। अब जैसे तेैसे जीवन के आखिरी दिन किसी तरह से तेरे साथ ही बिता रहा हॅू।

नौकर गट्टू ने कहा साहब जी यह सब कुछ तो मैं जानता हॅू लेकिन आप असली बात को क्यूं छिपा रहे हो, अपनी दूसरी षादी के बारे में तो कुछ बताओ। मसुद्वी लाल जी ने भी गट्टू को सच्चा हमदर्द समझते हुए बताना षुरू किया कि आज मैने सपने में अपनी बहुत ही खूबसूरत और गोरी-चिट्टी सैक्ट्री को देखा था। गट्टू ने कहा साहब जी आपको तो मोटे-मोटे लैंस वाला चष्मा लगाने के बावजूद भी आखों के आगे हर समय धुंध सी दिखाई देती है। रंग की बात छोड़ो कि गोरा है या काला कई बार तो आपको इतना भी ठीक से दिखाई नही देता कि सामने आदमी खड़ा है या औरत। मुझे तो इतना भी याद हेै कि एक बार तो आपने गोभी के फूल को ही गुलाब का फूल कह डाला था। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि बरसों पुरानी उस औरत को आपने देखा और पहचाना कैसे? मसुद्वी लाल जी ने कहा कि यार यह तो सपने का किस्सा सुना रहा हॅू और सपने में हर किसी को सब कुछ दिखाई दे जाता है।

वैसे जो कुछ मेरे साथ सपने में हुआ है भगवान न करे वो असल जिंदगी में कभी किसी के  हो। मैं युमना के पुराने पुल से जा रहा था कि अचानक वो खूबसूरत सैक्ट्री मिली और हमारी आखें चार हुई तो हम कुछ देर तक एक टक एक दूसरे को देखते रहे। फिर उसने जैसे ही अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा तो मेरी हड्डियों के साथ-साथ लोहे का पुराना पुल भी चरचराने लगा था। मैने उस खूबसूरत औरत से कुछ कहने की कोषिष की, उसने पूछा कि क्या कहा तुमने? वो पता नही क्या समझी कि कुछ नही समझी। फिर उसने मुझ से कुछ कहा, मैं तो उसकी बात को ठीक से नही समझ सका। परंतु जाते-जाते वो इतना जरूर कह गई कि अच्छा फिर ठीक है। इससे पहले की मैं उससे कुछ और कहता है उसने कहा कि जरा इस जासूस जमाने से बच कर चलो, क्योकि मैं भी बच्चो वाली हॅू आप भी बच्चो वाले हो। बातों-बातों में पता नही कब मैने उससे साथ रहने के लिए कह डाला और उसने भी बिना देरी किये हांमी भर दी।




षादी के पहले दिन ही जब वो जींस और टॉप पहन कर मेरे घर आई तो आते ही मुझ से कहने लगी कि तुमने इतने बरसों बाद भी मुझ में ऐसा क्या देखा जो मुझ से षादी के लिए झट तैयार हो गये। मैने कहा कि तुम्हें देखते ही दिल से बस एक ही आवाज आई कि जल्दी से षादी के लिए हां कह दो वरना पीस हाथ से निकल जायेगा। मेरी इस नई पत्नी ने मुझ से कहा कि अब जल्दी से मेरा घूंघट उठाओ और मुंह दिखाई दो। मुझे कहना पड़ा कि तुमने तो टॉप और जींस पहनी हुई है घूंघट है ही नही तो उठाऊ कहां से? उसने कहा कि यह सब फालतू की बातें छोड़ो। मुझे भी मजबूरन कहना पड़ा कि मैं भी हमेषा मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे देता हॅू, तुम्हें तो अभी पसीना आया ही नही। इसी के साथ मैने उससे पूछ लिया कि वैसे आजकल घूंघट उठाने का क्या रेट चल रहा है बाजार में? उस तेज तर्रार औरत ने कहा कि मैने अपना घूंघट उठाने का रेट बताया तो तुम पसीने-पसीने हो जाओगे। मुझे भी उससे कहना पड़ा कि तेरे चक्कर में मेरा पहले ही बहुत पैसा खर्च हो गया है अब तू चाहे जो कुछ मर्जी कह ले मैं तुझे एक पैसा भी और नही दूंगा।

इतना सुनते ही उसने षौर मचा दिया कि मैं लुट-गई, बर्बाद हो गई। न जानें मुझे यह बुड्डा कहां से मिल गया? तुमने मुझे धोखा देकर षादी की है। मैं तुम्हें कही का नही रहने दूगी, अब तुम देखना कि मैं कैसे तुम्हारे ऊपर पुलिस कैस करके तुम्हारी अक्कल ठिकाने लगाती हॅू। अब तुम्हारी बाकी की उम्र कोर्ट कचहरियों में तारीखे भुगतनंे में ही निकलेगी, तुम चाहे कितना ही जोर क्यूं न लगा लो मैं सारी उम्र तुम्हारी जमानत नही होने दूंगी। इन्ही बातो से भयभीत होकर मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि अचानक मेरी आंख खुल गई। मसुद्वी लाल जी की प्रेम गाथा सुन कर जौली अंकल के सामने तो यही नतीजा आता है कि हर इंसान के मन में सदा अच्छे और बुरे विचार चलते रहते है। हर व्यक्ति मन में उठने वाले विचारों को मनचाहा आकार देकर अपना जीवन उसी तरह ढ़ाल सकता है। अब अगर आप बुरे विचारो को नजरअंदाज करके सकारत्मक विचारों से प्रभावित होगे तो फिर कभी कोई लड़की आपसे यह नही कह पायेगी कि मुझे बुड्डा मिल गया।

                                                                                                                             ’’ जौली  अंकल ’’

मंगलवार, 21 जून 2011

हंसी के जलवे - जोली अंकल का एक और लेख आप के लिए


’’ हंसी के जलवे ’’

वीरू ने अपने दोस्त जय से गप-षप करते हुए कहा कि जब मेरी नई-नई षादी हुई थी तो मुझे मेरी बीवी बंसन्ती इतनी प्यारी लगती थी कि मन करता था कि इसे कच्चा ही खा जाऊ। जय ने पूछा कि अब यह सब कुछ तुम मुझे खुषी से बता रहे हो या दुखी होकर। वीरू ने कहा कि अब सुबह-षाम इसकी फरमाईषें पूरी करते-करते परेषान हो गया हॅू। कल जब बंसन्ती ने मेरे आगे एक और नई मांग रखी तो मैने उससे कहा कि मैं अब तुम्हारी और कोई्र भी मांग पूरी नही कर सकता, मैं तो जा रहा हॅू खुदकषी करने। जानते हो इस बेवकूफ औरत ने क्या कहा, कहने लगी खुदकषी करने से पहले एक अच्छी सी सफेद साड़ी तो ला दो। मेरे पास तुम्हारी क्रिया की रस्म पर पहनने के लिए कोई अच्छी साड़ी नही है। इसकी ऐसी बेवकूफियों को देख कर तो यही सोचता हॅू कि अगर उस समय मैं इसे खा ही जाता तो अच्छा होता। जय ने कहा कि कल तक तो तू बंसन्ती के जलवों का दीवाना था। तेरे दिलोदिमाग पर हर समय बंसन्ती का जादू ही सिर चढ़ कर बोलता था। कभी कही भी जाना होता था तो तू सारे काम छोड़ कर इसके सौंदर्य की और खिंचा चला जाता था। वो एक चीज मांगती थी तो तू चार लेकर आता था। अब वही बंसन्ती तुम्हें एक आंख भी नही भा रही ऐसा क्या हो गया?

वीरू ने अपना दुखड़ा रोते हुए जय से कहा कि तुम जिस औरत के जलवों के बारे में तारीफ कर रहे हो, वो औरत नही जहर की पुड़िया है। मेरे तो कर्म फूटे थे जो मैं इसको जी का जंजाल बना कर अपने घर ले आया। सारा दिन उल्टी-सीधी बाते करने और ऊलजलूल बकने के सिवाए इसे कुछ आता ही नही। यह तो मैं हॅू कि खून के घूंट पीकर किसी तरह से इसके साथ अभी तक निभा रहा हॅू। मेरा तो इस औरत से ही मन खट्टा हो गया है। जय ने वीरू को रोकते हुए कहा कि अब यह अपनी बंदर घुड़किया देनी बंद करो, तुमने अपनी बेसिर पैर की बातो को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर बहुत कुछ कह दिया है। क्या तुम मुझे एक बात बताओगे कि तुमने कभी भी अपनी पत्नी को प्यार से रास्ते पर लाने को प्रयास किया है। क्या सारी गलतियां उसी की है तुम्हारी कोर्इ्र गलती नही। मुझे तो तुम्हारी अक्कल पर हैरानगी हो रही है कि वो क्या घास चरने गई हुर्इ्र है जो सारा दोश अपनी बीवी के माथे मढ़ कर खुद ही अपने मुंह मिया मिट्ठू बनते जा रहे हो।

जय ने वीरू को आगे समझाते हुए कहा कि घरवालों की बात को यदि छोड़ भी दे तो हमारी अपनी आखें, कान, नाक, जीभ आदि सब कुछ अपनी मर्जी मुताबिक समय-समय पर कुछ न कुछ मांग करते रहते है। जब जिंदगी में कुछ चीजे कम होने लगती है या खत्म हो जाती है तो हमें बहुत तकलीफ होती है। अब इससे पहले कि तुम पूछो कि ऐसी कौन सी चीजे है जिन के कारण इंसान का जीवन कश्टदायक बन जाता है, मैं ही तुम्हें बता देता हॅू कि इसमें से कुछ खास है प्यार, रिष्ता, बचपन, दोस्ती, पैसा और सबसे जरूरी चीज है हंसी। वीरू ने जय को टोकते हुए कहा कि बाकी सभी चीजे तो समझ आ रही है, लेकिन हंसी के बिना हमारे जीवन पर क्या असर पड़ सकता है, यह बात कुछ मेरे पल्ले नही पड़ी। जय ने सामने रखी हुई वीरू और बसन्ती की एक तस्वीर को देखते हुए कहा कि जब तुमने यह फोटो खिचवाई थी तो तुम षायद एक-दो सैंकड के लिए मुस्कराऐ होगे, परंतु उस एक-दो सैंकड की मुस्कराहट ने तुम्हारी यह तस्वीर सदा के लिए खूबसूरत बना दी। अब यदि आप लोग हर दिन कुछ पल हंसने की आदत बना लो तो फिर सोचो कि तुम्हारी सारी जिंदगी कितनी षानदार बन सकती है। मेरे यार घर परिवार में रूठने मनाने के साथ जो लोग थोड़ा मुस्कराहना सीख लेते है उन्हें जीवन में संतुलन बनाये रखने में कोई दिक्कत नही आती। हंसी के जलवों की बात करे तो इस में वो षक्ति है कि यह हर प्रकार के तनाव को तो खत्म करती ही है साथ ही आपको कोर्ट-कहचरियों और पुलिस के चंगुल से बचा सकती है। वीरू तुम्हारी सम्सयां यह हेै कि तुम खुद तो हर समय खुष रहना चाहते हो, लेकिन दूसरों की कठिनाईयों से तुम्हें कोई लेना देना नही है। इसमें तुम्हारी भी गलती नही है क्योंकि आजकल किसी के पास भी दूसरों को खुषी देना तो दूर खुद को भी खुष रहने के लिए समय ही नही है। मेरे यार एक बात कभी मत भूलना कि जितनी मेहनत से लोग अपने लिये परेषनियां खड़ी करते है उससे आधी से हंसी के जलवों की बदौलत अपने घर को स्वर्ग बना सकते हैं।

हंसी के जलवों की इतनी सराहना सुनने के बाद जौली अंकल का भी रोम-रोम हर्श से छलकने लगा है। उनके अंग-अंग से यही आवाज आ रही हे कि जीवन का भरपूर आनन्द पाने के लिये जब भी हंसने का मौका मिले खिलखिलाकर हसों। आप भी यदि अपने जीवन को सुखों का सागर बनाना चाहते है तो इसका सबसे सरल उपाय है कि आप अपने मन में सकारात्मक राय रखते हुए हंसी के जलवे बिखेरते रहोे।

                                                                                                                                 ’’ जौली अंकल ’’

बुधवार, 8 जून 2011

बेवक़ूफ़ - जोली अंकल का नया रोचक लेख


                                       ’’ बेवकूफ ’’

मिश्रा जी की पत्नी ने बाजार में खरीददारी करते हुए उनसे पूछ लिया कि ऐ जी, यह सामने गहनों वाली दुकान पर लगे हुए बोर्ड पर क्या लिखा है, कुछ ठीक से समझ नही आ रहा। मिश्रा जी ने कहा कि बिल्कुल साफ-साफ तो लिखा है कि कही दूसरी जगह पर धोखा खाने या बेवकूफ बनने से पहले हमें एक मौका जरूर दे। मिश्रा जी ने नाराज़ होते हुए कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने सारी बेवकूफियांे करने का ठेका तुम मां-बेटे को ही दे कर भेजा है। इतना सुनते ही पास खड़े मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि घर में चाहे कोई भी सदस्य कुछ गलती करें आप मुझे साथ में बेवकूफ क्यूं बना देते हो?

मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हें बेवकूफ न कहूं तो क्या कहू? तुमसे बड़ा बेवकूफ तो इस सारे जहां में कोई हो ही नही सकता। अपना पेट काट-काट कर और कितने पापड़ बेलने के बाद मुष्किल से तुम्हारी बी,ए, की पढ़ाई पूरी करवाई थी कि तुम मेरे कारोबार में कुछ सहायता करोगे। परंतु अब दुकान पर मेरे काम मे कुछ मदद करने की बजाए सारा दिन गोबर गणेष की तरह घर में बैठ कर न जाने कौन से हवाई किले बनाते रहते हो। तुम्हारे साथ तो कोई कितना ही सिर पीट ले परंतु तुम्हारे कान पर तो जूं तक नही रेंगती। मुझे एक बात समझाओं की सारा दिन घर में घोड़े बेच कर सोने और मक्खियां मारने के सिवाए तुम करते क्या हो? मैं तो आज तक यह भी नही समझ पाया कि तुम किस चिकनी मिट्टी से बने हुए हो कि तुम्हारे ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर क्यूं नही होता?

मिश्रा जी को और नीला-पीला होते देख उनकी पत्नी ने गाल फुलाते हुए कहा कि यहां बाजार में सबके सामने मेरे कलेजे के टुकड़े को नीचा दिखा कर यदि तुम्हारे कलेजे में ठंडक पड़ गई हो तो अब घर वापिस चले क्या? मिश्रा जी ने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हारे लाड़-प्यार की वजह से ही इस अक्कल के दुष्मन की अक्कल घास चरने चली गई है। मुझे तो हर समय यही डर सताता हेै कि तुम्हारा यह लाड़ला किसी दिन जरूर कोई्र उल्टा सीधा गुल खिलायेगा। मैं अभी तक तो यही सोचता था कि पढ़ाई लिखाई करके एक दिन यह काठ का उल्लू अपने पैरां पर खड़ा हो जायेगा, लेेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है। हर समय कौऐ उड़ाने वाला और ख्याली पुलाव पकाने वाला तुम्हारा यह बेटा तो बिल्कुल कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी नही सीधी हो सकती।

मिश्रा जी की पत्नी ने अपने मन का गुबार निकालते हुए कहा कि आप एक बार अपने तेवर चढ़ाने थोड़े कम करो तो फिर देखना कि हमारा बेटा कैसे दिन-दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है। आप जिस लड़के के बारे में यह कह रहे हो कि वो अपने पैरों पर खड़ा नही हो सकता उसमें तो पहाड़ से टक्कर लेने की हिम्मत है। यह तो कुछ दिनों का फेर है कि उसका भाग्य उसका साथ नही दे रहा। बहुत जल्दी ऐसा समय आयेगा कि चारों और हमारे बेटे की तूती बोलेगी उस समय तो आप भी दातों तले उंगली दबाने से नही रह पाओगे। मिश्रा जी का बेटा जो अभी तक पसीने-पसीने हो रहा था अब तो उसकी भी बत्तीसी निकलने लगी थी।

अपनी पत्नी की बिना सिर पैर की बाते सुन कर मिश्रा जी का खून खोलने लगा था। बेटे की तरफदारी ने उल्टा जलती आग में घी डालने का काम अधिक कर दिया। मिश्रा जी ने पत्नी को समझाते हुए हुआ कहा कि मैने भी कोई धूप में बाल सफेद नही किए, मैं भी अपने बेटे की नब्ज को अच्छे से पहचानता हॅू। सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ने से या तीन-पांच करने से कभी डंके नही बजा करते। ऐसे लोग तो लाख के घर को भी खाक कर देते है। तुम पता नही सब कुछ समझते हुए भी बेटे के साथ मिल कर सारा दिन क्या खिचड़ी पकाती रहती हो? क्या तुम इतना भी नही जानती कि जिन लोगो के सिर पर गहरा हाथ मारने का भूत सवार होता है उन्हें हमेषा लेने के देने पड़ते है। यह जो जोड़-तोड़ और हर समय गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग होते है उन्हें एक दिन बड़े घर की हवा भी खानी पड़ती है।

मिश्रा जी के घर की महाभारत को देखने के बाद जौली अंकल कोई परामर्ष या सलाह देने की बजाए यही मंत्र देना चाहते है कि किसी काम से अनजान होना इतने षर्म की बात नही होती जितना की उस काम को करने के लिए कतराना। इसीलिये हर मां-बाप यही चाहते है कि स्ंातान अच्छी होनी चाहिए जो कहने में हो तो वो ही लोक और परलोक में सुख दे सकती है। इस बात को तो कोई भी नही झुठला सकता कि भाग्य के सहारे बैठे रहने वाले को कभी कुछ नही मिलता और ऐसे लोगो को सारी उम्र पछताना पड़ता है इसीलिए जमाना षायद उन्हें बेवकूफ कहता है।
                                                                                                                          ’’जौली अंकल’’

गुरुवार, 19 मई 2011

खिलौना माटी का - जोली अंकल का नया लेख


'’ खिलोना माटी का ’’ 


एक लड़की मरने के बाद भगवान के द्वार पर पहुंची तो प्रभु उसे देख कर हैरान हो गये कि तुम इतनी जल्दी स्वर्गलोक में कैसे आ गई हो? तुम्हारी आयु के मुताबिक तो तुम्हें अभी बहुत उम्र तक धरती पर जीना था। उस लड़की ने प्रभु परमेष्वर को बताया कि वो किसी दूसरी जाति के एक लड़के से बहुत प्यार करती थी। जब बार-बार समझाने पर भी हमारे घरवाले इस षादी के लिये राजी नही हुए तो हमारे गांव के चंद ठेकेदारों ने हमें मौत का हुक्म सुना दिया। इससे पहले कि वो हमें जान से मारते हम दोनों ने अपनी जिंदगी को खत्म करने का मन बना लिया। भगवान ने हैरान होते हुए कहा लेकिन तुम्हारा प्रेमी तो कहीं दिखाई नही दे रहा, वो कहां है? जब दूसरे देवताओ ने मामले की थोड़ी जांच-पड़ताल की गई तो मालूम हुआ कि यह दोनों मौत को गले लगाने के लिये इक्ट्ठे ही एक पहाड़ी पर आये थे। जब लड़की कूदने लगी तो इसके प्रेमी ने यह कह कर आखें बंद कर ली कि प्यार अंधा होता है। अगले पल जब उसने देखा कि लड़की तो कूद कर मर गई है वो वहां से यह कह कर वापिस भाग गया कि मेरा प्यार तो अमर है, मैं काये को अपनी जान दू।

यह सारा प्रंसग सुनने के बाद वहां बैठे सभी देवताओं के चेहरे पर क्रोध और चिंता की रेखाऐं साफ झलकने लगी थी। काफी देर विचार विमर्ष के बाद यह तय हो पाया कि समय-समय पर जब कभी भी स्वर्गलोक में कोई इस तरह की अजीब समस्यां देखने में आती है तो नारद मुनि जी से ही परामर्ष लिया जाता है। सभी देवी-देवताओं की सहमति से परमपिता परमेष्वर ने उसी समय नारद मुनि को यह आदेष दिया कि हमने तो पृथ्वीलोक पर एक बहुत ही पवित्र आत्मा वाला षुद्व माटी का खिलोना बना कर भेजा था। लेकिन यह वहां पर कैसे-कैसे छल कपट कर रहा है। इसके बारे में खुद धरती पर जाकर जल्द से जल्द वहां का सारा विवरण हमें बताओ।

नारद जी प्रभु के हुक्म को सुनते ही नारायण-नारायण करते हुए वहां से धरती की और निकल पड़े। धरती पर पांव रखते ही उनका सामना उस बेवफा प्रेमी से हो गया जिसने उस लड़की को धोखा देकर मौत के मुंह में धकेल दिया था। वो षराब के नषे में टुन झूमता हुआ अपनी मस्ती में हिंदी फिल्म के एक गाने को गुनगुना रहा था कि मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिये। नारद मुनि जी को देखते ही वो षराबी उनसे बोला कि भाई तुम कौन? नारद जी ने कहा कि लगता है तुमने मुझे पहचाना नही। उस षराबी ने कहा कि यह दारू बड़ी कमाल की चीज है यह अपने सारे दुखो से लेकर दुनियां के सारे गम तक भुला देती है। नारद जी ने अपना परिचय देते हुए मैं स्वर्गलोक से आया हॅू। यह सुनते ही षराबी ने नारद जी की खिल्ली उड़ाते हुए से कहा कि फिर तो यहां मेरे साथ बैठो, मैं अभी आपके लिये दारू मंगवाता हॅू। नारद जी कुछ ठीक से समझ नही पाये कि यह किस चीज के बारे में बात कर रहा है। फिर भी उन्होने इसे कोई ठंडा पेयजल समझ कर बोतल मुंह से लगा कर कर एक ही घूंट में उसे खत्म कर डाला। षराबी बड़ा हैरान हुआ कि हमें तो एक बोतल को खत्म करने में 4-6 घंटे लग जाते है और यह कलाकार तो एक ही झटके में सारी बोतल गटक गया। उसने एक और बोतल नारद जी के आगे रख दी। अगले ही क्षण वो भी खाली होकर जमीन पर इधर-उधर लुढ़क रही थी। इसी तरह जब 4-6 बोतले और खाली हो गई तो उस षराबी ने नारद जी से पूछा कि तुम्हें यह दारू चढ़ती नही क्या? नारद जी ने कहा कि मैं भगवान हॅू, मुझे इस तरह के नषों से कुछ असर नही होता। अब उस षराबी ने लड़खड़ाती हुई जुबान में कहा कि अब घर जाकर आराम से सो जाओ तुम्हें बुरी तरह से दारू चढ़ गई है। वरना पुलिस वाले तुम्हें दो-चार दिन के लिए कृश्ण जी की जन्मभूमि पर रहने के लिये भेज देगे। नारद जी को बड़ा अजीब लगा कि यह दो टक्के का आदमी सभी लोगो के बीच मेरी टोपी उछाल रहा है। सब कुछ जानते हुए भी नारद जी ने इस षराबी को गुस्सा करने की बजाए इसी से धरती के हालात के बारे में विस्तार से जानना बेहतर समझा।

जब षराबी के साथ थोड़ी दोस्ती का महौल बन गया तो उसने बताना षुरू किया कि आज धरती पर चारों और भ्रश्टाचार का बोलबाला है। जहां देखो हर इंसान हत्या, बलात्कार और हैवानियत के डर से दहषत के महौल में जी रहा है। देष के नेता बापू, भगत सिंह जैसे महान नेताओ की षिक्षा को भूल कर सरकारी खज़ाने को अंदर ही अंदर खोखला कर रहे है। नेताओ के साथ उनके परिवार वालों का चरित्र भी ढीला होता जा रहा है। इतना सुनने के बाद नारद जी ने उस षराबी से कहा कि क्या आपके अध्यापकगण, गुरू या साधू-संत आप लोगो को धर्म की राह के बारे में कुछ नही समझाते। षराबी ने कहा कि आजकल के मटुक लाल जैसे अध्यापक खुद ही लव गुरू बने बैठे हैं बाकी रही साधू-संतो की बात तो स्वामी नित्यानंद जी जैसे संत खुद ही गेरूए वस्त्र धारण करके वासना की भक्ति में लीन पड़े हुए है। इंसान भगवान को भूलकर षैतान बनता जा रहा है, क्योंकि हर कोई यही सोचने लगाा है कि यदि भगवान होते तो क्या इस धरती पर यह सारे कुर्कम हो पाते?

नारद जी ने प्रभु का ध्यान करते हुए उस षराबी से कहा कि कौन कहता है कि भगवान इस धरती पर नही है? कौन कहता है कि भगवान बार-बार बुलाने पर भी नही आते? क्या कभी किसी ने मीरा की तरह उन्हें बुलाया है? आप एक बार उन्हें प्यार से पुकार कर तो देखो तो सही, भगवान न सिर्फ आपके पास आयेगे बल्कि आपके साथ बैठ कर खाना भी खायेगे। षर्त सिर्फ इतनी हैे कि आपके खाने में षबरी के बेरों की तरह मिठास और दिल में मिलन की सच्ची तड़प होनी चाहिये। भगवान तो हर जीव आत्मा के रूप में आपके सामने है लेकिन आप लोगो में कमी यह है कि आप हर चीज को उस तरह से देखना चाहते हो जो आपकी आखों को अच्छा लगता है। अब तक उस षराबी को नारद जी की जुबान से निकले एक-एक षब्द की पीढ़ा का अभास होने लगा था। जौली अंकल तो यही सोच कर परेषान हो रहे है कि इससे पहले कि नारद जी जैसे सम्मानित गुरू प्रभु परमेष्वर को जा कर धरती के बारे में यह बताऐं कि वहां मानव दानव बनता जा रहा है उससे पहले हर मानव को मानव की तरह जीना सीख लेना चाहिये ताकि भगवान द्वारा बनाया गया पवित्र, षुद्व और खालिस माटी का खिलोना फिर से मानवता को निखार सके।

मंगलवार, 3 मई 2011

Charlie Chaplin - a great commedian by Jolly Uncle


                                                                  ’’ कामेडी के मसीहा - चार्ली चैप्लिन ’’

वीरू के बेटे ने स्कूल से आते ही अपने पापा को बताया कि आज स्कूल में बहुत मजा आया। वीरू ने पूछा कि क्यूं आज पढ़ाई की जगह तुम्हें कोई कामेडी फिल्म दिखा दी जो इतना खुष हो रहे हो? वीरू के बेटे ने कहा कि कामेडी फिल्म तो नही दिखाई लेकिन हमारे टीचर ने आज कामेडी फिल्म के जन्मदाता चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ नई जानकारियां दी है।  पापा क्या आप जानते हो कि चार्ली चैप्लिन दुनियां के सबसे बड़े आदमियों में से एक थे। वीरू ने मजाक करते हुए कहा क्यूं वो क्या 12 नंबर के जूते पहनते थे? बेटे ने नाराज होते हुए कहा अगर आपको ठीक से सुनो तो मैं उनके बारे में बहुत कुछ बता सकता हॅू। जैसे ही वीरू ने हामी भरी तो उसके बेटे ने कहना षुरू किया कि हमारे टीचर ने बताया है कि चार्ली चैप्लिन का नाम आज भी दुनियां के उन प्रसिद्व हास्य कलाकारों की सूची में सबसे अवल नंबर पर आता है जिन्होने ने अपनी जुबान से बिना एक अक्षर भी बोले सारा जीवन दुनियां को वो हंसी-खुषी और आनंद दिया है जिसके बारे में आसानी से सोचा भी नही जा सकता। इस महान कलाकार ने जहां अपनी कामेडी कला की बदौलत चुप रह कर अपने जीते जी तो हर किसी को हसाया  वही आज उनके इस दुनियां से जाने के बरसों बाद भी हर पीढ़ी के लोग उनकी हास्य की इस जादूगरी को सलाम करते है। 16 अप्रेल 1889 को इंग्लैंड में जन्में इस महान कलाकार की सबसे बड़ी विषेशता यह थी कि लोग न सिर्फ उनके हंसने पर उनके साथ हंसते थे बल्कि उनके चलने पर, उनके रोने पर, उनके गिरने पर, उनके पहनावे को देख कर दिल खोल कर खिलखिलाते थे। अगर इस बात को यू भी कहा जाये कि उनकी हर अदा में कामेडी थी और जमाना उनकी हर अदा का दीवाना था तो गलत न होगा।

पांच-छह साल की छोटी उम्र में जब बच्चे सिर्फ खेलने कूदने में मस्त होते है इस महान कलाकार ने उस समय कामेडी करके अपनी अनोखी अदाओं से दर्षको को लोटपोट करना षुरू कर दिया था। चार्ली चैप्लिन ने अपने घर को ही अपनी कामेडी की पाठषला और अपने माता-पिता को ही अपना गुरू बनाया। इनके माता-पिता दोनो ही अपने जमाने के अच्छे गायक और स्टेज के प्रसिद्व कलाकार थे। एक दिन अचानक एक कार्यक्रम में इनकी मां की तबीयत खराब होने की वजह से उनकी आवाज चली गई। थियेटर में बैठे दर्षको द्वारा फेंकी गई कुछ वस्तुओं से वो बुरी तरह घायल हो गई। उस समय बिना एक पल की देरी किये इस नन्हें बालक ने थोड़ा घबराते हुए लेकिन मन में दृढ़ विष्वास लिये अकेले ही मंच पर जाकर अपनी कामेडी के दम पर सारे षो को संभाल लिया। उसके बाद चार्ली चैप्लिन ने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा।

सर चार्ली चैप्लिन एक सफल हास्य अभिनेता होने के साथ-साथ फिल्म निर्देषक और अमेरिकी सिनेमा के निर्माता और संगीतज्ञ भी थे। चार्ली चैप्लिन ने बचपन से लेकर 88 वर्श की आयु तक अभिनय, निर्देषक, पटकथा, निर्माण और संगीत की सभी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया। बिना षब्दों और कहानियों की हालीवुड में बनी फिल्मों में चार्ली चैप्लिन ने हास्य की अपनी खास षैली से यह साबित कर दिया कि केवल पढ़-लिख लेने से ही कोई विद्ववान नही होता। महानता तो कलाकार की कला से पहचानी जाती है और बिना बोले भी आप गुणवान बन सकते है। यह अपने युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावषाली व्यक्तियों में से एक थे। इन्होनें सारी उम्र सादगी को अपनाते हुए कामेडी को ऐसी बुलदियों तक पहुंचा दिया जिसे आज तक कोई दूसरा कलाकार छू भी नही पाया। इनके सारे जीवन को यदि करीब से देखा जाये तो एक बात खुलकर सामने आती है कि इस कलाकार ने कामेडी करते समय कभी फूहड़ता का साहरा नही लिया। इसीलिये षायद दुनियां के हर देष में स्टेज और फिल्मी कलाकारों ने कभी इनकी चाल-ढ़ाल से लेकर कपड़ो तक और कभी इनकी खास स्टाईल वाली मूछों की नकल करके दर्षको को खुष करने की कोषिष की है।

हर किसी को मुस्कुराहट और खिलखिलाहट देने वाले मूक सिनेमा के आइकन माने जाने वाले इस कलाकार के मन में सदैव यही सोच रहती थी कि अपनी तारीफ खुद ही की तो क्या किया, मजा तो तभी है कि दूसरे लोग आपके काम की तारीफ करें। चार्ली चैप्लिन की कामयाबी का सबसे बड़ा रहस्य यही था कि इन्होने जीवन को ही एक नाटक समझ कर उसकी पूजा की जिस की वजह से यह खुद भी प्रसन्न रहते थे और दूसरों को भी सदा प्रसन्न रखते थे। इनके बारे में आज तक यही कहा जाता है कि इनके अलावा कोई भी ऐसा कलाकार नही हुआ जिस किसी एक व्यक्ति ने अकेले सारी दुनियां के लोगो को इतना मनोरंजन, सुख और खुषी दी हो। सारी बात सुनने के बाद वीरू ने कहा कि तुम्हारे टीचर ने चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ बता दिया लेकिन यह नही बताया कि उन्होने यह भी कहा था कि हंसी के बिना बीता हमारा हर दिन व्यर्थ होता है।

सर चार्ली चैप्लिन के महान और उत्साही जीवन से प्रेरणा लेते हुए जौली अंकल का यह विष्वास और भी दृढ़ हो गया है कि जो कोई सच्ची लगन से किसी कार्य को करते है उनके विचारो, वाणी एवं कर्मो पर पूर्ण आत्मविष्वास की छाप लग जाती है। कामेडी के मसीहा चार्ली चैप्लिन ने इस बात को सच साबित कर दिखाया कि कोई किसी भी पेषे से जुड़ा हो वो चुप रह कर भी अपने पेषे की सही सेवा करने के साथ हर किसी को खुषियां दे सकता है।
                                                                                                                             ’’ जौली अंकल ’’




’’ कामेडी के मसीहा - चार्ली चैप्लिन ’’

वीरू के बेटे ने स्कूल से आते ही अपने पापा को बताया कि आज स्कूल में बहुत मजा आया। वीरू ने पूछा कि क्यूं आज पढ़ाई की जगह तुम्हें कोई कामेडी फिल्म दिखा दी जो इतना खुष हो रहे हो? वीरू के बेटे ने कहा कि कामेडी फिल्म तो नही दिखाई लेकिन हमारे टीचर ने आज कामेडी फिल्म के जन्मदाता चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ नई जानकारियां दी है।  पापा क्या आप जानते हो कि चार्ली चैप्लिन दुनियां के सबसे बड़े आदमियों में से एक थे। वीरू ने मजाक करते हुए कहा क्यूं वो क्या 12 नंबर के जूते पहनते थे? बेटे ने नाराज होते हुए कहा अगर आपको ठीक से सुनो तो मैं उनके बारे में बहुत कुछ बता सकता हॅू। जैसे ही वीरू ने हामी भरी तो उसके बेटे ने कहना षुरू किया कि हमारे टीचर ने बताया है कि चार्ली चैप्लिन का नाम आज भी दुनियां के उन प्रसिद्व हास्य कलाकारों की सूची में सबसे अवल नंबर पर आता है जिन्होने ने अपनी जुबान से बिना एक अक्षर भी बोले सारा जीवन दुनियां को वो हंसी-खुषी और आनंद दिया है जिसके बारे में आसानी से सोचा भी नही जा सकता। इस महान कलाकार ने जहां अपनी कामेडी कला की बदौलत चुप रह कर अपने जीते जी तो हर किसी को हसाया  वही आज उनके इस दुनियां से जाने के बरसों बाद भी हर पीढ़ी के लोग उनकी हास्य की इस जादूगरी को सलाम करते है। 16 अप्रेल 1889 को इंग्लैंड में जन्में इस महान कलाकार की सबसे बड़ी विषेशता यह थी कि लोग न सिर्फ उनके हंसने पर उनके साथ हंसते थे बल्कि उनके चलने पर, उनके रोने पर, उनके गिरने पर, उनके पहनावे को देख कर दिल खोल कर खिलखिलाते थे। अगर इस बात को यू भी कहा जाये कि उनकी हर अदा में कामेडी थी और जमाना उनकी हर अदा का दीवाना था तो गलत न होगा।

पांच-छह साल की छोटी उम्र में जब बच्चे सिर्फ खेलने कूदने में मस्त होते है इस महान कलाकार ने उस समय कामेडी करके अपनी अनोखी अदाओं से दर्षको को लोटपोट करना षुरू कर दिया था। चार्ली चैप्लिन ने अपने घर को ही अपनी कामेडी की पाठषला और अपने माता-पिता को ही अपना गुरू बनाया। इनके माता-पिता दोनो ही अपने जमाने के अच्छे गायक और स्टेज के प्रसिद्व कलाकार थे। एक दिन अचानक एक कार्यक्रम में इनकी मां की तबीयत खराब होने की वजह से उनकी आवाज चली गई। थियेटर में बैठे दर्षको द्वारा फेंकी गई कुछ वस्तुओं से वो बुरी तरह घायल हो गई। उस समय बिना एक पल की देरी किये इस नन्हें बालक ने थोड़ा घबराते हुए लेकिन मन में दृढ़ विष्वास लिये अकेले ही मंच पर जाकर अपनी कामेडी के दम पर सारे षो को संभाल लिया। उसके बाद चार्ली चैप्लिन ने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा।

सर चार्ली चैप्लिन एक सफल हास्य अभिनेता होने के साथ-साथ फिल्म निर्देषक और अमेरिकी सिनेमा के निर्माता और संगीतज्ञ भी थे। चार्ली चैप्लिन ने बचपन से लेकर 88 वर्श की आयु तक अभिनय, निर्देषक, पटकथा, निर्माण और संगीत की सभी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया। बिना षब्दों और कहानियों की हालीवुड में बनी फिल्मों में चार्ली चैप्लिन ने हास्य की अपनी खास षैली से यह साबित कर दिया कि केवल पढ़-लिख लेने से ही कोई विद्ववान नही होता। महानता तो कलाकार की कला से पहचानी जाती है और बिना बोले भी आप गुणवान बन सकते है। यह अपने युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावषाली व्यक्तियों में से एक थे। इन्होनें सारी उम्र सादगी को अपनाते हुए कामेडी को ऐसी बुलदियों तक पहुंचा दिया जिसे आज तक कोई दूसरा कलाकार छू भी नही पाया। इनके सारे जीवन को यदि करीब से देखा जाये तो एक बात खुलकर सामने आती है कि इस कलाकार ने कामेडी करते समय कभी फूहड़ता का साहरा नही लिया। इसीलिये षायद दुनियां के हर देष में स्टेज और फिल्मी कलाकारों ने कभी इनकी चाल-ढ़ाल से लेकर कपड़ो तक और कभी इनकी खास स्टाईल वाली मूछों की नकल करके दर्षको को खुष करने की कोषिष की है।

हर किसी को मुस्कुराहट और खिलखिलाहट देने वाले मूक सिनेमा के आइकन माने जाने वाले इस कलाकार के मन में सदैव यही सोच रहती थी कि अपनी तारीफ खुद ही की तो क्या किया, मजा तो तभी है कि दूसरे लोग आपके काम की तारीफ करें। चार्ली चैप्लिन की कामयाबी का सबसे बड़ा रहस्य यही था कि इन्होने जीवन को ही एक नाटक समझ कर उसकी पूजा की जिस की वजह से यह खुद भी प्रसन्न रहते थे और दूसरों को भी सदा प्रसन्न रखते थे। इनके बारे में आज तक यही कहा जाता है कि इनके अलावा कोई भी ऐसा कलाकार नही हुआ जिस किसी एक व्यक्ति ने अकेले सारी दुनियां के लोगो को इतना मनोरंजन, सुख और खुषी दी हो। सारी बात सुनने के बाद वीरू ने कहा कि तुम्हारे टीचर ने चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ बता दिया लेकिन यह नही बताया कि उन्होने यह भी कहा था कि हंसी के बिना बीता हमारा हर दिन व्यर्थ होता है।

सर चार्ली चैप्लिन के महान और उत्साही जीवन से प्रेरणा लेते हुए जौली अंकल का यह विष्वास और भी दृढ़ हो गया है कि जो कोई सच्ची लगन से किसी कार्य को करते है उनके विचारो, वाणी एवं कर्मो पर पूर्ण आत्मविष्वास की छाप लग जाती है। कामेडी के मसीहा चार्ली चैप्लिन ने इस बात को सच साबित कर दिखाया कि कोई किसी भी पेषे से जुड़ा हो वो चुप रह कर भी अपने पेषे की सही सेवा करने के साथ हर किसी को खुषियां दे सकता है।
           ’’ जौली अंकल ’’



बुधवार, 27 अप्रैल 2011

ओकत - जोली अंकल का एक और रोचक लेख आप के लिए


                                                                                औकात

एक बार महाराज अकबर को पड़ोसी राज्य से एक खास मौके के लिये न्यौता मिला। उन्होंने झट से बीरबल को बुलाकर कहा, कि इस खास मौके पर जाने के लिये एक बढ़िया सी पोशाक तैयार करवाई जाए। बीरबल ने उसी समय महाराज के शाही दर्जी को बुला भेजा। दर्जी सिलाई-कढ़ाई के लिये अपना सभी जरूरी समान लेकर दरबार में हाजिर हो गया। महाराज अकबर का ठीक से नाप वगैरह लेकर उसने महल में पोशाक सिलने का काम शुरू कर दिया। अब क्योंकि महाराज अकबर की बहुत ही खास मौके के लिये पोशाक बन रही थी तो वो भी कौतूहलवश कुछ देर के लिये वहीं दर्जी के सामने बैठ गये। 


दर्जी ने अपना काम शुरू करते हुए सबसे पहले कैंची से कपड़े को अलग-अलग कई टुकड़ो में काट कर कैंची को नीचे जमीन पर एक तरफ रख दिया। फिर सुई से कुछ काम करने के बाद उस दर्जी ने अपनी पुरानी आदतानुसार सुई को अपनी शाही दरबार से मिली हुई पगड़ी में टांक दिया। महाराज अकबर को कुछ अजीब सा लगा, कि इतनी महंगी और सुन्दर कैंची तो दर्जी ने अपने पैरों में रखी हुई है, और छोटी सी सुई को अपनी बेशकीमती महंगी शाही पगड़ी में टांक दिया। महाराज अकबर से रहा नहीं गया और उन्हांेने बीरबल से इसका कारण पूछा। बीरबल ने कहा महाराज दर्जी ने दोनांे चीजों को उनकी असली औक़ात के मुताबिक ठीक जगह पर ही रखा है और मेरे हिसाब से उसने यह बिल्कुल ठीक ही किया है।


महाराज अकबर ने गुस्से में बीरबल को डांटते हुए कहा, तुम झट से हर बात का जवाब बिना सोचे समझे दे देते हो। तुम यह सब कुछ इतने विश्वास के साथ कैसे कह रहे हो कि दर्जी ने कोई गलती नही की। तुम क्या जानो की चंद पैसों की सुई के सामने हमारे दरबार की शाही कैंची कितनी कीमती है, और तुम साथ ही यह भी कह रहे हो कि उसने यह बिल्कुल ठीक किया है। क्या तुम मुझे इस का कोई एक भी ठोस कारण बता सकते हो? 


बीरबल ने महाराज को बताना शुरू किया कि अगर आपने गौर किया हो तो कैंची का काम सिर्फ हर चीज़ को काट कर टुकड़ों में बंाटने का है फिर चाहे वो कपड़ा हो या अन्य कोई और वस्तू। दूसरी तरफ सुई बहुत छोटी होते हुए भी सिर्फ हर चीज़ को जोड़ने का काम करती है। वो हर छोटी बड़ी चीज़ को जोड़कर उसे हमारी ज़रूरत के मुताबिक से हमारे इस्तेमाल करने के लायक बना देती है, जिससे कि साधारण सी चीज की कीमत में भी कई गुना का इज़ाफा हो जाता है। यह छोटी सी सुई का ही कमाल है, कि कैंची से काटे हुए चंद कपड़े के टुकडों पर बेशकीमती कढ़ाई आदि करने के बाद उन्हें आपस में जोड़कर आपकी यह अनमोल और बेहतरीन पोशाक तैयार कर दी है। 


बीरबल ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा महाराज हर चीज की कीमत उसकी उपयोगिता के अनुसार ही अंाकी जाती है न कि उसकी सुन्दरता और कीमत को देखकर। कुछ ऐसे ही लोग आपको हमारे आस-पास देखने को मिल जायेंगे। एक श्रेणी में तो वो लोग आते हैं, जो समाज को धर्म, जाति, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर का भेदभाव दिखा कर एक दूसरे से तोड़ने का काम करते हैं, और दूसरी तरफ साधु-संत अपने नेक कर्मों से हर वर्ग को जोड़ने का प्रयत्न करते रहते हैं। कोई भी कार्य अकेले करने से सिद्व नही होता, मिल-जुल कर किया गया कार्य कभी व्यर्थ नही जाता। सभी को साथ लेकर चलने वालो को तो दुनिया हमेशा सिर आंखों पर बिठाती है और भगवान का रूप मानकर पूजती है। बीरबल के इस कथन से महाराज अकबर भी यह मान गये कि योग्यता, ईमानदारी और धैर्य शीलता के समक्ष हर कोई घुटने टेकने पर मजबूर हो जाता है।


जौली अंकल इसीलिये तो अक्सर कहते हैं, कि हर काम पूरी लगन और जान लगाकर करें, अधूरे मन से किया काम आपके श्रेष्ठ बनने का मौका छीन लेता है। अगर आप अपने जीवन में सुख और शांति देखना चाहते हो तो हर छोटे से छोटे रिश्ते को कैंची की तरह काटने की बजाए सुई की तरह जोड़ते रहो।


                                                                                                                                      जौली अंकल   

Charlie Chaplin - a great commedian by Jolly Uncle


                                                    ’’ कामेडी के मसीहा - चार्ली चैप्लिन ’’

वीरू के बेटे ने स्कूल से आते ही अपने पापा को बताया कि आज स्कूल में बहुत मजा आया। वीरू ने पूछा कि क्यूं आज पढ़ाई की जगह तुम्हें कोई कामेडी फिल्म दिखा दी जो इतना खुष हो रहे हो? वीरू के बेटे ने कहा कि कामेडी फिल्म तो नही दिखाई लेकिन हमारे टीचर ने आज कामेडी फिल्म के जन्मदाता चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ नई जानकारियां दी है। पापा क्या आप जानते हो कि चार्ली चैप्लिन दुनियां के सबसे बड़े आदमियों में से एक थे। वीरू ने मजाक करते हुए कहा क्यूं वो क्या 12 नंबर के जूते पहनते थे? बेटे ने नाराज होते हुए कहा अगर आपको ठीक से सुनना हो तो मैं उनके बारे में सब कुछ बताता हॅू। जैसे ही वीरू ने हामी भरी तो उसके बेटे ने कहना षुरू किया कि हमारे टीचर ने बताया है कि चार्ली चैप्लिन का नाम आज भी दुनियां के उन प्रसिद्व हास्य कलाकारों की सूची में सबसे अवल नंबर पर आता है जिन्होने ने अपनी जुबान से बिना एक अक्षर भी बोले सारा जीवन दुनियां को वो हंसी-खुषी और आनंद दिया है जिसके बारे में आसानी से सोचा भी नही जा सकता। इस महान कलाकार ने जहां अपनी कामेडी कला की बदौलत चुप रह कर अपने जीते जी तो हर किसी को हसाया  वही आज उनके इस दुनियां से जाने के बरसों बाद भी हर पीढ़ी के लोग उनकी हास्य की इस जादूगरी को सलाम करते है। 16 अप्रेल 1889 को इंग्लैंड में जन्में इस महान कलाकार की सबसे बड़ी विषेशता यह थी कि लोग न सिर्फ उनके हंसने पर उनके साथ हंसते थे बल्कि उनके चलने पर, उनके रोने पर, उनके गिरने पर, उनके पहनावे को देख कर दिल खोल कर खिलखिलाते थे। अगर इस बात को यू भी कहा जाये कि उनकी हर अदा में कामेडी थी और जमाना उनकी हर अदा का दीवाना था तो गलत न होगा।

पांच-छह साल की छोटी उम्र में जब बच्चे सिर्फ खेलने कूदने में मस्त होते है इस महान कलाकार ने उस समय कामेडी करके अपनी अनोखी अदाओं से दर्षको को लोटपोट करना षुरू कर दिया था। चार्ली चैप्लिन ने अपने घर को ही अपनी कामेडी की पाठषला और अपने माता-पिता को ही अपना गुरू बनाया। इनके माता-पिता दोनो ही अपने जमाने के अच्छे गायक और स्टेज के प्रसिद्व कलाकार थे। एक दिन अचानक एक कार्यक्रम में इनकी मां की तबीयत खराब होने की वजह से उनकी आवाज चली गई। थियेटर में बैठे दर्षको द्वारा फेंकी गई कुछ वस्तुओं से वो बुरी तरह घायल हो गई। उस समय बिना एक पल की देरी किये इस नन्हें बालक ने थोड़ा घबराते हुए लेकिन मन में दृढ़ विष्वास लिये अकेले ही मंच पर जाकर अपनी कामेडी के दम पर सारे षो को संभाल लिया। उसके बाद चार्ली चैप्लिन ने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा।

सर चार्ली चैप्लिन एक सफल हास्य अभिनेता होने के साथ-साथ फिल्म निर्देषक और अमेरिकी सिनेमा के निर्माता और संगीतज्ञ भी थे। चार्ली चैप्लिन ने बचपन से लेकर 88 वर्श की आयु तक अभिनय, निर्देषक, पटकथा, निर्माण और संगीत की सभी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया। बिना षब्दों और कहानियों की हालीवुड में बनी फिल्मों में चार्ली चैप्लिन ने हास्य की अपनी खास षैली से यह साबित कर दिया कि केवल पढ़-लिख लेने से ही कोई विद्ववान नही होता। महानता तो कलाकार की कला से पहचानी जाती है और बिना बोले भी आप गुणवान बन सकते है। यह अपने युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावषाली व्यक्तियों में से एक थे। इन्होनें सारी उम्र सादगी को अपनाते हुए कामेडी को ऐसी बुलदियों तक पहुंचा दिया जिसे आज तक कोई दूसरा कलाकार छू भी नही पाया। इनके सारे जीवन को यदि करीब से देखा जाये तो एक बात खुलकर सामने आती है कि इस कलाकार ने कामेडी करते समय कभी फूहड़ता का साहरा नही लिया। इसीलिये षायद दुनियां के हर देष में स्टेज और फिल्मी कलाकारों ने कभी इनकी चाल-ढ़ाल से लेकर कपड़ो तक और कभी इनकी खास स्टाईल वाली मूछों की नकल करके दर्षको को खुष करने की कोषिष की है।

हर किसी को मुस्कुराहट और खिलखिलाहट देने वाले मूक सिनेमा के आइकन माने जाने वाले इस कलाकार के मन में सदैव यही सोच रहती थी कि अपनी तारीफ खुद ही की तो क्या किया, मजा तो तभी है कि दूसरे लोग आपके काम की तारीफ करें। चार्ली चैप्लिन की कामयाबी का सबसे बड़ा रहस्य यही था कि इन्होने जीवन को ही एक नाटक समझ कर उसकी पूजा की जिस की वजह से यह खुद भी प्रसन्न रहते थे और दूसरों को भी सदा प्रसन्न रखते थे। इनके बारे में आज तक यही कहा जाता है कि इनके अलावा कोई भी ऐसा कलाकार नही हुआ जिस किसी एक व्यक्ति ने अकेले सारी दुनियां के लोगो को इतना मनोरंजन, सुख और खुषी दी हो। सारी बात सुनने के बाद वीरू ने कहा कि तुम्हारे टीचर ने चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ बता दिया लेकिन यह नही बताया कि उन्होने यह भी कहा था कि हंसी के बिना बीता कोई भी दिन व्यर्थ होता है।

सर चार्ली चैप्लिन के महान और उत्साही जीवन से प्रेरणा लेते हुए जौली अंकल का यह विष्वास और भी दृढ़ हो गया है कि जो कोई सच्ची लगन से किसी कार्य को करते है उनके विचारो, वाणी एवं कर्मो पर पूर्ण आत्मविष्वास की छाप लग जाती है। कामेडी के मसीहा चार्ली चैप्लिन ने इस बात को सच साबित कर दिखाया कि कोई किसी भी पेषे से जुड़ा हो वो चुप रह कर भी अपने पेषे की सही सेवा करने के साथ हर किसी को खुषियां दे सकता है।
                                                                    
                                                                                                                                           ’’ जौली अंकल ’’