बहुत अरसा पहले एक आदमी मंदिर में भगवान की मूर्ति के सामने खड़ा होकर कुछ अपशब्द कह रहा था। पास से गुजरते हुए एक संत ने उससे पूछा कि भगवान ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो तुम इतनी बुरी तरह से उन्हें कोस रहे हो। उसने कहा कि भगवान ने मुझे पैदा करके इस दुनियॉ में तो भेज दिया है, लेकिन अब मेरे पास कुछ भी अच्छा खाना-पीने को नही है, जिससे कि मैं अपना जीवन सुखमई तरीके से व्यतीत कर सकूं।
संत जी ने कहा कि मुझे तो देखने से लगता है कि तुम तो अभी भी कई लाखों रूप्यों के मालिक हो। उस आदमी ने बिगड़ते हुए कहा एक तो मैं पहले से बहुत परेशान हूँ उस पर तुम मुझ से यह भद्दा मजाक कर रहे हो। संत ने कहा, यदि तुम्हें यकीन न हो तो मैं यह सब कुछ साबित कर सकता हूँ। अगर तुम चाहों तो मैं तुम्हारे दोनो हांथों की कीमत दो लाख रूप्ये तुम्हें अभी दे सकता हूँ। उस आदमी ने कहा यदि मैं अपने दोनो हाथ तुम्हें दे दूंगा तो मैं अपने रोजमर्रा के सभी काम कैसे कर पाऊगा? संत ने कहा चलो ठीक है, अगर तुम अपने हाथ नही देना चाहते तो फिर मुझे अपने दोनो पैर ही दे दो। मैं उसके भी दो लाख रूप्ये तुम्हें दे सकता हूँ। अब उस आदमी का गुस्सा और बढ़ गया, उसने संत को गाली देते हुए कहा कि तुम मुझे क्या पागल समझते हो? यदि मैं अपने दोनों पैर काट कर तुम्हें दे दूंगा, तो मुझे अपना सारा जीवन तो एक अपहिज की तरह ही बिताना पड़ेगा।
संत ने उसें शांत करते हुए कहा, तुम मुझे अपना कोई भी अंग नही बेचना चाहते, कोई बात नही, यह तो तुम्हारी चीज है और तुम्हारी ही मर्जी चलेगी। मेरे पास इसके अलावा भी तुम्हारे लिए एक और प्रस्ताव है। अब इसको मना नही करना, मैं तुम्हारी दोनों आखों के 5 लाख रूप्ये तुम्हें दिलवा सकता हूँ। अब तो वो आदमी आग बबूला होते हुए बोला कि तुम क्या चाहते हो कि मैं सारी उंम्र एक अंधा बन कर जमाने की ठोकरें खाता रहूं। मैं दुनियॉ की कोई खुशी न देख सकूं। मुझे नही चहिए तुम्हारे यह पांच लाख रूप्ये। इतना सुनते ही संत ने उस व्यक्ति को समझाया कि कुछ समय पहले तुम कह रहे थे कि तुम्हारे पास कुछ नही है, और अब तुम लाखों रूप्यो को ठुकरा रहे हो।
तुम्हारे जैसे मूर्ख लोग अपने दोष नही देखते लेकिन हर समय दूसरों के दोष ढूंढने का काम करते रहते है। जीवन में यदि कुछ पाना है तो उसके लिए सिर्फ मन की इच्छा से नही, अपने हाथ-पैर हिलाने से ही उसकी प्रप्ति की जा सकती है। ईश्वर ने तुम्हें हाथ-पैर रूपी संजीव हीरे दिए है। इनका इस्तेमाल करके लाखों और हीरे कमा सकते हो। सबसे बड़ी बात मेहनत करने से तुम्हें कभी कोई बीमारी भी नही तंग करेगी। जिस तरह कुदरत हर सुंदर फूल के साथ कांटे देती है ठीक उसी प्रकार सुख-दुख हमारे जीवन के दो ऐसे पहलूं है, जिनसे कोई मुख नही मोड़ सकता। यह धूप-छांव की तरह सदा ही हमारे जीवन में साथ-साथ चलते रहते है।
जैसे-जैसे हम कुदरत से दूर होकर उसके द्वारा बनाई गई हर वस्तु को अपने मन-मुताबिक ढ़ालने की इच्छा को बढ़ावा देते है, हमारी परेशानीयॉ बढ़नें लगती है। साधु-संतो ंके पास अपना कोई घर बाहर न होते हुए भी वो जीवन के हर पल का भरपूर सुख भोगते है। तुम्हारे जैसे इंसान के पास सभी सुख-सुविधाऐ होते हुए भी तुम्हें संतोष नही मिलता। सैंकड़ो प्रकार के व्यजनों के खाने से भी तुम जैसे लोगो को तृप्ति नही मिलती जबकि साधू लोग भिक्षा में जो कुछ मिल जाए उसे पाकर ही परम-पिता परमात्मा का धन्यवाद करते रहते है।
स्वामी विवेकानंद अक्सर अपने शिष्यों को कहा करते थे, कि मैने तो जीवन का भरपूर रस पी लिया है, छिलके खाये संसार। छिलके खाने से उनके तात्पर्य यह था कि इंसान का रोजमर्रा के जीवन में दुखी रहना। हर कोई यह जानते हुए भी कि शरीर मिट्टी का मटका है, इसे एक न एक दिन फूटना ही है, इस कड़वी सच्चाई को मानने को तैयार नही होता। राम नाम की धुन में हर समय खोये रहने वाले सदा ही अल्लाही मस्ती की दुनियॉ में रहते हुए सच्चे सुख को भोग पाते है। जैसे ही आदमी संसारिक दुनियॉ के भंवर में डूबने लगता हैे, वह अपनी शंति खो कर दुखी होने लगता है। कठोर से कठोर इंसान भी ऐसे हालात में अंदर तक हिल जाता है।
ऋृषि-मुनीयों की विचारधारा को समझते हुए जौली अंकल का मानना है कि इंसान जब सच्चे मन से भगवान को प्यार करता है, तो वह खुश होकर हमारे जीवन से दुख रूपी कांटे निकाल कर हमारे जीवन की क्यारी कों खुशीयों और सुख के फूलो से महका देते है।
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