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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

जीयें तो जीयें कैसे


आज सुबह जैसे ही मुझे मालूम हुआ कि मिश्रा जी का बेटा पास हो गया है, तो मैं भी झट से बधाई देने उनके घर जा पहुंचा। वहां पहुंचते ही मैने देखा कि उनकी बीबी अपने बेटे को बुरी तरह से पीट रही थी। मैने प्यार से उन्हें समझाते हुए कहा कि आपका बेटा इतने अच्छे अंको से पास हुआ है, आप को तो खुश होकर मिठाई बांटनी चहिये। एक आप है कि न जानें इस बेचारे को क्यूं इतनी बुरी तरह से पीटे जा रही है? मेरी बात को सुना-अनसुना करते हुए मिश्रा जी की श्रीमति ने कहा कि भाई साहब आप तो चुप ही रहिये। आप खुश होने की बात कर रहे हो, अब जरा यह बताओ कि इस मंहगाई के चलते अगली कक्षा की किताबे कापीयां कहां से लेकर देगे? हमने इसे पहले ही समझाया था कि एक बार खरीदी हुई किताबे कम से कम 3-4 साल तक चलनी चहिये। मिश्रा जी ने बात को खत्म करते हुए अपनी बीवी से कहा कि तुम जाओ और हमारे लिए दो कप चाय बना दो। जैसे ही चाय के कप मेज पर आये, मुझे उन्हें देख कर बहुत हैरानी हुई। मुझे लगा कि शायद इन्होनें यह कप चाय का मीठा चैक करने के लिए रखे होगे। चाय के कप इतने छोटे थे कि दो ही घूंट में चाय खत्म हो गई। मैने मिश्रा जी को कहा कि चाय में मीठा तो ठीक है आप चाय मंगवा लीजिए। मिश्रा जी मेरी बात पर जोर से हंसते हुए बोले भाई साहब यह कप मीठा चैक करने के लिये नही थे। जब से दूध और चीनी की कीमत आसमान को छोड़ मंगलग्रह को छूने लगी है तभी से हम अपने सभी मेहमानों को इन्हीं छोटे-छोटे कप में चाय पिलाते है।
इससे पहले की मैं अपनी बात खत्म करके वहां से निकलता, मिश्रा जी की पत्नी ने अपने छोटे बेटे को जोर-जोर से पीटना शुरू कर दिया। मैने चुस्की लेते हुए पूछा कि क्या इसका भी नतीजा आ गया है। मिश्रा जी ने कहा जी नही इसका नतीजा तो नही आया, लेकिन यह शोच जाने की जिद्द कर रहा है। मुझे बहुत हैरानगी हुई कि यदि बच्चे को पौटी आ ही गई है, तो इसमें उसका क्या कसूर? यह तो कोई ऐसा जुर्म नही है कि जिसके कारण इस नन्ही सी जान को इतनी बुरी तरह से पीटा जाये। जब मैने मिश्रा जी इस नन्हें से बच्चे की पिटाई का कारण पूछा तो उन्होनें कहा कि शौच जाने के बाद इसे बहुत जोर से भूख लग जाती है। यह फिर कुछ न कुछ खाने के लिए जिद्द करेगा। अब आप ही बताओ कि इतनी मंहगाई में बच्चो को बार-बार खाना कहां से खिलाऐ?
मिश्रा जी की मजबूरी को देखते हुए मेरे भी मन में भी यही ख्याल आ रहा था कि जब से इस दुनियां में जन्म लिया है, मंहगाई को आगे से आगे ही बढ़ते हुए देखा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में तो सरकार ने हर जरूरी वस्तु के दाम इतने अधिक बढ़ा दिये है कि आम आदमी के साथ अच्छे-खासे खाते पीते परिवारो की कमर भी टूट गई है। इसमें कोई दो राय नही है कि सारा देश मंहगाई से पिसते हुए जी रहा है। लेकिन मैने मिश्रा जी को थोड़ा ढंढ़ास बंधाते हुए कहा कि हमारी सरकार बहुत अच्छी है वो जो कुछ भी करती है जनता के भले के लिए ही करती है। मिश्रा जी ने आग बबूला होते हुए कहा कि आज अगर चीनी की कीमत 15 रूप्ये से 50 रूप्ये किलो पहुंच गई है तो इसमें सरकार ने क्या अच्छा किया है? मैने उन्हे समझाने की कोशिश की कि पहले हम लोग दिन में 5-6 बार चाय पी लेते थे। अब इतनी मंहगी चीनी खरीद कर एक से दूसरी बार चाय पीने की हिम्मत किसी में नही है। कम चाय पीने से हमें शुगर की बीमारी होने का खतरा बहुत हद तक खत्म हो जाता है। इसी तरह खाने के घी और तेल में बेतहाशा कीमत बढ़ा कर सरकार ने हमें दिल से होने वाली सभी बीमारीयों से बचा लिया है।
झूठी हंसी हंसते-हंसते मेरे मन में भी यही टीस उठ रही थी कि देश की जनता ने नेता लोगो पर विश्वास करके उन्हें फिर से तख्त पर बिठा कर कौन सा गुनाह किया है? क्या राजगद्दी पर बैठने के बाद कभी किसी मंत्री ने झुगी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब मजदूर से यह पूछा है कि आपकी आमदनी कितनी है, आपका घर कैसे चल रहा है? आखिर ऐसे लोगो को गरीबो का ख्याल आये भी तो क्यूं? सरकार की छोटी से छोटी कुर्सी मिलते ही चारों और से लक्ष्मी मां की कृपा इन लोगो पर बरसने लगती है। देश की मजबूर और लाचार जनता अपना दुखड़ा सुनाए भी तो किसे सुनाए? विरोधी पार्टीयां मंहगाई की इस मार के लिये कृषि मंत्री को दोषी बताती है तो कृषि मंत्री प्रधानमंत्री की गलत नीतियों के कारण उन्हें जिम्मेंदार ठहराने की कोशिश में लगे हुए है। प्रधानमंत्री बेलगाम मंहगाई का ठीकरा राज्यों के मुख्यमंत्रीयों के सिर पर फोड़ रहे है।
हर नई सुबह के साथ एक आम आदमी इसी उम्मीद से उठता है कि आज का नया दिन उसके लिए जरूर कोई न कोई नई खुशी एवं सुख का समाचार लेकर आयेगा। परंन्तु दिन शुरू होने के साथ जैसे ही समाचार पत्र के दर्शन होते है तो दूध, चीनी पैट्रोल, गैस से लेकर घर में इस्तेमाल होने वाली हर वस्तु के दाम देख कर बिजली से भी बड़ा झटका लगता है। पुरानी कहावत है कि सुबह का भूला यदि शाम को घर लोट आये तो उसे भूला नही कहते। क्या हमारे जीते जी कभी ऐसी शाम होगी जब हमारी सरकार भी भूल से पीछे मुड़ कर जनता की और देखेगी। क्या वो भी कभी देशवासीयों के दुख दर्द का समझते हुए जनहित में कुछ सुधार करेगी। यदि नही तो ऐसे में जौली अंकल देश के रहनुमाओं से केवल इतना जानना चाहते है, कि एक आम नागरिक को सिर्फ इतना समझा दो कि वो जीयें तो जीयें कैसे?

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