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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

नकली का है ज़माना


कुछ दिन पहले एक विदेशी पर्यटक ने पुलिस विभाग में शिकायत दर्ज करवाई की मैने दिल्ली की एक महशूर दुकान से हाथी दांत का कुछ समान खरीदा था लेकिन जैसे ही मैने होटल पहुंच कर उसको ध्यान से देखा तो वो सारा समान नकली था। पुलिस वालो ने दुकानदार को बुला कर जैसे ही धमकाया तो उसने कहा कि मैने तो सारा समान हाथी दांत से ही बनाया है, अब अगर हाथी ने ही नकली दांत लगवाये हो तो उसमें मैं क्या कर सकता  हूँ? अब पुलिस वालो को विदेशी पर्यटक से तो कुछ चाय-पानी मिलने की उम्मीद नही थी इसलिए उन्होनें ने उस दुकानदार का पक्ष लेते हुए कहा कि इस मामले में हमारा कानून आपकी कोई मदद नही कर सकता, क्योकि दुकानदार अपनी जगह बिल्कुल ठीक कह रहा है। नकली वस्तुऐं हमारे जीवन में इस तरह घुलमिल चुकी है कि आजकल हर वस्तु की पूरी कीमत चुकाने के बाद भी हमें यह विश्वास नही होता कि जो कुछ समान हम खरीद कर अपने घर ले जा रहे है, वो असली है या नकली। नकली चीजो की बात करें तो यह लिस्ट इतनी लंबी है कि इस लेख में तो क्या शायद सैंकड़ो ऐसे लेखो में भी यह पूरी न हो पाये।
नकली समान बनाने की प्रथा हमारे देश में ही पूरे विश्व में सदियों से चलती आ रही है। वो बात अलग है कि कुछ अरसां पहले तक सोने-चांदी या इसी प्रकार की अन्य मंहगी वस्तुओं में मिलावट करने का यह चलन अब देश के हर भाग और हर व्यापार में अपने पांव अच्छी तरह से जमां चुका है। विज्ञान और कम्पूयटर की तरक्की का लाभ चाहे किसी जरूरतमंद के पास पहुंचे या न पहुंचे लेकिन इन सभी सुविधाओं के चलते नकली समान बनाने वालो के जरूर वारे-न्यारे हो रहे है। पहले जहां लोग किसी फैक्ट्री में मिस्त्री, मजदूर या हेल्पर का काम करके परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने में अपनी इज्जत समझते थे, वही आज आधा-अधूरा सा ज्ञान लेकर हर प्रकार का नकली समान बना कर देश और जनता को चूना लगा कर गर्व महसूस करते है। नकली घड़ीयां तेल, साबुन, दवाईयां, मिठाईयां और इसी तरह का रोजमर्रा की जरूरत का सारा समान इतने बढ़ियां तरीके से बाजार में उतारा जाता है कि पारखी नजर भी नकली-असली का पहचनाने में आसानी से धोखा खा जाती है।
उस समय तो और भी अधिक हैरानगी होती है जब यह मालूम पड़ता है कि नकली समान बनाने वाले बाजीगरों ने पढ़ाई करना तो दूर जीवन में कभी किसी स्कूल का दरवाजा तक भी नही देखा। इनकी कलाकारी को उस समय दाद देने का मन करता है जब यह लोग खाने-पीने से लेकर हर प्रकार की नकली दवां बनाने में यह अच्छे पढ़े लिखे लोगो को भी चुटकियों में फेल कर देते है। अब अगर नकली करेंसी की बात करे तो बरसों से बैंक में काम कर रहे कर्मचारी भी असली और नकली नोट में फर्क नही कर पाते। नकली चीजे बनाने वालो के तेज दिमाग की जितनी भी तारीफ की जायें वो शायद कम ही होगी। आजकल तो समाचार पत्रों में यह भी खबर छप रही कि अब दूसरी सभी वस्तुओं के इलावा सरकार द्वारा अनचाहे गर्भ और एच,आई,वी एड्स जैसे खतरनाक रोगो से जनसाधारण को बचाने के लिये नि:शुल्क बांटने के लिए पेश किए जाने वाले निरोध (कंडोम) को विदेशी ब्रांडो के नाम से बेचा जा रहा है।
वैसे तो हम सभी सस्ते से सस्ता समान खरीद कर खुद को दुनियां का सबसे समझदार इंसान साबित करने में कोई कमी नही छोड़ते परन्तु कभी कभार कुछ लोग नकली समान बनाने वालो की चुगली करने से बाज नही आते। ऐसे लोगो से कोई यह पूछे कि जब हमारे देश के नेता, सरकारी बाबू, पुलिस वाले सरेआम खुल्मा-खुल्ला देश की जनता को लूट कर जिंदगी का लुत्फ ले रहे है तो नकली माल बना कर बेचने वाले तो फिर भी जनता को चाहे घटिया किस्म का ही सही कुछ न कुछ समान देकर ही अपना धंधा चला रहे है। अब आपके मन में एक प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि नकली समान बनाने वाले आखिर इतना जोखिम क्यूं उठाते है? अजी जनाब नकली समान बनाने और बेचने के बहुत फायदे है। इस धंधे को शुरू करने के लिए न तो किसी नेता की सिफरिश एवं न ही सरकारी दफतरों के चक्कर काटने की जरूरत होती है और न ही किसी प्रकार का लाईसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता। सबसे बड़ा फायदा तो यह भी है कि न कोई बिजली का बिल अदा करना पड़ता है और न ही कोई टैक्स लगता है। यह सारे काम थोड़ा सा सुविधा शुल्क जिसे कुछ लोग रिश्वत जैसे घटिया शब्द से भी नवाजते है, उसे चुकाते ही घर बैठे आसानी से हो जाते है। अब तो आप भी मान गये होगे कि असली समान बनाने से तो नकली का धंधा करना लाख दर्जे अच्छा है।
नकली चीजे सिर्फ हमें सदा नुकसान ही पहुंचाती है ऐसा सोचना तो सरासर गलत होगा। क्योंकि जब कभी हमारे शरीर में कोई भी गड़बड़ी आ जाती है तो डॉक्टर लोग हमारी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के लिए नकली चीजों का ही साहरा लेते है। आये दिन लोगो के दिलों में नकली वाल्व, दुर्घटना में घायल होने पर नकली दांत, टांग, बाजू और आंख लगाऐ हुए लोग तो अक्सर हमें दिखाई देते है। 





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