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शनिवार, 13 मार्च 2010

कैंसर से भी खतरनाक : कचरा

फूल जब बाग में खिलते हैं, तो खुद-ब-खुद उनकी खुशबू चारों ओर फैल जाती हैं। कोई उसकी सुगन्ध न भी लेना चाहे, तो भी वो उसके पास पहुंच जाती है। इसी तरह गंदगी का ढेर कहीं भी हो, आपसे उससे कितना ही बचना चाहो परन्तु उसकी बदबू भी हर तरफ फैल जाती है। आप सोच रहे होंगे कि लेखक को यह क्या सूझी कि कचरे के ऊपर ही लेख लिख डाला। क्या कचरा इतना जरूरी विषय है कि उस पर लेख लिखा जाए या दुनिया में लेख लिखने के लिये और सभी विषय खत्म हो गए हैं। यदि हां तो आज तक इससे पहले लेखकों ने इस विषय को अपनी कलम से क्यों नहीं नवाजा? आज हमारे समाज में कचरा सिर्फ गली मुहल्ले में पडे क़ूड़े-करकट के ढ़ेर तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि सरकारी दफतरों में फैले भ्रष्टाचार, रिष्वतखोरी, नेताओं द्वारा सरकारी खजानों से घपले करके लूट-खसोट, आम आदमी के साथ लूटपाट एवं जनता के पैसे के दुरूपयोग ने पूरे समाज को गंदा कर दिया है।
कचरे पर लेख लिखना सच में मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा। आपकी भावनाओं की कद्र करते हुए मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मैं भी यह काम बहुत मजबूरी में कर रहा हूं। कचरे जैसे शब्द के नाम से ही जहां सबको बदबू आने लगती है, ऐसे विषय पर लेख लिखना सच में एक अजीब बात है। लेकिन आज अपने आस-पास हर किस्म के कचरे को देख कर आप कितने समय तक आंखें बंद रख सकते हो? कभी न कभी किसी को तो इस और पहल करनी ही पडेग़ी। अब समय आ गया है, कि इस विषय पर हर स्तर पर बहस की जाये।
हम समय-समय पर अपने घर को साफ करके सारा कचरा गली के एक कोने में जमा कर देते हैं। इसी तरह हमारे पड़ोसी भी यही करते हैं, जिससे गली के बाहर कुछ दिनों में ढेरों कूड़ा इकट्ठा हो जाता है, पर हमें इससे क्या? हमें तो सिर्फ अपने घर की सफाई से मतलब है, हमारा घर साफ होना चाहिए, गली-मुहल्ले की सफाई की जिम्मेदारी तो सरकार की है। उसकी सफाई तो अपने आप सरकारी कर्मचारी करेंगे, फिर चाहे तब तक अनेकों जानलेवा बीमारियां ही क्यूं न फैल जाएं? हमारी इसी सोच ने हमारे सारे समाज को गंदा कर दिया है। हमारी सोच इतनी छोटी हो गई है कि हमें अपने स्वार्थ के सिवाए कुछ दिखाई ही नहीं देता। हम भूल जाते हैं कि हम भी समाज का एक अभिन्न अंग हैं, समाज के बिना हमारा कोई वजूद नहीं है।
हमारे बच्चे अधिकतर समय स्कूलों में बिताते हैं, अमीर लोग तो अपने बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनाने के लिये स्कूलों में मोटी फीस भरते हैं, क्योंकि जो संस्कार और ज्ञान स्कूल से मिल सकता है वो कोई परिवार घर में नहीं दे सकता। परन्तु आज के इस भागमभाग युग में स्कूल बच्चों को अच्छा पैसे कमाने की मषीन तो बना देते हैं, लेकिन उनको सामाजिक और नैतिक मूल्यों से दूर कर देते हैं। बच्चों का घर और समाज के प्रति क्या दायित्व है, उन्हें यह सिखाना तो भूल ही जाते हैं। बच्चों पर पढ़ाई का बोझ, और घर के बड़े सदस्यों में पैसा कमाने की हौड़ सी लगी है। घर के सब सदस्य परेषानियों के कारण हर समय इतने तनाव में रहते हैं कि समाज के गिरते स्तर के बारे में सोचने की किसी को फुरसत ही नहीं।
अगर हमारे नेता सरकारी अधिकारीगण अब भी समाज में बढ़ती बुराइयों की तरफ ध्यान नहीं देंगे तो कोई बाहर से आकर तो हमारी समस्या हल करेगा नहीं। जिस तरह मीडिया बाकी विषयों पर जनता को जागरूक करने का दावा करता है, उसे देष में फैले हर प्रकार के कचरे को खत्म करने के लिये आगे आना होगा। आज हमारे राष्ट्र्रपति और प्रधानमंत्री दुनिया के सब से बुद्विमान व्यक्तित्व के लोगों में से हैं। ऐसे लोगों के होते हुए भी अगर हमारी सरकारें देष को कचरे जैसे कैंसर से मुक्त करवाकर सही दिषा में नहीं ले जा सकतीं तो जनसाधारण किससे उम्मीद रखेगा? कचरा तो ऐसी गन्दी चीज है, जिसको जल्दी से साफ ना किया जाए तो यह दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है और ऐसी-ऐसी बीमारियां दे जाता है, जिसकी कीमत आने वाली कई पीढ़ियों को चुकानी पड़ती है।
अब समय मांग कर रहा है कि हम अपने घरों को साफ सुथरा रखने के साथ अपने गली, मुहल्ले और समाज में भी सफाई अभियान चलाएं, अगर हम सब मिलकर यह ठान लें कि हमें अपने समाज को हर प्रकार के कचरे से मुक्त करना है तो यह कोई बहुत कठिन काम नहीं है। सिर्फ जरूरत है तो हर नागरिक को अपनी कर्तव्य के प्रति जागरूक होने की। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी हम इस और कोई पहल नहीं करते तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। जौली अंकल जीवन से हर प्रकार के कचरे को खत्म करने के लिये कहते है कि यदि आप अपना अवगुणों रूपी कचरा भगवान को दे दे ंतो कोई भी व्यक्ति आप पर कीचड़ या कचरा नही उछालेगा।

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