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शनिवार, 2 नवंबर 2013

NAYA GHAR - A motivational story by JOLLY UNCLE

"नया घर" नौकर ने आकर शमशेर सिंह को बताया कि आपसे कोई मिलने आया है। शमशेर सिंह ने दरवाजे की ओर देखा तो उनके दफ़्तर का एक साथी मिठाई का डिब्बा और निमत्रंण पत्र हाथ में लिये खड़ा था। अपने मित्र से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि उसने अपना नया घर बनाया है और उसी के लिये न्योता देने आया है। शमशेर सिंह ने अपना दिल खोलते हुए उससे कहा कि मैं भी अगले साल रिटायर हो रहा हूँ, लेकिन मैने तो अभी तक अपना घर बनाने के बारे में सोचा ही नही। शमशेर सिंह जी के बेटे और बहू ने कहा कि हम तो आपसे कई बार कह चुके हैं कि आप भी जल्दी से अपना एक नया घर बना लो। जब तक आप नौकरी में हो तब तक घर बनाने में किसी किस्म की कोई परेशानी नहीं होगी। उसके बाद तो कई लोग टांग अड़ाने के लिये खड़े हो जाते हैं। शमशेर सिंह ने अपने बेटे से कहा कि आज कल घर बनाने के लिये बहुत सारे पैसों की जरूरत पड़ती है। बेटे ने झट से कह दिया कि आप एक बार आवाज तो दे कर देखो, बैंक वाले घर आकर कर्ज दे जायेंगे। आपको किसी प्रकार की जोड़-तोड़ करने की जरूरत ही नहीं। इसी बात को लेकर उनकी पत्नी ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया। भोले-भाले शमशेर सिंह जी अपनी पत्नी और बच्चो को खुशियाँ देने के लिये उनकी इस मांग के आगे झुक गये। अगले दिन से ही बेटे ने कुछ लोगो से सलाह-मशविरा करते हुए घर बनवाने का काम शुरू करवा दिया। घर बनाने के लिये बैंक से मोटा कर्ज भी शमशेर सिंह ने लेकर अपने बेटे को दे दिया। जैसे-जैसे शमशेर सिंह जी का सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आने लगा, बेटे ने काम और तेज करवा दिया ताकि सरकारी बंगला छोड़ कर सीधा अपने घर में ही प्रवेश किया जा सके। एक दिन अचानक बैठे हुए शमशेर सिंह ने अपनी पत्नी से कहा कि हम लोग कई सालों से घूमने नही गये। अगर तुम चाहो तो रिटायर होने से पहले हम सरकारी खर्चे पर घूमने जा सकते हैं। बहू और बेटे ने कहा कि नेकी और पूछ-पूछ। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। जब तक आप लोग घूम-फिर कर वापिस आओगे तब तक घर भी बन कर तैयार हो जायेगा। उसने झट से एक ट्रैवल एजेंसी से कह कर उनका बढ़िया सा घूमने का प्रोग्राम बना दिया। टूर के दौरान बहू-बेटे से घर बनने के बारे में बात लगातार होती रही। कुछ समय बाद जब शमशेर सिंह जी अपना टूर पूरा करके वापिस आये तो अपने आलिशान घर को देख कर फूले नही समा रहे थे। अच्छे से सारे घर को निहारने के बाद इन्होने घर में प्रवेश किया। घर की खूबसूरती देखने के बाद शमशेर सिंह जी ने पूछा कि हमारा कमरा कौन सा है ? बेटे ने कहा कि यह आप क्या कह रहे हो? सारा घर ही आपका है, आप अलग से कमरे की क्या बात कर रहे हो। बहू ने जब खाना खाने के लिये कहा तो शमशेर सिंह जी ने कहा कि मैं काफी थका हुआ हूँ। जरा पहले नहा लूं फिर आराम से खाना खायेंगे। इसी के साथ उन्होंने कहा कि जरा हमारा सामान हमारे कमरे में रखवा दो। इतना सुनते ही शमशेर जी का बेटा फोन का बहाना बना कर बाहर निकल गया। बहू भी कमरे के नाम पर टाल-मटोल करने लगी। शमशेर सिंह की पत्नी ने कहा कि क्या बात है ? परेशान क्यूं हो रही हो? बहू ने घर के ड्राईवर को बुला कर इशारे से कहा कि इनका सामान घर के पीछे बने हुए कमरे में ले जाओ। इतना सुनते ही शमशेर सिंह जी और उनकी पत्नी के पैरों तले जमीन खिसक गई। बहू ने सफाई देते हुए कहा कि असल में जो कमरा आपके लिये बनाया था उसमें आपके बेटे ने अपना दफ़्तर बना लिया है। इस वजह से आपके लिये घर के पीछे अलग से एक कमरा बनवाना पड़ा है। सारी उम्र शानोशौकत के साथ सरकारी बंगले में राज करने वाले शमशेर सिंह जी चुपचाप घर के पिछवाड़े में नौकरों के लिये बने हुए कमरे में रहने के लिये चले गये। कमरे में दाखिल होते ही शमशेर सिंह की पत्नी ने उनसे कहा कि मैं सारी जिंदगी आपको समझाती रही हूँ कि इतने नर्म मत बनो नहीं तो एक दिन यह दुनियां आपको खा जायेगी। यह आपके सीधेपन का ही नतीजा है कि आज आपके अपने बहू-बेटे आपको इस तरह से नचा रहे हैं। शमशेर सिंह ने अपनी पत्नी को दिलासा देते हुए कहा लगता है, तूने वो कहावत नही सुनी कि अगर कोई आपका दिल दुखाए तो उसका बुरा मत मानो, क्योंकि यह कुदरत का नियम है कि जिस पेड़ पर सबसे ज्यादा मीठे फल होते हैं, उसी को सबसे अधिक पत्थर लगते हैं। शमशेर सिंह जी के धैर्य को सलाम करते हुए जौली अंकल उनके बेटे और बहू को बताना चाहते हैं कि मां-बाप तो वो अनमोल नगीने होते है जो हमें मुफ्त में मिलते हैं, मगर इनकी कीमत का उस दिन पता चलता है जब यह खो जाते हैं। आप लोगो ने जिस प्रकार छल-कपट करके अपने माता-पिता से उनका नया घर छीना है, उसके बदले में आज से ही सावधान हो जाओ क्योंकि बहुत जल्द आपका भी नया घर कोई न कोई आपसे छीन सकता है। जौली अंकल

मंगलवार, 7 मई 2013

PEHLA KADAM - Motivational story by JOLLY UNCLE


पहला कदम जौली अंकल वकील साहब के बेटे ने शाम को कहचरी से आकर अपने पिता के पांव छू कर उन्हें खुशी-खुशी बताया कि आपके आर्शीवाद से आज में पहले ही दिन आपके द्वारा दिया हुआ मुकदमा जीत गया हूं। वकील साहब ने खुश होने की बजाए बेटे को गुस्सा करते हुए कहा कि मैं तो तुम्हारी ड्रिगियां और काबलियत देख कर तुम्हें बहुत बुद्विमान समझ रहा था लेकिन तुम तो बड़े ही बेवकूफ किस्म के इंसान निकले हो। अपने पिता का यह रवैया देख कर नया-नया वकील बना बेटा चकरा गया कि पिता जी कैसी अजीब बाते कर रहे है? मैने तो जी तोड़ मेहनत करके केस को अच्छे से तैयार किया था, जिसकी वजह से जज साहब ने पहले ही दिन मेरे हक में फैसला सुना दिया। थोड़ी हिम्मत जुटा कर इस लड़के ने अपने पिता से पूछ ही लिया कि आपको ऐसा क्यूं लग रहा है कि मैने अपना पहला महत्वपूर्ण केस जीत कर कोई बहुत बड़ी गलती कर दी है। वकील साहब ने कहा कि मुझे तुम्हारा पहला केस जीतने से कोई परेशानी नही है। मुझे तो दिक्कत इस बात से हो रही है कि मैने शहर के सबसे बड़े सेठ का केस तुम्हें दिया था। इस केस को तुम बरसों लटका कर आसानी से लाखों रूपये कमा सकते थे। परंतु तुमने तो पहले ही दिन इस केस को निपटा कर आसानी से होने वाली मोटी कमाई पर खुद ही लात मार दी है। अपने पिता का यह व्यवहार देखकर वकील साहब का बेटा अपनी कामयाबी पर खुश होने की बजाए खुद को मन ही मन दोशी समझने लगा था। आज पहले ही दिन बेटे को ऐसा महसूस होने लगा कि उसने शायद अपने पेशे में पहला कदम ही गलत तरीके से रख दिया हो। अपने बेटे को उदास और दुखी देख कर वकील साहब की पत्नी ने अपने बेटे को खुल कर सारी बात बताने को कहा। सारी घटना सुनने के बाद वकील साहब की पत्नी ने उनसे कहा कि आप हमेशा दूसरों को तो आंकते रहते है, क्या कभी आपने अपने आप को भी आंकाने की कोशिश की है। मैं जानती हूं कि आप ऐसा नही कर सकते लेकिन जिस दिन ऐसा करोगे उस दिन आप अपने को काफी खुश महसूस करोगे। जीवन जीने के लिये हर कोई धन कमाता है और धन कमाना कोई बुरी बात नही है। लेकिन एक कामयाब वकील होने के नाते क्या आप गलत तरीके से धन कमाने को उचित ठहरा सकते हो? दुनियां भर के कानून की समझ रखने वाले वकील साहब इतना तो आप भी मानोगे कि अधर्म से की गई कमाई की गिनती तो अधिक हो सकती है, परंतु बरकत सिर्फ ईमानदारी की कमाई में ही होती है। हम सभी यह बात जानते है कि ईमानदारी कभी भी किसी कायदे कानून की मोहताज नही होती। जहां तक धन-दौलत की बात है तो अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा यह सिर्फ बुराई का एक ढ़ेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है। जिस धनवान के पास संतुष्टि नहीं वह सबसे बड़ा गरीब और जिस गरीब के पास संतुश्टि होती है वही सबसे बड़ा अमीर होता है। कोई भी बच्चा जब पैदा होता है तो उसके वस्त्रों में जेब नही होती और जब मनुष्य इस दुनियां से जाता है तब उसके कफन में जेब नही होती। जेब भरने का लालच जन्म और मरण के बीच में आता है। जेब भरने के इस खेल में हर कोई खुद को सबसे बड़ा खिलाड़ी समझते हुए हर प्रकार के गलत काम करने लगता है। हम लोगो को अपने मन से समय-समय पर विकार रूपी खर-पतवार को हटाते रहना चाहिये ताकि वो हमारे नेक विचारों को प्रभावित न कर सकें। इसी के साथ हमें अपना मन और आचरण सदा ही शुद्ध रखने चाहिये, क्योंकि मैले आईने पर तो सूर्य का भी प्रतिविंब दिखाई नही देता। अपनी पत्नी का इतना लंबा-चोड़ा व्याख्यान सुन कर वकील साहब को ऐसा लगने लगा कि वो अपनी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण केस हार रहे है। इसी बौखलाहट में उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वकील साहब की पत्नी ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि हर समय मन में क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी दूसरे पर फेंकने की नीयत से पकड़े रहने के सामान है, इसमें दूसरों से पहले आप ही जलते है। कोई भी व्यक्ति कभी भी क्रोधित हो सकता है, यह आसान है, लेकिन सही व्यक्ति के ऊपर, सही सीमा में, सही समय पर और सही उद्देष्य के साथ सही तरीके से क्रोधित होना सभी के बस की बात नही होती और यह आसान भी नही होता। वकील साहब की पत्नी ने अपने तर्क जारी रखते हुए कहा कि हमारे जीवन का उद्देष्य यह होना चाहिये कि हमारा जीवन उद्देष्यों से भरा हो। पहले कदम से ही हमें वो सब कुछ षुरू करना चाहिये जो हम भविश्य में बनना चाहते है। अपना घर संसार बनाने के लिये एक योजना की आवष्यकता होती है। जिंदगी को सुखमई बनाने के लिये यह और भी जरूरी हो जाता है कि हमारे पास एक अच्छी योजना और एक लक्ष्य हो। एक साफ लक्ष्य एक समय सीमा के साथ देखे गये सपने की तरह होता है। ठीक से कोई लक्ष्य ना होने की दिक्कत यह होती है कि आप अपनी जिंदगी के मैदान में इधर-उधर दौड़ते हुए समय गवां देगे पर एक भी गोल नही कर पाएंगे। आज आपके बेटे ने अपनी जीविका कमाने की दौड़ में पहला कदम रखा है। उसे उस राह की और मत धकेलिये जहां सारी दुनियां आखें बंद करके भागे जा रही है, बल्कि उसे वो राह दिखाईये जहां कोई नही जा रहा ताकि वहां वह अपनी अलग पहचान बना कर उसके निशान छोड़ सके। हर अच्छी बात का जन्म दो बार होता है, पहली बार हमारे दिमाग में दूसरी बार वास्तविकता में। हर चीज में कोई न कोई खूबसूरती होती है लेकिन हर कोई उसे नही देख पाता। आपका बेटा भी एक अनमोल हीरा है, उसे साधारण पथ्थरों के साथ मत मिलाओ। उसे जो कुछ अच्छा दिखाई दे रहा है उसे उस और जाने दो, जब वो वहां पहुंचेगा फिर वह और आगे देख पाएंगा। शिखर तक पहुंचने के लिए सिर्फ ताकत भरे पहले कदम की जरूरत होती है, फिर चाहे वो माउन्ट एवरेस्ट का शिखर हो या आपके पेशे का, आपको वहां पहुंचने से कोई नही रोक सकता। वकील साहब की पत्नी की जोरदार दलीलें सुनकर कर जौली अंकल तो इसी फैसले पर पहुंचे है कि प्रत्येक अच्छा कार्य शुरू में असभ्भव नजर आता है। परंतु महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते है बस सिर्फ शर्त इतनी है कि उनका पहला कदम सही समय पर सही दिशा से शुरू हो। www.jollyuncle.com

MUSKAAN - One more story from JOLLY UNCLE


मुस्कान जौली अंकल स्कूल से आते ही मुस्कान अपना स्कूल बैग एक तरफ रख रोज की तरह मां के गले से लिपट गई। इससे पहले की मां उसके लिए खाना तैयार करती मुस्कान ने मम्मी से पूछा कि यह सैक्स क्या होता है? बच्ची के मुंह से यह अल्फाज सुनते ही मानों मुस्कान की मां के पैरो तले की जमीन खिसक गई हो। आज उसे फिर से मुस्कान के पापा की इस जिद्द पर अफसोस होने लगा कि उन्होने अपनी बेटी को सहशिक्षा स्कूल में क्यूं पढ़ने भेजा? आज यदि हमारी मुस्कान केवल लड़कियों के स्कूल में पढ़ रही होती तो शायद यह दिन देखने को न मिलता। खुद को थोड़ा संभालते हुए उसने अपनी बेटी को कहा कि पहले तुम खाना खा लो, इस विशय में बाद में बात करेगे। खाना खत्म होते ही उत्सुक्तावश मुस्कान ने अपना सवाल मां के सामने रख कर फिर से परेशानी खड़ी कर दी। किसी तरह समझा-बुझा कर मुस्कान की मां ने शाम तक का समय निकाला। जैसे ही मुस्कान के पापा काम से लोटे तो बिना चाय-पानी पूछे अपना सारा दुखड़ा एक ही सांस में उन्हें कह डाला। मुस्कान के पापा ने धीरज से काम लेते हुए बेटी से पूछा कि तुम्हें यह सब कुछ किसने बताया है? मुस्कान ने झट से अपने स्कूल बैग से एक फार्म निकाल कर अपने पापा की और बढ़ाते हुए कहा कि मैंडम ने यह भरने के लिये कहा था। मैने बाकी का सारा फार्म तो भर लिया है, लेकिन एक पंक्ति में सैक्स के बारे में कुछ लिखना है। पिता ने जब ध्यान से फार्म देखा तो हंसते हुए उसे अपनी पत्नी की और बढ़ाया तो उसमें केवल स्त्री या पुरश के बारे में जानकारी मांगी गई थी। मुस्कान के पापा ने अपनी पत्नी की और हंस कर देखते हुए कहा कि खोदा पहाड़ निकली चुहियां। मुस्कान की मम्मी ने चाय के कप के साथ सरकार के शिक्षा विभाग का एक पत्र भी पति को थमा दिया। इस पत्र में शिक्षा विभाग के अधिकारीयों द्वारा सैक्स शिक्षा की जानकारी से जुड़े हर प्रकार के ज्ञान को नई पीढ़ी तक कैसे पहुंचाया जाये इसके बारे में एक लेख लिखने का अनुरोध किया गया था। लेख पंसद आने पर अच्छी रकम का वादा भी किया गया था। एक लेखक होने के नाते मुस्कान के पिता का जीवन भी उस दीपक की तरह था जो खुद अंधेरे में रहते हुए दूसरों को रोषन करता रहता है। यह भी अपनी कलम के माध्यम से समाज को उजाला तो दे रहे थे लेकिन खुद अपना जीवन बहुत ही बुरे हाल में गुजार रहे थे। ऐसे में अच्छी रकम का वादा सुनते ही उन्हे अपने कई अधूरे ख्वाब पूरे होते दिखने लगे। बिना पल भर की देरी किये उन्होने इस विषय पर अपने दिमाग के घोड़े दुड़ाने शुरू कर दिये। मुस्कान के पापा लेखक की हैसयित से इस बात पर गहराई से विचार करने लगे। आज अजादी के 60 बरस बाद भी अभी तक यह क्यूं नही तह कर पा रहे कि बाकी सभी विशयों की तरह इस विशय की जानकारी भी जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम इस बात को क्यूं भूल जाते है कि शिक्षा और ज्ञान चाहे किसी भी विशय से जुड़े हो उसका एक मात्र सबसे बड़ा लक्ष्य समाज को आत्मनिर्भर बनाना ही होता है। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए मुस्कान के पापा ने अपनी कलम के माध्यम से सैक्स शिक्षा से जुड़े हर पहलू को तराशना शुरू किया तो उन्होने पाया कि सैक्स का जाल तो हमारे चारो और फैला हुआ है। समाचार पत्रो से लेकर टेलीविजन सिनेमा और इंटरनेट पर इसकी भरमार है। जैसे ही कलम ने सैक्स शिक्षा पर लिखने का प्रयास शुरू किया तो सबसे पहले उन छोटी बेटियों का ख्याल मन को सताने लगा जो अज्ञानता के चलते नादानी से कच्ची उंम्र में ही भटक जाती है। ऐसे बच्चो के बारे में सोच कर और भी घबराहट होने लगी जो अपने मां-बाप की इकलोती संतान होते हुए भी एच,आई,वी जैसी लाईलाज बीमारी के शिकार है। सारी दुनियां को ज्ञान की रोशनी दिखाने वाला भारत देश इस मामले में इतने गहरे अंधकार में कैसे डूबा हुआ है। इसकी सोच से ही घबराहट होने लगती है। हमारे देश में इस शिक्षा के अभाव में कई बेटियां चाहते हुए भी खुद अपना बचाव नही कर पाती। थोड़ी सी सैक्स शिक्षा भी 11 से 18 साल तक के बच्चो के जीवन में कष्टों को खत्म करते हुए उजालों से भर सकती है। इससे पहले की हमारे फूलों जैसे कोमल किशोर राह भटक कर अंधेरी डगर पर चलने को मजबूर हो जाये, हमे खुशी-खुशी अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। स्कूल के अध्यापको को भी यह बात माननी होगी कि विशय चाहे कोई भी हो, ज्ञान के माध्यम से दूसरों को खुशी देना ही सर्वोत्तम दान है। मुस्कान के पिता की परेशानी उस समय और बढ़ गई जब शिक्षा विभाग वालों ने उनके इस लेख को जनहित में देश के अनेक नामी समाचार पत्रो की सुर्खीयां बना डाला। मुस्कान जो आठवी कक्षा में पढ़ती थी उसकी कक्षा के छात्रों ने सैक्स से जुड़े उल्टे सीधे सवाल पूछ कर उसका क्लास में बैठना दूभर कर दिया। हर छात्र एक ही बात कहता था कि किसी को सैक्स के बारे में कोई भी जानकारी लेनी हो तो वो मुस्कान के घर पहुंचे क्योंकि इसके पिता तो सैक्स गुरू है। धीरे-धीरे उसकी सहेलियां भी मुस्कान से कनी काटने लगी। सभी टीचर भी उसे इस तरह से देखने लगे जैसे इस बच्ची ने कोई बहुत बड़ा जुर्म कर दिया हो। इस तरह के माहौल और तानों को सारा दिन सुन-सुन कर मुस्कान इतनी दुखी और असहाय हो गई कि उसने खुदकशी करने का मन बना लिया। ज्ञानी लोगो की बात का विश्वास करे तो यही समझ आता है कि दूसरों को उम्मीदों का रास्ता दिखाने वालों को सदा ही उम्मीदों भरा सवेरा मिलता है। जौली अंकल का मानना है हमारे देश में सदियों से ज्ञान का प्रकाश फैलाने वालो को शुरू में अनेको विपत्तियों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में सैक्स शिक्षा जैसा काम तो हर किसी को असंभव ही प्रतीत होगा। लेकिन अपने देश और मानव जगत की सबसे अमूल्य धरोहर लाखो बच्चियों के चेहरो पर यदि सदा हंसी, खुशी और मुस्कान देखनी है तो हम सभी को मिलकर इस नेक कार्य को शुरू करने में अब और अधिक देर नही करनी चहिये।

जन्नत - जोली अंकल का एक और लेख


जन्नत जौली अंकल मिश्रा जी शाम को जब दफतर से लौटे तो उन्होनें देखा कि उनका बेटा बड़ा ही परेशान सा होकर घर के बाहर बैठा हुआ है। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने के साथ उन्होनें पूछा कि क्या हुआ, बहुत दुखी लग रहे हो? उनके बेटे ने कहा कि अब आपकी बीवी के साथ मेरा गुजारा होना बहुत मुश्किल है। वो मुझे भी हर समय आपकी तरह गुस्सा करने लगी है। मिश्रा जी ने कहा कि ऐसी क्या बात हो गई जो अपनी मम्मी से इतना नराज़ हो रहे हो। बेटे ने कहा कि मैने स्कूल से आकर मम्मी से कहा कि आज मुझे दोस्तो के साथ खेलने जाना है इसलिये आप जल्दी से मुझे पहले स्कूल का होमवर्क करवा दो। मम्मी ने मुझे कहा कि आज अपना काम खुद ही कर लो, आज तो मुझे सिर खुजलाने की भी फुर्सत नही है। मैने बस इतना कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो, मैं आपका सिर खुजला देता हॅू, आप मेरा होमवर्क कर दो। बस इसी बात को लेकर वो मुझे गुस्सा करने लग गई। मिश्रा जी ने बेटे का मूड बदलने और उसे खुश करने के लिये कहा कि आओ हम पार्क में खेलने चलते है। अगले ही पल दोनों घर से पार्क की और चल पड़े। रास्ते में एक पुल पर बहुत तेज पानी बह रहा था। मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि डरो मत, मेरा हाथ पकड़ लो। बेटे ने कहा, नही पापा आप मेरा हाथ पकड़ लो। मिश्रा जी ने मुस्करा कर कहा कि मैं तुम्हारा हाथ पकड़ू या तुम मेरा हाथ पकड़ो, इससे क्या फर्क पड़ता है। बेटे ने कहा अगर मैं आपका हाथ पकड़ता हॅू और मुझे अचानक कुछ हो जाए तो शायद मैं आपका हाथ छोड़ दू, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ोगे तो मैं जानता हॅू कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप मेरा हाथ कभी नही छोड़ेगे। कुछ ही देर में दोनों एक सुंदर से पार्क में खेल रहे थे। खेल-खेल में मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि तुम मुझ से तो इतना प्यार करते हो परंतु अपनी मां से हर समय नाराज़ क्यूं रहते हो? बेटे ने मिश्रा जी से कहा कि मुझे तो लगता है मम्मी को बच्चे ठीक से पालने ही नही आते। मिश्रा जी ने हैरान होकर कहा कि बेटा तुम ऐसा क्यूं कह रहो हो? बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि जब मेरा खेलने का मन होता है तो वो मुझे जब्बरदस्ती सुलाने की कोशिश करती है, जब मैं सो रहा होता हॅू तो जब्बरदस्ती मुझे उठाने की कोशिश करती है। बेटे की मासूमयित भरी शिकायते सुनकर मिश्रा जी को अपना बचपन और अपनी मां की याद आ गई। मन ही मन यह सोचने लगे कि इस नादान को कैसे समझाऊं कि मां जैसा इस दुनियां में तो कोई दूसरा हो ही नही सकता। मां के दिल में बच्चो के प्रति इतना प्यार होता है कि बच्चे चाहे कितनी ही गलतियां क्यूं न कर ले, मां उनकी हर गलती को माफ कर देती है। ज्ञानी और विद्वान लोगो का तो यहां तक मानना है कि मां तो प्रेम-प्यार की वो गंगा-जमुना है जिसके बिना इस सृष्टि की कल्पना करना ही नामुमकिन है। कुछ जगह तो यहां तक पढ़ने को मिलता है कि भगवान के बाद यदि इंसान को किसी की पूजा करनी चाहिये तो वो हक सिर्फ मां को है। मां चाहे किसी की भी हो वो घर में सबसे पहले उठती है। सब की जरूरतों का ध्यान रखते हुए हर किसी के लिये खाना बनाती है। जिस दिन तुम्हें मां का त्याग समझ आयेगा उस दिन तुम अनुभव करोगे कि एक मां ही ऐसी है कि उसका बच्चा चाहे उससे कितना ही गलत क्यूं न बोल ले, वो कभी भी उसका बुरा नही मानती। मां अपने बच्चो की हर खुषी को ही अपना सुख मानती है। मिश्रा जी को थोड़ा गुमसुम सा बैठा देखकर उनके बेटे ने कहा कि आप यहां मेरे साथ खेलने आये हो या दफतर के काम के बारे में सोचने के लिये। मिश्रा जी ने उससे कहा कि मैं दफतर के बारे में नही बल्कि मां-बेटे के रिश्तों की अहमियत के बारे में ही सोच रहा था। बेटे ने थोड़ा ताज्जुब करते हुए कहा कि मां के इस रिश्ते में ऐसा खास क्या है जो आप इतनी गहरी सोच में डूब गये? मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि यदि इस रिश्ते के बारे में तुम अच्छे से कुछ जानना चाहते हो तो अब थोड़ी देर मेरी बाते ध्यान से सुनो। उन्होनें अफसोस जताते हुए बेटे से कहा कि जिस मां को तुम आज चुप रहना सिखा रहे हो उसने तुम्हें दिन-रात मेहनत करके बोलना सिखाया था। मां चाहे क्रोधी हो, पक्षपाती हो, शंकाशील हो, हो सकता है यह सारी बाते ठीक हो परंतु हमें यह कभी नही भूलना चाहिये कि वो हमारी मां है। कुछ समय बाद तुम्हारी शादी होगी उस समय यह बात जरूर याद रखना कि पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन मां पुण्य से मिलती है। पसंद से मिलनेवाली के लिए पुण्य से मिलने वाली मां रूपी देवी को कभी मत ठुकराना। जो कोई घर की मां को रूला कर और मंदिर की मां को चुनरी ओढ़ाता है तो याद रखना मंदिर की मां उन पर खुश होने की बजाए खफा ही होगी। बेटा मां को सोने से न मढ़ो तो चलेगा, हीरे मोतियों से न जड़ो तो चलेगा, पर उसका दिल जले और आंसू बहे यह कैसे चलेगा? जिस दिन तुम्हारे कारण मां की आखों में आंसू आते है, याद रखना उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म-कर्म व्यर्थ के आंसूओं में बह जायेगा। बचपन के आठ-दस साल तुझे अंगुली पकड़कर जो मां स्कूल ले जाती थी, उसी मां को बुढ़ापे में चंद साल सहारा बनकर मंदिर ले जाना, शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज, थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा हो जायेगा। मां की आखों में दो बार आसूं आते है, एक बार जब उसकी लड़की घर छोड़ कर जाती है दूसरी बार जब उसका बेटा उससे मुंह मोड़ लेता है। इन्ही बातो को ध्यान में रख कर शायद हमारे धर्म-ग्रन्थों में मां को इतनी अहमियत देते हुए यह कहा गया है कि ऊपर जिसका अंत नही उसे आसमां कहते है, जहां में जिसका अंत नही उसे मां कहते है। आज तक इस दुनियां में शायद किसी ने भगवान को नही देखा परंतु यदि तुम चाहो तो अपनी मां में ही भगवान को देख सकते हो। मिश्रा जी के अहम विचार सुन कर जौली अंकल हर मां के चरणों में नमन करते हुए यही कहना चाहते है कि इस दुनियां में यदि किसी ने भी जन्नत देखनी हो तो वो सिर्फ मां के कदमों में देखी जा सकती है। (लेखक-जौली अंकल व्यंग्यकार व वरिष्ठ कथाकार हैं।)

हास्य दिवस - जोली अंकल कि एक और कहानी


हास्य दिवस जौली अंकल नेता जी अपने दफतर में दाखिल होते ही बिना किसी को दुआ सलाम किए हुए प्रसाधन कक्ष की और दौड़ गये। पास बैठे एक सज्जन ने कहा कि नेता जी को क्या हुआ अभी तो घर से तरोताजा होकर आये है और आते ही फिर से प्रसाधन कक्ष में घुस गये है। उनके सेक्ट्री ने कहा कि अभी दफतर में बैठते ही कई किस्म के ऊपर से प्रेशर आने शुरू हो जाते है, इसी के साथ यदि कोई दूसरे प्रेशर भी बन जाये तो नेता जी को काम करने मे बहुत कठिनाई होती है, इसीलिये वो काम षुरू करने से पहले अपने आप को हल्का करके ही बैठते है। जैसे ही नेता जी वापिस अपनी सीट पर आकर बैठे तो उनके सेक्ट्री ने कहा कि हास्य दिवस के मौके पर इलाके के कुछ लोग प्रसन्नता, मुस्कुराहट एवं हास्य पर अधारित एक अनूठे कार्यक्रम का आयोजन कर रहेे है। उनका अनुरोध है कि आप इस खास मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में आकर आम जनता को हास्य के बारे जानकारी देते हुए इसके गुणों से अवगत कराऐं। जिससे कि आम आदमी आज के इस तनाव भरे दौर में हंसी-खुषी या यूं कहिए कि लाफ्टर थरैपी का भरपूर फायदा उठा सके। हालिक नेता जी को इस विषय के बारे में कुछ अधिक ज्ञान तो था नही परंतु उन्होने चुनावों के मद्देनजर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने की चाह में झट से न्योता स्वीकार करते हुए मुख्य अतिथि बनने की हामी भर दी। अगले दिन जब नेता जी हास्य के इस कार्यक्रम के लिये तैयार होकर घर से निकले तो उन्हें ध्यान आया कि उनके सेक्ट्री ने इस मौके के लिये भाशण तो लिख कर दिया ही नही। अब नेता जी दुनियां को हास्य के महत्व को बताने से पहले खुद ही बुरी तरह से तनाव में आ चुके थे। एक बार उनके मन में आया कि अपने किसी कर्मचारी से फोन पर हास्य के बारे में बात करके अच्छे से जानकारी ले ली जाये। लेकिन फिर नेता जी को लगा कि अपने ड्राईवर के सामने अगर वो किसी कर्मचारी से इस बारे में बात करते है तो यह गंवार ड्राईवर क्या समझेगा कि मैं हास्य में बारे में कुछ जानता ही नही। इसी के साथ सड़क पर टैफिक जाम के कारण उनकी परेशानी एवं घबराहट और अधिक बढ़ने लगी थी। जैसे-जैसे कार्यक्रम में पहुंचने के लिये देरी हो रही थी, नेता जी की टेंषन भी उसी तेजी से बढ़ती जा रही थी। उनके मन में बार-बार यही आ रहा था कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो है लेकिन यह हास्य दिवस क्या बला है? यह कब और किस ने शुरू किया, इस बारे में तो कभी कुछ देखने-सुनने को नही मिला। मुझे लगता है कि फादर डे, मदर डे और वैलेटाईन्स डे की तरह इसे भी जरूर किसी अग्रेंज ने षुरू किया होगा। मैने भी न जानें बिना सोचे-समझे इस कार्यक्रम के लिये हां करके मुसीबत मोल ले ली। नेता जी का ड्राईवर कार में लगे हुए छोटे से शिशे में उनके चेहरे के हाव-भाव को अच्छे से समझ रहा था। उसने कहा सर, अगर आपकी इजाजत हो तो मैं इस बारे में कुछ कहूं। नेता जी ने कहा कि तुम ठीक से अपनी गाड़ी चलाओ, तुम मेरी क्या मदद करोगे? आज जिस कार्यक्रम में हम जा रहे है वहां सारे षहर के मीडिया के अलावा सभी नामी-ग्रामी लोग आये होगे। ड्राईवर ने कहा कि मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा तो है नही, लेकिन इतना जरूर जानता हॅू कि हम हास्य दिवस के किसी समारोह में जा रहे है। परंतु यह तो कोई ऐसा विषय नही है जिसके बारे में इतनी चिंता की जाये। नेता जी ने अपना पसीना पोछते हुए उससे कहा कि तुम हास्य के बारे में क्या जानते हो? ड्राईवर ने कहा साहब जी गुस्ताखी माफ हो तो मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि चाहे हमारे जीवन में कैसे ही हालात क्यूं न आ जाये, हमें कभी भी अपना आत्मविष्वास नही खोना चाहिए। जब आप पूरे साहस के साथ किसी भी कार्य को करने का मन बना लेते है तो उस समय आप महान कार्य को भी आसानी से कर लेते है। नेता जी ने ड्राईवर से कहा कि यह फालतू के भाषण छोड़ अगर कुछ थोड़ा बहुत हास्य के बारे में बता सकता है तो वो बता दें। ड्राईवर ने नेता जी की बात का जवाब देते हुए कहा कि हंसी मजाक का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि सदा खुश रहने वालों का मानसिक संतुलन कभी नही बिगड़ता। एक बात और, हंसने की विधि तो सबसे आसान योग है और इसीलिये खुश रहने वाले सदा आशावादी रहते है। खुशमिजाज लोगो के अपने सभी मिलने वालों से रिश्ते और गहरे हो जाते है। जहां तक मुमकिन हो सके हमें हर किसी को खुशी देने का प्रयास करते रहना चाहिये क्योंकि रूठने मनाने के साथ थोड़ा बहुत मुस्कराने से जीवन में बहुत लाभ मिलता है। लोग मन की शांति पाने के लिये न जाने कहां-कहां भटकते रहते है, लेकिन आज तक किसी को भी न तो काबा में और न ही कांशी में खुशी मिली है। खुशी तो हर किसी के मन में ही होती है लेकिन इसका आंनद सिर्फ वोहि लोग पा सकते है जो इस ज्ञान के गुणों को समझ कर जीवन में अपना लेते है। ड्राईवर से इतना सब कुछ सुनने के बाद नेता जी का खोया हुआ आत्मविष्वास काफी हद तक फिर से वापिस लोट आया था। उन्होने समारोह में जाते ही अपना भाषण शुरू करते हुए वो सब कुछ कह डाला जो कुछ भी उन्होने अपने ड्राईवर से सुना था। नेता जी की हर बात पर सारा हाल तालियों से गूंज उठता। अपनी बात खत्म करने से पहले उन्होने कहा कि हास्य के साथ हमारे शहर का ट्रैफिक जॉम भी बहुत ही कमाल की चीज है। पास खड़े स्टेज सेक्ट्री ने कहा नेता जी आज यहा हास्य दिवस मनाया जा रहा है, आपको केवल हास्य दिवस के बारे में बोलना है। नेता जी ने उसे चुप करवाते हुए कहा कि मैं जानता हॅू कि मुझे हास्य दिवस के मौके पर ही बोलने के लिये बुलाया गया हैं। परंतु आज मुझे इस सच्चार्इ्र को स्वीकार करने मे कोई सन्देंह नही है कि हास्य जैसे महत्वपूर्ण विषय के बारे में जो कुछ मैं अपने जीवन के 60 साल में नही सीख सका वो आज के ट्रैफिक जॉम की बदौलत अपने ड्राईवर से सीख पाया हॅू। हास्य की गौरवमई महिमा से प्रभावित होकर जौली अंकल का खिला हुआ चेहरा तो यही ब्यां कर रहा है कि कोई भी व्यक्ति जीवन की तमाम परेशानियों को खत्म करने के लिये हंसने-हंसाने पर पूर्ण रूप से भरोसा कर सकता है। अब यदि हम अपने दिल और दिमाग को हास्य के माध्यम से शांत रखने की कोशिश करे तो जहां एक और हमारे मन में रचनामात्मक विचार पैदा होगे वही हमें साल में एक दिन हास्य दिवस मनाने की जरूरत नही पड़ेगी बल्कि फिर तो हमारा हर दिन ही हास्य दिवस बन जायेगा।

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

मज़ाक – मज़ाक में – जौली अंकल


मज़ाक – मज़ाक में – जौली अंकल बंसन्ती ने जैसे ही वीरू के सामने खाने की थाली रखी तो उसने कहा कि तुम्हारी मौसी की मज़ाक करने की आदत अभी तक गई नही। बंसन्ती ने पूछा कि अब उन्होनें तुम्हें ऐसा क्या कह दिया कि फिर से जनवरी के इस ठंड भरे महीने में भी तुम्हारा पारा जून की गर्मी की तरह तेजी से चढ़ रहा है। वीरू ने कहा ऐसी तो कुछ खास बात नही है, बस आज तुम्हारी मौसी मेरे से फिर पूछ रही थी कि तुम मेरी बेटी बंसन्ती के साथ शदी करके खुश तो हो न? बंसन्ती ने नाक भौं चढ़ा कर कहा कि इसमें बुरा मानने की क्या बात है, तुम भी तो हर समय मेरे साथ मज़ाक करते रहते हो, मैने तो तुम्हारी बात का कभी बुरा नही माना। वीरू ने अपने चेहरे को थोड़ा गंभीर बना कर अपनी पत्नी से दिल्लगी करते हुए कहा कि मैने शादी से पहले भगवान से अपने लिये जो कुछ मांगा था वो सब कुछ उसने दे दिया, बस एक जगह न जाने उसने कैसे थोड़ी सी गलती कर दी? बंसन्ती ने अपने पति से कहा कि आखिर मुझे भी तो बताओ कि आपने अपने भगवान से क्या-क्या मांगा था और उसने देने में तुम्हारे साथ कहां नाइंसाफी कर दी। वीरू ने कहा कि मैने कुछ अधिक तो नही बस भगवान से अपने लिये अपनी कमाई 7 अंको में, बचत 6 अंकों में, घर 5 बैडरूम का, एक बढ़िया सी 4 पहियों वाली गाड़ी, महीने में काम से तीन हफते की छुट्टी, 2 प्यारे से बच्चे और एक गूंगी बीवी की मांग की थी। भगवान ने बाकी सभी कुछ तो ठीक से दे दिया बस बीवी देने में चूक कर गये। गूंगी बीवी की जगह ऐसी बीवी दी है जो रेड़ियों और टीवी की तरह कभी चुप ही नही होती। रेड़ियों टीवी में भी उन्हें बंद करने के लिये बटन लगा होता है लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें चुप करवाने के लिये तो सारी दुनियां के वैज्ञानिक मिल कर भी कोई ऐसा स्विज नही बना सकते। बंसन्ती ने वीरू के इस हंसी के तमाषे को समझे बिना अपने पति से कहा कि तुम्हारे जैसे लोगो को भगवान छप्पड़़ फाड़ कर भी मन की सारी मुरादें दे दे तब भी आप उस का शुक्रिया अदा करने की बजाए उसके दोश ही निकालते रहते हो। शदी से पहले तो तुम ही कहते थे कि मेरी बातों को सुन कर तुम्हारे दिल में फूल खिल जाते है। वो मैं ही थी जिसे पहली नजर में देखते ही तुम्हारे होश उड़ गये थे और तुमने सपनों का महल बनाते हुए अपने घरवालों से कहा था कि जल्द से जल्द इस पूनम के चांद के साथ मेरी शदी करवा दो। जब पंडित जी ने कहा कि अभी कुछ समय तक अच्छा मुर्हत नही है तो तुमने कहा था कि मुर्हत का क्या करना है। आप जल्दी से लड़की के हाथो में मेंहदी लगा दो, हम शहनाई बजाने की तैयारी करते है। घर के बर्जुगो के मना करने पर भी आप उल्टा-सीधा दिमाग लड़ा कर बिना शुभ मुर्हत के ही घोड़ी पर चढ़ कर बारात ले आये थे। जब मेरी डोली तुम्हारे घर पहुंची थी तो तुम्हारे घर वालों ने घी के दीये जलाये थे। तुम्हारे घर में हर किसी की जुबान पर एक ही बात थी कि जन्मों से बिछड़े दो बदन मिल कर एक जान हो गये है। तुम भी बात-बात पर अपने दिल पर हाथ रख कर सारा जीवन साथ निभाने की कसमें खा रहे थे। कल तक मुझे देखते ही जहां तुम्हारे दिल और आखों में ठंडक पड़ती आज मेरी परछाई के करीब आते ही तुम्हारे हाथ पांव ठंडे होने लगते है। वीरू ने हालात की नाजुकता को समझे बिना मज़ाक का और आंनद लेने की मंशा से उसे तीखा बनाते हुए बसन्ती को उल्टी-सीधी बाते सुनानी शुरू कर दी। उसने बंसन्ती से कहा कि मैं तो तुम्हारा चिकना चेहरा देख कर फिसल गया था। मैने तो ऊपरी मन से शादी के लिये कहा था परंतु तुम्हारे घर वालों ने मेरा मोटा माल देख कर एक चिड़िया की तरह झट से मुझें फंसा लिया था। वीरू यह सब कुछ मज़ाक ही मज़ाक में कह रहा था। लेकिन बंसन्ती एक क्षण के लिये भी वीरू की नीयत को नही समझ पाई और उसका चेहरा नीला- पीला होने लगा था। इन दोनों की नोंक-झोंक को देख कर यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था कि इनमें से कौन अधिक चतुर है। क्योंकि कोई व्यक्ति कितना चतुर है, इसका अंदाजा उसके जवाबों से लगाया जा सकता है, इसी के साथ ही कोई व्यक्ति कितना बुद्विमान है, इसका अंदाजा उसके द्वारा किये गये प्रश्नों से लगाया जा सकता है। लेकिन यहां तो दोनों ही एक दूसरे के ऊपर नहले पर दहला साबित हो रहे थे। किसी संत ने बिल्कुल सच कहा है कि जीवन को सफल और कामयाब बनाने के लिये दो चीजें बहुत जरूरी है एक हंसी-मज़ाक और दूसरी चुप्पी। इस का तर्क वो इस तरह से बताते है कि हंसी-मज़ाक से हर समस्यां हल हो जाती है और चुप्पी से हर समस्यां को टाला जा सकता है। यदि हम मज़ाक-मज़ाक में किसी बात को मौके के हिसाब से ठीक से बोलना नही जानते तो वहां हमारा चुप रहना ही अच्छा होता है। यह सच है कि हंसी-मज़ाक हर किसी को सदा ही खुषी और आनंद देता है लेकिन हर मज़ाक की एक लक्ष्मण रेखा तह करना जरूरी है। जो लोग इस रेखा को नही समझ पाते वो कुछ छोटी-छोटी बातो पर सदा के लिये बातचीत खत्म कर देते है जबकि असल में अंदर कुछ बात होती ही नही। वीरू बंसन्ती की तरह किसी भी दूसरे इंसान पर बिना बात के बरस पड़ना बहुत आसान है परंतु यदि हम दूसरों के जीवन की राह में फूल नही बिखेर सकते तो कम से कम हंसी-मज़ाक के माध्यम से मुस्कराहट तो बिखेर ही सकते है। दूसरों को खुश करने के लिये बड़प्पन की नही महानता की जरूरत होती है। जौली अंकल संत जी के विचारों को मन के तराजू में तोलते हुए यही आंकलन कर पायें हैं कि हंसी-मज़ाक सूर्य की तरह अकेला ही वो काम कर सकता है जो हजारों तारे मिल कर भी नही कर पाते। इस बात से तो कोई भी इंकार नही कर पायेगा कि प्यार से जीने के लिये हमारा यह जीवन भी बहुत छोटा है, ऐसे में किसी के दिल को दुखाने की बजाए क्यूं न सारा जीवन हंसी-खुशी के साथ जीते हुए मज़ाक-मज़ाक में गुज़ारा जायें। जौली अंकल

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

HINDI STORY - PYAR KA TOHFA by JOLLY UNCLE


’’ प्यार का तौहफा ’’ चंद दिन पहले जब वैलेनटाईन्स डे का बुखार सारे देष में तेजी से फैल रहा था तो वो इस बार अपना कुछ असर हमारे दिल पर भी छोड़ गया। वैलनटाईन डे के साथ-साथ बिल किलंटन जो कभी अमरीका के सबसे ताकतवर नेता थे और अपने (गोरे घर) यानि वाईट हाउस मे रहते थे, उनके प्यार के चर्चे भी समाचार पत्रों में खूब छपे। पढ़ कर हमें बड़ी ही हैरानगी हुई कि दुनियां के सब से बड़े औदे पर आसीन होने के बावजूद और उंम्र की परवाह किये बिना वो अपने प्यार का तौहफा अपनी प्राईवेट सैक्ट्री को दिये बिना क्यूं नही रह पाये? आखिर सच्चे प्यार में कुछ बात तो जरूर है। वो बात अलग है कि वाईट हाउस और अपने मुंह पर कालिख पोतने के बाद उन्हें अभी तक सगी बीवी और बेटी से मुंह छिपाना पड़ता है। इतनी महान हस्ती से प्रेरणा लेते हुए इस बार वैलंेनटाईन्स डे पर हम ने भी हिम्मत जुटा कर सोचा कि जो काम हम अपनी जवानी के दिनों में नही कर पाये। इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्ही अरमानों को क्यूं न पूरा किया जाये? इस बार वैलंेनटाईन्स डे पर हम भी अपने प्यारे से दिल का तोहफा किसी को दे देकर देखते है। लेकिन अगले ही पल मन के किसी कोने से यह आवाज आई कि कही दिल लेने वाली सुंदर परी ने यह कह कर दिल लौटा दिया कि आप कोई दूसरा दिल पेष करो यह तो पिचका हुआ है तो बहुत किरकिरी हो जायेगी। इसी डर से मैने अपने नाजुक से दिल से खिलवाड़ करने की जगह तोहफे में फूल देने का मन बनाया। मेरे दिल ने मेरी हरकतो को भांपते हुए कहा, बड़े मियां दिल दो या फूल किसी ठीक-ठाक हम उम्र को ही देना। यदि किसी खूबसूरत जवां हसीना की तरफ हाथ बढ़ा तो मैं उम्र के इस पढ़ाव में ऐसे झटके बर्दाष्त नही कर पाऊगा। फिर मुझ से षिकायत मत करना क्योंकि ऐसे झटको के बाद और अधिक धड़कना मेरे बस में नही है। मैने सभी घरवालों से नजर बचा कर दाल-सब्जी की खरीददारी से थोड़े बहुत बचाये हुए पैसो को इकट्ठा करके पड़ोसी के बेटे को बाजार से कुछ फूल लाने को कहा। थोड़ी देर बाद उस बेवकूफ लड़के ने गुलाब के खुषबूदार फूलों की जगह प्लास्टिक के चंद फूल मेरे हाथ में थमा दिये। मैने उसे गुस्सा करते हुए कहा कि तुम्हें तो ताजे फूल लाने को कहा था। जरूरत से अधिक स्मार्ट उस बच्चे ने झट से कह डाला कि अंकल आप से इस उम्र में किसी ने यह फूल लेने तो है नही, मैने सोचा कि क्यूं आपके पैसे बर्बाद करू? कम से कम यह प्लास्टिक के फूल अगले दो चार साल तो आपके काम आ जायेगे। प्लास्टिक के फूलों को एक कौने में छिपा कर मैने अपने पोते से कहा कि बेटा जरा जल्दी से मेरे दांतो का सैट तो उठा ला। उसने खेलते-खेलते बिना मेरी बात की परवाह किये कह दिया कि दादा जी खाना तो अभी बना नही, अभी से दांत लगा कर क्या करोगे? अब मैं उसको यह भी नही कह सकता था कि मुझे अभी खाना नही खाना, तेरे दोस्त की दादी को स्माईल देने के साथ फूल देने है। हम बर्जुग जो छोटी सी बात को कहने के लिये बरसों हिम्मत नही जुटा पाते, उसी बात को नई पीढ़ी बिना सोचे समझे एक पल में कह देती है। कभी किसी ने सोचा न होगा कि जमाना इतनी तेजी से करवट लेगा कि प्यार करने और उसके इजहार करने के सभी तरीके बदल जायेगे। आऐ दिन पुराने रिष्तो का गला घांेट कर हर कोई नई रिष्ते बना रहा है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि आज के इस युग में किसी को दिल के टूटने का गम नही सताता। लोग ज्यादा वक्त न गवां कर डिष टी,वी, के रिमोट की तरह नई राह तलाषने लगते है। इसीलिये षायद आऐ दिन नई-नई जोडियां और हर तरफ नया प्यार देखने को मिलता है। इस बात को झुठलाना भी गलत होगा कि प्यार उम्र का मोहताज होता है या प्यार को किसी एक दायरे में बांधा जा सकता है। सबसे बड़ी सच्चाई तो यही है कि प्यार पर किसी का कोई जोर नही होता। परंतु जमाने के बदलते हालात को देख कर प्यार को प्यार कहना भी सही नही लगता। प्यार के इस खेल में यदि आप विजयी होना चाहते है तो आपको अपनी इन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण रखना होगा। जब आप स्वयं से प्रेम करना सीख लेगे तो दूसरे आपसे नफरत करना खुद ब खुद छोड़ कर प्यार करने लगेगे। सच्चे प्यार को समझने के लिए जहां ज्ञान जरूरी है, वहीं उसे महसूस करने के लिए अनुभव की आवष्यकता होती है। दूसरों को अपने से जोड़ने के लिये हमें सबसे पहले उनको को प्यार से अपना बनाना पड़ता है। हम जिन्हें सही अर्थो में प्रेम करते है, हमारा स्वरूप व व्यक्तित्व बिल्कुल वैसा ही बन जाता है। प्यार के इस व्यापारिक लेखे जोखे को जानने के बाद एक बात तो साफ हो जाती है कि आप जितना प्यार किसी को देंगे, उतना ही अधिक प्रेम-प्यार आप पायेंगे। आपके पास प्यार जितना अधिक होगा, इसे दान करना उतना ही सहज हो जाता है। प्यार का तौेहफा किसी को भी देने से पहले जौली अंकल का कहना है कि इस बात का ध्यान जरूर रखे कि यह तोहफा सिर्फ उसे ही दिया जाये जो सही मायनों में आपके प्यार की कद्र जानता हो। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, रिष्ते कांच की तरह होते है, यदि इन्हें संभाल कर न रखा जाये ंतो यह बहुत जल्द टूट जाते है और साथ ही फिर चुभते भी बहुत है।

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

Compromise by JOLLY UNCLE


Compromise The doctor had a look of surprise on his face when he asked Khadak Singh, “How have you broken 3 teeth simultaneously?” Khadak Singh explained the reason behind this to the doctor and said, “Today my wife prepared Halwa for me, but somehow that halwa became so hard that my 3 teeth broke while eating it.” The doctor again asked Khadak Singh, “If the Halwa had become so hard, then why did you not refuse to eat it in the first place?” Khadak Singh again answered in a muffled voice, “Doctor, had I refused to eat the Halwa, my wife would have definitely broken my entire set of 32, at that very moment.” Hearing the reply of Khadak Singh, the doctor had a look of astonishment on his face as he said, “Although I have heard about newlywed couples failing to understand each other for a number of years in Canada and England, but it is quite surprising to hear such a scenario in India.” Looking at the doctor, Khadak Singh took a deep breath and said, “Sir, not only does this happen with foreigners, but it also happens with Indian people as well. I think you are still not married, because every married person is well aware of the fact that Marriage is basically a big compromise in Life. Even against your wishes, there are many things married people are forced to do because their partner likes them. Every married person has to make compromises to keep their married life running smoothly without any troubles. A famous poet has even composed a few lines on it that say… “You don’t get everything in Life. Some are missing out on their piece of land, while some are deprived of their chunk of sky.” And not only in marriage, compromise is that reality which prepares us for the short-falls that we keep facing in our everyday life. Right from daily needs to indulgence in taste to facing difficult circumstances, men serving in armed forces have to make big compromises to face extremely difficult situations posed during their services to the country.” Khadak Singh, who valiantly fought for his country in the Kargil War, had now taken voluntary retirement from the Army and had returned to his house. During his service in the Army, he was given the task of training the dogs. Doing his work with full involvement, Khadak Singh had slowly grown very fond of dogs. After coming back from the Army, Khadak Singh thought of bringing a dog at home to kill his boredom. So next day he headed towards a pet-shop owned by a veterinary doctor in his town. After reaching the shop, Khadak Singh had a close look at all the dogs available for sale, but the moment he saw their price tags, he was extremely disappointed and thought, “How can I afford these dogs?” Thinking of the price, he decided to go back empty handed from the shop. But just when he was at the main door of the shop, he saw a very lazy dog lying helplessly in the corner. When he asked about the price of that dog from the shopkeeper, the shopkeeper said, “Why are you so interested in that dog? That dog is not only sick, but it also has a limp due to a broken leg.” Hearing the shopkeeper, Khadak Singh said to him quite firmly, “Just leave aside everything else and tell me the price of that dog.” The shopkeeper was surprised and said, “If you have liked that dog so much, then you pay me anything as per your wish, because I am not very keen on spending a big amount for the dog’s treatment. But I am again reminding you that this dog will neither play nor run with you because it’s one leg is totally useless, and it is barely able to walk with a limp.” After hearing the shopkeeper, Khadak Singh was lost in his thoughts for a few moments. Looking at the worried look on Khadak Singh’s face, the shopkeeper said, “I was telling you, who would buy a limping dog for his house?” Khadak Singh finally spoke after a big pause, “No sir, this is not the reason. In fact, I actually require this type of a dog for my home, but I do not have sufficient money to pay you at this moment.” Hearing Khadak Singh’s reply, the shopkeeper said, “Sir I have no issues, you take the dog with you now, and pay me the remaining amount afterwards. But before you take this dog, I want to know the reason behind your choice of a limping dog, when you have the choice of choosing so many other healthy and beautiful dogs at my shop?” Hearing the word limp again and again was cutting through the heart of Khadak Singh like a dagger, and he lifted a leg of his trouser to show the shopkeeper his artificial leg and said, “See, even I am impaired, and I lost this leg while fighting the enemy in Kargil, where a bullet went piercing through my leg. This leg that I have here is an artificial one, made of wood.” Addressing the shopkeeper, he again said, “But how would you know the pain of losing something when you have never really experienced it.” Khadak Singh again spoke in a thoughtful manner, “As long as we are not subjected to pain, we never really understand the pain of other people. I had been looking for this kind of Dog because it could compromise life just like me and also walk slowly at my pace. If I take this dog along with me, we both will be able to comprehend each other’s pain and problems and would succeed in living a fulfilling life together.” When Khadak Singh finally started leaving the shop with the dog, the shop owner could hear his inner voice echoing in the back of his mind saying, “There could not be a more selfless act than understanding the troubles and pain of others. And these deeds were not only noticed by people, but also by the almighty God himself. The biggest truth about life is that every moment of it is controlled by the almighty God. That’s why it was better if we handed over the reins of our life in the omnipotent hands of God. If we try to understand the preaching of enlightened souls, we realize that those who put their heart and soul into serving others completely forget the pain and worries in their own lives. As a matter of fact, any person who understood his shortcomings will never find faults in others even in his dreams. In this world, fortunate people are those who change themselves according to the need of a relationship, and not those who try changing others on their own terms. Great people have always said that true love has nothing to do with the physical state of a person. Speaking from his experience, Jolly Uncle also agrees to the fact that anyone who knows the real art of adjusting according to the situation happens to live life in totality, because the ability to adjust to difficult situations in life is indeed a rare trait that is only found in a handful among millions. Motto of the Story “If your behaviour towards others is friendly, then others will also reciprocate in the same way.”

शनिवार, 26 जनवरी 2013

Hindi story by Jolly Uncle


- जन्नत - जौली अंकल मिश्रा जी शाम को जब दफतर से लौटे तो उन्होनें देखा कि उनका बेटा बड़ा ही परेशान सा होकर घर के बाहर बैठा हुआ है। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने के साथ उन्होनें पूछा कि क्या हुआ, बहुत दुखी लग रहे हो? उनके बेटे ने कहा कि अब आपकी बीवी के साथ मेरा गुजारा होना बहुत मुश्किल है। वो मुझे भी हर समय आपकी तरह गुस्सा करने लगी है। मिश्रा जी ने कहा कि ऐसी क्या बात हो गई जो अपनी मम्मी से इतना नराज़ हो रहे हो। बेटे ने कहा कि मैने स्कूल से आकर मम्मी से कहा कि आज मुझे दोस्तो के साथ खेलने जाना है इसलिये आप जल्दी से मुझे पहले स्कूल का होमवर्क करवा दो। मम्मी ने मुझे कहा कि आज अपना काम खुद ही कर लो, आज तो मुझे सिर खुजलाने की भी फुर्सत नही है। मैने बस इतना कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो, मैं आपका सिर खुजला देता हॅू, आप मेरा होमवर्क कर दो। बस इसी बात को लेकर वो मुझे गुस्सा करने लग गई। मिश्रा जी ने बेटे का मूड बदलने और उसे खुश करने के लिये कहा कि आओ हम पार्क में खेलने चलते है। अगले ही पल दोनों घर से पार्क की और चल पड़े। रास्ते में एक पुल पर बहुत तेज पानी बह रहा था। मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि डरो मत, मेरा हाथ पकड़ लो। बेटे ने कहा, नही पापा आप मेरा हाथ पकड़ लो। मिश्रा जी ने मुस्करा कर कहा कि मैं तुम्हारा हाथ पकड़ू या तुम मेरा हाथ पकड़ो, इससे क्या फर्क पड़ता है। बेटे ने कहा अगर मैं आपका हाथ पकड़ता हॅू और मुझे अचानक कुछ हो जाए तो शायद मैं आपका हाथ छोड़ दू, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ोगे तो मैं जानता हॅू कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप मेरा हाथ कभी नही छोड़ेगे। कुछ ही देर में दोनों एक सुंदर से पार्क में खेल रहे थे। खेल-खेल में मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि तुम मुझ से तो इतना प्यार करते हो परंतु अपनी मां से हर समय नाराज़ क्यूं रहते हो? बेटे ने मिश्रा जी से कहा कि मुझे तो लगता है मम्मी को बच्चे ठीक से पालने ही नही आते। मिश्रा जी ने हैरान होकर कहा कि बेटा तुम ऐसा क्यूं कह रहो हो? बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि जब मेरा खेलने का मन होता है तो वो मुझे जब्बरदस्ती सुलाने की कोशिश करती है, जब मैं सो रहा होता हॅू तो जब्बरदस्ती मुझे उठाने की कोशिश करती है। बेटे की मासूमयित भरी शिकायते सुनकर मिश्रा जी को अपना बचपन और अपनी मां की याद आ गई। मन ही मन यह सोचने लगे कि इस नादान को कैसे समझाऊं कि मां जैसा इस दुनियां में तो कोई दूसरा हो ही नही सकता। मां के दिल में बच्चो के प्रति इतना प्यार होता है कि बच्चे चाहे कितनी ही गलतियां क्यूं न कर ले, मां उनकी हर गलती को माफ कर देती है। ज्ञानी और विद्वान लोगो का तो यहां तक मानना है कि मां तो प्रेम-प्यार की वो गंगा-जमुना है जिसके बिना इस सृष्टि की कल्पना करना ही नामुमकिन है। कुछ जगह तो यहां तक पढ़ने को मिलता है कि भगवान के बाद यदि इंसान को किसी की पूजा करनी चाहिये तो वो हक सिर्फ मां को है। मां चाहे किसी की भी हो वो घर में सबसे पहले उठती है। सब की जरूरतों का ध्यान रखते हुए हर किसी के लिये खाना बनाती है। जिस दिन तुम्हें मां का त्याग समझ आयेगा उस दिन तुम अनुभव करोगे कि एक मां ही ऐसी है कि उसका बच्चा चाहे उससे कितना ही गलत क्यूं न बोल ले, वो कभी भी उसका बुरा नही मानती। मां अपने बच्चो की हर खुषी को ही अपना सुख मानती है। मिश्रा जी को थोड़ा गुमसुम सा बैठा देखकर उनके बेटे ने कहा कि आप यहां मेरे साथ खेलने आये हो या दफतर के काम के बारे में सोचने के लिये। मिश्रा जी ने उससे कहा कि मैं दफतर के बारे में नही बल्कि मां-बेटे के रिश्तों की अहमियत के बारे में ही सोच रहा था। बेटे ने थोड़ा ताज्जुब करते हुए कहा कि मां के इस रिश्ते में ऐसा खास क्या है जो आप इतनी गहरी सोच में डूब गये? मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि यदि इस रिश्ते के बारे में तुम अच्छे से कुछ जानना चाहते हो तो अब थोड़ी देर मेरी बाते ध्यान से सुनो। उन्होनें अफसोस जताते हुए बेटे से कहा कि जिस मां को तुम आज चुप रहना सिखा रहे हो उसने तुम्हें दिन-रात मेहनत करके बोलना सिखाया था। मां चाहे क्रोधी हो, पक्षपाती हो, शंकाशील हो, हो सकता है यह सारी बाते ठीक हो परंतु हमें यह कभी नही भूलना चाहिये कि वो हमारी मां है। कुछ समय बाद तुम्हारी शादी होगी उस समय यह बात जरूर याद रखना कि पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन मां पुण्य से मिलती है। पसंद से मिलनेवाली के लिए पुण्य से मिलने वाली मां रूपी देवी को कभी मत ठुकराना। जो कोई घर की मां को रूला कर और मंदिर की मां को चुनरी ओढ़ाता है तो याद रखना मंदिर की मां उन पर खुश होने की बजाए खफा ही होगी। बेटा मां को सोने से न मढ़ो तो चलेगा, हीरे मोतियों से न जड़ो तो चलेगा, पर उसका दिल जले और आंसू बहे यह कैसे चलेगा? जिस दिन तुम्हारे कारण मां की आखों में आंसू आते है, याद रखना उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म-कर्म व्यर्थ के आंसूओं में बह जायेगा। बचपन के आठ-दस साल तुझे अंगुली पकड़कर जो मां स्कूल ले जाती थी, उसी मां को बुढ़ापे में चंद साल सहारा बनकर मंदिर ले जाना, शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज, थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा हो जायेगा। मां की आखों में दो बार आसूं आते है, एक बार जब उसकी लड़की घर छोड़ कर जाती है दूसरी बार जब उसका बेटा उससे मुंह मोड़ लेता है। इन्ही बातो को ध्यान में रख कर शायद हमारे धर्म-ग्रन्थों में मां को इतनी अहमियत देते हुए यह कहा गया है कि ऊपर जिसका अंत नही उसे आसमां कहते है, जहां में जिसका अंत नही उसे मां कहते है। आज तक इस दुनियां में शायद किसी ने भगवान को नही देखा परंतु यदि तुम चाहो तो अपनी मां में ही भगवान को देख सकते हो। मिश्रा जी के अहम विचार सुन कर जौली अंकल हर मां के चरणों में नमन करते हुए यही कहना चाहते है कि इस दुनियां में यदि किसी ने भी जन्नत देखनी हो तो वो सिर्फ मां के कदमों में देखी जा सकती है। (लेखक-जौली अंकल व्यंग्यकार व वरिष्ठ कथाकार हैं।)

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

Hindi Story by Jolly Uncle

जन्नत जौली अंकल मिश्रा जी शाम को जब दफतर से लौटे तो उन्होनें देखा कि उनका बेटा बड़ा ही परेशान सा होकर घर के बाहर बैठा हुआ है। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने के साथ उन्होनें पूछा कि क्या हुआ, बहुत दुखी लग रहे हो? उनके बेटे ने कहा कि अब आपकी बीवी के साथ मेरा गुजारा होना बहुत मुश्किल है। वो मुझे भी हर समय आपकी तरह गुस्सा करने लगी है। मिश्रा जी ने कहा कि ऐसी क्या बात हो गई जो अपनी मम्मी से इतना नराज़ हो रहे हो। बेटे ने कहा कि मैने स्कूल से आकर मम्मी से कहा कि आज मुझे दोस्तो के साथ खेलने जाना है इसलिये आप जल्दी से मुझे पहले स्कूल का होमवर्क करवा दो। मम्मी ने मुझे कहा कि आज अपना काम खुद ही कर लो, आज तो मुझे सिर खुजलाने की भी फुर्सत नही है। मैने बस इतना कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो, मैं आपका सिर खुजला देता हॅू, आप मेरा होमवर्क कर दो। बस इसी बात को लेकर वो मुझे गुस्सा करने लग गई। मिश्रा जी ने बेटे का मूड बदलने और उसे खुश करने के लिये कहा कि आओ हम पार्क में खेलने चलते है। अगले ही पल दोनों घर से पार्क की और चल पड़े। रास्ते में एक पुल पर बहुत तेज पानी बह रहा था। मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि डरो मत, मेरा हाथ पकड़ लो। बेटे ने कहा, नही पापा आप मेरा हाथ पकड़ लो। मिश्रा जी ने मुस्करा कर कहा कि मैं तुम्हारा हाथ पकड़ू या तुम मेरा हाथ पकड़ो, इससे क्या फर्क पड़ता है। बेटे ने कहा अगर मैं आपका हाथ पकड़ता हॅू और मुझे अचानक कुछ हो जाए तो शायद मैं आपका हाथ छोड़ दू, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ोगे तो मैं जानता हॅू कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप मेरा हाथ कभी नही छोड़ेगे। कुछ ही देर में दोनों एक सुंदर से पार्क में खेल रहे थे। खेल-खेल में मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि तुम मुझ से तो इतना प्यार करते हो परंतु अपनी मां से हर समय नाराज़ क्यूं रहते हो? बेटे ने मिश्रा जी से कहा कि मुझे तो लगता है मम्मी को बच्चे ठीक से पालने ही नही आते। मिश्रा जी ने हैरान होकर कहा कि बेटा तुम ऐसा क्यूं कह रहो हो? बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि जब मेरा खेलने का मन होता है तो वो मुझे जब्बरदस्ती सुलाने की कोशिश करती है, जब मैं सो रहा होता हॅू तो जब्बरदस्ती मुझे उठाने की कोशिश करती है। बेटे की मासूमयित भरी शिकायते सुनकर मिश्रा जी को अपना बचपन और अपनी मां की याद आ गई। मन ही मन यह सोचने लगे कि इस नादान को कैसे समझाऊं कि मां जैसा इस दुनियां में तो कोई दूसरा हो ही नही सकता। मां के दिल में बच्चो के प्रति इतना प्यार होता है कि बच्चे चाहे कितनी ही गलतियां क्यूं न कर ले, मां उनकी हर गलती को माफ कर देती है। ज्ञानी और विद्वान लोगो का तो यहां तक मानना है कि मां तो प्रेम-प्यार की वो गंगा-जमुना है जिसके बिना इस सृष्टि की कल्पना करना ही नामुमकिन है। कुछ जगह तो यहां तक पढ़ने को मिलता है कि भगवान के बाद यदि इंसान को किसी की पूजा करनी चाहिये तो वो हक सिर्फ मां को है। मां चाहे किसी की भी हो वो घर में सबसे पहले उठती है। सब की जरूरतों का ध्यान रखते हुए हर किसी के लिये खाना बनाती है। जिस दिन तुम्हें मां का त्याग समझ आयेगा उस दिन तुम अनुभव करोगे कि एक मां ही ऐसी है कि उसका बच्चा चाहे उससे कितना ही गलत क्यूं न बोल ले, वो कभी भी उसका बुरा नही मानती। मां अपने बच्चो की हर खुषी को ही अपना सुख मानती है। मिश्रा जी को थोड़ा गुमसुम सा बैठा देखकर उनके बेटे ने कहा कि आप यहां मेरे साथ खेलने आये हो या दफतर के काम के बारे में सोचने के लिये। मिश्रा जी ने उससे कहा कि मैं दफतर के बारे में नही बल्कि मां-बेटे के रिश्तों की अहमियत के बारे में ही सोच रहा था। बेटे ने थोड़ा ताज्जुब करते हुए कहा कि मां के इस रिश्ते में ऐसा खास क्या है जो आप इतनी गहरी सोच में डूब गये? मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि यदि इस रिश्ते के बारे में तुम अच्छे से कुछ जानना चाहते हो तो अब थोड़ी देर मेरी बाते ध्यान से सुनो। उन्होनें अफसोस जताते हुए बेटे से कहा कि जिस मां को तुम आज चुप रहना सिखा रहे हो उसने तुम्हें दिन-रात मेहनत करके बोलना सिखाया था। मां चाहे क्रोधी हो, पक्षपाती हो, शंकाशील हो, हो सकता है यह सारी बाते ठीक हो परंतु हमें यह कभी नही भूलना चाहिये कि वो हमारी मां है। कुछ समय बाद तुम्हारी शादी होगी उस समय यह बात जरूर याद रखना कि पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन मां पुण्य से मिलती है। पसंद से मिलनेवाली के लिए पुण्य से मिलने वाली मां रूपी देवी को कभी मत ठुकराना। जो कोई घर की मां को रूला कर और मंदिर की मां को चुनरी ओढ़ाता है तो याद रखना मंदिर की मां उन पर खुश होने की बजाए खफा ही होगी। बेटा मां को सोने से न मढ़ो तो चलेगा, हीरे मोतियों से न जड़ो तो चलेगा, पर उसका दिल जले और आंसू बहे यह कैसे चलेगा? जिस दिन तुम्हारे कारण मां की आखों में आंसू आते है, याद रखना उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म-कर्म व्यर्थ के आंसूओं में बह जायेगा। बचपन के आठ-दस साल तुझे अंगुली पकड़कर जो मां स्कूल ले जाती थी, उसी मां को बुढ़ापे में चंद साल सहारा बनकर मंदिर ले जाना, शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज, थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा हो जायेगा। मां की आखों में दो बार आसूं आते है, एक बार जब उसकी लड़की घर छोड़ कर जाती है दूसरी बार जब उसका बेटा उससे मुंह मोड़ लेता है। इन्ही बातो को ध्यान में रख कर शायद हमारे धर्म-ग्रन्थों में मां को इतनी अहमियत देते हुए यह कहा गया है कि ऊपर जिसका अंत नही उसे आसमां कहते है, जहां में जिसका अंत नही उसे मां कहते है। आज तक इस दुनियां में शायद किसी ने भगवान को नही देखा परंतु यदि तुम चाहो तो अपनी मां में ही भगवान को देख सकते हो। मिश्रा जी के अहम विचार सुन कर जौली अंकल हर मां के चरणों में नमन करते हुए यही कहना चाहते है कि इस दुनियां में यदि किसी ने भी जन्नत देखनी हो तो वो सिर्फ मां के कदमों में देखी जा सकती है। (लेखक-जौली अंकल व्यंग्यकार व वरिष्ठ कथाकार हैं।)

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

ऊंची उड़ान – जौली अंकल

ऊंची उड़ान – जौली अंकल पप्पू को स्कूल से जल्दी आते देख उसकी मां ने उससे पूछा कि आज तुम स्कूल से इतनी जल्दी कैसे आ गए हो? पप्पू ने कहा कि आज मेरी टीचर मुझ से कुछ बेसिर पैर के सवाल पूछ रही थी जब मैने उसे थोड़ा नमक मिर्च लगा कर दो टूक जवाब देने शुरू किए तो वह फूलकर कुप्पा हो गई। छोटी सी बात को लेकर राई का पहाड़ बनाते हुए उन्होनें मुझे क्लास से बाहर जाने के लिये कह दिया। पप्पू की मां ने कहा, वो सब तो ठीक है लेकिन तुमने यह तो बताया ही नही कि तुम स्कूल से जल्दी क्यूं आ गये हो? पप्पू ने कहा जब टीचर ने मुझे क्लास से बाहर निकाल दिया तो मैने स्कूल की घंटी बजा दी और सारे स्कूल में जल्दी छुट्टी हो गई। पप्पू को प्यार से अपने पास बिठाते हुए उसके दादू ने कहा कि ऐसे कौन से सवाल थे जिसका जवाब सुनकर तुम्हारी मैंडम जी को इतना गुस्सा आ गया। पप्पू ने कहा कि मेरी मैंडम ने मुझ से पूछा कि आज फिर से होमवर्क क्यूं नही पूरा किया? मैने कहा कि टीचर जी आज हमारे घर पर बिजली नही थी। मेरी मैंडम बोली तो इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है, तुम मोमबत्ती जला कर भी काम पूरा कर सकते थे। मैने थोड़ा मजाक करते हुए कह दिया कि मोमबत्ती कैसे जला लेता, हमारे घर में माचिस नही थी। अब टीचर ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे घर में माचिस ही न हो? मैने बात का रूख बदलते हुए कहा कि असल में माचिस तो थी लेकिन वो पूजा घर में रखी थी और मैं आज नहाया नही था, इसलिये वहां से माचिस नही उठा सकता था। अब टीचर ने कहा कि तुम कमाल के बच्चे हो जो इतनी गर्मी में भी नही नहाते। मैने बात को बिना उल्झाते हुए साफ – साफ कहा मैंडम जी मैं नहाता तो रोज हूं लेकिन आज हमारे यहां पानी की मोटर नही चली। इस पर टीचर थोड़ा परेशान होते हुए बोली कि अब तुम्हारी मोटर को क्या हो गया था, वो क्यूं नही चली? अब तक मैं टीचर की बातो के जवाब देते – देते झल्ला चुका था, मैने तंग आ कर कह दिया कि मैंडम जी, कितनी बार बताऊ कि हमारे घर पर बिजली नही थी और बिना बिजली के मोटर नही चल सकती। बस इस तरह के सवाल जवाब सुनने पर टीचर को इतना गुस्सा आया कि उसने मुझे क्लास से बाहर जाने के लिये कह दिया। पप्पू के दादू ने अपने अनुभव के आधार पर पप्पू की मासूम और नटखट भावनाओं को अच्छे से भांप लिया। अब बिना कुढ़े या चिढ़े हुए प्यार से गप्पू को समझाने लगे कि बेटा यदि जीवन में ऊंची उड़ान भर कर बुलदियों को छूना है तो एक बात याद रखो कि कोई भी बात बोलने से पहले उसे अच्छे से अपने मन में तोल लो ताकि तुम्हारी बात से किसी के मन को ठेस ना पहुंचे। दूसरी जरूरी बात यह है कि नदी में रहकर कभी भी मगर से बैर न रखो। मेरा कहने का मतलब यह है कि जहां कही भी रहो वहां अपने सभी मिलने-जुलने वाले साथियों के साथ मिलजुल कर रहो। दादू का यह लंबा सा सीख देने वाला कथन सुनकर पप्पू की मां ने तस्सली करने की बजाए कांव-कांव करते हुए दादू से कहा कि इस तरह की बाते करके आप तो मेरे बेटे को दब्बू किस्म का इंसान बना दोगे। अगर मेरे बेटे ने टीचर को कुछ उल्टा-सीधा कह ही दिया है तो वो उसका क्या बिगाड़ लेगी। अधिक से अधिक उसे फेल ही तो करेगी, उससे ज्यादा वो क्या कर सकती है। मैं अपने कलेजे के टुकड़े को यदि कोई बड़ा अफसर न भी बना सकी तो किसी न किसी तरह सरकारी दफतर में भरती करवा ही दूंगी। आजकल बड़े अफसरों से अधिक बाबू लोग ऊपर की कमाई कर लेते है। यह सब सुनते ही दादू ने अपनी बहू यानि पप्पू की मां से कहा कि यह ठीक है आप लोगो ने दूसरों को बेवकूफ बना कर किसी तरह से चार पैसे कमा लिये है लेकिन उसका यह मतलब नही होता की उठते – बैठते हर किसी को पैसो की धौंस दिखाते रहो। अपनी जिंदगी को यदि चार चांद लगाने है तो सबसे पहले नाकरात्मक विचारों को मच्छर की तरह मसल दो और उनकी जगह सकारात्मक विचारों को उड़ान भरने दो। तुम क्या जानों की एक जगह पत्ता भी पड़े – पड़े सड़ जाता है, घोड़ा भी खड़े-खड़े अड़ जाता है, उसी तरह से आदमी का दिमाग भी बिना सोच – समझ के सड़ने लगता है। हर कोई इतना तो जानता है कि जिस प्रकार कुश्ती लड़ने से हमारे शरीर में ताकत बढ़ती है, कठिन सवालों को हल करने से हमारा दिमाग तेज होता है ठीक उसी तरह मुश्किल परिस्थितियों का डट कर मुकाबला करने से हमारा मनोबल बढ़ता है। इसलिये हर समय किसी न किसी कामयाबी की राह के बारे में सोचना जरूरी होता है। बहू रानी जी अपने बेटे को उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ाने की बजाए ऐसे सकारात्मक विचार दो जिससे उसके मन में पौजिटिव तरंगें पैदा हो सके। उसे यह समझाने की कोशिश करो कि असफ़ल वह नही है जिसके पास सफ़ल होने के लिये कोई साधन नही होते, असफ़ल तो वह होते है जिनके पास आत्मविश्वास की कमी होती है। मंजिल की और बढ़ते हुऐ गिर-गिर कर उठने की शक्ति ही सफ़लता का रास्ता बनाती है। असफ़ल व्यक्ति सारी उम्र इस इंतजार में बैठे रहते है कि उन्हें कोई व्यक्ति या अच्छा समय आकर सफ़ल बनायेगा, लेकिन समय कभी किसी का इंतजार नही करता। आपके जीवन का कोई भी मकसद हो, अपने मिशन में कामयाब होने के लिए आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त और निश्ठावान होना ही पड़ेगा। जिस दिन आपको अपनी शक्तियों पर भरोसा हो जायेगा उस दिन आप अपनी मेहनत, हिम्मत और लगन से अपनी हर कल्पना को साकार कर पायेगे। हमारे जीवन में वह कार्य और प्रवृति सबसे ज्यादा खतरनाक होती है जिसका विपरीत असर हमारी सफ़लता पर पड़ता है। अब मैं अपनी बात को और अधिक न बढ़ाते हुए इतना ही कहना चाहूंगा कि जिस प्रकार कोई नदी का अनुसरण करता है तो वो समुंद्र तक पहुंच जाता है, उसी तरह कामयाब लोगो के दिखाए हुए मार्ग पर चलने से हर कोई कामयाबी की मंजिल तक जरूर पहुंच सकता है। दादू जी की इतनी प्रेरक बाते सुनकर जौली अंकल को पेड़ की डलियों पर बैठे उन पक्षीयों का ख्याल आ रहा है जो उसके हिलने या उसकी कमजोरी से नही घबराते क्योंकि उन्हें अपने पंखो पर भरोसा होता है। इसी तरह हमें भी अपने जीवन में ऊंची उड़ान भरने के लिये सदैव अपना आत्मविष्वास कायम रखना चाहिये। ***** जौली अंकल jollyuncle@gmail.com