कुछ दिन पहले हम एक होटल में परिवार के साथ बैठकर रात के खाने का आनंद ले रहे थे। हमारे साथ वाली मेज पर कुछ युवक भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के साथ-साथ दारू का मजा भी ले रहे थे। पाकिस्तान के एक खिलाड़ी की गेंद पर सचिन ने काफी देर बाद बहुत ही जोर से एक शॉट मारा तो गेंद गोली की तरह सीधे छह रन के लिये मैदान से बाहर हो गई। यह देखते ही उनमें से एक युवक बोला कि यार मजा आ गया, इसी बात पर जल्दी से एक बढ़िया सा पैग बनाओ। कुछ गेंद इधर-उधर खेलने के बाद सचिन साहब अपनी आदतानुसार एक आसान सी गेंद पर आउट होकर पैविलियन की तरफ चल दिये। फिर उसी मेज से आवाज आई, वेटर जल्दी से एक पैग लेकर लाओ, सचिन ने तो सारा मूड़ ही खराब कर दिया। मुझे तो एकदम से वो बात याद आ गई - कारण कुछ भी हो, पीने वालों को तो पीने का बहाना चाहिये। दारू पीने वाले तो सांझ ढ़लने का इंतजार करते रहते है, कि कब शाम हो और वो महखाने में महफिल जमां सके। जैसे ही मंदिर में शाम को पूजा की घंटियां बजनी शुरू होती है, दारू पीने वालों के दिमाग में नशे की घंटीयां बजनी शुरू हो जाती है। एक और जहां कुछ लोगो के दिलों दिमाग पर दारू का नशा हावी होता है, वही कुछ लोगो को अपने पैसे और ताकत का नशा होता है।
गम हो या खुशी, काम की कोई परेशानी हो या व्यापार में किसी किस्म का फायदा-नुकसान, पीने वालों को तो हर समय मौके की तलाश रहती है। घर में छोटी से छोटी खुशी का इजहार करने के लिये दारू तो एक फैशन बनती जा रही है। किसी को पुरानी शराब से सरूर मिलता है, तो किसी को नये ब्रांड से लगाव होता है। मतलब तो यह है कि कोई न कोई नशा होना चाहिये। अब वो चाहे किसी भी प्रकार का हो। अमीर लोग होटल-क्लबों में, मध्यमवर्गीय लोग कुछ घर में बैठ कर तो कुछ गली या पार्क के किसी कोने में छुप कर अपनी तलब पूरी करते है। उससे नीचे की कमाई वाले लोग अपनी हैसयित के मुताबिक देसी दारू, अफीम, चरस से या कुछ गोलियां एवं इन्जेक्शन आदि लगा कर सुकून महसूस करते हैं। फिर चाहे इससे कितने ही परिवार बर्बाद हों, शरीर कोई रोग ही क्यों ना लग जाए? नशा करने वालो को सदा एक बात याद रखनी चहिये कि जिस दिन वो पहली नशा करते है, उनका वो कदम उनके जीवन की बर्बादी की शुरूआत करता है।
कई बार नशा करने वालाें से बातचीत का मौका मिला तो एक बात सब लोगों में सामान्य रूप से पाई गई कि वो किसी भी प्रकार नशा करते हो, कोई भी यह मानने को तैयार नहीं कि मैंने अपनी मर्जी से नशा किया है। हर कोई एक दूसरे के कंधे पर बन्दूक रखकर अच्छी तरह से चलाना जानते हैं। सबके पास पीने का कोई न कोई ठोस बहाना भी जरूर मिल जाएगा। कोई घर की परेशानियों से तंग है, तो कोई अपने गम भुलाने की कोशिश करने के लिये पीता है। असल में किसी भी छोटे-मोटे काम के पूरा होने पर दारू के साथ उसे उत्सव के रूप में मनाना आज के समाज में फैशन सा बनता जा रहा है।
यह भी सच है, कि मिर्ज़ा गालिब से लेकर आज तक सैंकड़ों शायरों ने दारू की तारीफ में हजारों बार कसीदे पढे हैं। लेकिन क्या किसी प्रकार का कोई नशा सचमुच आपकी परेशानी को खत्म कर पाया है? क्या यह नशे आज तक आपके किसी गम को भुलाने में सहायक हुए हैं। अगर असल जिंदगी में यह मुमकिन होता तो अब तक सारे गधे दारू पीकर इन्सान बन जाते। लेकिन हमारे यहां तो पढ़े-लिखे लोग दारू पीकर गधों जैसी हरकतें करते अक्सर नजर आ जाते हैं। आज तक इतिहास में एक भी ऐसा उदारण देखने को नहीं मिलता कि किसी भी प्रकार के नशा करने वाले इन्सान ने समाज को किसी तरह से भी प्रभावित किया हो। कोई भी नशा जिसे लेने से आपका अपने शरीर, मन और मस्तिष्क पर काबू खत्म हो जाता हो, वो आपकी परेशानियों को कैसे खत्म कर सकता है और ऐसा नशा करने का क्या फायदा जो सिर्फ कुछ देर में ही उतर जाए? इतना सब कुछ जानने और समझने के बाद भी यदि आप नही संभलते तो फिर सारी उंम्र यही कहना पड़ेगा कि सब कुछ लुटा कर होश में आये तो क्या किया।
नशा करना है तो भगवान के नाम का करो, दीवाना बनना है तो राम के नाम का बनो। एक बार उस परमात्मा के नाम की खुमारी का असर आपके ऊपर छा गया तो फिर आप एक ही बात बार-बार कहोगे कि - नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात। जिसका मतलब है कि ऐ भगवान तेरे नाम का नशा दिन रात सदा-सदा के लिये चढ़ा रहे। वो लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें भगवान का आर्शीवाद प्राप्त होता है। एक बार सच्चे मन से लगन लग जाए तो, जौली अंकल का वादा है कि फिर सारी दुनिया के नशे आपको फीके लगने लगेगे।
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