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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

तोल मोल के बोल


जीवन से जुड़े अनेक पहलूओं पर गौर करे, तो हम पायेंगे कि अपने मन की बात को ठीक तरह से कहना भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण कला है। गली मुहल्ले में बढ़-चढ़ कर बोलने वालों को यदि किसी संजीदा मुद्दे पर चंद अलफाज बोलने के लिए कह दिया जायें तो ऐसे लोगो की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। कुछ लोग तो मौत से इतना नही डरते जितना कि उनको किसी स्टेज पर बोलने से घबराहट होती है। जबकि एक अच्छा वक्ता अपने दिल की बात को कुछ इस ढंग से कहता है कि उसकी बात का हर अक्षर सभी सुनने वालो के मन में उतर जाता है। किसी भी बात को गहराई से सुनने और समझने वाले इस तरह की महत्वपूर्ण बातों को सुनते हुए इन्हें मन में उतार कर अमल में लाने के लिये विवश हो जाते है।
अधिकाश: लोग बोलते समय दूसरों की बुराई और अपनी अच्छाई सुन कर प्रसन्न होते है। कमजोर और शरीफ लोगो को बिना कोई गुनाह किये हुए भी अक्सर निंदा का शिकार होना पड़ता है। इतिहास के पन्ने इस तथ्य को पुख्ता करने के लिये अनेको उदारण अपने अंदर समेटे हुए है। भक्त कबीर पर भी उस समय के बड़बोले लोगो ने चोरी, यारी और दुर्राचारी होने के न सिर्फ इल्जाम लगाये बल्कि उनको सजा तक दे दी। अधिक बोलने वाले दूसरो की निंदा केवल इसलिये करते है कि समाज में उनकी बढ़ाई हो सके। धनवान और ताकतवर आदमी कितना भी दुष्ट क्यूं न हो उसके खिलाफ कोई भी बोलने की हिम्मत नही करता। सारी दुनियां खुशामंद और निंदा करने वालों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। फूल को फूल कहना अच्छी बात है परन्तु खुशामंद करने वाले कांटे को फूल और फूल को कांटा कहने से भी नही चूकते।
यह जरूरी नही होता कि हर बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहा जायें तो तभी उस का प्रभाव होता है, कई बार मौन रह कर भी आदमी ऐसी बात कह देता है कि सामने वाले को बिना कुछ कहें-सुने ही आपकी बात को स्वीकार करना पड़ता है। अफसोस तो उस समय होता है जब कुछ लोग विषय में बारे में कुछ न जानते हुए भी अपनी बात को दूसरों पर थोपने का प्रयत्न करते है। ऐसे लोग शायद यह नही जानते कि अज्ञानता के समान कोई दूसरा शत्रु नही है। कई बार लोग बिना किसी जांच पड़ताल के दूसरों पर इल्जाम लगा देते है, ऐसे में आप अपने बारे में कही जाने वाली बुरी बातों पर ध्यान न दें, इससे उन लोगों को भी आपकी बुराई के बारे में पता चल जाएगा, जो अभी तक कुछ नही जानते थे।
जिस तरह अच्छा बोलना एक कला है, ठीक उसी तरह किसी की बात को ध्यान से सुनना और समझना भी किसी कला से कम नही है। शौधकर्ता इस बात को मानते है कि एक आम आदमी धर्मिक, सामाजिक या अन्य किसी भी विषय को चार या पांच मिनट से अधिक लगातार ध्यान लगा कर नही सुन सकता। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारा मन और मस्तिष्क चंचल स्वभाव होने के कारण हर समय भटकते रहते है। किसी सभा में बैठे होने के बावजूद भी हमारा मन भूतकाल और भविष्य की बातों को लेकर सदैव चितिंत रहता है।
जनसाधारण से लेकर योगी और तपस्वी तक सभी सुख की कामना करते है। इस सुख को पाने के लिये हम दूसरों को अपने विचारो से प्रभावित करके बदलने का प्रयत्न करते है। परन्तु यदि जीवन में सच्चा सुख पाना है तो दूसरों को बदलने की बजाए स्वयं को बदल लेना कहीं अधिक अच्छा होता है। जो व्यक्ति नम्रता के आधार पर सबसे तालमेल बनाये रख सकता है, वह महान है। महान व्यक्ति का मुख्य लक्ष्ण ही उसकी नम्रता है। हम यह तो चाहते है कि दूसरे सभी लोग हमसे अच्छा व्यवहार और हमारा सम्मान करे, लेकिन इससे पहले क्या वो लोग इस सम्मान के हकदार नही। आम आदमी अक्सर अपनी प्रंशसा व ख्याति सुनकर फूला नही समाता, ऐसे में वो खुद को निन्दा व अपमान सन्तुलित कैसे रख सकता है? हम अपने छोटो से यदि यह उम्मीद करते है कि वो हमें प्यार और इज्जत से पेश आये तो हमें अपने बड़ो के साथ भी ऐसा ही करना होगा।
इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद अब जौली अंकल से पूछे कि वो इस विषय में क्या बोलते है? उनकी जुबांन तो केवल एक बात में ही विश्वास रखती है कि जीवन में सभी से सदा प्रेमयुक्त, मधुर व सत्य वचन बोलें। इस एक छोटे से संकल्प और अपने मीठे बोलो से आपके ऊपर ईश्वर सदा ही सुख की बरसात करते रहेगे। तोल मोल के बोले गये अच्छे बोल आपके मन की शंति, सुख एवं समृद्वि के द्वार खोलती है। अब और अधिक कुछ न बोलते हुए एक शैर आपकी नजर करता  हूँ :
कहनी हो जब भी दिल की बात, कुछ इस तरह से कहा करें,
कि मकसद तो पूरा हो जाऐं, लेकिन किसी का दिल ना दुखा करें।

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