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शनिवार, 13 मार्च 2010

दीवाना पागल

ज्ञानी और महापुरष सदैव ही ज्ञान की बरखा करते हुए समाज को समझाते रहे है कि अच्छे लोगो की कभी भीड़ इक्ट्ठी नही होती और कभी किसी भीड़ में अच्छे लोग नही होते। इसीलिये जब कभी किसी ने सर्वप्रथम जनहित की कोई बात कहने की कोशिश की तो जमाने ने उसे कभी दीवाना और कभी पागल करार दिया है। हमें यह बात कभी नही भूलनी चहिये कि किसी भी देश और जमाने के दर्द को जब भी किसी हस्ती ने ब्यां करने की हिम्मत की है जो उस समय के लोगो ने उसे दीवाना या पागल ही समझा है। इतिहास के पन्ने इस बात के गवाह है कि आम आदमी ने भक्त कबीर और मीरा जैसी महान हस्तीयों को भी इन अल्फाजों से नवाजा था। ऐसे लोगो की आखों में जब-जब आंसू आये तो कुछ पारखी नजर वालों ने तो उन्हें मोती समझ कर जाना परन्तु अधिकांश भीड़ के लिये वो साधारण पानी से अधिक कुछ न था।
ज्ञानी और विध्दान लोगो की बात को माने तो सारे कानून साधारण लोगो के लिए ही होते है। जिस तरह मकड़ी के जाल में छोटे-मोटे कीड़े पतगें तो फंस जाते है, लेकिन कभी किसी बड़े जानवर पर उस का कोई असर नही होता। ठीक उसी प्रकार हमारे देश का कानून आम आदमी को तो हर छोटे से छोटे अपराध के लिए सजा देता है, परन्तु मगरमच्छ जैसे बड़े नेता और अपराधी कितनी भी तबाई या तोड़-फोड़ क्यूं न कर ले, बसे और रेल गाड़ीयॉ जला दे, दुकानो में लूट-पाट कर ले उनके ऊपर हमारी सरकार की और से कोई मुकद्दमा नही बनता। अगर कभी कोई केस दर्ज हो भी जाऐ तो अगली सुबह होने से पहले ही उन्हे जमानत मिल जाती है। फिर उनके घर वापिस आने पर दुनियॉ भर के पटाखे छोड़े जाते है और मिठाईयॉ बांटी जाती है। एक शरीफ आदमी सारी उंम्र लाखो रूप्ये खर्च करके भी इतनी वाह-वाही नही लूट सकता, जितनी ऐसे नेता एक ही रात में बटोर लेते है। मीडियॉ वाले भी यह सब कुछ इस तरह से दिखाते है कि जैसे हमारे नेता किसी जेल से नही चंद्रमा को फतेह कर के आ रहे हो।
आज देश के हर कोने में बदमाशों के हौसले इतने बुंलद हो चुके कि उनके मन से पुलिस की वर्दी का खौफ खत्म सा हो गया है। हालत यह है कि बदमाशों द्वारा किसी भी जगह लड़कियो की इज्जत से खेलना और गोली चला देना आम बात है। जिसके चलते लोगो में डर बढ़ता ही जा रहा है। सरकारी मशीनरी जर्जर होती जा रही है। देश में हर प्रकार के बढ़ते जुर्म, भ्रष्टाचार यहां तक की खाने में मिलावट, नकली दवाऐं बनाने जैसे घिनोना काम करने वालों को पकड़ने के लिये न तो आधुनिक उपकरण है और न ही कर्मचारी। इसी के चलते हर तरफ हालात बेकाबू होते जा रहे है। अधिकांश: मामलों में राजनीतिक या पैसे के दबाव के चलते पुलिस मामलों को रफा-दफा करने का प्रयास करती है। देश में हर तरफ काला बाजारी बढ़ रही है, फिर भी न जाने हमारे नेताओ को न जाने यह सब कुछ दिखाई क्यूं नही देता?
ऐसा लगता है कि आज की राजनीति का एक मात्र सिंध्दान्त है मुनाफा वसूली। बड़े-बड़े नेताओ की सोच को तो जैसे जंग लग चुका है। कभी बाबरी मस्जिद गिरा कर, कभी राम मंदिर के मुद्दे को भड़का कर या ऐसी ही अन्य कोई न कोई नौंटकी दिखा कर अच्छे बड़े पद पर आसीन हो ही जाते है। ऐसे लोगो को अब बाहर का रास्ता दिखाना ही बेहतर होगा। जनता को अब यह फैसला लेना ही होगा कि हमारे नेताओं की चाहे कुछ भी हैसियत हो, उनके द्वारा किये गये हर गलत काम की सजा उन्हें मिलनी ही चहिये। अनुशासन सबके लिए एक समान होता है और एक समान गलती की एक समान सजा भी होनी चहिये।
हमें कहते हुए संकोच होता है कि भारत दुनियॉ का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन यहां की सरकारे आम जनता को किसी भी प्रकार की सुरक्षा देने में असमर्थ है। हमारे यहां जब भी चुनाव आते है तो जाति, बिरादरी, धर्म, क्षेत्रवाद के सदियो पुराने मुद्दे सिर उठाने लगते है। आज हमारा देश जातीय, सांम्प्रदयिक, भाषाई के हिस्सो में बंटता जा रहा है। हमें अपने आप का भारतीय कहने में शर्म आती है, दूसरी और हम गर्व से कहते है कि हम हिन्दू है, ईसाई है, मुसलमान है, मराठी है, बिहारी है या पंजाबी है।
यद्यपि हम समय को परिवर्तित नही कर सकते, किन्तु इतना तो महसूस अवश्य कर सकते है कि परिवर्तन का समय अब आ चुका हैं। यदि हम सभी स्वयं एक समस्या बनने की बजाय दूसरों की समस्याऐं हल करने में सहायक बनने का प्रयत्न करे तो बहुत ही समस्याओं का हल खुद-ब-खुद निकल आयेगा। यह भी सच है कि हर अच्छे काम की शुरआत में विरोधों को झेलना पड़ता है। यदि आप चाहते है कि आपके बच्चे समाजिक, नैतिक जिम्मेंदारी को ठीक से समझें और उनके पांव जमीन पर ही रहें, तो अभी से उनके कंधों पर समाजिक जिम्मेंदारी डालनी होगी। एक बार हर देशवासी अगर अपनी इस जिम्मेदारी को समझने की कोशिश करे तो सारी मानवता जगमगा उठेगी। जौली अंकल की इच्छा तो यही है कि भीड़ में खोने की बजाए भीड़ से अलग रहने की चाहत इंसान को एक अलग व्यक्तित्व प्रदान करती है, फिर चाहे जमाना हमें दीवाना पागल ही क्यूं न कहें

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