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बुधवार, 16 दिसंबर 2009

आंसू और मुस्कान

हमारे जीवन में खुशी के पल हो या दुख-परेशानी की कोई घड़ी, परिवार के किसी सदस्य का बरसों बाद मिलन हो या बेटी को डोली में भेजते समय बिदाई के क्षण, हम सब की आंखो में अक्सर आंसू आ ही जाते है। कमजोर और बेसहारा लोग तो अपनी किस्मत को कोसते हुए मजबूरी में आंसू बहाते ही है, लेकिन बड़े से बड़ा बाहूबली भी चाहे किसी के सामने अपने आंसू पी जाये, लेकिन अकेले में दुनियॉ ने उन्हे भी किसी न किसी गम में आंसूओ की गंगा-जमना बहाते देखा है। हम अपने पास कितना भी मजबूत दिल होने का दावा करे, लेकिन हमसे कोई भी अपने आंसूओ पर कभी भी काबू नही रख पाते।
आखिर हम सब की आंखो में आंसू क्यूं आते है। क्या सिर्फ जब हम दुखी होते है तभी आंसू आते है, ऐसा नही है, क्योकि मन को जरा सी खुषी मिलते ही हमारी आंखे आंसूओ से छलक जाती है। चंद दिन पहले हास्य दिवस के मौके पर एक दर्षक ने लेखक से टी.वी. शो के दौरान फोन पर यह पूछ कर कि हंसते समय हमारी आंखो मे आंसू क्यूं आ जाते है? लेखक को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर आंसू है क्या? क्या यह एक मजबूर इन्सान की दांस्ता है या कोई कुदरत का कोई करिश्मा, जो जीवन के हर रंग में हमारे साथ जुड़े रहते है।
आज दुनियॉ के एक से एक नामी-ग्रामी पहलवानों को पटखनी देकर धूल चटाने वाला एक मात्र भारतीय 'दि ग्रेट खली' जब अपनी मां से तीन साल बाद मिला, तो मां-बेटे दोनो की आंखो में से अश्रू धारा बहते देख मेरी कलम भी अपने आसूं नही रोक पाई। फौलाद जैसे हाथ-पैर और पहाड़ जैसा षरीर रखने वाले का दिल भी इतना भावूक हो सकता है, ऐसा तो कोई सोच भी नही सकता। मां-बेटे की ममता के इस मिलन को दुनियॉ के सारे ग्रन्ध भी षायद मिल कर बंया नही कर पाते जो चंद आंसूओ ने बंया कर दिया। इतिहास साक्षी है, कि लक्षमण के मूर्छि्रत होने पर भगवान श्री राम भी अपने आंसू नही रोक पाये थे। रावण जैसे ताकतवर, विध्दवान और ज्ञानी को हम सब ने रामलीला में कई बार अपने भाईयों की मौत पर आंसू बहाते देखा है।
लेकिन इस छल फरेब की दुनियॉ में कुछ लोगो ने आसूंओ को अपने स्वार्थ के लिये एक हथियार बना डाला है। वैसे तो हम सब सदियों से मगरमच्छ जैसे आंसूओ के बारे में सुनते रहे है, लेकिन आजकल के कुछ बच्चे और औरते अपनी हर जिध्द पूरी करवाने के लिये इनका साहरा लेते है। आदमी कितना भी कठोर दिल का क्यूं न हो, औरत के आंसूओ के सामने पल भर में मोम की तरह पिघल जाता है। अगर हम अपने दायें-बायें देखे तो पायेगे कि आज दूसरो को दुख देकर रूलाने वाले तो बहुत लोग है, लेकिन किसी के दुख दर्द को अपना कर एक मजबूर की आखों से आंसू पोछने वाले बहुत कम लोग बचे है।
यह भी सच है, कि हम सब अपने प्रियजनों की आंखो में आंसू नही देख सकते, लेकिन कई बार यह आंसू ही हमें एक नई जिंदगी देते है। किसी नजदीकी रिष्तेदार की मौत पर अगर घर का कोई सदस्य किसी कारण से नही रोता, तो घर के सभी लोग एक ही बात कहते है, कि इसे जल्दी से रूलाओ, वरना ऐसे सदमें से आदमी पागल तक हो जाता है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है, कि आंसू हमेषा बुरे ही नही होते, कभी-कभी बहुत सकून भी देते है। दिल पर किसी भी परेषानी का कितना बड़ा बोझ क्यू न हो, चंद आंसूओ के बहने से ही मन बिल्कुल हल्का हो जाता है।
इसीलिये तो जौली अंकल कहते है कि अगर आप सच्चे और नेक इन्सान है, तो सिर्फ दुखी इन्सान के आंसू पोछने से कुछ नही होगा, किसी रोते हुऐ के चेहरे पर मुस्कान लाओ तो कोई बात बने।          

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