Life Coach - Author - Graphologist

यह ब्लॉग खोजें

फ़ॉलोअर

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

तो मैं क्या करू ?

जीवन से जुड़ी सदीयों पुरानी कुछ ऐसी सच्चाईयां है जिसमें कभी कोई बदलाव नही आता। इसी प्रकार की एक कहानी कुछ इस प्रकार है। एक दिन बहुत भयंकर तूफान के साथ भारी बरसात हो रही थी। साथ ही बर्फीली हवाओं के साथ कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। ऐसी अंधेरी रात में एक बर्जुग को उसके बहू और बेटे ने धक्के देकर अपने घर से निकाल दिया। वो बर्जुग ठंड में ठिठुरता और कांपता हुआ आधी रात को डरते-डरते अपने बेटे के पास आकर गिड़गिड़ाता हुआ बोला कि बाहर बहुत जोर की ठंड पड़ रही है। यदि घर के पिछवाड़ें में रखा हुआ एक पुराना कंबल तुम मुझे दे दो तो मैं खुद को खुल्ले आसमान के नीचे इस तुफानी रात में ठंड की मार से थोड़ा बहुत बचा लूगा। तुम्हारी बहुत मेहरबानी होगी, उस बर्जुग ने कंपकपाते हुए बड़ी ही मुशकिल से अपनी बात पूरी की।
पत्नी की खूबसूरती के नशे में चूर उस आदमी ने एक पल सोचने के बाद अपने बेटे को आदेश दिया कि वो पुराना कंबल लाकर इस बूढ़े को दे दो। कुछ ही देर में उसका बेटा उस बर्जुग को आधा कंबल देकर चला गया। लाचार बर्जुग ने अपने बेटे से कहा कि कम से कम यह फटा-पुराना कंबल तो पूरा दे देते। घर के मालिक ने अपने बेटे से कहा मैने तो तुम्हें पूरा कंबल देने को कहा था, तुमने उसे आधा कंबल क्यूं दिया है? बच्चे ने बड़े ही भोलेपन से कहा कि मैने आधा कंबल आपके लिये रख लिया है। अब कुछ ही दिनों में मैं भी बड़ा होकर जब आपको इसी तरह घर से निकालूंगा तो आप भी मेरे पास इसी तरह कंबल मांगने आओगे, तो मैं ऐसा कंबल फिर कहां से लाऊगा?
इसी तरह की सैंकड़ो कहानीयां एवं साधू-संतो के प्रवचन के दौरान सुनने के बाद भी समाज में कुछ सुधार होने की बजाए हर दिन पहले से भी और अधिक बुरा हो रहा है। दुख और हैरानगी की बात तो यह है कि जब इंसान बिल्कुल अनपढ़ था, तो उस समय भी वह अपने बर्जुगो के साथ इस प्रकार का जानवरों जैसा बर्ताव नही करता था, जैसा कि आज देखने को मिल रहा है। अब जैसे-जैसे पढ़ाई लिखाई बढ़ती जा रही है वैसे ही लोगो की अक्कल न जाने क्यूं मोटी होती जा रही है? पढ़े लिखे युवाओं का मानना तो यही है कि उनके अनपढ़ बर्जुग ज्ञानी और विद्ववान कैसे हो सकते है? जबकि इतिहास में तुलसी और कबीर साहब इसका जीता जागता उदारण है। इन लोगो ने बिना किसी प्रकार की शिक्षा ग्रहण किए हुए भी संत समाज में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त किया है।
हर मां'-बाप अपने बच्चो को कोमल फूलों की तरह पालते हुए सारी उंम्र अपनी आखों के तारे के रूप में देखते है। लेकिन जैसे ही यह नटखट से दिखने वाले नन्हें-मुन्ने जवां हो जाते है, तो पैसे और जयदाद के लालच में इन्हें किसी रिश्ते की कोई एमहियत समझ नही आती। मां-बाप को बोझ समझने वाली नई पीढ़ी को जब विद्वान लोग ज्ञान देने की कोशिश करते है कि माता पिता धरती पर विधाता का ही दूसरा रूप है। इनके समान कोई तीर्थ नही है, न मंदिर न मस्जिद। माता पिता तो उस नाविक की भांति होते है जो अपने बच्चों को दुखों के सागर से पार लगाते हैं। जीवन में यदि अच्छे संस्कार ग्रहण करने है तो घर ही संस्कारों की पहली पाठशाला और माता-पिता हमारे प्रथम गुरू होते है। अपने घर-परिवार के लोगों के साथ मिल बैठकर प्रार्थना और पूजा करना भी अच्छे संस्कारों में से एक है। इस तरह की बाते सुन कर जवां खून का एक ही जवाब होता है कि ठीक है, यह सब होता होगा, तो मैं क्या करू?
आज हर किसी की सोच में खुशहाल परिवार की परिभाषा और उसे बनाने का सपना एक दूसरे से बिल्कुल अलग है। जहां कुछ लोग सयुंक्त परिवार में एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहने को खुशहाली का नाम देते है, वहीं आज की नई पीढ़ी बिना किसी रोक-टोक की जीवन शैली को ही सुखमगई जीवन समझती है। एक और जहां युवा पीढ़ी अधिक पढ़ी-लिखी होने के कारण खुद को बर्जुगो से अधिक विद्ववान समझने लगी है वहीं कुछ परिवारों में घर के बड़े बर्जुग अपने उंम्र भर के अनुभव को ढाल बना कर युवा वर्ग को झुकाने की कोशिश करते रहते है।
सिक्के की तरह जीवन में भी हर वस्तु के दो पहलू होते है, हमें सदा उज्जवल पक्ष को ही देखने का प्रयास करना चहिये। समाज में ऐसे अनेको उदारण है कि जो व्यक्ति कोरी शिक्षा प्राप्त करता है, उसे कहीं भी सम्मान नहीं मिल पाता। महापुरषो के अनुसार जीवन का अधार केवल प्रेम होता है और उनके अनुसार प्रेम से हर काम संभव हो जाता है। परन्तु यदि प्रेम का धागा एक बार टूट जाए और उसे दुबारा जोड़ा भी जाए तो फिर उसमें गांठ पड़ ही जाती है। हमारी युवा पीढ़ी जब जीवन में अचानक किसी कामयाबी को हासिल कर लेती है तो कुछ समय के लिये उनके दूर नजदीक के मिलने वाले उनसे रिश्तेदारीयां जोड़ने लगते है। परन्तु सच्चाई उस समय सामने आती है जब कभी यह लोग किसी परेशानी में घिर जाते है। ऐसे हालात में भी मां-बाप इनकी सभी गलतीयों को नजरअंदाज करते हुए दौड़े-दौड़े मदद के लिये भागे चले आते है।
जौली अंकल युवा वर्ग से अब यह पूछना चाहते है कि क्या अब भी आपको बात कुछ समझ में आई कि आपका सच्चा शुभंचिंतक कौन है? क्या दुख की इस घड़ी में आपके बर्जुगों ने तुम्हारी मदद करने की बजाए आपसे यह तो नही कहा कि तो मैं क्या करू?

कोई टिप्पणी नहीं: