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शनिवार, 13 मार्च 2010

हाय मेरे जूते

पति महोदय जैसे ही घर में घुसे तो पत्नी ने आवाज दे कर कहा कि जल्दी से जूते निकाल दो, मैं आपके लिये खाना लगा रही दूं। पति ने चुटकी लेते हुए कहा, क्यूं आज खाने में और कुछ और नही मिलेगा? अब आप कहेगे कि क्या जमाना आ गया है कि अन्य सभी विषय छोड़ हर जगह जूतो का ही चर्च हो रहा है। अजी जनाब आप जूतो के महत्व को जरा कम आंक रहे है। क्या आपने कभी सोचा है कि गर्मी के दिनो में चिलचिलाती धूप हो या सर्दीयों की कड़कती ठंड, हर मौसम में आपके पैरो की रक्षा कौन करता है? आपके करीबी दोस्त और रिश्तेदार चाहते हुए भी ऐसे में आपके लिये कुछ नही कर सकते। आपके जीवन की राह कैसी भी हो, आप इन जूतो के बिना मंजिल को नही पा सकते। ऐसे कठिन हालात में अगर कोई आपका साथ देता है तो वो है केवल आपके जूते। अनजान पत्रकार भी जूता प्रकरण से एक ही दिन में पूरी दुनियां में महशूर हो जाते है।
जूतो की महिमा के बारे में कुछ और जानने का प्रयत्न तो करे, आपको समझ आयेगा कि हम जब कभी मंदिर, गुरूदुवारे या अन्य किसी धार्मिक आयोजन में जाते है तो उस समय हमारा सारा ध्यान साधू-संतो के प्रवचन सुनने में कम और बाहर रखे अपने कीमती जूतो में अधिक होता है। बार-बार मन में एक ही डर सताता है कि पूजा-पाठ समाप्त होने तक हमारे जूते सलामत होगे या नही।
ऐसे में एक बात को लेकर हैरानगी होती है कि लाखो रूप्ये लगा कर धार्मिक और संस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने वाली संस्थायें हर मेहमान का स्वागत करने से लेकर खाने-पीने तक हर जरूरी काम का ध्यान तो रखती है, लेकिन उनके जूतो को संभालने की जिम्मेदारी अक्सर भूल जाते है। कुछ अपने आप को बहुत ही चतुर और होशियार समझने वाले लोग दायें और बाये पैर का जूता अलग-अलग जगह पर उतारते है, जिससे की जूता चोरी करने वाला उसे आसानी से नही उठा पायेगा।
कहने को भगवान ने जूतो की जगह हमारे पैरो में बनाई है, लेकिन मजे की बात तो यह है कि हमारा खाने पीने का सामान तो खुले आसमान के नीचे सड़क की पटरी पर बिकता है, और यह जूते वातानुकुलित शोरूम में आराम फरमाते है। बड़े से बड़ा कवि हो या राजनीति का महान नेता हर कोई जनता को केवल इसलिये खुश करने की जुगत में रहता हैं कि कहीं बिन मौसम जूतो की बरसात उन पर न हो जाये। हमारे देश की जनता तो टी.वी. चैनेलो पर समाचार देखते हुए शर्म ही महसूस करती है, लेकिन हमारे प्रिय नेता विधानसभाओ में एक दूसरे के ऊपर जूते फैकने में लगता है कि बहुत ही गर्व महसूस करते है। आज के बदलते हालात में जूता सजा देने का एक कामयाब हाथियार बन चुका है। किसी के भी ऊपर जूता फैंक कर लाखो रूप्ये की पब्लिसिटी मुफत में मिल जाती है।
कल तक जहां लोग सिर्फ अपने चेहरो को चमकाने में पैसा बर्बाद करते थे, आज तेजी से बदलते फैशन ने भारतीय और विदेशी जूतो में भी एक अच्छा खासा आर्कषण पैदा कर दिया है। किसी खास मौके के लिये आपके कपड़े गहने कितने ही कीमती क्यूं न हो, अगर उन से मेल खाते जूते आपने नही पहने तो आपकी सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है। कहने वाले तो यहां तक भी कहने से नही चूकते कि आपके जूतो ने आपकी पर्सनैलिटी में चार चांद लगा दिये है।
शादी वाले दिन दुल्हे मियॉ से अधिक महत्व उसके जूतो का होता है। उसकी सभी सालीयॉ और दुल्हन की सहेलियों की नजर दुल्हे से अधिक उसके जूतो पर होती है। उनकी तरफ से युध्द स्तर पर यह तैयारी की जाती है कि दुल्हे के जूते कैसे गायब किये जाये। दूसरी तरफ दुल्हे के दोस्त दुल्हे की फिक्र छोड़ उसके जूतो को बचाने की फिराक में लगे रहते है। अब बात चाहे जूतो की हो या सालीयों को खुश करने की, सालीयों से जूते वापिस लेने की एवज में कई बार हजारो रूप्ये नजराना तक देना पड़ जाता है।
जूतो की बात करते-करते जौली अंकल यह तो भूल ही गये कि वो भी अपने जूते आपके घर के बाहर ही छोड़ कर आये थे। अब यह तो भगवान ही जाने की उन्हें भी अपने जूते मिलेगे या नही। 


चन्ना वे घर आ जा वे


सड़क पर चलते समय कुछ सज्जन पुरष आसपास वाहनों पर बैठी सुन्दर औरतो को इतने प्यार से निहारते है कि जैसे वो न जाने किसी दूसरे लोक से आई हुई कोई परी हो। सुन्दर सपनो में खोये हुए ऐसे लोगो को कई बार ट्रैफिक पुलिस वालो को यहां तक कहना पड़ता है कि यह बत्ती अब और अधिक हरी नही होगी। आप जिसे निहार रहे थे, वो तो शायद अब तक अपने घर भी पहुंच गई होगी। अब आप भी चलने का कष्ट करे क्योंकि तुम्हारे पीछे वाहनों की लंम्बी कतार लग गई है। अक्सर आपने देखा होगा कि परिवारिक परेशानी या किसी मानसिक दबाव के कारण लोग यह भी भूल जाते है कि वो अपने घर में नही सड़क के बीच लाल बत्ती पर खड़े है। चंद मिनटों की लाल बती पर भी वो गहरी सोच में डूब जाते है।
मुसद्दी लाल जी भी कुछ दिन पहले एक ऐसी ही लाल बत्ती पर रूक कर सगीत का आंन्नद ले रहे थे। कार के रेडियो पर पंकज उदास की बहुत ही महशूर गजल ''चिट्ठी आई है, आई है, वतन से चिट्ठी आई है बज रहा था''। जैसे-जैसे पंकज उदास की यह दर्द भरी गजल आगे बढ़ रही थी उसी के साथ मुसद्दी लाल जी कनाड़ा में बसे अपने बेटे की याद में खोते चले जा रहे थे। पंकज उदास की दर्द भरी आवाज और गजल के दिल को छू देने वाले अलफाज के जादू ने उनकी आंखो में आसूंओ की झड़ी सी लगा दी। उन्हें खबर ही नही हुई की कब और कितनी बार चौराहे की बत्ती ने अपना रंग बदल लिया था। पीछे खड़े अन्य वाहनों में बैठे लोग गुस्से से तिलमिला रहे थे। हर कोई जोर-जोर से हार्न बजा रहा था। मुसद्दी लाल जी दुनियां से बेखबर आखों से जार-जार आंसू बहाते हुए अपने बेटे की मीठी यादो के समुंद्र में गोते लगा रहे थे।
जब चारो और बहुत शोर मचने लगा तो एक पुलिस अफसर ने आकर मुसद्दी लाल को जोर से डांटा तो वो घबराहट में लाल सिग्नल को तोड़ते हुऐ अपनी गाड़ी को सड़क के बीच ले आये। पुलिस अफसर का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था। अपनी आदतनुसार कुछ पुलसिया भाषा बोलते हुए पुलिस अफसर ने अपनी चालान की कापी निकालते हुए मुसद्दी लाल को गाड़ी एक तरफ करने को कहा। इससे पहले की मुसद्दी लाल अपनी कोई सफाई देते पुलिस अफसर ने कहा कि क्या घर पर बीवी से झगड़ा करके या कोई नशा वगैरहा करके निकले हो? क्या सारे शहर की सड़को का टैक्स तुम अकेले ही जमा करवाते हो? सड़क के बीच इस तरह से गाड़ी खड़ी कर के बैठने का क्या मतलब है?
मुसद्दी लाल ने अपने जज्बात पर काबू रखते हुऐ अपनी आखें और चश्मा साफ किया। अपनी गलती की माफी मांगते हुए उस टै्रफ्रिक अफसर से कहा कि मुझे इस तरह सड़क पर लापरवाही नही करनी चहिये थी। मेरे से बहुत बड़ी भूल हुई है आप अपनी डयूटी पूरी करे और मेरी इस बेवकूफी के लिये मेरा चालान बना दे। उस टै्रफ्रिक अफसर ने कोई भी कार्यवाही करने से पहले मुसद्दी लाल के दुखी और भारी मन को टटोलते हुए उसकी परेशानी का कारण जानना चाहा।
मुसद्दी लाल ने अपनी नम: आखो से कहा कि आज अचानक बेटे की जुदाई में डूबी पंकज साहब की यह दर्द भरी गजल सुनते-सुनते लंबे अरसे से परदेस में बसे बेटे की याद में मन भर आया। अब उस पुलिस अफसर ने कहा की लोग पुलिस वालो के बारे में न जाने क्या-क्या सोचते है? आखिर हम भी आप लोगो की तरह इंसान है और हमारे सीने में भी दिल धकड़ता है। आपकी तरह हमारा भी घर परिवार और बच्चे है। हमारे मन में भी बच्चो के प्रति बेहद लगाव और उनकी जुदाई में हमारा दिल भी तुम्हारी तरह ही रोता है। बच्चो की एक झलक पाने के लिए हमारे दिल में भी ममता भरी तड़प उठती है।
टै्रफ्रिक अफसर ने मुसद्दी लाल के लिये नजदीक की दुकान से पानी का एक गिलास मंगवाया और बहुत ही नर्मी और इज्जत से बोला की तुम बहुत नसीब वाले हो कि तुम्हारा बेटा परदेस में बसा हुआ है। वो आज नही तो कल जरूर तुम्हारे पास आ जायेगा। मैं तो बहुत बदनसीब बाप  हूँ, मेरा जवान बेटा कुछ साल पहले डालर कमाने की चाह में किसी ऐजेंट के झांसे में आकर विदेश गया था। उस दिन से आज तक उस के बारे में कोई खबर नही मिली कि वो कहां है और किस हाल में है?
मेरे बेटे ने तो पूरे परिवार की आखों में सदा के लिए दर्द के आसूं भर दिये है। मेरी पत्नी भी हिंदी का वो गाना ''चन्ना वे घर आ जा वे, डोला वे घर आ जा वे'' सुनते ही पागलों की तरह रोने और बिलखने लगती है। जब कभी भी यह गाना बजता है, सारे परिवार के लिए उसको संभलाना मुशकिल हो जाता है। बच्चो के बिना सच में घरों के साथ मां-बाप के दिल भी खाली हो जाते है। निगाहें हर समय दरवाजे पर टकटकी बाधें हर आहट पर अपने बिछड़े बेटे की एक झलक पाने को तड़पती है।
मैं तुम्हारे बेटे की जुदाई का दर्द अच्छी तरह से समझ सकता  हूँ। पुलिस अफसर होने के बावजूद मैं यह जानता  हूँ कि बच्चे तो घर का वो सुंदर दीपक होते है जिसकी निकटता मात्र से ही सारा घर रोशन हो जाता है और घर में चारो और खुशीयां ही खुशीयां महकने लगती है। मां-बाप की नजरों में तो बच्चे एक नाजुक फूल की तरह होते है और उनका प्यार शहद से भी अधिक मीठा होता है। जौली अंकल ठीक ही कहते है कि आदमी खुद तो हर किस्म का दुख दर्द सहन कर सकता है, लेकिन बच्चो की असहनीय जुदाई भगवान कभी किसी को न दे। अब तो मेरी कलम से और शब्द निकलने की बजाए यही आवाज आ रही है कि चन्ना वे घर आ जा वे। 

दीवाना पागल

ज्ञानी और महापुरष सदैव ही ज्ञान की बरखा करते हुए समाज को समझाते रहे है कि अच्छे लोगो की कभी भीड़ इक्ट्ठी नही होती और कभी किसी भीड़ में अच्छे लोग नही होते। इसीलिये जब कभी किसी ने सर्वप्रथम जनहित की कोई बात कहने की कोशिश की तो जमाने ने उसे कभी दीवाना और कभी पागल करार दिया है। हमें यह बात कभी नही भूलनी चहिये कि किसी भी देश और जमाने के दर्द को जब भी किसी हस्ती ने ब्यां करने की हिम्मत की है जो उस समय के लोगो ने उसे दीवाना या पागल ही समझा है। इतिहास के पन्ने इस बात के गवाह है कि आम आदमी ने भक्त कबीर और मीरा जैसी महान हस्तीयों को भी इन अल्फाजों से नवाजा था। ऐसे लोगो की आखों में जब-जब आंसू आये तो कुछ पारखी नजर वालों ने तो उन्हें मोती समझ कर जाना परन्तु अधिकांश भीड़ के लिये वो साधारण पानी से अधिक कुछ न था।
ज्ञानी और विध्दान लोगो की बात को माने तो सारे कानून साधारण लोगो के लिए ही होते है। जिस तरह मकड़ी के जाल में छोटे-मोटे कीड़े पतगें तो फंस जाते है, लेकिन कभी किसी बड़े जानवर पर उस का कोई असर नही होता। ठीक उसी प्रकार हमारे देश का कानून आम आदमी को तो हर छोटे से छोटे अपराध के लिए सजा देता है, परन्तु मगरमच्छ जैसे बड़े नेता और अपराधी कितनी भी तबाई या तोड़-फोड़ क्यूं न कर ले, बसे और रेल गाड़ीयॉ जला दे, दुकानो में लूट-पाट कर ले उनके ऊपर हमारी सरकार की और से कोई मुकद्दमा नही बनता। अगर कभी कोई केस दर्ज हो भी जाऐ तो अगली सुबह होने से पहले ही उन्हे जमानत मिल जाती है। फिर उनके घर वापिस आने पर दुनियॉ भर के पटाखे छोड़े जाते है और मिठाईयॉ बांटी जाती है। एक शरीफ आदमी सारी उंम्र लाखो रूप्ये खर्च करके भी इतनी वाह-वाही नही लूट सकता, जितनी ऐसे नेता एक ही रात में बटोर लेते है। मीडियॉ वाले भी यह सब कुछ इस तरह से दिखाते है कि जैसे हमारे नेता किसी जेल से नही चंद्रमा को फतेह कर के आ रहे हो।
आज देश के हर कोने में बदमाशों के हौसले इतने बुंलद हो चुके कि उनके मन से पुलिस की वर्दी का खौफ खत्म सा हो गया है। हालत यह है कि बदमाशों द्वारा किसी भी जगह लड़कियो की इज्जत से खेलना और गोली चला देना आम बात है। जिसके चलते लोगो में डर बढ़ता ही जा रहा है। सरकारी मशीनरी जर्जर होती जा रही है। देश में हर प्रकार के बढ़ते जुर्म, भ्रष्टाचार यहां तक की खाने में मिलावट, नकली दवाऐं बनाने जैसे घिनोना काम करने वालों को पकड़ने के लिये न तो आधुनिक उपकरण है और न ही कर्मचारी। इसी के चलते हर तरफ हालात बेकाबू होते जा रहे है। अधिकांश: मामलों में राजनीतिक या पैसे के दबाव के चलते पुलिस मामलों को रफा-दफा करने का प्रयास करती है। देश में हर तरफ काला बाजारी बढ़ रही है, फिर भी न जाने हमारे नेताओ को न जाने यह सब कुछ दिखाई क्यूं नही देता?
ऐसा लगता है कि आज की राजनीति का एक मात्र सिंध्दान्त है मुनाफा वसूली। बड़े-बड़े नेताओ की सोच को तो जैसे जंग लग चुका है। कभी बाबरी मस्जिद गिरा कर, कभी राम मंदिर के मुद्दे को भड़का कर या ऐसी ही अन्य कोई न कोई नौंटकी दिखा कर अच्छे बड़े पद पर आसीन हो ही जाते है। ऐसे लोगो को अब बाहर का रास्ता दिखाना ही बेहतर होगा। जनता को अब यह फैसला लेना ही होगा कि हमारे नेताओं की चाहे कुछ भी हैसियत हो, उनके द्वारा किये गये हर गलत काम की सजा उन्हें मिलनी ही चहिये। अनुशासन सबके लिए एक समान होता है और एक समान गलती की एक समान सजा भी होनी चहिये।
हमें कहते हुए संकोच होता है कि भारत दुनियॉ का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन यहां की सरकारे आम जनता को किसी भी प्रकार की सुरक्षा देने में असमर्थ है। हमारे यहां जब भी चुनाव आते है तो जाति, बिरादरी, धर्म, क्षेत्रवाद के सदियो पुराने मुद्दे सिर उठाने लगते है। आज हमारा देश जातीय, सांम्प्रदयिक, भाषाई के हिस्सो में बंटता जा रहा है। हमें अपने आप का भारतीय कहने में शर्म आती है, दूसरी और हम गर्व से कहते है कि हम हिन्दू है, ईसाई है, मुसलमान है, मराठी है, बिहारी है या पंजाबी है।
यद्यपि हम समय को परिवर्तित नही कर सकते, किन्तु इतना तो महसूस अवश्य कर सकते है कि परिवर्तन का समय अब आ चुका हैं। यदि हम सभी स्वयं एक समस्या बनने की बजाय दूसरों की समस्याऐं हल करने में सहायक बनने का प्रयत्न करे तो बहुत ही समस्याओं का हल खुद-ब-खुद निकल आयेगा। यह भी सच है कि हर अच्छे काम की शुरआत में विरोधों को झेलना पड़ता है। यदि आप चाहते है कि आपके बच्चे समाजिक, नैतिक जिम्मेंदारी को ठीक से समझें और उनके पांव जमीन पर ही रहें, तो अभी से उनके कंधों पर समाजिक जिम्मेंदारी डालनी होगी। एक बार हर देशवासी अगर अपनी इस जिम्मेदारी को समझने की कोशिश करे तो सारी मानवता जगमगा उठेगी। जौली अंकल की इच्छा तो यही है कि भीड़ में खोने की बजाए भीड़ से अलग रहने की चाहत इंसान को एक अलग व्यक्तित्व प्रदान करती है, फिर चाहे जमाना हमें दीवाना पागल ही क्यूं न कहें

भगवान तेरा लाख-लाख शुक्र है

एक बार हमारे प्रिय दोस्त मिश्रा जी का फैक्ट्री में काम करते समय दुर्घटना के दौरान मशीन में आकर हाथ कट गया। हम अपने परिवार के साथ उन का हालचाल पूछने उन के घर पर गये। मिश्रा जी के बाये हाथ पर बड़ी सी पट्टी बंधे देख हमने अफसोस जताते हुए कहा कि यह तो बहुत ही बुरा हुआ। पास बैठे मिश्रा जी के एक रिश्तेदार ने कहा कि चलो फिर भी शुक्र है भगवान का कि बायां हाथ ही कटा है, यदि दायां हाथ कट जाता तो रोजमर्रा के सभी काम करने और भी बहुत मुशकिल हो जाते। मिश्रा जी ने भी थोड़ी और अधिक चतुराई दिखाने की चाह में ढींग मारते हुए बोले कि मशीन में आया तो मेरा दायां हाथ ही था, लेकिन मैने झट से दायां हाथ निकाल कर अपना बायां हाथ आगे कर दिया, इसी कारण मेरा दायां हाथ कटने से बच गया।
मिश्रा जी के साथ इतना बड़ा दर्दनाक हादसा होने पर जब उन्हीं के उस रिश्तेदार ने फिर से भगवान का शुक्रीयां अदा किया तो मैं कुछ अंसमजस में पड़ गया। कुछ देर वहां चुप बैठने के बाद जब मेरे से नही रहा गया तो मैने उनसे पूछ ही लिया कि मिश्रा जी जिंदगी भर के लिये अपहिज हो गये है। अब उन्हें अपने बहुत से जरूरी कामों के लिये दूसरो पर निर्भर रहना पड़ेगा। ऐसे में आप फिर भी मुस्कराहते हुए भगवान का शुक्रीयां अदा कर रहे है। हमें तो यह बात बिल्कुल अच्छी नही लगी। अपनी आदतनुसार वो फिर हंसते हुए बोले जनाब यह तो कुछ भी नही हुआ, मैं आपको इससे भी खतरनाक किस्सा सुनाता  हूँ।
कुछ दिन पहले हमारा एक पड़ोसी अपने व्यापार के सिलसिले में 8-10 दिनों के लिये शहर से बाहर गया हुआ था लेकिन काम जल्दी खत्म हो जाने के कारण वो अचानक अपने कार्यक्रम से दो दिन पहले ही घर वापिस आ गया। जब घर आया तो उसने देखा कि उसकी पत्नी अपने एक पुराने प्रेमी के साथ इश्क फरमा रही थी। उसने झट से अपनी पिस्तौल निकाली और अपनी पत्नी के साथ उसके प्रेमी को गोली मार दी। दोनों को गोली मारने के बाद खुद जाकर थाने में आत्मसमर्पण कर दिया। अब कुछ ही दिनों में उसको फांसी होने वाली है।
इतना सब सुनने के बाद मैने एक लंबी आह भरते हुऐ कहा कि यह तो बहुत ही बुरा हुआ। थोड़ी सी बेवकूफी के चलते बैठे-बिठाये दो हंसते खेलते परिवार सदा-सदा के लिये उजड़ गये। मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा कि आपको इसमें भी क्या अच्छाई दिख रही है? अब मिश्रा जी का वही रिश्तेदार बोला कि हम तो हर चीज की तरह इसे भी अच्छा ही मानते है और भगवान का शुक्रीयां अदा करते है। अब मेरा मन और अधिक बैचेन हो रहा था। मुझे लगा कि यह आदमी या तो पागल है या कोई दीवाना। आखिर मैने उस सज्जन से पूछ लिया कि दो लोगो की मौत हो गई, घर का मालिक सारी उंम्र के लिये जेल चला गया, आप इसे भी न जानें क्यूं अच्छा मान कर खुश हो रहे हो? मुझे तो यह सब कुछ बहुत अजीब लग रहा है। उस सज्जन ने बड़े ही शांत मूड में कहना शुरू किया यदि मेरा वो पड़ोसी एक दिन और पहले आ जाता तो अब तक मेरा जनाजा उठ गया होता। इस दर्द भरे महौल में भी इस बात को सुनते ही वहां बैठे सभी लोगो की हंसी छूट गई।
जब तक मिश्रा जी की पत्नी हम सभी के लिये चाय-नाश्ता आदि लेकर आती मैने वहीं पास पड़े एक समाचार पत्र को पढ़ना शुरू कर दिया। जिसमें एक खबर छपी थी कि शहर की सबसे सुंदर और ऊंची इमारत में कल रात आग लग जाने के कारण बहुत से लोग बुरी तरह से जल कर घायल हो गये। इतना सुनते ही मिश्रा जी का वहीं रिश्तेदार फिर से बोला कि शुक्र है भगवान का। मैं बहुत ही हैरान हुआ, कि यह इंसान भी कमाल का है, किस कद्र अजीब-अजीब बाते कर रहा है। अब तो मैंने उससे कह ही दिया कि आप तो हद कर रहे है। पूरी इमारत में आग लग गई, लाखो-करोड़ों रूप्यो की सम्पति का नुकसान हो गया। सारा कीमती सामान जल कर राख हो गया और आप अभी भी कह रहे हो कि शुक्र है भगवान का। उस रिश्तेदार ने कहा कि मैं तो इसलिये भगवान का शुक्रियां अदा कर रहा कि हम लोगो में कोई भी उस इमारत में नही था, वरना आप सोच नही सकते है कि हमारे परिवार वालों और बच्चो के साथ कितना बुरा हो सकता था?
मिश्रा जी के रिश्तेदार की सभी बाते सुनने के बाद हमारा मन भी यही गवाई देने लगा कि भगवान जो कुछ करता है, कुछ न कुछ सोच कर ही करता है। उसके किसी भी काम में हम किसी तरह से भी दखल अंदाजी तो कर नही सकते। फिर मानसिक शंति का आनंद प्राप्त करने के लिए मन को व्यर्थ की उलझनों में क्यूं फंसने दे। ध्यान देने वाली सबसे जरूरी बात यह है कि किसी काम को करने के बाद नहीं, उसे करने से पहले उसके लाभ हानि के बारे में हमें सोचना चाहिए। दुनिया में अस्थायी चीजें बहुत सी हैं परन्तु जीवन जैसी अविश्वसनीय कोई भी चीज नही है।
ऐसे में जौली अंकल का अनुभव तो यही कहता है कि भगवान की लीला अपरमपार है, उसने जो कुछ भी यह दुनियॉ का खेल बनाया है, उसे एक न एक दिन अवश्य नष्ट होना ही है। इसलिये जीवन में कभी भी उम्मीद न खोते हुए हमें हर हाल में सदा ही हंसते-खेलते हुए यही कहना चहिये कि भगवान तेरा लाख-लाख शुक्र है। 

नामकरण

हर दिन सरकार और व्यापारी वर्ग मंहगाई को बढ़ाते हुए आम आदमी का जीना दूभर करते जा रहे है। आम आदमी की थाली से दाल-रोटी गायब होती जा रही है। बिजली-पानी के बढ़ते बिल एवं दाल-सब्जियों के आसमान छूते भावों के कारण औरतों को घर खर्च चलाना मुश्किल होता जा रहा है। इस एक तरफ हम सब लोग बढ़ती महंगाई की मार से परेशान हो रहे है। हैं। दूसरी तरफ घर परिवार में कोई खुशी का मौका आते ही हम सबको महंगाई कुछ नहीं कहती। उस समय तो हमारा मकसद सिर्फ रिश्तेदाराें और बिरादरी वालों के सामने अपनी नाक को सबसे उंचा दिखाना ही होता है। इसके लिये चाहे हमारी बरसों की जमा पूंजी भी क्यूं ना लग जाए? जहां-जहां से भी कर्ज मिलने की आस होती है हम कोई मौका नहीं छोड़ते, बाद में इस कर्ज को चुकाने की कुछ भी कीमत अदा करनी पडे उसकी फिक्र किसे होती है?
ऐसा ही आजकल हमारे मुहल्ले में शर्मा जी के घर पर चल रहा है। उनके पोते के नामकरण की तैयारी तकरीबन एक-डेढ़ महीने पहले से शुरू हो गई थी। पूरे घर की रंगाई-पुताई का काम जोर-शोर से चल रहा है। घर के साथ-साथ गली की सड़क को भी ठीक कराने में शर्मा जी दिन रात दौड़धूप कर रहे हैं। पहली बार घर आने वाले रिश्तेदारों के सामने अपना रौब जताने के लिये आदमी क्या-क्या नहीं करता? यह सब तो हम अच्छी तरह से जानते हैं। नामकरण से पहले ही घर के सभी सदस्याें ने बच्चे का कोई ना कोई नाम सोच रखा है। और हर सदस्य यही चाहता है, कि पंडित जी उसी के सुझाये हुऐ नाम पर अन्तिम मोहर लगा दें। बच्चे के पिता जिन्होंने अपनी पत्नी और पिता को खुश करने के लिये इतना बड़ा प्रयोजन रचा है, परन्तु उनसे कोई नहीं पूछ रहा की उसके मन में क्या है? पिता को अपने बेटे के नाम से ज्यादा फिक्र रिश्तेदारों की आवभगत की है। गांव से पहली बार आनेवाले रिश्तेदारों को ठहराने की व्यवस्था भी अभी तो ठीक से नहीं हो पा रही है।
पंडित जी नामकरण करके कोई भी नाम बच्चे को दे दें, लेकिन बाद में कई बार बच्चे के नाम का मज़ाक बन जाता है। एक मां-बाप ने अपने बच्चे का नाम बड़े ही प्यार से नैनसुख रखा था, लेकिन एक हादसे में उस बेचारे की दोनों आखें चली गईं। एक फेरीवाला हमारी गली में सब्जी बेचने आता है, एक दिन बातचीत के दौरान उससे उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम रामभूल बताया। नाम सुनकर कुछ अजीब सा लगा। मैंने कहा हमने आज तक रामचन्द्र, रामलाल, रामप्रसाद, रामप्यारी आदि नाम तो सुने हैं लेकिन रामभूल नाम तो पहली बार सुन रहे है। उसने विस्तार से बताया कि मेरे पहले से ही सात भाई बहन थे, मेरे मॉ-बाप और बच्चा नहीं चाहते थे। लेकिन मैं फिर भी पैदा हो गया, तो मेरे माता पिता ने बिना किसी पंडित को पूछे ही मेरा नाम रामभूल रख दिया क्याेंकि मैं इस दुनिया में रामजी की भूल की वजह से ही आ पाया था।

शर्मा जी के घर मेहमानों का आना शुरू हो चुका था। एक दिन शाम को सब बच्चे गली में खेल रहे थे कि अचानक एक ऑटोरिक्शा आकर रूका और उसमें से एक बुजुर्ग की कड़कती आवाज आई ''ऐ छोरो इधर घासीराम का घर कहां है?'' सब बच्चे एक दूसरे के चेहरे की तरफ देखने लगे क्याेंकि किसी ने भी यह नाम पहले कभी नहीं सुना था। बच्चों के मना करने पर उस ताऊजी ने कुछ और लोगों से घासीराम के घर के बारे में पूछा तो सबने अपनी असमर्थता जाहिर की। ताऊजी ऑटोरिक्शा लेकर कालोनी में आगे बढ़ गये। काफी देर बाद ताऊजी थकेमांदे से फिर उसी ऑटोरिक्शा से गली में घासीराम का घर ढूंढते-ढूंढते आ पहुचें। इससे पहले कि वो किसी और से पूछते, सामने से मुहल्ले के प्रधान शर्मा जी आ गये। शर्मा जी को देखते ही ताऊजी की बांछें खिल गई। दूर से ही चिल्ला कर बोले डेढ़ घंटे से तेरा घर ढूंढ रहा हूं घासीराम।
तू तो कहता था कि दिल्ली शहर में तेरा बहुत रूतबा है यहां तो तुझे कोई पहचानता तक नहीं कम से 50 लोगों से तेरे घर के बारे में पूछ चुका हूं। शर्मा जी ने कहा क्या पूछा था आपने? ताऊ ने कहा, तेरे नाम से ही पूछ रहा था कि घासीराम का घर कहां है। शर्मा जी को यह सुनते ही जैसे तन बदन में आग सी लग गई। पूरी कालोनी मे उन्होंने अपने नाम को जी.आर. शर्मा (G.R. Sharma) के नाम से ही महषूर कर रखा था और ताऊ जी ने बरसों पुरानी मेहनत पर एक मिनट में पानी फेर दिया। शर्मा जी गुस्से में आगबबूला होते हुऐ बोले यह घासीराम क्या होता है? जी. आर. शर्मा कहते तो क्या तुम्हारी जुबान कट जाती। पूरी कालोनी में मेरे नाम की मिट्टी खराब कर दी।

इतनी दूर से आए मेहमानों की आवभगत तो दूर उनका स्वागत शर्मा जी ने गुस्से और गालियों से कर डाला। ताऊजी को कुछ देर तो बात ही समझ नहीं आई, कि आखिर यह सब हुआ क्या? जिस घासीराम को बचपन से उन्हाेंने अपनी गोद में खिलाया था, आज उसी को बचपन के नाम से बुलाने पर इतना बुरा क्यूं लग रहा है? खैर, पंडितजी तो जब पोते का नामकरण करेंगे वो तो तभी होगा। लेकिन शर्मा जी के गांव से आऐ सीधेसादे रिश्तेदारों ने शर्मा जी के नाम का बिना पूजापाठ के एक बार फिर से नामकरण कर डाला। वर्षों तक शर्मा जी जिस तख्ती पर बडे रौब से जी.आर. शर्मा लिखवाते रहे, उनके रिश्तेदारों ने उन्हें एक मिनट में फिर से उन्हें बरसों पुराना घासीराम बना दिया। जौली अंकल को ऐसे लोगो को देख बहुत दुख होता है, जो अपने बच्चो के बड़े-बडे नाम तो भगवान के नाम से जोड़ कर रख लेते है लेकिन उन्हे उस नाम की लाज बचाने के लिये अच्छें परिवारिक संस्कार देने में चूक कर जाते है। 

लकड़हारे की चतुराई


कभी-कभी जीवन में पुरानी बातों को याद करके बहुत आंनद मिलता है। आज आपको बचपन की यादों की गठरी में से एक बहुत पुरानी कहानी याद करवाता  हूँ, बचपन में हम सभी ने यह कहानी जरूर पढ़ी या सुनी होगी। एक बार एक गांव में एक लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसके पास अपनी कोई जमीन-जयदाद नहीं थी, इसलिये वो सारा दिन पेड़ से लकड़ियां काट कर ही अपना और अपने परिवार का पेट भरता था। एक दिन वो लकड़हारा एक पेड़ से लकड़ियां काट रहा था, कि अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूट कर पास बहती एक नदी में जा गिरी। उसने पेड़ से नीचे उतर कर नदी में से कुल्हाड़ी निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस बेचारे को कोई सफलता नहीं मिली। लकड़हारे के पास कमाई का कोई दूसरा जरिया न होने की वजह से वो बहुत ही निराश होकर नदी के किनारे बैठ कर जार-जार रोने लगा।
भगवान जी यह सारा नजारा काफी देर से देख रहे थे। कुछ ही देर में ही उनका मन दया से पसीज गया, और उन्होंने तरस खाकर उस लकड़हारे की मदद करने का मन बना लिया। वो झट से उसके सामने प्रकट हुए और उसके दुखी होने का कारण विस्तार से जाना। उसका दुखड़ा सुनते ही भगवान जी नदी में गये, और एक चांदी की कुल्हाड़ी निकाल कर ले आये। लकड़हारे ने भगवान से कहा, महाराज यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो बहुत ही पुरानी और वो भी लोहे की है। भगवान जी ने फिर नदी में डुबकी लगाई, और इस बार वो सोने की कुल्हाड़ी निकाल कर ले आये। लकड़हारे ने बड़ी ही नम्रतापूर्वक इस कुल्हाड़ी को भी लेने से मना कर दिया और भगवान से अपनी लोहे की कुल्हाड़ी ही ढूंढने की प्रार्थना की। भगवान जी ने तीसरी बार फिर नदी में डुबकी मारी और इस बार हीरे जवाहरातों से जड़ी एक बहुत ही बेशकीमती कुल्हाड़ी निकाल कर ले आये।
लकड़हारे ने हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुऐ, इस कुल्हाड़ी को भी लेने से मना कर दिया। उसने फिर से अपनी लोहे की कुल्हाड़ी ढूंढने की प्रार्थना की। भगवान जी उसकी ईमानदारी से बहुत ही प्रसन्न हुए और उस लकड़हारे को उसकी लोहे वाली कुल्हाडी के साथ चांदी, सोने और हीरे-जवाहरातों से जड़ी सभी कुल्हाड़ियां उसको ईनाम में दे दी और साथ ही वादा किया कि जीवन में कभी भी कोई कष्ट हो तो वो उसकी सदा मदद करेंगे। वो खुशी-खुशी सारी कुल्हाड़ियां लेकर अपने घर चला गया और अपने परिवार के साथ सुखी-सुखी रहने लगा।
समय पाकर वो लकड़हारा एक बहुत ही धनवान आदमी बन गया। एक दिन वो अपनी पत्नी के साथ बाग में टहल रहा था कि अचानक उसकी पत्नी का पैर फिसला और वो कुएं में जा गिरी। उसने झट से अपने भगवान का ध्यान किया, और भगवान जी प्रकट हो गये। सारी व्यथा सुनने के बाद भगवान जी ने उसकी मदद करने के पहले उसकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया। वो कुएं में गये, और जाकर सबसे सुंदर हीरोईन मल्लिका शहरावत को निकाल कर ले आए। वो लकड़हारा तुंरत ही भगवान जी को धन्यवाद देकर वहां से जाने लगा।
भगवान जी ने उसे रोककर कहा पहले तो बहुत ईमानदार थे। आज एक सुन्दर और खूबसूरत औरत को देखते ही तुम्हारा मन बेईमान हो गया। उसने माफी मांगते हुए कहा, भगवन, ऐसी बात बिल्कुल नहीं है, मैं आज भी उतना ही ईमानदार  हूँ, जितना पहले था। लेकिन इस पहली औरत को स्वीकार करना मेरी मजबूरी है। भगवान जी ने पूछा कि अपनी पत्नी को छोड़ कर पराई औरत को स्वीकार करना तुम्हारी किस तरह तुम्हारी मजबूरी हो सकती है?
लकड़हारे ने बड़ी ही नम्रता से कहा अगर मैं इस औरत को स्वीकार नहीं करता, तो आप मेरी पत्नी को निकालने से पहले फिर से कुएं में जाकर विपाशा बासु और श्रीदेवी जैसी दो-तीन सुन्दर औरतें ले आते। मेरे बार-बार मना करने पर भी यदि आप खुश होकर कुल्हाड़ी की तरह सब औरतों को मेरे पास छोड़ जाते, तो मैं इन सभी को कैसे संभाल पाता? महाराज आजकल इस महंगाई के समय में एक औरत को पालना और संभालना ही बहुत मुश्किल काम है। ऐसे हालात में चार-चार सुन्दर औरतो को कैसे पाल सकता  हूँ? इस मजबूरी की वजह से ही मैंने पहली औरत को ही स्वीकार करने में ही भलाई समझी। उस लकड़हारे की चतुराई को समझते हुए भगवान के साथ-साथ जौली अंकल भी मुस्करा दिये। 


ओवर टाईम


शाम होते ही गप्पू के सभी दोस्त अपने मम्मी पापा के साथ बाजार घूमने-फिरने या कोई फिल्म देखने निकल जाते। गप्पू अपने मां-बाप की इकलोती संतान होने के कारण बिल्कुल अकेला और उदास सा अपने पापा मम्मी के इंन्तजार में घर में बैठा रहता। वो कभी भी अपने पापा के साथ घूमने नही गया था। जब कभी गप्पू के दोस्त उससे किसी फिल्म या होटल में खाने के बारे में जिक्र करते हो उसका मन बहुत ही बैचेन सा हो जाता था। उसके मन में रह-रह कर एक ही सवाल बार-बार उठता कि उसके पापा कभी भी न तो उसे घुमाने ले जाते है और न ही उसके साथ खेलते है। मुहल्ले के बाकी सभी लोगो की तरह समय पर घर क्यूं नही आते? मेरे पापा ही सदा देरी से क्यूं आते है, और न ही उसे अपना समय देते है। आज चाहे कुछ भी हो जायें मैं पापा के आने तक उनका इंन्तजार करूगा और दफतर से रोज देरी से आने का कारण भी जरूर पूंछूगा।
काफी रात बीत जाने के बाद जब गप्पू के पापा घर आये तो गप्पू ने अपने दिल की सारी बात उनसे कह डाली। पहले तो उसके पापा ने उसे प्यार से टालने का विफल प्रयास किया, परन्तु जब वो अपनी हठ पर अड़ा रहा तो उसके पापा ने उसे समझाया कि हमनें अपने घर और कार के लिये बैंक से बहुत सा पैसा कर्ज पर लिया हुआ है। उसकी किश्ते देने के लिये मुझे दफतर में रोज औेवर-टाईम करना पड़ता है। पापा यह औवर टाईम क्या होता है? उसने जोश-जोश में अपने पापा से पूछा। अब तक गप्पू का मूड काफी ठीक हो चुका था। जवाब में उसके पापा ने उसे समझाया कि नियमित समय से अतिरिक्त कार्यकाल में जो काम किया जाए उसे ओवर टाईम कहते है। इस काम से जो पैसे मुझे मिलते है उनसे मैं बैंक की किश्ते चुका पाता  हूँ।
अब गप्पू ने पूछा कि एक दिन ओवर टाईम करने से आपको कितने पैसे मिल जाते है? गप्पू के पापा ने कहा मुझे एक दिन औवर टाईम करने से 300 रूप्ये मिल जाते है। कुछ देर सोचने के बाद गप्पू ने अपने पापा से कहा कि आप इतने सारे पैसे कमाते हो, लेकिन आपने मुझे तो कभी कुछ पैसे नही दिये। गप्पू के पापा ने खुशी-खुशी झट से गप्पू को 20 रूप्ये दे दिये। कुछ दिन बाद गप्पू ने फिर इसी तरह अपने पापा से पैसे मांगे तो उन्होनें पूछा कि वो इन पैसो का क्या करेगा? गप्पू ने कहा कि मैं यह सारे पैसे अपनी छोटी सी गुलक में जमा कर रहा  हूँ, मुझे एक बहुत ही जरूरी चीज खरीदनी है। उसके पापा को गप्पू की यह बचत करने की आदत अच्छी लगी और वो रोज ही उसे कभी 5 कभी 10 रूप्ये देने लगे।
एक दिन सुबह जब गप्पू के पापा दफतर जाने लगे तो उसने बड़े ही प्यार से कहा कि क्या आप आज शाम को दफतर से थोड़ा जल्दी घर आ सकते हो? उसके पापा ने कहा कि मैने कुछ दिन पहले ही तुम्हें अच्छी तरह से समझाया था कि मुझे दफतर में ओवर टाईम के लिये रूकना पड़ता है। गप्पू ने कहा कि पापा आज मेरा जन्मदिन है, मैने अपने कुछ दोस्तो को घर पर बुलाया है। क्या आप एक दिन के लिये भी औवर टाईम नही छोड़ सकते? जब उसके पापा ने फिर से अपनी मजबूरी बतानी शुरू की तो उनकी बात को बीच में अनसुना सा करके गप्पू दौड़ कर अपने कमरे में गया और अपना पिगी बैंक उठा लाया। उसने उसमें से सारे पैसे निकाल कर पापा के सामने ढेरी कर दिये और बोला कि उस दिन मैने आपको कहा था कि मुझे एक बहुत ही जरूरी चीज खरीदनी है। मैने यह सारे पैसे आज के दिन आपका ओवर टाईम खरीदने के लिये इक्ट्ठे किये है। यह पूरे 300 रूप्ये है। आप यह सारे पैसे ले लो, लेकिन आप आज एक दिन के लिये अपना औवर टाईम छोड़ दो। एक दिन यदि ओवर टाईम नही करोगे तो कुछ नही होगा, मुझे आज अपना जन्मदिन आपके साथ मनाना है। पापा आज मैं अकेला नही रहना चाहता, अपनी यह बात कहते-कहते गप्पू फूट-फूट कर रोने लगा।
मासूम बच्चे के प्यार का यह नजारा देख गप्पू के पापा के उसकी मम्मी की आंखों में से भी गंगा-जमुना बहने लगी थी। हम सभी जानते है कि परिवार के लिये सुख-सुविधाऐ जुटाने के लिये मेहनत करना बहुत अच्छी बात है। जौली अंकल का तर्जुबा तो यही कहता है कि जो कुछ आपके भाग्य में है उसे दुनियॉ की कोई भी शक्ति आपसे छीन नही सकती और जो कुछ आपके भाग्य में नही है उसे दुनियॉ की कोई भी शकित आपको दे नही सकती। ऐसे में पैसा कमाने की होड़ में बच्चो की छोटी-छोटी खुशीयॉ की कुर्बानी देना बच्चो के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी होगी। 

पापा, आई लव यू


गुनगुन अपने घर के आंगन में अपनी कुछ छोठी-छोटी सहेलीयों के साथ खेल रही थी, कि अचानक उसके घर के सामने एक चमचमाती हुई कार आ कर रूकी। गुनगुन अपना खेल छोड़ कर उस कार को हसरत भरी निगाहो से देखने लगी। यह कार उनके पड़ोसी अभी-अभी खरीद कर लाए थे। गुनगुन दौड़ते हुए अपनी मम्मी को यह खबर बताने के लिये घर के अंन्दर भागी और अपनी मम्मी से पूछने लगी कि मम्मी हम अपनी कार कब लेगे? हमारे पड़ोसीयो के पास तो पहले से ही दो कारे है। आखिर मेरे पापा कार क्यूं नही खरीदते?
गुनगुन की मां को समझ नही आ रहा था कि वो उसको अपनी मजबूरी और लाचारी अपनी गुड़ियॉ जैसी लाडली को कैसे बताऐ कि इस कमर तोड़ मंहगाई में उसके पिता की कमाई से तो घर का भरण-पोषण करने के बाद मुश्किल से तो हम स्कूटर चलाने का खर्चा निकल पाते है। ऐसे हालात में हम लोग कार लेने की कैसे सोच सकते है? अपने गम और आंसूओ को छिपाते हुए उसकी मां ने उसे समझाया कि हमारी सभी जरूरते भगवान जी पूरी करते है। तुम भी रोज सुबह उठ कर भगवान से प्रार्थना किया करो, वो तुम्हें भी बहुत जल्द सुन्दर सी कार ले देगे। गुनगुन के दिल को यह बात छू गई, उसने अपनी मां से कहा कि अब वो रोज भगवान से ही प्रार्थना किया करेगी कि हमें भी एक सुन्दर सी कार दिलवा दो।
कुदरत का करशिमा कहिए या बच्चे के कोमल मन से निकली हुई भगवान के चरणों में प्रार्थना का असर, चंद ही दिनों में गुनगुन के पापा को दफतर से बहुत लंम्बे अरसे से रूकी हुई एक मोटी रकम का बकाया चैक मिल गया। पति-पत्नी ने आपस में सलाह करके अपनी इकलोती बिटियॉ के ख्वाब को पूरा करने की कोशिश में कुछ रकम बैंक से कर्ज के रूप में ले ली। चंद ही दिनों बाद वो भी बिटियॉ की मन-पसंन्द लाल रंग की चमचमाती हुई कार अपने घर ले आये।
घर पहुंचते ही वो दोनो भगवान का शुक्रीयॉ अदा करने के लिये पूजा करने में जुट गये। गुनगुन कार की चाबी लेकर खेलते-खेलते कार के पास चली गई। कुछ देर बाद जब वो पूजा खत्म करके बाहर आये तो गुनगुन के पापा ने देखा कि गुनगुन नई नवेली दुलहन की तरह खूबसूरत कार के ऊपर कुछ टेढ़ी-सीधी लाईने खींच कर उसे खुरच रही थी। यह सब देखते ही वो आग बबूला हो उठे। वो अपने गुस्से पर काबू न रख पाये, उन्होने आव देखा न ताव, गुनगुन के ऊपर थप्पड़ो की बरसात कर दी। उस समय वह यह भी भूल गये कि जब आदमी क्रोधित होता हैं तो बहुत सारी शक्ति नष्ट हो जाती है, अत: हमें शक्ति का प्रयोग बुद्विमता से करना चहिये। फूल जी नाजुक और कोमल गुनगुन अपने पापा की मार से इतनी सहम गई कि रोते-बिलखते हुए घर के कोने में जाकर सो गई। घर के बाकी सदस्यों ने भी नई कार की खुशी तो क्या मनानी थी सभी बुझे हुए दुखी मन से बिना कुछ खाये-पीये ही सो गये।
अगले दिन सुबह जब गुनगुन के पापा दफतर जाने लगे, तो उन्होने अपनी बेटी गुनगुन ध्दारा कार के ऊपर खींची हुई उन ढेड़ी-सीधी लाईनो को कम करने के प्रयास से उन्हें एक कपड़े से उन्हें मिटाने का प्रयास किया। इसी दौरान उन्होने ध्यान से उन लकीरो को देखा तो उनकी आंखो से अश्रू धारा बह निकली। वो अपने आप को कोसने लगे कि मैंने रात को बिना सोचे समझे उस बच्ची की इतनी पिटाई क्यूं की? अपने पति को इस तरह से फूट-फूट कर रोते देख गुनगुन की मम्मी बाहर आई और पति से परेशानी का कारण जानना चाहा, तो उसके पापा ने बिना एक भी अक्षर बोले कार की तरफ इशारा कर दिया। चाबी से रगड-रगड़ क़र ढेड़ी-सीधी लाईनो से गुनगुन ने लिखा था - 'पापा, आई लव यू'
मौका चाहे कोई भी हो, हमारे प्यारे मासूम बच्चे भी अपने मन की भावना को व्यक्त करना चाहते है, लेकिन नासमझी के कारण कई बार उनकी बात कहने का तरीका थोड़ा गलत हो जाता है। किसी बच्चे को उसकी गलती पर कोई प्रतिक्रिया या सजा देने से पहले हमें एक बार जरूर सोचना चहिये कि आखिर उनके मन की मंन्शा क्या है? जौली अंकल का तर्जुबा तो यही कहता है कि फूलो की तरह कोमल हृदय के बच्चे कभी किसी का बुरा करने के बारे में तो सोच ही नही सकते। वो तो अपनी हर छोटी सी खुशी और इच्छा पूर्ति पर केवल इतना ही कहना जानते है कि - पापा, आई लव यू। 

बाप तो आखिर बाप ही होता है


एक बार अमन के पिता गांव से अचानक अपने बेटे को मिलने शहर पहुंच गये। जहां वो कालेज की पढ़ाई कर रहा था। जैसे ही वो स्टेशन से उसके घर पहुंचे वहां उन्होने देखा कि अमन एक लड़की रेखा के साथ एक ही घर में रह रहा था। दोनो का सारा समान भी एक ही कमरे में पड़ा हुआ था। अमन के पिता ने उन दोनों को इक्ट्ठे रहते देख कुछ कहा तो नही लेकिन उनके मन ने इस रिश्ते को शक की नजर से देखना शुरू कर दिया। वो उन दोनों के रिश्ते के बारे में जानने को काफी अधिक आतुर हो रहे थे। शाम को जब वो जब अपने बेटे के साथ सैर करने के लिये निकले तो पिता ने अपने बेटे अमन से लड़की के बारे में कुछ जानने की मंशा और उसके साथ रहने का कारण पूछ ही लिया। बेटे अमन ने शहर में महंगी और अच्छी जगह की कमी जैसी कई मजबूरीयॉ अपने पिता को बता दी।
जैसा की अक्सर एक कहावत में कहते है, कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है, ठीक उसी तरह से अमन ने अपने पिता के सामने बिना और कुछ पूछे ही अपने रिश्ते को पाक साबित करने की कई दलीलें दे डाली। रात को जब खाना खाने के लिये तीनों इक्ट्ठे बैठे तो अमन ने फिर से अपने पिता को हर प्रकार की सफाई देने की कोशिश करता रहा। उसने उन्हें बताया कि रेखा बहुत ही अच्छे परिवार से है और स्वभाव की भी बहुत अच्छी है। पढ़ार्इ्र के साथ खाने-पीने में भी मेरी हर तरह से और हर समय मदद करती है।
पिता के शक को कुछ हद तक कम करते हुए उसने आगे कहा कि वैसे भी हम दोनों अलग-अलग कमरे में ही रहते है। सिर्फ दिन में ही थोड़ी देर के लिये कभी-कभी जरूरी काम से मिलते है। बच्चे कितने भी बड़े और चतुर क्यों न हो जाए बाप तो आखिर बाप ही होता है। ठीक उसी तरह अमन के पिता ने भी उन दोनों के हाव-भाव और आखों की बातचीत सें अंदाजा लगा लिया कि दोनो की दोस्ती काफी गहरी हो चुकी है। ज्ञानी लोग एक बात कहते है कि हमारी जुबान कितना भी झूठ बोलने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन हमारी आखें कभी भी जुबान और चेहरे का साथ नही देती। न चाहते हुए भी हमारी आखें सारी सच्चाई ब्यां कर ही देती है और समझदार लोग इस भाषा को पढ़ने में कभी कोई चूक नही करते।
एक दो दिन वहां रूकने के बाद जब अमन के पिता घर वापिस आ गए तो उन्होने अपनी पत्नी को सब कुछ बताया। मां ने बेटे की तरफदारी करते हुए कहा कि आप को तो हर आदमी में कुछ न कुछ कमी नजर आती है। हर किसी पर शक करना तो तुम्हारा पुराना स्वभाव है। कुछ भी हो जाऐ हमारा बेटा ऐसा नही हो सकता। उसकी शादी तो मैं अपनी ही बिरादरी में परिवार द्वारा पंसन्द की हुई लड़की के साथ बड़ी ही धूमधाम से करूंगी।
उधर अमन के पिता के जाने के बाद रेखा ने अमन से कहा, कि जब से तुम्हारे पिता यहां रह कर गए है, तब से मेरी एक महंगी वाली घड़ी नही मिल रही। अगर तुम बुरा न मानों तो एक बार पत्र लिख कर उनसे पूछ लो, कि कही गलती से उनके सूटकेस में तो नही चली गई। अमन को यह बात काफी अजीब सी लगी, कि रेखा एक तरीके से उसके पिता पर शक कर रही है। जैसा की हम सब जानते है, कि प्यार अंधा होता है, और प्यार में आदमी कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। न चाहते हुए भी अमन ने रेखा के दबाव में अपनी मां को इस बारे में एक पत्र लिख ही डाला।
एक दिन जब अमन के पिता शाम को दफतर से घर वापिस आऐ तो अमन की मां ने उन्हें बताया कि अमन की चिट्ठी आई है। उसने आपसे माफी मांगते हुए पूछा है, कि कहीं गलती उसके साथ रहने वाली लड़की रेखा की घड़ी तो आपके सामान में नही आ गई। उसके पिता ने उसी समय उस पत्र का जवाब बहुत ही सलीके से देते हुए लिखा कि मेरे प्यारे बेटे, मैं यह नही कहता कि तुम दोनों एक ही कमरे में रहते हो या रेखा तुम्हारे ही कमरे में सोती है। परन्तु अगर वो अपने कमरे में रहती होती तो उसको उसकी घड़ी उसे पहले दिन ही अपने तकिये के नीचे ही मिल जाती। आखिर में मैं इतना ही कहना चाहूंगा, कि झूठ बोलने वाला अल्पकाल के लिए ही जीतता है लेकिन असली आनंद तो सच बोलने वाले को ही मिलता है।
जीवन में एक बात सदैव याद रखो कि इंसान का व्यवहार ही उसके व्यकितत्व को निखारता है। जीवन में कई मौके ऐसे भी होते है, जब इंसान चुप रह कर बहुत कुछ कहने और सुनने की समर्था रखता है। भगवान ने माता पिता को धरती पर विधाता का रूप देकर भेजा है, इसलिये बड़े बर्जुगों के साथ छल की जगह उनकी सेवा करने वाले की आयु, यश, विद्या और शक्ति में सदैव वृद्वि होती है।
अंत में जौली अंकल इस विषय में जमाने की हवा से भी तेज भागने वाले युवाओं को केवल इतना ही संदेश देना चाहते है कि आप कितने भी चतुर और होशियार क्याेंं न बन जाओ, लेकिन एक बात कभी मत भूलना कि बाप तो आखिर बाप ही होता है। 


तलाक, तलाक, तलाक

एक कहावत के अनुसार हर आदमी को एक बीवी की जरूरत होती है, क्योकि आप अपने आसपास की सभी कमियों के लिये सरकार को तो हर समय दोषी करार नही दे सकते। इसका सीधा-सीधा अर्थ तो यही निकलता है कि घर परिवार में होने वाली हर समस्यां के लिये पत्नी को ही जिम्मेंदार माना जायें। इस पहेली को बड़े-बड़े ज्ञानी और विद्ववान लोग भी नही सुलझा पायें कि जिन लोगो की शादी भगवान की कृपा से ठीक-ठाक हो जाती है वो तो किसी न किसी परिवारिक कारणों के मद्देनजर हर समय दुखी दिखाई देते है, परन्तु वो लोग भी परेशान रहते है जिन की शादी नही हो पाती। यदि विवाह से जुड़े आंकड़ो पर गौर किया जाये ंतो सबसे अधिक दुखी वह लोग है जो खुद अपनी मर्जी से प्रेम विवाह करते है।
कुछ समय पहले तक मां-बाप जहां कहीं भी बच्चो का रिश्ता तय कर देते थे, परिवार के सभी लोग खुशी-खुशी उसे स्वीकार करते हुए मिलजुल कर अपना सारा जीवन हंसते खेलते गुजार देते थे। आज शादी के लिये लड़के-लड़की को देखने से लेकर विवाह-शादी की हर रस्म को ज्ञानी लोगो की निपुण अगुवाई और शुभ मुर्हत में ही निभाया जाता है, फिर भी न जानें ऐसे हालात क्यूं बनते जा रहे है कि जन्मों-जन्मों तक पति-पत्नी का रिश्ता निभाने की कसमें खाने वालें अब इस रिश्ते को बड़ी कठिनाई से चंद महीनो या मुशकिल से कुछ सालों तक ही निभा पाते है। इससे तो यही लगने लगा है कि रिश्तों में संवेदना नाम की कोई चीज बची ही नही है।
न जानें जमाने की हवा को क्या हो गया है कि हर कोई छोटी से छोटी बात को आत्मसम्मान की आड़ में एक बड़ा मुद्दा बना कर एक दूसरे के ऊपर इतने घटियां इल्जाम लगाते है कि पति-पत्नी के साथ उनके पूरे परिवार वाले उस कीचड़ की लपेट में आ जाते है। हैरानगी की बात तो यह है कि जो लोग जितना अधिक पढ़े लिखे है, उन लोगो में तलाक के मामले उतने ही अधिक और वजह उतनी ही छोटी होती है। यह जान कर उस समय और भी हैरानगी होती है जब यह मालूम पड़ता है कि पति-पत्नी को एक दूसरे से सिर्फ इस वजह से तलाक चहिये क्योंकि दोनों में से कोई एक अधिक किसी न किसी नशे का सेवन करता है। शाकाहारी और मासाहारी भोजन को भी लेकर कई बार रिश्तों में दरार देखने को मिलती है। बदजुबानी करने में तो आज हर कोई अपने को नहले पर दहला समझने लगा है।
रिश्तों की गहराईयों को नकारते हुए कई पति केवल इस लिये हीन भावना का शिकार हो जाते है कि समाज में उनकी पत्नी का रूतबा उनसे अधिक है। लड़कियों की अधिक पढ़ाई-लिखाई और उनकी, अच्छी कमाई को कई पति बर्दाशत नही कर पाते। कामकाजी महिलायों को घर और बच्चो की देखभाल करने में शर्म महसूस होने लगी है। समाज में बढ़ता खुल्लापन, जिम्मेदारीयों से मुंह चुराना और लड़कियों के पहनावे को लेकर भी अनेको मामले तलाक के लिये अदालत तक पहुंच रहे है। वकील लोग अपनी मोटी कमाई के लालच में इस तरह के सभी मामलों में आग में घी डालने का काम करते है।
जब कभी ऐसा महसूस होने लगे कि संबंध सही दिशा में नही जा रहे तो तलाक की बात जरूर दोनों को राहत दे सकती है। लेकिन विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को तोड़ना हमेशा आसान काम नही होता, लेकिन खुद को माडर्न समझने वाली आज की पीढ़ी इस अहम रिश्ते को एक पल में फोन द्वारा छोटा सा एस,एम,एस, भेज कर सदा के लिये खत्म करने से भी हिचकती। हम समझें या न समझें समय हर किसी को एक बार जरूर बदलने का अवसर सदा देता है, जो लोग ऐसा नही करते समय उनको बदल देता है।
छोटी-छोटी बातों को यदि वैवाहिक जीवन में अधिक तूल न दिया जाये ंतो बहुत से बच्चो का भविष्य अधर में लटकने के साथ दो परिवार भी टूटने से बच सकते है। सदैव अपनी खुशीयों को प्राथमिकता न देते हुए दूसरों को थोड़ी सी खुशी देना भी एक सर्वोत्तम दान है, इसलिए मधुर संबध बनाने के लिये सदा प्रेमयुक्त, मधुर व सत्य वचन बोलें। भगवान न करे कि यदि जीवन के किसी मोड़ पर ऐसे हालात बन ही जाये ंतो भी तलाक लेने से पहले कुछ भी ऐसी बदजुबानी न करे जिससे की दूसरे शक्स को ठेस पहुंचे। तलाक जैसे खतरनाक अक्षर को अमली जामा पहनाने से पहले एक बार किसी ऐसे व्यक्ति की मदद जरूर ले जो बातचीत के जरिये दोनों के दिल से मन-मुटाव को खत्म कर सकें।

पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार से निभाने के लिये खुद को शक्तिशाली बनाने की बजाए थोड़ा विनम्र होना भी जरूरी है। यदि हम अपने माता-पिता को दिल से सम्मान देते है तो सास ससुर भी माता-पिता की तरह ही धरती पर विधाता का ही रूप है। युवा पीढ़ी यदि इस बारे में भी गौर करे कि हमें ये लेना है वह लेना है ऐसा सोचने के साथ हमें क्या देना है इस पर भी विचार करे तो बहुत सी परेशानीयां खत्म हो सकती है। जौली अंकल इस प्रकार की उलझन में फंसे सभी लोगो को दुआ देते हुए इतना ही कहते है यदि तलाक जैसे नापाक शब्द से बचना है तो सदा मीठा बोलने की आदत डालो क्योंकि मीठा बोलने में एक कोड़ी भी खर्च नहीं होती। 


दूर के ढ़ोल .......

चरण दास रोज काम पर जा-जाकर बहुत थक चुका था, उसे लगता था, कि उसकी पत्नी तो सारा दिन आराम से घर में बैठी रहती है। पूरे परिवार के लिये सारा काम तो मुझे अकेले ही करना पड़ता है। सारा दिन मेहनत करके पैसे मैं कमा कर लाता हूं और मेरी बीवी तो बस उस पैसे से मौज-मस्ती करती है। एक दिन उसने भगवान से प्रार्थना की, कि मेरी पत्नी को एक दिन के लिये आदमी और मुझे औरत बना दो। ताकि मैं भी जिंदगी में एक दिन सुख से जी सकूं। भगवान जी बहुत अच्छे मूड में बैठे थे, उन्होने झट से चरण दास की प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन दोनों की आत्मा को एक दूसरे के षरीर में डाल दिया।
अगले दिन सुबह जब चरण दास उठा तो वो एक औरत बन चुका था। उठते ही बच्चों को स्कूल भेजने की ंचिंता शुरू हो गई, फिर उनका नाश्ता और लंच पैक करना शुरू कर दिया। भाग-भाग कर किसी तरह से उनको स्कूल बस तक पहुंचाया। आते समय बाजार से घर के बाकी लोगों के लिये नाश्ते का सामान और सब्जी वगैरह लेनी थी। घर का कुछ राषन भी खत्म था, वो भी लेना जरूरी था। घर पहुंचते ही देखा तो कुत्ते ने रास्ते में गन्द कर दिया था, अब सफाई वाली तो अभी तक आई नहीं थी, इसलिये वो भी खुद ही साफ करके कुत्ते को भी फालतू में नहलाना पड़ा।
पति को नाश्ता देकर दफतर भेजा, तो वो जाते-जाते बिजली और पानी का बिल जमा करवाने को कह गये। बैंक में बैलेन्स कम था, इसलिये वहां भी कुछ पैसे जमा करवाने का फरमान मिल गया। यह सब कुछ निपटा कर जब तक घर पहुंची तो एक बज चुका था। अभी घर की साफ-सफाई और कपड़े धुलवाने बाकी थे। रसोईघर भी बुरी तरह से बिखरा पड़ा था। एक कप चाय पीने का मन हुआ तो घड़ी की तरफ नजर गई, तो छोटे बेटे बंटी का स्कूल से वापिस आने का समय हो चुका था। चाय का इरादा छोड़कर उसे लेने बस स्टैंड पर भागना पड़ा। रास्ते में ही बंटी ने स्कूल और टीचर की षिकायतें षुरू कर दी। ढेर सारा होमवर्क भी बता दिया। घर आते ही बच्चों के कपड़े वगैरह बदल कर उनको खाना दिया। फिर दोनों बच्चों में टी.वी. को देखने में झगड़ा हो गया। एक बच्चे के माथे पर चोट लग गई, बाकी सब काम छोड़ कर डाक्टर के पास भागना पड़ा। दिन के 3 बज चुके थे, सुबह से खाना तो दूर एक कप चाय भी नसीब नहीं हुई।

जैसे-तैसे बच्चे खाना खाकर थोड़ी देर आराम करने के लिये लेटे, तो डाकियॉ डाक लेकर आ गया। अन्दर आकर कुछ पल टी.वी. देखने का मन बनाया ही था, कि दरवाजे पर फिर जोर से घंटी बजी, देखा तो वहां एक सेल्सगर्ल कुछ घरेलू सामान बेचने के लिये आई थी। अभी उस को निपटा ही रही थी, कि अन्दर से फोन की घंटी फायर ब्रिगेड के अलार्म की तरह से बजने लगी। सारे दिन में 5 मिनट का आराम भी नहीं मिल सका। अभी अगले दिन के लिये बच्चों की यूनिफॉर्म तैयार करनी थी, क्याेंकि दोनों बच्चों को फैन्सी डै्रस में स्कूल जाना था। पति ने रात को एक पार्टी में जाना था, उनके कपड़े भी खास तौर से तैयार करने का हुक्म भी पूरा करना था। घर के सभी सदस्याें के लिये रात का खाना भी तैयार करना था।
किसी तरह मन मार कर 5 मिनिट के लिये पड़ोस में एक सहेली के घर गई, तो उसी समय संदेशा मिला कि घर में कुछ मेहमान आये हैं। सब कुछ छोड़ कर उनकी सेवा शुरू करनी पड़ी। कहने को तो वो एक निमंत्रण पत्र देने आये थे, लेकिन अगर उनका बस चलता तो रात को भी हमारे यहां ही रुकते। रात के 9 बज चुके थे, शरीर थक कर चूर हो चुका था। टांगों और पीठ में बुरी तरह से दर्द था। लेकिन उधर बच्चे डिनर के लिये षोर मचा रहे थे। पति को पार्टी में जाने की जल्दी हो रही थी। एक अकेली औरत किस किस की कितनी सेवा करे। किसी तरह से घर के सारे काम निपटा कर रात को 12 बजे बिस्तर नसीब हुआ, लेकिन अभी तो पतिदेव के पार्टी से वापिस आने के इन्तजार में सो नहीं सकती थी। रात को दो बजे जब पतिदेव घर पहुंचे तो वो मस्ती के मूड में थे। जैसे तैसे रात निकली। सुबह होते ही चरण दास भगवान के चरणों में पहुंच गये और रो-रोकर प्रार्थना करने लगे कि मुझे यह सौदा नहीं मन्जूर। भगवान मुझे जल्दी से वापिस आदमी बना दो। भगवान जी फिर से प्रकट हुए और चरण दास की हालत देख कर मन्द-मन्द मुस्काने लगे। चरणदास रोते-रोते एक ही प्रार्थना कर रहा था, कि ऐ भगवान मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई, जो मैंने औरतों के बारे में ऐसा सोचा। अब आगे से जिंदगी में यह गलती कभी नहीं करूंगा।
भगवान जी ने कहा, कि लगता है, तुम्हें अपनी भूल का अच्छी तरह से एहसास हो गया है। अब तुम कभी कुदरत के नियमों के विरूध्द कुछ नहीं कहोगे। लेकिन अब मैं अभी तुम्हे वापिस आदमी नही बना सकता, तुम्हें औरत बन कर ही जीना पड़ेगा, कारण पूछने पर भगवान जी ने बताया कि अब तुम गर्भवती हो चुकी हो, और तुम्हें अपने आने वाले बच्चे को पालना है। इसीलिये जौली अंकल सदा कहते हैं, कि दूर के ढ़ोल हमेशा सुहावने लगते हैं। 

प्यार की ताकत


जीवन में हर प्रकार के दुनियावी रिश्तो में कुछ न कुछ नोंक-झोंक तो चलती ही रहती है, लेकिन सास-बहूँ का एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें कोई भी आज तक शायद एक दूसरे को खुश नही कर सका। सदियों पुरानी एक महशूर कहावत है, कि सास को अगर सोने का भी बना दिया जाए तो भी बहूँ उस में कुछ न कुछ कमी निकाल ही देती है। यही हाल सास का होता है, वो भी हर गुणवती बहूं में हजाराें कमियॉ पल भर में गिना देती है। बंसन्ती की कहानी भी कुछ इस से अलग नही थी। जिस दिन से बंसन्ती का विवाह हुआ था, उसी दिन से उसकी अपनी सास से किसी न किसी बात को लेकर खट-पट जारी थी। क्योंकि दोनो की सोच और स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क था।
जैसे-जैसे समय बीत रहा था, हर दिन बसंन्ती की अपनी सास को लेकर तनाव और परेशानीयॉ बढ़ती ही जा रही थी। एक-एक दिन अपनी सास के साथ गुजारना मुशकिल होता जा रहा था। किसी न किसी बात को लेकर दोनों में हर समय तलवारे तनी ही रहती थी। इन सब बातो के ऊपर बंसन्ती का पति वीरू जो अपनी मां के बहुत ही करीब और परिवारिक संस्कारो को मानता था, वो हर बार बंसन्ती को अपनी मां से माफी मांगने के लिये दवाब बनाता रहता था। ऐसे में बंसन्ती के पास सिवाए खून का घूंट पीने के इलावा कोई चारा नही बचता। एक दिन बंसन्ती ने मन ही मन यह कसम खाई कि वो अब किसी भी हालात में अपनी सास के खूंखार और तानाशाही रवैये को बर्दाशत नही करेगी। वो अपनी सास से हमेशा-हमेशा के लिये पीछा छुड़ाने के लिये सोचने लगी। इसी उधेड़-बुन में उसकी नजर अखबार में एक विज्ञापन पर पड़ी, जिसमें एक टोने-टोटके वाले बाबा ने चंद दिनों में हर दुख तकलीफ से छुटकारा पाने, सभी समस्याओं का समाधान और मन चाही इच्छा शक्त्ति को गारंटी के साथ प्राप्त करने का दावा किया था।
बंसन्ती जल्दी से घर का काम निपटा कर उसी बाबा को मिलने उनके डेरे पर जा पहुंची। वहां जाते ही उसने बिना किसी हिचकिचाहट के बाबा को अपना सारा दुखड़ा सुनाया। बंसन्ती ने दुखी होते हुए कहा, कि अब मैं एक पल भी अपनी सास के साथ नही निभा सकती। रोते-रोते उसने बाबा से हर हालात में अपनी सास से छुटकारा पाने के लिये उसको मारने की बात तक कह डाली। अब चाहे मुझे उसके लिये अपनी सास को जहर ही क्यूं न देना पड़े? बाबा ने बात की गम्भीरता को समझते हुए बंसन्ती को समझाया कि ऐसा कुछ भी करने से वो खुद एक बहुत बड़ी मसुीबत में फंस सकती है। सास के मरते ही पुलिस और बिरादरी का सारा शक तुम पर आ जायेगा, और फिर तुम्हें सजा से कोई भी नही बचा सकता। इसके लिये तुम्हें थोड़े धैर्य से काम लेने की जरूरत है। बंसन्ती ने कहा, आप ही मुझे कोई राह दिखाईये, मैं हर हाल में कुछ भी करने को तैयार  हूँ,, बस एक बार यह बता दो कि आखिर मुझे इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिये क्या करना होगा?
बाबा ने बंसन्ती को समझाना शुरू किया कि तुम्हें यह काम प्यार, तस्सली और बहुत ही चौकस होकर करना होगा। मैं तुम्हें कुछ जहरीली जड़ी-बूटीयॉ दवा के रूप में दे देता  हूँ,। तुम्हें सिर्फ इतना करना है, कि हर दिन अपने हाथ से कोई न कोई सासू मां की पंसद का बढ़ियॉ और स्वादिष्ट खाना बना कर उसमें इन्हें मिला कर अपनी सास को खिलाना होगा। इससे तुम्हारी सास के शरीर में धीरे-धीरे जहर फैलने लगेगा। कुछ ही महीनों में वो अपने आप मर जायेगी और किसी को तुम पर शक भी नही होगा। लेकिन यहां एक बात का ध्यान रखना कि इस दौरान तुम कभी भी अपनी सास से झगड़ा नही करना, हर समय उससे प्यार से ही पेश आना है नही तो उसके मरते ही बिरादरी की नजर में तुम शक के घेरे में फंस जाओगी।
बंसन्ती खुशी-खुशी सभी जड़ी-बूटियों को संभाल कर घर ले आई और अगले दिन से ही बाबा के निर्देशो के मुताबिक बढ़ियॉ से बढ़ियां खाने बना कर अपनी सास को खिलाने लगी। उसने अपने व्यवहार में न चाहते हुए भी काफी बदलाव कर दिया और अपनी सास से हर बात बहुत ही प्यार से करने लगी। बाबा की बात को ध्यान में रखते हुए उसने अपने गुस्से कर पर भी पूरी तरह से काबू रखना सीख लिया। अब अपनी सास से हर समय मां जी या यूं कहें की एक महारानी की तरह व्यवहार करने लगी थी। यह सब देख सास का मन भी धीरे-धीरे बदलने लगा। उसने भी अपनी बहू को बुरा भला कहना छोड़ कर उसे अपनी बेटीयों की तरह प्यार करने लगी। अब अगर थोड़ी देर के लिये भी उसे अपनी ब हूँ नजर नही आती तो वो उसके लिये परेशान हो उठती।
कुछ महीनों तक यह सब कुछ इसी तरह से चलता रहा। इस दौरान दोनों में झगड़ा तो दूर कभी उंची आवाज में भी कोई बात नही हुई। एक दिन बंसन्ती की सास अचानक बहुत बीमार हो गई, उसे लगा कि जहर ने अपना काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन अब तक बंसती का मन बदल चुका था और वो सास से बहुत प्यार करने लगी थी, कि वो अन्दर ही अन्दर अपनी आत्मा को कोसनें लगी, कि इतनी नेक औरत के साथ मैने यह सब कुछ क्यों किया? खुद को दोष देते हुए बोली कि असल में गलती तो मेरी ही थी। इस दौरान जो कोई भी उसकी सास का बीमारी के दौरान हाल-चाल पूछने आते, तो सासू मां बसंन्ती की सच्चे मन से तारीफ करती और बार-बार एक ही बात कहती कि शायद आज अगर मेरी अपनी बेटी भी होती तो वो भी मेरी इतनी सेवा नही कर पाती, जितनी मेरी बहूं ने मेरे लिये अपनी जान लगाई हुई है।

बंसन्ती ने अपने पति वीरू को अपनी गलती तो नही बताई लेकिन अपनी सास को हर हाल में बचाने के लिये आग्रह करने लगी। वीरू भी अपनी पत्नी और मां के इस बदले हुए व्यवहार से बहुत हैरान था। इसी दौरान बंसन्ती बिना अपने पति को बताए फिर से उसी बाबा के पास जा पहुंची, और उन्हें सारा किस्सा सुना डाला। बंसन्ती ने रोते हुऐ बाबा से कहा, कि अब मैं अपनी सास से बहुत प्यार करती  हूँ, आप उन्हे किसी तरह से भी बचा लो। 

बाबा ने ढ़ढास बधाते हुऐ बंसन्ती को समझाया कि मैने कभी भी तुम्हें कोई जहर नही दिया था। मैने तो तुम्हें मन को शांत करने और शरीर को तन्दुरस्त बनाए रखने के लिये तुम्हें कुछ जड़ी-बूटीयॉ दी थी। जहर तो सिर्फ तुम दोनो के दिल और दिमाग में भरा हुआ था। सास के प्रति तुम्हारा जलन से भरा रवैया ही तुम्हारे घर-गृहस्थीे के कलेश की असली जड़ था। इन छह महीनों के दौरान तुम्हारे एक दूसरे के प्यार, सत्कार ने तुम दोनो के मन से वो सारा जहर निकाल दिया है। जैसे ही तुम्हारे व्यवहार में सास के प्रति परिवर्तन आया, तुम्हारी सास का मन भी तुम्हारे लिए प्यार से भर गया। सास के प्रति जो सेवा भावना तुमने दिखाई, उससे तुम्हारी सास को तुम्हारी जगह अपनी बेटी दिखाई देने लगी।
जौली अंकल इसीलिये तो हमेशा कहते है, कि हर घर-गृहस्थी को एक सूत्र में बांधने का काम सिर्फ सच्चा प्यार ही कर सकता है। प्यार तो एक ऐसी ताकत है, जिसे जितना बांटो वो उतना ही बढ़ता है।


एहसान सासू मां का


मजाक करने वाले खुश रहने के लिए हर किसी से हंसी ठिठोली कर लेते है। कुछ लोग तो भगवान के नाम से भी मजाक करने से नही चूकते। एक ऐसा ही मजाक कुछ दिन पहले पढ़ने को मिला कि भगवान राम को उनके पिता ने जब दुखी मन से वनवास जाने का आदेश दिया तो उस समय सीता माता भी अपना जरूरी सामान लेकर उनके साथ चल पड़ी। जब यह दोनों महल के सभी लोगो से विदाई ले रहे थे तो वहां खड़े लोगो ने सीता माता से पूछा कि आपको तो वनवास जाने का हुक्म नही मिला, फिर भी आप इनके साथ जंगल में रहने क्यों जा रही है? सीता माता ने मंद सा मुस्कराहते हुए कहा कि एक सास से तो निभाना मुश्किल होता है, यहां मैं अकेली, बिना पति के 3-3 सासू मां से कैसे निभा पाऊंगी? ऐसे में यहां महल में रहने से तो जंगल में रहना ही उचित होगा।
कहने वाले तो अक्सर कहते है कि औरत के चरित्र और आदमी के भाग्य को कोई नही समझ सकता, फिर सास तो आखिर सास होती है, उसके मन की गहराई को तो आज तक कोई इंसान तो क्या भगवान भी नही समझ पाऐं। यदि कोई गरीब अपनी बेटी को मंहगी कार, मोटरसाइकिल, धुलाई की मशीन, टी.वी. फ्रिज आदि नही दे पाता तो उस बदकिस्मत बहू को सारी उंम्र के लिए सासू मां के ताने सुनने पड़ते है। बेटा चाहे दो कोड़ी का भी न हो, लेकिन हर मां अपने बेटे के लिए उसके जन्म से ही चांद जैसी खूबसूरत बहू के सपने संजोने लगती है। सबसे सुंदर, सुशील कंन्या को दुनियां की हर मां अपनी बहू के रूप में देखना चाहती है। आजकल अधिकाश: परिवार तो ऐसी कामकाजी बहू पाना चाहते है जो घर की जिम्मेंदारी निभाने के साथ हर महीने दफतर से एक मोटी रकम का बंडल भी ला सके।
जो परिवार कामकाजी बहू नही लेते वो अक्सर उम्मीद करते है कि उनकी बहू चाहे कितनी भी पढ़ी लिखी क्यों न हो, घर के सभी सदस्यों के उठने से पहले सबकी पंसद का बढ़ियां सा नाश्ता तैयार रखे। नाश्ता निपटाते समय सभी की इच्छानुसार लंच के खाने की लिस्ट भी तैयार कर ले। शाम ढ़लते ही पति और ससुर के काम से लौटते ही गर्मा-गर्म चाय और पकोड़ो की थोड़ी सी देरी भी सासू मां का तापमान झट से बढ़ा देती है। चाय-पकोड़ो के बर्तन साफ करने के साथ ही लजीज डिनर की तैयारी करना भी ऐसी बहूओं की एक मजबूरी होती है। रोटी तरकारी बनाने मे जरा सी भूल होते ही बहू के सारे खानदान की कमियां निकालना और उसके मां-बाप को कोसने का तो सासू मां के पास जैसे जन्मसिद्व अधिकार हो। जमीन जयदाद, पति के करोबार और किसी प्रकार के आर्थिक मामलों में आज भी बहू को अपनी जुबान खोलने को कोई हक नही दिया जाता। ऐसे मसलों में बहू के बोलने का सीधा मतलब ससुराल वालो का अपमान माना जाता है।
बहू के माता पिता कितनी भी परेशानी में क्यों न हो, लेकिन यदि बहू ससुराल वालों को नजरअंदाज करके उनका पक्ष लेती है तो ऐसे में अक्सर सासूं मां के साथ दुल्हे राजा के बिगड़ने में पल भर की भी देरी नही लगती। बहू द्वारा मजाक में भी कही गई बात से भी ससुराल वालाें की शंति भंग होने का खतरा बना रहता है। बहू के मायके से हर दिन त्यौहार पर क्या-क्या और कितना कुछ आया है, इस बात पर भी सासू मां अपनी तीखे बाणो वाली टिंपणी देने का कोई मौका नही छोड़ती।
अधिकाश: ससुराल वाले आज भी बहू को एक पालतू जानवर की तरह घर के खूंटे से बंधकर रहने को ही अपनी मर्यादा समझते है। परिवार को आगे बढ़ाने के लिए ससुराल वालों की इच्छानुसार सहयोग करने के सिवाए बहू के पास कोई चारा नही होता। बहू को हर छोटी से छोटी खुशी परोसते समय सासू मां अपनी एहसान रूपी टांग उसके ऊपर रखना नही भूलती। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी उस बेचारी को हर समय यहीं सुनने को मिलता है कि तुम्हारी जैसी बहू को अपने परिवार में जगह देकर हम लोगों ने तुम्हारे सारे खानदान पर एहसान किया है।
ऐसी सासू मांओं को वैसे तो सदीयों से आज तक कोई नही समझा पाया लेकिन जौली अंकल फिर भी इतना जरूर कहना चाहते है कि हर सास को अधिकार है कि वो अपनी बहू के साथ जैसा चाहे व्यवहार करे, लेकिन एक बात पर जरूर गौर करे कि एक दिन वो भी किसी की बहू बन कर आई थी। एक पल के लिए अपने उस अतीत में झांकते ही उन्हें इस प्यारे से रिश्ते की सारी हकीकत समझ आ जायेगी। इसी के साथ उसे यह समझने में देर नही लगेगी कि कभी उसकी सास ने भी उस पर ऐसा ही एहसान किया था।

मम्मी, मैने सास पटा ली


हर लड़की का बचपन से ही एक सुनहरा ख्वाब होता है, कि एक दिन परी लोक से सोने के रथ पर सवार एक सुन्दर सा राजकुमार उसे ब्याह कर ससुराल ले जाएगा। वहां उसका अपना एक खूबसूरत सुन्दर सा घर होगा। परन्तु जीवन की हकीकत किताबों-कहानियों से बिल्कुल जुदा होती है। आज के समय में लड़कियां कितनी भी पढ़ी लिखी क्यूं न हो, ससुराल में जाकर नए लोगों के बीच रहने की सोच से ही एक अजीब सी घबराहट और डर हर लडकी के दिल में कहीं न कहीं अनजानी सी परेशानी पैदा कर देता है। यह भी कटु सत्य है कि कोई मां-बा पतो क्या राजे-महाराजे भी आज तक अपनी बेटी को सदा के लिये अपने घर नहीं रख पाये। एक न एक दिन हर मां अपने जिगर के टुकड़े को अपने हाथों से डोली में बिठा कर विदा कर देती है। ससुराल में जाकर रहना हर लड़की का एक नये जन्म की तरह होता है, फिर से उसकी किस्मत नये सिरे से लिखी जाती है। ससुराल में लड़की के मन में क्या-क्या भावनाऐं उठती है, यह तो वो ही बता सकती है। ऐसी ही एक लड़की ने अपने विचार कुछ इस तरह ब्यां किये हैं।
मम्मी, मेरी शादी से पहले जो घबराहट और डर आपको भी था, वो सच ही निकला। 22-23 साल तक अपने घर में हर तरह की आजादी से रहने के बाद एकदम नये-अनजान लोगों के बीच में आकर रहना सच में ही बहुत कठिन काम है। बार-बार बचपन से ससुराल के बारे में सुनी हुई बातें याद आ रही थीं कि अगर काम ढंग से नहीं करो, तो सास चोटी पकड़ कर ससुराल से निकाल देती है। मेरी हालत तो ऐसे हो गई, जैसे किसी ने मुझे नदी के मझदार में लाकर छोड़ दिया हो। शुरू के कुछ दिन तो रिश्तेदारों के आने जाने में और हनीमून के सैर-सपाटे में बीत गये। उसके बाद मैं अपने आपको अकेला और असहाय सा महसूस करने लगी। भगवान की कृपा से घर में सब कुछ होते हुए भी मेरा मन किसी न किसी अनजानी सी उलझन में फंसा रहता है। सुबह थोड़ी देर से उठने पर कोई कुछ बोले या नहीं, लेकिन घर वालों की खामोश आखें देख कर मुझे लगता कि मेरे से कोई बहुत बड़ी गलती हो गई है।
अब तक सभी ज्ञान और आपके द्वारा दिये गये सभी संस्कारों से कहीं कोई मदद की किरण दिखाई नहीं दे रही थी। मैंने हार मानने की बजाए आपके द्वारा दी गई सलाह को मन में रखते हुए, ससुराल के तौर तरीकों को समझना और अपने मिजाज पर काबू रखने को ही बेहतर समझा। जल्दबाजी करने की बजाए थोड़ा धैर्य और अपनी छोटी सी जुबान को काबू में रखने से मेरी बहुत सी मुश्किलें आसान हो गईं। कुछ दिन पहले आपके जमाई राजा को व्यापार के सिलसले में कुछ दिन के लिये टूर पर जाना पड़ा, उनकी गैरहाज़िरी में, मैं सारी-सारी रात आगे आने वाले समय के बारे में सोच के परेशान होती रही। पूरी रात नये घर और नये लोगों के साथ जिंदगी निभाने की उधेड़-बुन में न जाने कब निकल जाती। अगले दिन जब सुबह, सोकर उठी तो मन में एक नये आत्मविश्वास का आभास सा प्रतीत हुआ। कल तक जो परेशानी हर समय एक साये की तरह मेरे साथ जुड़ी हुई थी, आज वो एक आत्मविश्वास में बदल चुकी थी।
घर में अकेले होने की वजह से मैंने सुबह जल्दी उठना शुरू कर दिया। सुबह जल्दी उठी तो सासू मां के साथ रसोई बनाने का काम भी अच्छा लगने लगा। एक-दो दिन मैंने पूरे परिवार के साथ सासू जी को भी बढ़िया सा नाश्ता बना कर खिलाया। कुछ कमियों के बावजूद भी घर के सब सदस्याें के बीचं मेरे बनाये हुऐ खाने की चर्चा होने लगी। दिन में सासू मां के साथ उनके पसन्द के टी.वी. के प्रोग्राम भी देखने का काफी समय मिलने लगा। इसी बीच कुछ रिश्तेदारों और सासू मां की कुछ सहेलियों की सेवा करने का अवसर मिला। जिसका मैंने भरपूर फायदा उठाया। सासू जी की सहेलियों की आंखों ही आंखों में अपनी तारीफ मुझे भी समझ आने लगी थी।
एक दिन घर के कुछ काम से छोटी ननद के साथ बाजार जाना पड़ा, तो वहां से मैं अपनी सासू मां के लिये कुछ खाने-पीने के सामान के साथ एक बढ़िया सी मेकअप किट भी ले आई। मेरी इस छोटी सी चेष्टा ने मुझे पूरे परिवार के बहुत ही करीब ला दिया। पहले वाला अनजाना सा डर अब एक बीते समय की बात बन चुका था। अब सासू मां बाजार या किटी पार्टी में जाते समय मुझे साथ ले जाना कभी नहीं भूलती। अब उनके चेहरे से हर समय प्यार झलकने लगा था। मुझे पता ही नहीं लगा कि कब हमारा सास-बहू का रिश्ता एक दोस्ती में बदल गया। बल्कि सच कहूं तो अब सासू मां में मुझे आपकी झलक दिखने लगी है।
अब हम सारा परिवार जब भी इकट्ठे मिल बैठते हैं, तो पूरे घर में हंसी के ठहाके गूंजते हैं। आखिर में, मैं अपने दिल की एक सच्ची बात कहना चा हूँगी, और वो सच्चाई यह है कि अब तो आप लोगों की याद भी बहुत कम आती है। मैं भगवान से सदैव एक ही प्रार्थना करती हूं कि मुझे हर जन्म में ऐसी ही ससुराल और सास मिले। पिछले कुछ बरसों में आपके द्वारा दिये गये अच्छे गुणों एवं संस्कारों के कारण मुझे पता ही नहीं चला, कि कब मैं ससुराल वालो के रंग में रंग गई, और कब मैंने सास को पटा लिया। जौली अंकल भी तो अक्सर यही कहते है कि नंम्र होकर चलना, मधुर बोलना और बांटकर खाने से न सिर्फ हमारा परिवारिक जीवन शांतमई बन जाता हे बल्कि यह तीन गुण आदमी को ईश्वरीय पद तक पहुंचाते है।

मार्डन बहू


जब से मिश्रा जी के बेटे की एक विदेशी कम्पनी में नौकरी लगी है, तभी से उनके बेटे के लिये एक से एक बढियां रिश्तो के प्रस्ताव आ रहे थे। आखिर आए भी क्यों न? बेटे को 2 लाख रूप्ये महीने की तन्खवाह के साथ सुन्दर सा बंगला और मर्सीडिज कार जो कम्पनी से मिली है। हर मौके पर मिश्रा जी के दूर नजदीक के दोस्त और रिश्तेदार किसी न किसी बहाने से बात को घुमा-फिरा कर उनके बेटे के रिश्ते की बात पर ही आ कर रूकते थे।
एक बार जब मिश्रा जी की पत्नी ने अपने बेटे से इस बारे में पूछा कि वो किस तरह की लड़की से शादी करना पंसद करेगा। उसने हंसते हुए जवाब दिया कि मुझे तो बिल्कुल चांद जैसी बहू चहिये। मिश्रा जी की पत्नी ने कहा कि बेटा चांद में तो पहले से ही बहुत दाग है, फिर भी तुम्हें चांद जैसी बहू ही क्यों चहिये? बेटे ने मां को समझाते हुए कहा अब अगर बहू चांद जैसी होगी तो वो सिर्फ रात को आया करेगी और सुबह होते ही चली जायेगी। इससे सारा दिन सास-बहू में किसी प्रकार की खट-पट होने का कोई डर नही रहता और न ही मुझ से खर्चे के लिये पैसे मांग सकेगी। ऐसे ही हंसते खेलते पता ही नही चला कि कब मिश्रा जी के बेटे का रिश्ता पक्का हो गया और एक सुन्दर सी मार्डन बहू उनके घर आ गई। बहू के माता पिता ने बाजार से खरीदी जाने वाली हर सुख-सुविधा का सामान भी अपनी बेटी की डोली के साथ भेजा था।
करोड़पति दुल्हन के आते ही घर के सभी सदस्यों ने भारतीय पंरम्पराओं से बहू का स्वागत किया गया और सभी रिश्तेदारो से उसका परिचय भी करवाया गया। ऐसे मौके की सभी रस्में भी मिश्रा जी के परिवार ने खुशी-खुशी निभाई। इसी हंसी मजाक के महौल में दुल्हे के जीजा ने नई दुल्हन से अपने बारे में कुछ बताने को कहा। दुल्हन ने पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़े होकर सबसे पहले पूरे परिवार का बहुत अच्छे तरीके से स्वागत करने के लिये धन्यवाद किया। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा कि आप सभी सोच रहे होगे कि मेरे आने से आपके जीवन और घर में न जाने क्या-क्या बदलाव आ जायेगे?
आप सभी को किसी प्रकार की फिक्र करने की जरूरत नही है। क्योंकि मैं ऐसा कुछ भी नही करूगी जिससे आपको अपने व्यवहार और नित्यकर्म में किसी तरह का बदलाव करना पड़े या आपको कोर्इे भी दिक्कत आऐ। यह मैं सिर्फ अभी दिखावे के लिये ही नही बल्कि आने वाले बरसो या यूं कहिये कि हमेशा के लिये वादा करती  हूँ। यह सब कुछ सुन कर सास-ससुर से लेकर घर के सभी सदस्य मन ही मन खुश हो रहे थे कि इतने बड़े घराने से ताल्लुक होने के बावजूद भी इसमें किसी प्रकार का कोई घंमड नही है।
सास ने चेहरे पर लंम्बी सी मुस्कराहट बिखरते हुए कहा, बेटी तुम ऐसा क्यों सोच रही हो। हम सभी तुम्हारे साथ है, तुम जैसा चाहोगी सभी वैसा ही करेगे। बहू ने कहा सासू जी आप शायद मेरी बात को ठीक से नही समझी। मेरा कहने का मतलब यह था कि घर के सदस्य अभी जो कुछ घर का काम कर रहे है, वो सभी उसी प्रकार अपना-अपना काम करते रहेगे। जैसा कि मुझे बताया गया है, कि रसोई की सारी जिम्मेंदारी सासू जी संभलती है, घर की साफ-सफाई और कपड़ो की धुलाई का जिम्मा बड़ी भाभी का है। बाजार से हर प्रकार का सामान लाने की डयूटी ससुर जी बहुत सालो से अच्छे तरीके से निभा रहे है। बर्तन और गाड़ीयों को साफ-सुथरा रखने के लिये घर में एक नौकर मौजूद है।
अब तक सासू मां का पारा सांतवे आसमान पर पहुंच चुका था। सभी मर्यादयों को तोड़ते हुए उसने कहा कि तुमने हम सभी के काम तो हमें याद करवा दिये, अब जरा यह भी बता दो कि हमारी दुल्हन महारानी इस घर में क्या-क्या करेगी? दुल्हन ने हल्की सी मुस्कराहट चेहरे पर लाते हुए कहा कि आपके बेटे के चित को प्रसन्न रखने और उसको खुश रखने की सारी जिम्मेंदारी में अकेले ही निभाऊगी। ऐसी मार्डन लड़कीयो को जौली अंकल एक छोटा सा संदेश देना चाहते है कि अपने से बड़ो को खुशी देने के लिए केवल कीमती सामान नहीं थोड़ा से सम्मान की जरूरत होती है।