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शनिवार, 13 मार्च 2010

चन्ना वे घर आ जा वे


सड़क पर चलते समय कुछ सज्जन पुरष आसपास वाहनों पर बैठी सुन्दर औरतो को इतने प्यार से निहारते है कि जैसे वो न जाने किसी दूसरे लोक से आई हुई कोई परी हो। सुन्दर सपनो में खोये हुए ऐसे लोगो को कई बार ट्रैफिक पुलिस वालो को यहां तक कहना पड़ता है कि यह बत्ती अब और अधिक हरी नही होगी। आप जिसे निहार रहे थे, वो तो शायद अब तक अपने घर भी पहुंच गई होगी। अब आप भी चलने का कष्ट करे क्योंकि तुम्हारे पीछे वाहनों की लंम्बी कतार लग गई है। अक्सर आपने देखा होगा कि परिवारिक परेशानी या किसी मानसिक दबाव के कारण लोग यह भी भूल जाते है कि वो अपने घर में नही सड़क के बीच लाल बत्ती पर खड़े है। चंद मिनटों की लाल बती पर भी वो गहरी सोच में डूब जाते है।
मुसद्दी लाल जी भी कुछ दिन पहले एक ऐसी ही लाल बत्ती पर रूक कर सगीत का आंन्नद ले रहे थे। कार के रेडियो पर पंकज उदास की बहुत ही महशूर गजल ''चिट्ठी आई है, आई है, वतन से चिट्ठी आई है बज रहा था''। जैसे-जैसे पंकज उदास की यह दर्द भरी गजल आगे बढ़ रही थी उसी के साथ मुसद्दी लाल जी कनाड़ा में बसे अपने बेटे की याद में खोते चले जा रहे थे। पंकज उदास की दर्द भरी आवाज और गजल के दिल को छू देने वाले अलफाज के जादू ने उनकी आंखो में आसूंओ की झड़ी सी लगा दी। उन्हें खबर ही नही हुई की कब और कितनी बार चौराहे की बत्ती ने अपना रंग बदल लिया था। पीछे खड़े अन्य वाहनों में बैठे लोग गुस्से से तिलमिला रहे थे। हर कोई जोर-जोर से हार्न बजा रहा था। मुसद्दी लाल जी दुनियां से बेखबर आखों से जार-जार आंसू बहाते हुए अपने बेटे की मीठी यादो के समुंद्र में गोते लगा रहे थे।
जब चारो और बहुत शोर मचने लगा तो एक पुलिस अफसर ने आकर मुसद्दी लाल को जोर से डांटा तो वो घबराहट में लाल सिग्नल को तोड़ते हुऐ अपनी गाड़ी को सड़क के बीच ले आये। पुलिस अफसर का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था। अपनी आदतनुसार कुछ पुलसिया भाषा बोलते हुए पुलिस अफसर ने अपनी चालान की कापी निकालते हुए मुसद्दी लाल को गाड़ी एक तरफ करने को कहा। इससे पहले की मुसद्दी लाल अपनी कोई सफाई देते पुलिस अफसर ने कहा कि क्या घर पर बीवी से झगड़ा करके या कोई नशा वगैरहा करके निकले हो? क्या सारे शहर की सड़को का टैक्स तुम अकेले ही जमा करवाते हो? सड़क के बीच इस तरह से गाड़ी खड़ी कर के बैठने का क्या मतलब है?
मुसद्दी लाल ने अपने जज्बात पर काबू रखते हुऐ अपनी आखें और चश्मा साफ किया। अपनी गलती की माफी मांगते हुए उस टै्रफ्रिक अफसर से कहा कि मुझे इस तरह सड़क पर लापरवाही नही करनी चहिये थी। मेरे से बहुत बड़ी भूल हुई है आप अपनी डयूटी पूरी करे और मेरी इस बेवकूफी के लिये मेरा चालान बना दे। उस टै्रफ्रिक अफसर ने कोई भी कार्यवाही करने से पहले मुसद्दी लाल के दुखी और भारी मन को टटोलते हुए उसकी परेशानी का कारण जानना चाहा।
मुसद्दी लाल ने अपनी नम: आखो से कहा कि आज अचानक बेटे की जुदाई में डूबी पंकज साहब की यह दर्द भरी गजल सुनते-सुनते लंबे अरसे से परदेस में बसे बेटे की याद में मन भर आया। अब उस पुलिस अफसर ने कहा की लोग पुलिस वालो के बारे में न जाने क्या-क्या सोचते है? आखिर हम भी आप लोगो की तरह इंसान है और हमारे सीने में भी दिल धकड़ता है। आपकी तरह हमारा भी घर परिवार और बच्चे है। हमारे मन में भी बच्चो के प्रति बेहद लगाव और उनकी जुदाई में हमारा दिल भी तुम्हारी तरह ही रोता है। बच्चो की एक झलक पाने के लिए हमारे दिल में भी ममता भरी तड़प उठती है।
टै्रफ्रिक अफसर ने मुसद्दी लाल के लिये नजदीक की दुकान से पानी का एक गिलास मंगवाया और बहुत ही नर्मी और इज्जत से बोला की तुम बहुत नसीब वाले हो कि तुम्हारा बेटा परदेस में बसा हुआ है। वो आज नही तो कल जरूर तुम्हारे पास आ जायेगा। मैं तो बहुत बदनसीब बाप  हूँ, मेरा जवान बेटा कुछ साल पहले डालर कमाने की चाह में किसी ऐजेंट के झांसे में आकर विदेश गया था। उस दिन से आज तक उस के बारे में कोई खबर नही मिली कि वो कहां है और किस हाल में है?
मेरे बेटे ने तो पूरे परिवार की आखों में सदा के लिए दर्द के आसूं भर दिये है। मेरी पत्नी भी हिंदी का वो गाना ''चन्ना वे घर आ जा वे, डोला वे घर आ जा वे'' सुनते ही पागलों की तरह रोने और बिलखने लगती है। जब कभी भी यह गाना बजता है, सारे परिवार के लिए उसको संभलाना मुशकिल हो जाता है। बच्चो के बिना सच में घरों के साथ मां-बाप के दिल भी खाली हो जाते है। निगाहें हर समय दरवाजे पर टकटकी बाधें हर आहट पर अपने बिछड़े बेटे की एक झलक पाने को तड़पती है।
मैं तुम्हारे बेटे की जुदाई का दर्द अच्छी तरह से समझ सकता  हूँ। पुलिस अफसर होने के बावजूद मैं यह जानता  हूँ कि बच्चे तो घर का वो सुंदर दीपक होते है जिसकी निकटता मात्र से ही सारा घर रोशन हो जाता है और घर में चारो और खुशीयां ही खुशीयां महकने लगती है। मां-बाप की नजरों में तो बच्चे एक नाजुक फूल की तरह होते है और उनका प्यार शहद से भी अधिक मीठा होता है। जौली अंकल ठीक ही कहते है कि आदमी खुद तो हर किस्म का दुख दर्द सहन कर सकता है, लेकिन बच्चो की असहनीय जुदाई भगवान कभी किसी को न दे। अब तो मेरी कलम से और शब्द निकलने की बजाए यही आवाज आ रही है कि चन्ना वे घर आ जा वे। 

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