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शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

जायें तो जायें कहां

मुसद्दी लाल जी को अपने बाजू के थोड़े से दर्द को ठीक करवाने के लिये आज अस्पताल में भर्ती हुए लगभग दो महीने होने वाले है। इसी दौरान जमाने और अपनी उंम्र की परवाह किये बिना सुबह-शाम एक सुदर सी नर्स को निहारते-निहारते वो मन ही मन वो उसे चाहने लगे थे। घर-परिवार और समाज के बंधनो को देखते हुए वो इतनी हिम्मत नही जुटा पा रहे थे कि उस नर्स के सामने अपने प्यार का इजहार कर सके। आज सुबह जब वोहि सुंदर नर्स मुसद्दी लाल जी का चैक-अप करने आई तो मौके का फायदा उठाते हुए उन्होनें झट से उसका हाथ पकड़ते हुए कह दिया कि आपने तो मेरा दिल ही चुरा लिया है। नर्स ने झटके से अपना हाथ छुड़ाते हुऐ कहा मुसद्दी लाल जी आप का यह इल्जाम तो बिल्कुल झूठा है। हमनें तो सिर्फ आपकी किड़नी ही चुराई है, आपके दिल को तो हमने हाथ भी नही लगाया।
हर तरफ से रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, कालाबजारी, लूटपाट की मार सहते-सहते अब तो आम आदमी दुख-दर्द में अपना इलाज करवाने के लिये अस्पतालों में भी जाने से घबराने लगा है कि न जाने अस्पताल से घर लौटते समय कौन-कौन से अंग गायब हो जाये। शरीर के अंगो के इलावा बच्चो तक की चोरी एक आम बात बनती जा रही है। आये दिन समाचार पत्रों और टीवी समाचारों में मानव अंगो की तस्करी करने वाले डॉक्टरो और दलालों के बारे में पढ़ कर तो यही महसूस होता है कि यह लोग भगवान से रावण बन चुके है। कोयले की दलाली करने वालों का मुंह काला होते तो जमाने ने देखा है, परन्तु मानव अंगो की तस्करी, चोरी और खून की दलाली करने वालो ऐसे खतरनाक दरिदों को क्या कहा जायें?
गैरकानूनी तरीके अपनाते हुए यह लोग अस्पताल के कर्मचारीयों की मदद से गरीब, लाचार और नशेयड़ीयों को चंद रूप्यों का लालच दिखा कर उनके शरीर से किडनी, खून और अन्य कई जरूरी अंग निकाल कर लाखों रूप्यों में रईसो को बेच देते है। इतना ही नही कुछ लोग डॉक्टरो की मिली भगत से जानवरो और नकली खून की मिलावट करके मरीजों के शरीर तक पहुंचा देते है। मानव अंगो की तस्करी करने वाले रैकेट सरेआम अपने कारनामों को अंजाम दे रहे है। इन लोगो का जाल देश की राजधानी दिल्ली से लेकर पूरे देश में फैला हुआ है। लगता है कि पैसा कमाने के लालच ने डॉक्टरो और इस पवित्र पेशे से जुड़े अन्य कई लोगो को ही मानसिक रोगी बना दिया है। यही नही कुछ डॉक्टर निजी स्वार्थ हेतू पायलटो को बिल्कुल कोरा स्वस्थता प्रमाणपत्र जारी कर देते है नतीजतन अब शराब पीकर गाड़ीया चलाने के साथ विमान उड़ाने के मामले भी सामने आ रहे है। ऐसा करने वाले डॉक्टरों को भगवान का तो क्या शैतान का दर्जा भी नही दिया जा सकता है।
आजकल हर उंम्र में जवां दिखने की लालसा ने डॉक्टरो की मोटी कमाई का काम और भी आसान कर दिया है। औरते तो सदा से ही सुदर, जवां और आर्कषक दिखने के प्रति सजग रही है। अब तो आदमी भी अपने चेहरे के आव-भावों को मनमोहक सुंदर और स्मार्ट लुक देने और अपने चाहने वालो के दिलों में अपनी छाप छोड़ने में जुटे है। चेहरे और शरीर के अन्य अंगो को और आकर्षित बनाने के लिये डॉक्टर लोग मनचाही कीमत वसूल रहे है। यह सत्य आज किसी से छिपा हुआ नही है कि कोई भी इलाज शुरू करने से पहले हर डॉक्टर मरीजो से अनेको गैरजरूरी टेस्ट करवाने को कहते है। जहां से डॉक्टर साहब को एक मोटी रकम कमीशन के रूप में मिलती है।
दुख और हैरानगी की बात तो यह है कि जैसे-जैसे पढ़ाई लिखाई बढ़ती जा रही है वैसे ही लोगो की अक्कल मोटी होती जा रही है। जितने लोग अधिक पढ़ाई लिखाई करते जा रहे है उतने ही मानसिक रोगी अधिक होते जा रहे है। हमारे नेता ऐसी घटनाओं के बारे में सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहना चाहते है। उन्हें यह नही भूलना चहिये कि समय आने पर जनता नेताओ को बिना किसी आहट के ही पटक देती है। समझदार लोग इस गुम चोट से बचते हुए सबक सीख लेते है और जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न करते है।
समस्याएं कितनी भी अधिक और बड़ी क्यूं न हो, हर समस्यां का कोई न कोई समाधान भी जरूर होता है। सिर्फ जरूरत होती है कि हर समस्या को सदा एक-एक करके ही उठाया जाये। ज्ञानी लोगो का मानना है कि थोड़े से प्रयास के साथ सब कुछ संभ्भव हो सकता है। हमारा जीवन तभी सार्थक है, जब तक उसमें परोपकार शामिल हो। चिकित्सा व्यवसाय से जुडे हर शक्स को यह याद रखना चहिये कि संसार का कोई भी धर्म सेवा के धर्म से बड़ा नही है। केवल धन से अगर सुख मिल सकते तो शायद इस दुनिया में कोई दुखी नहीं होता।
धन के लालच की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी सुख नही मिलता। भगवान रूपी डॉक्टरो से एक ही प्रार्थना है कि मेहनत करके धन कमाना कोई बुरी बात नही लेकिन लोगो के दिलों में विश्वास को कायम रखने का प्रयास करो।
ऐसे हालात में जौली अंकल के मन से तो केवल एक ही आवाज बार-बार उठती है, कि अगर दुख-दर्द से कहारहते मरीज की मदद डॉक्टर लोग भी नही करेगे तो हमे सिर्फ इतना बना दो कि एक आम आदमी जायें तो जायें कहां?  

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