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बुधवार, 16 दिसंबर 2009

नाम बड़े और दर्शन छोटे

कॉमनवेल्थ गैम्स के मद्देनजर सरकार द्वारा दिल्ली को एक खूबसूरत अन्तर्राष्ट्र्रीय शहर बनते देखने की लालसा ने मसु्रद्दी लाल को दिल्ली दर्शन के लिये मजबूर कर ही डाला। टीवी एवं समाचार पत्रो की माने तो यहां के सभी विश्व प्रसिद्व ऐतिहासिक स्थलों और मैट्रो के रंग रूप को और अधिक खूबसूरत बनाने के लिये सरकार द्वारा करोड़ो रूप्ये खर्च किये जा रहे है। गांव से दिल्ली पहुंचने के लिये मसु्रद्दी लाल को अपने सफर की शुरूआत पैसेजंर गाड़ी से करनी पड़ी। गाड़ी चलती कम थी और रास्तें में पड़ने वाले हर स्टेशन पर रूकती अधिक थी। हर डिब्बे में जबर्दस्त भीड़ थी। एक-एक सीट पर कई-कई यात्री दावा ठोक रहे थे। आखिर किसी तरह जब गाड़ी दिल्ली पहुंची तो मसु्रद्दी लाल ने सुकून के साथ राहत की सांस ली।

स्टेशन से बाहर निकलते ही मसु्रद्दी लाल का सामना कूड़े के ढ़ेरो से हुआ, जिसे देखते ही उसे अपने गांव का स्टेशन याद आ गया। सिर्फ कूड़े के दर्जे में थोड़ी भिन्नता जरूर थी, बाकी सब कुछ वैसे ही था। इतने में कुछ मक्कार आटो-टैक्सी ड्राईवरो ने मोटी कमीशन खाने के चक्कर में घटिया और मंहगे होटल में मसु्रद्दी लाल को रूकवाने के लिये घेर लिया। मसु्रद्दी लाल जी रहीम जी की उस वाणी को मन में संजोये दिल्ली आये थे जिसमे उन्होने कहा था कि हर किसी को प्रेम से मिला करो, न जानें किस रूप में भगवान मिल जाऐं। लेकिन दिल्ली पहुंचते ही यह अभास होने लगा कि अब तो न जानें जमाने की हवा कैसी चल निकली है कि जिस तरफ देख लो हर तरफ शौतान ही शैतान नजर आते है।


उन सभी से बचते-बचाते स्टेशन के बाहर कुछ देर वो अपने एक रिश्तेदार का इंतजार करते रहे। मसु्रद्दी लाल को हैरानगी हो रही थी कि आने की सूचना कई दिन पहले डाक से भेजी थी, फिर भी उन्हें लेने स्टेशन पर कोई क्यूं नही आया? बहुत देर तक इंतजार करने पर भी जब उन्हें दूर-दूर तक कोई अपना नजर नही आया तो हठ करके एक आटो में बैठ कर अपने परिचित के घर जाने की हिम्मत कर ही ली। कुछ देर चलने के बाद उस आटो वाले ने सीएनजी स्टेशन की लंबी लाईन में अपना आटो खड़ा कर दिया।
रास्ते में जहां कही भी 'आपका स्वागत है' का बोर्ड नजर आता वहीं दिल्ली पुलिस के मोटी-मोटी तोंद वाले हाथ में लठ लिये तू-तड़ाक से स्वागत कर देते। हर चौराहे पर बैरीयर लगा कर सैंकड़ो गाड़ीयों को रोका हुआ था। कई जगह आटो रोक कर मसु्रद्दी लाल से अच्छी खासी पूछताछ के साथ उनके सारे सामान की छानबीन भी की गई। एक बार तो सारा सामान खुलवा कर देखा गया। यहां तक की गांव से लाये हुए देसी घी के लव्ूओ के डिब्बे को एक तरफ अलग रख लिया और साथ ही वहां से चुपचाप खिसक जाने की धमकी दे डाली। हर लाल बत्ती पर भिखारीयों की भरमार को देख मसु्रद्दी जी हैरान हो रहे थे। यह लोग भीख भी कुछ इस अंदाज में मांग रहे थे, जैसे कि किसी ने इनका बरसों पुराना कर्जा देना हो। तकरीबन दो-ढाई घंटे सड़को की धूल मिट्टी में भूखे-प्यासे, बैठने के बाद उस आटो ने आखिर मसु्रद्दी लाल को उनके रिश्तेदार के घर पहुंचा ही दिया। वहां पहुंचते ही अब किराये भाड़े को लेकर अच्छा खासा झगड़ा शुरू हो गया, जिसकी नौबत थोड़ी ही देर में गाली गलोच तक पहुंच गई।
दो तीन दिन दिल्ली में रूकने के दौरान मसु्रद्दी लाल ने पाया कि जहां सरकार दिल्ली को अन्तर्राष्ट्र्रीय शहर बनाने का हर दावा तो कर रही है, वही बाकी सभी परेशानीयों के साथ आम आदमी बिजली, पानी के लिये तरस रहा है। शहर की कुछ बड़ी सड़को को छोड़ बाकी सभी सड़को का हाल गांव से भी बुरा है। चंद मिनटों के सफर के लिये घटों टै्रफिक जाम का सामना करना पड़ता है। शहर में लड़कियां कम से कम कपड़े पहने अपने शरीर की नुमाईश कर रही है।
अपने गांव के लिये जब एक बाजार से टेपरिकार्डर खरीदने दिल्ली की महशूर मैट्रो में सवार हुए तो उसमें इतनी भीड़ थी कि कोई अपनी जगह से हिल भी नही पा रहा था। मसु्रद्दी लाल ने तो एक सज्जन को यहां तक कह दिया कि यदि तुम्हारा एक हाथ खाली है तो जरा मेरा कान खुजा दो। कान में खुजली से बहुत दिक्कत हो रही है। घर पहुंचने पर जब खुशी-खुशी सब को टेपरिकार्डर दिखाने लगे तो पाया कि उसमें एक प्लास्टिक के खाली डिब्बे के इलावा कुछ भी न था।
मसु्रद्दी लाल बहुत सारे पर्यटन स्थलों और अन्य कई जगह घूमने की मंशा लेकर दिल्ली आये थे। लेकिन दिल्ली शहर की हालात और कानून व्यवस्था को देख कर दो ही दिन में उनका धैर्य और संयम टूट गया। दिल्ली शहर के सुहावने सपने देखने की मंषा ने उन्हें वो सब कुछ दिखा दिया जिसकी उन्होनें कभी कल्पना भी नही की थी। दिल्ली में मसु्रद्दी लाल को जो अनुभव हुआ वो बहुत ही पीढ़ादायक था।
हर किसी को दिन-रात समस्याओं से जूझता देख मसु्रद्दी लाल ने दुखी मन से गांव वापिस जाने का निर्णय ले लिया। वापिस जाते समय उस ने वहां खड़े सभी लोगो से पूछा कि क्या आप इसे ही अन्तर्राष्ट्रीय शहर कहते है? जौली अंकल ने कहा कि दिल्ली दर्शन करने और सब कुछ देखने और समझने के बाद भी आप इस बात का जवाब हम से क्यूं पूछ रहे हो

बच्चे बिगड़ते ही क्यों है?

एक बार दो कुत्ते आपस में बात कर रहे थे। पहले कुत्ते ने कहा कि मुझे ऐसा लगता कि हमारे मालिक हमारे लिये भगवान के बराबर है। दूसरे कुत्ते ने तपाक से कहा, कि क्या कह रहा है तू? अब पहले वाले कुत्तें ने उसे समझाना शुरू किया कि हमारे मालिक सुबह-शाम हमें अच्छा खाना देने के साथ हर समय हमारी सेवा और देखभाल करते है। जब कभी हम बीमार हो जाते तो हमें डॉक्टर के पास इलाज के लिए लेकर जाते है, तो यह सब क्या कम है? दूसरे कुत्ते ने कहा, बेवकूफ हमारे मालिक तो यह सब कुछ इसलिये करते है, क्योकि हम भगवान है।
हर चीज को परखने का नजरियां भी हम सब का अलग-अलग हो सकता है। बच्चे बिगड़ते ही क्यूं है, इस बारे में कई अलग-अलग मत हो सकते है। परन्तु हम सभी इस बात को नही झुठला सकते कि बगीचे में यदि कोई एक पोधा खराब हो जाता है, तो अच्छे फूलो की वाहवाही लूटने वाले माली को उस खराब पौधे की जिम्मेदारी भी लेनी पड़ती है।
जीवन में सच्चाई और संतोष को भूलकर आज की मार्डन पीढ़ी तेजी से बदल रहे समाज और दिलो-दिमाग पर फिल्मों की छाप से प्रभावित होकर मौज-मस्ती और दिखावे की जिंदगी को अधिक पंसद करने लगी है। वो यह भूल जाते है कि फिल्मों में सब कुछ दिखने वाला महौल तो केवल एक कल्पना मात्र होता है और यह सब कुछ असल जिंदगी में पाना मुमकिन नही हो सकता। दोस्तों में सदा अपनी नाक ऊंची रखने की इच्छा, सीमित स्रोतो एवं आर्थिक मंदी के चलते हीरो-हीरोईन के शाही स्टाईल को अपने जीवन में अपनाने की लालसा उन्हें शरीफ लोगो के साथ ठगी और हेराफेरी करने पर मजबूर कर देती है।
जिस प्रकार आजकल मीडियां वाले हर अपराधी को हीरो की तरह पेश करते है, उससे प्रभावित होकर चमचमाती कारे और हवा से बाते करती मोटर-साईकल पाने के लिये आज के युवा लूट, हत्या और शातिर अपराधीयों की तरह सनसनीखेज वारदातो को अंजाम तक दे डालते है। आम-आदमी बन कर जीना इन्हें एक गाली लगता है। आज अपने शाही खर्च को पूरा करने के लिये ही अधिकांश: युवा क्रिमिनल बन रहे है । तन और मन की खुशी पाने के लिये एक समय के बाद आज के बच्चे किसी को कुछ देने की बजाए दूसरो से उनका हक छीनने में अधिक विश्वास रखते है। इस तरह के दुशप्रभावों के कारण ही नई पीढ़ी बिना मेहनत किये ही जीवन का हर सुख पाना चाहती है।
हम लोग अक्सर अपनी भावनाओं का खुल कर इजहार करने की बजाए अपने प्यार की नुमाईश मंहगे खिलाने और कपड़े आदि लेकर करते है। जबकि बच्चो को यह बताना भी जरूरी है कि कोई कितना भी धनवान क्यूं न हो, बच्चो की हर मांग पूरी नही की जा सकती। यह जानते हुए भी कि अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के बराबर है, हम बच्चो को खुश करने और समाज में अपने रूतबे को बनाए रखने के लिये उनकी हर जायज और नजायज मांग को पूरा करने के लिये बैंक से उनकी मनचाही शर्तो पर कर्ज उठा लेते है। फिर जब समय पर कर्ज की अदायगी नही हो पाती तो सारे परिवार के लिये परेशानीयां बढ़ने लगती है।
कुछ लोग जो इस प्रकार के झटके बर्दाशत नही कर पाते वो तो खुदकशी तक करने की सोचने लगते है। जरूरत इस बात की है कि हम बचपन से ही बच्चो के कोमल हृदय में अच्छे संस्कारों के साथ यह बात बिठाने की कोशिश करे कि संतोष बड़ी से बड़ी दौलत से भी अच्छा होता है। बच्चो को यदि हम यह समझा पाये कि कामयाबी का कभी कोई शॉटकर्ट नही होता, तो आने वाले समझदार बच्चे कभी भी किसी गलत राह पर नही चलेगे।
बच्चो के लिये यह भी जानना जरूरी है कि अच्छी और बुरी संगत का जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। इसलिये सदा ही बुरे लोगो से दूर रहते हुए अच्छे लोगो की संगत करना बेहतर रहता है। सच्चा इंसान वही है, जो बुराई का बदला भलाई से दे, और खुद को सदा गुनाह करने से बचाऐ। बच्चे को यदि यह मालूम हो जाये कि दूसरे का भला करते वक्त सदा मन में यकीन रखो की इसी के साथ तुम्हारा अपना भला भी हो रहा है, तो वो जीवन में आने वाली हर खुशी को अपने तक सीमित न रख कर दूसरों में भी अवश्य बांटेगे।
सब कुछ जानते हुए भी हम बच्चो की हर गलती को नजरअंदाज करने के लिये कई बार अपनी आंखें मूंद लेते है। बच्चो के प्रति अनजान और लापरवाह होने की बजाए हमें जीवन में उच्च आदर्श स्थापित करते हुए रोजाना कुछ वक्त परिवार के साथ जरूर गुजारना चाहिये। जिससे बच्चो को प्यार दुलार के साथ अच्छें संस्कार और बेहतर तरीके से जिंदगी जीने की कला सीखने में मदद मिलेगी। जौली अंकल का तो यह दावा है कि यदि बच्चो को अपने प्यार के रंग में रंगते हुए उनके हर अच्छे काम की तारीफ करे और समय-समय पर उनका हौंसला बढ़ाते रहे, तो कोई भी बच्चा कभी बिगड़ ही नही सकता।  

साधू और शैतान

बरसों पुराने घर के सदस्यों की तरह रह रहे साधू काका ने वीरू की अपाहिज मां को जैसे ही खाना दिया तो उन्होनें उसे डांटते हुए कहा, कि अब तो तुम एक उंम्र से इस घर में काम कर रहे हो, क्या तुम्हें इतना भी नही पता कि डॉक्टरो ने मुझे घी-तेल वाला खाना खाने से मना किया हुआ है। मसखरी हंसी हंसते हुए उसने जवाब दिया कि मां जी माफ करना जल्दी-जल्दी में, मैं अपनी थाली आपको दे गया  हूँ।
साधू काका बचपन से इस घर की सेवा करते-करते अब इतना बड़ा हो चुका है कि चंद दिनों बाद ही उसकी बेटी की शादी होने वाली है। प्यार और सच्ची लगन से घर के हर काम को अच्छे से करने की बदौलत साधू काका घर के हर सदस्य का चहैता बन चुका है। घर में कोई भी खुशी का उत्सव हो या परेशानी के कोई पल साधू काका घर की हर जिम्मेंदारी को बखूबी निभाना जानता है। इन्ही सभी बातों के मद्देनजर उसकी ऐसी हरकतो पर गुस्सा करने की बजाए हर कोई हंस कर नजर अंदाज कर देता है।
आज जब वीरू दफतर से लौटा तो उसकी मां ने कहा कि बेटा साधू काका की बेटी की शादी को अब कुछ ही दिन शेष बचे है, मैने तुम्हें कई दिन से उसकी बेटी की शादी के लिये कुछ सामान लाने को कहा था। अगर ठीक समझो तो आज इस काम को निपटा डालों। वीरू ने मां से कहा कि इस समय अपनी बीमार और दिमागी तौर पर कमजोर बेटी गुनगुन के साथ बाजार जाकर कुछ भी काम ठीक से नही हो पायेगा। मां ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम लोग गुनगुन को घर पर ही छोड़ जाओ मैं और साधू मिल कर उसे संभाल लेगे।
अब वीरू मां को मना नही कर सका और अपनी पत्नी के साथ साधू काका की बेटी की शादी के लिये जरूरी खरीददारी करने बाजार की और चल पड़े। छोटा-बड़ा शादी का सामान खरीदते हुए इन दोनो को बाजार में काफी समय लग गया। रात को घर लौटते हुए वीरू और उसकी पत्नी को बहुत देर हो गई। घर पहुंचने पर साधू काका ने ही दरवाजा खोला और पूछने पर उसने बताया कि मां जी और गुनगुन खाना खा कर सो गई है। खाना खाने से पहले वीरू ने खुशी-खुशी शादी का सारा सामान साधू काका को दे दिया।
सुबह जैसे ही वीरू की पत्नी गुनगुन को स्कूल भेजने के लिये उठाने गई तो मासूम और लाचार बच्ची के तन के कपड़े, बिस्तर और शरीर के दर्दनाक घाव एक बहुत ही खतरनाक कहानी ब्यां कर रहे थे। यह सब देखते ही उसकी जोर से चीखे निकल गई। यह सब कुछ देख वीरू झट से साधू काका के कमरे की और भागा लेकिन वो सारा कीमती सामान गहने, और कपड़ो के साथ वहां से नदारद हो चुका था। इस हादसे को देख घर के सभी सदस्य पागलों की तरह रो रहे थे।
वीरू की मां ने रोते-रोते कहा कि न जाने साधू काका ने हमारी फूल जैसी मासूम बच्ची के साथ यह कुकर्म करके किस जन्म का बदला लिया है। कोई इंसान गली के आवारा कुत्ते को भी कुछ दिन सूखी रोटी के चंद टुकड़े डाल दे, तो वो जानवर होते हुए भी अपने मालिक के साथ ऐसा घिनोना व्यवहार नही करता। जिस नौकर को घर के बच्चो की तरह पाल पौस कर इतना बड़ा किया आज उसे कुत्ता कहना भी कुत्ते को गाली देने जैसा होगा।
पुलिस के अफसर और वहां खड़े सभी लोग अपनी-अपनी बात कह रहे थे, लेकिन वीरू की मां ने सभी को समझाते हुए कहा कि इसमें दूसरों की दोषी ठहराने की बजाए मैं अपना दोष अधिक मानती  हूँ। हम सभी की यह कमजोरी है कि जब तक दूसरो के साथ कुछ भी होता रहे हम उसकी चिंता नही करते, जब कोई इस तरह की भयानक घटना हमारे साथ घट जाती है तो हम उस बारे में चिंता करनी शुरू करते है। आज समाज में हर कोई अच्छे संस्कारों को भूल कर केवल अच्छे से अच्छा घर और व्यापार चाहता है। हमें यह कभी नही भूलना चहिये कि जो दूसरों की मुसीबत में काम आता है, उस पर कभी मुसीबत नही आती।
बनाने वाले ने हम सभी को एक जैसा बनाया है। एक और हमारे अच्छे कर्म ही हमें आम आदमी से साधू-संत का दर्जा दिलवाते है, वही दूसरी और लोभ और वासना महान साधू-संत को एक पल में शैतान बना देती है। अपनी इन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण ही एक इंसान की सच्ची विजय होती है। काम ही हमारे जीवन का सबसे महाशत्रु है, इस पर जीत पाने से ही कोई जगतजीत बन सकता है। परिस्थितियां कैसी भी हो, हिम्मत ही मनुष्य का कठिन परिस्थितियों में साथ देती है।
जौली अंकल इस दुखदाई घड़ी में समाज के लिये केवल इतना ही संदेश देना चाहते है कि आज समाज, राष्ट्र व विश्व की सबसे जटिल समस्याओं का एकमात्र हल है चरित्र। चरित्र बिगड़ जाने पर साधू-संत भी अपनी प्रतिष्ठा खो कर पल भर में शैतान बन जाते है।  

इश्क कमीना

स्कूल में दखिला लेने के चंद दिन बाद ही गट्टू ने गुनगुन से कहा कि मुझे तुम से इश्क हो गया है। क्या तुम भी मुझ से इश्क करोगी। गुनगुन ने कहा न बाबा न मैं यह सब कुछ नही जानती। गट्टू ने गुनगुन ने कहा, अगर तू इश्क नही करेगी तो मैं फिर तेरे साथ खेलने नही आंऊगा। गुनगुन - नही मेरी मम्मी को पता लग गया तो वो मुझे बहुत मारेगी। गट्टू एक बार कर ले न प्लीज,,,,,,,,देख तू मेरी प्यारी दीदी है न।
अभी तक अपने बड़े-बर्जुगों से सुनते आए है कि इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है। तेजी से बदलते दौर ने हर छोटे बड़े को इश्क की गिरफत में कैद कर दिया है। अब तो न किसी को अपनी उंम्र का, न समाज का और न ही बिरादरी का कोई डर रह गया है। हर कोई अपने मनमाने ढंग से अपना जीवन जीने में मस्त होता जा रहा है।
जब कभी भी इस मसले से जुड़े इतिहास के पन्नों की धूल को किसी ने हटा कर देखा तो सर्वप्रथम इश्क का जिक्र ही देखने को मिलता है। इश्क का नाम आते ही दिलों दिमाग पर दो प्रेमीयों के सच्चे प्यार की छवि उबरने लगती है। हर धर्म, देश और भाषा में इश्क की एक अलग ही महिमा है। सूफी संत और गायक भगवान से सच्चे प्यार को भी इश्क का दर्जा देते आए है। इश्क की किताब देखते ही सबसे पहले लैला-मजनूं, शीरी-फरियाद, हीर-रांझा और रोमीयों-जुलयिट के नाम उबर कर सामने आते है।
इश्क में डूबे इन प्रेमीयों को आज भी दुनियॉ का हर प्रेमी वर्ग अपना खुदा मानता है। हर कोई जानता है कि इन सभी ने इश्क में अधें होकर हर तरह से कष्ट सहते हुए कभी भी अपनी जान तक की परवाह नही की। सच्चे इश्क में किसी भी प्रकार की इच्छा या लालच का कोई स्थान नही होता। इश्क के इस खेल में हर कोई एक दूसरे के लिए हर तरह की कुर्बानी देने और मर मिटने को तैयार रहता है। खास तौर से हिंदी और उुर्द भाषा में न जानें कितने ही शायरों और विद्ववानों ने इनके इश्क और प्यार में कितने ही कसीदे पढ़े और अनेक ग्रंथ लिखे हैं। हमारे देश में तो इश्क के इतने दीवाने है कि अब तक हजारों फिल्में और गाने इश्क के ऊपर बनाए जा चुके है।
जमानें की तरक्की ने हमारे समाज में भी सब कुछ बदल दिया है। यहां तक की लैला-मजनूं, शीरी-फरियाद और हीर-रांझाा के पवित्र प्यार में डूबे इश्क को भी कमीना बना दिया है। अगर आप को मेरी बात पर यकीन नही हो रहा, तो वो हिन्दी फिल्म का वो गाना खुद सुन कर देख लो, जिसमें हमारे हीरो ने आज के बदलते हालात में इश्क को किस तरह ब्यां किया है - इश्क कमीना, इश्क कमीना।
इस गाने के मुताबिक बेदर्द इश्क निगोड़ा होने के साथ-साथ सब का दिल तोड़ता है। इश्क सारी रात तरसाते और तड़पाते हुए किसी को कहीं भी चैन से नही बैठने नही देता। इश्क के हाथों मजबूर होकर कोई भी आदमी न तो अपने दिल की और न ही किसी और की आवाज सुन पाता है। कई लोगो के घर लुटा और जला कर, सब कुछ बर्बाद कर देता है। यह इश्क कमीना एक अच्छे भले इंसान से सब कुछ छीन कर उसका जीना मुश्किल कर देता है। ऐसे हालात में इस इश्क को और कुछ न कह कर हम सिर्फ इश्क कमीना ही कह सकते है।
अकसर देखने में आता है कि जब कभी भी दो दिल मिलने की राह पर निकलते है, उस समय समाज उनका दुश्मन बन जाता है। इतिहास में ऐसे हजारों उदारण देखने को मिलते है जिसमें दो प्रेमीजनों की आत्माओं के मिलन को रोकने के लिये दुनियॉ ने नफरत की हर बड़ी से बड़ी दीवार खडी की है। इश्क से जलने वाले ऐसे लोगो के लिए जौली अंकल यही संदेश देना चाहते है कि भगवान जब किसी दूसरे को कोई खुशी देता है तो कुछ लोग जलन महसूस करते है, लेकिन वो उस समय यह क्यों भूल जाते है कि वो भी किसी के लिए दूसरे ही होते है।        

रेजगारी की मारामारी

मिश्रा जी की पत्नी ने शक की निगाह से देखते हुए पति देव से पूछा कि ऐ जी, एक बात बताओ कि जब से तुम बैंक के मैनेजर बने हो, तभी से तुम मंदिर बहुत जाने लगे हो? सोमवार शिव जी की, मंगलवार हनुमान जी पूजा के लिये, बृहस्पतिवार को साई के मंदिर, शनिवार को शनिदेव को खुश करने के लिये और शाम को भी देरी से आने पर यही सुनने को मिलता है कि मंदिर में थोड़ा समय लग गया। अब इस उंम्र में यह अचानक इतनी भक्ति कैसे तुम्हारे मन में जाग उठी। मिश्रा जी ने मुस्कराहते हुए कहा बड़ी सीधी सी बात है, वहां मुझें अराधना, पूजा, भावना, श्रद्वा, शांति, प्रीति, आरती, एवं ज्योति सभी एक ही जगह मिल जाती है।
उनकी पत्नी ने अपने तैवर थोड़े टेड़े करते हुए कहा ठीक से बताओ की आखिर यह मंदिर जाने का चक्कर क्या है? इससे पहले तो तुम कभी मेरे कहने पर भी मेरे साथ मंदिर नही गये थे। पत्नी के गुस्से को भांपते हुए उन्होने कहा कि असल में बैंक में रोज रेजगारी को लेकर मारामारी होती है। बैंक का जूनियर स्टाफ तो हर ग्राहक से रेजगारी को लेकर सारा दिन झगड़ा करते रहते है। मैं सारा दिन अपना काम करने की बजाए, उन लोगो के झगड़े ही निपटा रहता  हूँ। अब मैने मंदिर के पंडितो से दोस्ती कर ली है। वो रोज मुझे काफी सारी रेजगारी दे देते है। जिससे मेरा बैंक का काम काफी आसान हो जाता है।
तुम्हें एक बहुत ही बढ़िया बात बताता  हूँ,। उस दिन तो कमाल ही हो गया, हमारे सामने वाले बैंक में भी रेजगारी को लेकर खूब झगड़ा बढ़ गया। ग्राहक ने मैनेजर से शिकायत करने के लिये कहा तो बैंक के बाबू ने कहा, कि मैनेजर साहब बैंक के बाहर बैठे है। ग्राहक थोड़ी देर बाद वापिस आकर बोला कि वहां तो कोई नही है। सिर्फ एक भिखारी भीख मांग रहा है। बैंक बाबू ने कहा, वो भिखारी नही है, हमारे बैंक के मैनेजर ही है। रेजगारी इक्ट्टी करने के लिये वो रोज इसी तरह कपड़े बदल कर 2-3 घंटे यही काम करते है।
अब गुस्सा करने की बारी मिश्रा जी की थी। जैसे ही मिश्रा जी नजर बाजार से आऐ हुए सामान पर पड़ी, तो उनका गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुंच गया। घर के जरूरी सामान के साथ 8-10 टाफीयां, दो-चार पोस्ट कार्ड पड़े देखे तो वो चिल्ला कर पत्नी से बोले कि यह घटियां टाफीयां हमारे घर में कौन खाता है, और इन पोस्टकार्ड की क्या जरूरत थी? इस मंहगाई में घर का खर्च तो पूरा होता नही, और एक तुम हो कि यह सब फालतू का सामान खरीद लाती हो।
उनकी पत्नी ने पतिदेव को थोड़ा शांत करते हुए कहा, कि यह सब कुछ मैं खरीद कर नही लाई, मेरी भी कुछ मजबूरी थी। इससे पहले की वह कुछ और कहती मिश्रा जी बोले यदि तुम यह खरीद कर नही लाई तो क्या यह सब तुम्हें दुकानदार ने तोहफे में दिये हैे? तोहफे में तो नही, हां उसके पास रेजगारी नही थी, इसलिये उसने यह सब चीजे मुझे दे दी। रेजगारी की दिक्कत सिर्फ तुम्हारे बैंक में ही नही बाजार में भी है। तुम तो कभी बाजार जाते नही, कभी घर का सामान लाना पड़े तो तुम्हे मालूम हो कि हम सब कुछ यह कैसे जुटाती है?
कहने को हम सभी विश्व की सबसे बड़ी ताकत बनते हुए 21वी सदी में प्रवेश कर रहे है। लेकिन तेजी से तरक्की की राह पर चलते हुए हम बहुत कुछ अपने पीछे ऐसा छोड़ते जा रहे है, जिसे हमारी आने वाली पीढ़ी शायद कभी न देख पायेगी। अब आप सोचे रहे होगे कि मैं किस बारे में बात कर रहा  हूँ। जी मैं बात कर रहा  हूँ बच्चो के बचपन की, दादी-नानी की कहानियों की, घर के आंगन में रगोली की, जवानी में यौवन की, ऐसे पिता की जो ठीक से समझा सके, ऐसे बच्चो की तो ठीक से समझ सके। मैं बात कर रहा  हूँ लड़कियों के दुप्ट्टे की, ऐसे सरकारी अफसरो की जो रिश्वत ने लेते हो, ऐसे बुद्विजीवीयों की जो सही राह दिखा सके, ऐसे नेताओ की जो चुनावों के बाद भी नजर आ सके। इन सभी चीजो के साथ-साथ आलोप हो रहे है सरकार द्वारा जारी किये हुए खनखनाते हुए सिक्के। जो हमें ही देखने को नही मिल रहे तो हमारी आने वाली पीढ़ी कहां से उन्हें देख पायेगी।
जौली अंकल अक्सर कहते है कि सबसे आसान है बोलना और शिकायते करना, सबसे कठिन है कुछ करके दिखाना। यह सच है कि बाजार में रेजगारी की दिक्कत है, लेकिन यदि हम सभी अपने घर में रखी हुई रेजगारी को बाहर लाने की शुरूआत करे तो चंद दिनों में ही यह रेजगारी की मारामारी की समस्यां सदा के लिये खत्म हो जायेगी।     

नन्हें फरिश्ते

मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि जरा बाहर देखना की बरसात हो रही है कि नही। बेटे ने इंटरनैट पर गेम खेलते-खेलते ही कह दिया कि अभी-अभी अपना कुत्ता हनी बाहर से ही आया है, आप जरा इसे हाथ लगा कर देख लो कि वो गीला है या सूखा, आपको पता लग जायेगा। कुछ देर बाद मिश्रा जी ने बेटे से कह दिया कि मुझे सुबह जल्दी उठना होता है, अब तुम अगर बत्ती बंद कर दो तो मैं आराम से सो सकूं। बेटे ने कहा यह तो मुमकिन नही है अभी तो मुझे कम्पूयटर पर अपनी गेम खेलनी है। आप अपनी आखें बंद कर लो, अपने आप अंधेरा हो जायेगा। आखिर में पिता ने फिर से कहा कि रात बहुत हो चुकी है, यदि और कुछ नही कर सकते तो कम से कम घर का दरवाजा तो बंद कर दो। हाजिर जवाब बेटे ने झट से कहा, पिता जी पहले के दोनों काम मैने कर दिये है, अब एक काम तो आप खुद भी कर लो।
बेहद तेजी से बदलती इस दुनियां में लोग भी तेजी से बदल रहे है। हालिंक इस सब के बीच एक बड़ा सवाल यह है कि क्या हम इस बदलाव के लिये मानसिक रूप से तैयार है। पहले जमाने के मुकाबले आजकल एक या दो बच्चे होने के कारण मां-बाप बच्चो की हर इच्छा पूरी करने में पल भर की भी देरी नही करते। हर लड़की एक नन्ही परी और लड़का मां-बाप के लिये एक नन्हें फरिश्ते से बढ़ कर होता है। सयुक्त परिवार तो अब गुजरे जमाने की बात होती जा रही है। आज की युवा पीढ़ी के पास इतना समय भी नही है कि वो दिन में एक बार सारे परिवार के साथ मिल-बैठ कर खाना भी खा सके।
आज के बच्चो को मां-बाप से हर प्रकार का खाना-पीना, सिकयुरिटी, एसी, टीवी, कम्पूयटर, कार-मोटर साईकल आदि लेने के हक तो याद रहते है, लेकिन मां-बांप, घर-परिवार और समाज के प्रति अपने किसीर् कत्तव्य को याद रखना वह जरूरी नही समझते। यहां हम सारा दोष बच्चो के सिर मढ़ कर खुद को पाक साफ नही कह सकते। बच्चा चाहे स्कूल या कालेज में पढ़ाई कर रहा हो, हमारा यह फर्ज बनता है कि हम समय-समय पर उनकी परफार्मेस रिपोर्ट चैक करते रहे। बच्चो के हर मिलने वाले और नजदीकी दोस्तो की पूरी जानकारी रखने का भी हमारा पूरा हक बनता है।
सारे दिन में चंद पलों के लिये ही सही, एक बार सारे परिवार के मिल बैठने से घर के हर सदस्य को अपनी बात एवं परेशानी रखने का मौका मिलता है। जो बच्चे किसी कारणवश घर के बड़े-बर्जुगो से डर कर दिल की बात नही कह पाते उनको भी खुलने का और कुछ करने का मौका मिलता है। किसी बच्चे में कितने भी गुण क्यूं न हो, अगर उसे अवसर ही न मिले तो बड़ी से बड़ी प्रतिभा और अच्छे से अच्छे गुण कभी निखर नही पाते। कोई भी पोधा जब तक छोटा और कोमल होता है, उसे आप अपनी इच्छा अनुसार सहारा देकर ढाल सकते है। लेकिन यदि किसी पेड़ का पोषण बिना किसी अधार से किया जाऐ तो वो बिल्कुल ढ़ेड़ी-मेढ़ी शक्ल अख्तियार कर लेता है। उस समय हम लाख कोशिश करने पर भी उसको ठीक नही कर सकते।
हर माता-पिता अपने जीवन के सभी अधूरे अरमान, आशाओं, चाह और हसरतो को अपने बच्चो के माध्यम से बिना उचित माहौल दिए हुए ही पूरा करना चाहते है। इस तेज रफतार जिंदगी में हर कोई चाहता है कि उनके नन्हें फरिशते की तूती पढ़ाई से लेकर खेल के मैदान तक हर क्षेत्र में बोले। हम यहां यह बात भूल जाते है, कि भगवान कभी भी सारे गुण एक व्यक्ति को नही देता। नतीजतन फूल जैसे कोमल बच्चो पर अनावश्यक दबाव बना कर अपने जीवन में परेशानीयों को न्यौता दे डालते है। इतना तो आप भी जानते होगे कि परेशानी कभी भी अकेले नही आती, एक परेशानी के साथ सैंकड़ो दुख खुद ब खुद हमारे जीवन में चले आते है।
आप बच्चो को प्यार से यह समझााने का प्रयास करे कि यदि जिंदगी के किसी क्षेत्र में कभी सफलता नही मिली तो निराश मत होइए, बल्कि प्रयास जारी रखिए। हर मनुष्य की असली परीक्षा विपति पड़ने पर ही होती है, जो धैर्य रखता है वह हर मुसीबत से पार पा जाता है। यदि छोटी-छोटी समस्याऐं आने पर आप घबरा जाएंगे, तो आपके दिमाग के साथ-साथ आपके नन्हें फरिश्तो का संतुलन भी बिगड़ सकता है।
जौली अंकल का तर्जुबा तो यही कहता है कि कभी भी किसी दूसरे की नकल करने से कद्र नही मिलती। जब कोई बहुत ही खूबसूरत तस्वीर बन कर तैयार हो जाती है, तो हर पारखी नजर उस तस्वीर के साथ उसको बनाने वाले कलाकार की तारीफ किये बिना नही रह सकती। आप भी अपने बच्चो को ऐसे अच्छे संस्कारों के सांचे में ढालें की हर जुबां से एक ही बात निकले कि यह बच्चे है या नन्हें फरिशते।    

आंसू और मुस्कान

हमारे जीवन में खुशी के पल हो या दुख-परेशानी की कोई घड़ी, परिवार के किसी सदस्य का बरसों बाद मिलन हो या बेटी को डोली में भेजते समय बिदाई के क्षण, हम सब की आंखो में अक्सर आंसू आ ही जाते है। कमजोर और बेसहारा लोग तो अपनी किस्मत को कोसते हुए मजबूरी में आंसू बहाते ही है, लेकिन बड़े से बड़ा बाहूबली भी चाहे किसी के सामने अपने आंसू पी जाये, लेकिन अकेले में दुनियॉ ने उन्हे भी किसी न किसी गम में आंसूओ की गंगा-जमना बहाते देखा है। हम अपने पास कितना भी मजबूत दिल होने का दावा करे, लेकिन हमसे कोई भी अपने आंसूओ पर कभी भी काबू नही रख पाते।
आखिर हम सब की आंखो में आंसू क्यूं आते है। क्या सिर्फ जब हम दुखी होते है तभी आंसू आते है, ऐसा नही है, क्योकि मन को जरा सी खुषी मिलते ही हमारी आंखे आंसूओ से छलक जाती है। चंद दिन पहले हास्य दिवस के मौके पर एक दर्षक ने लेखक से टी.वी. शो के दौरान फोन पर यह पूछ कर कि हंसते समय हमारी आंखो मे आंसू क्यूं आ जाते है? लेखक को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर आंसू है क्या? क्या यह एक मजबूर इन्सान की दांस्ता है या कोई कुदरत का कोई करिश्मा, जो जीवन के हर रंग में हमारे साथ जुड़े रहते है।
आज दुनियॉ के एक से एक नामी-ग्रामी पहलवानों को पटखनी देकर धूल चटाने वाला एक मात्र भारतीय 'दि ग्रेट खली' जब अपनी मां से तीन साल बाद मिला, तो मां-बेटे दोनो की आंखो में से अश्रू धारा बहते देख मेरी कलम भी अपने आसूं नही रोक पाई। फौलाद जैसे हाथ-पैर और पहाड़ जैसा षरीर रखने वाले का दिल भी इतना भावूक हो सकता है, ऐसा तो कोई सोच भी नही सकता। मां-बेटे की ममता के इस मिलन को दुनियॉ के सारे ग्रन्ध भी षायद मिल कर बंया नही कर पाते जो चंद आंसूओ ने बंया कर दिया। इतिहास साक्षी है, कि लक्षमण के मूर्छि्रत होने पर भगवान श्री राम भी अपने आंसू नही रोक पाये थे। रावण जैसे ताकतवर, विध्दवान और ज्ञानी को हम सब ने रामलीला में कई बार अपने भाईयों की मौत पर आंसू बहाते देखा है।
लेकिन इस छल फरेब की दुनियॉ में कुछ लोगो ने आसूंओ को अपने स्वार्थ के लिये एक हथियार बना डाला है। वैसे तो हम सब सदियों से मगरमच्छ जैसे आंसूओ के बारे में सुनते रहे है, लेकिन आजकल के कुछ बच्चे और औरते अपनी हर जिध्द पूरी करवाने के लिये इनका साहरा लेते है। आदमी कितना भी कठोर दिल का क्यूं न हो, औरत के आंसूओ के सामने पल भर में मोम की तरह पिघल जाता है। अगर हम अपने दायें-बायें देखे तो पायेगे कि आज दूसरो को दुख देकर रूलाने वाले तो बहुत लोग है, लेकिन किसी के दुख दर्द को अपना कर एक मजबूर की आखों से आंसू पोछने वाले बहुत कम लोग बचे है।
यह भी सच है, कि हम सब अपने प्रियजनों की आंखो में आंसू नही देख सकते, लेकिन कई बार यह आंसू ही हमें एक नई जिंदगी देते है। किसी नजदीकी रिष्तेदार की मौत पर अगर घर का कोई सदस्य किसी कारण से नही रोता, तो घर के सभी लोग एक ही बात कहते है, कि इसे जल्दी से रूलाओ, वरना ऐसे सदमें से आदमी पागल तक हो जाता है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है, कि आंसू हमेषा बुरे ही नही होते, कभी-कभी बहुत सकून भी देते है। दिल पर किसी भी परेषानी का कितना बड़ा बोझ क्यू न हो, चंद आंसूओ के बहने से ही मन बिल्कुल हल्का हो जाता है।
इसीलिये तो जौली अंकल कहते है कि अगर आप सच्चे और नेक इन्सान है, तो सिर्फ दुखी इन्सान के आंसू पोछने से कुछ नही होगा, किसी रोते हुऐ के चेहरे पर मुस्कान लाओ तो कोई बात बने।          

फूल और कांटे

बहुत अरसा पहले एक आदमी मंदिर में भगवान की मूर्ति के सामने खड़ा होकर कुछ अपशब्द कह रहा था। पास से गुजरते हुए एक संत ने उससे पूछा कि भगवान ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो तुम इतनी बुरी तरह से उन्हें कोस रहे हो। उसने कहा कि भगवान ने मुझे पैदा करके इस दुनियॉ में तो भेज दिया है, लेकिन अब मेरे पास कुछ भी अच्छा खाना-पीने को नही है, जिससे कि मैं अपना जीवन सुखमई तरीके से व्यतीत कर सकूं।
संत जी ने कहा कि मुझे तो देखने से लगता है कि तुम तो अभी भी कई लाखों रूप्यों के मालिक हो। उस आदमी ने बिगड़ते हुए कहा एक तो मैं पहले से बहुत परेशान  हूँ उस पर तुम मुझ से यह भद्दा मजाक कर रहे हो। संत ने कहा, यदि तुम्हें यकीन न हो तो मैं यह सब कुछ साबित कर सकता  हूँ। अगर तुम चाहों तो मैं तुम्हारे दोनो हांथों की कीमत दो लाख रूप्ये तुम्हें अभी दे सकता  हूँ। उस आदमी ने कहा यदि मैं अपने दोनो हाथ तुम्हें दे दूंगा तो मैं अपने रोजमर्रा के सभी काम कैसे कर पाऊगा? संत ने कहा चलो ठीक है, अगर तुम अपने हाथ नही देना चाहते तो फिर मुझे अपने दोनो पैर ही दे दो। मैं उसके भी दो लाख रूप्ये तुम्हें दे सकता  हूँ। अब उस आदमी का गुस्सा और बढ़ गया, उसने संत को गाली देते हुए कहा कि तुम मुझे क्या पागल समझते हो? यदि मैं अपने दोनों पैर काट कर तुम्हें दे दूंगा, तो मुझे अपना सारा जीवन तो एक अपहिज की तरह ही बिताना पड़ेगा।
संत ने उसें शांत करते हुए कहा, तुम मुझे अपना कोई भी अंग नही बेचना चाहते, कोई बात नही, यह तो तुम्हारी चीज है और तुम्हारी ही मर्जी चलेगी। मेरे पास इसके अलावा भी तुम्हारे लिए एक और प्रस्ताव है। अब इसको मना नही करना, मैं तुम्हारी दोनों आखों के 5 लाख रूप्ये तुम्हें दिलवा सकता  हूँ। अब तो वो आदमी आग बबूला होते हुए बोला कि तुम क्या चाहते हो कि मैं सारी उंम्र एक अंधा बन कर जमाने की ठोकरें खाता रहूं। मैं दुनियॉ की कोई खुशी न देख सकूं। मुझे नही चहिए तुम्हारे यह पांच लाख रूप्ये। इतना सुनते ही संत ने उस व्यक्ति को समझाया कि कुछ समय पहले तुम कह रहे थे कि तुम्हारे पास कुछ नही है, और अब तुम लाखों रूप्यो को ठुकरा रहे हो।
तुम्हारे जैसे मूर्ख लोग अपने दोष नही देखते लेकिन हर समय दूसरों के दोष ढूंढने का काम करते रहते है। जीवन में यदि कुछ पाना है तो उसके लिए सिर्फ मन की इच्छा से नही, अपने हाथ-पैर हिलाने से ही उसकी प्रप्ति की जा सकती है। ईश्वर ने तुम्हें हाथ-पैर रूपी संजीव हीरे दिए है। इनका इस्तेमाल करके लाखों और हीरे कमा सकते हो। सबसे बड़ी बात मेहनत करने से तुम्हें कभी कोई बीमारी भी नही तंग करेगी। जिस तरह कुदरत हर सुंदर फूल के साथ कांटे देती है ठीक उसी प्रकार सुख-दुख हमारे जीवन के दो ऐसे पहलूं है, जिनसे कोई मुख नही मोड़ सकता। यह धूप-छांव की तरह सदा ही हमारे जीवन में साथ-साथ चलते रहते है।
जैसे-जैसे हम कुदरत से दूर होकर उसके द्वारा बनाई गई हर वस्तु को अपने मन-मुताबिक ढ़ालने की इच्छा को बढ़ावा देते है, हमारी परेशानीयॉ बढ़नें लगती है। साधु-संतो ंके पास अपना कोई घर बाहर न होते हुए भी वो जीवन के हर पल का भरपूर सुख भोगते है। तुम्हारे जैसे इंसान के पास सभी सुख-सुविधाऐ होते हुए भी तुम्हें संतोष नही मिलता। सैंकड़ो प्रकार के व्यजनों के खाने से भी तुम जैसे लोगो को तृप्ति नही मिलती जबकि साधू लोग भिक्षा में जो कुछ मिल जाए उसे पाकर ही परम-पिता परमात्मा का धन्यवाद करते रहते है।
स्वामी विवेकानंद अक्सर अपने शिष्यों को कहा करते थे, कि मैने तो जीवन का भरपूर रस पी लिया है, छिलके खाये संसार। छिलके खाने से उनके तात्पर्य यह था कि इंसान का रोजमर्रा के जीवन में दुखी रहना। हर कोई यह जानते हुए भी कि शरीर मिट्टी का मटका है, इसे एक न एक दिन फूटना ही है, इस कड़वी सच्चाई को मानने को तैयार नही होता। राम नाम की धुन में हर समय खोये रहने वाले सदा ही अल्लाही मस्ती की दुनियॉ में रहते हुए सच्चे सुख को भोग पाते है। जैसे ही आदमी संसारिक दुनियॉ के भंवर में डूबने लगता हैे, वह अपनी शंति खो कर दुखी होने लगता है। कठोर से कठोर इंसान भी ऐसे हालात में अंदर तक हिल जाता है।
ऋृषि-मुनीयों की विचारधारा को समझते हुए जौली अंकल का मानना है कि इंसान जब सच्चे मन से भगवान को प्यार करता है, तो वह खुश होकर हमारे जीवन से दुख रूपी कांटे निकाल कर हमारे जीवन की क्यारी कों खुशीयों और सुख के फूलो से महका देते है।     

दिल्ली हैं दिल वालों की

एक जमाने से सुनते आ रहे है कि दिल्ली है दिल वालों की है। क्या कभी किसी ने यह जानने का प्रयत्न किया है कि दिल्ली वालों के दिल में क्या-क्या छिपा हुआ है?
  • सरकारी-गैरसरकारी हर किसी दफतर की कमीयां निकालना हमारा जन्मसिद्व अधिकार है।
  • हर छोटी से छोटी बहस में भी सबसे पहले हर किसी से यही सुनने को मिलता है कि 'तू मुझे जानता नही'
  • स्कूटर हो या कार उसके पीछे घर के सभी बच्चो के नाम लिखवाना शायद यहां की एक जरूरी पंरमपरा है।
  • सड़क के दाई और यदि कुछ पल के लिए भी ट्रैफिक रूकता है, तो तुंरत सड़क के बाई और चलना शुरू कर देते है। अब चाहे सामने से आने वालों को घंटो ही क्यों न रूकना पड़े।
  • कोई भी ड्राईवर बस स्टैंड पर बस खड़ी करना अपनी बेईज्ती समझता है। बस के पीछे भागते और गिरते हुए लोगो को देख उसके मन को न जाने कितना सुकून मिलता है?
  • सड़क पर चलते हुए यदि किसी ने दायें या बायें मुड़ने का सिग्नल दिया है, तो यह हमारे लिये जरूरी नही कि हम उसी और ही मुड़ेगे।
  • ट्रैफिक सिग्नल किसी भी कारण से काम नही कर रहा हो तो चारों और से हर कोई सबसे पहले निकलने की फिराक में चौराहे पर घंटो फंसे रहना बेहतर समझता है।
  • किसी भी चौराहे पर गाड़ी-स्कूटर के हल्के से टकराने पर एक दूसरे की मां-बहन को पूरी इज्जत के साथ याद किया जाता है।
  • कुछ देर के लिये यदि ट्रैफिक सिग्नल पर रूकना ही पडे, तो टाईम पास करने के लिए दो-चार बार थूकना हमें बहुत भाता है।
  • किसी भी प्रकार की लाईन में खड़ा होना हमें सबसे मुश्किल काम लगता है। हर दफतर में लाईन तोड़ कर आगे बढ़ने में हम सभी बहुत गर्व महसूस करते है।
  • यदि दिल्ली वाले सिनेमा हाल में फिल्म का आंनद उठा रहे हो, तो उनके मोबईल फोन की घंटी बज उठे तो अपनी बात पूरी किये बिना फोन बंद नही करेगे। अब चाहे आप-पास वाले कितना ही परेशान क्यूं न होते रहे?
  • मंदिर, गुरूद्ववारा हो या शमशान घाट किसी भी स्थान पर मोबईल फोन बंद करना हमारी शान के खिलाफ माना जाता है।
  • रोजमर्रा की जिंदगी में हम कितने ही व्यस्त क्यूं न हो लेकिन सड़क पर अनजान लोगो का झगड़ा निपटाने के लिये हमारे पास घंटो का फालतू समय होता है।
  • यदि किसी के घर में शादी या अन्य कोई उत्सव है, तो उसे पूरी गली, मुहल्ले वालों की नींद हराम करने का बिना किसी परमिट के भी पूरा हक बनता है।
  • हर जलूस जलसे के लिए बिना किसी की इजाजत के सड़क के बीच टैंट लगाना और आम आदमी का रास्ता रोक कर सारी रात जोरदार संगीत चलाने से दिल्ली वालों को कभी कोई नही रोक सकता।
  • बस-स्टैंड, ट्रैफिक सिग्नल या बाजार में किसी सुंदर लड़की को देख कर सीटी बजाना या टीका टिप्पणी करना हमारा पुष्तैनी स्वभाव है।
  • शैखी बघारने में माहिर दिल्ली वालो ने चाहें किसी मंत्री की फोटो टी.वी या अखबार में भी न देखी हो, लेकिन उन का सदा ही यह दावा होता है कि यह मंत्री तो अपनी जेब में रहता है।

यह सब कुछ बोलना और शिकायते करना तो बहुत आसान है, सबसे कठिन होता है कुछ करके दिखाना। लेकिन प्रतिदिन आप एक अच्छा काम करने का संकल्प कर ले, तो एक दिन आपका स्वभाव हर काम को अच्छी तरह से करने का बन जायेगा। यदि आप जौली अंकल की बात मान कर कर अपने जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाने का प्रयत्न करे, तो आपको कोई भी कार्य मुश्किल नही लगेगा। फिर हम सभी सीना तान कर कह सकेगे कि दिल्ली है दिल वालों की।    

मंहगाई मार गई

एक दिन बंसन्ती अपने पति वीरू को लेकर डॉक्टर के पास इलाज के लिये लेकर गई। उसने बताया कि कई दिन से कुछ भी हज्म नही कर पा रहे। जब कभी भी कुछ खाने को देती  हूँ तो झट से उल्टी कर देते है। डॉक्टर ने कुछ दवांईयों के साथ दिन में 3-4 बार चीनी वाला नीबूं पानी पीने को कहा। थोड़ी ही देर बाद बंसन्ती रोते हुए वापिस आ गई और बोली कि डॉक्टर साहब अब तो इन्हें उल्टीयों के साथ-साथ खुले दस्त भी शुरू हो गये है। डॉक्टर ने सफाई देते हुए कहा कि मैने तो कोई भी ऐसी दवा नही दी जिसके कारण ऐसी कोई दिक्क्त हो पाती। बसंन्ती ने बात साफ करते हुए कहा, कि आपने इन्हें मीठा नीबूं पानी देने को कहा था। रास्ते में हम नींबू और चीनी लेने के लिये रूके। जैसे ही मेरे पति ने नीबूं का 100 रूप्ये और चीनी 40 रूप्ये किलो भाव सुना, तो इन्हें वही खुले दस्त शुरू हो गये। कोई माने न या मानें आज यह हाल सिर्फ वीरू का ही नही हर जनसाधारण्ा का हो रहा है।
देश में कभी सूखे की मार, कभी बाढ़ और कभी पैट्रोल-डीजल की बड़ी हुई कीमतो की आड़ में व्यापारी वर्ग हर वस्तु की बेतहाशा कीमते बढ़ा रहे है। आज पूरा देश मंहगाई की मार झेल रहा है। मंहगाई की मार इतनी घातक होती जा रही है कि आम आदमी फल एवं सब्जी खरीदने के नाम से ही घबराने लगा है। गरीब से गरीब आदमी को भी रोटी खाने के लिए थोड़ी बहुत सब्जी की जरूरत तो होती है, लेकिन लगता है कि आने वाले समय में सूखी रोटी को पानी के साथ ही गले से उतारना पड़ेगा। आईये आम आदमी की नजर से देखे की इस बढ़ती मंहगाई से उसके रोजमर्रा जीवन की क्या हालत हो रही है?
आज मंत्री महोदय जब एक जनसभा को संबोधित करने गए तो वहां सभी लोगो ने उनके गलें में सुंदर फूलमालाओं की जगह मंहगे आलू-प्याज और अन्य हरी सब्जीयों के हार डालकर भव्य स्वागत किया। बिल्कुल ताजा और बढ़िया किस्म की सब्जीयों को देखते ही भीड़ में भगदड़ मच गई, जिससे दो लोगो की मौत हो गई और अन्य कई घायल हो गये। सरकार ने तुंरन्त घोषणा करते हुए किसी भी नेता को मंहगी सब्जीयों के हार डालने पर प्रतिबंध लगा दिया है। कड़ी सुरक्षा होने के बावजूद कई लोग मंत्री जी के गले से सब्जीयां लेकर भागने में कामयाब हो गये।
आज तिलक नगर इलाके में एक मां ने अपने बच्चे को बुरी तरह से मार-मार कर घायल कर दिया, पूछने पर उसने बताया कि यह खाना खाते समय बार-बार तरी के साथ सब्जी की मांग कर रहा था। मेरे पति कोई सरकारी अफसर तो है नही जो ऊपर की मोटी कमाई से इन्हें रोज सब्ज़ी खिला सकूं। एक और खबर के अनुसार आज दिल्ली में शादी के मौके पर दहेज को लेकर उस समय बहुत मारपीट हो गई जब दुल्हे के पिता ने बड़ी कार में तीन साल तक मुफत पैट्रोल और घर में गैस देने की मांग कर डाली। लड़की के पिता ने रोते हुए पत्रकारो को बताया कि मैं गरीब आदमी कार तो दे सकता  हूँ लेकिन पैट्रोल और घर में गैस देना हमारे बस में कहां है।
रिर्जव बैंक ने अपने सभी बैंको को आदेश दिये है कि वो आम जनता को सोने-चांदी और बेशकीमती सामान की तरह मंहगी दालें और सब्ज़ीयो के लिये लाकर की सुविधा प्रदान करे। पुलिस ने भी चेतावनी दी है कि जहां तक हो सके मंहगी दालें और सब्ज़ीयों को अपने घर में न रखे क्योंकि अब इन्हें घर में रखना सुरक्षित नही है। इसी दौरान एन्ंटी करप्शन वालों ने एक सरकारी अफसर के घर छापा मार कर उस समय रंगे हाथो पकड़ लिया जब वो रिश्वत में दो-दो किलो आलू, प्याज और शिमला मिर्च लेकर घर जा रहा था। उसके घर पर मारे गये छापे में और भी कई अन्य सब्ज़ीयां बरामद हुई है। इससे भी बड़ी बात यह सामने आई की उसके घर में खड़ी सभी कारों में पैट्रोल की टैंकी पूरी भरी हुई थी।
देश के सभी प्राईवेट स्कूलों ने ऐसे बच्चो को दखिले में प्राथमिकता देने का फैसला किया है जिन बच्चो के मां-बाप का अपना पैट्रोल पंम्प है, फल एवं सब्जी की थोक दुकान या राशन का होल सैल का कारोबार है। ऐसे लोगो को स्कूल और टीचर्स के लिये यह सभी सामन हर महीने निशुल्क मुहैया करवाना होगा।
सरकारी आंकड़ो की बात करे तो मंहगाई दर अब तक के सबसे निचले स्तर पर आकर खत्म और सस्ताई आ चुकी है। उनके मुताबिक हर चीज के भाव सस्ते हो गये है। क्या सस्ताई के आकड़े देने वाले अफसर आम आदमी को इतना बताने का कष्ट करेगे कि रोजमर्रा की यह सस्ती वस्तुऐं कहा और किस बाजार में मिलती है। ऐसे हालात में यदि कोई मंहगाई के बारे में जौली अंकल की राय जाने भी तो कैसे? क्योंकि वो तो खुद ही रोते रोते यह गाना गा रहे हैं कि मंहगाई मार गई - मंहगाई मार गई।     

सोमवार, 14 दिसंबर 2009

भरोसा

एक बार एक विदेशी भारत देश घूमने की मंशा से चंद महीने हमारे देश में रहा। जब वो वापिस अपने परिवार के पास पहुंचा तो सबसे पहले उसने अपनी पत्नी से एक बात कही कि अब मुझे पूरा भरोसा हो गया है, कि भगवान सचमुच इस दुनियां में मौजूद है। उसकी पत्नी को बहुत हैरानगी हुई कि भारत के इस दौरे में ऐसा क्या कमाल हो गया कि जन्म-जन्म से मेरा यह नास्तिक पति अचानक ईश्वर को मानने लगा है। उस विदेशी ने बड़ी ही शंति से अपनी पत्नी को समझाया कि भारत में हर कोई बहुत ही मौज मस्ती से रहता है। किसी भी सरकारी दफतर में कभी भी चले जाओ, हर कोई या तो चाय पीता हुआ या गपशप करता ही आपको दिखाई देगा। कुछ लोग तो दिन में दफतर में सोते हुए या ताश खेलते भी आम देखे जा सकते है। परन्तु मजे की बात तो यह है कि इतने बड़े देश के सारे काम फिर भी ठीक से चल रहे है। अब अगर वहां के लोग काम नही करते तो हमारे पास इस बात को मानने के इलावा कोई चारा नही है कि यहां सब कुछ भगवान के भरोसे ही चल रहा है।

यह बात कहने सुनने में चाहें किसी को मजाक लगे, लेकिन अजादी के छह दशकों बाद भी आम आदमी का भरोसा न तो देश के नेताओ पर और न ही सरकारी दफतरों में बैठे अफसरों पर जमता है। इसका एक मात्र कारण यह है कि हमारे प्रिय नेता चुनाव जीतने के लिये अपने सगे रिश्तेदारो और शुभचिंतको को छोड़कर इलाके के नामी बदमाशों और गुंड़ो पर अधिक भरोसा करते है। राजनेताओं की बात चलते ही उनके बार-बार किये गये झूठे वादों को लेकर हर किसी का खून खोलने लगता है। हमारे नेता गद्दी पाने की लालसा में किसी को डरा-धमका कर और कहीं धर्म, भाषा, जाति, ऊंच नीच के भेदभाव से आग भड़का कर अपनी रोटीयां सेकने में ही भरोसा करते है। दुनियां में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद भी आम आदमी को सरकार से इंसाफ मिलने को कोई भरोसा नही होता। आम आदमी की बेबसी तो देखो कि यह जानते हुए भी कि हमारे नेता हमारी किसी समस्यां का हल नही दे सकते, हमें फिर ऐसे ही लोगो के झूठे वादो पर भरोसा करके उन्हें वोट देने को मजबूर होना पड़ता है।

जनता के भरोसे को इस बात से भी ठेस लगती है जब उन्हें यह मालूम होता है कि सरकारी पदों पर काम करने वालों में से अधिकाश लोग जनहित के बारे में न सोच कर व्यक्तिगत हित में काम करते है। आम आदमी चाहे कितना ही मजबूर या परेशान क्यूं न हो परन्तु अपनी सुरक्षा के लिये उसका पुलिस विभाग पर भरोसा नही बैठता। हर कोई अच्छी तरह से जानता है कि पुलिस को अपने इलाके में होने वाले हर वैध-अवैध काम की पूरी जानकारी होती है। फिर भी शरारती लोग तो मौज-मस्ती से इलाके में घूमते है जबकि ईमानदार आदमी को हर समय सरकारी डंडे का भय सताता रहता है। सरकारी दावें कुछ भी कहें परन्तु फुटपाथ पर रोजी रोटी कमाने वालों को इतना भरोसा जरूर होता है कि बिना कुछ भ्रष्ट पुलिस कर्मीयों का पेट भरे हुए वो अपने बच्चो के मुंह में रोटी का एक निवाला भी नही डाल सकता।

ऐसी बात नही है कि हालात इतने बिगड़ चुके है कि हमें किसी भी चीज पर भरोसा ही नही रहा। अभी भी बहुत सी ऐसी बाते है जिन के ऊपर हर कोई आंखे मूंद कर भरोसा कर सकता है। आपको और अधिक हैरान-परेशान न करते हुए मैं यह सब कुछ भी आपको बता ही देता  हूँ। हर दिन 8-10 बार बिजली रानी का गायब होना, सुबह-शाम नल खोलने पर सप्ताह में 3-4 दिन पानी के नदारद होने का हर किसी को पूरा भरोसा होता है। हमें इस बात का भी पूरा विश्वास होता है यदि गलती से नल में पानी आ ही गया है तो इस लायक नही होगा कि उसे आसानी से पीया जा सके। सड़को पर बड़े-बड़े गव्े और कालोनी के मेन होल से ढंक्कन गायब होने के भरोसे को हमारे सरकारी कर्मचारी कभी भी टूटने नही देते। व्यापारी वर्ग मंत्रीयों के साथ साठ-गांठ के चलते जरूरी घरेलू वस्तुओं की कीमत को बिना जनता का भरोसा तोड़े हर चंद दिनों में बढ़ा देते है।
रिश्वत देने के बावजूद भी हमें कई बार यह भरोसा नही होता कि सरकारी दफतर से काम ठीक तरीके और समय से हो पायेगा। लेकिन जब कोई बाबू आपको बहुत ही प्यार से पेश आये और दफतर में घुसते ही आपको कुर्सी पर बैठने के लिये कहें तो यह भरोसा पक्का हो जाता है कि अब कुछ ले दे कर हमारा काम असानी से हो जायेगा। हमारे नेताओ को चाहे खुद पर, चाहे अपनी गद्दी पर भरोसा हो या न हो, लेकिन वो हम सभी को यह भरोसा दिलवाने में अक्सर कामयाब हो जाते है कि उनको जनता पर पूरा भरोसा है कि सभी लोग वोट उन्हें ही देगे। इस सारे छल-कपट के खेल में जनसाधारण का भरोसा इतना टूट जाता है कि हम पूर्ण रूप से भगवान को मानते हुए भी कई बार उसके आस्तित्व पर भरोसा नही कर पाते।
अब यदि हमें एक दूसरे का भरोसा जीतना है तो समाज में इस तरह का वातावरण और व्यवस्था बनानी होगी जिससे हर अमीर के साथ गरीब आदमी को न्याय मिल सके। इससे पहले कि आपका भरोसा जौली अंकल से उठ जाये मैं एक ही बात कहना चाहता  हूँ कि दूसरो को आंकने से पहले अपने आप को आंके, आप सही में अपने को काफी खुश महसूस करेंगे। अंत मे मैं आपको विश्वास दिलाता  हूँ कि अब यदि आपको अपने ऊपर पूरा भरोसा है तो दूसरे सभी प्राणी भी आप पर भरोसा करने लगेगे।     

बुधवार, 18 नवंबर 2009

कथनी और करनी

  1. वादा करना जितना आसान होता है, उसे निभाना उतना ही मुशकिल।
  2. प्यार जताना बहुत अच्छा लगता है, पर उसे निभाना एक बोझ प्रतीत होता है।
  3. जीत सभी को अच्छी लगती है, हार को स्वीकार करना बहुत तकलीफ देह होता है।
  4. खुद को सुधारने की बजाए दूसरों की आलोचना करने में बहुत आंन्नद महसूस करते है।
  5. पूनम की रात का चंद्रमा बहुत खूबसूरत लगता है, अंधेरी रात के नाम से दिल कांपता है।
  6. किसी को ठोकर लग गिरते देख अच्छा लगता है, गिरे हुए को उठाना भारी महसूस होता है।
  7. दूसरों की कमियां निकालना बहुत आसान है, अपनी कमियों को देखना बहुत कठिन होता है।
  8. दूसरों के लिए कानून बनाना अच्छा लगता है, खुद उन्हीं को अपनाने में हमें तकलीफ होती है।
  9. अपनों को खोने का बहुत दर्द होता है, लेकिन उन्हें खोने से पहले हम उनकी कद्र नही करते।
  10. बार-बार रोजमर्रा की जिंदगी में गलतीयां करने के बावजूद भी हम उससे कुछ सीख नही लेते।
  11. तोहफे लेना तो हमें बहुत अच्छा लगता है, परन्तु तोहफा देते समय हमें यह भारी बोझ लगता है।
  12. सुधार करने के बारे में हम बातें तो बहुत करते है, लेकिन उसे अमल में लाने का प्रयत्न नही करते।
  13. हर रात सपने देखना हमें बहुत भाता है, असल जीवन में उन्हें पूरा करने से हम खुद ही कतराते है।
  14. बातो-बातो से हर किसी को खुश करना आसान होता है, व्यावहारिक तौर पर निभाना उतना ही कठिन।
  15. किसी को माफी देने में हमें बड़ा सुकून मिलता है, खुद माफी मांगते समय हमारा अंहकार आढ़े आता है।
  16. जीवन में सदा अच्छा ही देखने को मन करता है, बुरे वक्त के बारे में सोचते ही हमारी आत्मा तक कांप उठती है।
  17. दूसरों की कमियों को उजागर करने में हम गर्व महसूस करते है, अपनी कमीयों पर हहर कोई कोई पर्दा डालता है।
  18. इन नसीहयतों को पढ़ना तो बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन इन्हें अमली जामा पहनाना तो अपनी पहुंच से बाहर लगता है।

  1. बिना सोचे-समझे किसी को कुछ भी कहना बहुत सरल लगता है जबकि अपनी ही जुबान पर काबू रखना हमारे लिए एक कठिन कार्य है।

  1. जो हमें प्यार करता है, उसे ठेस पहुंचाने में हम पल भर की भी देरी नही लगाते, जबकि हम यह जानते है कि उस जख्म को भरना नमुमकिन होता है।

इसीलिए तो जौली अंकल सदैव यही कहते है कि दूसरों को सच की शिक्षा देने से पहले खुद झूठ बोलना छोड़िए। स्वयं में दैवी गुणों का आहवान करने का प्रयत्न करो तो अवमुण खुद ही भाग जाएंगे। सच्चा ज्ञान वही है, जो अपने ज्ञान से दूसरों को लाथन्वित कर सके। यदि सुखमय जीवन का आंनद लेना है तो हमें इस कथनी और करनी के फर्क को सच्चे मन से मिटाना होगा।        

हद कर दी आपने

बड़े मिया ने अपने पोते को पढ़ाते हुए पूछा कि जरा यह तो बताओ कि हमारे प्रधानमंत्री कहा पैदा हुए थे और उन्होने अपनी पढ़ाई कहा से की है? षरारती पोते ने कहा कि वो अस्पताल में पैदा हुए थे और उन्होने अपनी पढ़ाई स्कूल से की थी। बड़े मियां ने डांटते हुए कहा कि हमारे जमाने में हमें नेताओ के बारे में छोटी से छोटी जानकारी भी मालूम होती थी। पोते ने तपाक् से कह डाला कि उस समय के नेता भी तो आपका ख्याल रखते थे। आजकल न तो नेता लोग जनता के बारे में सोचते है और न ही जनता उनकी परवाह करती है। पोते को डांटते हुए बोले, मियां आपने तो यह कह कर तो हद ही कर दी। बच्चे के मुख से इतना तीखा जवाब सुन कर बड़े मियां गहरी सोच में डूबने को विवष हो गये। दिमाग ने जब पुरानी यादें ताजा करने का प्रयत्न किया तो उन्होने पाया कि पोते ने चाहे जवाब किसी भी मंषा से दिया हो, परंतु उसमें कड़वी सच्चाई छिपी हुई है।
आजाद भारत देष को अब तक 17 प्रधानमंत्रीयों में सबसे अधिक कुषल, गुणी, विद्वान, अर्थषास्त्री और विचारक के रूप में यदि कोई प्रधानमंत्री मिला है तो वो है डा, मनमोहन ंसिंह। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद यह पहले ऐसे प्रधान मंत्री है जिन्हें देष की जनता ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद से नवाजा है। देष-विदेष में इनकी पहचान बहुत ही ईमानदार छवि के साथ एक कुषल और मंजे हुए अर्थशास्त्री की है। दुनियां की शायद ही ऐसी कोई बड़ी वित संस्था होगी जहां श्री सिंह ने कामयाबी के झंड़े न गाड़े हो। डा, मनमोहन सिंह के पहली बार प्रधानमंत्री बनते ही देष की सारी जनता इनकी काबलियत और साफ सुथरी कार्य शैली की दीवानी हो गई। जब श्री सिंह ने पहली बार बिना चुनाव लड़े ही देष के प्रधान मंत्री का पद संभाला तो हर एक आम आदमी के मन से यही आवाज आ रही थी कि अब तो दुख भरे दिन जल्द ही खत्म हो जायेगे। हर गरीब किसान और मजदूर से लेकर मध्यम वर्ग के दिलों में सैंकड़ों ख्वाब जवां होने लगे थे। जिसे देखो वो ही इन हसीन ख्वाबो में खुषी से डोलता नजर आ रहा था। हर किसी के दिल में यही आस थी कि डा, मनमोहन से बढ़ कर गरीबो का मसीहा भारत देष में कोई और नही हो सकता। हर देषवासी इसी गलतफहमी में जी रहा था कि लाखों-करोड़ो दीन-दुखीयों के दर्द की टीस प्रधानमंत्री के दिल को एक बार तो जरूर छुऐगी और जल्द ही सारे देष में कामकाज और सरकारी व्यवस्था का साफ सुथरा महौल बन जायेगा।
हमारे देष की भोली जनता यह नही समझ पाई कि जिन लोगो ने मनमोहन सिंह को बिना चुनाव लड़े घर में बैठे हुए प्रधानमंत्री का ताज पहनाया है, वो उनकी बात को छोड़ कर गांव में गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने वाले किसानों और मजदूरों की बात क्यूं सुनेगे? पहली बार आम जनमानस के सामने यह कड़ुवा सच आया कि उनके जख्मों को भरने के लिए मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री के पास भी कोई महरम नही है। दुनियां भर में पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजे गये श्री सिंह देष के प्रधानमंत्री होते हुए भी एक रेलवे के इंजन ड्राईवर से बढ़ कर कुछ नही है। हर कोई इतना तो समझता है कि हमारे देष में सरकार किसी के हाथ में है और सरकार की कमान परदे के पीछे बैठे किसी दूसरे के हाथ में है। आज सारा देष मंहगाई की मार से मर रहा है। हर वस्तु एंव दाल-सब्जी के बार-बार बढ़ते दामों के कारण बच्चो के लिए रोटी का जुगाड़ करते हुए गरीब आदमी का सीना छलनी होता जा रहा है। लोगो को फल और सब्बजियों की बढ़ती कीमतों के चलते उनके नाम और शक्ल तक भूलने लगी है। गलती से कोई डॉक्टर किसी मरीज को फल या हरी सब्जी खाने को कह दे तो उस बेचारे का उसी समय रंग पीला पड़ने लगता है। मंहगे इलाज के चलते उसकी जीवन नैया मझदार में हिजकोले खाने लगती है।
हमारे सबसे कामयाब प्रधानमंत्री भी इस बात को मानते है मंहगाई के मोर्चे पर सरकार से भारी चूक हुई है। एक बात जो किसी के गले नही उतरती वो यह है कि दुनियां को अर्थशास्त्र का ज्ञान देने वाले इंसान से कहां और कैसे भूल हुई? नतीजतन जिसके चलते देष में सभी वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्वि हो रही है। वैसे तो आम आदमी के पास इतनी फुर्सत और ताकत बची ही नही, कि वो सरकार की विफल नीतियां और मंहगाई के विरोध में आवाज उठा सके। यदि कभी कभार कोई यह गलती करने की कोषिष करता भी है तो सरकार के निर्देष पर पुलिस डंडे बरसाने लगती है। कोई थोड़ी बहुत जोर जब्बरदस्ती करता है तो उन्हें झूठे आरोपो में गिरफतार करके जेल में डाल दिया जाता है। प्रधानमंत्री आम जनता की तकलीफो से मुख मोड़ कर एक ही बात कहते है कि आंदोलन करने से कुछ हल नही निकलेगा। सरकार कुछ कार्रवाई करने को तैयार नही, फिर जनता राहत की उम्मीद करे भी किस से करे? रिष्वत खोरी, भ्रष्टाचार, चोर बाजारी करने वालों को सरकार और पुलिस का कोई डर नही रह गया।
हर देषवासी के सामने एक ही प्रष्न बार-बार उठता है कि सारी दुनियां में धाक रखने वाला इतना कामयाब प्रधानमंत्री न जानें किसके दबाव में है कि उन्हें न तो जनता का कोई दुख दिखाई दे रहा है और न ही उसकी चीख पुकार सुनाई दे रही है। क्या आप इतना भी नही समझते कि राजनेता का मुख्य दायित्व जनसेवा ही होता है और प्रधानमंत्री को सर्वप्रथम जनता का सच्चा सेवक होना चहिए? आज हर भारतीय की आत्मा रोते-रोते यही कह रही है कि मनमोहन ंसिंह जी आपने तो सिंह और किंग होते हुए भी नामर्दो की तरह देष के आम आदमी के लिए कुछ नही किया। आपके इस वादे पर कि आप देष से गरीबी खत्म कर देगे, जनता ने दूसरी बार आपको प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया है, अब तो जनता को कुछ राहत पहुंचाओ। यदि इसी तेजी से कीमते बढ़ती रही तो आने वाले समय में जल्दी ही सारे देष से गरीब ही खत्म हो जायेगे फिर आप गरीबी क्या खाक मिटाओगे? हर तरफ से निराष हो चुके मन से अब तो यही टीस उठ रही है कि आज के इस बिगड़ते हुए महौल में यदि जनहित को कोई राहत दे सकता है तो वो सिर्फ भगवान ही बचा है। परंतु ऐसा लगता है कि वो भी अब इस काम को करने में कोई रूचि नही रखते। चारों और फैली हुई गरीबी, मंहगाई, हिंसा, और आंतकवाद की आग को ब्यां करते हुए अब तो जौली अंकल की कलम भी अपने भारी मन और आंसूओ के साथ यही कह रही है कि मनमोहन जी प्रधानमंत्री बन कर तो हद कर दी आपने। 

नशा करना है तो

कुछ दिन पहले हम एक होटल में परिवार के साथ बैठकर रात के खाने का आनंद ले रहे थे। हमारे साथ वाली मेज पर कुछ युवक भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के साथ-साथ दारू का मजा भी ले रहे थे। पाकिस्तान के एक खिलाड़ी की गेंद पर सचिन ने काफी देर बाद बहुत ही जोर से एक शॉट मारा तो गेंद गोली की तरह सीधे छह रन के लिये मैदान से बाहर हो गई। यह देखते ही उनमें से एक युवक बोला कि यार मजा आ गया, इसी बात पर जल्दी से एक बढ़िया सा पैग बनाओ। कुछ गेंद इधर-उधर खेलने के बाद सचिन साहब अपनी आदतानुसार एक आसान सी गेंद पर आउट होकर पैविलियन की तरफ चल दिये। फिर उसी मेज से आवाज आई, वेटर जल्दी से एक पैग लेकर लाओ, सचिन ने तो सारा मूड़ ही खराब कर दिया। मुझे तो एकदम से वो बात याद आ गई - कारण कुछ भी हो, पीने वालों को तो पीने का बहाना चाहिये। दारू पीने वाले तो सांझ ढ़लने का इंतजार करते रहते है, कि कब शाम हो और वो महखाने में महफिल जमां सके। जैसे ही मंदिर में शाम को पूजा की घंटियां बजनी शुरू होती है, दारू पीने वालों के दिमाग में नशे की घंटीयां बजनी शुरू हो जाती है। एक और जहां कुछ लोगो के दिलों दिमाग पर दारू का नशा हावी होता है, वही कुछ लोगो को अपने पैसे और ताकत का नशा होता है।
गम हो या खुशी, काम की कोई परेशानी हो या व्यापार में किसी किस्म का फायदा-नुकसान, पीने वालों को तो हर समय मौके की तलाश रहती है। घर में छोटी से छोटी खुशी का इजहार करने के लिये दारू तो एक फैशन बनती जा रही है। किसी को पुरानी शराब से सरूर मिलता है, तो किसी को नये ब्रांड से लगाव होता है। मतलब तो यह है कि कोई न कोई नशा होना चाहिये। अब वो चाहे किसी भी प्रकार का हो। अमीर लोग होटल-क्लबों में, मध्यमवर्गीय लोग कुछ घर में बैठ कर तो कुछ गली या पार्क के किसी कोने में छुप कर अपनी तलब पूरी करते है। उससे नीचे की कमाई वाले लोग अपनी हैसयित के मुताबिक देसी दारू, अफीम, चरस से या कुछ गोलियां एवं इन्जेक्शन आदि लगा कर सुकून महसूस करते हैं। फिर चाहे इससे कितने ही परिवार बर्बाद हों, शरीर कोई रोग ही क्यों ना लग जाए? नशा करने वालो को सदा एक बात याद रखनी चहिये कि जिस दिन वो पहली नशा करते है, उनका वो कदम उनके जीवन की बर्बादी की शुरूआत करता है।
कई बार नशा करने वालाें से बातचीत का मौका मिला तो एक बात सब लोगों में सामान्य रूप से पाई गई कि वो किसी भी प्रकार नशा करते हो, कोई भी यह मानने को तैयार नहीं कि मैंने अपनी मर्जी से नशा किया है। हर कोई एक दूसरे के कंधे पर बन्दूक रखकर अच्छी तरह से चलाना जानते हैं। सबके पास पीने का कोई न कोई ठोस बहाना भी जरूर मिल जाएगा। कोई घर की परेशानियों से तंग है, तो कोई अपने गम भुलाने की कोशिश करने के लिये पीता है। असल में किसी भी छोटे-मोटे काम के पूरा होने पर दारू के साथ उसे उत्सव के रूप में मनाना आज के समाज में फैशन सा बनता जा रहा है।
यह भी सच है, कि मिर्ज़ा गालिब से लेकर आज तक सैंकड़ों शायरों ने दारू की तारीफ में हजारों बार कसीदे पढे हैं। लेकिन क्या किसी प्रकार का कोई नशा सचमुच आपकी परेशानी को खत्म कर पाया है? क्या यह नशे आज तक आपके किसी गम को भुलाने में सहायक हुए हैं। अगर असल जिंदगी में यह मुमकिन होता तो अब तक सारे गधे दारू पीकर इन्सान बन जाते। लेकिन हमारे यहां तो पढ़े-लिखे लोग दारू पीकर गधों जैसी हरकतें करते अक्सर नजर आ जाते हैं। आज तक इतिहास में एक भी ऐसा उदारण देखने को नहीं मिलता कि किसी भी प्रकार के नशा करने वाले इन्सान ने समाज को किसी तरह से भी प्रभावित किया हो। कोई भी नशा जिसे लेने से आपका अपने शरीर, मन और मस्तिष्क पर काबू खत्म हो जाता हो, वो आपकी परेशानियों को कैसे खत्म कर सकता है और ऐसा नशा करने का क्या फायदा जो सिर्फ कुछ देर में ही उतर जाए? इतना सब कुछ जानने और समझने के बाद भी यदि आप नही संभलते तो फिर सारी उंम्र यही कहना पड़ेगा कि सब कुछ लुटा कर होश में आये तो क्या किया।
नशा करना है तो भगवान के नाम का करो, दीवाना बनना है तो राम के नाम का बनो। एक बार उस परमात्मा के नाम की खुमारी का असर आपके ऊपर छा गया तो फिर आप एक ही बात बार-बार कहोगे कि - नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात। जिसका मतलब है कि ऐ भगवान तेरे नाम का नशा दिन रात सदा-सदा के लिये चढ़ा रहे। वो लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें भगवान का आर्शीवाद प्राप्त होता है। एक बार सच्चे मन से लगन लग जाए तो, जौली अंकल का वादा है कि फिर सारी दुनिया के नशे आपको फीके लगने लगेगे।      

स्वभाव

एक बार एक साधु महात्मा नदी के किनारे से गुजर रहे थे, उन्होंने एक कीडे क़ो नदी में गिरते देखा, तो पास जाकर उसे बचाने की कोषिष करने लगे उसे झट से उठा कर जैसे ही पानी से बाहर निकाला तो उस कीडे ने साधू महाराज को बहुत जोर से डंक मार दिया। साधू के हाथ से वो कीड़ा गिरकर फिर छटपटाते हुए नदी में डूबने लगा। साधु महाराज ने 2-3 बार फिर से उसे बचाने की कोषिष की लेकिन जैसे ही वो अपना हाथ उस कीड़े को बचाने के लिए आग बढ़ाते वो कीड़ा उन्हें हर बार डंक मार देता। पास से गुजरते एक राहगीर ने साधू महाराज से पूछा कि महाराज वो कीड़ा बार-बार आपको डंक मार रहा है, आप फिर भी उसे बचाने की व्यर्थ कोषिष क्यूं कर रहे हो? साधू महाराज ने बड़ी ही नम्रतापूर्वक कहा, उस कीड़े का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है, जीवन बचाना। अगर वो कीड़ा होते हुए अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता तो मैं अपना स्वभाव कैसे छोड़ दूं? साधू महाराज ने आगे समझाते हुए कहा कि हमारा जीवन एक नाटक की तरह है, यदि हम इसके कथानक को ढंग से समझ लें तो सदैव प्रसन्न रह सकते हैं।
मुझे यह कहानी इसलिये याद आ गई, क्योंकि कुछ दिन पहले कुछ सरकारी डाक्टर और अफसर हमारे इलाके में आकर सभी कालोनी निवासियों को साफ-सफाई रखने और बीमारियों से बचाव के तरीके समझा रहे थे। मैंने बहुत ध्यान से जब सब तरफ देखा तो पाया कि इस बैठक में अधिकतर 40-50 साल की उम्र के अच्छे पढ़े-लिखे और जिम्मेदार नागरिक षामिल थे। सरकारी अफसरों ने काफी समय लगा कर हमें साफ-सफाई और अच्छे रहन-सहन के बारे में हर प्रकार की जानकारी बहुत ही बरीकी से दी। हमने भी उनकी बातें बहुत गौर से सुनीं और पाया कि इनमें से अधिकतर बातें हम सब लोग जानते है। फर्क सिर्फ इतना है, कि हम लोग व्यावहारिक जीवन में उन पर अमल नहीं करते क्योंकि हमने इन्हें कभी भी अपने स्वभाव में शामिल करने की कोषिष नहीं की। हम अपना घर साफ करके कूड़ा-कचरा गली के कोने में फेंक देते है, और उम्मीद करते हैं कि सरकारी कर्मचारी आकर इसे अपने आप साफ करेंगे, फिर तब तक चाहे कोई महामारी ही क्यूं ना फैल जाये? हम तो अपना पल्ला झाड़ कर सारा इल्जाम सरकार पर थोप देते हैं।
हम अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजकर अच्छी षिक्षा का इन्तजाम तो कर देते हैं, पर उन्हें जीवन के मूलभूत सिध्दान्त सिखाना भूल जाते हैं। हर परिवार सिर्फ यही चाहता है कि जीवन में उनके बच्चे अच्छी षिक्षा ग्रहण करके अधिक से अधिक धन कमाने की मषीन बन सकें। अच्छे नागरिक के गुण देने का कर्तव्य तो अधिकतर परिवार भूल जाते है। जाने अनजाने, हम अपने बच्चों को समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को जागरूक करने की बजाए उनको अपने ही स्वार्थ तक सीमित रहने के लिये प्रेरित करने की भूल कर बैठते हैं। बाकी की सब बातों को भूलकर पैसा कमाना ही हमारी प्राथमिकता बन गई है। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि इस देष का अब कुछ नहीं हो सकता पर गौर से देखा जाए तो अभी बिगड़ा ही क्या है? अगर हम आज से भी अपने बच्चों को घर और स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ साफ-सथुरे जीवन का ढंग सिखाना षुरू कर दें, तो अच्छे नागरिक के सारे संस्कार हमारे बच्चों के स्वभाव में रचबस जाऐंगे। फिर उसके बाद उनको अच्छे रहन-सहन, साफ-सफाई और कानून की इज्जत करने के लिये हमारी तरह बुढ़ापे की उम्र में भाषण देने की जरूरत नहीं पडेग़ी।
यदि आज से भी जनसाधारण अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझना षुरू कर दें, तो हमें अपनी अधिकतर समस्याओं के समाधान के लिये सरकारी मषीनरी की तरफ नहीं ताकना पड़ेगा। अब अगर हम एक बार मन में ठानकर यह शुरूआत करें तो आने वाली पीढ़ियों के साथ-साथ हमारे समाज का भविष्य साफ-सुथरा, सुरक्षित और उज्जवल हो जाएगा। कुछ लोग जल्दबाजी के स्वभाव के चलते झूठी प्रंशसा पाने के लिए बिना सोचे समझे अपने स्वार्थ्र हेतू कुछ भी करने को तैयार हो जाते है। जबकि किसी काम को करने के बाद पछताने से बेहतर है कि काम करने से पहले उस पर सोच-विचार लिया जाए। ऐसे लोगो को यह भी नही भूलना चहिये कि इस तरह के स्वभाव के लोगो का साथ सज्जन पुरष कभी नही निभा पाते। सदैव अपने स्वभाव को सरल बनाओ तो आपका समय व्यर्थ नहीं जाएगा। जब आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलते हो तो उस समय दूसरे भी आपको महत्व देंगे।
साधू-संतो की बात को पल्ले बांधते हुए जौली अंकल तो यही कह सकते है कि हम सभी को मिलकर आज अपने आप से यह वादा करना होगा कि हम अपने परिवार के साथ अपने खुद के स्वभाव को देष और जनहित में बदलेगे क्योंकि जनहित की सेवा करने वाले सेवा करते हुए भी सुखी देखे जाते हैं और स्वार्थी स्वभाव वाले तो अक्सर दुखी ही नजर आते है।          

कहीं देर न हो जाऐं

टीचर ने गप्पू को डांटते हुए कहा कि कम से कम 100 बार तुम्हें समझा चुका  हूँ कि स्कूल शुरू होने का समय सुबह सात बजे है। परन्तु तुम इतने ढीठ हो चुके हो कि कभी भी क्लास में आठ बजे से पहले नही आते। गप्पू ने मसखरी हंसी हंसते हुए कहा कि मैंडम आप मेरी चिंता बिल्कुल मत किया करो। आप अपना स्कूल समय पर शुरू करवा दिया करो। टीचर ने अपने गुस्से पर थोड़ा काबू रखते हुए गप्पू से पूछा कि हर दिन स्कूल में देरी से आने का कोई न कोई बहाना तुम्हारे पास जरूर होता है, आज कौन सा नया बहाना लेकर आये हो? गप्पू ने बिना किसी झिझक के मैंड़म से कहा कि आज तो स्कूल के लिये तैयार होने में ही इतनी देर हो गई कि कोई बहाना सोचने का समय ही नही मिला।
ऐसे किस्से सिर्फ स्कूलों में ही देखने को मिलते है, ऐसी बात नही है। सरकारी दफतरों और खास तौर से अस्पतालों में इस तरह किस्से कहानियों की तो भरमार है। चंद दिन पहले हमारे पड़ोसी मुसद्दी लाल जी को दिल का दौरा पड़ गया। सभी घरवाले उन्हें तुरन्त ही पास के एक नजदीकी सरकारी अस्पताल में इलाज के लिये ले गये। वहां का महौल देख कर तो ऐसा लग रहा था कि शायद आज सारे शहर के लोग बीमार होकर यहां आ गये है। जगह-जगह दीवार पर लगी तख्तीयां पर लिखे इस संदेश को कि कृप्या शांत रहे अनदेखा करते हुए लोग मछली बाजार की तरह शोर मचा रहे थे। इस महौल में मुसद्दी लाल जी की तबीयत और बिगड़ती जा रही थी, लेकिन डॉक्टर साहब का अभी तक कोई अता पता नही था। उनके बेटे ने अस्पताल के एक कर्मचारी से जब डॉक्टर साहब के आने के बारे में पूछा तो टका सा जवाब मिला कि डॉक्टर साहब थोड़ी देर पहले ही आये है। परन्तु रास्ते में टै्रफ्रिक जाम के कारण थक गये है, इसलिये थोड़ा आराम कर रहे है। आप शंति के साथ थोड़ा इंतजार करो, डॉक्टर साहब के आने पर आपका इलाज शुरू हो जायेगा। मुसद्दी लाल के बेटे ने डरते हुए कहा मेरे पिता जी की तबीयत बहुत बिगड़ रही है, कहीं ऐसा न हो कि डॉक्टर साहब के आने तक बहुत देर हो जाये।
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, मुसद्दी लाल जी के घर वालों के गुस्से का पारा भी तेजी बढ़ता जा रहा था, लेकिन कोई भी कुछ भी करने में अपने आप को असमर्थ पा रहा था। काफी देर बाद जब डॉक्टर साहब आराम फरमा कर बाहर आये तो वहां खड़े हर किसी ने इंसानियत की सभी मर्यादयों को तोड़ते हुए जानवरों जैसा व्यवहार शुरू कर दिया। मुसद्दी लाल जी का थोड़ा बहुत चैकअप करने के बाद डॉक्टर ने कुछ गोलीयां खाने को दे दी और साथ ही इलाज शुरू करने से पहले दिल की गहन जांच के लिये इंजोग्राफी करवाने को कह दिया।
अब सभी घरवाले मुसद्दी लाल जी को लेकर इंजोग्राफी करने वाले विभाग की और भाग रहे थे। वहां भी बहुत देर तक इंतजार करने के बाद बड़ी मुशकिल से एक नर्स से मुलाकात हो सकी। उसने बिना कुछ भी सुने डॉक्टर की पर्ची को देखते ही उस पर तीन महीने बाद की तारीख ड़ाल दी। पर्ची पर तीन महीने बाद की तारीख देखते ही मुसद्दी लाल के बेटे का मन कर रहा था कि ऐसे करूर कर्मचारीयों को गोली मार दे। लेकिन पिता की तेजी से बिगड़ती हालात की गंभीरता और नजाकत को समझते हुए उसने गिड़गिड़ाते हुए उस नर्स से इतना ही कहा कि आपको क्या लगता है कि ऐसी हालत में मेरे पिता जी तीन महीने तक बच पायेगे। नर्स ने बिना उनकी और देखे ही कह दिया यदि इन्हें कुछ हो जाता है तो आप फोन करके हमें सूचित कर देना ताकि हम वो तारीख किसी और मरीज को दे सके।
ऐसे में गरीब आदमी दोष दे भी तो किस को? अस्पताल के कर्मचारी बढ़ते काम को अधिक बोझ बता कर, सरकार देश में बेलगाम बढ़ती अबादी और सीमित कर्मचारीयो एवं संसाधनों का रोना रो कर अपना पल्ला झाड़ लेती है। सरकार में जिम्मेदारी के सभी पदों पर बैठे देश के रहनुमाओं को यह कभी नही भूलना चहिये कि गरीबो के शाप से कई देश बर्बाद हो गए है, कई बार राजाओं को अपनी गद्दी तक छोड़नी पड़ी है। आदमी गरीब हो या अमीर जीवन सभी का अनमोल होता है, ऐसे में कोरी बहाने बाजी करने से न तो किसी समस्यां का हल निकल सकता है और न ही किसी का जीवन बचाया जा सकता है। सदैव यह याद रखो कि समय ही जीवन है, समय को बर्बाद करना अपने जीवन और देश को बर्बाद करने के समान है। अब यदि आपको दूसरों की प्रतीक्षा करने की पड़ ही चुकी है तो आप दुसरों की अपेक्षा अवश्य ही पीछे रह जाएंगे। अभी भी इतनी देर नही हुई है कि हम हर तरफ से उम्मीद ही छोड़ दे। कभी भी अपने जीवन में आशा न छोड़े, आशा एक ऐसा पथ है जो जीवन भर आपको गतिशील बनाए रखता है। जो व्यक्ति जीवन में उम्मीद खो देता है समझों कि उसने सब कुछ खो दिया।
जौली अंकल बिना और देरी किये अपने मन की भावनाओं को आपके सामने कुछ इस प्रकार रखते है कि कभी भी इस तरह से धन न कमाओं कि आपके हाथों कोई पाप हो जाऐं और जीवन में कभी भी इस तरह से न चलों की कहीं देर न हो जायें।  

स्पैशल हैप्पी न्यू ईयर

घंटे, दिन, हफते और महीनो के साथ-साथ तेजी से बदलते हुए कैलेडंर के पन्नो ने कब एक और साल को अलविदा कहने की कतार पर ला कर खड़ा कर दिया पता ही नही चला। पलक झपकते ही मौसम की तरह कब और कैसे बदल जाते है साल, इस बात की खबर, समय किसी को नही लगने देता। आपने एक बात पर जरूर गौर किया होगा कि अधिकतर लोग नये साल के जश्न पर अपने लिए कोई न कोई नेक प्रस्ताव जरूर बनाते है। वो बात अलग है कि आजकल लोगो की यादशश्त इतनी कमजोर होती जा रही है कि चंद दिनों बाद ही याद नही रहता कि इस नये साल पर उन्होनें अपने लिये क्या प्रण लिया था, फिर ऐसे में उस पर अमल करने का तो प्रश्न ही नही उठता। ऐसा ही एक किस्सा मैं सबके चहेते वीरू का आपको बताता  हूँ। उस दिन मैने जब उसे एक पार्टी में देखा तो वो पैग पर पैग चढ़ाये जा रहा था। मैने उसे याद करवाया कि तुमने तो इस साल के शुरू में वादा किया था कि तुम अब कभी भी दारू नही पीओगे, आज यह क्या कर रहे हो? नशे में टून हो चुके वीरू ने लड़खड़ाती जुबान से नये साल की मुबारक देते हुए कहा कि अभी तो मैने सिर्फ अपने पैसो की पीनी छोड़ी है और फिर आज तो नया साल है। जो सारा साल दारू को हाथ नही लगाते इस दिन तो वो भी दारू का प्यार से गले लगा लेते है। उसके इस जवाब से आपको भी हैरानगी तो जरूर हो रही होगी, लेकिन अधिकाश: लोगो का इस मामले में यही हाल होता है।

नया साल कोई त्योहार न होते हुए भी एक त्योहार से बढ़ कर होता है। चारो और हंसी-खुशी का महौल, छोटे-बड़े सभी संगीत की धुनों पर डांस करते हुए और मस्ती के मूड में देखने को मिलते है। हर कोई पुराने साल को बाय-बाय और नये साल के स्वागत के लिए बड़े ही जोर-शोर से तैयारी करता है। एक और कुछ लोग मंदिर, गुरूद्ववारों में पूजा अर्चना से नये साल की शुरूआत करना पंसद करते है तो दूसरी और कुछ लोग अक्सर नये साल की शुरूआत परिवार वालो और दोस्तो के साथ मिलकर पार्टी करते है। कुछ मनचले युवा सड़को पर हुड़दंग मचा कर और दारू के नशे में डूबने को ही नये साल के जश्न का नाम देते है।

नशे में डूब कर पुराने साल को भूलने और नये साल को याद करने की पंरम्परा कब और कैसे शुरू हुई, इस बारे में तो कोई शौधकर्ता ही प्रकाश डाल सकते है। कोई इंसान कितने ही कष्ट और फटेहाल में जी रहा हो परंन्तु हर कोई नये साल के मौके पर एक दूसरे को सुख, समृद्वी, अमन-चैन, अच्छे स्वास्थ्य के साथ मंगलमई और आनन्ददायी जीवन की कामना करते हुए शुभकामनाऐं देते है। हर साल आम आदमी के लिए हालात बद से बद्तर होते जा रहे है, फिर भी हम सभी नये साल के स्वागत में चाहे बुझे मन से ही सही हर किसी को शुभकामना देने की पंरम्परा तो निभाते चले जा रहे है। आज मंहगाई की इस मार के चलते जब गरीब की थाली से दाल-रोटी रूठती जा रही है, बच्चे दूध के लिये तरस रहे है, ऐसे में कोई अपने प्रियजनों को नये साल की मुबारक दे भी तो किस मुंह से? नये साल की शुभकामना देने के लिये थोड़ी देर के लिये ही सही लेकिन अपने चेहरे पर खुशी कहां से लाऐं।

पिछले साल भी हमने अपने दोस्तो और रिश्तेदारों को नये साल की शुभकामना देते हुए भगवान से प्रार्थना की थी कि सभी का जीवन आनन्ददायक, शांतमई और सुखदाई हो, लेकिन हुआ सब कुछ इसके उल्ट। ऐसा लगता है कि भगवान ने भी गरीबो से रूठ कर अमीर व्यापारियो, जमाखोर और भ्रष्ट नेताओ से दोस्ती कर ली है। आखिर वो ऐसा करे भी क्यूं न? गरीब आदमी जहां रूप्ये-सवा रूप्ये का प्रसाद चढ़ा कर अपनी मांगो की लंबी लिस्ट भगवान के सामने रख देता है, वही बड़े-बड़े घपले करने वाले नेता आऐ दिन लाखो-करोड़ो का चढ़ावा भगवान के चरणों में आर्पित करते है। अभी तक तो यही सुनने को मिलता था कि ईश्वर सभी को सुख देता है, लेकिन आजकल के हालात देखने से तो यही महसूस होता है कि जिस देश की सरकार आम आदमी की कमर तोड़ने के लिये अपनी कमर कस ले, उस बेचारे को भगवान भी नही बचा सकता। देश की जनता किस हाल में और कैसे गुजारा कर रही है, इस बात से हमारे देश के रहनुमा बिल्कुल बेखबर होकर शानदार होटलों में नये साल का जश्न मनाने में मशगूल है।

क्या हमने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि नये साल के स्वागत करने का सबसे बढ़िया तरीका क्या हो सकता है? जी हां नये साल की शुरूआत करने का सबसे बढ़िया तरीका है अपनी सभी परेशानीयां और गमों को भुलाकर हंसते'-हंसते नये साल का अभिनंदन करे। हम सभी का चहिये कि अपने बड़े-बर्जुगो का अच्छे सम्मान करते हुए उनसे आर्शीवाद ले, क्योंकि घरों में बड़े बुजुर्गों के अपमान से अच्छे संस्कारों की बहने वाली गंगा सूख जाती हैं। नये साल के मौके पर जो कोई संकल्प करो उसे बीच-बीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाते रहो तो एक दिन आप अवश्य विजयी बन जाओगे।
हम लाख चाह कर भी देश की भ्रष्ट व्यवस्था को नही बदल सकते। अब यदि हमें जीवन में हर परिस्थिति का सामना करना ही है तो इसे प्रेम से क्यों न करें? इस बार नये साल के प्रस्ताव के बारे में जौली अंकल तो यही सदेंश देना चाहते है कि अपने दुखों को भूल कर सबके प्रति भाई-भाई की दृष्टि रखने से आप सदा प्रेमयुक्त रह सकते है। नववर्ष कैसा हो इस परेशानी को भूल कर एक बार फिर से हिम्मत दिखाते हुए नई ऊर्जा के साथ बुलंद आवाज में कहो स्पेशल हैप्पी न्यू ईयर।