एक कहावत के अनुसार हर आदमी को एक बीवी की जरूरत होती है, क्योकि आप अपने आसपास की सभी कमियों के लिये सरकार को तो हर समय दोषी करार नही दे सकते। इसका सीधा-सीधा अर्थ तो यही निकलता है कि घर परिवार में होने वाली हर समस्यां के लिये पत्नी को ही जिम्मेंदार माना जायें। इस पहेली को बड़े-बड़े ज्ञानी और विद्ववान लोग भी नही सुलझा पायें कि जिन लोगो की शादी भगवान की कृपा से ठीक-ठाक हो जाती है वो तो किसी न किसी परिवारिक कारणों के मद्देनजर हर समय दुखी दिखाई देते है, परन्तु वो लोग भी परेशान रहते है जिन की शादी नही हो पाती। यदि विवाह से जुड़े आंकड़ो पर गौर किया जाये ंतो सबसे अधिक दुखी वह लोग है जो खुद अपनी मर्जी से प्रेम विवाह करते है।
कुछ समय पहले तक मां-बाप जहां कहीं भी बच्चो का रिश्ता तय कर देते थे, परिवार के सभी लोग खुशी-खुशी उसे स्वीकार करते हुए मिलजुल कर अपना सारा जीवन हंसते खेलते गुजार देते थे। आज शादी के लिये लड़के-लड़की को देखने से लेकर विवाह-शादी की हर रस्म को ज्ञानी लोगो की निपुण अगुवाई और शुभ मुर्हत में ही निभाया जाता है, फिर भी न जानें ऐसे हालात क्यूं बनते जा रहे है कि जन्मों-जन्मों तक पति-पत्नी का रिश्ता निभाने की कसमें खाने वालें अब इस रिश्ते को बड़ी कठिनाई से चंद महीनो या मुशकिल से कुछ सालों तक ही निभा पाते है। इससे तो यही लगने लगा है कि रिश्तों में संवेदना नाम की कोई चीज बची ही नही है।
न जानें जमाने की हवा को क्या हो गया है कि हर कोई छोटी से छोटी बात को आत्मसम्मान की आड़ में एक बड़ा मुद्दा बना कर एक दूसरे के ऊपर इतने घटियां इल्जाम लगाते है कि पति-पत्नी के साथ उनके पूरे परिवार वाले उस कीचड़ की लपेट में आ जाते है। हैरानगी की बात तो यह है कि जो लोग जितना अधिक पढ़े लिखे है, उन लोगो में तलाक के मामले उतने ही अधिक और वजह उतनी ही छोटी होती है। यह जान कर उस समय और भी हैरानगी होती है जब यह मालूम पड़ता है कि पति-पत्नी को एक दूसरे से सिर्फ इस वजह से तलाक चहिये क्योंकि दोनों में से कोई एक अधिक किसी न किसी नशे का सेवन करता है। शाकाहारी और मासाहारी भोजन को भी लेकर कई बार रिश्तों में दरार देखने को मिलती है। बदजुबानी करने में तो आज हर कोई अपने को नहले पर दहला समझने लगा है।
रिश्तों की गहराईयों को नकारते हुए कई पति केवल इस लिये हीन भावना का शिकार हो जाते है कि समाज में उनकी पत्नी का रूतबा उनसे अधिक है। लड़कियों की अधिक पढ़ाई-लिखाई और उनकी, अच्छी कमाई को कई पति बर्दाशत नही कर पाते। कामकाजी महिलायों को घर और बच्चो की देखभाल करने में शर्म महसूस होने लगी है। समाज में बढ़ता खुल्लापन, जिम्मेदारीयों से मुंह चुराना और लड़कियों के पहनावे को लेकर भी अनेको मामले तलाक के लिये अदालत तक पहुंच रहे है। वकील लोग अपनी मोटी कमाई के लालच में इस तरह के सभी मामलों में आग में घी डालने का काम करते है।
जब कभी ऐसा महसूस होने लगे कि संबंध सही दिशा में नही जा रहे तो तलाक की बात जरूर दोनों को राहत दे सकती है। लेकिन विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को तोड़ना हमेशा आसान काम नही होता, लेकिन खुद को माडर्न समझने वाली आज की पीढ़ी इस अहम रिश्ते को एक पल में फोन द्वारा छोटा सा एस,एम,एस, भेज कर सदा के लिये खत्म करने से भी हिचकती। हम समझें या न समझें समय हर किसी को एक बार जरूर बदलने का अवसर सदा देता है, जो लोग ऐसा नही करते समय उनको बदल देता है।
छोटी-छोटी बातों को यदि वैवाहिक जीवन में अधिक तूल न दिया जाये ंतो बहुत से बच्चो का भविष्य अधर में लटकने के साथ दो परिवार भी टूटने से बच सकते है। सदैव अपनी खुशीयों को प्राथमिकता न देते हुए दूसरों को थोड़ी सी खुशी देना भी एक सर्वोत्तम दान है, इसलिए मधुर संबध बनाने के लिये सदा प्रेमयुक्त, मधुर व सत्य वचन बोलें। भगवान न करे कि यदि जीवन के किसी मोड़ पर ऐसे हालात बन ही जाये ंतो भी तलाक लेने से पहले कुछ भी ऐसी बदजुबानी न करे जिससे की दूसरे शक्स को ठेस पहुंचे। तलाक जैसे खतरनाक अक्षर को अमली जामा पहनाने से पहले एक बार किसी ऐसे व्यक्ति की मदद जरूर ले जो बातचीत के जरिये दोनों के दिल से मन-मुटाव को खत्म कर सकें।
पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार से निभाने के लिये खुद को शक्तिशाली बनाने की बजाए थोड़ा विनम्र होना भी जरूरी है। यदि हम अपने माता-पिता को दिल से सम्मान देते है तो सास ससुर भी माता-पिता की तरह ही धरती पर विधाता का ही रूप है। युवा पीढ़ी यदि इस बारे में भी गौर करे कि हमें ये लेना है वह लेना है ऐसा सोचने के साथ हमें क्या देना है इस पर भी विचार करे तो बहुत सी परेशानीयां खत्म हो सकती है। जौली अंकल इस प्रकार की उलझन में फंसे सभी लोगो को दुआ देते हुए इतना ही कहते है यदि तलाक जैसे नापाक शब्द से बचना है तो सदा मीठा बोलने की आदत डालो क्योंकि मीठा बोलने में एक कोड़ी भी खर्च नहीं होती।
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