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बुधवार, 16 दिसंबर 2009

रेजगारी की मारामारी

मिश्रा जी की पत्नी ने शक की निगाह से देखते हुए पति देव से पूछा कि ऐ जी, एक बात बताओ कि जब से तुम बैंक के मैनेजर बने हो, तभी से तुम मंदिर बहुत जाने लगे हो? सोमवार शिव जी की, मंगलवार हनुमान जी पूजा के लिये, बृहस्पतिवार को साई के मंदिर, शनिवार को शनिदेव को खुश करने के लिये और शाम को भी देरी से आने पर यही सुनने को मिलता है कि मंदिर में थोड़ा समय लग गया। अब इस उंम्र में यह अचानक इतनी भक्ति कैसे तुम्हारे मन में जाग उठी। मिश्रा जी ने मुस्कराहते हुए कहा बड़ी सीधी सी बात है, वहां मुझें अराधना, पूजा, भावना, श्रद्वा, शांति, प्रीति, आरती, एवं ज्योति सभी एक ही जगह मिल जाती है।
उनकी पत्नी ने अपने तैवर थोड़े टेड़े करते हुए कहा ठीक से बताओ की आखिर यह मंदिर जाने का चक्कर क्या है? इससे पहले तो तुम कभी मेरे कहने पर भी मेरे साथ मंदिर नही गये थे। पत्नी के गुस्से को भांपते हुए उन्होने कहा कि असल में बैंक में रोज रेजगारी को लेकर मारामारी होती है। बैंक का जूनियर स्टाफ तो हर ग्राहक से रेजगारी को लेकर सारा दिन झगड़ा करते रहते है। मैं सारा दिन अपना काम करने की बजाए, उन लोगो के झगड़े ही निपटा रहता  हूँ। अब मैने मंदिर के पंडितो से दोस्ती कर ली है। वो रोज मुझे काफी सारी रेजगारी दे देते है। जिससे मेरा बैंक का काम काफी आसान हो जाता है।
तुम्हें एक बहुत ही बढ़िया बात बताता  हूँ,। उस दिन तो कमाल ही हो गया, हमारे सामने वाले बैंक में भी रेजगारी को लेकर खूब झगड़ा बढ़ गया। ग्राहक ने मैनेजर से शिकायत करने के लिये कहा तो बैंक के बाबू ने कहा, कि मैनेजर साहब बैंक के बाहर बैठे है। ग्राहक थोड़ी देर बाद वापिस आकर बोला कि वहां तो कोई नही है। सिर्फ एक भिखारी भीख मांग रहा है। बैंक बाबू ने कहा, वो भिखारी नही है, हमारे बैंक के मैनेजर ही है। रेजगारी इक्ट्टी करने के लिये वो रोज इसी तरह कपड़े बदल कर 2-3 घंटे यही काम करते है।
अब गुस्सा करने की बारी मिश्रा जी की थी। जैसे ही मिश्रा जी नजर बाजार से आऐ हुए सामान पर पड़ी, तो उनका गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुंच गया। घर के जरूरी सामान के साथ 8-10 टाफीयां, दो-चार पोस्ट कार्ड पड़े देखे तो वो चिल्ला कर पत्नी से बोले कि यह घटियां टाफीयां हमारे घर में कौन खाता है, और इन पोस्टकार्ड की क्या जरूरत थी? इस मंहगाई में घर का खर्च तो पूरा होता नही, और एक तुम हो कि यह सब फालतू का सामान खरीद लाती हो।
उनकी पत्नी ने पतिदेव को थोड़ा शांत करते हुए कहा, कि यह सब कुछ मैं खरीद कर नही लाई, मेरी भी कुछ मजबूरी थी। इससे पहले की वह कुछ और कहती मिश्रा जी बोले यदि तुम यह खरीद कर नही लाई तो क्या यह सब तुम्हें दुकानदार ने तोहफे में दिये हैे? तोहफे में तो नही, हां उसके पास रेजगारी नही थी, इसलिये उसने यह सब चीजे मुझे दे दी। रेजगारी की दिक्कत सिर्फ तुम्हारे बैंक में ही नही बाजार में भी है। तुम तो कभी बाजार जाते नही, कभी घर का सामान लाना पड़े तो तुम्हे मालूम हो कि हम सब कुछ यह कैसे जुटाती है?
कहने को हम सभी विश्व की सबसे बड़ी ताकत बनते हुए 21वी सदी में प्रवेश कर रहे है। लेकिन तेजी से तरक्की की राह पर चलते हुए हम बहुत कुछ अपने पीछे ऐसा छोड़ते जा रहे है, जिसे हमारी आने वाली पीढ़ी शायद कभी न देख पायेगी। अब आप सोचे रहे होगे कि मैं किस बारे में बात कर रहा  हूँ। जी मैं बात कर रहा  हूँ बच्चो के बचपन की, दादी-नानी की कहानियों की, घर के आंगन में रगोली की, जवानी में यौवन की, ऐसे पिता की जो ठीक से समझा सके, ऐसे बच्चो की तो ठीक से समझ सके। मैं बात कर रहा  हूँ लड़कियों के दुप्ट्टे की, ऐसे सरकारी अफसरो की जो रिश्वत ने लेते हो, ऐसे बुद्विजीवीयों की जो सही राह दिखा सके, ऐसे नेताओ की जो चुनावों के बाद भी नजर आ सके। इन सभी चीजो के साथ-साथ आलोप हो रहे है सरकार द्वारा जारी किये हुए खनखनाते हुए सिक्के। जो हमें ही देखने को नही मिल रहे तो हमारी आने वाली पीढ़ी कहां से उन्हें देख पायेगी।
जौली अंकल अक्सर कहते है कि सबसे आसान है बोलना और शिकायते करना, सबसे कठिन है कुछ करके दिखाना। यह सच है कि बाजार में रेजगारी की दिक्कत है, लेकिन यदि हम सभी अपने घर में रखी हुई रेजगारी को बाहर लाने की शुरूआत करे तो चंद दिनों में ही यह रेजगारी की मारामारी की समस्यां सदा के लिये खत्म हो जायेगी।     

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