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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015
शनिवार, 2 नवंबर 2013
NAYA GHAR - A motivational story by JOLLY UNCLE
"नया घर"
नौकर ने आकर शमशेर सिंह को बताया कि आपसे कोई मिलने आया है। शमशेर सिंह ने दरवाजे की ओर देखा तो उनके दफ़्तर का एक साथी मिठाई का डिब्बा और निमत्रंण पत्र हाथ में लिये खड़ा था। अपने मित्र से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि उसने अपना नया घर बनाया है और उसी के लिये न्योता देने आया है। शमशेर सिंह ने अपना दिल खोलते हुए उससे कहा कि मैं भी अगले साल रिटायर हो रहा हूँ, लेकिन मैने तो अभी तक अपना घर बनाने के बारे में सोचा ही नही। शमशेर सिंह जी के बेटे और बहू ने कहा कि हम तो आपसे कई बार कह चुके हैं कि आप भी जल्दी से अपना एक नया घर बना लो। जब तक आप नौकरी में हो तब तक घर बनाने में किसी किस्म की कोई परेशानी नहीं होगी। उसके बाद तो कई लोग टांग अड़ाने के लिये खड़े हो जाते हैं। शमशेर सिंह ने अपने बेटे से कहा कि आज कल घर बनाने के लिये बहुत सारे पैसों की जरूरत पड़ती है। बेटे ने झट से कह दिया कि आप एक बार आवाज तो दे कर देखो, बैंक वाले घर आकर कर्ज दे जायेंगे। आपको किसी प्रकार की जोड़-तोड़ करने की जरूरत ही नहीं। इसी बात को लेकर उनकी पत्नी ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया। भोले-भाले शमशेर सिंह जी अपनी पत्नी और बच्चो को खुशियाँ देने के लिये उनकी इस मांग के आगे झुक गये।
अगले दिन से ही बेटे ने कुछ लोगो से सलाह-मशविरा करते हुए घर बनवाने का काम शुरू करवा दिया। घर बनाने के लिये बैंक से मोटा कर्ज भी शमशेर सिंह ने लेकर अपने बेटे को दे दिया। जैसे-जैसे शमशेर सिंह जी का सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आने लगा, बेटे ने काम और तेज करवा दिया ताकि सरकारी बंगला छोड़ कर सीधा अपने घर में ही प्रवेश किया जा सके। एक दिन अचानक बैठे हुए शमशेर सिंह ने अपनी पत्नी से कहा कि हम लोग कई सालों से घूमने नही गये। अगर तुम चाहो तो रिटायर होने से पहले हम सरकारी खर्चे पर घूमने जा सकते हैं। बहू और बेटे ने कहा कि नेकी और पूछ-पूछ। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। जब तक आप लोग घूम-फिर कर वापिस आओगे तब तक घर भी बन कर तैयार हो जायेगा। उसने झट से एक ट्रैवल एजेंसी से कह कर उनका बढ़िया सा घूमने का प्रोग्राम बना दिया। टूर के दौरान बहू-बेटे से घर बनने के बारे में बात लगातार होती रही। कुछ समय बाद जब शमशेर सिंह जी अपना टूर पूरा करके वापिस आये तो अपने आलिशान घर को देख कर फूले नही समा रहे थे। अच्छे से सारे घर को निहारने के बाद इन्होने घर में प्रवेश किया।
घर की खूबसूरती देखने के बाद शमशेर सिंह जी ने पूछा कि हमारा कमरा कौन सा है ? बेटे ने कहा कि यह आप क्या कह रहे हो? सारा घर ही आपका है, आप अलग से कमरे की क्या बात कर रहे हो। बहू ने जब खाना खाने के लिये कहा तो शमशेर सिंह जी ने कहा कि मैं काफी थका हुआ हूँ। जरा पहले नहा लूं फिर आराम से खाना खायेंगे। इसी के साथ उन्होंने कहा कि जरा हमारा सामान हमारे कमरे में रखवा दो। इतना सुनते ही शमशेर जी का बेटा फोन का बहाना बना कर बाहर निकल गया। बहू भी कमरे के नाम पर टाल-मटोल करने लगी। शमशेर सिंह की पत्नी ने कहा कि क्या बात है ? परेशान क्यूं हो रही हो? बहू ने घर के ड्राईवर को बुला कर इशारे से कहा कि इनका सामान घर के पीछे बने हुए कमरे में ले जाओ। इतना सुनते ही शमशेर सिंह जी और उनकी पत्नी के पैरों तले जमीन खिसक गई। बहू ने सफाई देते हुए कहा कि असल में जो कमरा आपके लिये बनाया था उसमें आपके बेटे ने अपना दफ़्तर बना लिया है। इस वजह से आपके लिये घर के पीछे अलग से एक कमरा बनवाना पड़ा है। सारी उम्र शानोशौकत के साथ सरकारी बंगले में राज करने वाले शमशेर सिंह जी चुपचाप घर के पिछवाड़े में नौकरों के लिये बने हुए कमरे में रहने के लिये चले गये।
कमरे में दाखिल होते ही शमशेर सिंह की पत्नी ने उनसे कहा कि मैं सारी जिंदगी आपको समझाती रही हूँ कि इतने नर्म मत बनो नहीं तो एक दिन यह दुनियां आपको खा जायेगी। यह आपके सीधेपन का ही नतीजा है कि आज आपके अपने बहू-बेटे आपको इस तरह से नचा रहे हैं। शमशेर सिंह ने अपनी पत्नी को दिलासा देते हुए कहा लगता है, तूने वो कहावत नही सुनी कि अगर कोई आपका दिल दुखाए तो उसका बुरा मत मानो, क्योंकि यह कुदरत का नियम है कि जिस पेड़ पर सबसे ज्यादा मीठे फल होते हैं, उसी को सबसे अधिक पत्थर लगते हैं। शमशेर सिंह जी के धैर्य को सलाम करते हुए जौली अंकल उनके बेटे और बहू को बताना चाहते हैं कि मां-बाप तो वो अनमोल नगीने होते है जो हमें मुफ्त में मिलते हैं, मगर इनकी कीमत का उस दिन पता चलता है जब यह खो जाते हैं। आप लोगो ने जिस प्रकार छल-कपट करके अपने माता-पिता से उनका नया घर छीना है, उसके बदले में आज से ही सावधान हो जाओ क्योंकि बहुत जल्द आपका भी नया घर कोई न कोई आपसे छीन सकता है।
जौली अंकल
मंगलवार, 7 मई 2013
PEHLA KADAM - Motivational story by JOLLY UNCLE
MUSKAAN - One more story from JOLLY UNCLE
जन्नत - जोली अंकल का एक और लेख
हास्य दिवस - जोली अंकल कि एक और कहानी
सोमवार, 18 फ़रवरी 2013
मज़ाक – मज़ाक में – जौली अंकल
बुधवार, 13 फ़रवरी 2013
HINDI STORY - PYAR KA TOHFA by JOLLY UNCLE
मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013
Compromise by JOLLY UNCLE
शनिवार, 26 जनवरी 2013
Hindi story by Jolly Uncle
शुक्रवार, 25 जनवरी 2013
Hindi Story by Jolly Uncle
जन्नत
जौली अंकल
मिश्रा जी शाम को जब दफतर से लौटे तो उन्होनें देखा कि उनका बेटा बड़ा ही परेशान सा होकर घर के बाहर बैठा हुआ है। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने के साथ उन्होनें पूछा कि क्या हुआ, बहुत दुखी लग रहे हो? उनके बेटे ने कहा कि अब आपकी बीवी के साथ मेरा गुजारा होना बहुत मुश्किल है। वो मुझे भी हर समय आपकी तरह गुस्सा करने लगी है। मिश्रा जी ने कहा कि ऐसी क्या बात हो गई जो अपनी मम्मी से इतना नराज़ हो रहे हो। बेटे ने कहा कि मैने स्कूल से आकर मम्मी से कहा कि आज मुझे दोस्तो के साथ खेलने जाना है इसलिये आप जल्दी से मुझे पहले स्कूल का होमवर्क करवा दो। मम्मी ने मुझे कहा कि आज अपना काम खुद ही कर लो, आज तो मुझे सिर खुजलाने की भी फुर्सत नही है। मैने बस इतना कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो, मैं आपका सिर खुजला देता हॅू, आप मेरा होमवर्क कर दो। बस इसी बात को लेकर वो मुझे गुस्सा करने लग गई।
मिश्रा जी ने बेटे का मूड बदलने और उसे खुश करने के लिये कहा कि आओ हम पार्क में खेलने चलते है। अगले ही पल दोनों घर से पार्क की और चल पड़े। रास्ते में एक पुल पर बहुत तेज पानी बह रहा था। मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि डरो मत, मेरा हाथ पकड़ लो। बेटे ने कहा, नही पापा आप मेरा हाथ पकड़ लो। मिश्रा जी ने मुस्करा कर कहा कि मैं तुम्हारा हाथ पकड़ू या तुम मेरा हाथ पकड़ो, इससे क्या फर्क पड़ता है। बेटे ने कहा अगर मैं आपका हाथ पकड़ता हॅू और मुझे अचानक कुछ हो जाए तो शायद मैं आपका हाथ छोड़ दू, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ोगे तो मैं जानता हॅू कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप मेरा हाथ कभी नही छोड़ेगे। कुछ ही देर में दोनों एक सुंदर से पार्क में खेल रहे थे। खेल-खेल में मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि तुम मुझ से तो इतना प्यार करते हो परंतु अपनी मां से हर समय नाराज़ क्यूं रहते हो?
बेटे ने मिश्रा जी से कहा कि मुझे तो लगता है मम्मी को बच्चे ठीक से पालने ही नही आते। मिश्रा जी ने हैरान होकर कहा कि बेटा तुम ऐसा क्यूं कह रहो हो? बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि जब मेरा खेलने का मन होता है तो वो मुझे जब्बरदस्ती सुलाने की कोशिश करती है, जब मैं सो रहा होता हॅू तो जब्बरदस्ती मुझे उठाने की कोशिश करती है। बेटे की मासूमयित भरी शिकायते सुनकर मिश्रा जी को अपना बचपन और अपनी मां की याद आ गई। मन ही मन यह सोचने लगे कि इस नादान को कैसे समझाऊं कि मां जैसा इस दुनियां में तो कोई दूसरा हो ही नही सकता। मां के दिल में बच्चो के प्रति इतना प्यार होता है कि बच्चे चाहे कितनी ही गलतियां क्यूं न कर ले, मां उनकी हर गलती को माफ कर देती है। ज्ञानी और विद्वान लोगो का तो यहां तक मानना है कि मां तो प्रेम-प्यार की वो गंगा-जमुना है जिसके बिना इस सृष्टि की कल्पना करना ही नामुमकिन है। कुछ जगह तो यहां तक पढ़ने को मिलता है कि भगवान के बाद यदि इंसान को किसी की पूजा करनी चाहिये तो वो हक सिर्फ मां को है। मां चाहे किसी की भी हो वो घर में सबसे पहले उठती है। सब की जरूरतों का ध्यान रखते हुए हर किसी के लिये खाना बनाती है। जिस दिन तुम्हें मां का त्याग समझ आयेगा उस दिन तुम अनुभव करोगे कि एक मां ही ऐसी है कि उसका बच्चा चाहे उससे कितना ही गलत क्यूं न बोल ले, वो कभी भी उसका बुरा नही मानती। मां अपने बच्चो की हर खुषी को ही अपना सुख मानती है।
मिश्रा जी को थोड़ा गुमसुम सा बैठा देखकर उनके बेटे ने कहा कि आप यहां मेरे साथ खेलने आये हो या दफतर के काम के बारे में सोचने के लिये। मिश्रा जी ने उससे कहा कि मैं दफतर के बारे में नही बल्कि मां-बेटे के रिश्तों की अहमियत के बारे में ही सोच रहा था। बेटे ने थोड़ा ताज्जुब करते हुए कहा कि मां के इस रिश्ते में ऐसा खास क्या है जो आप इतनी गहरी सोच में डूब गये? मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि यदि इस रिश्ते के बारे में तुम अच्छे से कुछ जानना चाहते हो तो अब थोड़ी देर मेरी बाते ध्यान से सुनो। उन्होनें अफसोस जताते हुए बेटे से कहा कि जिस मां को तुम आज चुप रहना सिखा रहे हो उसने तुम्हें दिन-रात मेहनत करके बोलना सिखाया था। मां चाहे क्रोधी हो, पक्षपाती हो, शंकाशील हो, हो सकता है यह सारी बाते ठीक हो परंतु हमें यह कभी नही भूलना चाहिये कि वो हमारी मां है। कुछ समय बाद तुम्हारी शादी होगी उस समय यह बात जरूर याद रखना कि पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन मां पुण्य से मिलती है। पसंद से मिलनेवाली के लिए पुण्य से मिलने वाली मां रूपी देवी को कभी मत ठुकराना। जो कोई घर की मां को रूला कर और मंदिर की मां को चुनरी ओढ़ाता है तो याद रखना मंदिर की मां उन पर खुश होने की बजाए खफा ही होगी।
बेटा मां को सोने से न मढ़ो तो चलेगा, हीरे मोतियों से न जड़ो तो चलेगा, पर उसका दिल जले और आंसू बहे यह कैसे चलेगा? जिस दिन तुम्हारे कारण मां की आखों में आंसू आते है, याद रखना उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म-कर्म व्यर्थ के आंसूओं में बह जायेगा। बचपन के आठ-दस साल तुझे अंगुली पकड़कर जो मां स्कूल ले जाती थी, उसी मां को बुढ़ापे में चंद साल सहारा बनकर मंदिर ले जाना, शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज, थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा हो जायेगा। मां की आखों में दो बार आसूं आते है, एक बार जब उसकी लड़की घर छोड़ कर जाती है दूसरी बार जब उसका बेटा उससे मुंह मोड़ लेता है।
इन्ही बातो को ध्यान में रख कर शायद हमारे धर्म-ग्रन्थों में मां को इतनी अहमियत देते हुए यह कहा गया है कि ऊपर जिसका अंत नही उसे आसमां कहते है, जहां में जिसका अंत नही उसे मां कहते है। आज तक इस दुनियां में शायद किसी ने भगवान को नही देखा परंतु यदि तुम चाहो तो अपनी मां में ही भगवान को देख सकते हो। मिश्रा जी के अहम विचार सुन कर जौली अंकल हर मां के चरणों में नमन करते हुए यही कहना चाहते है कि इस दुनियां में यदि किसी ने भी जन्नत देखनी हो तो वो सिर्फ मां के कदमों में देखी जा सकती है।
(लेखक-जौली अंकल व्यंग्यकार व वरिष्ठ कथाकार हैं।)
गुरुवार, 24 जनवरी 2013
ऊंची उड़ान – जौली अंकल
ऊंची उड़ान – जौली अंकल
पप्पू को स्कूल से जल्दी आते देख उसकी मां ने उससे पूछा कि आज तुम स्कूल से इतनी जल्दी कैसे आ गए हो? पप्पू ने कहा कि आज मेरी टीचर मुझ से कुछ बेसिर पैर के सवाल पूछ रही थी जब मैने उसे थोड़ा नमक मिर्च लगा कर दो टूक जवाब देने शुरू किए तो वह फूलकर कुप्पा हो गई। छोटी सी बात को लेकर राई का पहाड़ बनाते हुए उन्होनें मुझे क्लास से बाहर जाने के लिये कह दिया। पप्पू की मां ने कहा, वो सब तो ठीक है लेकिन तुमने यह तो बताया ही नही कि तुम स्कूल से जल्दी क्यूं आ गये हो? पप्पू ने कहा जब टीचर ने मुझे क्लास से बाहर निकाल दिया तो मैने स्कूल की घंटी बजा दी और सारे स्कूल में जल्दी छुट्टी हो गई। पप्पू को प्यार से अपने पास बिठाते हुए उसके दादू ने कहा कि ऐसे कौन से सवाल थे जिसका जवाब सुनकर तुम्हारी मैंडम जी को इतना गुस्सा आ गया।
पप्पू ने कहा कि मेरी मैंडम ने मुझ से पूछा कि आज फिर से होमवर्क क्यूं नही पूरा किया? मैने कहा कि टीचर जी आज हमारे घर पर बिजली नही थी। मेरी मैंडम बोली तो इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है, तुम मोमबत्ती जला कर भी काम पूरा कर सकते थे। मैने थोड़ा मजाक करते हुए कह दिया कि मोमबत्ती कैसे जला लेता, हमारे घर में माचिस नही थी। अब टीचर ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे घर में माचिस ही न हो? मैने बात का रूख बदलते हुए कहा कि असल में माचिस तो थी लेकिन वो पूजा घर में रखी थी और मैं आज नहाया नही था, इसलिये वहां से माचिस नही उठा सकता था। अब टीचर ने कहा कि तुम कमाल के बच्चे हो जो इतनी गर्मी में भी नही नहाते। मैने बात को बिना उल्झाते हुए साफ – साफ कहा मैंडम जी मैं नहाता तो रोज हूं लेकिन आज हमारे यहां पानी की मोटर नही चली। इस पर टीचर थोड़ा परेशान होते हुए बोली कि अब तुम्हारी मोटर को क्या हो गया था, वो क्यूं नही चली? अब तक मैं टीचर की बातो के जवाब देते – देते झल्ला चुका था, मैने तंग आ कर कह दिया कि मैंडम जी, कितनी बार बताऊ कि हमारे घर पर बिजली नही थी और बिना बिजली के मोटर नही चल सकती। बस इस तरह के सवाल जवाब सुनने पर टीचर को इतना गुस्सा आया कि उसने मुझे क्लास से बाहर जाने के लिये कह दिया।
पप्पू के दादू ने अपने अनुभव के आधार पर पप्पू की मासूम और नटखट भावनाओं को अच्छे से भांप लिया। अब बिना कुढ़े या चिढ़े हुए प्यार से गप्पू को समझाने लगे कि बेटा यदि जीवन में ऊंची उड़ान भर कर बुलदियों को छूना है तो एक बात याद रखो कि कोई भी बात बोलने से पहले उसे अच्छे से अपने मन में तोल लो ताकि तुम्हारी बात से किसी के मन को ठेस ना पहुंचे। दूसरी जरूरी बात यह है कि नदी में रहकर कभी भी मगर से बैर न रखो। मेरा कहने का मतलब यह है कि जहां कही भी रहो वहां अपने सभी मिलने-जुलने वाले साथियों के साथ मिलजुल कर रहो। दादू का यह लंबा सा सीख देने वाला कथन सुनकर पप्पू की मां ने तस्सली करने की बजाए कांव-कांव करते हुए दादू से कहा कि इस तरह की बाते करके आप तो मेरे बेटे को दब्बू किस्म का इंसान बना दोगे। अगर मेरे बेटे ने टीचर को कुछ उल्टा-सीधा कह ही दिया है तो वो उसका क्या बिगाड़ लेगी। अधिक से अधिक उसे फेल ही तो करेगी, उससे ज्यादा वो क्या कर सकती है। मैं अपने कलेजे के टुकड़े को यदि कोई बड़ा अफसर न भी बना सकी तो किसी न किसी तरह सरकारी दफतर में भरती करवा ही दूंगी। आजकल बड़े अफसरों से अधिक बाबू लोग ऊपर की कमाई कर लेते है।
यह सब सुनते ही दादू ने अपनी बहू यानि पप्पू की मां से कहा कि यह ठीक है आप लोगो ने दूसरों को बेवकूफ बना कर किसी तरह से चार पैसे कमा लिये है लेकिन उसका यह मतलब नही होता की उठते – बैठते हर किसी को पैसो की धौंस दिखाते रहो। अपनी जिंदगी को यदि चार चांद लगाने है तो सबसे पहले नाकरात्मक विचारों को मच्छर की तरह मसल दो और उनकी जगह सकारात्मक विचारों को उड़ान भरने दो। तुम क्या जानों की एक जगह पत्ता भी पड़े – पड़े सड़ जाता है, घोड़ा भी खड़े-खड़े अड़ जाता है, उसी तरह से आदमी का दिमाग भी बिना सोच – समझ के सड़ने लगता है। हर कोई इतना तो जानता है कि जिस प्रकार कुश्ती लड़ने से हमारे शरीर में ताकत बढ़ती है, कठिन सवालों को हल करने से हमारा दिमाग तेज होता है ठीक उसी तरह मुश्किल परिस्थितियों का डट कर मुकाबला करने से हमारा मनोबल बढ़ता है। इसलिये हर समय किसी न किसी कामयाबी की राह के बारे में सोचना जरूरी होता है।
बहू रानी जी अपने बेटे को उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ाने की बजाए ऐसे सकारात्मक विचार दो जिससे उसके मन में पौजिटिव तरंगें पैदा हो सके। उसे यह समझाने की कोशिश करो कि असफ़ल वह नही है जिसके पास सफ़ल होने के लिये कोई साधन नही होते, असफ़ल तो वह होते है जिनके पास आत्मविश्वास की कमी होती है। मंजिल की और बढ़ते हुऐ गिर-गिर कर उठने की शक्ति ही सफ़लता का रास्ता बनाती है। असफ़ल व्यक्ति सारी उम्र इस इंतजार में बैठे रहते है कि उन्हें कोई व्यक्ति या अच्छा समय आकर सफ़ल बनायेगा, लेकिन समय कभी किसी का इंतजार नही करता। आपके जीवन का कोई भी मकसद हो, अपने मिशन में कामयाब होने के लिए आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त और निश्ठावान होना ही पड़ेगा। जिस दिन आपको अपनी शक्तियों पर भरोसा हो जायेगा उस दिन आप अपनी मेहनत, हिम्मत और लगन से अपनी हर कल्पना को साकार कर पायेगे। हमारे जीवन में वह कार्य और प्रवृति सबसे ज्यादा खतरनाक होती है जिसका विपरीत असर हमारी सफ़लता पर पड़ता है।
अब मैं अपनी बात को और अधिक न बढ़ाते हुए इतना ही कहना चाहूंगा कि जिस प्रकार कोई नदी का अनुसरण करता है तो वो समुंद्र तक पहुंच जाता है, उसी तरह कामयाब लोगो के दिखाए हुए मार्ग पर चलने से हर कोई कामयाबी की मंजिल तक जरूर पहुंच सकता है। दादू जी की इतनी प्रेरक बाते सुनकर जौली अंकल को पेड़ की डलियों पर बैठे उन पक्षीयों का ख्याल आ रहा है जो उसके हिलने या उसकी कमजोरी से नही घबराते क्योंकि उन्हें अपने पंखो पर भरोसा होता है। इसी तरह हमें भी अपने जीवन में ऊंची उड़ान भरने के लिये सदैव अपना आत्मविष्वास कायम रखना चाहिये।
*****
जौली अंकल
jollyuncle@gmail.com
रविवार, 21 अक्तूबर 2012
Jolly Uncle's interview with SIKH FOUNDATION.ORG
http://www.sikhfoundation.org/2012/people-events/uncle-jolly-having-the-last-laugh/
गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012
बुधवार, 27 जून 2012
पूजा के फूल
मां ने अपने बेटे अमन को बड़े ही प्यार से उठा कर उसे उसके जन्मदिन की मुबारक देते हुए कहा कि अब जल्दी से उठ जाओ। देखो सूरज कब से निकल आया है। अमन ने मां से कहा कि आपको सूरज के जल्दी निकलने का तो मालूम है लेकिन आप षायद यह नही जानती की वो सोता भी तो मुझ से पहले है। बेटा आज घर में तेरे जन्मदिन की पूजा रखवार्इ है। तू जल्दी से नहां कर मुझे पूजा के फूल ला दे। अमन ने मसखरी करते हुए पूछा कि मां कौन सी पूजा के फूल चाहिये, पूजा बेदी के या पूजा भê के। अब मां को थोड़ा तल्ख होते हुए कहना पड़ा कि हर समय मज़ाक अच्छा नही लगता। तू अपने घर के सामने वाले पार्क से अच्छे वाले फूल तोड़ कर ला दे। लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि कालोनी के प्रधान वहां ना बैठे हो। मां अगर बैठे भी हो तो हमें क्या फर्क पड़ता है, यह पार्क कोर्इ उनका निजी तो है नही।
मां ने बेटे को समझाया कि यह बात नही है। असल में सारे बाग-बगीचे की देख रेख वो प्रधान जी ही करते है। वो एक-एक पौधे को अपने बच्चो की तरह संभाल कर पालते है। इसलिये जब कोर्इ फूल तोड़ता है तो उन्हें बहुत तकलीफ होती है और वो गुस्सा करने लगते है। फिर अगर वो पार्क में बैठे हो तो मैं फूल कैसे तोड़ूगा, बेटे ने पूछा? मां ने कहा, तू उन्हें किसी बहाने से पार्क के बाहर भेज देना। कुछ देर बाद जब अमन पार्क में फूल तोड़ने के लिये पहुंचा तो उसने देखा कि प्रधान अंकल वही सामने बैंच पर बैठे हुए है। अमन ने होषियारी दिखाते हुए कहा कि अंकल आपको घर में बुला रहे है। प्रधान अंकल जल्दी से अपने घर की और चले गये। अमन ने बड़े चैन से पार्क से अच्छे-अच्छे ढ़ेर सारे फूल तोड़ कर अपना थैला भर लिया। घर आते ही इतने खुषबूदार फूल देख कर अमन की मम्मी बहुत खुष हुर्इ। अमन का ध्यान जैसे ही सामने पड़े लìूओं के थाल की और गया तो उसने उसमें से झट एक लìू उठा लिया। उसकी मम्मी ने कहा कि बेटा यह क्या कर रहे हो, यह तो प्रसाद है। अगर तुमने यह झूठा कर दिया तो भगवान जी नाराज हो जायेगे। अमन ने पूछा लेकिन भगवान को कैसे मालूम पड़ेगा कि मैने प्रसाद के थाल में से एक लìू खा लिया है। मम्मी ने प्यार से समझाया कि भगवान हमारे हर कर्म को हर समय देखते रहते है।
कुछ देर बाद अमन के घर में उसके जन्मदिन की पूजा षुरू हो गर्इ। सारा परिवार पूजा में षामिल हो गया, परंतु अमन उदास सा होकर अपने कमरे में जा बैठा। कर्इ बार बुलाने पर भी वो पूजा में षामिल नही हुआ। जब पूजा खत्म हो गर्इ तो पुजारी जी ने अमन से उसकी उदासी का कारण पूछा। अमन ने कहा कि ऐसी पूजा का क्या फायदा? जिसको करने के लिये हम समाज के साथ भगवान को भी धोखा दे रहे है। एक तरफ तो मेरी मम्मी कहती है कि भगवान हर समय हमारे साथ रहते है और हमारी हर अच्छी बुरी बात पर नज़र रखते है। दूसरी और मुझे झूठ बोलने और चोरी करने के लिये कहती है। आज हमने यह जो फूल चोरी करके भगवान को अर्पण किये है क्या इसके बदले वो मुझे सच में कोर्इ अच्छा सा आर्षीवाद देगे? पुजारी जी ने कहा कि आज तक तो मैं दुनियां को ज्ञान-ध्यान की बाते समझाता रहा हू। परंतु आज इस नन्हें से बालक की बाते सुन कर मेरी भी आखें खुल गर्इ है। मैं वादा करता हू कि आज से अपने हर प्रवचन में सभी भक्तजनों को यह बात जरूर समझाऊगा कि यदि हम पेड़-पौधे लगा नही सकते तो हमें उन पर लगे हुए फूलों को तोड़ने का भी कोर्इ हक नही बनता।
अमन की बातो से प्रभावित होकर जौली अंकल भी यह प्रण लेते है कि आज के बाद मुझे जब भी र्इष्वर के चरणों में फूल अर्पित करने होगे तो मैं या उन्हें अपनी मेहनत से लगाऐ हुए बगीचे से लाऊगा या अपनी नेक कमार्इ से खरीद कर। क्योंकि यह बात सच है कि भगवान चोरी की कोर्इ भी चीज कभी स्वीकार नही करते फिर चाहे वो पूजा के फूल ही क्यों ना हो?
• जौली अंकल
मंगलवार, 24 अप्रैल 2012
बेवकूफ - जोली अंकल
’’ बेवकूफ ’’
मिश्रा जी की पत्नी ने बाजार में खरीददारी करते हुए उनसे पूछ लिया कि ऐ जी, यह सामने गहनों वाली दुकान पर लगे हुए बोर्ड पर क्या लिखा है, कुछ ठीक से समझ नही आ रहा। मिश्रा जी ने कहा कि बिल्कुल साफ-साफ तो लिखा है कि कही दूसरी जगह पर धोखा खाने या बेवकूफ बनने से पहले हमें एक मौका जरूर दे। मिश्रा जी ने नाराज़ होते हुए कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने सारी बेवकूफियांे करने का ठेका तुम मां-बेटे को ही दे कर भेजा है। इतना सुनते ही पास खड़े मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि घर में चाहे कोई भी सदस्य कुछ गलती करें आप मुझे साथ में बेवकूफ क्यूं बना देते हो?
मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हें बेवकूफ न कहूं तो क्या कहू? तुमसे बड़ा बेवकूफ तो इस सारे जहां में कोई हो ही नही सकता। अपना पेट काट-काट कर और कितने पापड़ बेलने के बाद मुष्किल से तुम्हारी बी,ए, की पढ़ाई पूरी करवाई थी कि तुम मेरे कारोबार में कुछ सहायता करोगे। परंतु अब दुकान पर मेरे काम मे कुछ मदद करने की बजाए सारा दिन गोबर गणेष की तरह घर में बैठ कर न जाने कौन से हवाई किले बनाते रहते हो। तुम्हारे साथ तो कोई कितना ही सिर पीट ले परंतु तुम्हारे कान पर तो जूं तक नही रेंगती। मुझे एक बात समझाओं की सारा दिन घर में घोड़े बेच कर सोने और मक्खियां मारने के सिवाए तुम करते क्या हो? मैं तो आज तक यह भी नही समझ पाया कि तुम किस चिकनी मिट्टी से बने हुए हो कि तुम्हारे ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर क्यूं नही होता?
मिश्रा जी को और नीला-पीला होते देख उनकी पत्नी ने गाल फुलाते हुए कहा कि यहां बाजार में सबके सामने मेरे कलेजे के टुकड़े को नीचा दिखा कर यदि तुम्हारे कलेजे में ठंडक पड़ गई हो तो अब घर वापिस चले क्या? मिश्रा जी ने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हारे लाड़-प्यार की वजह से ही इस अक्कल के दुष्मन की अक्कल घास चरने चली गई है। मुझे तो हर समय यही डर सताता हेै कि तुम्हारा यह लाड़ला किसी दिन जरूर कोई्र उल्टा सीधा गुल खिलायेगा। मैं अभी तक तो यही सोचता था कि पढ़ाई लिखाई करके एक दिन यह काठ का उल्लू अपने पैरां पर खड़ा हो जायेगा, लेेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है। हर समय कौऐ उड़ाने वाला और ख्याली पुलाव पकाने वाला तुम्हारा यह बेटा तो बिल्कुल कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी नही सीधी हो सकती।
मिश्रा जी की पत्नी ने अपने मन का गुबार निकालते हुए कहा कि आप एक बार अपने तेवर चढ़ाने थोड़े कम करो तो फिर देखना कि हमारा बेटा कैसे दिन-दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है। आप जिस लड़के के बारे में यह कह रहे हो कि वो अपने पैरों पर खड़ा नही हो सकता उसमें तो पहाड़ से टक्कर लेने की हिम्मत है। यह तो कुछ दिनों का फेर है कि उसका भाग्य उसका साथ नही दे रहा। बहुत जल्दी ऐसा समय आयेगा कि चारों और हमारे बेटे की तूती बोलेगी उस समय तो आप भी दातों तले उंगली दबाने से नही रह पाओगे। मिश्रा जी का बेटा जो अभी तक पसीने-पसीने हो रहा था अब तो उसकी भी बत्तीसी निकलने लगी थी।
अपनी पत्नी की बिना सिर पैर की बाते सुन कर मिश्रा जी का खून खोलने लगा था। बेटे की तरफदारी ने उल्टा जलती आग में घी डालने का काम अधिक कर दिया। मिश्रा जी ने पत्नी को समझाते हुए हुआ कहा कि मैने भी कोई धूप में बाल सफेद नही किए, मैं भी अपने बेटे की नब्ज को अच्छे से पहचानता हॅू। सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ने से या तीन-पांच करने से कभी डंके नही बजा करते। ऐसे लोग तो लाख के घर को भी खाक कर देते है। तुम पता नही सब कुछ समझते हुए भी बेटे के साथ मिल कर सारा दिन क्या खिचड़ी पकाती रहती हो? क्या तुम इतना भी नही जानती कि जिन लोगो के सिर पर गहरा हाथ मारने का भूत सवार होता है उन्हें हमेषा लेने के देने पड़ते है। यह जो जोड़-तोड़ और हर समय गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग होते है उन्हें एक दिन बड़े घर की हवा भी खानी पड़ती है।
मिश्रा जी के घर की महाभारत को देखने के बाद जौली अंकल कोई परामर्ष या सलाह देने की बजाए यही मंत्र देना चाहते है कि किसी काम से अनजान होना इतने षर्म की बात नही होती जितना की उस काम को करने के लिए कतराना। इसीलिये हर मां-बाप यही चाहते है कि स्ंातान अच्छी होनी चाहिए जो कहने में हो तो वो ही लोक और परलोक में सुख दे सकती है। इस बात को तो कोई भी नही झुठला सकता कि भाग्य के सहारे बैठे रहने वाले को कभी कुछ नही मिलता और ऐसे लोगो को सारी उम्र पछताना पड़ता है इसीलिए जमाना षायद उन्हें बेवकूफ कहता है।
’’जौली अंकल’’
सहनशीलता - जोली अंकल
थानेदार साहिब - रोचक लेख
’’ थानेदार साहब ’’
थानेदार साहब ने अपनी मूछों तो ताव देते हुए थाने के एक सिपाही को राषन की लंबी सी लिस्ट पकड़ाते हुए कहा कि कल मेरी माता जी की तेरहवीं है, तुम बाकी के सभी काम छोड़ कर पहले बाजार से जरा यह सारा खाने-पीने का सामान ले आओ। सिपाही थानेदार साहब को सलाम करके बरसों पुरानी खड़कती हुई जीप में बैठ कर इलाके की सबसे बड़ी राषन की दुकान पर जा पहुंचा। सिपाही के हाथ में राषन की लंबी सी लिस्ट को देखते ही दुकान के लाला जी की सांस उखड़ने लगी। सिपाई ने लाला को लिस्ट थमाते हुए कहा कि सारा राषन बहुत बढ़िया किस्म का होना चाहिये क्योकि तुम तो जानते हो कि थानेदार साहब की मां मर गई है और कल उनकी तेरहवीं है। इस मौके पर इलाके के सभी नामी लोगो ने थानेदार साहब के यहां ही खाना खाना है, इसलिये किसी प्रकार की कोई कमी नही रहनी चाहिये। लाला जी ने जैसे ही दाल-चावल, तेल, घी के साथ चाय-पत्ती और षक्कर की लिस्ट देखीे तो उनके मन से यही टीस उठी कि मुझे लग रहा है कि आज थानेदार साहब की नही मेरी मां मर गई है।
थाने का सिपाही जैसे ही राषन की लिस्ट लेकर बाजार की और गया तो थानेदार साहब की पत्नी ने कहा कि आप आऐ दिन हर किसी का छोटा-बड़ा काम करने पर रिष्वत लेते हो। घर का खाने-पीने से लेकर बाकी का सारा सामान भी आप सरकारी डंडे के जोर पर ले आते हो। कम से कम आज अपनी मां के क्रियाकर्म पर तो अपनी कमाई में से कुछ खर्च कर देते ताकि उनकी आत्मा को षांति मिल सकती। आपके थाने में तो कोई बेचारा चोरी-डकेती की रिपोर्ट दर्ज करवाने आ जाये उसका सामान वापिस दिलवाना तो दूर आप लोग उससे भी रिष्वत लिये बिना नही छोड़ते। क्या आपने कभी सोचा हे कि लोग तुम्हारे से डर कर तुम्हारे मुंह पर कुछ बोले या न बोले लेकिन आपकी पीठ पीछे आपको हर समय गालियां देते है। आप जैसे लोगो की हरकतो ने सारे पुलिस विभाग की मिट्टी खराब की हुई है। जैसे ही थानेदार साहब कुछ बोलने लगे तो उनकी बीवी ने कहा कि यह आपका थाना नही हमारा घर है, इसलिये मुझसे जरा आराम से बात करो। एक बात और सुन लो जब आप क्रोध करते हैं तो आपका स्वभाव ही नही बिगड़ता, बल्कि और भी बहुत कुछ बिगड़ जाता है। सारी दुनियां आप लोगो को समझा-समझा कर थक गई है लेकिन मुझे समझ नही आता कि आप रिष्वत लेना कब छोड़ोगे? थानेदार की पत्नी ने कहा कि मुझे इस बात पर भी हैरानगी होती है कि तुम्हारे अफसर भी इस बारे में तुम्हें कभी कुछ नही कहते।
थानेदार साहब ने अपनी टोपी सीधी करते हुए कहा कि हमारे अफसर हम से क्या कह्रेगे क्योकि रिष्वत लेना उनकी भी मजबूरी है, वो भी अच्छे मलाईदार थाने में नौकरी पाने के लिये मोटी रिष्वत देकर आते है। हां यह बात जरूर है कि कभी कभार उनकी मर्जी मुताबिक काम न होने पर उनका उलाहना जरूर मिल जाता है। वैसे तुम मुझे मेरी पत्नी कम और मीडिया वालो की जासूस अधिक लगती हो। न जाने तुम मेरे साथ किस जन्म की दुष्मनी निकाल रही हो कि तुम्हें हर समय मीडिया वालो की तरह पुलिस में कमियां ही कमियां दिखाई देती है। थानेदार साहब की पत्नी ने भी हार न मानते हुए कहा कि आप लोग अगर थोड़ा बहुत किसी से डरते हो तो वो सिर्फ मीडिया वालो से, अब आम आदमी तो बेचारा आपके आगे बोल नही सकता। थानेदार ने पत्नी को घूर कर देखते हुए कहा कि इस गलतफहमी में मत रहना कि हम मीडिया वालो से डरते है। हम तो सिर्फ उनकी खबरों से डरते है जो सुबह से देर रात तक उस समय तक तक बार-बार टीवी में चलती रहती है जब तक की पुलिस अफसर निलंबित न हो जाये। बाकी रही रिष्वत की बात तो यह सब कुछ मैं अपने लिये नही तुम्हारी खुषी और सुख के लिये करता हॅू।
अब तुम ही बताओ की आजकल घर का खर्चा चलाना कितना कठिन है। जो तनख्वाह सरकार से हमें मिलती है उससे बच्चो की पढ़ाई-लिखाई तो दूर दो वक्त दाल-रोटी भी ठीक से नही खा सकते। थानेदार की बीवी ने कहा कि यह तो आप लोगो ने सिर्फ रिष्वत लेने का एक बहाना बना रखा है। यह सच है कि मंहगाई बहुत बढ़ गई है लेकिन इसी के साथ सरकार ने आप लोगो की तन्खवाहे भी तो बढ़ा दी है। थानेदार साहब ने किसी तरह अपने गुस्से को काबू में रखते हुए कहा ओये बात सुन पहले चीनी होती थी 10-12 रूप्ये किलो आजकल चीनी का भाव हो गया है 50-60 रूप्ये किलो। अब तुम क्या चाहती हो कि हम लोग चाय भी फीकी पीये और सरकार की नौकरी भी फीकी करे। सरकार चीनी और खाने-पीने की चीजो के हिसाब से ही हमारा वेतन बढ़ा दे तो भी हमे रिष्वत लेने की जरूरत ही नही पड़ेगी। थानेदार साहब ने अपनी पुलिसियां भाशा में अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा कि सबसे आसान है बोलना और शिकायते करना, सबसे कठिन है कुछ काम करके दिखाना। क्या कभी तुम ने यह सोचा है कि हम लोग किस तरह 20-20 घंटे की नौकरी बिना कुछ खाये-पीये करते है। दिन हो या रात अपनी जान हथेली पर रख कर हम पुलिस वालो को किस तरह हर प्रकार के खतरनाक मुजरिमों से दो-दो हाथ होना पड़ता है। वैसे भी आप सभी लोग मिल कर हम पुलिस वालों को कुछ अधिक ही बुरा-भला कहते हो जबकि दूसरे सरकारी विभागो में हमारे यहां से कही अधिक रिष्वत चलती है।
थानेदार की पत्नी ने अपने तर्क को लगाम लगाते हुए कहा कि थानेदार साहब दूसरों को बदलने का प्रयत्न करने के बजाए स्वयं को बदल लेना कहीं अधिक अच्छा होता है। वैसे भी आप काफी समझदार और पढ़े लिखे हो, इसलिये इतना तो आप भी जानते होगे कि ज्यादा इच्छा रखने वाले को कभी सुख नही मिलता। सच्चा धनवान वही व्यक्ति होता है जो अपनी इच्छाओं पर काबू रख सके, इसलिये यदि आप चाहते है कि आपके परिवार और बच्चों के पांव जमीन पर ही रहें, तो उनको रिष्वत की कमाई से पालने की बजाए उनके कंधों पर कुछ जिम्मेंदारी डालने का प्रयास करो। एक बात तो हर कोई जानता है कि खल्ली जैसे विष्व प्रसिद्व पहलवान में भी इतनी हिम्मत नही है कि थानेदार साहब को कोई सुझाव दे सके, लेकिन जौली अंकल सरकारी डंडे से डरते-डरते दबी हुई आवाज में थानेदार साहब को इतना जरूर कहना चाहते है कि हर समय पैसे की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी चैन नही मिलता क्योकि यदि धन और बल के जोर पर सारे सुख मिल सकते तो षायद इस दुनिया में हर इंसान सारे कामकाज छोड़ कर किसी न किसी थाने में थानेदार होता।
जौली अंकल’’
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