भगवान ने हमारे शरीर के सभी अंग जैसे हाथ पैर, आंखे और यहां तक की सभी के खून का रंग भी एक ऐसा जैसा बनाया है। लेकिन आज का मानव इन बातो का दरकिनार करते हुए कभी अमीर-गरीब, कभी जात-पात, कभी छोटे-बड़े का मुद्दा बना कर हर किसी को बेगाना समझने लगा है। ऐसी सोच रखने वालो की आखों पर न जाने कौन सा ऐसा पर्दा पड़ा हुआ है कि उन्हें प्यार और सद्भावना की कोई भी बात अच्छी नही लगती। गैरो की बात यदि छोड़ भी दे तो दोस्ती-यारी, प्यार और रिश्तेदारी जैसे आपस में करीबी रिश्ते होने के बावजूद भी हम अक्सर दिल से न चाहने वाले को एक अनजान और बेगाने की तरह देखने लगे है।
अपने सभी धर्म ग्रंधों और पीर-फकीर लोगो की बात मानें तो हर इंसान भगवान का ही एक बहुत छोटा सा अंश मात्र है। जिस प्रकार सूरज से निकली अनगिनत किरणें बिना कोई भेदभाव किए एक पल में सारी दुनियां को रोशन कर देती है ठीक उसी प्रकार हर जीव का वजूद आत्मा रूपी अंश के माध्यम से परमात्मा से जुड़ा हुआ है। ऐसी ज्ञानवर्दक बातो को समझाने वाले दुनियां के जाने मानें ज्ञानी और विद्वान लोगो की सोच में तो कभी कोई कमी हो नही सकती, हां आज की नोजवान पीढ़ी न जाने किस मिट्टी से बनी हुई है कि ऐसी ज्ञान की बाते उनके सिर के ऊपर से छंलाग लगाती हुई निकल जाती है।
जब हमें अपने किसी हसीन सपने को पूरा करना हो या निजी स्वार्थ हेतू परिवार या समाज में किसी व्यक्ति से अपना कोई जरूरी काम निकलवाना होता है, तो हम उसके सामने गिड़गिड़ाते और प्रार्थना करते है यहां तक की हम उसकी सभी कमीयों को भूल कर उसके दीवाने हो जाते है। जैसे ही हमारा स्वार्थ पूरा हो जाता है, तो हमें अपने उस मददगार के साथ बैठ कर मुस्करहाना तो दूर कुछ पल इक्ट्ठे गुजारने भी मुशकिल लगने लगते है। जब कभी हमें पल भर के लिये भी यह महसूस होता है कि कोई दीन-दुर्बल अपने किसी निजी कार्य के लिये हमारे पास आ रहा है तो हम ऐसे लोगो के दर्द को सुने-समझे बिना उनकी मदद करने से पहले ही उनसे नजरें चुराने में अपनी होशियारी समझते है।
हम अपने मन की बात को नकारते हुए सभी परिवारिक और समाजिक मूल्यों को भूल कर निजी हितो को प्राथमिकता देने लगे है। क्या सच में हमारे अंदर इंसानयित का बीज मर चुका है, क्या आज हमारे स्वार्थ सभी रिश्तो से बड़े हो गये है? समय पा कर जैसे-जैसे हमारे नये रिश्ते बनने लगते है तो बरसों पुराने दुख-दर्द के संगी साथी हमें बेगाने से दिखाई देने लगते है। इस तरह के हालात को देखते हुए कभी-कभी मन में एक सवाल बार-बार उठता है कि भगवान ने हमारे शरीर में सब कुछ अच्छा बनाते हुए भी न जानें गलती से यह स्वार्थीपन की कमी कैसे छोड़ दी?
देश में दहशत फैलाने और दंगे करवाने वाले दरिंदें अपने-पराये के फर्क के साथ अपने प्रियजनों को भी बेगाना समझने लगे है। आज का नौजवान जब पैसे की चमक में अंधा होकर अपने ही माता-पिता तो क्या देश के खिलाफ खून-खराबे पर उतर आता है, तो ऐसी सोच रखने वालो से देश के प्रति प्यार, इज्जत और सम्मान की कामना करना हम सभी की नादानी होगी। ऐसे देश और समाज के दुश्मन ताकत और पैसे के बल पर सदा दूसरों को झुकाने की कोशिश करते है, जबकि असल में जरूरत है खुद ऐसे लोगो को झुकने की। सभी को इक्ट्ठा करने के प्रयास उस समय तो बिल्कुल ही बेकार हो जाते है जब आप अपनों को बेगाना समझने लगते है।
इससे पहले की और अधिक देर हो जाये, देश में धर्म, जाति, भाषा को लेकर पैदा किये हुए बेगानेपन को खत्म करने के लिये हर किसी को अपने इस नजरियें में बदलाव लाना होगा। हमें सभी छोटे-बड़ो को प्यार से गले लगाने के बारे में सोचना और सीखना होगा। एक दिन-रात में न सही कम से कम सप्ताह में एक बार हमें समाज में फैले हर प्रकार के भेदभाव को मिटाने के लिये इस नेक कार्य करने का संकल्प तो लेना ही होगा। जब हम सभी इस बात को मानते है कि हर दिल में ईश्वर का वास होता है, तो हमें कभी भी किसी का दिल नही दुखाना चहिए। हमारे व्यावहारिक जीवन में यह संभव नही है कि हम सभी से मित्रता कर सके, परन्तु इसमें घबराने की कोई बात नहीं, हम इतना तो कर सकते है कि हम किसी से दुश्मनी न करें। अपनो को बेगाना बनाते समय अंहकार हमारे मन में अनेक प्रकार के बुरे कार्यो का जन्म देता है, इसलिए इससे सदा बचना चहिए। प्यार के रिश्ते को निभाने वाले हर नेक व्यक्ति को आने वाली पीढ़ीयां उसके द्वारा किये हुए जनहित के काम और गुणों से याद करती है।
बेगानेपन की सोच को मिटाने के लिये हमें सबसे पहले यह मानना होगा कि जात पात में कुछ नही रखा, हम सभी एक ही परमपिता परमात्मा की संतान है। कोई छोटा या गरीब केवल इसलिये है क्योंकि कोई दूसरा बड़ा और अमीर है। जौली अंकल भी तो यही कहते है कि फिर क्यूं न सभी फर्क मिटा कर एक दूसरे के दिल का दर्द समझते हुए इस बेगानेपन को खत्म करके सारे समाज को महकाने का प्रयास करे।
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