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शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

जायें तो जायें कहां

मुसद्दी लाल जी को अपने बाजू के थोड़े से दर्द को ठीक करवाने के लिये आज अस्पताल में भर्ती हुए लगभग दो महीने होने वाले है। इसी दौरान जमाने और अपनी उंम्र की परवाह किये बिना सुबह-शाम एक सुदर सी नर्स को निहारते-निहारते वो मन ही मन वो उसे चाहने लगे थे। घर-परिवार और समाज के बंधनो को देखते हुए वो इतनी हिम्मत नही जुटा पा रहे थे कि उस नर्स के सामने अपने प्यार का इजहार कर सके। आज सुबह जब वोहि सुंदर नर्स मुसद्दी लाल जी का चैक-अप करने आई तो मौके का फायदा उठाते हुए उन्होनें झट से उसका हाथ पकड़ते हुए कह दिया कि आपने तो मेरा दिल ही चुरा लिया है। नर्स ने झटके से अपना हाथ छुड़ाते हुऐ कहा मुसद्दी लाल जी आप का यह इल्जाम तो बिल्कुल झूठा है। हमनें तो सिर्फ आपकी किड़नी ही चुराई है, आपके दिल को तो हमने हाथ भी नही लगाया।
हर तरफ से रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, कालाबजारी, लूटपाट की मार सहते-सहते अब तो आम आदमी दुख-दर्द में अपना इलाज करवाने के लिये अस्पतालों में भी जाने से घबराने लगा है कि न जाने अस्पताल से घर लौटते समय कौन-कौन से अंग गायब हो जाये। शरीर के अंगो के इलावा बच्चो तक की चोरी एक आम बात बनती जा रही है। आये दिन समाचार पत्रों और टीवी समाचारों में मानव अंगो की तस्करी करने वाले डॉक्टरो और दलालों के बारे में पढ़ कर तो यही महसूस होता है कि यह लोग भगवान से रावण बन चुके है। कोयले की दलाली करने वालों का मुंह काला होते तो जमाने ने देखा है, परन्तु मानव अंगो की तस्करी, चोरी और खून की दलाली करने वालो ऐसे खतरनाक दरिदों को क्या कहा जायें?
गैरकानूनी तरीके अपनाते हुए यह लोग अस्पताल के कर्मचारीयों की मदद से गरीब, लाचार और नशेयड़ीयों को चंद रूप्यों का लालच दिखा कर उनके शरीर से किडनी, खून और अन्य कई जरूरी अंग निकाल कर लाखों रूप्यों में रईसो को बेच देते है। इतना ही नही कुछ लोग डॉक्टरो की मिली भगत से जानवरो और नकली खून की मिलावट करके मरीजों के शरीर तक पहुंचा देते है। मानव अंगो की तस्करी करने वाले रैकेट सरेआम अपने कारनामों को अंजाम दे रहे है। इन लोगो का जाल देश की राजधानी दिल्ली से लेकर पूरे देश में फैला हुआ है। लगता है कि पैसा कमाने के लालच ने डॉक्टरो और इस पवित्र पेशे से जुड़े अन्य कई लोगो को ही मानसिक रोगी बना दिया है। यही नही कुछ डॉक्टर निजी स्वार्थ हेतू पायलटो को बिल्कुल कोरा स्वस्थता प्रमाणपत्र जारी कर देते है नतीजतन अब शराब पीकर गाड़ीया चलाने के साथ विमान उड़ाने के मामले भी सामने आ रहे है। ऐसा करने वाले डॉक्टरों को भगवान का तो क्या शैतान का दर्जा भी नही दिया जा सकता है।
आजकल हर उंम्र में जवां दिखने की लालसा ने डॉक्टरो की मोटी कमाई का काम और भी आसान कर दिया है। औरते तो सदा से ही सुदर, जवां और आर्कषक दिखने के प्रति सजग रही है। अब तो आदमी भी अपने चेहरे के आव-भावों को मनमोहक सुंदर और स्मार्ट लुक देने और अपने चाहने वालो के दिलों में अपनी छाप छोड़ने में जुटे है। चेहरे और शरीर के अन्य अंगो को और आकर्षित बनाने के लिये डॉक्टर लोग मनचाही कीमत वसूल रहे है। यह सत्य आज किसी से छिपा हुआ नही है कि कोई भी इलाज शुरू करने से पहले हर डॉक्टर मरीजो से अनेको गैरजरूरी टेस्ट करवाने को कहते है। जहां से डॉक्टर साहब को एक मोटी रकम कमीशन के रूप में मिलती है।
दुख और हैरानगी की बात तो यह है कि जैसे-जैसे पढ़ाई लिखाई बढ़ती जा रही है वैसे ही लोगो की अक्कल मोटी होती जा रही है। जितने लोग अधिक पढ़ाई लिखाई करते जा रहे है उतने ही मानसिक रोगी अधिक होते जा रहे है। हमारे नेता ऐसी घटनाओं के बारे में सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहना चाहते है। उन्हें यह नही भूलना चहिये कि समय आने पर जनता नेताओ को बिना किसी आहट के ही पटक देती है। समझदार लोग इस गुम चोट से बचते हुए सबक सीख लेते है और जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न करते है।
समस्याएं कितनी भी अधिक और बड़ी क्यूं न हो, हर समस्यां का कोई न कोई समाधान भी जरूर होता है। सिर्फ जरूरत होती है कि हर समस्या को सदा एक-एक करके ही उठाया जाये। ज्ञानी लोगो का मानना है कि थोड़े से प्रयास के साथ सब कुछ संभ्भव हो सकता है। हमारा जीवन तभी सार्थक है, जब तक उसमें परोपकार शामिल हो। चिकित्सा व्यवसाय से जुडे हर शक्स को यह याद रखना चहिये कि संसार का कोई भी धर्म सेवा के धर्म से बड़ा नही है। केवल धन से अगर सुख मिल सकते तो शायद इस दुनिया में कोई दुखी नहीं होता।
धन के लालच की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी सुख नही मिलता। भगवान रूपी डॉक्टरो से एक ही प्रार्थना है कि मेहनत करके धन कमाना कोई बुरी बात नही लेकिन लोगो के दिलों में विश्वास को कायम रखने का प्रयास करो।
ऐसे हालात में जौली अंकल के मन से तो केवल एक ही आवाज बार-बार उठती है, कि अगर दुख-दर्द से कहारहते मरीज की मदद डॉक्टर लोग भी नही करेगे तो हमे सिर्फ इतना बना दो कि एक आम आदमी जायें तो जायें कहां?  

जुबान संभाल के

 भगवान ने हमें सुंदर शरीर, अनमोल जीवन के साथ इतनी सुख-सुविधाऐ आदि इतना सब कुछ दिया है, कि हम जन्मों-जन्मों तक उस का कर्ज नहीं उतार सकते। जहां हमें हर प्रकार के सुख, खाने के लिये एक से एक बढ़िया व्यंजनों के लिये परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिये, वहीं हममें से अधिकतर लोगों को यह शिकायत रहती है, कि तूने आखिर हमें दिया ही क्या है? एक दिन एक औरत मंदिर में भगवान से झगड़ा कर रही थी कि जब मैं बहू बनी थी, तो तूने मुझे सास अच्छी नहीं दी, अब सास बनीं हूं तो तूने मुझे बहू अच्छी नहीं दी। हम लोग अक्सर अपनी कमियों को छुपाने के लिये सारा दोष भगवान के सिर मढ़ देते हैं।
भगवान द्वारा बनाये गये हमारे शरीर के हर एक अंग की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। कुदरत ने हमारे शरीर की रचना कुछ इस प्रकार की है, कि हम अपने रोजमर्रा के सारे काम बहुत ही आसानी से बिना किसी के सहारे के कर सके। लेकिन इतने बड़ें शरीर के अनेक अंगों में से सबसे कोमल और नरम अंग है हमारी जुबान। जन्म से मृत्यु तक हर किसी का साथ निभाती है हमारी यह छोटी सी जुबान। दांत हमारे जंन्म के बहुत बाद आते है और जीवन में अक्सर हमारा साथ बहुत पहले छोड़ जाते है। लेकिन हमारी जुबान अपने लचीलेपन गुणों के कारण यह अपना सारा जीवन उन बत्तीस पथ्थर जैसे कठोर दांतो के बीच बड़ी आसानी से गुजार लेती है। हमारे रोजमर्रा के जीवन को चलाने और बोलचाल में इस का बहुत बड़ा योगदान है। इतना सब कुछ जानते हुए भी हम इस छोटे से अंग पर काबू नहीं रख पाते। अगर हम अपनी जुबान पर काबू रखना सीख लें तो हमारे घर-परिवार और समाज की अधिकतर परेशनियां खत्म हो सकती हैं।
हमारे नेताओ की तो बिना सोचे समझें कुछ भी बोलने की आदत सी बन गई है। वो एक ही तीर से कई निशाने लगाने की फिराक में रहते है। जब कभी ऐसे लोगो की जुबान से निकली हुई कोई बात गले की हव्ी बन जाती है, तो गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए हमारे नेता झट से कह देते है कि मीडियॉ वालो ने हमारी बात को तरोड़-मरोड़ कर पेश किया है। कभी-कभी सत्ता के नशे में राजनेता ऐसी भाषा का प्रयोग कर जाते है कि पूरे देश का खून खोलने लगता है। आज तो हर कोई जानता है कि हमारी जुबान से निकले हुऐ चंद अक्षर हमारे जीवन को तहस-नहस कर सकते हैं। मंत्रीयों से लेकर कई राजाओं तक को बेजुबानी की बदोलत अपनी गद्दी तक से हाथ धोना पड़ा है।
हमारी जुबान से निकले हुऐ चंद अल्फाज एक पल में किसी गैर को हमारा अपना और कभी-कभी अपने ही खून के रिश्ते को सदा के लिये पराया बना देते हैं। जहां एक ओैर हमारी मीठी बातें समाज में हमें सब का प्रिय बना देती हैं, वहीं दूसरी और हमारी कटुवाणी हमें जीवनभर के लिये दूसरों की नजरों में गिरा सकती है। पूरी दुनिया में अधिकतर परिवारो में कलह और तलाक भी इसी जुबान के कारण ही होते हैं। पति-पत्नी की नोंक-झोंक कई बार इस कद्र बढ़ जाती है, कि यह जुबान दोनों के जन्म-जन्म के रिश्ते को तिनकों की तरह तोड़ देती है। कुदरत द्वारा दी हुई इस बेशकीमती जुबान से जहां हम एक तरफ हर प्रकार के व्यजनों का स्वाद चखना चाहते है, वहीं हमें इसी जुबान से दूसरो की निंदा और बुराई करने में बहुत आनंद और सकून मिलता है।
कुदरत का नियम है, कि किसी भी चीज का गलत तरीके से इस्तेमाल करने से हमें जीवन में हमेशा नुकसान ही उठाना पड़ता है। इसीलिये जीवन में कभी किसी रिश्ते में हल्की सी दरार भी नजर आये, तो उस समस्या को जल्द से जल्द बातचीत से हल कर लेना चहिये। अगर हम बातचीत का रास्ता ही बंद कर दें, या झगड़े को थोड़ा भी बढ़ा दे तो उस रिश्ते को वापिस जिन्दा कर पाना नामुमकिन सा हो जाता है। झगड़ा गली-मुहल्ले के बच्चों का हो या किन्हीं दो देशों का, उसका हल तो सदा ही प्यार के माहौल में बैठकर, इसी जुबान से ही निकलता है। अब निर्णय तो आपको ही करना है, कि आप अपनी जुबान का सदुपयोग कैसे कर पाते हैं?
जौली अंकल तो सिर्फ इतना ही कह सकते हैं, कि यदि आपकी जुबान सदैव मधुर, नंम्र और सत्य पर आधरित होगी तो आपको हर तरफ से सुख ही सुख मिलेगा। इसीलिये जब भी बोलो, कुछ भी बोलो परन्तु जरा - जुबान संभाल के।       

मौज मस्ती में न खो जायें यह अनमोल जीवन

आज दुनियां में हर तरफ चहल पहल और पहले से बहुत अधिक लोग है। चारों और भीड़ ही भीड़ देखने को मिलती है, लेकिन यदि हम गौर करे तो इस भीड़ में बहुत कम ही अच्छे इंसान है। भगवान ने हमारे अच्छे कर्मो के फलस्वरूप ही शायद हमें मनुष्य योनि में भेजा है। हमारी जिंदगी एक सुंदर फूल की तरह है और प्यार-मुहब्बत उसका शहद। अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी समझ जीवन के कुछ ऐसे वरदान है जिससे न केवल हम अपना बल्कि दूसरों के जीवन को भी संवार सकते है। हम व्यर्थ में भूत और भविष्यकाल की चिंता में खोये रहते है जबकि कुछ समय पहले तक जो भविष्य था वह अब हो रहा है, जो अब हो रहा है वह अतीत बनता जा रहा है, इसलिए चिंता करने से क्या फायदा?
जीवन में कई बार कुछ समस्याऐं आने पर लोग जल्द ही घबरा जाते है, जिससे उनके दिमाग का संतुलन बिगड़ने का खतरा हो जाता है जबकि थोड़ी सी हिम्मत ही मनुष्य का कठिन परिस्थितियों में साथ देती है। इसीलिये महापुरष कहते है कि मनुष्य की असली परीक्षा विपत्ति पड़ने पर ही होती है, जो धैर्य रखता है वह हर मुसीबत से पार पा जाता है। जो इंसान एक बार दुखों को झेल लेता है वह कमजोर नही बल्कि सुख ग्रहण करने की ताकत पा लेता है। बचपन से एक बात हम सुनते आ रहे है कि भगवान केवल उसी की मदद करता है जो खुद की मदद करता है। यदि आपके एक हाथ में कर्म है तो दूसरे हाथ में सफलता खुद ही आ जाती है। जीवन में कभी कितना ही बड़ा दुख क्यूं न आ जाये, हर दुख दर्द को मिटाने के लिये दुनियां में दो सबसे महान चिकित्सक है - परमात्मा और समय।
यह जानते हुए भी कि मनुष्य हंसकर अपने दुखों को दूर कर सकता है, हम रोकर अपने दुखों को और अधिक बढ़ा लेते है। जब कभी भी कोई कार्य प्रेमभाव के साथ किया जाता है तो उसमें तत्काल सफलता मिलती है। यह सच है कि इस दुनियां में धन के बिना जीना मुशकिल है, लेकिन केवल धन के लिये जीना भी गलत है। जीने के लिये अपनी जरूरत मुताबिक धन कमाना ठीक है, किंतु हर समय धन-दौलत जमा करने की भूख और लालसा रखना बुरी बात है। हम अक्सर अपनी इच्छाशक्ति के विरद्व बार-बार प्रतिज्ञा तो ले लेते है। परंन्तु यदि हम अपनी प्रतिज्ञा के बारे में सावधान नही है, तो प्रतिज्ञा लेकर उसे तोड़ने से अच्छा है कि हम प्रतिज्ञा ही न लें। ऐसा करने से हम सबसे अधिक धोखा अपने आप को ही देते है।
जिस प्रकार कुएं में पत्थर फैंकते ही आवाज दोगुनी होकर लौटती है, ठीक उसी तरह जब कभी भी हम किसी को खुशी देते है तो हमें खुद-ब-खुद खुशी मिल जाती है। दूसरे का भला करते समय सिर्फ यही सोचो की आप इसी के साथ अपना भला भी कर रहे हो। हमें एक बात कभी नही भूलनी चहिये कि दूसरों की जान बचाने से बड़ा परोपकार कोई नही हो सकता। ऐसे कार्य को केवल इंसान ही नही ईश्वर भी देखते है। यदि हम अपने बर्जुगों की थोड़ी बहुत भी सेवा करते है तो उनके प्रेम एवं आशिर्वाद से हमारी आयु, के साथ हमारे यश, विद्या और शक्ति में वृद्वि होती है। भूखों को अन्न देना, अपाहिजों की मदद करने से भी प्रभु बहुत प्रसन्न होते है। परन्तु कुछ लोग थोड़ा बहुत दान करने के बाद उसे बार-बार जताते है, इससे तो यही अच्छा है कि किसी को कुछ न दिया जाए।
भगवान द्वारा दिया हुआ यह अनमोल जीवन जीने और कुछ करने के लिए है। केवल दूसरों को उपदेश देकर वक्त बिताना हमारे जीवन का उद्देश्य नहीं है। अगर हम अपना सारा समय बिना कुछ दान-पुन और भगवान की पूजा के सिर्फ खा और सो कर गुजार देते है तो हमारा यह जीवन व्यर्थ है। असल जीवन में तो अपनी इन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण ही सच्ची विजय कहलाता है। यदि हम अपना अवगुणों रूपी कचरा भगवान को दे दें तो कोई भी व्यक्ति आप पर कीचड़ नही उछाल पायेगा। ज्ञान प्राप्ति की इच्छा अंतिम क्षण तक नही छोड़नी चाहिए। सच्चा इंसान वही है, जो बुराई का बदला सदैव भलाई से दे।
संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु न जाने फिर भी कुछ लोग उसके प्रयोग से विहीन क्यों होते है। सब कुछ जानते हुए भी हम अपने आप को गुनाह करने से क्यों नही रोक पाते? अगर मुहब्बत करनी है तो खुदा से करो, वो कभी भी अपने आशिक को उदास नही करता लेकिन हम दुनियावी रिश्तों के मोहजाल में फंस कर अपना अनमोल जीवन मौज मस्ती में गुजार देते है।
जौली अंकल की राय तो यही कहती है कि प्रतिदिन कुछ न कुछ अच्छा काम करने का संकल्प एक दिन आपको सर्वश्रेष्ठ काम करने की आदत भी डाल देता है। जीवन में सदा हर काम पूरी जान लगाकर करें, अधूरे मन से किया काम आपके श्रेष्ठ बनने का मौका छीन लेता है। निष्ठा, संकल्प और इच्छाशक्ति किसी में भी है तो उसके लिए कुछ भी अंसभव नही है। इन्ही सब बातो से हम अपना अनमोल जीवन मौज मस्ती में खोने से बचा सकते है।     

पारखी नजर

तेजी से विज्ञान की तरक्की हर इंसान को वास्वतिक जिंदगी की असलियत से दूर करती जा रही है। नतीजतन हम अपने परिवार, और समाज के साथ-साथ भगवान से भी दूर होते जा रहे हैं। जो कोई भगवान के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान या आस्था रखता है, वो खुद को अंहकारवश बहुत बड़ा विद्ववान और दूसरो को मूर्ख समझने लगता है। किसी धर्म के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी या यू कहियें कि आधा-अधूरा ज्ञान रखने वालों का घंमड तो सातवें आसमान पर देखने को मिलता है। वो बाकी समाज के लोगो को हर समय यह जताना नहीं भूलते की वो भगवान के सबसे नज़दीकी और खास है।
क्या आज तक किसी ने भगवान को देखा है? क्या कोई भगवान को देख सकता है? जिस चीज को हम देख नहीं सकते, क्या उसका अस्तित्व कैसे हो सकता हैं? यह कुछ ऐसे प्रश्न है, जिनका जवाब आज तक शाायद किसी को नहीं मिल पाया। भगवान की बात तो छोड़ो, क्या कभी किसी ने फूलो की खुशबू या अपने सिरदर्द को देखा है? हम केवल ऐसी चीजो को महसूस ही कर सकते हैं। अगर हमने यह छोटी-छोटी चीजे नहीं देखी, तो भगवान के अस्तित्व पर प्रश्न उठाने वालों की समझ के बारे में क्या कहें?
एक बार एक मुसद्दी लाल जी अपने बाल कटवाने के लिये नाई की दुकान पर गये। जैसा कि आप सबने अक्सर देखा होगा कि अधिकांश नाई लोग अपना काम करते समय एक पल भी चुप नहीं रह सकते। वो किसी न किसी विषय पर अपनी राय देते ही रहते हैं। फिर चाहे वो गली-मुहल्ले की कोई परेशानी हो या देश की कोई गम्भीर समस्या। मुसद्दी लाल से बात करते-करते मुद्दा भगवान के होने या न होने पर आकर रुक गया। मुसद्दी लाल के लाख समझाने पर भी नाई अपनी बात पर अड़ा रहा कि दुनिया में भगवान नाम की कोई चीज नहीं है।
यदि भगवान सचमुच होता, तो फिर दुनियॉ में हर तरफ यह दुख ही दुख, गरीबी, भुखमरी, कत्ल और लूटपाट क्यो होते? लोग बीमार क्यूं होते? बच्चे अनाथ क्यूं होते? अस्पताल मरीजों से यूं तो न भरे रहते, गरीबी और लाचारी की वजह से लोग आत्महत्या क्यूं करते? आप कहते हो कि भगवान सबको बहुत प्यार करते हैं। तो क्या भगवान को अपने प्रियजनों का तड़पते देख यह सब कुछ अच्छा लगता है? जब मुसद्दी लाल जी की भगवान के आस्तित्व के बारे में सभी दलीलें फेल हो गईं तो वो बुझे मन से अपना काम खत्म होते ही एक समझदार इन्सान की तरह चुपचाप उस नाई को पैसे देकर चल दिय, क्योंकि मुसद्दी लाल जी इस बात को अच्छी तरह से समझते है कि कभी भी किसी मूर्ख से नही उलझना चहिये क्योंकि ऐसे में वहां खड़े सभी देखने वाले को दोनों ही मूर्ख प्रतीत होते है।
जैसे ही मुसद्दी लाल जी उस नाई की दुकान से बाहर आये, तो उन्होंने देखा की उस बस्ती में काफी सारे लोग बहुत ही लबें और गन्दे बालों के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। मुसद्दी लाल कुछ पल सोचने के बाद तुरन्त वापिस आ कर उस नाई से बोले कि मुझे लगता है, कि तुम्हारी सारी बस्ती में कोई भी नाई नहीं है। नाई ने हैरान होते हुए कहा, कि यह आप क्या कह रहे हो? अभी तो मैने तुम्हारे बाल काटकर ठीक किये है, और तुम कह रहे हो कि यहां कोई नाई नहीं रहता। मुसद्दी लाल ने अब अपनी बात विस्तार से कहनी शुरू की, जैसे ही मैं तुम्हारी दुकान से बाहर निकला तो मैंने देखा कि तुम्हारी बस्ती के अधिकतर लोग बहुत ही लबें और गन्दे बालों के साथ यहां-वहां घूम रहे हैं। नाई बोला उससे क्या होता है? मैं तो यहां अपना काम कर रहा हूं,। अब जब तक कोई मेरे पास आयेगा ही नहीें तो मैं उसके पीछे-पीछे दौड़ कर तो उनके बाल नही संवार सकता।
अब बात पूरी तरह से मुसद्दी लाल की पकड़ में आ गई। उन्होंने उस नाई को समझाना शुरू किया कि तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। जैसे यह लोग जब तक तुम्हारे पास नहीं आते, तब तक तुम इनके लिये कुछ नहीं कर सकते, ठीक वैसे ही भगवान तो इसी दुनिया में है, लेकिन जब तक हम लोग उसके करीब नही जायेंगे, तब तक वो हमारे लिये क्या कर सकता है? उसकी मदद और आशीर्वाद के बिना तो हमें हर प्रकार के दुख और तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा।
जिस प्रकार किसी जानवर को मंहगे सोने-चांदी और हीरे-मोतीयों की समझ नही होती, वो उन्हें छोड़ कर भी घास के पीछे ही भागते है। इसका मतलब यह तो नहीं कि हीरे-मोतियो की कोई पहचान या कीमत खत्म हो गई। ठीक उसी तरह भगवान तो हर कण-कण से लेकर छोटे-बड़े जीव में मौजूद है। जौली अंकल की समझ तो यही कहती है कि भगवान को सदा ही हमारे अंग-संग रहता है, परन्तु उसे देखने के लिये केवल एक सच्चे हृदय एवं पारखी नजर की जरूरत होती है।     

तो मैं क्या करू ?

जीवन से जुड़ी सदीयों पुरानी कुछ ऐसी सच्चाईयां है जिसमें कभी कोई बदलाव नही आता। इसी प्रकार की एक कहानी कुछ इस प्रकार है। एक दिन बहुत भयंकर तूफान के साथ भारी बरसात हो रही थी। साथ ही बर्फीली हवाओं के साथ कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। ऐसी अंधेरी रात में एक बर्जुग को उसके बहू और बेटे ने धक्के देकर अपने घर से निकाल दिया। वो बर्जुग ठंड में ठिठुरता और कांपता हुआ आधी रात को डरते-डरते अपने बेटे के पास आकर गिड़गिड़ाता हुआ बोला कि बाहर बहुत जोर की ठंड पड़ रही है। यदि घर के पिछवाड़ें में रखा हुआ एक पुराना कंबल तुम मुझे दे दो तो मैं खुद को खुल्ले आसमान के नीचे इस तुफानी रात में ठंड की मार से थोड़ा बहुत बचा लूगा। तुम्हारी बहुत मेहरबानी होगी, उस बर्जुग ने कंपकपाते हुए बड़ी ही मुशकिल से अपनी बात पूरी की।
पत्नी की खूबसूरती के नशे में चूर उस आदमी ने एक पल सोचने के बाद अपने बेटे को आदेश दिया कि वो पुराना कंबल लाकर इस बूढ़े को दे दो। कुछ ही देर में उसका बेटा उस बर्जुग को आधा कंबल देकर चला गया। लाचार बर्जुग ने अपने बेटे से कहा कि कम से कम यह फटा-पुराना कंबल तो पूरा दे देते। घर के मालिक ने अपने बेटे से कहा मैने तो तुम्हें पूरा कंबल देने को कहा था, तुमने उसे आधा कंबल क्यूं दिया है? बच्चे ने बड़े ही भोलेपन से कहा कि मैने आधा कंबल आपके लिये रख लिया है। अब कुछ ही दिनों में मैं भी बड़ा होकर जब आपको इसी तरह घर से निकालूंगा तो आप भी मेरे पास इसी तरह कंबल मांगने आओगे, तो मैं ऐसा कंबल फिर कहां से लाऊगा?
इसी तरह की सैंकड़ो कहानीयां एवं साधू-संतो के प्रवचन के दौरान सुनने के बाद भी समाज में कुछ सुधार होने की बजाए हर दिन पहले से भी और अधिक बुरा हो रहा है। दुख और हैरानगी की बात तो यह है कि जब इंसान बिल्कुल अनपढ़ था, तो उस समय भी वह अपने बर्जुगो के साथ इस प्रकार का जानवरों जैसा बर्ताव नही करता था, जैसा कि आज देखने को मिल रहा है। अब जैसे-जैसे पढ़ाई लिखाई बढ़ती जा रही है वैसे ही लोगो की अक्कल न जाने क्यूं मोटी होती जा रही है? पढ़े लिखे युवाओं का मानना तो यही है कि उनके अनपढ़ बर्जुग ज्ञानी और विद्ववान कैसे हो सकते है? जबकि इतिहास में तुलसी और कबीर साहब इसका जीता जागता उदारण है। इन लोगो ने बिना किसी प्रकार की शिक्षा ग्रहण किए हुए भी संत समाज में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त किया है।
हर मां'-बाप अपने बच्चो को कोमल फूलों की तरह पालते हुए सारी उंम्र अपनी आखों के तारे के रूप में देखते है। लेकिन जैसे ही यह नटखट से दिखने वाले नन्हें-मुन्ने जवां हो जाते है, तो पैसे और जयदाद के लालच में इन्हें किसी रिश्ते की कोई एमहियत समझ नही आती। मां-बाप को बोझ समझने वाली नई पीढ़ी को जब विद्वान लोग ज्ञान देने की कोशिश करते है कि माता पिता धरती पर विधाता का ही दूसरा रूप है। इनके समान कोई तीर्थ नही है, न मंदिर न मस्जिद। माता पिता तो उस नाविक की भांति होते है जो अपने बच्चों को दुखों के सागर से पार लगाते हैं। जीवन में यदि अच्छे संस्कार ग्रहण करने है तो घर ही संस्कारों की पहली पाठशाला और माता-पिता हमारे प्रथम गुरू होते है। अपने घर-परिवार के लोगों के साथ मिल बैठकर प्रार्थना और पूजा करना भी अच्छे संस्कारों में से एक है। इस तरह की बाते सुन कर जवां खून का एक ही जवाब होता है कि ठीक है, यह सब होता होगा, तो मैं क्या करू?
आज हर किसी की सोच में खुशहाल परिवार की परिभाषा और उसे बनाने का सपना एक दूसरे से बिल्कुल अलग है। जहां कुछ लोग सयुंक्त परिवार में एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहने को खुशहाली का नाम देते है, वहीं आज की नई पीढ़ी बिना किसी रोक-टोक की जीवन शैली को ही सुखमगई जीवन समझती है। एक और जहां युवा पीढ़ी अधिक पढ़ी-लिखी होने के कारण खुद को बर्जुगो से अधिक विद्ववान समझने लगी है वहीं कुछ परिवारों में घर के बड़े बर्जुग अपने उंम्र भर के अनुभव को ढाल बना कर युवा वर्ग को झुकाने की कोशिश करते रहते है।
सिक्के की तरह जीवन में भी हर वस्तु के दो पहलू होते है, हमें सदा उज्जवल पक्ष को ही देखने का प्रयास करना चहिये। समाज में ऐसे अनेको उदारण है कि जो व्यक्ति कोरी शिक्षा प्राप्त करता है, उसे कहीं भी सम्मान नहीं मिल पाता। महापुरषो के अनुसार जीवन का अधार केवल प्रेम होता है और उनके अनुसार प्रेम से हर काम संभव हो जाता है। परन्तु यदि प्रेम का धागा एक बार टूट जाए और उसे दुबारा जोड़ा भी जाए तो फिर उसमें गांठ पड़ ही जाती है। हमारी युवा पीढ़ी जब जीवन में अचानक किसी कामयाबी को हासिल कर लेती है तो कुछ समय के लिये उनके दूर नजदीक के मिलने वाले उनसे रिश्तेदारीयां जोड़ने लगते है। परन्तु सच्चाई उस समय सामने आती है जब कभी यह लोग किसी परेशानी में घिर जाते है। ऐसे हालात में भी मां-बाप इनकी सभी गलतीयों को नजरअंदाज करते हुए दौड़े-दौड़े मदद के लिये भागे चले आते है।
जौली अंकल युवा वर्ग से अब यह पूछना चाहते है कि क्या अब भी आपको बात कुछ समझ में आई कि आपका सच्चा शुभंचिंतक कौन है? क्या दुख की इस घड़ी में आपके बर्जुगों ने तुम्हारी मदद करने की बजाए आपसे यह तो नही कहा कि तो मैं क्या करू?

बेगानापन

भगवान ने हमारे शरीर के सभी अंग जैसे हाथ पैर, आंखे और यहां तक की सभी के खून का रंग भी एक ऐसा जैसा बनाया है। लेकिन आज का मानव इन बातो का दरकिनार करते हुए कभी अमीर-गरीब, कभी जात-पात, कभी छोटे-बड़े का मुद्दा बना कर हर किसी को बेगाना समझने लगा है। ऐसी सोच रखने वालो की आखों पर न जाने कौन सा ऐसा पर्दा पड़ा हुआ है कि उन्हें प्यार और सद्भावना की कोई भी बात अच्छी नही लगती। गैरो की बात यदि छोड़ भी दे तो दोस्ती-यारी, प्यार और रिश्तेदारी जैसे आपस में करीबी रिश्ते होने के बावजूद भी हम अक्सर दिल से न चाहने वाले को एक अनजान और बेगाने की तरह देखने लगे है।
अपने सभी धर्म ग्रंधों और पीर-फकीर लोगो की बात मानें तो हर इंसान भगवान का ही एक बहुत छोटा सा अंश मात्र है। जिस प्रकार सूरज से निकली अनगिनत किरणें बिना कोई भेदभाव किए एक पल में सारी दुनियां को रोशन कर देती है ठीक उसी प्रकार हर जीव का वजूद आत्मा रूपी अंश के माध्यम से परमात्मा से जुड़ा हुआ है। ऐसी ज्ञानवर्दक बातो को समझाने वाले दुनियां के जाने मानें ज्ञानी और विद्वान लोगो की सोच में तो कभी कोई कमी हो नही सकती, हां आज की नोजवान पीढ़ी न जाने किस मिट्टी से बनी हुई है कि ऐसी ज्ञान की बाते उनके सिर के ऊपर से छंलाग लगाती हुई निकल जाती है।
जब हमें अपने किसी हसीन सपने को पूरा करना हो या निजी स्वार्थ हेतू परिवार या समाज में किसी व्यक्ति से अपना कोई जरूरी काम निकलवाना होता है, तो हम उसके सामने गिड़गिड़ाते और प्रार्थना करते है यहां तक की हम उसकी सभी कमीयों को भूल कर उसके दीवाने हो जाते है। जैसे ही हमारा स्वार्थ पूरा हो जाता है, तो हमें अपने उस मददगार के साथ बैठ कर मुस्करहाना तो दूर कुछ पल इक्ट्ठे गुजारने भी मुशकिल लगने लगते है। जब कभी हमें पल भर के लिये भी यह महसूस होता है कि कोई दीन-दुर्बल अपने किसी निजी कार्य के लिये हमारे पास आ रहा है तो हम ऐसे लोगो के दर्द को सुने-समझे बिना उनकी मदद करने से पहले ही उनसे नजरें चुराने में अपनी होशियारी समझते है।
हम अपने मन की बात को नकारते हुए सभी परिवारिक और समाजिक मूल्यों को भूल कर निजी हितो को प्राथमिकता देने लगे है। क्या सच में हमारे अंदर इंसानयित का बीज मर चुका है, क्या आज हमारे स्वार्थ सभी रिश्तो से बड़े हो गये है? समय पा कर जैसे-जैसे हमारे नये रिश्ते बनने लगते है तो बरसों पुराने दुख-दर्द के संगी साथी हमें बेगाने से दिखाई देने लगते है। इस तरह के हालात को देखते हुए कभी-कभी मन में एक सवाल बार-बार उठता है कि भगवान ने हमारे शरीर में सब कुछ अच्छा बनाते हुए भी न जानें गलती से यह स्वार्थीपन की कमी कैसे छोड़ दी?
देश में दहशत फैलाने और दंगे करवाने वाले दरिंदें अपने-पराये के फर्क के साथ अपने प्रियजनों को भी बेगाना समझने लगे है। आज का नौजवान जब पैसे की चमक में अंधा होकर अपने ही माता-पिता तो क्या देश के खिलाफ खून-खराबे पर उतर आता है, तो ऐसी सोच रखने वालो से देश के प्रति प्यार, इज्जत और सम्मान की कामना करना हम सभी की नादानी होगी। ऐसे देश और समाज के दुश्मन ताकत और पैसे के बल पर सदा दूसरों को झुकाने की कोशिश करते है, जबकि असल में जरूरत है खुद ऐसे लोगो को झुकने की। सभी को इक्ट्ठा करने के प्रयास उस समय तो बिल्कुल ही बेकार हो जाते है जब आप अपनों को बेगाना समझने लगते है।
इससे पहले की और अधिक देर हो जाये, देश में धर्म, जाति, भाषा को लेकर पैदा किये हुए बेगानेपन को खत्म करने के लिये हर किसी को अपने इस नजरियें में बदलाव लाना होगा। हमें सभी छोटे-बड़ो को प्यार से गले लगाने के बारे में सोचना और सीखना होगा। एक दिन-रात में न सही कम से कम सप्ताह में एक बार हमें समाज में फैले हर प्रकार के भेदभाव को मिटाने के लिये इस नेक कार्य करने का संकल्प तो लेना ही होगा। जब हम सभी इस बात को मानते है कि हर दिल में ईश्वर का वास होता है, तो हमें कभी भी किसी का दिल नही दुखाना चहिए। हमारे व्यावहारिक जीवन में यह संभव नही है कि हम सभी से मित्रता कर सके, परन्तु इसमें घबराने की कोई बात नहीं, हम इतना तो कर सकते है कि हम किसी से दुश्मनी न करें। अपनो को बेगाना बनाते समय अंहकार हमारे मन में अनेक प्रकार के बुरे कार्यो का जन्म देता है, इसलिए इससे सदा बचना चहिए। प्यार के रिश्ते को निभाने वाले हर नेक व्यक्ति को आने वाली पीढ़ीयां उसके द्वारा किये हुए जनहित के काम और गुणों से याद करती है।
बेगानेपन की सोच को मिटाने के लिये हमें सबसे पहले यह मानना होगा कि जात पात में कुछ नही रखा, हम सभी एक ही परमपिता परमात्मा की संतान है। कोई छोटा या गरीब केवल इसलिये है क्योंकि कोई दूसरा बड़ा और अमीर है। जौली अंकल भी तो यही कहते है कि फिर क्यूं न सभी फर्क मिटा कर एक दूसरे के दिल का दर्द समझते हुए इस बेगानेपन को खत्म करके सारे समाज को महकाने का प्रयास करे।    

विश्वास

एक बहुत ही बड़े व्यापारी के लड़के ने जब अपनी पढ़ाई पूरी कर ली तो उसने अपने पिता से कहा कि मैं भी आपकी तरह अच्छे और कामयाब तरीके से व्यापार करना चाहता  हूँ। मुझे भी व्यापार के सारे गुर सिखाओ। पिता ने उसे टालते हुए कहा कि अभी तुम बहुत छोटे हो, उंम्र और तर्जुबे के साथ तुम खुद ही धीरे-धीरे सब कुछ सीख जाओगे। लेकिन जैसा अक्सर होता है, आखिर में बेटे की जिद्द के आगे उस व्यापारी को झुकना पड़ा। उस व्यापारी ने अपने बेटे से कहा कि यदि तुम सच में अच्छा व्यापार शुरू करना चाहते हो तो घर की छत पर जाकर वहां से छंलाग लगाओ। बेटे ने हैरान होते हुए कहा कि पिता जी यह आप क्या कह रहे हो? घर की दूसरी मंजिल से छंलाग लगाते ही मेरे तो हाथ पांव टूट जायेगे। पिता ने कहा कि तुम तो बहुत डरपोक किस्म के इंसान हो, मुझे समझ नही आता कि तुम व्यापार कैसे कर पाओगे?
बेटे ने हैरान होते हुए अपने पिता से कहा कि मैं आपकी इस बात को बिल्कुल समझ नही पा रहा कि व्यापार का छत से कूदने का क्या संबध है। उस व्यापारी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा कि तुम एक बात तो मानते हो कि मैं तुम्हारा पिता  हूँ और मैं कभी भी तुम्हारे बुरे या नुकसान के बारे में नही सोच सकता। पिता के बार-बार समझाने और आश्वासन को मानते हुए उस लड़के ने तुंरन्त छत से छंलाग लगा दी। नीचे गिरते ही उसके दोनो हाथ और पैर टूट गये। लड़के ने गुस्सा करते हुए अपने पिता से कहा कि आप तो कह रहे थे कि हम सभी परिवार वाले नीचे खड़े है और तुम्हें किसी भी हाल में कोई चोट नही लगने देगे। परन्तु मेरे छंलाग लगाते ही आप सभी लोग पीछे क्यूं भाग गये? अब उस व्यापारी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा कि असली व्यापार करने का सबसे पहला गुर यही है, कि व्यापार करते समय लेन-देन में कभी किसी सगे रिश्तेदार पर भी एतबार मत करो क्योंकि कोई भी इंसान तुम्हें कभी भी धोखा दे सकता है।
क्या यह सच है कि आज के इस युग में पैसा कमाने के लिये हमें सभी संस्कारो और परिवारिक मूल्यों को ताक पर रख देना चहिये। क्या समाज में हम एक दूसरे के प्रति विश्वास के बिना एक दिन भी जी सकते है? इसी बात को गहराई से समझने के लिये मैं आपको एक और वाक्य बताता  हूँ जो कुछ इस प्रकार है। एक बार एक राजा रात के अंधेरे में अपने राज्य के लोगो की सम्सयाओं को जानने के लिये भैस बदल कर रात को अपने घोड़े पर सवार होकर घूम रहा था। कुछ दूरी पर ही उस राजा को भिखारी के भैस में एक लुटेरा मिल गया। उसने राजा से छल-कपट करते हुए उसका घोड़ा और सारा कीमती समान, गहने आदि छीन लिये। जब वह लुटेरा वहां से जाने लगा तो उस राजा ने उसे रोक कर कहा कि तुम इस सारे वाक्य का जिक्र कभी किसी से मत करना। कारण पूछने पर उस राजा ने कहा कि मैने तुम्हें एक बहुत ही दुखी और लाचार इंसान समझ कर तुम्हारी मदद करने की कोशिश की थी परन्तु तुमने मुझ से धोखे में सब कुछ छीन लिया। अब यदि यह बात आम लोगो को पता लगेगी तो लोग एक दूसरे के ऊपर विश्वास करना छोड़ देगे। कभी भी कोई भी इंसान किसी दीन दुखी को मजबूरी में भी देख उसकी मदद के लिये आगे नही आयेगा।
इस प्रकार की छोटी-छोटी कहानीयों से यह तो साबित हो जाता है कि जल्द से जल्द और अधिक पैसा कमाने की इस आपाधापी में हम अपने पराये का फर्क भूल कर हर रिश्ते को पैसे की तराजू में तोलने लगे है। अपनी और परिवार की जरूरतो को पूरा करने के लिये मेहनत से धन कमाने में कोई बुराई नही है। लेकिन छल कपट और गलत तरीको से पैसा कमाने की हौड़ में कई बार व्यापारिक और परिवारिक रिश्ते जीवन भर के लिये टूट जाते है। हमें यह कभी नही भूलना चहिये कि दुनियॉ की सबसे बड़ी अमीरी धन नहीं है बल्कि परित्याग है। रोजगार कमाने के लिये आप जीवन के किसी भी क्षेत्र से जुड़े हो लेकिन एक बात का सदैव ध्यान रखे कि हर सफलता की शुरूआत लडखडहाट से ही होती है इसलिए जल्दी से आपको घबराने की जरूरत नहीं। यदि आपके मन में दृढ़ निश्चय व विश्वास है तो आपकी विजय निश्चित है, अगर संकल्प कमजोर है तो आपको पराजय का मुंह देखना पड़ सकता है। इंसान चाहें अपने घर में हो या व्यापार में उसका व्यवहार ही उसके व्यकितत्व को निखारता है।
दूसरों के प्रति अपने विश्वास को कायम रखते हुए हमें केवल अपनी मेहनत पर भरोसा करना चहिये, क्योंकि मेहनत करना हमारे हाथ में है और सफलता देना ऊपर वाले के हाथ में। पहले से ही किसी चीज की लाभ-हानि का अनुमान लगाना ठीक है। परन्तु हमें तो सदैव अपने कर्म पर ही ध्यान देने की जरूरत है। हमें यह कभी नही सोचना चहिये कि व्यापार के उतार-चढ़ाव में हमारा कुछ दोष है। लाभ और हानि कभी भी हमारे प्रयासों से नही बल्कि प्रभु की मर्जी से होते है।
जौली अंकल की सुने तो वो सीधी-सादी भाषा में यही कहते है कि जो इंसान केवल अपने लिए ही सब कुछ पाने की इच्छा रखता हो, उसे तो सिर्फ स्वार्थी ही कहा जा सकता है। मेहनत करने से लक्ष्य की प्राप्ति सरल व सुनिश्चित हो जाती है और सभी प्रियजनों के बीच में आपका विश्वास भी कायम रहता है।    

फारेन रिटर्न्ड

आजकल आप किसी भी दफतर में फोन लगाऐं तो पहले की तरह किसी मधुर भाषी स्वागती कन्या की आवाज की जगह कम्पयूटर की झनझहाट भरी आवाज सुनाई देती है। कुछ दिन पहले एक सज्जन ने शादी ब्यूरों में कुछ जानकारी लेने के लिये फोन लगाया तो उधर से आवाज आई कि रिश्ते की बात करने के लिये कृप्या एक दबाऐं, सगाई से जुड़ी बातचीते के लिये दो दबाऐं, शादी की जानकारी के लिये तीन दबाऐ। उस मनचले ने मजाक में कह दिया यदि दूसरी शादी करनी हो तो क्या दबाऐ? झट से कम्पूयटर ने जवाब दिया कि उसके लिये आप अपनी पहली बीवी का गला दबाऐं। बाकी सभी दलालों की तरह शादी के यह दलाल भी अपने काम में इतने माहिर होते है कि एक बार कोई इनकी गली से गुजर जाऐ तो यह तब तक उसका पीछा नही छोड़ते जब तक शादी का ढोल उसके गले में न डाल दे। फिर वो चाहे लाख कोशिश कर कर ले उसे हर हाल में यह ढ़ोल बजाना ही पड़ता है।
देसी दुल्हों के मुकाबले फारेन रिटर्न्ड दुल्हों की हमारे देश में सदा से भारी मांग रही है। विदेशी दुल्हा चाहें उंम्र के किसी भी पढ़ाव का हो, विदेश से लौटते ही उसका स्वागत फूल मालाओं के साथ-साथ ढ़ोल धमाको के साथ किया जाता है। गांव के अधिकांश लोग अपने सभी जरूरी काम काज छोड़ कर उस फारेन रिटर्न्ड के स्वागत की तैयारीयों में लग जाते है। किसी न किसी स्वार्थ के चलते हर कोई फारेन रिटर्न्ड लोगो को भरपूर प्यार का दिखावा करते हुए सच्चा हितेषी साबित करने में कोई कसर नही छोड़ता। वहीं दूसरी और उनके सामने अपनी सुदर, सुशील और हर तरह से योग्य लड़की का रिश्ता करने वालों की एक लंबी कतार लग जाती है।
चंद डालरों की कमाई और अग्रेजी दारू के लालच में ऐसे लोगो का काम हमारे यहां रिश्तो की दलाली करने वाले और भी आसान कर देते है। शादी से जुड़े हर प्रकार के सामान के साथ यह लोग रिश्तेदारो का भी किराये पर मंगवाने का इंतजाम कर देते है। यदि कोई मां-बाप कभी गलती से लड़के की योग्यता, आमदनी या घर-बाहर के बारे में कुछ पूछ ले तो शादी करवाने में निपुण दलाल हर सवाल का एक ही जवाब देते है कि आप कमाल कर रहे हो। लड़का फारेन रिटर्न्ड है, और आप न जाने किस प्रकार के वहमों में पड़ते जा रहे हो। अगर आप को लड़के की काबलियत पर कोई शक है, तो आप यह रिश्ता रहने ही दो। मैने तो आपको बिल्कुल अपना समझ कर आपके भले की सोची थी। ऐसी चंद उल्टी-सीधी बातों में लड़की वालों को उलझा कर यह दलाल लोग होटल में दरबान की नौकरी करने वाले को उस होटल का मालिक बना कर रिश्ता पक्का करवा कर ही दम लेते है।
आज अग्रेजों को भारत छोड़े एक जमाना हो चुका है। न जानें फिर भी हमारे यहां टैक्सी ड्राईवर से लेकर फाईव स्टार होटल के कर्मचारी तक अधिकतर लोग आज भी गोरी चमड़ी वालो को देखते ही सर-सर कहते हुए उनके आगे पीछे दुम क्यों हिलाने लग जाते है? गोरी चमड़ी वाला कहां से आया है, उसका उस देश में क्या रूतबा है, इसके बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करना तो दूर हम उसके मां-बाप और रिश्तेदारों के बारे में जानने तक की कोशिश नही करते। गोरे लोगो की बात तो छोड़ो यदि हमारे गांव का कोई व्यक्ति चार-छह महीने विदेश के किसी होटल में सफाई कर्मचारी या कोई अन्य छोटी सी नौकरी भी कर के जब देश वापिस लौटता है तो हम लोग झट से उसके नाम के साथ फारेन रिटर्न्ड का तगमा लगा कर उसे सातवें आसमान पर बिठा देते है। फारेन रिटर्न्ड के इस तगमें में न जाने क्या जादू होता है कि यह तगमा अपने देश में अच्छे से अच्छे पढ़े लिखे लोगो की डिग्रीयों से कहीं अधिक भारी और चमकदार होता है। फारेन रिटर्न्ड तगमें की चमक इतनी चमकीली होती है कि हमें उसके चकाचौंध के आगे कुछ दिखाई ही नही देता। हम लोग आपस में चाहे सारा दिन गाली गलौच करते रहे, लेकिन फारेन रिटर्न्ड लोगो के सामने हर कोई बड़ी ही संजदीगी से पेश आता है। अब यदि फारेन रिटर्न्ड का ताल्लुक किसी गांव से है, तो सोने पर सुहागे वाली कहावत अपनी चमक पूरी तरह से दिखाने लगती है।
जरा गौर से जमाने की हवा के रूख को देखे तो समझ आता है कि अब फिजा बदल रही है। दुनियां में सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति न सिर्फ हमारे देश के प्रधानमंत्री से लेकर साधारण बच्चो की तारीफ कर रहे है बल्कि दबी जुबान से अपने देश के बच्चो को भारत के मुकाबले पिछड़े होने की चेतावनी भी दे रहे है। समझदार लोग तो इशारों-इशारों में यही समझाते है कि किसी विषय के बारे में पूरी जानकारी न होने से अधिक शर्म की बात यह होती है कि उस बारे में पूरी जानकारी न लेना। समय की मांग है कि हम अपने अतीत को भूल कर यह विचार करे की वर्तमान में हमें अब क्या करना है, क्योंकि दुनियां में वास्तविक सम्पति धन नही मन की प्रसन्नता होती है। जौली अंकल तो इस बात को कद्पि मानने को तैयार नही कि डालरों की चकाचौध में अपनें बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हुए उनकी खुश्ीयों को कुर्बान किया जाये, फिर चाहे दुल्हा फारेन रिटर्न्ड ही क्यूं न हो?     

ओवर टाईम

शाम होते ही गप्पू के सभी दोस्त अपने मम्मी पापा के साथ बाजार घूमने-फिरने या कोई फिल्म देखने निकल जाते। गप्पू अपने मां-बाप की इकलोती संतान होने के कारण बिल्कुल अकेला और उदास सा अपने पापा मम्मी के इंन्तजार में घर में बैठा रहता। वो कभी भी अपने पापा के साथ घूमने नही गया था। जब कभी गप्पू के दोस्त उससे किसी फिल्म या होटल में खाने के बारे में जिक्र करते हो उसका मन बहुत ही बैचेन सा हो जाता था। उसके मन में रह-रह कर एक ही सवाल बार-बार उठता कि उसके पापा कभी भी न तो उसे घुमाने ले जाते है और न ही उसके साथ खेलते है। मुहल्ले के बाकी सभी लोगो की तरह समय पर घर क्यूं नही आते? मेरे पापा ही सदा देरी से क्यूं आते है, और न ही उसे अपना समय देते है। आज चाहे कुछ भी हो जायें मैं पापा के आने तक उनका इंन्तजार करूगा और दफतर से रोज देरी से आने का कारण भी जरूर पूंछूगा।
काफी रात बीत जाने के बाद जब गप्पू के पापा घर आये तो गप्पू ने अपने दिल की सारी बात उनसे कह डाली। पहले तो उसके पापा ने उसे प्यार से टालने का विफल प्रयास किया, परन्तु जब वो अपनी हठ पर अड़ा रहा तो उसके पापा ने उसे समझाया कि हमनें अपने घर और कार के लिये बैंक से बहुत सा पैसा कर्ज पर लिया हुआ है। उसकी किश्ते देने के लिये मुझे दफतर में रोज औेवर-टाईम करना पड़ता है। पापा यह औवर टाईम क्या होता है? उसने जोश-जोश में अपने पापा से पूछा। अब तक गप्पू का मूड काफी ठीक हो चुका था। जवाब में उसके पापा ने उसे समझाया कि नियमित समय से अतिरिक्त कार्यकाल में जो काम किया जाए उसे ओैवर टाईम कहते है। इस काम से जो पैसे मुझे मिलते है उनसे मैं बैंक की किश्ते चुका पाता  हूँ।
अब गप्पू ने पूछा कि एक दिन ओवर टाईम करने से आपको कितने पैसे मिल जाते है? गप्पू के पापा ने कहा मुझे एक दिन औवर टाईम करने से 300 रूप्ये मिल जाते है। कुछ देर सोचने के बाद गप्पू ने अपने पापा से कहा कि आप इतने सारे पैसे कमाते हो, लेकिन आपने मुझे तो कभी कुछ पैसे नही दिये। गप्पू के पापा ने खुशी-खुशी झट से गप्पू को 20 रूप्ये दे दिये। कुछ दिन बाद गप्पू ने फिर इसी तरह अपने पापा से पैसे मांगे तो उन्होनें पूछा कि वो इन पैसो का क्या करेगा? गप्पू ने कहा कि मैं यह सारे पैसे अपनी छोटी सी गुलक में जमा कर रहा  हूँ, मुझे एक बहुत ही जरूरी चीज खरीदनी है। उसके पापा को गप्पू की यह बचत करने की आदत अच्छी लगी और वो रोज ही उसे कभी 5 कभी 10 रूप्ये देने लगे।
एक दिन सुबह जब गप्पू के पापा दफतर जाने लगे तो उसने बड़े ही प्यार से कहा कि क्या आप आज शाम को दफतर से थोड़ा जल्दी घर आ सकते हो? उसके पापा ने कहा कि मैने कुछ दिन पहले ही तुम्हें अच्छी तरह से समझाया था कि मुझे दफतर में ओैवर टाईम के लिये रूकना पड़ता है। गप्पू ने कहा कि पापा आज मेरा जन्मदिन है, मैने अपने कुछ दोस्तो को घर पर बुलाया है। क्या आप एक दिन के लिये भी औवर टाईम नही छोड़ सकते? जब उसके पापा ने फिर से अपनी मजबूरी बतानी शुरू की तो उनकी बात को बीच में अनसुना सा करके गप्पू दौड़ कर अपने कमरे में गया और अपना पिगी बैंक उठा लाया। उसने उसमें से सारे पैसे निकाल कर पापा के सामने ढेरी कर दिये और बोला कि उस दिन मैने आपको कहा था कि मुझे एक बहुत ही जरूरी चीज खरीदनी है। मैने यह सारे पैसे आज के दिन आपका ओवर टाईम खरीदने के लिये इक्ट्ठे किये है। यह पूरे 300 रूप्ये है। आप यह सारे पैसे ले लो, लेकिन आप आज एक दिन के लिये अपना औवर टाईम छोड़ दो। एक दिन यदि औवर ओवर टाईम नही करोगे तो कुछ नही होगा, मुझे आज अपना जन्मदिन आपके साथ मनाना है। पापा आज मैं अकेला नही रहना चाहता, अपनी यह बात कहते-कहते गप्पू फूट-फूट कर रोने लगा।
मासूम बच्चे के प्यार का यह नजारा देख गप्पू के पापा के उसकी मम्मी की आंखों में से भी गंगा-जमुना बहने लगी थी। हम सभी जानते है कि परिवार के लिये सुख-सुविधाऐ जुटाने के लिये मेहनत करना बहुत अच्छी बात है। जौली अंकल का तर्जुबा तो यही कहता है कि जो कुछ आपके भाग्य में है उसे दुनियॉ की कोई भी शक्ति आपसे छीन नही सकती और जो कुछ आपके भाग्य में नही है उसे दुनियॉ की कोई भी शकित आपको दे नही सकती। ऐसे में पैसा कमाने की होड़ में बच्चो की छोटी-छोटी खुशीयॉ की कुर्बानी देना बच्चो के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी होगी।

शनिवार, 16 जनवरी 2010

नजरियां

एक बार दो कुत्ते बैठे आपस में बात कर रहे थे। पहले कुत्ते ने कहा कि मुझे लगता है कि हमारे मालिक हमारे लिए भगवान का दूसरा रूप है। दूसरे कुत्ते ने हैरान होते हुए कहा, आज तू कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है? तुझे इससे पहले तो कभी ऐसा महसूस नही हुआ आज अजानक ऐसा क्यों लगने लगा? पहले वाले कुत्ते ने बड़ी ही नम्रंता से जवाब दिया कि हमारे मालिक सुबह-शाम हमें अच्छा खाना देते है, हमें सैर करवाने के लिए सुंदर से पार्क में लेकर जाते है। जब कभी हम बीमार हो जाते है, तो हमारा अच्छे तरीके से इलाज करवाते है। दूसरे कुत्ते ने उसकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, यह लोग हमारे लिए यह सब कुछ इस लिए करते है, क्योंकि हम इनके भगवान है। पहले कुत्ते ने मायूस होते हुए कहा भैया यह तो अपनी-अपनी समझ और नजरिये की बात है।
ऐसा ही कुछ नजरियां है हमारे देश की सशक्त नेता मेनका गांधी का। उन्हें देश के हर जानवर की ंचिंता तो दिन रात सताती रहती है। यह अच्छी बात है कि वो किसी भी जानवरों के दुख दर्द को समझते हुए उन्हें कभी भी दुखी नही देख सकती। लेकिन इसे किस प्रकार की इंसानयित कहेगे कि इंसानों को तड़पता छोड़ उन्हें सिर्फ जानवरों पर ही तरस क्यों आता है? आजकल तो र्प्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा अन्य जानवरों के साथ गिद्वो को बचाने की मुहिम भी शुरू की गई है। उनका मानना है कि गिद्व मुद्र्वा जानवरों को खाकर र्प्यावरण को स्वच्छ बनाते है। सरकार को उनकी प्रजति के लुप्त होने की ंचिंता भी अभी से सताने लगी है। गिद्वों के घोंसलों तथा उनके प्राकृतिक वास की सुरक्षा भी सरकार सुनिश्चित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ रही। इसी तरह के मुद्वे उछाल कर अन्य कई पार्टीयां भी अपनी चुनावी रोटीयां सेकने लगते है।
दूर-दराज की बात तो छोड़ो महानगरो में ही अनेको ऐसे हादसे हो चुके है कि कुछ मांसाहारी कुत्ते बच्चो को नोच-नोच कर मार डालते है। छोटे बच्चों के साथ कई बार बड़े बर्जुग को भी गाय, भैंस, बैल और अन्य बेलगाम जानवर लहुलुहान कर देते है। ऐसे हमलों में घायल हुए अनेक लोगो को अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ता है। कुछ बदनसीब इस तरह की चोट लगने के कारण उंम्र भर के लिए विकलांगों वाला जीवन व्यतीत जीने को मजबूर हो जाते है। यह सच्चाई किसी से छिपी हुई नही है कि जब कभी किसी अमीर आदमी के साथ कोई हादसा होता है तो सभी विभागो की सरकारी मशीनरी एक दम से हरकत में आ जाती है। इसके उलट जब किसी कमजोर या गरीब आदमी पर कोई मसुीबत आती है तो उसकी मदद के लिये कोई एक भी हाथ आगे नही आता।
देश की राजधानी दिल्ली की सड़को पर मौत बरपाती ब्लू लाईन बसें बरसों से सैंकड़ो घरों के चिराग बुझा कर अभी भी लगातार कहर ढा रही है। परिवार के लिये रोजी रोटी की तलाश में सुबह घर से निकले लोग कई बार जीवन में कभी अपने घर नही लौट पाते। कभी कड़कती ठंड और कभी गर्मी से बेहाल होने के कारण हर साल हजारों लोग सड़क किनारे दम तोड़ देते है। दुर्घटना में घायल न जानें कितने ही लोग सिर्फ इस लिए भगवान को प्यारे हो जाते है क्योंकि उन्हें समय पर उपचार नही मिल पाता। घटना स्थलों पर सैकड़ो लोगों की भीड़ मे से कोई भी अक्सर जख्मी को बचाने के लिए पुलिस के डंडे के डर से आगे नही आ पाते।
यदि कोई हिम्मत करके घायल को अस्पताल तक पहुंचा भी देता है तो अस्पताल वाले इलाज शुरू करने से पहले उसकी जान की परवाह किये बिना पुलिस फाईल बनाने में घंटो का समय लगा देते है। आज जनसाधारण घायलों की मदद करने से इसलिए भी घबराता है क्योंकि उसके बाद बरसों तक पुलिस वाले उन्हें बार-बार थाने बुला कर परेशान करती है। कई मामलों में तो यहां तक देखने को मिला है, कि पुलिस वाले घायल व्यक्ति को अपने-अपने इलाके के कार्यक्षेत्र का झगड़ा बता कर घायल और लवारिस आदमी को मरने के लिए सड़क पर ही छोड़ देते है। ऐसे में सरकारी बाबू भी अपनी नौकरी को बचाए रखने के लिए मामले को रफा दफा करने में ही अपनी भलाई समझते है।
जानवरों से प्यार करना और उनकी देखभाल करना एक बहुत ही नेक और पुण्य का काम है। यदि इसी के साथ सरकार का थोड़ा सा प्यार-दुलार देश के गरीब और लाचार इंसानो को भी मिल जाए तो हर बरस हजारों-लाखों जाने बचाई जा सकती है। वैसे भी महापुरषो का मानना है कि नर सेवा नरायण सेवा होती है।
इस मुद्दे पर जौली अंकल की आत्मा से तो यही आवाज निकलती है कि किसी घायल या जरूरतमंद की मदद ना करके अपनी राह पकड़ लेना भी किसी अपराध से कम नही होता। हम सभी का हर चीज को देखने का नजरियां अलग-अलग हो सकता है, परन्तु जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई जिसे हम भूलते जा रहे है वो तो यह है कि दूसरों से यदि आप अच्छा व्यवहार चाहते हैं तो फिर खुद्व भी अच्छा व्यवहार करना सीखिए।   

हम नही सुधरेंगें

चंद दिन पहले अर्न्तराष्ट्रीय खेलों के इतिहास के पन्ने पलटते समय एक बहुत ही रोचक तथ्य देखने को मिला। भारत द्वारा जीते गए मैंडलों के बारे में जब मैने विस्तार से जाननें की कोशिश की तो पाया कि हमारे खिलाड़ीयों ने अभी तक हुए सभी अर्न्तराष्ट्रीय खेलों के मुकाबलों में सबसे अधिक मैंडल कब्व्ी में ही जीते है। अब अपनी ज्ञियासा को मिटाने के लिए मैने इसके कारणों को खोजने का प्रयत्न किया। काफी माथा पच्ची के बात यह बात साफ हो पाई कि कब्व्ी में सबसे अधिक मैंडल जीतने का मुख्य कारण यह है कि हर भारतीय एक दूसरे की टांग खीचने में बहुत माहिर है। अब वो चाहे हमारा दोस्त, पड़ोसी या नेता ही क्यों न हो। हम खुद कुछ काम करें या न करें लेकिन दूसरों की टांग खीचनें को कोई भी मौका अपने हाथ से नही जानें देते।
आजकल हर समाचार पत्र और टी.वी. चैनल पर हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बहुमूल्य स्मृति चिंन्ह - बापू का गोल चश्मा, घड़ी, चप्पल, प्लेट और कटोरा की नीलामी के चर्चे जोरों पर है। सरकार के भीतर भी इन निशानीयों को बचाने पर बवाल मचा हुआ है। हर समय बापू का राग अलापने वाले देश के नेता ऐसे समय में न जानें कौन सी गहरी नींद में सो जाते है, और तब तक नही उठते जब तक विदेशी देश की बेशकीमती धरोहर को नीलाम नही कर देते।
जब पानी सिर से निकल जाता है, तो उस समय कुंभकर्णी नींद से उठ कर सरकार कुछ न कुछ ड्र्रामा दिखा कर जनता को गुमराह करने की कोशिश करती है। हमारी संस्कृति मंत्री ने तो यहां तक ब्यान दे डाला कि हाईकोर्ट के स्टे आर्डर के मुताबिक सरकार सीधें बोली में शमिल नही हो सकती थी, इसीलिए उसने माल्या की सेवाए लेने का फैसला किया है, और माल्या साहब ने उन्हें भारत सरकार के कहने पर खरीद भी लिया है।
सरकार की किरकरी तो उस समय हुई जब देश के सुप्रसिद्व उद्योगपति विजय माल्या ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। समाज सेवा के कार्यो में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने माल्या ने साफ तौर से यह कह दिया कि यह मेरा निजी फैसला था और यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मैं बापू की अनमोल निशानीयों को भारत वापिस लाने में कामयाब हो सका  हूँ। इससे पहले वो टीपू सुल्तान की तलवार भी ऐसी ही एक नीलामी में खरीद कर लाऐ थे।
सरकार की बेरूखी के कारण ही एक साधारण जनमानस गांधी जी के विचारों से दूर होता जा रहा है। हर कोई मानता है कि बापू की यह सभी चीजें गलत तरीके से देश से बाहर ले जाई गई है। जबकि इनकी जगह देश के सबसे बड़े सरकारी सग्रंहलय में ही हो सकती है। दुख की बात तो यह है कि हर पार्टी की सरकार इस धरोहर को बचाने में नाकाम रही है।
अब कुछ लोग टांग खीचने की आदत से मजबूर हो कर मीडियॉ में इस प्रकार की बातें उछाल रहें हैं कि शराब व्यवसायी विजय माल्या का तो गांधी जी के शराब विरोधी विचारों का कोई मेल नही बनता। माल्या जी, बापू का चश्मा तो करोड़ों में खरीद लिया लेकिन बापू जैसी दृष्टि और विचार कहां से लाओगे? वो तो पैसो से नही मिलते। कुछ लोगो के विचार में माल्या के इन चीजों को हासिल करने वाले प्रतीको की पवित्रता ही नष्ट हो गई है।
सुबह शाम बापू के नाम की रट लगाने वाले ढ़ोगी तो यहां तक कह रहे हैं कि देश में से बापू के अनमोल रत्नों को बचाने के लिए क्या हमारें पास केवल शराब उद्योगपति ही बचा था? क्या सरकार खुद या किसी अन्य देशभक्त को इस काम के लिए तैयार नही कर सकती थी। ऐसी बाते करने वाले यह क्यों भूल जाते है कि जो काम देश की 125 करोड़ अबादी और सरकार मिल कर नही कर पाए वो विजय माल्या ने अकेले अपने दम पर कर दिखाया। ऐसे लोगो की निगाह में विजय माल्या जैसे लोगो का महात्मा गांधी जैसे महापुरष के सिद्वांतो से कुछ लेना देना नही है। जबकि इतिहास साक्षी है कि गांधी जी ने कभी किसी व्यक्ति को उसके व्यवसाय या पेशे के आधार पर तिरस्कृत नही किया।
समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार विजय माल्या ने यहां तक कहा है कि बापू की इन चीजो से प्रेरणा लेते हुए यदि एक भारतीय भी गांधी जी के बताए हुए रास्ते पर चलने में कामयाब हो जाता है तो मैं यह समझूंगा कि करोड़ो डालर की चुकाई गई कीमत मेरे लिए कुछ अधिक नही है। मैं एक भारतीय  हूँ और मैं बापू जी का यह सारा सामान भारत सरकार को तोहफे में दे दूंगा। कहने वाले कुछ भी कहते रहे, लेकिन हर सच्चा देशवासी विजय माल्या के इस एहसान को आने वाले समय में एक लंबे अरसे तक याद रखेगा।
विजय माल्या के इस साहसिक कदम पर सभी देशवासीयों के साथ जौली अंकल उन्हें बधाई देते हुए इतना ही कह सकते है कि हर अच्छे काम की शुरआत में विरोध तो झेलना ही पड़ता है। आप नेकी की राह पर चलते रहें। आपको कोई कितना भी बुरा कहे सहन करते रहना क्योंकि आखिर परमात्मा अंधा तो नही, वो तो सब कुछ जानता है। जहां तक हम भारतवासीयों की बात करें तो यह पक्का है कि कोई कुछ भी करे ' हम नही सुधरेगें '  

संतोष की दौलत

बहुत ही पुराने समय की बात है कि एक बार एक राजा राज्य की प्रजा का हाल जानने के लिये अपने मंत्रीयों के साथ दौरे पर निकला। कुछ ही दूरी पर उन्हे एक भिखारी मिल गया। राजा ने अपने साथ चल रहे दरबारीयों से कहा कि इस भिखारी से पूछो कि इसे किस चीज की जरूरत है, और उसकी हर मांग को तुंरत पूरा किया जाये। भिखारी ने हंसते हुए कहा कि तुम्हारा राजा मेरी कोई भी इच्छा पूरी नही कर सकता। राजा के मंत्रीयो को काफी गुस्सा आया कि सड़क पर भीख मांगने वाला एक भिखारी उनके राजा की इस तरह खुल्ले आम बेईज्जती कर रहा है। बात जब राजा तक पहुंची तो उसने कहा कि तुम मुझे बताओ कि तुम्हें क्या चहिये? मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूगा।
भिखारी ने कहा कि कुछ भी कहने से पहले एक बार अच्छी तरह सोच लो। क्योंकि आज तक कोई भी आदमी मेरी इच्छा पूरी नही कर सका। राजा ने उस भिखारी की चुनोती को स्वीकार करते हुए कहा कि मेरे पास बेशुमार दौलत है। मेरे खजाने में कभी न खत्म होने वाले धन के अंबार लगे हुए है। शायद तुम जानते नही कि मैं एक बहुत ही ताकतवर राजा  हूँ। तुम एक बार अपनी जुबान से कुछ मांग कर तो देखो, मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकता  हूँ।
राजा के बार-बार जिद्द करने पर भिखारी ने कहा कि क्या तुम मेरा यह भीख मांगने वाला कटोरा किसी भी कीमती चीज से भर सकते हो? राजा ने जोर से हंसते हुए कहा बस इतनी सी बात थी। मैं खाने-पीने के सामान से तो क्या इसे सोने चांदी और हीरे मोतियो से भर सकता  हूँ। राजा ने पास खड़े अपनी वजीरो को हुक्म दिया कि इस भिखारी का कटोरा जल्दी से सोने की मुद्राओ से भर दो। कुछ ही देर में राजा के हुक्म के मुताबिक वजीरो ने उस भिखारी का कटोरा सोने की मुद्राओ से भर दिया। लेकिन यह क्या हुआ, वो अगले ही पल फिर बिल्कुल खाली था।
राजा ने फिर से हुक्म दिया की इस भिखारी के कटोरे को दुबारा से भर दो। परन्तु हर बार कटोरा भरते ही वो कुछ पलों में ही खाली हो जाता। आस पास खड़े सभी लोग भी इस नजारे को देख बहुत हैरान हो कर देख रहे थे। धीरे-धीरे यह बात पूरे इलाके में फैल गई, और पूरे राज्य की जनता वहां आ पहुंची। अब राजा की इज्जत और गौरव दांव पर था। राजा ने अपने वजीरो से कहा कि आज चाहे सारे राज्य की दौलत खत्म हो जाये, लेकिन इस भिखारी का यह कटोरा हर हाल में भरना ही चाहिये। जब रात तक यही सिलसिला चलता रहा तो राजा उस भिखारी के पैरो में गिर कर माफी मांगने लगा। उसने कहा कि अब मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नही बचा। तुम जीत गये और मैं अपनी हार स्वीकार करता  हूँ।
इतना सुनते ही भिखारी वहां से जाने लगा तो राजा ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिये उस भिखारी से यह पूछा कि तुम मुझे सिर्फ एक बात बता दो कि तुम्हारा यह भीख मांगने वाला कटोरा किस मिट्टी या धातू से बना हुआ है। भिखारी ने हंसते हुए कहा कि इसमें छुपाने वाली कोई राज की बात नही है। यह किसी धातू से नही आदमी के दिमाग की खोपड़ी से बना है। इसीलिये एक इच्छा पूरी होते ही इसमें सैंकड़ो और इच्छा जन्म ले लेती है। जो वस्तु इसे इसकी जरूरत के लिये मिलती है, उसी को और अधिक पाने की लालसा लिये इसका लोभ बढ़ता जाता है। इसी कारण आदमी सारी उंम्र भिखारी बन कर ही जीता है। जो व्यक्ति संतुष्ट है, चाहे उसके पास थोड़ा सा ही धन हो, फिर भी वह स्वयं को बहुत धनाढय समझता है।
जौली अंकल भी महापुरषो की इस बात को पूरे तौर से सत्य मानते है कि बड़ी से बड़ी दौलत से भी संतोष अच्छा है। इसीलिये याचक को अपने स्वामी से कुछ भी नही मांगना चाहिए, क्योंकि सबको सब कुछ देने वाला तो भगवान है। जब भी कुछ मांगना है, उसी से मांगो, क्योंकि वह देते-देते कभी नही थकता, इंसान ही उससे मुख मोड़ लेता है।         

दूरियॉ - नजदीकीयां

हैप्पी सिंह जब विदेश जाने लगा तो उसने अपने बचपन के दोस्त लक्की सिंह से कहा कि वो उसे यादगार के रूप में अपने हाथ में पहनी हुई सोने की अंगूंठी उतार कर दे दे। उसने जब इस का कारण पूछा तो उसने कहा कि मैं जब भी अपने हाथ में तेरी यह अंगूठी देखूंगा तो मैं तुझे याद कर लिया करूंगा। अब लक्की सिंह भी नहले पर दहले वाली कहावत पर बिल्कुल खरा उतरता था, उसने झट से कह दिया, मैं अपने किसी चहेते ध्दारा दी हुई यह अंगूठी तो तुझे नही दे सकता। हां अब जब कभी भी तू अपनी यह उंगली बिना अंगूठी के देखेगा तो तुझे जरूर मेरी याद आयेगी, कि मैने अपने दोस्त से एक अंगूठी मांगी थी, और उसने उसके लिये भी मना कर दिया था। इतनी छोटी सी बात को लेकर एक पल में बरसों पुरानी दोस्ती में खाई से बड़ी दरार बन गई। बचपन से इक्ट्ठे रहने वाले दो दोस्तो के बिछुड़ने से पहले ही उनके दिलों में दूरियॉ के बीज ने जन्म ले लिया।
विश्व भर के वैज्ञानिकों ने जमीन से चांद, सूरज और समुंन्द्र की लंम्बाई, चौड़ाई और गहराई तो नाप ली है। लेकिन अभी तक सारी दुनियॉ में कोई वैज्ञानिक ऐसा उपकरण ईजाद नही कर सके जो किसी के दिल की गहराई को जान सके। अभी तक कोई ऐसा उपकरण भी नही बना कि हम सामने वाले के दिल की बात को जान सके। इसीलिये शायद कहा जाता है कि आदमी दुश्मन से तो मुकाबला कर सकता है, लेकिन अपना कोई किस समय कैसा वार करेगा, उसे संभालना बहत मुश्किल है। हमारे मन में किसी के प्रति कितना स्नेह है या हम किसी के नजदीक रहते हुए भी उससे कितना दूर है, यह केवल हमारा मन ही जानता है। जब कभी हमारा कोई प्रिय व्यक्ति हम से दूर होता है, तो हमारा मन बार-बार उस करीबी की एक झलक पाने के लिये उसकी याद में तड़पता है। अक्सर लोग दूरियॉ या नजदीकीयों के बारे में बात करते समय मुख्य दो दूरियों की बात करते है। एक समय की दूरी और काल की। लेकिन सबसे खतरनाक दूरी का जिक्र करना भूल जाते है और वो होती है दिलों की दूरी।
हम सभी जानते है कि लालच की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी सुख नही मिलता। इस बात से भी कोई इंकार नही कर सकता कि जिस परिवार में अशांति रहती है वहां भगवान भी निवास नही करते। फिर भी जब कभी किसी कारण से घर में लोभवश कोई मन-मुटाव हो जाता हैं तो एक ही घर में रहते हुए दो सगे भाई आपस में बात करना तो दूर एक दूसरे की शक्ल भी देखना पंसद नही करते। परिवार और सगे रिश्तेदारो के बीच रहते हुए भी आज का इंसान एक दूसरे के दिलों से इतने दूर हो गये है कि उन्हें एक दूसरे के दुख-दर्द से कोई वास्ता नही रह गया। इस स्वार्थीपन के दौर में अधिकांश लोगो को पैसे के लालच ने अपने खून के रिश्तो से भी बहुत दूर कर दिया है। ऐसे लोगो के जीवन का एक मात्र लक्ष्य होता है पैसा और सिर्फ पैसा। पैसे के प्रति मोह रखने वाले लोगो का मानना है कि चमड़ी तो जाऐ पर दमड़ी नही जानी चहिये। लेकिन रिश्तो में दिलों की दूरियॉ की कीमत उस समय मालूम पड़ती है जब कभी वो सभी सुख सुविधाऐ होते हुए भी तन्हाह महसूस करते है। उस समय सब कुछ होते हुए भी अपने प्रियजनों की याद सताती है।
एक तरफ जहां हम सभी भगवान को याद करने के लिये बड़े-बडे लाऊड स्पीकर, ढ़ोल-ढ़फली बजा कर और कीर्तिन आदि का साहरा लेते है। ठीक इसी के उलट दूसरी तरफ एक मां को परदेस में रोजी-रोटी कमाने की मजबूरी में बैठे अपने बेटे को याद करने के लिये यह सभी ढ़ोंग नही करने पड़ते। एक पल में आखें झुका कर वो अपने बेटे के पास होने का एहसास महसूस कर लेती है। उसकी आंखो में हर समय अपने लाल की तस्वीर घूमती रहती है। जिस किसी को हम दिल से चाहते है वो मन का मीत सात समुंद्र दूर भी क्यूं न बैठा हो तो हमारा मन उसे हर समय अपने करीब ही महसूस करता है। जिस दिल में सच्चा प्यार होता है, वहां किसी प्रकार की दूरी के कोई मायने नही रह जाते।
हमारा घर ही संस्कारों की पहली पाठशाला होता है और माता-पिता हमारे प्रथम गुरू। अगर वो अपने बच्चो को बचपन से ही अच्छें संस्कार देते है, तो कोई ऐसा कारण नही हो सकता कि उनके परिवार में कभी भी किसी के दिल में दूरियॉ जन्म ले सके। पैसे से आप हर तरह की दुनियावी वस्तुऐ तो खरीद सकते हो, लेकिन सच्चा प्यार और मन की शंति केवल अपने प्रियजनों के प्यार से ही मिलती है। यह भी बहुत बड़ी सच्चाई है कि यदि हर इंसान की आधी इच्छाऐं भी पूरी हो जाये, तो उसकी सम्सयायें दुगनी हो जायेगी।
जौली अंकल का मानना है कि आपकी सभी से मित्रता हो यह जरूरी तो नही, लेकिन आप अपने मन में किसी के लिये दुशमनी न पालो तो आपकी अपने सगे-संबंधियो और प्रियजनों से दिलों की दुरियॉ अपने आप ही खत्म हो जायेगी।     

रिश्तों के दलाल

वैसे तो समाचार पत्रों में अक्सर सभी को चौंका देने वाले समाचार छपते ही रहते है, लेकिन कभी-कभी किसी खबर को पढ़ कर इतनी जोर से झटका लगता है कि सिर ही घूमने लगता है। ऐसा ही समाचार कुछ दिन पहले देश के सभी प्रमुख देैनिक समाचार पत्रो में छपा था कि एक हलवाई ने अढ़ाई रूप्ये वाले चार समोसे 10,000 रूप्ये में एक विदेशी जोड़े को बेच दिये। हमारे यहां सैल्समैनो की कई खतरनाक किस्में पाई जाती है। हर प्रकार के घटिया समान की हजारों खूबीयॉ इस तरह से ब्यान करते है कि हर कोई खुशी-खुशी अपने पर्स का मुंह इनके लिये खोल देता है। यह आपको किस कद्र नुकसान पहुंचा सकते है, आप स्वपन में भी नही सोच सकते।
इनमें सबसे खतरनाक किस्म होती है रिश्तो के दलालो की जिन्हें कुछ लोग मैरिज ब्यूरो का नाम भी देते है। कल तक जो काम पंडिंत और नाई करवाया करते थे, आज उसी काम ने एक अच्छे-खासे उघोग का दर्जा ले लिया है। कुछ कारोबारीयो ने अच्छे खासे एयरकन्ड़ीशनर दफतर बना कर हर जात-बिरादरी और ऊंचे रूतबे वालो लोगो के लिये यह मैरिज ब्यूरो की सेवा शुरू की है। परिवार की हैसीयत के मुताबिक रिश्ता करवाने वाले यह दलाल लोग अब शादी की रकम में से जमीन जयदाद के सोदो की तरह मोटा हिस्सा कमीशन के रूप में मांगने लगे है।
एक और जहां व्यापारी वर्ग अपने कारोबार में लाखो रूप्ये निवेश करके भी इतना पैसा नही कमा सकता जितना यह लोग अपनी जुबान के हेर-फेर में जरूरतमंदो को उलझा कर एक ही दिन में कमा लेते है। एक बार कोई अपने बच्चे के रिश्ते की बात अपने मुंह से इनके सामने निकाल दे, फिर ऐसे लोग उसका पीछा तब तक नही छोडते जब तक दुल्हन उनके घर नही पहुंच जाती।
अपनी कमीशन के लालच में चाहे यह आपके परिवार के बारे में कुछ जानते है या नही लेकिन यह एक दूसरे को दुल्हे-दुल्हन की इतनी खूबीयॉ गिनवाते है कि आप के पास उस रिश्ते को हां कहने के इलावा कोई चारा ही बचता। अब लड़का चाहे सड़क पर शाम को नीम का दातून बेचता हो, उसे यह टिम्बर मचैंन्ट बना कर ही लड़की वालो के सामने पैश करते है। विदेश से आऐ हुए चपरासी और ड्राईवर को भी एक रईसजादे की तरह से आपको मिलवायेगे। अब शादी के बाद ऐसे रिश्ते कोई कितने दिन तक निभा सकता है, इससे इनका कुछ लेना-देना नही होता।
उस दिन एक ऐसे ही शादी करवाने वाले मैरिज ब्यूरो के दफतर में जाने का मौका मिला तो मैं उनके काम करने के तरीके को देख हैरत में आ गया। इनके यहां सभी काम करने वाले लोग गिरगिट से जल्दी रंग बदलने में माहिर थे। दूसरे कमरे में दो परिवारो के बीच शादी की बातचीत चल रही थी। अचानक लड़के के पिता का मोबईल फोन बज उठा। दूसरी तरफ से आवाज आ रही थी कि 50 कार 50 मोटर साईकल और 60 स्कूटर भेज रहा  हूँ। लड़के के पिता ने कहा कि तुम्हारी कार तो बहुत मंहगी है, अगर रेट कुछ कम करो तो फिर चाहे 100 भिजवा देना। रिश्तो के दलाल ने दबी आवाज में लड़की के पिता से कहा कि इतनी मोटी पार्टी तो बहुत ही किस्मत वालो को ही मिलती है, अब देरी मत करो अभी ही शगुन की मिठाई जल्दी से मंगवा लो। आपकी बेटी तो रानी बन कर रहेगी। इससे पहले कि लड़की के मां-बाप लड़के के पिता से कुछ और पूछते मैरिज ब्यूरो के मालिक ने कहा कि इनकी तरफ से तो हां है। अब तो आप भी जल्दी से सगाई की अंगूठी मंगवा लो।
लड़की के माता-पिता लड़के वालो की बातचीत से काफी प्रभावित होते हुए बिना और कुछ भी जाने हां कह गये। जब लड़की वाले चले गये तो मैरिज ब्यूरो वाले ने पूछा कि आपका यह कार और स्कूटर का शोरूम किस शहर में है। लड़के के पिता ने कहा कि हमारा तो कोई ऐसा शोरूम नही है। दलाल ने हैरान होते हुए पूछा कि आप अभी 50 कारे, स्कूटर और मोटर-साईकल आदि मंगवा रहे थे। अब लड़के के पिता को सारी बात समझ आ गई, उसने उस दलाल को बताया कि हमारी तो एक छोठी सी खिलानो की दुकान है। यह सारा आर्डर उन खिलोनो का ही था। अब यह रिश्तो का दलाल दोनो पार्टीयो से मोटी रकम कमीशन के रूप में ले चुका था। यह सुनने के बाद उसके चेहरे पर घबराहट की लकीरे साफ झलक रही थी, साथ ही उसे यह डर सता रहा था कि अब लड़की के पिता को क्या मुंह दिखायेगा।
जौली अंकल ठीक ही कहते है कि कपटी और मक्कार लोग दूसरो को बेवकूफ बना कर थोड़ी देर के लिये तो खुश हो जाते है, लेकिन असलियत खुलने पर उन्हे सबके सामने जलील होकर रोना ही पड़ता है।  

खुशबूदार फूल

एक दिन वीरू बहुत देर से दारू और सिगरेट पीते हुए जोर-जोर से रोता जा रहा था। उसके दोस्त जय ने जब उससे रोने का कारण जानना चाहा तो तो उसने कहा कि मैं अपनी गर्ल-फ्रैन्ड़ से बहुत दुखी हो गया  हूँ, और उसे भुलाने की कोशिश कर रहा  हूँ। जय ने फिर पूछा लेकिन इसमें इतना रोने की क्या बात है? वीरू ने अपने आंसू पोछतें हुए कहा परन्तु मुझे उस गर्ल-फ्रैन्ड़ का नाम याद नही आ रहा कि वो कौन थी? वीरू ने अपने दोस्त जय से पूछा कि जब कभी तेरे से कोई चीज गुम हो जाए या तू उसे रख कर भूल जाए तो तू क्या करता है? जय ने मुस्कराते हुए कहा कि इसमें परेशान होने की क्या बात है, मैं तो बाजार से नई ले आता  हूँ। लेकिन गर्ल-फै्रन्ड तो बाजार में नही मिलती, अब मैं क्या करू, यह कह कर वीरू ने नशे में फिर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया।
जय को अब तक समझ आ चुका था कि वीरू ने जरूरत से अधिक नशा कर लिया है। उसने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उसे समझाना शुरू किया, कि गांधी जी जैसे महापुरष सदैव समझाते रहे है कि शराब इंसान की सबसे बडी दुश्मन है। नशा चाहे किसी भी प्रकार का हो उससे कभी किसी मसले का हल नही निकलता। इससे न सिर्फ हमारे घर-परिवार और पैसे की बर्बादी होती है ब्लकि साथ ही हमारे शरीर और आत्मा को भी बहुत नुकसान पहुंचता है। नशे में टून वीरू ने उसकी बात को काटते हुए कहा, कि तुम्हें तो दारू में सिर्फ बुराईयां ही बुराईयां दिखाई देती है। क्या तुमने कभी विद्ववान लोगो के प्रवचन सुने है, वो हमेशा एक ही बात समझाते है कि दुश्मन को भी गले से लगा कर रखना चहिये। अब यदि मैं शराब को अपने गले से लगा कर रखता  हूँ, तो तुम्हें क्या दिक्कत है?
लगता है तुम्हारे जैसे लोग शराब के फायदो के बारे में बिल्कुल कुछ जानना ही नही चाहते, नही तो मेरे साथ ऐसी बात नही करते। हमारे देश में सबसे अधिक बीमारीयॉ पानी से ही फैलती है। पानी में अनेक प्रकार के बैक्टीरयॉ और छोटे-छोटे न जाने कितने ही कीटणु होते है? जबकि दारू तो बिल्कुल साफ-सुथरे फलो का रस निकाल कर बनाई जाती है। इसमें पानी को भी अच्छी तरह से कई बार छननी से छान कर, फिर अनेको बार उबाल कर साफ सुथरे तरीके से डाला जाता है। हर साल हमारे देश में सबसे अधिक मरने वालो की संख्या पानी के कारण ही है, अब वो चाहे पानी की बीमारीयो से मरे हो या बाढ़ से। वीरू ने शराब के नशे में अपनी लड़खड़ाती जुबान से बड़ी मुश्किल से अपनी बात पूरी की।
जय ने वीरू को थोड़ा संभालते हुए कहा कि क्या तुम जानते हो कि हमारे देश में सड़क हादसों में मरने वाले 10 प्रतिशत से अधिक लोग दारू के नशे के कारण मरते है। वीरू ने भी लगता है कि हार न मानने की कसम खा रखी थी, उसने अपने दोस्त की बात काटते हुए कहा कि बाकी के सभी 90 प्रतिशत लोग तो बिना दारू पीये ही मरते है। अब तुम खुद ही देख लो कि बिना दारू पी कर मरने वालों की संख्या हम जैसे लोगो से कितनी अधिक है।
जय अच्छी तरह से जानता है कि हर सफलता की शुरूआत लडखडहाट से ही होती है इसलिए इंसान को कभी घबराना नहीं चहिये। अधिकाश: गुनाह आदमी जानबूझ कर नहीं अंजाने में कर बैठता है लेकिन इन्हें क्षमा करने वाला सचमुच महान कहलाता है। इन्ही बातो से प्रेरित हो कर जय ने एक बार कोशिश करते हुए वीरू को कहा कि अगर यह सब सच होता तो हमारी सरकार हर शराब की बोतल और सिगरेट के पैकेट पर 'षराब और सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है' क्यूं लिखते? झट से वीरू ने जवाब देते हुए कहा कि इतना तो मैं नही जानता, लेकिन तुझे शायद यह नही मालूम की दारू की सभी दुकानें भी हमारी सरकार ही चलाती है।
इससे पहले की जय आगे कुछ और कहता, वीरू ने कहा, कि क्या तुमने कभी उन लोगो के बारे में सोचा है जो शराब और सिगरेट बनाने वाली कम्पनीयों में काम करते है। अगर यह सब कम्पनीयॉ बंद हो जाऐगी, तो वहां काम करने वालो की रोजी-रोटी और उनके परिवार वालों के सपनो का क्या होगा? मैं तुम्हारी तरह स्वार्थी नही  हूँ कि केवल अपनी सेहत और फैफड़ो की खातिर ऐसे हजारो-लाखो लोगो को बेरोजगार करके उनके सपनो को चूर-चूर कर दू।
जय ने दुखी होते हुए कहा, तू जितनी शराब पी सकता है, पी, आज के बाद मैं तुझे कभी नही रोकूगा। इस तरह के हालात में जौली अंकल जय और वीरू जैसे लोगो से एक छोटी सी बात कहना चाहते है कि जिस व्यक्ति ने जीवन में उम्मीद खो दी उसने सब कुछ खो दिया। परमात्मा ने हमें खुशबूदार फूल बनाया है, क्या हम सभी सब तक अपनी खुशबू फैला रहे हैं?    

कारीगर

हर कोई अपने सपनो का घर बनाने के लिए अपनी हैसीयत के मुताबिक बढ़िया से बढ़िया कोशिश करता है। इसके बावजूद भी कुछ ही घरों को देख कर यह कहा जाता है कि वाह क्या घर बनाया है। इसका मुख्य कारण होता है घर बनाने वाले कारीगर का कमाल। कुछ कारीगरो के हाथ में ऐसा जादू होता है कि वो साधारण से पथ्थर में से भी ऐसी मूर्ति तराश देते है कि सारी दुनियॉ उस मूर्ति के पांव पर अपना सिर झुका देती है। कुछ समय पहले तक साधारण से पथ्थर में एक आम आदमी को भगवान का रूप नजर आने लगता है। सफेद संगमरमर के पथ्थर से बने ताजमहल की खूबसूरत कारीगिरी की मिसाल पूरी दुनियॉ में नही मिलती।
एक बहुत धनी सेठ के पास ऐसा ही जादूगर किस्म का कारीगर काम करता था। उस सेठ का काम बड़ी-बड़ी इमारतो का निर्माण करवाना था। पूरे शहर में इस कारीगर की वजह से उस सेठ की धाक थी, कि इससे बढ़िया इमारत और बंगला पूरे शहर में कोई नही बना सकता। कारीगर भी हर काम में अपनी पूरी जान लगा देता था। उसने उस सेठ के परिवार के अनेक सदस्यो के लिए कई सुन्दर घर भी बनाऐ थे। जो पूरे शहर में अलग ही किस्म की मिसाल थे।
इस कारीगर के जीवन का अधिकांश हिस्सा धनी सेठ की सेवा में ही बीता। सेठ जी भी कारीगर के बच्चो की शादी एवं हर अन्य मौके पर उसकी मदद करते रहते थे। उसके हर सुख-दुख में सारी जिम्मेंदारी के साथ उसका खर्च भी सेठ जी ही उठाते थे। एक दिन वो कारीगर सेठ जी के पास प्रार्थना लेकर गया और बोला कि अब उस का शरीर काम करने में उसका साथ नही दे रहा और अधिक काम करने में उसने अपनी असमर्था जाहिर करते हुए सेवा-निवृत होने की पेशकश की।
सेठ जी ने सारी बात सुनने के बाद उस कारीगर से कहा कि आज तक तुमने मेरे लिये एक से एक सुन्दर इमारत बनाई है। मैं तुम्हें जाने से नही रोकूगा लेकिन मेरी इच्छा है कि तुम सेवानिवृत होने से पहले मेरे लिए आखिरी बार एक बहुत ही सुन्दर सा घर बना दो। बरसो से सेठ जी के एहसानों में दबे होने के कारण उस कारीगर ने न चाहते हुए भी सेठ जी को मौन रहते हुए अपनी स्वीकृति दे दी।
अगले ही दिन से उस नये घर का काम शुरू हो गया। लेकिन इस बार उस कारीगर का मन काम में नही लग रहा था। हर समय उसके मन में एक ही विचार आ रहा था कि यह सेठ न जाने और कितने दिन तक मेरा खून चूसता रहेगा। कई बार सेठ जी के कहने के बावजूद भी वो पहले की तरह काम में रूचि नही दिखा रहा था। सेठ जी ने इस नये घर के लिये दूसरे शहरो से हर प्रकार का बढ़िया समान मंगवा कर दिया, लेकिन कारीगर तो किसी तरह यह काम जल्द से जल्द खत्म करने की फिराक में था।
जैसे तैसे उसने काम खत्म करके सेठ जी से छुट्टी की इजाजत मांगी। सेठ जी ने नये घर को अच्छी तरह निहारहने के बाद उसकी चाबी कारीगर को देते हुए बोले की तुम ने सारी जिंदगी जो मेरे लिए काम किया है, मैं उसकी कोई कीमत तो नही आंक सकता, लेकिन मैं अपनी तरफ से यह घर तुम्हें तोहफे में देता  हूँ। आज से तुम अपने परिवार के साथ यहां रह सकते हो। यह सुनते ही कारीगर के दिलो-दिमाग में झनझनाहट होने लगी, उसे इतनी जोर से सदमा लगा कि अगर मुझे पता होता कि यह घर में अपनी लिये बना रहा  हूँ तो मैं इसको बहुत ही बेहतर तरीके से बना सकता था।
हम अपने जीवन में जाने-अनजाने बहुत सी ऐसी गलतीयॉ कर देते है, जिसका हमें जिंदगी भर अफसोस बना रहता है। कुदरत हमें ऐसे मौके बार-बार नही देती। जब तक हमें गलती का एहसास होता है, उस समय तक इतनी देरी हो चुकी होती है कि हम चाह कर भी उस भूल को सुधार नही सकते। जौली अंकल का तो सदा से ही यह मानना है कि आप आज जो कोई कर्म कर रहे हो उसे पूरी ईमानदारी और बुध्दिमानी से करो क्योंकि उसी में आपका भविष्य छुपा होता है।         

आखिरी पहर

कुछ दिन पहले चुनाव अधिकारी जब मेरे पड़ोसीयों के घर मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए आये तो उन्होने घर की मालकिन से उसकी उंम्र जाननी चाही तो उसने झट से कह दिया कि 25 साल। पीछे खड़े उसके पति ने उसे डांटते हुए कहा कि इनको बिल्कुल ठीक-ठीक जानकारी देनी होती है। तुम 25-30 साल पहले भी खुद को 25 साल का कहती थी। आज भी अपने आप को 25 साल का बता रही हो। तुम क्या सारी उंम्र 25 साल की ही रहोगी?
उस औरत ने पलटवार करते हुए कहा कि मैं तुम्हारी तरह नही हूँ कि एक बार कुछ कहूं और कुछ देर बाद कुछ और। मैं तो जो भी बात एक बार कह देती  हूँ, हमेशा उसी पर कायम रहती  हूँ। पति ने कहा, मेरे से बाद में झगड़ा कर लेना पहले अधिकारीयो को अपनी उंम्र ठीक से बता दो। अब वो औरत बोली कि आप लिख दो 25 साल और कुछ महीने। अधिकारी ने कहा कि कितने महीने? परेशान पति बोला, जी आप 25 साल और 150-200 महीने लिख दो।
सिर्फ औरते ही नही आदमी भी बुढ़ापे के नाम से घबरा कर अपने बालो को रंग और चेहरे पर अनेक प्रकार की क्रीम लगा कर अपनी उंम्र को छुपाने की कोशिश करते है। कारण कोई भी हो इन्सान उंम्र के किसी भी पढ़ाव पर अपने आप को बुढ़ा मानने को तैयार नही होता। बुढ़ापे के नाम से ही लोगो को घबराहट और चिंता सताने लगती है। हालंकि आज तक चिंता करने से कभी किसी सम्सयॉ का हल नही निकला। उल्टा ंचिंता आदमी को चिता के और नजदीक ले जाती है।
हम भारतीय बहुत खुशनसीब है कि अभी तक हमारे देश में पूरे परिवार के सभी सदस्य बर्जुगो को बहुत ही इज्जत और प्यार देते है। जब कभी कोई विदेशी हमारे यहां आते है तो वो यह देख कर हैरान होते है कि हमारे यहां किस तरह से बच्चो को बर्जुगो के प्रति भरपूर प्यार, इज्जत और सम्मान करना बचपन से ही सिखाया जाता है। विदेशो की तरह उनको आश्रम में मौत का इंन्तजार करने के लिये नही छोड़ दिया जाता।
अब अगर हम हकीकत को समझने की कोशिश करे, तो पाऐेगे कि आदमी की सोच और विचारो के बदलते ही आदमी का खान-पान, रहन-सहन, यहां तक की उसकी सारी दुनियां ही बदल जाती है। विध्दवान लोग सच ही कहते है कि बुढ़ापा शरीर से नही इंसान की सोच में होता है। हर आदमी के अंन्दर एक अच्छा इंन्सान छुपा होता है, जरूरत है उसे जगा कर बाहर लाने की। जो कोई थोड़ा सा प्रयत्न करते है, उन्हें इस कार्य में सदैव सफलता मिलती है।
आप चाहे एक आम इंन्सान हो या कोई सेलिब्रिटी, आप अपनी पहचान को भुला कर जिंदगी के हर रंग में खुशी पा सकते है। यह बात भी ठीक है कि बढ़ती उंम्र के साथ शरीर में पहले जैसी ताकत नही रहती लेकिन अगर आप मन से अपने आप को जवां महसूस करते है तो आप सदा के लिए जवान रह सकते है। जिंदगी के प्रति सदा सकारात्मक दृष्टिकोण बनायें। बर्जुगो का भी परिवार और समाज की तरक्की में अहम योगदान होता है। आपके ध्दारा किया हुआ एक भी समाजिक नेक कार्य आपको बेशकीमती लाखो दुआऐ दिला देता है।
आप अपनी गली, मुहल्ले या सोसाईटी में होली, दीवाली या नये साल के मौके पर अपनी हिचकिचाहट को मिटा कर बच्चो के साथ-साथ रंगारंग कार्यक्रमों में भाग ले सकते है। इससे आपके अंदर छुपी हुई प्रतिभा को देख कर आपके प्रियजनों को दातों तले उंगुलीयॉ दबाने पर मजबूर होना पड़ेगा। आप जीवन के इस मोड़ पर भी यह साबित कर सकते है कि आपके अंदर पहले जैसा जोश अभी बाकी है। बच्चो की तरह आप सब बर्जुग मिल कर वर्ल्ड सीनियर डे आदि मना सकते है। अपने परिवार के सदस्यो से कुछ अधिक इच्छा रखने की बजाए समय-समय पर उनको मोके के अनुसार कुछ न कुछ तोहफा भेट करे। इससे सारे परिवार का भरपूर स्नेह आपको मिलने लगेगा।
छोटी-मोटे दुख एवं परेशानीयॉ जिंदगी का ही एक अंग है। बच्चो और रिश्तेदारो से अधिक अपेक्षाएं न रखें। अंत में बर्जुगो से एक ही विनती है, कि वो अपनी हर जरूरत और ख्वाहिश को पूरा करने के लिये घर वालो की मजबूरीओ को समझते हुए छोटी-छोटी बातो पर जिद्द न करे। अपनी इच्छा शक्त्ति को थोड़ा सा बढाते हुऐ आत्मविश्वास से घर में शंति के साथ रहने का प्रयत्न करे। इससे आपके जीवन के इस आखिरी पहर से आपकी सभी परेशानीयॉ छूमंतर हो जायेगी। फिर आप देखेगे कि न सिर्फ जौली अंकल बल्कि आपके घर वाले भी सुबह शाम आपको सलाम करेगे।