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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

आखिरी पहर


कुछ दिन पहले चुनाव अधिकारी जब मेरे पड़ोसी के घर मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए आये तो उन्होने घर की मालकिन से उसकी उंम्र जाननी चाही तो उसने झट से कह दिया कि 25 साल। पीछे खड़े उसके पति ने उसे डांटते हुए कहा कि यह सरकारी अधिकारी है। इन्हें बिल्कुल ठीक-ठीक और सही जानकारी देनी होती है। तुम 25-30 साल पहले भी खुद को 25 साल का कहती थी। आज भी अपने आप को 25 साल का बता रही हो। तुम क्या सारी उंम्र 25 साल की ही रहोगी? उस औरत ने पलटवार करते हुए कहा कि मैं तुम्हारी तरह नही हूँ कि एक बार कुछ कहूं और कुछ ही देर में अपनी बात से पलट जाऊ। मैं तो जो भी बात एक बार कह देती  हूँ, हमेशा उसी पर कायम रहती  हूँ। मेरे पड़ोसी ने कहा, मेरे से बाद में झगड़ा कर लेना पहले इन लोगो को अपनी उंम्र ठीक से बता दो। अब वो औरत बोली कि आप लिख दो 25 साल और कुछ महीने। अधिकारी ने कहा कि कितने महीने? परेशान पति बोला, जी आप 25 साल और 200 महीने लिख दो।
आए दिन हम सभी देखते है कि सिर्फ औरते ही नही आदमी भी अपने बालो को रंग और चेहरे पर अनेक प्रकार के तेल एवं क्रीम लगा कर अपनी उंम्र को छुपाने की कोशिश करते है। कारण कोई भी हो इन्सान उंम्र के किसी भी पढ़ाव पर अपने आप को बुढ़ा मानने को तैयार नही होता। बुढ़ापे के नाम से ही लोगो को घबराहट और चिंता सताने लगती है। हालंकि हर कोई यह जानता है कि आज तक चिंता करने से कभी किसी सम्सयॉ का हल नही निकला। उल्टा ंचिंता आदमी को चिता के और नजदीक ले जाती है। हम भारतीय बहुत खुशनसीब है कि अभी तक हमारे देश में पूरे परिवार के सभी सदस्य बर्जुगो को बहुत ही इज्जत और प्यार देते है। जब कभी कोई विदेशी हमारे यहां आते है तो वो यह देख कर हैरान होते है कि हमारे यहां किस तरह से बच्चो को बर्जुगो के प्रति भरपूर प्यार, इज्जत और सम्मान करना बचपन से ही सिखाया जाता है। विदेशो की तरह उनको आश्रम में मौत का इंन्तजार करने के लिये नही छोड़ दिया जाता।
अब अगर हम हकीकत को समझने की कोशिश करे, तो यह पायेगे कि आदमी की सोच और विचारो के बदलते ही आदमी का खान-पान, रहन-सहन, यहां तक की उसकी सारी दुनियां ही बदल जाती है। यह बात भी ठीक है कि बढ़ती उंम्र के साथ शरीर में पहले जैसी ताकत नही रहती लेकिन अगर आप मन से अपने आप को जवां महसूस करते है तो आप सदा के लिए जवान रह सकते है। जिंदगी के प्रति सदा सकारात्मक दृष्टिकोण इसमें काफी हद तक मदद करता है। इस बात को कोई नही झुठला सकता कि बर्जुगो का भी परिवार और समाज की तरक्की में अहम योगदान होता है। आपके ध्दारा किया हुआ एक भी समाजिक नेक कार्य आपको बेशकीमती लाखो दुआऐं दिला देता है। विध्दवान और गुणी लोग सच ही कहते है कि बुढ़ापा शरीर से नही इंसान की सोच में होता है। हर आदमी के अंन्दर एक अच्छा इंन्सान छुपा होता है। जरूरत है उसे जगा कर बाहर लाने की। जो कोई थोड़ा सा प्रयत्न करते है, उन्हें इस कार्य में सदैव सफलता मिलती है। आप चाहे एक आम इंन्सान हो या कोई सेलिब्रिटी, आप अपनी पहचान को भुला कर जिंदगी के हर रंग और हर पल में खुशी पा सकते है।
आप अपनी गली, मुहल्ले या सोसाईटी में होली, दीवाली या नये साल के मौके पर अपनी हिचकिचाहट को मिटा कर बच्चो के साथ-साथ रंगारंग कार्यक्रमों में भाग ले सकते है। इससे आपके अंदर छुपी हुई प्रतिभा को देख कर आपके प्रियजनों को दातों तले उंगुलीयॉ दबाने पर मजबूर होना पड़ेगा। आप जीवन के इस मोड़ पर भी यह साबित कर सकते है कि आपके अंदर पहले जैसा जोश अभी बाकी है। बच्चो की तरह आप सब बर्जुग मिल कर वर्ल्ड सीनियर डे आदि मना सकते है। अपने परिवार के सदस्यो से कुछ अधिक इच्छा रखने की बजाए समय-समय पर उनको मोके के अनुसार कुछ न कुछ प्यारा सा तोहफा भेंट करे, इससे सारे परिवार का भरपूर स्नेह आपको मिलने लगेगा।
छोटे-मोटे दुख एवं परेशानीयॉ तो हमारी जिंदगी का ही एक अंग है। ऐसे में बढ़ती उंम्र के साथ अपनी इच्छाओं पर काबू रखने का प्रयास करते हुए बच्चो और रिश्तेदारो से जरूरत से अधिक अपेक्षाएं न रखें। जीवन के आखिरी पहर में घर वालो की मजबूरीओ को समझते हुए बर्जुगो को छोटी-छोटी बातो पर जिद्द करने से बचने की जरूरत है। बुढ़ापे में अक्सर अनेक लोग क्रोध को एक हथियार के रूप में प्रयोग करते हैं। जबकि मनुष्य क्रोध में, समुंद्र की तरह बहरा एवं आग की तरह उतावला हो जाता है। क्रोध की जगह यदि इंसान नम्रता का कवच पहनता है तो घर वालो के साथ समाज का हर व्यक्ति खुशी-खुशी सहयोग करने को तैयार रहता है। जीवन के सभी उतार चढ़ाव देखने के बाद तो इंसान बुढ़ापे में उस वृक्ष की तरह बन जाता है जो खुद तो हर तरह के तुफानी थपेड़ो को सहते हुए दूसरों को शीतलता प्रदान करता है। बुढ़ापे के सफर में यह छोटे छोटे बदलाव जहां एक और आपके अंदर आत्मविश्वास भर देगे वही आपके जीवन से आपकी सभी परेशानीयॉ को छूमंतर कर देते है। जिंदगी के इस आखिरी पहर में इस जादुई चमत्कार के बाद आप देखेगे कि न सिर्फ आपके घर वाले बल्कि जौली अंकल भी सुबह शाम आपको सलाम करेगे।

आम आदमी

आंधी और तुफान की तरह तेज भागती जिंदगी ने आज हर किसी को एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ ने दीवाना सा बना दिया है। चंद दिन पहले इसी जल्दबाजी के चलते एक कार वाले ने मुसद्दी लाल जी की साईकल को टक्कर मार दी। एक तो चोरी और उस पर सीनाजोरी की कहावत को चिरतार्थ करते हुए कार वाले ने बिना सोचे समझे सारा इलजाम मुसद्दी लाल के सिर पर मढ़ दिया। कार के मालिक ने अपनी दौलत के नशे में तो यहां तक कह डाला की तुम्हारे जैसे साईकल चलाने वाले आम आदमी को सड़क पर चलने की समझ तक नही होती। टक्कर मारने और मुसद्दी लाल जी को बुरी तरह से घायल करने के बावजूद कार वाले ने उनकी मां-बहन को खूब अच्छी तरह से याद किया गया। उसके तुंरत बाद जेब से मोबइल फोन बाहर आ गये और हाथो की उंगुलियां अपनी हस्ती के मुताबिक अपनी पहुंच तक पहुंचने में व्यस्त हो गई। बीच-बीच में कार वाला मुसद्दी लाल जी को धमकी दे रहा था कि तुम मुझे जानते नही कि मैं कौन  हूँ? आखिर मुसद्दी लाल जी ने तंग आकर पूछ ही लिया कि पहले तुम यही बता दो कि भाई तुम हो कौन? अब कार वाले ने कहा कि मैं इस शहर के सबसे बड़े नेता का बेटा  हूँ। मुसद्दी लाल जी ने इतने गंभीर महौल में भी अपनी आदतनुसार मजाक करते हुए कहा कि क्या नेता जी इस बात को जानते है? इतना सुनते ही नेता जी के बेटे का खून खोलने लगा और उसने अपनी गालीयो की बौछार और उनका वजन और अधिक बढ़ा दिया।
इससे पहले की इस दुर्घटना की बात नेता जी के कान तक पहुंचती, पास से गुजरते एक टी,वी, चैनल वाले की नजर मुसद्दी लाल जी जैसे आम आदमी की टूटी हुई साईकल पर पड़ गई। जैसे ही टी,वी, चैनल वालो को यह मालूम हुआ कि साईकल को टक्कर मारने वाला एक बड़े नेता का बेटा है तो उनकी बांछे खिल गई। दिल्ली जैसे बड़े शहर में एक आम आदमी की इतनी दुर्गति देख कर टी,वी, चैनल वालो की पिछले सात जन्मों की हमदर्दी पल भर में आम आदमी के हित में जाग उठी। वो बात अलग है कि चैनल वालों के लिये इससे अच्छी मसालेदार खबर और क्या हो सकती थी। आम आदमी के प्रति सहानुभूति जताते हुए इस छोटी सी खबर को देश की सबसे बड़ी खबर बना दिया। कुछ ही देर में मुसद्दी लाल जी जैसे आम आदमी से लेकर उनके गली मुहल्ले वालो के इन्टरव्यू अलग-अलग टी,वी, चैनलों पर प्रसारित हो रहे थे।
इसीलिये शायद जो नेता अपने मां-बाप तक को नही पहचानते चुनावों के आस-पास वो भी आम आदमी के लिये घर में गाड़ी, पैसे और दारू तक भिजवा देते है। चापलूसी में माहिर नेता एक दिन के लिये ही सही आम आदमी को शंहशाह बना देते है। इसी भ्रंम के चलते भारत देश के गांव से लेकर राजधानी दिल्ली में रहने वाले आम आदमी की हैसीयत चाहे कुछ भी न हो लेकिन वो खुद को किसी से कम नही समझता। क्योकि वो इस बात को अच्छी तरह से समझता है कि हमारे मंत्री और सरकार को यह मालूम है कि यदि राजगद्दी पर टिके रहना है तो आम आदमी को खुश रखना ही पड़ेगा। वो बात अलग है कि चुनावों के बाद आम आदमी के लिए छोटे से छोटे काम को पूरा करने में सरकार बरसों तक का समय लगा देती है। कहने को सड़क से लेकर हर शहर में पुलों तक का निर्माण केवल और केवल आम आदमी के लिए किया जाता है। कुछ लाखों रूप्यों के बजट में होने पर काम पर करोड़ो-अरबों रूप्ये खर्च करने के बाद भी सड़क और पुल केवल सरकारी फाईलों में ही दिखाई देते है।
आम आदमी की हस्ती चाहे कुछ भी न हो परंतु हमारे नेता लोग इसकी नराजगी से बचने के लिये चुनावों में किये गये वादो में से कुछ को पूरा करने का अक्सर इन्हें झांसा देते रहते है। सारी दुनियां के लिए चावल, दाल 50 रूप्ये किलो बिकती है परंतु आम आदमी के लिए सरकार इसे दो रूप्ये किलो बेचती है। बाकी लोगो के लिए बिजली के दाम चाहें आकाश को छू रहे हो, लेकिन आम आदमी के लिए यह मुफत बिजली देने का दम भरते है। वो बात अलग है कि आम आदमी को दो रूप्ये किलो वाली दाल और चावल कभी सपने में भी देखने को नही मिलते। मुफत में मिलने वाली बिजली रानी के दर्शन तो शायद आज तक कभी किसी आम आदमी को नही हुऐ होगे। हमारे देश के नेता यह जानते हुए भी कि उन्हें सारी शक्ति आम आदमी से ही मिलती है वो कभी भी आम लोगो के लिए बराबर न्याय की बात सोचते तक नही। ऐसा लगता है बिना भ्रष्टाचार और पक्षपात के काम करना उनके स्वभाव में ही नही है। हालिंक राजनेता का मुख्य दायित्व जनसेवा ही होता है और हर मंत्री को आम आदमी का सच्चा सेवक होना चहिए, परंतु व्यवाहरिक जीवन में ऐसा नही होता। हमारे देश में राजनीति कुछ लोगो के लिए सिर्फ पैसा कमाने और मनोविनोद का साधन बन कर रह गया है। आज आम आदमी के कान नेताओं के झूठे वादे सुन-सुन कर पक चुके है, इससे आगे कुछ और सुनने की हिम्मत उसमें नही बची।
आम आदमी की और से जौली अंकल देश के रहनुमाओं से यही अनुरोध करते है कि आपके पास धन, दौलत और ताकत सब कुछ है। इन्ही के बल पर हर कोई आम आदमी को झुकाने की कोशिश करता है, असल में जरूरत है खुद को थोड़ा सा झुकाने की, क्योंकि जनहित के कार्यो से ही इंसान महान बनता है। नेता लोग चाहे कितने ही ऊंचे ओदे पर क्यूं न पहुंच जाये उन्हें यह बात जीवन में कभी नही भूलनी चहिये कि आम आदमी की आवाज ही ईश्वर की आवाज होती है। इसलिये सदैव अपने जीवन काल में नंम्र बनो तो आम आदमी आपको नमन करते हुए हर कार्य में सहयोग देगा।

बच्चे मन के सच्चे

दरवाजे पर अचानक जैसे ही जोर से घंटी बजी तो सभी परिवार वालों का ध्यान पूजा से भटक गया। दूसरों को सच का पाठ पढ़ाने और खुद झूठ बोलने में माहिर मिश्रा जी ने अपने बेटे को दरवाजा खोलने के साथ उसे यह आदेष भी दे डाला कि दरवाजे पर कोई भी हो कह देना कि मैं घर पर नही  हूँ। मिश्रा जी के बेटे ने भाग कर दरवाजा खोला तो सामने मुहल्ला समीति के लोग रामलीला के लिए चंदा इक्ट्ठा करने के लिए पर्ची हाथ में पकड़े खड़े थे। छोटे से बच्चे ने बड़ी ही मासूमयित से दरवाजे पर खड़े लोगो से कह दिया कि पापा कह रहे है कि वो घर पर नही है। नन्हें से बच्चे के मुख से निकली बिल्कुल सच्ची बात सुनते ही सभी लोगो की हंसी छूट गई।
कुछ ही देर में जब मिश्रा जी का बेटा वापिस कमरे में दाखिल हुआ तो फोन की घंटी टर्न-टर्न करते हुए सभी का ध्यान अपनी और खींच रही थी। अब मिश्रा जी ने अपनी इकलोती पत्नी को हुक्म दे डाला कि फोन पर कोई मेरे बारे में पूछे तो उसे मना कर देना कि मैं घर पर नही  हूँ। मिश्रा जी की पत्नी ने अपनी आदतनुसार फोन उठाते ही हंस-हंस कर बाते करनी षुरू कर दी। अगले ही पल उधर से आवाज आई कि तुम्हारा बुव गया काम पर या अभी घर पर ही हेै? मिश्रा जी की पत्नी ने भी हंसते हुए कह दिया कि आज तो अभी यह घर पर ही है। इतना सुनते ही मिश्रा जी का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा। पत्नी को डांटते हुए बोले मैने तुम्हें जब पहले से ही समझाया था कि कह देना कि मैं घर पर नही  हूँ तो फिर भी तुम्हें यह कहने की क्या जरूरत थी कि मैं घर पर ही बैठा हुआ  हूँ? मिश्रा जी की पत्नी ने बात को टालते हुए कहा कभी तो अपना गुस्सा नाक से उतार कर नीचे रख दिया करो। यह फोन तुम्हारे लिए नही था, मेरी सहेली का था। असल में मेरी कुछ सहेलियां आज गप-षप के मूड में मेरे यहां आना चाहती थी, परंतु जब मैने उन्हें तुम्हारे घर में होने की खबर दी तो उन्होने आने से मना कर दिया।
बड़े लोग अपने बच्चो को सदा ही झूठ न बोलने की नसीहत देते है और उम्मीद करते है कि बच्चे सदा मन के सच्चे होने चहिये। बच्चो को सच बोलने के संस्कारों की घुटटी तो हम उन्हें जन्म से ही पिलाते है, लेकिन खुद हर कदम पर झूठ का साहरा लेकर ही चलते है। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जाने-अनजानें अनेको बार हम लोग बच्चो के सामने झूठ बोलने से नही कतराते। समय-समय पर अपनी झूठी बात को सच साबित करने में ही अपनी षान समझते है। झूठ एक ऐसा रोग है जिसे समाज का कोई वर्ग भी पंसद नही करता, लेकिन मौका मिलते ही हर कोई इसे इस्तेमाल करने से भी नही चूकता। ऐसे में यदि हमारे बच्चे झूठ बोलते है तो इसके लिए हम यह कद्पि मानने को तैयार नही होते कि अधिकाश: मामलों में दोषी हम लोग ही है। छोटे बच्चे तो मन से बिल्कुल सच्चे होते है लेकिन षुरू-षुरू में अक्सर मां-बाप के डर, सजा या पिटाई के कारण कई बार झूठ बोल देते है। समय रहते यदि उनकी इस आदत में सुधार न किया जाये तो उनकी झूठ बोलने की यह आदत पक जाती है। झूठ बोलने के पीछे मंषा चाहे कुछ भी हो, इसे किसी भी हालात में सही नही ठहराया जा सकता। बच्चा हो या बड़ा, झूठ बोलने का कारण कुछ भी हो यह एक खतरनाक संकेत है। इस एक आदत के कारण बच्चा गलत संगत में पड़ कर बुरी आदतो का षिकार हो सकता है। इससे बच्चे के व्यक्तित्व और आने वाले समय में सामाजिक रिष्तों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
लोगो के मन में यह धारणा घर चुकी है कि इस दुनियां में झूठ बोले बिना काम चल ही नही सकता। यह भी सत्य है कि कई बार सच्चाई बहुत कडुवी होती है और इसे बोलना बहुत कठिन हो जाता है। जैसे किसी अंधे को अंधा या लंगड़े को लंगड़ा कहने की हिम्मत आम आदमी नही जुटा पाता। कुछ लेकिन हमें सदा ही बच्चों मे सच बोलने के लिए उत्साह पैदा करना चहिये। यदि बच्चे से कोई गलती हो भी जाती है और वो आपको सच बता देता है, तो उसे सजा देने की बजाए उसकी सच बोलने की हिम्मत की तारीफ करनी चहिये। उसमें इतना विश्वास भरने का प्रयत्न करे कि तुम एक सच्चे और बहादुर इंसान हो और कभी किसी को जीवन में धोखा नही दोगे।
संसार में ऐसा कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जो सच और झूठ के फर्क को न समझता हो, लेकिन हम लोग दूसरों को सच्चाई का उपदेश देने से पहले कभी भी खुद को आंकने की कोशिश नही करते। यदि किसी बच्चे ने भूल से झूठ बोलने की कोई गलती कर ही दी है तो उसे असानी से सुधारा जा सकता है। बचपन से ही हमें बच्चो को यह समझाना चहिये कि सच बोलने वाले इंसान का व्यवहार ही उसके व्यकितत्व को निखारता है। परेशानी सिर्फ उन लोगो को हो सकती है जो इस आदत में सुधार की उम्मीद खो बैठते है। सच बोलने वाले व्यक्ति से सदा सभी लोग खुश रहते है और वो खुद भी भी हमेशा खुद से खुश रह सकता है।
जौली अंकल तो सदा से ही इस बात पर यकीन रखते है बच्चे जहां एक और जहां ऐसे कोमल फूल की तरह होते जो भगवान को भी प्यारे लगते है वहीं यह सदा मन से भी बिल्कुल सच्चे होते है। इस बात से ज्ञानी लोग भी इंकार नही कर सकते कि केवल 'सत्य का ही अस्तित्व' होता है और सत्य की महानता ही आपको महान बनाती है। इसी लिये बच्चो को सच का पाठ पढ़ाने से पहले जरूरत है हमें अपने अंदर बदलाव लाने की। इसी राह पर चलते हुए हम भी बच्चो की तरह मन से सच्चे होते हुए जीवन में सच्चाई पर विजय पा सकते है। 

प्यार का तौहफा

चंद दिन पहले जब वैलेनटाईन्स डे का बुखार सारे देश में तेजी से फैल रहा था तो वो इस बार अपना कुछ असर हमारे दिल पर भी छोड़ गया। वैलनटाईन डे के साथ-साथ बिल किलंटन जो कभी अमरीका के सबसे ताकतवर नेता थे और अपने (गोरे घर) यानि वाईट हाउस मे रहते थे, उनके प्यार के चर्चे भी समाचार पत्रों में खूब छपे। पढ़ कर हमें बड़ी ही हैरानगी हुई कि दुनियां के सब से बड़े औदे पर आसीन होने के बावजूद और उंम्र की परवाह किये बिना वो अपने प्यार का तौहफा अपनी प्राईवेट सैक्ट्री को दिये बिना क्यूं नही रह पाये? आखिर सच्चे प्यार में कुछ बात तो जरूर है। वो बात अलग है कि वाईट हाउस और अपने मुंह पर कालिख पोतने के बाद उन्हें अभी तक सगी बीवी और बेटी से मुंह छिपाना पड़ता है।
इतनी महान हस्ती से प्रेरणा लेते हुए इस बार वैलेंनटाईन्स डे पर हम ने भी हिम्मत जुटा कर सोचा कि जो काम हम अपनी जवानी के दिनों में नही कर पाये। इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्ही अरमानों को क्यूं न पूरा किया जाये? इस बार वैलेंनटाईन्स डे पर हम भी अपने प्यारे से दिल का तोहफा किसी को दे देकर देखते है। लेकिन अगले ही पल मन के किसी कोने से यह आवाज आई कि कही दिल लेने वाली सुंदर परी ने यह कह कर दिल लौटा दिया कि आप कोई दूसरा दिल पेश करो यह तो पिचका हुआ है तो बहुत किरकिरी हो जायेगी। इसी डर से मैने अपने नाजुक से दिल से खिलवाड़ करने की जगह तोहफे में फूल देने का मन बनाया। मेरे दिल ने मेरी हरकतो को भांपते हुए कहा, बड़े मियां दिल दो या फूल किसी ठीक-ठाक हम उंम्र को ही देना। यदि किसी खूबसूरत जवां हसीना की तरफ हाथ बढ़ा तो मैं उंम्र के इस पढ़ाव में ऐसे झटके बर्दाश्त नही कर पाऊगा। फिर मुझ से शिकायत मत करना क्योंकि ऐसे झटको के बाद और अधिक धड़कना मेरे बस में नही है। मैने सभी घरवालों से नजर बचा कर दाल-सब्जी की खरीददारी से थोड़े बहुत बचाये हुए पैसो को इक्कट्ठा करके पड़ोसी के बेटे को बाजार से कुछ फूल लाने को कहा। थोड़ी देर बाद उस बेवकूफ लड़के ने गुलाब के खुशबूदार फूलों की जगह प्लास्टिक के चंद फूल मेरे हाथ में थमा दिये। मैने उसे गुस्सा करते हुए कहा कि तुम्हें तो ताजे फूल लाने को कहा था। जरूरत से अधिक स्मार्ट उस बच्चे ने झट से कह डाला कि अंकल आप से इस उंम्र में किसी ने यह फूल लेने तो है नही, मैने सोचा कि क्यूं आपके पैसे बर्बाद करू? कम से कम यह प्लास्टिक के फूल अगले दो चार साल तो आपके काम आ जायेगे।
प्लास्टिक के फूलों को एक कौने में छिपा कर मैने अपने पोते से कहा कि बेटा जरा जल्दी से मेरे दांतो का सैट तो उठा ला। उसने खेलते-खेलते बिना मेरी बात की परवाह किये कह दिया कि दादा जी खाना तो अभी बना नही, अभी से दांत लगा कर क्या करोगे? अब मैं उसको यह भी नही कह सकता था कि मुझे अभी खाना नही खाना, तेरे दोस्त की दादी को स्माईल देनी है। हम बर्जुग जो छोटी सी बात को कहने के लिये बरसों हिम्मत नही जुटा पाते, उसी बात को नई पीढ़ी बिना सोचे समझे एक पल में कह देती है।
कभी किसी ने सोचा न होगा कि जमाना इतनी तेजी से करवट लेगा कि प्यार करने और उसके इजहार करने के सभी तरीके बदल जायेगे। आऐ दिन पुराने रिश्तो का गला घोंट कर हर कोई नई रिश्ते बना रहा है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि आज के इस युग में किसी को दिल के टूटने का गम नही सताता। लोग ज्यादा वक्त न गवां कर डिश टी,वी, के रिमोट की तरह नई राह तलाशने लगते है। इसीलिये शायद आऐ दिन नई-नई जोड़ीयां और हर तरफ नया प्यार देखने को मिलता है।
इस बात को झुठलाना भी गलत होगा कि प्यार उंम्र का मोहताज होता है या प्यार को किसी एक दायरे में बांधा जा सकता है। सबसे बड़ी सच्चाई तो यही है कि प्यार पर किसी का कोई जोर नही होता। परंतु जमाने के बदलते हालात को देख कर प्यार को प्यार कहना भी सही नही लगता। प्यार के इस खेल में यदि आप विजयी होना चाहते है तो आपको अपनी इन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण रखना होगा। जब आप स्वयं से प्रेम करना सीख लेगे तो दूसरे आपसे नफरत करना खुद ब खुद छोड़ कर प्यार करने लगेगे।
सच्चे प्यार को समझने के लिए जहां ज्ञान जरूरी है, वहीं उसे महसूस करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है। दूसरों को अपने से जोड़ने के लिये हमें सबसे पहले उनको को प्यार से अपना बनाना पड़ता है। हम जिन्हें सही अर्थो में प्रेम करते है, हमारा स्वरूप व व्यक्तित्व बिल्कुल वैसा ही बन जाता है। प्यार के इस व्यापारिक लेखे जोखे को जानने के बाद जौली अंकल तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचे है कि आप जितना प्यार किसी को देंगे, उतना ही अधिक प्रेम पायेंगे। आपके पास प्यार जितना अधिक होगा, इसे दान करना उतना ही सहज हो जायेगा। इसलिये प्यार का तौहफा सदा उसी को दो जो उसकी सही मायनों में कद्र जानता हो। 

कफ़न का दर्द

इस संसार में जीने के लिए हर इंसान को रोजी रोटी कमाने के लिए कोई न कोई काम धंधा तो करना ही पड़ता है। यह भी सच है कि व्यापारी चाहे कोई भी हो उसे हर समय अपने ग्राहको का इंतजार रहता है। चंद दिन पहले कुछ ऐसा ही नजारा शमशान घाट पर देखने को मिला। अंतिम संस्कार के लिए जरूरी सामान और कफन बेचने वाले ने अपने एक साथी से कहा कि आज तो न जानें सुबह किस मनहूस की शक्ल देखी थी कि आज सुबह से एक भी कफ़न नही बिका। इससे पहले वो कुछ और कहता उस के साथी ने कहा कि यह तो कमाल हो गया, तूने मुर्दे को याद किया और वो सामने से अर्थी आ रही है। जोर से ताली बजाते हुए बोला कि इस मुर्दे को भगवान ने कितनी लंबी उंम्र दी है। पैसा कमाने के लालच में आज का इंसान दूसरों के सुख-दुख को भूल कर मानव से दानव बनता जा रहा है। दुनियां के मेले को सजाते समय दुनियां बनाने वाले के दिल मे क्या था, इस रहस्य को तो आज तक कोई ज्ञानी और संत भी नही समझ पाये।
सूरज चांद की तरह भगवान ने इस दुनियां को भी बहुत ही खूबसूरत बनाया था। लेकिन यहां रहने वाले इंसानो ने इस दुनियां को भी अपने ही रंग रूप मे बदल डाला। सूरज और चांद तो आज भी वैसे ही है, परंतु इंसान आज लफगां बन कर दुनियां में नंगा नाच रहा है। दीन धर्म को भुला कर छल-कपट के साथ पैसे के लिये इंसान अपना ईमान बेचने से भी नही डरता। हर कोई मक्कार और आंखे होते हुए भी अंधे बन कर घूम रहे है। दूर-दूर तक कहीं भी राम के भक्त और रहीम के बंदे तो कहीं देखने को नही मिलते, हर तरफ फरेब ही देखने को मिलता है। लाख ढूंढने पर भी भाईचारे का नामों-निशान तक दिखाई नही देता। जहां तक नजर जाती है, चारों और जिंदगी बुरी तरह से रो रही है। प्यार से जीना भूल कर लोग आज आपस में लड़-झगड़ कर एक दूसरे के बच्चो को अनाथ बना रहे है। ऐसा महसूस होता है कि हर इंसान एक दूसरे की मदद करने की बजाए सामने वाले का खेल बिगाड़ने पर उतारू है। पड़ोसियों की बात तो छोड़ो भाई, भाई से ऐसे बात करता है, जैसे किसी के सिर पर बंम्ब का गोला फटता है। अब तो यही लगने लगा है कि वातावरण से खुशी नाम की चीज ही समाप्त हो गई हो।
यह सच है कि जीवन एक नाटक हैं परंतु इसमें अपनी भूमिका किस किरदार में निभानी है यह आप ही को तय करना है। हर इंसान इस बात को अच्छी तरह से समझता है कि भला करने वाले का सदा भला होता है और बुरा करने वाले का सिर्फ बुरा होता है। जो कोई जीवन में संतुलन बना कर रखना जानता है वह हमेशा सुखी रहता है। इस बात से भी कोई इंकार नही कर सकता कि मौत एक कडुवा सत्य है और हर किसी को एक न एक दिन वापिस उस मालिक के पास जाना है जहां से वो इस दुनियां में बिल्कुल नंगा और खाली हाथ आया था। इन सभी बातो के बावजूद भी वो हर समय झूठ बोलने और छल फरेब करने से नही चूकता। हम में से अधिकाश: लोग अपना बचपन खेल कूद में और जवानी सो कर बिताने मे ही विश्वास करते है। परंतु जब बुढ़ापा हमारे करीब आने लगता है तो उस समय हमारी आत्मा कांपने लगती है। कोई कितना भी बड़ा रईस या बाहुबली क्यूं न हो, लेकिन हर किसी को अपने सभी कर्मो का हिसाब इस दुनियां को अलविदा कहने से पहले चुकाने पड़ते है। अंत समय में कोई चाह कर भी किसी का साथ नही निभा पाता, हर किसी को इस दुनियां से वापिसी का सफर अकेले ही तह करना पड़ता है।

ऋषि-मुनियों का कहना है कि संसार एक बड़ी ज्ञान की पुस्तक है, किन्तु जो पढ़ नही सकता उसके लिए किसी काम की नही। पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अक्सर लोग जीवन रूपी वृक्ष के ज्ञान को समझने की जगह केवल इसकी टहनियों के नीचे ही खड़े होकर ंजिंदगी गुजार देते है। यदि आप मृत्यु से भयभीत होते हैं, तो इसका अर्थ यह है कि आप जीवन का महत्व ही नही समझते। हमारे जीवन के वही पल सफल हैं, जो अपने प्रियजनों के साथ हंसते खेलते बीतते है। यदि भूल से आपका कोई दिन दुख में बीता है तो उसे याद कर आज का दिन व्यर्थ में मत गंवाइये। बीती बातों को भुला देने से जीवन में मधुरता आ जाती है। राजा हो या रंक इस दुनियां से जाते समय यदि इज्जत पानी है तो उसके लिए हमें दूसरों की इज्जत करना भी सीखना होगा। भगवान के घर से इंसान इस दुनियां में बिल्कुल नंगा आता है और इस दुनियां से जाते समय घर वाले सारे कपड़े उतार कर शरीर को एक कफन में डाल कर अंन्तिम संस्कार के लिये ले जाते है। उस समय कफ़न के मन में कितना दर्द उठता होगा जब उसे नर रूपी नरायण की जगह एक दानव के शरीर को पनाह देनी पड़ती है।
आप जीवन में पाने की कामना जरूर कीजिए, परंतु इसी के साथ संतोष करना भी सीखिए क्योंकि जो व्यक्ति संतुष्ट है उससे बड़ा धनवान कोई नही। जौली अंकल कफ़न के दर्द को समझने के प्रयास में और अधिक न कहते हुए यही संदे6ा देना चाहते है कि दुनियॉ की सबसे बड़ी अमीरी धन नहीं है बल्कि प्रसन्नता हैे। हर इंसान को स्वयं की खोज के लिए स्वयं के प्रति सच्चा बनना पड़ेगा, तभी उसमें देव शक्ति उदित हो सकती है।
जिदंगी हसीन है, जिंदगी से प्यार कर,
है रात यदि अंधेरी है तो क्या हुआ, सुबह का इंतजार कर।

चापलूसी की महिमा


चंद दिन पहले हमारे पड़ोसी मिश्रा जी के घर इलाके के एक बहुत बड़े नेता आ पहुंचे। मिश्रा जी का सारा परिवार उनकी सेवा में जुट गया। मेहमान नवाजी की रस्म निभाते हुए मिश्रा जी ने अपने नौकर से झटपट चाय-नाश्ता तैयार करने को कहा। नेता जी ने कहा कि आजकल चाय मुझे माफिक नही आती आप चाय तो रहने ही दो। मिश्रा जी के नौकर ने भी कहा कि आप बिल्कुल ठीक कह रहे हो। चाय का पीना भी क्या पीना? न कोई इसकी शक्ल, न कोई सीरत और सूरत, देखने में बिल्कुल काली कलवटी। एक बार आदमी चाय पी ले, सारी रात नींद ही नही आती। सबसे खराब बात तो यह है कि जिस किसी कपड़े पर चाय का थोड़ा सा भी दाग लग जाये वो सारी उंम्र नही उतरता।
इससे पहले की नेता जी कुछ और कहते उनका नौकर बोला कि मैं आपके लिए बहुत ही षानदार और बढ़िया मीठी लस्सी बना कर लाता  हूँ। लस्सी जैसी कोई दूसरी चीज तो इस दुनियां में हो ही नही सकती। भगवान ने लस्सी को क्या बढ़िया रंग-रूप दिया है। जब दूध-दही से लस्सी तैयार होती है, तो सारे घर में नाच गाने जैसा महौल बन जाता है। लस्सी पीते ही जहां मन को षंति मिलती है, वही इससे सेहत भी ठीक बनी रहती है। नौकर की बात को बीच में काटते हुए नेता जी ने कहा नही भाई लस्सी तो तुम रहने ही दो, क्योंकि इसे पीते ही सुस्ती और नींद आने लगती है। नौकर ने झट से पलटी मारते हुए कहा कि जनाब यह तो आप ने लाख टक्के की बात कह दी। वैसे भी जिस बर्तन में लस्सी बनाई जायें, कई दिन तो उसकी चिकनाहट खत्म नही होती और न ही उसमें से बदबू जाती है। आप चाय और लस्सी का चक्कर छोड़िये, मैं आपके लिये खाना तैयार करता  हूँ।
नौकर की चापलूसी को भांपते हुए उन्होने कहा कि खाने में क्या खास खिलाओगे? नौकर ने कहा जी मेरी क्या औकात है कि मैं आपको कुछ बता सकूं? आप जो भी हुक्म करो मैं तैयार कर देता  हूँ। मिश्रा जी ने कहा बहुत दिन से भिंडी नही खाई। आज यदि कड़क तन्दुरी रोटी के साथ मसालेदार भिंड़ी बन जाये तो मजा ही आ जाये। नौकर ने मिश्रा जी की हां में हां मिलाते हुए कहा, कि आपने तो आज मेरे मुंह की बात छीन ली। मेरी भी बहुत दिनों से भिंड़ी पकाने का मन कर रहा था। कोमल-कोमल भिंडीयों के स्वाद का तो कोई मुकाबला ही नही। पास बैठे नेता जी ने कह दिया भिंड़ी बनती तो जरूर अच्छी है, लेकिन यह थोड़ी लेसदार होती है। नौकर ने नेता जी को खुश करने के इरादे से कहना शुरू किया कि आप बिल्कुल ठीक फरमा रहे हो, वैसे भी मंड़ी में सब्जीयों की कोई कमी थोडे ही है। भिंड़ीयों से तो अच्छा है कि आदमी सफेदी में मिलाने वाली गोंद खा ले।
मिश्रा जी ने नेता जी से कहा यदि आप हुक्म करे तो करेले की सब्जी तैयार करवा दूँ। इससे पहले नेता जी अपनी इच्छा जाहिर करते नौकर ने अपनी बकबक जारी रखते हुए कहा कि करेलों से बढ़ कर तो कोई दूसरी सब्जी हो ही नही सकती। भुने हुए प्याज और बढ़िया मसाले डाल कर करेले बने हो तो उसके सामने चिक्न भी फीका लगने लगता है। अब नेता जी ने नौकर को रोकते हुए कहा कि यह सब कुछ तो ठीक है लेकिन करेले थोड़े कडुवे होते है। मिश्रा जी के नौकर ने बिना एक पल सोचे समझे कहा कि यह तो आप बिल्कुल सच कह रहे हो। मुझे तो खुद यह नीम का बड़ा भाई लगता है। एक बार करेले की सब्जी खा लो, सारा दिन प्यास ही नही बुझती। करेले की सब्जी खाने से तो अच्छा है कि आदमी कुनैन की गोलीयां खा ले।
कुछ लोग जीवन में अपनी मंजिल पाने के लिये मेहनत को छोड़ सिर्फ झूठी तारीफ और चापलूसी का साहरा लेते है। चंम्चागिरी और चापलूसी के यह किस्से मिश्रा जी के नौकर या आम आदमी तक ही सीमित नही होते। चंद दिनों पहले जब महाराष्ट्र के एक मंत्री ने राहुल गांधी के जूते उठाये तो किसी को अंचभा नही हुआ क्योंकि ऐसा पहली बार नही हुआ था। बरसों पहले ज्ञानी जैल सिंह ने मैंडम इंदिरा गांधी के सैंड़िल उठाए थे। लोग उस हंगामे को आज भी याद करते है जब तरक्की पाने के लिए एक बार एन,डी, तिवारी ने संजय गांधी की चप्पलें उठाई थी। एक जरूरतमंद को तो अपनी मजबूरी के चलते भगवान को छोड़ बाहुबलीयों की चापलूसी करनी पड़ती है, परन्तु आज दुनियां में शंहशाह की हस्ती रखने वाले अभिताभ बच्चन भी अपना मतलब निकालने के लिए कभी नेहरू-गांधी की काग्रेंस के आंगन में, कभी छोटे भैया अमर सिंह के गले में बाहें डाल कर झूमते नजर आते है। आजकल तो खबर गर्म है कि अरबों रूप्यों के मालिक अभिताभ बच्चन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लुभा रहे है। फिल्मों में एैक्टिंग के माहिर असल जीवन में भी इतने बढ़िया एक्टर है कि मौके की नजाकत को देखते ही असानी से परिस्थितियों के मुताबिक रंग बदल लेते है। ऐसे लोगो का शायद यही मानना है कि जो काम चापलूसी से असानी से हो जाता है, उसे तो शायद भगवान भी न कर पायें।
हम सभी जानते है कि किस्मत किसी के हाथ में नही होती, लेकिन हमें यह नही भूलना चहिये कि मेहनत तो हमारे हाथ में है और मेहनत से हर कोई अपनी किस्मत बदल सकता है। इसीलिए हमें अपनी किसम्त पर नही सदा अपनी मेहनत पर विष्वास रखना चहिये। इस सच्चाई को कैसे झुठलाया जा सकता है कि योग्यता, ईमानदारी और धैर्यशीलता के समक्ष हर कोई घुटने टेकने पर मजबूर हो जाता है। जो व्यक्ति परिश्रम से डरता है वह जीवन में कभी भी सफल नही पा सकता। जौली अंकल दुनियां के सभी रंगो को देखने-परखने के बाद इतना ही समझ सके है कि चापलूसी करने वाले चाहे इसकी महिमा का कितना ही गुणगान क्यूं न कर ले, लेकिन हमें सदा झूठी तारीफ और प्रशंसा से बचना चहिये क्योंकि ये दोनो ही इंसान के सबसे बड़े दुश्मन हैं।

जीयें तो जीयें कैसे


आज सुबह जैसे ही मुझे मालूम हुआ कि मिश्रा जी का बेटा पास हो गया है, तो मैं भी झट से बधाई देने उनके घर जा पहुंचा। वहां पहुंचते ही मैने देखा कि उनकी बीबी अपने बेटे को बुरी तरह से पीट रही थी। मैने प्यार से उन्हें समझाते हुए कहा कि आपका बेटा इतने अच्छे अंको से पास हुआ है, आप को तो खुश होकर मिठाई बांटनी चहिये। एक आप है कि न जानें इस बेचारे को क्यूं इतनी बुरी तरह से पीटे जा रही है? मेरी बात को सुना-अनसुना करते हुए मिश्रा जी की श्रीमति ने कहा कि भाई साहब आप तो चुप ही रहिये। आप खुश होने की बात कर रहे हो, अब जरा यह बताओ कि इस मंहगाई के चलते अगली कक्षा की किताबे कापीयां कहां से लेकर देगे? हमने इसे पहले ही समझाया था कि एक बार खरीदी हुई किताबे कम से कम 3-4 साल तक चलनी चहिये। मिश्रा जी ने बात को खत्म करते हुए अपनी बीवी से कहा कि तुम जाओ और हमारे लिए दो कप चाय बना दो। जैसे ही चाय के कप मेज पर आये, मुझे उन्हें देख कर बहुत हैरानी हुई। मुझे लगा कि शायद इन्होनें यह कप चाय का मीठा चैक करने के लिए रखे होगे। चाय के कप इतने छोटे थे कि दो ही घूंट में चाय खत्म हो गई। मैने मिश्रा जी को कहा कि चाय में मीठा तो ठीक है आप चाय मंगवा लीजिए। मिश्रा जी मेरी बात पर जोर से हंसते हुए बोले भाई साहब यह कप मीठा चैक करने के लिये नही थे। जब से दूध और चीनी की कीमत आसमान को छोड़ मंगलग्रह को छूने लगी है तभी से हम अपने सभी मेहमानों को इन्हीं छोटे-छोटे कप में चाय पिलाते है।
इससे पहले की मैं अपनी बात खत्म करके वहां से निकलता, मिश्रा जी की पत्नी ने अपने छोटे बेटे को जोर-जोर से पीटना शुरू कर दिया। मैने चुस्की लेते हुए पूछा कि क्या इसका भी नतीजा आ गया है। मिश्रा जी ने कहा जी नही इसका नतीजा तो नही आया, लेकिन यह शोच जाने की जिद्द कर रहा है। मुझे बहुत हैरानगी हुई कि यदि बच्चे को पौटी आ ही गई है, तो इसमें उसका क्या कसूर? यह तो कोई ऐसा जुर्म नही है कि जिसके कारण इस नन्ही सी जान को इतनी बुरी तरह से पीटा जाये। जब मैने मिश्रा जी इस नन्हें से बच्चे की पिटाई का कारण पूछा तो उन्होनें कहा कि शौच जाने के बाद इसे बहुत जोर से भूख लग जाती है। यह फिर कुछ न कुछ खाने के लिए जिद्द करेगा। अब आप ही बताओ कि इतनी मंहगाई में बच्चो को बार-बार खाना कहां से खिलाऐ?
मिश्रा जी की मजबूरी को देखते हुए मेरे भी मन में भी यही ख्याल आ रहा था कि जब से इस दुनियां में जन्म लिया है, मंहगाई को आगे से आगे ही बढ़ते हुए देखा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में तो सरकार ने हर जरूरी वस्तु के दाम इतने अधिक बढ़ा दिये है कि आम आदमी के साथ अच्छे-खासे खाते पीते परिवारो की कमर भी टूट गई है। इसमें कोई दो राय नही है कि सारा देश मंहगाई से पिसते हुए जी रहा है। लेकिन मैने मिश्रा जी को थोड़ा ढंढ़ास बंधाते हुए कहा कि हमारी सरकार बहुत अच्छी है वो जो कुछ भी करती है जनता के भले के लिए ही करती है। मिश्रा जी ने आग बबूला होते हुए कहा कि आज अगर चीनी की कीमत 15 रूप्ये से 50 रूप्ये किलो पहुंच गई है तो इसमें सरकार ने क्या अच्छा किया है? मैने उन्हे समझाने की कोशिश की कि पहले हम लोग दिन में 5-6 बार चाय पी लेते थे। अब इतनी मंहगी चीनी खरीद कर एक से दूसरी बार चाय पीने की हिम्मत किसी में नही है। कम चाय पीने से हमें शुगर की बीमारी होने का खतरा बहुत हद तक खत्म हो जाता है। इसी तरह खाने के घी और तेल में बेतहाशा कीमत बढ़ा कर सरकार ने हमें दिल से होने वाली सभी बीमारीयों से बचा लिया है।
झूठी हंसी हंसते-हंसते मेरे मन में भी यही टीस उठ रही थी कि देश की जनता ने नेता लोगो पर विश्वास करके उन्हें फिर से तख्त पर बिठा कर कौन सा गुनाह किया है? क्या राजगद्दी पर बैठने के बाद कभी किसी मंत्री ने झुगी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब मजदूर से यह पूछा है कि आपकी आमदनी कितनी है, आपका घर कैसे चल रहा है? आखिर ऐसे लोगो को गरीबो का ख्याल आये भी तो क्यूं? सरकार की छोटी से छोटी कुर्सी मिलते ही चारों और से लक्ष्मी मां की कृपा इन लोगो पर बरसने लगती है। देश की मजबूर और लाचार जनता अपना दुखड़ा सुनाए भी तो किसे सुनाए? विरोधी पार्टीयां मंहगाई की इस मार के लिये कृषि मंत्री को दोषी बताती है तो कृषि मंत्री प्रधानमंत्री की गलत नीतियों के कारण उन्हें जिम्मेंदार ठहराने की कोशिश में लगे हुए है। प्रधानमंत्री बेलगाम मंहगाई का ठीकरा राज्यों के मुख्यमंत्रीयों के सिर पर फोड़ रहे है।
हर नई सुबह के साथ एक आम आदमी इसी उम्मीद से उठता है कि आज का नया दिन उसके लिए जरूर कोई न कोई नई खुशी एवं सुख का समाचार लेकर आयेगा। परंन्तु दिन शुरू होने के साथ जैसे ही समाचार पत्र के दर्शन होते है तो दूध, चीनी पैट्रोल, गैस से लेकर घर में इस्तेमाल होने वाली हर वस्तु के दाम देख कर बिजली से भी बड़ा झटका लगता है। पुरानी कहावत है कि सुबह का भूला यदि शाम को घर लोट आये तो उसे भूला नही कहते। क्या हमारे जीते जी कभी ऐसी शाम होगी जब हमारी सरकार भी भूल से पीछे मुड़ कर जनता की और देखेगी। क्या वो भी कभी देशवासीयों के दुख दर्द का समझते हुए जनहित में कुछ सुधार करेगी। यदि नही तो ऐसे में जौली अंकल देश के रहनुमाओं से केवल इतना जानना चाहते है, कि एक आम नागरिक को सिर्फ इतना समझा दो कि वो जीयें तो जीयें कैसे?

जोकर तेरा जवाब नही

मंहगाई और आकाश छूते भाव सुन कर जोकर को डर क्यूं नही लगता? )
गप्पू को जैसे ही दोस्तो से मालूम हुआ कि शहर में नया सर्कस आया हैतो उसने भी अपने दादा से फरमाईश कर डाली कि मुझे भी सर्कस देखने जाना है। दादा ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा कि सर्कस तो पुराने जमाने की चीज हो चुकी है। तुम्हारे पास तो कलर टैलीविजनवीडियो गैम्स और इंटरनैट आदि सब कुछ हैतुम सर्कस देख कर क्या करोगेगप्पू भी अपनी जिद्द पर अड़ते हुए बोला कि सर्कस में हाथीघोड़े और बहुत सारे जानवर है। यहां तक कि कुछ सुंदर परियों जैसी लड़कियां चीते के साथ बहुत सारे करतब भी दिखाती है। यह सब कुछ मेरी वीडियों गैंम्स में कहा हैअब दादा जी ने पाला पल्टते हुए कहा कि चलो आज तुम्हारी बात मान ही लेते हैमैने भी बहुत दिन से चीता नही देखातुम्हारे साथ चल कर मैं भी बहुत दिन बाद चीते को देख लूंगा।
सर्कस के कलाकारों द्वारा हैरत-अगेंज कारनामों का घ्यान आते ही हर किसी के मन में बचपन की यादें ताजा हो उठती है। सर्कस के कलाकार चाहे किसी भी देश-धर्म से ताल्लुक रखते होइन सभी का उदेश्य लोगो का मनोरंजन करना ही होता है। बच्चो से लेकर बर्जुगो तक सर्कस में एक चीज जो सबसे अधिक भाती हैवो है सर्कस का जौकर। अपने चेहरे पर अजीबो-गरीब रंग पोत कर और ढीले-ढाले रंग-बिंरगे कपड़े पहने हुए साधारण सा दिखने वाला आदमी जौकर बन कर सभी के आर्कषण का केन्द्र बना रहता है। सारे शो के दौरान जब-जब जौकर महाशय दिखाई देते है तो सर्कस का सारा टैंट बच्चो की तालीयों से गूंजने लगता है। इसी के साथ जौकर की चुलबुली हरकतों से बड़ें-बर्जुगो के चेहरो पर भी खुशी झलकने लगती है। शायद इन्हीं कारणो से ही जौकर सदैव हर किसी का सबसे प्रिय किरदार रहा है।
सर्कस देखने के बाद घर जाते समय सारे रास्ते मन में एक ही विचार बार-बार आ रहा था कि भगवान ने जौकर को कोन सी घुट्टी पिला कर बनाया होगा कि यह हमारे जमाने से लेकर आज बरसो बाद भी हंसता ही चला आ रहा है। क्या इसको गुड़शक्करदाल सब्जी के आकाश छूते भाव सुन कर डर नही लगता। यह जमाने की इतनी बिगड़ी हुई हालात में अपने बच्चों के लिए दूध-दही कैसे जुटा पाता होगाक्या इसके बच्चे इससे यह नही कहते होगे कि मंहगा आटामंहगा पानीदूध तो सारा पी गई शीला नानी। आज जब बड़े से बड़ा भी माई का लाल आटा दाल खरीदने जाता है तो उसका बुरा हाल हो जाता है। हिंदुमुस्लिमसिख ईसाई सभी को तेल घी के दर्शन तक दुर्लभ होते जा रहे है। आम आदमी को तो धीरे-धीरे चावल की शक्ल तक भूलती जा रही है। मंहगाई की यह हालत देख कर अब तो निम्र आय वर्ग के साथ रईस लोगो के भी होश उड़ने लगे है। हर किसी का जीवन नरक बनता जा रहा है। यह कैसा जादू है कि बिजलीपानीगैसपैटोलऔर डीजल की बढती कीमतों को देखकर भी जौकर के चेहरे पर कोई शिक्न तक दिखाई नही देती। ऐसा प्रतीत होता है कि सर्कस का जौकर भी हमारी सरकार की तरह किसी खास मिट्टी से बना हुआ है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला नानी से लेकर सोनियां गांधी तक कह रही है मंहगाई घटने का तो सवाल ही पैदा नही होता। देश की जनता चाहे कितना ही माथा क्यूं न पीट लेन जानें मनमोहन सिंह को सोनियां गांधी के अलावा कोई दूसरी आवाज सुनाई क्यूं नही देतीप्रधानमंत्री के हर नये तर्जुबे के साथ गरीब की थाली और छोटी होती जा रही है।
ऐसा सोचना तो सरासर गलत होगा कि जौकर के जीवन में कोई कष्ट या परेशानी नही होतीपरंतु एक आम आदमी की तरह उस पर मंहगाई की मार का कोई असर क्यूं नही दिखाई देतासारी दुनियां के बच्चो को हंसाने वाला जोकर भीआखिर है तो एक साधारण इंसान ही। जौकर भी हमारी तरह समाज का ही एक हिस्सा है। परंतु उसे हर हाल में अपने दर्शको को केवल हंसाना ही होता है। क्योंकि जोकर इस बात को अच्छी तरह से समझता है कि उसका काम सिर्फ हंसना-हंसाना ही है। लेकिन वो कभी भी अपने मुस्कराहते हुए चेहरे के पीछे दबी हुई भावनाओं और गमों की झलक भी अपने चेहरे पर नही आने देता।
जौकर के व्यक्तित्व को देख कर एक बात तो साफ हो जाती है कि रोजमर्रा के जीवन में कितनी ही परेशानीयां क्यूं न हो सदा मुस्कराते रहना ही संतुलित मन की निशानी है। अब प्रश्न यह उठता है कि भगवान राम ने तो अकेले ही हजारों आसुरिक शक्तियों का विध्वंस कर दिया था। क्या आज इस महान भारत की सवा सो करोड़ जनता मिल कर भी मंहगाईभष्टाचार और आंतकवाद जैसे दानव रूपी राक्षसों को खत्म नही कर सकती। यदि जल्द ही फिर से कोई महान क्रान्तिकारी पैदा नही हुऐ तो हम सभी भी का जीवन नर्क बन कर रह जायेगा। सदा खुश रहने वाले जौकर के जीवन से हम और कुछ सीखे या न सीखेपरंतु इतना तो अवश्य समझ सकते है कि यदि कोई आप पर हंसता हैं तो खिन्न न हों क्योंकि कम से कम आप उसे खुशी तो दे रहे हैं। जौकर के सदा खुश रहने का सबसे बड़ा राज यह है कि यदि जीवन में सफलता पानी है तो सदैव अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सीखिए। जौली अंकल दुनियां के इस अद्भूत प्राणी को सलाम करते हुए यही कहते है कि जौकर तेरा जवाब नही। 

इंतज़ार

मुसद्दी लाल जी के बेटे की शादी जैसे ही तह हुई तो वो सबसे पहले वो अपने खानदानी दर्जी के पास पहुंचे। उन्होने दर्जी से कहा कि मेरे पिता जी ने मेरी शादी के समय एक बढ़िया सी शेरवानी तैयार करने को कहा थालेकिन तुमने आज तक वो शादी का जोड़ा तैयार नही किया। अब अगले महीने मेरे बेटे की शादी तह हुई है। मैं चाहता  हूँ कि दुल्हा बनते समय वो वही जोड़ा पहनेजो मेरे पिता जी मेरी शादी के समय मुझे पहना हुआ देखना चाहते थे। दर्जी ने आखे टेढ़ी करते और चश्मा नाक पर चढ़ाते हुए कहामियां मैने आपकी शादी के समय भी कहा थाकि यदि हमसे अच्छा और बढ़िया काम करवाना है तो आपको थोड़ा इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा। इस तरह से जल्दी के काम हम नही कर सकते। मुसद्दी लाल जी ने भी अपने टेढ़े तेवर दिखाते हुए कहा कि मैं भी अब और इंतज़ार नही कर सकताआप इसी वक्त मेरा कपड़ा वापिस लोटा दोमैं अपने बेटे की शादी के लिये शैरवानी कहीं और से सिलवा लूंगा।
जैसे ही मुसद्दी लाल जी शेरवानी सिलवाने के लिये कपड़ा लेकर दूसरे दर्जी के पास पहुंचे तो वो जल्दी में कहीं जा रहा था। उसने जाते-जाते इतना ही कहा कि आप 10-15 मिनट इंतज़ार करोमैं अभी आता  हूँ। मुसद्दी लाल जी ने यदि तुम 10-15 मिनट में नही आये तो। उस दर्जी ने मुस्कराहते हुए कह दियाफिर आप थोड़ा और इंतज़ार कर लेना। कारण चाहे कुछ भी हो हमारे देश में जन्म से लेकर मृत्यु तक हम अपना आधे से अधिक समय तो इंतज़ार करते हुए व्यर्थ में ही गवां देते है। घर से दफतर जाना हो या बाजारराशन की लाईन हो या सिनेमा टिकट की खिड़कीबैंक में पैसे या बिजली-पानी का बिल जमां करवाना होहर जगह लाईन में खड़े रहते हुए हमें अपनी बारी के लिए घंटो इंतज़ार करना पड़ता है। खास तौर से आम आदमी को अपने जीवन स्तर में सुधार के लिये नेताओं द्वारा किये हुए कभी न पूरे होने वाले वादों को अमली जामा पहनाने का इंतज़ार रह-रह कर सताता है।
इंतज़ार का तो यह आलम हो गया है कि बड़े शहरों में अब एक जगह से दूसरी जगह की दूरी मील या किलोमीटर में न बता कर समय के हिसाब से बताने का चलन चल निकला हैक्योंकि कुछ किलोमीटर का फांसला तह करने में भी घंटो टै्रफिक जाम के इंतज़ार में निकल जाते है। टिकट रेल गाड़ी की हो या हवाई यात्रा की उसे पाने के लिये कई-कई महीनों का इंतज़ार करना तो एक आम बात हो चुकी है। कहने को हर कोई मंहगाई की मार से परेशान हैलेकिन किसी भी अच्छे होटल में न तो रहने के लिये कमरा मिलता है और न ही अच्छा खाना खाने के लिये जगह। हर तरफ से एक ही जवाब सुनने को मिलता आप थोड़ा इंतज़ार करो शायद कुछ देर में कोई जुगाड़ बन जाये।
घर में शादी-विवाह या किसी अन्य उत्सव का आयोजन करना होअपनी जेब से पैसा खर्च करने के बावजूद भी हमें हर जरूरी काम के लिये छोटे-बड़े सभी संबंधित लोगो से काम करवाने के लिए हर किसी का इंतज़ार करना पड़ता है। एक जनसाधारण को सबसे अधिक इंतज़ार हमारे सरकारी बाबू करवाते है। क्या ऐसा नही लगता कि हमारे यहां लोग सरकारी नौकरी केवल दो चीजो के लिये ही करते है। पहली तनख्वाह और दूसरी छुट्टीयां लेने के लिये। दूसरों को इंतज़ार करवाते-करवाते इन लोगो को खुद भी हर काम में इंतज़ार करने की आदत सी पड़ जाती है नतीजतन हर काम में प्रतीक्षा करते-करते उनकी यह आदत उन्हें दूसरो की अपेक्षा बहुत पीछे छोड़ देती है। जबकि परिश्रमी लोग बिना किसी को इंतज़ार करवाएं अपना हर काम समय पर करते है और बिना किसी से कुछ भी कहें समय के साथ तेजी से आगे बढ़ते रहते है।
कुछ लोगो का मानना है कि इंतज़ार का फल मीठा होता हैपरन्तु अक्सर इंतज़ार में एक-एक पल बरसो की तरह बीतता है। हर इंतज़ार में सिर्फ दर्द ही छिपा हो ऐसा भी नही है। बूढें माता-पिता को परदेस में बसे अपने बच्चो काबच्चो को अपने दोस्तो कादोस्तो को अपने प्रियजनों के इंतज़ार में भी एक आशाएक उम्मीद दिखाई देती है। प्रेमी-प्रेमीका को अपने मधुर मिलन का इंतज़ार मधु की तरह मीठा लगता हैक्योकि वो जानते है कि जुदाई की रात कितनी भी लंबी क्यूं न हो एक दिन तो सुहानी सुबह का इंतज़ार खत्म हो ही जायेगा। एक और जिंदगी में हर किसी को अपनी मंजिल पाने का मीठा सा इंतज़ार रहता हैवही जिंदगी के आखिरी पलों में मृत्यु शैया पर मरती आखों को मोक्ष पाने की आस में आखिरी सांस का इंतज़ार करना पड़ता है।
समझदार लोग तो यही मानते है कि समय सर्वाधिक अमूल्य है अत: हमें इसे एक दूसरे के इंतज़ार में बेकार गवाने की जगह सदैव इसका सदृपयोग करना चहिए। यदि इंतज़ार की इस बुरी लत को खत्म करना है तो उसके लिये केवल दृढ़ निष्ठासंकल्प और इच्छाशक्ति की जरूरत हैइन सभी के आगे इंतजार का टिक पाना अंसभव है। इंतजार के बारे में बात करते-करते पता ही नही लगा कि कब इंतजार खत्म हो गया। जौली अंकल यह वादा करते है कि अब आपको और इंतजार न करवाते हुए जीवन से जुड़े किसी और खास पहलू पर सुदर सा लेख जल्द ही आपकी खिदमत में पेश करेगे। 

साहब बहादुर

मिश्रा जी अपने छोटे बेटे की शादी के कुछ दिन बाद सुबह पार्क में जब सैर करने निकले तो उनके कुछ पुराने साथीयों में से एक ने मजाक करते हुए कहाकि सुना है शादी के बाद आदमी साहब बहादुर बन जाता है। साहब बहादुर से आपका क्या मतलब हैमैं आपकी बात को ठीक से समझ नही पाया। उनके साथी ने कहा कि आप तो बहुत गंभीर हो गयेमेरा तो सिर्फ इतना कहना था कि समाज में किसी का कुछ भी रूतबा होशादी के बाद हर कोई उसके नाम के आगे साहब लगा कर बुलाने लगता है। बीवी की फरमाईशे और घर की जरूरते पूरी करते-करते आदमी बहादुर यानि नौकर बन कर रह जाता है। मिश्रा जी ने कहाइस बारे में तो मैं कुछ ठीक से नही कह सकताहां इतना जरूर यकीन से कह सकता  हूँ कि रिटायरमैंट के बाद आदमी की हालात एक नौकर जैसी तो क्या गधे से भी बुरी हो जाती है। मिश्रा जी के दोस्त को लगा कि आज सुबह-सुबह उसने मिश्रा जी की किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। थोड़ी तसस्ली देने के बाद उसने पूछा कि क्या बात बहुत परेशान लग रहे होमिश्रा जी ने उसे बताना शुरू किया कि आप तो जानते ही हो कि मैं सेवानिवृती से पहले बहुत ही अच्छे सरकारी औदे पर नियुक्त था। सेवानिवृति के अवसर पर कई बड़े अफसरों ने मेरे काम की सराहना करते हुए मुझे सम्मानित किया था। घरनौकर-चाकर से लेकर गाड़ी तक सब कुछ सरकार ने मुहैया करवा रखा था। हर छोटे से छोटे काम के लिए एक ही आवाज पर कई नौकर दौड़े चले आते थे। कुछ साल पहले जब मैं सेवानिवृत हुआ तो हर किसी की जुबान से एक ही आवाज सुनाई देती थी कि जिंदगी में काम तो बहुत कर लियाअब सारा दिन आराम से बैठ कर चैन की बंसी बजाओ। मैं खुद भी सोच-सोच कर हैरान होता था कि बिना किसी काम काज के मेरा सारा दिन कैसे कट्रेगाआजकल मैं कहने को तो घर में कुछ काम नही करता लेकिन सारा दिन पांच मिनट भी चैन से बैठना नसीब नही होता।
दिन की शुरूआत होते ही पत्नी दूध और नाश्ते का सामान लाने के लिये कह देती है। इससे पहले कि मैं वापिस आकर शंति के साथ चंद पल समाचार पत्र के दर्शन कर सकूंबहू पोते को तैयार करने और उसे स्कूल छोड़ने का हुक्म सुना देती है। इस डयूटी को निपटा कर कई बार मन करता है कि थोड़ी देर तसस्ली से बैठ कर चाय की चुस्कीयों का आंनद लिया जाये। परंतु दूर से ही पत्नी मुझे देखते हुए कहती है कि क्या बात आज मुन्ना को स्कूल छोड़ने में बहुत देर कर दी। मैं तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रही  हूँ। मैने कहा क्या बात आज नाष्ता बहुत जल्दी बना लिया। पत्नी का जवाब था कि चाय-नाश्ता आ कर करनापहले जरा बिजली और टेलीफोन का बिल जमां करवा आओ क्योंकि आज आखिरी तारीख है। यदि आज यह बिल जमां नही हुआ तो बिजली विभाग वाले हमारी बिजली काट देगे। आप तो अच्छी तरह से जानते ही हो कि मैं बिना एयरकंडीशन के एक मिनट भी नही रह सकती। मैने अपनी बीवी से कहा कि मै तुम्हारा पति  हूँकभी कभार पति की कुछ सेवा भी किया करो। इतना सुनते ही मेरी पत्नी उल्टा मुझ पर नाराज होते हुए बोली कि मैने कब कहा कि तुम मेरे पति नहीड्राईवर हो। अभी पत्नी के हुक्म पूरे भी नही होते कि पोते का स्कूल से आने का समय हो जाता है। लाख कोशिश करने पर भी वो अपने स्कूल के होमवर्क को लेकर मेरा भेजा चांटना शुरू कर देता है। कभी कभार गलती से घर के किसी सदस्य को किसी काम के लिये ना कह दो तो उसे लगता है कि मैने उसे 25 किलो की गाली दे दी हो। इस सारे महौल से तंग आकर कई बार तो मन यही करता है कि मै यहां से कहीं बहुत दूर चला जाऊ। लेकिन घरवालों ने अपने सभी शौंक पूरे करने की चाह में चार पैसे भी मेरे लिये नही छोड़े।

मिश्रा जी के दोस्त ने उन्हें समझाते हुए कहा कि परेशानी चाहे कैसी भी होकभी भी इस तरह से सभी के सामने अपना हृदय मत खोलोजो बुद्विमान हैं और परमात्मा से डरने वाले हैं केवल उनसे अपने व्यवहार के संबंध में बात करो। एक बात और याद रखो कि आज के इस युग में अपने लिए तो सभी जीते हैं पर दूसरों के लिए जीने वाले बहुत कम होते है। मैं मानता  हूँ कि तुम्हारे घर वालों ने तुम्हारा बहुत मन दुखाया है लेकिन जब आप कामयाबी के शिखर पर होते है तो आपको हर कोई सलाम करता हैपरंतु जब आपके पास कोई ताकतवर कुर्सी या औदा नही होता तो उसी समय आपको मालूम पड़ता है कि आपके सच्चे शुभंचिंतक कौन हैमुझे लगता है तुम्हारे घर वाले शायद यह नही जानते कि घरों में बड़े बुजुर्गों के अपमान से अच्छे संस्कारों की बहने वाली गंगा सूख जाती हैं। वैसे बहादुर इंसान उसे ही कहा जाता है जो सभी परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखना जानता हो। मेरी एक बात और ध्यान रखना कि अगर आप हर कार्य हंसते-खेलते खुशी से करें तो कोई भी कार्य मुश्किल नही लगेगा। साधु संत तो यहां तक समझाते है कि जब तक कोई जीव कार्य कर रहा हैतभी तक वह जीवित हैजब वो कर्म करना छोड़ देता है तो वो एक मुर्दे से बढ़ कर कुछ नही होता। जौली अंकल मिश्रा जी के परिवार वालों के साथ सारे समाज को यहीं सदेंश देना चाहते है कि हम चाहें साहब हो या बहादुरनंम्र होकर चलनामधुर बोलना और बांटकर खानायह तीन ऐसे गुण है जो हमें ईश्वरीय पद पर पहुंचाते है। 

कसक कलम की

मिश्रा जी की कलम से तराशी पहली चंद पुस्तकों की भारी सफलता और मुनाफे के मद्दे्नजर जैसे ही प्रकाशक महोदय को उनकी नई पुस्तक के बारे मे मालूम हुआ तो वो अपने सभी जरूरी कामों को भूलकर मिश्रा जी के घर के चक्कर लगाने लगे। किसी न किसी बहाने कभी थोड़ी बहुत मिठाई एवं फल लेकर यह महाशय उनके घर जा धमकते। यह दौर तब तक जारी रहा जब तक मिश्रा जी ने अपनी नई पुस्तक को छापने की अनुमति और पांडुलिपि प्रकाशक को नही थमा दी। एक अच्छे शिकारी की तरह प्रकाशक अच्छी तरह से समझता था कि पाठकगण इस महान लेखक की कलम से निकले हुऐ हर मोती की मुंह मांगी कीमत खुशी-खुशी चुका सकते है। जैसे ही प्रकाशक महाशय को मालूम हुआ कि जल्द ही विश्व पुस्तक मेला शुरू हो रहा है तो इन्होने मिश्रा जी की नई पुस्तक को जल्द से जल्द छपवाने के लिए दिन-रात एक कर डाला। सहित्य के कद्रदान से अधिक एक व्यापारी होने के नाते इस पुस्तक मेले में अधिक से अधिक बिक्री करने का मौका यह अपने हाथ से नही खोना चाहते थे। एक और जहां जल्द ही इस नई पुस्तक के बड़े-बड़े बोर्ड सारे शहर की शोभा बढ़ा रहे थे वहीं दूसरी और समाचार पत्रों में शिक्षा मंत्री द्वारा पुस्तक के विमोचन के समाचार भी धडल्ले से छपने लगे। बाकी सारी जनता को न्योता भेजने के बाद प्रकाशक साहब को इस महशूर परंतु सीधे-साधे लेखक की भी याद आ ही गई। अपनी पुस्तक के विमोचन का समाचार पाते ही मिश्रा जी की खुशी सातवें आसमान को छूने लगी। बधाई देने आऐ हुए मित्रगणों के सामने मिश्रा जी छोटे बच्चो की तरह इतरा रहे थे। यह सब कुछ देख उनकी पत्नी को मेहमानों को चाय-पानी पिलाना भारी लग रहा था। पहले से ही बुरी तरह से तंगी के कारण बिलबिलाते मिश्रा जी के परिवार को बिजलीपानी और दूसरे जरूरी बिल तिलमिलाने को मजबूर कर रहे है। इंतजार की घड़ियां जल्दी ही खत्म होकर पुस्तक विमोचन का दिन आ गया। मिश्रा जी सुबह से ही अपने सफेद बालों में खिजाब लगा कर और शादी के मौके पर पहनी हुई शेरवानी पहन कर मेले में जाने के लिये तैयार हो गये। जब जूते पहनने की बारी आई तो बरसों पुराने जूतो ने इस मौके पर मिश्रा जी का साथ निभाने से इंकार कर दिया। न चाहते हुए भी इतने बड़े लेखक को अपने पड़ोसी से जूते मांगने पड़े। सुबह से घंटो राह देखने पर भी जब प्रकाशक महोदय की गाड़ी इन्हें लेने नही आई तो इन्होनें खुद ही आटो रिक्शा से जाने का मन बना लिया। परंतु जब जेब में हाथ डाला तो लक्ष्मी देवी का दूर-दूर तक कोई पता नही था। किसी तरह हिम्मत जुटा कर लेखक महोदय ने अपनी बीवी से चंद रूप्यों की फरमाईश कर डाली। पत्नी ने तपाक् से कह दिया कि मुन्नी कल से बुखार में तप रही हैअब यदि यह पैसे भी आप ले जाओंगे तो उसकी दवा कैसे ला पाऊगीमिश्रा जी ने उसे तस्सली देते हुए कहा कि तुम किसी तरह आज ठंडे पानी की पट्टीया लगा कर काम चला लो। भगवान ने चाहा तो इस पुस्तक के बाजार में आते ही सारे दुख दर्द दूर हो जायेगे। जनसाधारण से लेकर नेता तक सभी यही उम्मीद करते है कि देश में फिर से यदि प्यारभाईचारा व शांति कायम करनी है तो यह काम केवल कलम के माध्यम से ही किया जा सकता है। इतिहास साक्षी है कि समाज में सभी जरूरी बदलाव लेखक की बदोलत ही मुमकिन हुए है। ऐसे में हम सभी इस बात को क्यूं भूल जाते है कि जो लेखक अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नही कर सकता। जिसका अपना जीवन अंधकार में है वो समाज को किस प्रकार रोशनी की राह पर ला सकता हैजब कभी भी हिंन्दी लेखक की कोई पुस्तक प्रकाशित होती है तो चंद समाचार पत्रों में अपनी दो-चार फोटो देख कर ही उसकी बांछे खिल जाती है। हिंन्दी का आम लेखक तो कभी किसी उत्सव में फूल माला पहनकरकभी कोई छोटा-मोटा सम्मान पाकर ही खुद को महान समझने लगता है। इसका एक मात्र कारण यही समझ आता है कि आमतौर पर कोई भी हिंन्दी लेखक को भाव नही देता। कहने वालों ने तो तुलसीदास जी तक को कह दिया था कि क्या दो कोड़ी का लिखते होदूसरे देशो की बात को यदि छोड़ भी दे तो अपने ही देश में हिन्दी बोलने वालो को हीन भावना से देखा जाता है। हिन्दी लेखक को अपनी कलम से कले हुए अल्फाजों को पाठको तक पहुंचाने के लिए अपने स्वाभिमान तक को तिलांजलि देकर संपादको और इस धंधे से जुड़े व्यापारीयों की चापलूसी करनी पड़ती है।                        
लेखक तो उस वृक्ष की तरह है तो अपना सब कुछ केवल दूसरों को देना जानता है। जब कभी किसी वृक्ष की उंम्र पूरी हो जाती है तो भी वो ढेरों लकड़ी हमें दे जाता है। लेकिन यह सब कुछ तभी मुमकिन हो पाता है जब हम उस वृक्ष की ठीक से देख भाल करे। हमारे यहां लेखकों को अक्सर बड़े-बड़े समारोहों में अनमोल रत्न और न जानें कैसी बड़ी उपाधियों से नवाजा जाता है। लेकिन चंद दिन बाद किसी को लेखक की सुध लेने का ध्यान तक नही रहता। प्रकाशक और संपादक वर्ग लेखक की भावनाओं का जमकर दुरूप्योग करते हुए उन्हें अंधकार की और धकेल रहे है। हर समाचार पत्र और पत्रिकाऐं विज्ञापनों के माध्यम से लाखों रूप्यें कमा रहे है। ऐसे में क्या हमारे इतने बड़े लोकतंत्र में लेखको के हितो की सुरक्षा के लिये कोई व्यवस्था नही हो सकतीइस बात को असानी से समझा जा सकता है कि कुदरत के बाद यदि कोई बड़ा विश्वविद्यालय है तो वो है हमारे समाज का लेखक। मूर्ख आदमी तो ज्ञान का एक ही अंग देखता है और लेखक ज्ञान के सौ अंगो को देखता है। इसी से वो समाज को आत्मनिर्भर बनाने का काम कर सकता है। जौली अंकल भी एक लेखक होने के नाते कलम की कसक को समझते हुए इतना ही लिखना चाहते है कि असली ज्ञान वही हैजो अपने ज्ञान से दूसरों को लाभन्वित करें। 

कहीं देर न हो जाऐं

टीचर ने गप्पू को डांटते हुए कहा कि कम से कम सैंकड़ों बार तुम्हें समझा चुका  हूँ कि स्कूल शुरू होने का समय सुबह सात बजे है। परन्तु तुम इतने ढीठ हो चुके हो कि कभी भी क्लास में आठ बजे से पहले नही आते। गप्पू ने मसखरी हंसी हंसते हुए कहा कि मैंडम आप मेरी चिंता बिल्कुल मत किया करो। आप अपना स्कूल समय पर शुरू करवा दिया करो। टीचर ने अपने गुस्से पर थोड़ा काबू रखते हुए गप्पू से पूछा कि हर दिन स्कूल में देरी से आने का कोई न कोई बहाना तुम्हारे पास जरूर होता हैआज कौन सा नया बहाना लेकर आये होगप्पू ने बिना किसी झिझक के मैंड़म से कहा कि आज तो स्कूल के लिये तैयार होने में ही इतनी देर हो गई कि कोई बहाना सोचने का समय ही नही मिला। ऐसे किस्से सिर्फ स्कूलों में ही देखने को मिलते हैऐसी बात नही है। सरकारी दफतरों और खास तौर से अस्पतालों में इस तरह किस्से कहानियों की तो भरमार है। चंद दिन पहले हमारे पड़ोसी मुसद्दी लाल जी को दिल का दौरा पड़ गया। सभी घरवाले उन्हें तुरन्त ही पास के एक नजदीकी सरकारी अस्पताल में इलाज के लिये ले गये। वहां का महौल देख कर तो ऐसा लग रहा था कि शायद आज सारे शहर के लोग बीमार होकर यहां आ गये है। जगह-जगह दीवार पर लगी तख्तीयां पर लिखे इस संदेश को कि कृप्या शांत रहे अनदेखा करते हुए लोग मछली बाजार की तरह शोर मचा रहे थे। इस महौल में मुसद्दी लाल जी की तबीयत और बिगड़ती जा रही थीलेकिन डॉक्टर साहब का अभी तक कोई अता पता नही था। उनके बेटे ने अस्पताल के एक कर्मचारी से जब डॉक्टर साहब के आने के बारे में पूछा तो टका सा जवाब मिला कि डॉक्टर साहब थोड़ी देर पहले ही आये है। परन्तु रास्ते में टै्रफ्रिक जाम के कारण थक गये हैइसलिये थोड़ा आराम कर रहे है। आप शंति के साथ थोड़ा इंतजार करोडॉक्टर साहब के आने पर आपका इलाज शुरू हो जायेगा। मुसद्दी लाल के बेटे ने डरते हुए कहा मेरे पिता जी की तबीयत बहुत बिगड़ रही हैकहीं ऐसा न हो कि डॉक्टर साहब के आने तक बहुत देर हो जाये। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा थामुसद्दी लाल जी के घर वालों के गुस्से का पारा भी तेजी बढ़ता जा रहा थालेकिन कोई भी कुछ भी करने में अपने आप को असमर्थ पा रहा था। काफी देर बाद जब डॉक्टर साहब आराम फरमा कर बाहर आये तो वहां खड़े हर किसी ने इंसानियत की सभी मर्यादयों को तोड़ते हुए जानवरों जैसा व्यवहार शुरू कर दिया। मुसद्दी लाल जी का थोड़ा बहुत चैकअप करने के बाद डॉक्टर ने कुछ गोलीयां खाने को दे दी और साथ ही इलाज शुरू करने से पहले दिल की गहन जांच के लिये इंजोग्राफी करवाने को कह दिया।
अब सभी घरवाले मुसद्दी लाल जी को लेकर इंजोग्राफी करने वाले विभाग की और भाग रहे थे। वहां भी बहुत देर तक इंतजार करने के बाद बड़ी मुशकिल से एक नर्स से मुलाकात हो सकी। उसने बिना कुछ भी सुने डॉक्टर की पर्ची को देखते ही उस पर तीन महीने बाद की तारीख ड़ाल दी। पर्ची पर तीन महीने बाद की तारीख देखते ही मुसद्दी लाल के बेटे का मन कर रहा था कि ऐसे करूर कर्मचारीयों को गोली मार दे। लेकिन पिता की तेजी से बिगड़ती हालात की गंभीरता और नजाकत को समझते हुए उसने गिड़गिड़ाते हुए उस नर्स से इतना ही कहा कि आपको क्या लगता है कि ऐसी हालत में मेरे पिता जी तीन महीने तक बच पायेगे। नर्स ने बिना उनकी और देखे ही कह दिया यदि इन्हें कुछ हो जाता है तो आप फोन करके हमें सूचित कर देना ताकि हम वो तारीख किसी और मरीज को दे सके।
ऐसे में गरीब आदमी दोष दे भी तो किस कोअस्पताल के कर्मचारी बढ़ते काम को अधिक बोझ बता करसरकार देश में बेलगाम बढ़ती अबादी और सीमित कर्मचारीयो एवं संसाधनों का रोना रो कर अपना पल्ला झाड़ लेती है। सरकार में जिम्मेदारी के सभी पदों पर बैठे देश के रहनुमाओं को यह कभी नही भूलना चहिये कि गरीबो के शाप से कई देश बर्बाद हो गए हैकई बार राजाओं को अपनी गद्दी तक छोड़नी पड़ी है। आदमी गरीब हो या अमीर जीवन सभी का अनमोल होता हैऐसे में कोरी बहाने बाजी करने से न तो किसी समस्यां का हल निकल सकता है और न ही किसी का जीवन बचाया जा सकता है। सदैव यह याद रखो कि समय ही जीवन हैसमय को बर्बाद करना अपने जीवन और देश को बर्बाद करने के समान है। अब यदि आपको दूसरों की प्रतीक्षा करने की पड़ ही चुकी है तो आप दुसरों की अपेक्षा अवश्य ही पीछे रह जाएंगे। अभी भी इतनी देर नही हुई है कि हम हर तरफ से उम्मीद ही छोड़ दे। कभी भी अपने जीवन में आशा न छोड़ेआशा एक ऐसा पथ है जो जीवन भर आपको गतिशील बनाए रखता है। जो व्यक्ति जीवन में उम्मीद खो देता है समझों कि उसने सब कुछ खो दिया।

जौली अंकल बिना और देरी किये अपने मन की भावनाओं को आपके सामने कुछ इस व्यक्त करते है कि कभी भी इस तरह से धन न कमाओं कि आपके हाथों कोई पाप हो जाऐं और जीवन में कभी भी इस तरह से न चलों की कहीं देर न हो जायें। 

बात फूलों की

एक बार कुछ हास्य कलाकार प्रोग्राम करने के लिये एक बस सें मंसूरी जा रहे थे। बस का ड्राईवर काफी तेजी और बेढ़ंगे तरीके से बस चला रहा था। बस में बैठे सभी कलाकार बार-बार कभी इधर और कभी उधर गिर रहे थे। एक कलाकार ने जोर से आवाज देकर बस ड्राईवर को कहा कि भाई बस को जरा प्यार से चलाओ क्योंकि तुम्हारी बस में सारे कलाकार बैठे हुए है। लगता है तुम्हें यह मालूम नही कि कलाकार फूलों की तरह कोमल और नाजुक होते है। बस ड्राईवर ने रावण की तरह हंसते हुए कहा यदि आप सभी अपने को फूल समझते हो तो फिर मंसूरी क्या करने जा रहे होआपको तो फिर हरिद्वार जाना चहिये था। यह बात ड्राईवर ने शायद इसलिये कही क्योंकि हमारे यहां अस्थीयों को भी फूल कहा जाता है और उन्हें सभी लोग हरिद्वार में ही प्रवाह करते है। खुशबूदार फूलों की बात करते-करते हम तो मौत के करीब पहुंच गये। बात चाहें बच्चे के जन्मदिन की हो या किसी की मौत की फूल तो हर मौके के अनुसार अपने रंगो का जलवा बिखरते दिखाई देते है।
घरदफतर या परिवार में किसी प्रकार की खुशी का कोई मौका होऐसे में महौल को खूबसूरत बनाने और उसे शानदार ताजी खुशबू से महकाने के लिये फूलों से बढ़कर कुछ और हो ही नही सकता। किसी भी बाग में टहलते हुए जब हमारी नजर सुंदर फूलो पर पड़ती है तो झट से उन्हें तोड़ कर अपने पास रखने का मन करता है। फूलों की खूबसरूती के बारे अब तक हर कवि और लेखक ने अपनी कलम और काबलियत अनुसार इनका भरपूर गुणगाण किया है। अलग-अलग किस्म और रंगों के फूल जब इक्ट्ठे होकर एक गुलदस्ते की शक्ल अख्तियार करते है तो एक दूसरे के साथ मिलते ही इनकी सुगंध और खूबसूरती में चार चांद लग जाते है। इन्हें देख ऐसा लगता है कि इन्द्रधनुष धरती पर उतर आया हो। सारी दुनियां को अपनी खुशबू और खूबसूरती से लुभाते इन फूलों में गरूर नाम की कोई चीज नही होती। आखिर फूल बेचारे गरूर करे भी तो कैसेनाजूक से इन फूलो को अपना सारा जीवन कांटो के साथ निभाना होता है। हर समय कांटो के बीच रहते हुए भी कोई फूल कभी अपने मन में छिपे हुए दर्द की शिकायत नही करता और न ही किसी फूल को देखने पर किसी प्रकार की परेशानी या शिकन का एहसास तक होता है।
प्रेमी-प्रेमीका की पहली मुलाकात हो या जीत का कोई जशनफूलों के बिना सब कुछ अधूरा सा लगता है। लिखने वाले ने भी फूलों की किस्मत न जाने किस कलम से लिखी है कि एक ही बगीचे से निकले हर प्रकार के फूल कभी आशिक-महबूबा को खुश करते हैकभी कोई इन्हें डोलीसेहरे को सजाने के लिये और कभी कोई अपने प्रियजन की अर्थी को समर्पित करने में इस्तेमाल करता है। कुछ लोग पीर-फकीरो के लिये चद्दर चढ़ाने के लिये और कुछ कोठे पर नाचने गाने वाली तवायफ को खुश करने के लिये फूलो का साहरा लेते है। जब कभी हमें भगवान से अपने परिवार के लिये कुछ खास मांगना होता हैतो हम उसे खुश करने के लिये मंहगे से मंहगे फूलों की माला चढ़ाते है। इस दुनियां में शायद भगवान ने सबसे बड़ा दिल फूलों को ही दिया है। यह बात मैं दावे से इसलिये कह रहा  हूँ क्योंकि इनकी और चाहे कोई हिंदुमुसलमानसिखईसाई या अन्य कोई भी हाथ बढ़ाता हैयह सभी का हंसते हुए स्वागत करते है। यह मदिंरगुरूद्ववारे या चर्च कहीं पर भी जाये वहां पहुंचते ही बहार सी छा जाती है।
इसमें कोई दूसरी राय नही हो सकती कि हर किसी को सदा ही खुशी देने वाले छोटे-बड़े हर रंग के फूल कुदरत के सबसे अनमोल तोहफो मे से एक है। फूल अपने रंग रूप के जरिये पल भर में हमें कुदरत के करीब ले जाते है। प्यार से मुस्कहराते हुए फूल मानों यह कह रहे हो कि कुछ पलों के लिये ही सही एक बार हमारी और गौर से देखे तो आपके चेहरे से परेशानी और तनाव खत्म होकर हंसी और मुस्कराहट आ जायेगी। भगवान ने खूबसूरती के साथ फूलो को इतना शांतप्रिय स्वभाव दिया है कि वो चाहे डाल के साथ झूम रहे हो या कोई उन्हें मसल कर मिट्टी में डाल देवो अपने खुशनुमा स्वभाव के अनुसार सदैव ही खुशबू फैलाते रहते है। हम सभी की लापरवाही के चलते शहरों में चारो और फैलते प्रदूषण से बेखबर हर फूल हमें सिर्फ खुशबू ही खुशबू देते है।
प्यार से सुदर फूलो को निहराते समय ऐसा महसूस होता है कि जैसे यह सारी मानव जाति को संदेश दे रहे हो कि जीवन में कितनी ही परेशानीयां क्यूं न हो सदा ही उन्हें हंसते-खेलते झेलना चहिये। फूलों को मंद-मंद मुस्कराहते देख न सिर्फ आपके मन को खुशी मिलती हैबल्कि आप दूसरों के जीवन में भी आशा की किरण संचारित कर देते हैं। बेजुबान होते हुए भी ऐसा प्रतीत होता है कि हर फूल खामोशी से यह कह रहा हो कि नेकी वह फल है जो इंसान के जीवन रूपी पेड़ को अमर करता है। यह भी सच है कि हर नया रास्ता कांटों से भरा होता हैपरन्तु आप पहला कदम बढ़ाने की हिम्मत तो दिखाइए मंजिल खुद-ब-खुद आपके करीब आ जायेगी। हमारे बच्चे भी फूलों की तरह नाजुक और कोमल होते हैयदि एक अच्छे माली की तरह उनकी परवरिश भी सही तरीके से की जायें तो उनका जीवन भी फूलों की तरह महकने लगेगा।

जौली अंकल रंग-बिरगें महकते फूलों की मस्ती में खोये हुए यही महसूस कर रहे कि सच्चा आनन्द किसी को पीड़ा पहुंचाने में नही बल्कि उसे सहते हुए हर तरफ अच्छे कर्मो की खुशबू फैलाने में है। 

शनिवार, 13 मार्च 2010

कैंसर से भी खतरनाक : कचरा

फूल जब बाग में खिलते हैं, तो खुद-ब-खुद उनकी खुशबू चारों ओर फैल जाती हैं। कोई उसकी सुगन्ध न भी लेना चाहे, तो भी वो उसके पास पहुंच जाती है। इसी तरह गंदगी का ढेर कहीं भी हो, आपसे उससे कितना ही बचना चाहो परन्तु उसकी बदबू भी हर तरफ फैल जाती है। आप सोच रहे होंगे कि लेखक को यह क्या सूझी कि कचरे के ऊपर ही लेख लिख डाला। क्या कचरा इतना जरूरी विषय है कि उस पर लेख लिखा जाए या दुनिया में लेख लिखने के लिये और सभी विषय खत्म हो गए हैं। यदि हां तो आज तक इससे पहले लेखकों ने इस विषय को अपनी कलम से क्यों नहीं नवाजा? आज हमारे समाज में कचरा सिर्फ गली मुहल्ले में पडे क़ूड़े-करकट के ढ़ेर तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि सरकारी दफतरों में फैले भ्रष्टाचार, रिष्वतखोरी, नेताओं द्वारा सरकारी खजानों से घपले करके लूट-खसोट, आम आदमी के साथ लूटपाट एवं जनता के पैसे के दुरूपयोग ने पूरे समाज को गंदा कर दिया है।
कचरे पर लेख लिखना सच में मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा। आपकी भावनाओं की कद्र करते हुए मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मैं भी यह काम बहुत मजबूरी में कर रहा हूं। कचरे जैसे शब्द के नाम से ही जहां सबको बदबू आने लगती है, ऐसे विषय पर लेख लिखना सच में एक अजीब बात है। लेकिन आज अपने आस-पास हर किस्म के कचरे को देख कर आप कितने समय तक आंखें बंद रख सकते हो? कभी न कभी किसी को तो इस और पहल करनी ही पडेग़ी। अब समय आ गया है, कि इस विषय पर हर स्तर पर बहस की जाये।
हम समय-समय पर अपने घर को साफ करके सारा कचरा गली के एक कोने में जमा कर देते हैं। इसी तरह हमारे पड़ोसी भी यही करते हैं, जिससे गली के बाहर कुछ दिनों में ढेरों कूड़ा इकट्ठा हो जाता है, पर हमें इससे क्या? हमें तो सिर्फ अपने घर की सफाई से मतलब है, हमारा घर साफ होना चाहिए, गली-मुहल्ले की सफाई की जिम्मेदारी तो सरकार की है। उसकी सफाई तो अपने आप सरकारी कर्मचारी करेंगे, फिर चाहे तब तक अनेकों जानलेवा बीमारियां ही क्यूं न फैल जाएं? हमारी इसी सोच ने हमारे सारे समाज को गंदा कर दिया है। हमारी सोच इतनी छोटी हो गई है कि हमें अपने स्वार्थ के सिवाए कुछ दिखाई ही नहीं देता। हम भूल जाते हैं कि हम भी समाज का एक अभिन्न अंग हैं, समाज के बिना हमारा कोई वजूद नहीं है।
हमारे बच्चे अधिकतर समय स्कूलों में बिताते हैं, अमीर लोग तो अपने बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनाने के लिये स्कूलों में मोटी फीस भरते हैं, क्योंकि जो संस्कार और ज्ञान स्कूल से मिल सकता है वो कोई परिवार घर में नहीं दे सकता। परन्तु आज के इस भागमभाग युग में स्कूल बच्चों को अच्छा पैसे कमाने की मषीन तो बना देते हैं, लेकिन उनको सामाजिक और नैतिक मूल्यों से दूर कर देते हैं। बच्चों का घर और समाज के प्रति क्या दायित्व है, उन्हें यह सिखाना तो भूल ही जाते हैं। बच्चों पर पढ़ाई का बोझ, और घर के बड़े सदस्यों में पैसा कमाने की हौड़ सी लगी है। घर के सब सदस्य परेषानियों के कारण हर समय इतने तनाव में रहते हैं कि समाज के गिरते स्तर के बारे में सोचने की किसी को फुरसत ही नहीं।
अगर हमारे नेता सरकारी अधिकारीगण अब भी समाज में बढ़ती बुराइयों की तरफ ध्यान नहीं देंगे तो कोई बाहर से आकर तो हमारी समस्या हल करेगा नहीं। जिस तरह मीडिया बाकी विषयों पर जनता को जागरूक करने का दावा करता है, उसे देष में फैले हर प्रकार के कचरे को खत्म करने के लिये आगे आना होगा। आज हमारे राष्ट्र्रपति और प्रधानमंत्री दुनिया के सब से बुद्विमान व्यक्तित्व के लोगों में से हैं। ऐसे लोगों के होते हुए भी अगर हमारी सरकारें देष को कचरे जैसे कैंसर से मुक्त करवाकर सही दिषा में नहीं ले जा सकतीं तो जनसाधारण किससे उम्मीद रखेगा? कचरा तो ऐसी गन्दी चीज है, जिसको जल्दी से साफ ना किया जाए तो यह दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है और ऐसी-ऐसी बीमारियां दे जाता है, जिसकी कीमत आने वाली कई पीढ़ियों को चुकानी पड़ती है।
अब समय मांग कर रहा है कि हम अपने घरों को साफ सुथरा रखने के साथ अपने गली, मुहल्ले और समाज में भी सफाई अभियान चलाएं, अगर हम सब मिलकर यह ठान लें कि हमें अपने समाज को हर प्रकार के कचरे से मुक्त करना है तो यह कोई बहुत कठिन काम नहीं है। सिर्फ जरूरत है तो हर नागरिक को अपनी कर्तव्य के प्रति जागरूक होने की। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी हम इस और कोई पहल नहीं करते तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। जौली अंकल जीवन से हर प्रकार के कचरे को खत्म करने के लिये कहते है कि यदि आप अपना अवगुणों रूपी कचरा भगवान को दे दे ंतो कोई भी व्यक्ति आप पर कीचड़ या कचरा नही उछालेगा।

समृध्दि, सफलता और प्रेम

एक बार एक औरत अपने घर के बाहर आई तो उसने देखा की घर के गेट के पास तीन बहुत ही बुजुर्ग आदमी बैठे हुए हैं। देखने में वो कोई बहुत ही महान साधु-संत लग रहे थे। उनके चेहरे से एक खास किस्म का नूर झलक रहा था। लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी वो उनमें से किसी को भी पहचान नहीं पाई। उस औरत को लगा कि यह लोग काफी थके हुऐ और भूखे है। उसने बहुत ही आदर-सत्कार से उन तीनों को घर के अन्दर आकर कुछ खाने-पीने के लिये कहा। उनमें से एक बुजुर्ग ने पूछा कि क्या तुम्हारे पति घर पर हैं? उस औरत ने कहा कि मेरे पति तो काम पर जा चुके है और वो तो अब देर शाम ही लौटेगें। तो उन्होंने ने कहा, फिर तो हम तुम्हारे घर के अन्दर बिल्कुल नहीं आ सकते।
देर रात जब उस औरत का पति घर आया तो उसने दिन का सारा किस्सा अपने पति को सुनाया। पति ने कहा कि तुम अभी जाओ और उन तीनाें बुजुर्गों को घर के अन्दर बुला लाओ। पति की आज्ञा को मानते हुऐ वो औरत उन बुजुर्गों को खाने के लिये बुलाने गई। अब उन्होंने कहा कि हम तीनों एक घर में कभी भी इकट्ठे नहीं जाते। उस औरत ने जब इसका कारण पूछा, तो उनमें से एक बुजुर्ग ने समझाना शुरू किया कि यह मेरे बांये बैठे बुजुर्ग का नाम समृध्दि है, पूरी दुनिया की धन-दौलत इनके इशारों पर ही नाचती है। फिर दूसरे बुजुर्ग की तरफ इशारा करते हुए वो बोले कि मेरे दांये बैठे बुजुर्ग का नाम सफलता है, यह किसी के भी भाग्य को चंद पलों में जमीन से आसमान तक पहुंचा सकते हैं। राजा को रंक और रंक को राजा बनाने में इन्हें एक क्षण का समय लगता है। बात को आगे बढ़ाते हुए उस बुजुर्ग ने कहा कि मेरा नाम प्रेम है, मैं जहां भी जाता हूं प्यार, स्नेह और प्रीति सदा मेरे साथ चलते है।
उस औरत ने अन्दर आकर अपने पति को सारा किस्सा विस्तारपूर्वक सुनाया, यह सब सुनते ही उसका पति खुशी से झूमने लगा, और अपनी बीवी से बोला की तुम सबसे पहले 'समृध्दि' बाबा को अन्दर ले आओ। उनके आते ही सारी दुनिया की सारी धन-दौलत हमारे कदमों में अपने आप आ जायेगी। लेकिन पत्नी ने कहा कि भगवान का दिया हुआ हमारे पास सब कुछ तो है। मेरे ख्याल से हमें समृध्दि बाबा की जगह 'सफलता' के मालिक को घर में बुलाना चाहिये। उन दोनों की एक जवान बेटी जो यह सब कुछ बहुत देर से सुन रही थी, उसने कहा मां मेरे मुताबिक इन दोनों को छोड़ कर हमें 'प्रेम' के बाबा को घर में बुलाना चाहिये। उनके आते ही सारा घर प्यार, स्नेह और खुशियों से भर जायेगा। पति को भी बेटी का सुझाव अच्छा लगा और उसने अपनी पत्नी से प्रेम बाबा को ही सबसे पहले घर के अन्दर बुलाने को कहा।
वो औरत घर के बाहर गई और उसने उन तीनों से पूछा की आपमें से प्रेम वाले बाबा कौन हैं? सबसे पहले वो हमारे घर में मेहमान बन सकते हैं। जैसे ही प्रेम, प्यार और प्रीति के बाबा उठे तो उनके साथ समृध्दि और सफलता वाले बाबा भी उठ खड़े हुए। उस औरत ने हैरान होते हुए कहा कि मैंने तो सिर्फ प्रेम वाले बाबा को ही न्यौता दिया है, फिर आप दोनों क्यूं आ रहे है? इतना सुनते ही वो तीनों बोले कि अगर आपने सिर्फ समृध्दि या सफलता में से एक को बुलाया होता, तो हम बाकी दोनों तुम्हारे घर के बाहर ही रहते, लेकिन तुमने सबसे पहले प्रेम को घर के अन्दर आने का न्यौता दिया है, तो हम दोनों तो हर समय प्रेम के साथ ही रहते है।
जौली अंकल का तर्जुबा तो यही कहता है कि जिस परिवार में प्रेम, प्यार एवं संतोष होगा, वहीं समृध्दि की दौलत के भंडार होते है। सफलता भी केवल सदा ऐसे ही घरों में निवास करती है। प्रेम के बिना तो हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है। बड़े बुजुर्ग सच ही कहते आए है, कि प्रेम, प्यार से बढ़ कर इस जग में कुछ भी नहीं। प्रेम की डोरी से तो आप सारी दुनिया को एक सूत्र में आसानी से बांध सकते हो। 


जूतो का जलवा

बचपन से हम सभी एक कहावत सुनते आऐ है कि कई बार लोगो की किस्मत एक पल में बदल जाती है, क्योंकि ऊपर वाला जब कभी मेहरबान होकर किसी को कुछ भी देता है तो छप्पड़ फाड़ कर देता है। शायद इसी कहावत से प्रभावित होकर टी.वी. वालों ने हिन्दुस्तान के महशुर फिल्मी कलाकार सलमान खान के साथ मिल कर एक गेम शो शुरू किया था जिसका नाम था 10 का दम। इस शो में जीतने वाले को 10 करोड़ रूप्ये का नकद ईनाम दिया जाता था। अंक 10 में कितना दम हो सकता है, इस बात का अंदाजा आपने कभी सपने में भी नही लगाया होगा। अब आप सोच रहे होगे कि मैं कौन से 10 नंबर के अंक की बात कहना चाहता  हूँ।
इस बात से पर्दा उठाने से पहले विद्वान लोगो की एक और बात पर गौर करना जरूरी है। वो अक्सर कहते है कि पारस नामक पथ्थर के छूने से लोहा भी सोना बन जाता है। लेकिन आज तक दुनियॉ में किसी ने भी ऐसा कोई करशिमा नही देखा होगा कि किसी इंसान के छूने से एक साधारण से 10 नंबर के चमड़े के जूते की कीमत एक करोड़ डालर से भी अधिक हो गई हो। इससे बड़ा चमत्कार तो दुनियॉ में शायद हो ही नही सकता। न जानें यह जूता किस शुभ घड़ी में बना था जो आज यह सारी दुनियॉ में गजब ढ़ा रहा है। इसी के साथ जिस पत्रकार को आज तक कोई जानता नही था, आज इस जूते की बदोलत दुनियॉ के हर घर में उस का चर्चा हो रहा है। इस जूते के सामने तो सोने-चांदी तक की चमक फीकी दिखने लगी है।
अब तो पूरी दुनियॉ इस बात से वाकिफ है कि एक इराकी पत्रकार मुंतजर अल-जैदी ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्लयू बुश जो की इस गद्दी पर चंद दिनो के मेहमान है उन पर जूते फैंक कर उनका स्वागत किया। ऐसे जूतों को खरीदने के लिये ईराक के लोग एक करोड़ अमरीकी डालर से अधिक की कीमत देने को तैयार है। कुछ लोग अपनी बेटी को रिश्ता और कुछ उसे एक बढ़िया सा घर देने को तैयार हो गये है। अभी तो यह जूता बुश साहब के नजदीक से ही निकला था, अगर यह जूता उनके सिर को छू जाता तो फिर सोचिए कि ऐसे जूतो की कीमत दुनियॉ वाले शायद 100 करोड़ डालर तक लगा देते।
यदि इसी प्रकार के 8-10 जूते ईराकीयों के हाथ और लग जाऐ तो वो बहुत ही आसानी से विश्व बैंक को कर्जा दे सकते है। अमरीका के 100-100 साल पुराने बैंक जो पैसे की कमी के कारण आऐ दिन ताश के पत्तो की तरह ढ़हते जा रहे है, उन्हें इस प्रकार के जूतो की मदद लेकर डूबने से बचाया जा सकता है। बाकी देश भी अगर चाहे तो वो भी इस तरह के तरीको से अपने-अपने देश को पैसे की कमी से उभरने में बहुत बड़ी राहत दिला सकते है। इधर दुनियॉ के सबसे ताकतवर शहनशाह के सिर में जूतो की बरसात हो रही थी, तो उधर मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए वीडियो गैंम्स बनाने वाली कम्पनीयों ने जूतो के इस खेल से जुड़ी अनेक वीडियो गैंम्स कुछ ही घंटो में ही बाजार में उतार दी। अब दुनियॉ भर के बच्चे बुश साहब के परेशान चेहरे पर जूते मार कर इस मजेदार खेल का आंन्नद ले रहे है, और वीडियों कम्पनी वाले मोटा मुनाफा कमा रहे है।
दुनियॉ भर के लेखक और पत्रकार अभी तक यही मानते आऐ है कि कलम में बहुत ताकत होती है। इतिहास में अनेको ऐसे प्रमाण है कि लेखक की लेखनी के कारण दुनियॉ में कई क्रंांतियॉ कामयाब हुई है और क्रुर राजाओं को अपना सिंहासन तक छोड़ना पड़ा है। परन्तु कई ऐसे मौके होते हैं, जब पत्रकार चुप रहकर ही अपने पेशे की सही सेवा कर सकते है। बहुत अधिक बोलने की बजाए दो शब्दो का जवाब भी महत्वपूर्ण हो सकता है, जिसे मौन कहते हैं। लेकिन यह भी सच है कि अधिकाश: लेखको को कभी भी किसी पारखी नजर ने न तो ठीक से आंकने की कोशिश की है और न ही उन्हें समाज में उचित स्थान दिया। इसका मतलब यह नही कि मैं इराकी पत्रकार के गुस्से को जायज ठहरा रहा  हूँ। पत्रकार किसी भी दशा में हो, उसे कभी भी अपना आपा नही खोना चाहिये। वो चाहें तो हर स्थिति में लेखनी के माघ्यम से अपने भावों का कारगर और प्रभावी ढंग से इजहार करते हुए तोपो का मुंह मोड़ सकता है। अब यदि पढ़े-लिखे लोग भी अच्छा व्यवहार नही करेगे तो हर कोई यही कहेगा कि उसकी सारी शिक्षा बेकार है।
इन जादुई जूतो के जलवों के बारे में यह रोचक लेख लिखते समय जौली अंकल के मन में भी खुशी के लव्ू फूट रहे है कि शायद भगवान एक बार फिर कोई चमत्कार दिखा दे। हम जूतो के साथ खिलवाड़ तो नही कर सकते लेकिन यह उम्मीद जरूर रखते है कि इस लेख के जरिये करोड़ो न सही लाखो ही दिलवा दे।