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बुधवार, 18 नवंबर 2009

हद कर दी आपने

बड़े मिया ने अपने पोते को पढ़ाते हुए पूछा कि जरा यह तो बताओ कि हमारे प्रधानमंत्री कहा पैदा हुए थे और उन्होने अपनी पढ़ाई कहा से की है? षरारती पोते ने कहा कि वो अस्पताल में पैदा हुए थे और उन्होने अपनी पढ़ाई स्कूल से की थी। बड़े मियां ने डांटते हुए कहा कि हमारे जमाने में हमें नेताओ के बारे में छोटी से छोटी जानकारी भी मालूम होती थी। पोते ने तपाक् से कह डाला कि उस समय के नेता भी तो आपका ख्याल रखते थे। आजकल न तो नेता लोग जनता के बारे में सोचते है और न ही जनता उनकी परवाह करती है। पोते को डांटते हुए बोले, मियां आपने तो यह कह कर तो हद ही कर दी। बच्चे के मुख से इतना तीखा जवाब सुन कर बड़े मियां गहरी सोच में डूबने को विवष हो गये। दिमाग ने जब पुरानी यादें ताजा करने का प्रयत्न किया तो उन्होने पाया कि पोते ने चाहे जवाब किसी भी मंषा से दिया हो, परंतु उसमें कड़वी सच्चाई छिपी हुई है।
आजाद भारत देष को अब तक 17 प्रधानमंत्रीयों में सबसे अधिक कुषल, गुणी, विद्वान, अर्थषास्त्री और विचारक के रूप में यदि कोई प्रधानमंत्री मिला है तो वो है डा, मनमोहन ंसिंह। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद यह पहले ऐसे प्रधान मंत्री है जिन्हें देष की जनता ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद से नवाजा है। देष-विदेष में इनकी पहचान बहुत ही ईमानदार छवि के साथ एक कुषल और मंजे हुए अर्थशास्त्री की है। दुनियां की शायद ही ऐसी कोई बड़ी वित संस्था होगी जहां श्री सिंह ने कामयाबी के झंड़े न गाड़े हो। डा, मनमोहन सिंह के पहली बार प्रधानमंत्री बनते ही देष की सारी जनता इनकी काबलियत और साफ सुथरी कार्य शैली की दीवानी हो गई। जब श्री सिंह ने पहली बार बिना चुनाव लड़े ही देष के प्रधान मंत्री का पद संभाला तो हर एक आम आदमी के मन से यही आवाज आ रही थी कि अब तो दुख भरे दिन जल्द ही खत्म हो जायेगे। हर गरीब किसान और मजदूर से लेकर मध्यम वर्ग के दिलों में सैंकड़ों ख्वाब जवां होने लगे थे। जिसे देखो वो ही इन हसीन ख्वाबो में खुषी से डोलता नजर आ रहा था। हर किसी के दिल में यही आस थी कि डा, मनमोहन से बढ़ कर गरीबो का मसीहा भारत देष में कोई और नही हो सकता। हर देषवासी इसी गलतफहमी में जी रहा था कि लाखों-करोड़ो दीन-दुखीयों के दर्द की टीस प्रधानमंत्री के दिल को एक बार तो जरूर छुऐगी और जल्द ही सारे देष में कामकाज और सरकारी व्यवस्था का साफ सुथरा महौल बन जायेगा।
हमारे देष की भोली जनता यह नही समझ पाई कि जिन लोगो ने मनमोहन सिंह को बिना चुनाव लड़े घर में बैठे हुए प्रधानमंत्री का ताज पहनाया है, वो उनकी बात को छोड़ कर गांव में गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने वाले किसानों और मजदूरों की बात क्यूं सुनेगे? पहली बार आम जनमानस के सामने यह कड़ुवा सच आया कि उनके जख्मों को भरने के लिए मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री के पास भी कोई महरम नही है। दुनियां भर में पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजे गये श्री सिंह देष के प्रधानमंत्री होते हुए भी एक रेलवे के इंजन ड्राईवर से बढ़ कर कुछ नही है। हर कोई इतना तो समझता है कि हमारे देष में सरकार किसी के हाथ में है और सरकार की कमान परदे के पीछे बैठे किसी दूसरे के हाथ में है। आज सारा देष मंहगाई की मार से मर रहा है। हर वस्तु एंव दाल-सब्जी के बार-बार बढ़ते दामों के कारण बच्चो के लिए रोटी का जुगाड़ करते हुए गरीब आदमी का सीना छलनी होता जा रहा है। लोगो को फल और सब्बजियों की बढ़ती कीमतों के चलते उनके नाम और शक्ल तक भूलने लगी है। गलती से कोई डॉक्टर किसी मरीज को फल या हरी सब्जी खाने को कह दे तो उस बेचारे का उसी समय रंग पीला पड़ने लगता है। मंहगे इलाज के चलते उसकी जीवन नैया मझदार में हिजकोले खाने लगती है।
हमारे सबसे कामयाब प्रधानमंत्री भी इस बात को मानते है मंहगाई के मोर्चे पर सरकार से भारी चूक हुई है। एक बात जो किसी के गले नही उतरती वो यह है कि दुनियां को अर्थशास्त्र का ज्ञान देने वाले इंसान से कहां और कैसे भूल हुई? नतीजतन जिसके चलते देष में सभी वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्वि हो रही है। वैसे तो आम आदमी के पास इतनी फुर्सत और ताकत बची ही नही, कि वो सरकार की विफल नीतियां और मंहगाई के विरोध में आवाज उठा सके। यदि कभी कभार कोई यह गलती करने की कोषिष करता भी है तो सरकार के निर्देष पर पुलिस डंडे बरसाने लगती है। कोई थोड़ी बहुत जोर जब्बरदस्ती करता है तो उन्हें झूठे आरोपो में गिरफतार करके जेल में डाल दिया जाता है। प्रधानमंत्री आम जनता की तकलीफो से मुख मोड़ कर एक ही बात कहते है कि आंदोलन करने से कुछ हल नही निकलेगा। सरकार कुछ कार्रवाई करने को तैयार नही, फिर जनता राहत की उम्मीद करे भी किस से करे? रिष्वत खोरी, भ्रष्टाचार, चोर बाजारी करने वालों को सरकार और पुलिस का कोई डर नही रह गया।
हर देषवासी के सामने एक ही प्रष्न बार-बार उठता है कि सारी दुनियां में धाक रखने वाला इतना कामयाब प्रधानमंत्री न जानें किसके दबाव में है कि उन्हें न तो जनता का कोई दुख दिखाई दे रहा है और न ही उसकी चीख पुकार सुनाई दे रही है। क्या आप इतना भी नही समझते कि राजनेता का मुख्य दायित्व जनसेवा ही होता है और प्रधानमंत्री को सर्वप्रथम जनता का सच्चा सेवक होना चहिए? आज हर भारतीय की आत्मा रोते-रोते यही कह रही है कि मनमोहन ंसिंह जी आपने तो सिंह और किंग होते हुए भी नामर्दो की तरह देष के आम आदमी के लिए कुछ नही किया। आपके इस वादे पर कि आप देष से गरीबी खत्म कर देगे, जनता ने दूसरी बार आपको प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया है, अब तो जनता को कुछ राहत पहुंचाओ। यदि इसी तेजी से कीमते बढ़ती रही तो आने वाले समय में जल्दी ही सारे देष से गरीब ही खत्म हो जायेगे फिर आप गरीबी क्या खाक मिटाओगे? हर तरफ से निराष हो चुके मन से अब तो यही टीस उठ रही है कि आज के इस बिगड़ते हुए महौल में यदि जनहित को कोई राहत दे सकता है तो वो सिर्फ भगवान ही बचा है। परंतु ऐसा लगता है कि वो भी अब इस काम को करने में कोई रूचि नही रखते। चारों और फैली हुई गरीबी, मंहगाई, हिंसा, और आंतकवाद की आग को ब्यां करते हुए अब तो जौली अंकल की कलम भी अपने भारी मन और आंसूओ के साथ यही कह रही है कि मनमोहन जी प्रधानमंत्री बन कर तो हद कर दी आपने। 

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