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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

छोटी छोटी बाते

पंडित जी ने अपनी तोंद पर हाथ फैरने के साथ बड़ा सा डकार लेते हुए दूध का गिलास मेज पर रखते हुए मिश्रा जी से कहा कि आज बहुत दिनों बाद इतना बढ़िया और खालिस मलाई वाला दूध पीने को मिला है। जजमान सच्चे दिल से कह रहा  हूँ कि मन तृप्त हो गया। पास ही खेलते मुन्ने ने मजाक से कह डाला कि पंडित जी यदि आज बिल्ली दूध में मुंह न मारती तो आपको और भी अधिक मजा आना था। यह सुनते ही वहां बैठे सभी लोगो की हंसी छूट गई और पंडित जी का गुस्सा सांतवे आसमान पर जा पहुंचा। कुछ पल पहले जो पंडित जी हंस-हंस कर मिश्रा जी को आर्शीवाद देते हुए बतिया रहे थे, अगले पल ही वो मिश्रा जी को बुरा भला कहने लगे। मिश्रा जी की सभी दलीलों को अनसुना करते हुए पंडित जी आग बबूला होते हुए गुस्से में बुदबुदाते हुए वहां से निकल गये।
इस तरह की छोटी छोटी बाते हम सभी के जीवन में आऐ दिन घटती रहती है। हमारे बर्जुग एक जमाने से यूं ही तो नही कहते आ रहे कि तलवार का घाव तो समय पा कर भर जाता है, परन्तु जुबान से निकली हुई तीरो से भी अधिक तेज धार वाली छोटी-छोटी बातों के घाव सारी उंम्र नही भर पाते। इतना सब कुछ जानते और समझते हुए भी हम जानें अनजानें कुछ ऐसी बाते अपनी जुबान से कह देते है कि फिर लाख प्रयासों के बाद भी अपने सगे-संबंधीयों से जीवन भर के लिये रिश्ता तोड़ बैठते है।
हो सकता है कि आपको यह छोटी-छोटी बाते बड़ी ही बैमानी सी लग रही हो। अजी जनाब यदि आपको मुझ पर यकीन नही आ रहा तो मैं आपको मिश्रा जी के घर का ही एक सच्ची घटना सुनाता  हूँ। पिछले साल जब इनके बेटे की शादी हुई और दुल्हन बेगम घर पर पधारी तो चारों और हंसी और कहकहे गूंज रहे थे। जैसे ही बहू के स्वागत की रसमें पूरी हुई तो मिश्रा जी ने वहां बैठी सभी लड़कियो और औरतो से कहा कि अब आप लोग दूसरे कमरे में बैठ जाओ ताकि बहू बैचारी थोड़ा आराम कर सके।
एक दो बार तो मिश्रा जी की बात को बहू ने चुपचाप सहन कर लिया परन्तु जैसे ही मिश्रा जी ने तीसरी बार बहू को बेचारी कह के संबोधित किया तो अमीर घराने की अग्रेजी स्कूल में पढ़ी लिखी और विदेशी कम्पनी में एक ऊंचे पद पर कार्यरत नई नवेली दुल्हन ने सभी मर्यादयों को तोड़ते हुए बेचारी शब्द पर घोर आपति जता दी। वहां बैठे सभी रिश्तेदारो के सामने उसने अपने सीधे-साधे ससुर को आड़े हाथो लेते हुए कहा कि मैं आपको किस और से बेचारी लग रही  हूँ। क्या मैं आपको पढ़ाई लिखाई या पहनावें से किसी गरीब और लाचार परिवार की लड़की दिखाई दे रही  हूँ। क्या मेरे दहेज में कोई कमी दिखाई दे रही है? यदि नही तो आप बार-बार सभी रिश्तेदारों के सामने मुझे नीचा दिखाने के लिये यह बेचारी-बेचारी का राग क्यूं अलाप रहे हो?
बहू की जुबान से निकला हुआ एक-एक शब्द मिश्रा जी के मन को किसी तीखे कांटे की तरह चुभ रहा था। उन्हें जीवन में पहली बार अधिक पढ़ी लिखी बहू को अपनाने के अपने जल्दबाजी के निर्णय पर दुख महसूस हो रहा था। आज तक मिश्रा जी यही समझते थे कि पढ़-लिख लेने से ही इंसान विद्ववान हो जाता है। आज उन्हे पहली बार ऐसा प्रतीत हुआ कि शिक्षा में जब तक नैतिक शिक्षा का समावेश नहीं होता, तब तक शिक्षा का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता।
मिश्रा जी की पत्नी ने पिछले कई दशको से अपने पति को इससे पहले कभी इतना दुखी नही देखा था। उसने अपने आंसूओ पर काबू रखते हुए पति को ढंढास बंधाते हुए कहा कि आप तो हम सभी को सदैव यही ज्ञान देते रहे हो कि वृक्ष पर जब बहुत सारे फल लगते हैं तो वो झुक जाता है, ठीक इसी प्रकार जैसे-जैसे हमारे अंदर गुणो का विकास होता है, हमें खुद-ब-खुद झुकना सीख लेना चाहिए। गुणवान व्यक्ति कभी अभिमानी नही होता, फल वाली डाली सदैव झुकी रहती है। आप तो आज तक अपने बच्चो को भी सदा यही शिक्षा देते रहे हो कि मान-अपमान मिलने पर इंसान को बहुत ज्यादा खुश या दुखी नही होना चाहिए, क्योंकि ये सब भाग्य की देन है। इसी के साथ आप का ही यह कहना है कि नंम्र होकर चलना, मधुर बोलना और बांटकर खाना, यह तीन गुण आदमी को ईश्वरीय पद पर पहुंचा देते है। मैं तो हैरान  हूँ कि आप जैसा सूझ-बूझ वाला आदमी यह जानते हुए भी कि किसी भी आदमी की महानता उसके गुणों के साथ उसके व्यवहार से ही पहचानी जाती है, बहू की इतनी छोटी सी बात को लेकर परेशान हो रहा है।
इतिहास साक्षी है कि हमारी वाणी ही हमारे दोस्त या दुश्मन बनाती है। कई बार बैठको में मौन रहने से मान बढ़ता है, बड़े-बड़े तर्क देने वाले विद्ववान होने के बावजूद भी किनारे कर दिए जाते है। इसलिये जीवन में यदि सुख पाना है तो सदैव प्रेमयुक्त, मधुर व सत्य वचन बोलें क्योंकि मीठा बोलने में एक कोड़ी भी खर्च नहीं होती। अंत में जौली अंकल छोटी-छोटी बातो के बारे में बात करते हुए इतनी ही बात कहते है कि अगर आप सदा मीठा बोलोगे तो आपको हर और से सम्मान ही सम्मान मिलेगा, यदि कड़वे बोल बोलोगे तो फिर आपकी झोली में अपमान को आने से कोई नही रोक पायेगा। 

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