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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

ईमानदारी

मिश्रा जी अपने बेटे को स्कूल का होमवर्क करवाते हुए ईमानदारी का पाठ पढ़ा रहे थे कि अचानक दरवाजे पर घंटी बजी। जैसे ही उन्होने थोड़ा सा परदा हटा कर खिड़की में से देखा तो मुहल्लें के कुछ लोग दरवाजे पर खड़े थे। मिश्रा जी को अंदाजा लगाने में देर नही लगी कि यह सभी लोग रामलीला के आयोजन के लिये चंदा लेने आये है। उन्होने ने अपने बेटे से कहा कि बाहर जाकर इन लोगो से कह दो कि पापा घर पर नही है। मिश्रा जी के बेटे ने बड़े ही भोलेपन से कहा, अंकल पापा कह रहे है कि वो घर पर नही है। यह सुनते ही दरवाजे पर खड़े सभी लोगो की हंसी छूट गई और मिश्रा जी को न चाहते हुए भी शर्मिदा सा होकर उन्हें चंदा देना ही पड़ा। घर के अंदर आते ही उन्होने अपने बेटे को सच बोलने की एंवज में दो चपत लगा दी। किसी ने सच ही कहा है कि आज के इस जमाने में सच बोलो तो इंसान मारता है, झूठ बोलो तो भगवान मारता है। ऐसे में कोई ईमानदारी की राह पर चलना भी चाहे तो कैसे चले?
जैसे ही मिश्रा जी ने फिर से अपने बेटे को ईमानदारी का पाठ आगे पढ़ाना शुरू किया तो उनकी पत्नी बोली की आज सुबह दूध वाला 100 रूप्ये का नकली नोट दे गया था। मिश्रा जी ने आव देखा न ताव बोले, लाओ कहां है वो नोट, मैं अभी उस हरामखोर से बदल कर लाता  हूँ। उनकी पत्नी ने कहा कि वो तो मैने सब्जी वाले को देकर उससे सब्जी ले ली। समाज में छोटे व्यापारी से लेकर बड़े से बड़ा उद्योगपति अपने यहां काम करने वाले हर इंसान से तो ईमानदारी की उम्मीद करता है, जबकि वो खुद नकली समान बनाने, तोल-मोल में गड़बड़ी करने से लेकर हर प्रकार के टैक्स की चोरी करना अपना जन्मसिद्व अधिकार मानता है। ऐसे लोगो का कहना है कि आज के समय में ईमानदारी से तो रईसी ठाठ-बाठ से रहना तो दूर इंसान दो वक्त की दाल रोटी भी ठीक से नही कमा सकता। शायद इसीलिये आजकल लोग शादी-विवाह के विज्ञापनों में भी बच्चो की तनख्वाह के साथ ऊपर की कमाई का जिक्र करना नही भूलते।
कुछ दिन पहले जब मिश्रा जी की बेटी के रिश्ते की बात विदेश में बसे एक रईस परिवार में चली तो उनकी बरसो पुरानी सारी ईमानदारी धरी की धरी रह गई। अपनी बेटी की पढ़ाई लिखाई से लेकर घर के काम-काज करने के बारे में जितना भी झूठ बोला जा सकता है, उसकी सारी हदें मिश्रा जी पलक झपकते ही पार कर गये। जबकि इनके आसपास रहने वाले सभी लोगो के दिल में मिश्रा जी की छवि एक स्वछ और सच्चे इंसान की थी। इन लोगो ने अभी तक मिश्रा जी के चेहरे पर सिर्फ और सिर्फ ईमानदारी का मुखोटा ही देखा था। इनके कुछ चाहने वाले तो इन्हें संत जी तक कह कर पुकारते है। मिश्रा जी की मजबूरी कहो या बेबसी उनकी तो केवल एक ही प्रबल इच्छा थी कि किसी तरह से डालरों में कमाई करने वाले लड़के से उनकी बेटी का रिश्ता पक्का हो जाये।
इससे पहले की लड़के वालो की तरफ से शादी के बारे में कोई खुशखबरी मिले, मिश्रा जी अपने अनपढ़ और आवारा बेटे के लिये विदेश में बढ़िया सा कारोबार और अपने बुढ़ापे को शानदार तरीके से विदेश में जीने का हसीन सपना देखने लगे थे। बर्जुग लोग अक्सर समझाते है कि ज्यादा होशियिरी दिखाना अच्छा नही होता क्योंकि हर नहले पर दहला जरूर होता है। बिल्कुल ठीक उसी तरह मिश्रा जी के होने वालें रिश्तेदार इनको सेर पर सवा सेर बन कर टकरे थे। कुछ देर पहले जिस लड़के के बारे में होटल की शाही नौकरी और लाखो रूप्ये महीने की आमदनी बताई जा रही थी, वो असल में कनाडा के किसी होटल में वेटर का काम करता था। पैसे के लालच में मिश्रा जी यह भी भूल गये कि यदि धन से सारे सुख मिल सकते तो शायद इस दुनिया में कोई दुखी नहीं होता। लालच की लालसा रखने वाले को जीवन में कभी सुख नही मिलता। यह भी सच है कि ईमानदार व्यक्ति को थोड़ी तकलीफ तो झेलनी पड़ती है, परन्तु लंबी अवधि में ताकत उसी की बढ़ती है। किसी भी प्रकार की कोई भी अच्छाई या बुराई कहीं बाहर ढूंढने से नही मिलती बल्कि वो तो हमारे अंदर ही छिपी रहती है।
इंसान कितना भी ईमानदारी का ढ़ोंग क्यूं न रचने की कोशिश करे, परन्तु मौका मिलते ही वो झूठ बोलने से लेकर किसी भी प्रकार की बेईमानी करने से नही चूकता। दीवाली के दिनों में जब मिश्रा जी के एक करीबी दोस्त ने ताश खेलने की इच्छा जताई तो उन्होने झट से कह दिया कि तुम ताश खेलते समय बहुत हेराफेरी करते हो। मैं तुम्हारे साथ केवल एक ही शर्त पर ताश खेलूगां यदि तुम वादा करो कि इस बार तुम ताश के पत्तो में कोई हेराफेरी नही करोगे। मिश्रा जी के दोस्त ने भी छाती ठोक कर कह दिया कि मैं वादा करता  हूँ कि यदि इस बार पत्ते अच्छे आ गये तो मैं किसी किस्म की कोई हेराफेरी नही करूगा।
अपनी बुद्वि को महान समझते हुए हम महापुरषो की उन बातो को भूलते जा रहे है, जिसमें उन्होनें हम लोगो को समझाने का प्रयास किया था कि कपटी और मक्कार थोड़ी देर के लिये ही खुश होता है, परंन्तु ईमानदारी के सामने वह बाद में हमेशा रोता ही है। जौली अंकल भी तो यही कहते है कि झूठ बोलने वाला अल्पकाल के लिए ही जीतता है लेकिन असली आनंद तो सच बोलने वाले ईमानदार इंसान को ही मिलता है।

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