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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

बेटियां तो हैं अनमोल



गप्पू को स्कूल से रोता आते देख उसकी मम्मी के हाथ पांव फूल गये। पूछने पर उसने बताया कि आज टीचर ने उसकी पिटाई की थी। गप्पू की मम्मी और अन्य घर वालों ने बिना सोचे समझे स्कूल और टीचर को खूब भला-बुरा कह डाला। कुछ देर बाद जब गप्पू से स्कूल में हुई उसकी पिटाई का कारण पूछा तो गप्पू ने कहा कि मैने आज अपनी टीचर को मुर्गी कहा था। गप्पू की मम्मी ने हंसते हुए कहा कि उसने टीचर को ऐसा क्यूं कहा, तो गप्पू ने अकड़ते हुए कहा क्योंकि टीचर ने उसे क्लास टेस्ट में अंडा दिया था, बस इसीलिये मैने उसे मुर्गी कह दिया। गप्पू की इतनी बड़ी बेवकूफी पर भी घर के सभी लोग ऐसे हंस रहे थे, जैसे गप्पू ने कोई बहुत ही बहादुरी का काम किया हो। बेशक भगवान ने बेटे और बेटियों को एक जैसा ही बनाया है, लेकिन जहां लड़को की हर छोटी बड़ी शरारत को अनदेखा किया जाता है, वही लड़कियों की छोटी सी गलती करने पर भी सारे घर में बवाल खड़ा हो जाता है।
यह सच है कि आज भी जिस किसी के घर में बेटे का जन्म होता है उस घर के लोग यह खबर सुनते ही खुशी से उछलने लगते है। पल भर में सारे घर में त्योहार का महौल बन जाता है। परन्तु गलती से यदि बेटी के जन्म की खबर आ जायें तो घरवालों पर तो जैसे बिजली ही गिर पड़ती है, पूरे घर में मातम सा छा जाता है। ऐसा शायद इसलिये भी होता है कि मां-बाप को सारी उंम्र दहेज में कुछ न कुछ देने का डर एक शूल की तरह चुभता रहता है। कहने को हम बेटियों को घर की लक्ष्मी मानते है और घर के सभी शुभ काम उनसे ही करवाते है। फिर भी हमारी सोच में इतना बड़ा फर्क की बेटी के जन्म लेते ही घरवाले करीबी रिश्तेदारों को मुंह लटका कर बेटी के आगमन की सूचना देते है। न जानें ऐसे सभी लोग यह क्यूं भूल जाते है कि उनकी मां भी किसी न किसी की बेटी है, जिसने उन्हें जन्म दिया है। उनकी बीवी भी किसी मां-बाप की लाड़ली रही होगी जो अपने घर संसार को छोड़ कर आपके परिवार को स्वर्ग बनाने के लिये तुम्हारे घर आई है।
बेटीयों के प्रति जागरूकता के बारे में हमारे सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें, लेकिन इस बात से कोई इंकार नही कर सकता कि देश के अधिकाश: भाग में बुलदिंयो को छूने वाली लड़कियों को आज भी हीन भावना से देखा जाता है। हैरानगी की बात तो यह है कि इतनी पढ़ाई-लिखाई के बावजूद भी समाज की यही सोच है कि वंश केवल उनका बेटा ही चला सकता है। उन्हें यही प्रतीत होता है कि जब हम बूढ़े हो जायेगे तो सारे घर-परिवार की जिम्मेंदारी, जमीन-जयदाद को हमारा बेटा ही संभाल सकता है। बेटी तो पराई अमानत है, आज नही तो कल हमें छोड़ कर अपने ससुराल चली जायेगी। बेटी की किस्मत भी भगवान ने न जानें क्या सोच कर लिखी है कि ससुराल में जाते ही उस पर बैगानी होने की छाप लग जाती है। इतिहास साक्षी है कि एक धोबी के कहने पर भगवान राम ने सीता माता को छोड़ दिया, पांड़व जुए के खेल में दोप्रदी को हार गये। इसमें कोई दो राय नही हो सकती कि इतने सारे कष्ट केवल एक बेटी ही सहन कर सकती है। इन सभी बातो के बावजूद भी हमारे समाज के एक बड़े वर्ग में आज भी बहू पर भ्रृण हत्या करने और बेटा पैदा करने का दवाब बनाया जाता है। फिर चाहें वो उनका बेटा बुढ़ापे में उन्हें धक्के देकर घर से निकाल दे।
समाचार पत्रों में आये दिन बेटो द्वारा अपने मां-बाप के साथ होने वाले अपराध की खबरो को जान कर भी हम अपनी हर समस्यां का समाधान अपने बेटो में ही ढूंढते है। जबकि बेटियां पराया धन होने के बावजूद भी जीवन की तपती धूप में भी मां-बाप के लिये ठंड़ी छांव की तरह ही उनके सुख-दुख में साथ निभाती है। हमारे गृहस्थ जीवन में कितना ही तनाव क्यूं न हो परन्तु हमें हर फिक्र से दूर रखते हुए एक मजबूत ढ़ाल बन कर हर परेशानी को अपनी मधुर मुस्कान और शांत व्यवहार से झेल लेती है। कुछ लोगो का यह मानना है कि बेटा तो घर का चिराग होता है। ऐसे लोगो की मानसिकता पर उस समय तरस आता है जब उन्हें यह समझाना पड़ता है कि बेटा तो केवल एक ही घर का चिराग होता है, जबकि बेटियां तो दो घरों को रोशन करती है। भगवान भी बेटियों का तोहफा उन्हीं को देता है जिन के ऊपर उसकी असीम कृपा होती है।
उस समय तो बहुत ही दुख होता है जब शिक्षा के अभाव और अज्ञानता के चलते हम बेटियों को जन्म से ही एक बोझ मानने लगते है। जिस दिन माता-पिता बेटियों को अपने सिर का बोझ न समझ कर उन्हें अच्छी शिक्षा के साथ आत्मनिर्भर बनाने की सोच लेगे उसी दिन से नारी जाति का उत्पीड़न खत्म हो जायेगा। समाज के हर वर्ग में पुरष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने वाली बेटियां फिर न तो दहेज के लिये जलेगी और न ही उन्हें किसी अन्य अत्याचार को सहन करना पड़ेगा। धार्मिक ग्रंन्धो के पन्नों से यदि हम धूल को हटाने का प्रयास करे तो हर अमीर-गरीब को एक बात अच्छी तरह से समझ आ जायेगी कि जिस घर में नारी की पूजा होती है देवता भी वही निवास करते हैं। बेटियों के बारे में इतना सब कुछ जानने के बाद मानवता की यही मांग है कि हम सभी अपनी आवाज को बुंलद करते हुए बेटियों को भी बेटो की तरह ही भरपूर प्यार दे। परिवार के प्रति बेटियों की निष्टा को देखे तो यही मन करता है कि अपने हिस्से की सभी खुशीयां और सुख इन पर कुर्बान कर दिये जाये ंतो भी कम है।
अब आप जौली अंकल को कुछ भी कहो लेकिन मैं एक बात आपसे जरूर कहना चाहूंगा कि मुंह पर खरी-खरी कह देने वाला बैरी नही मित्र कहलाता है। एक अच्छा मित्र होने के नाते मुझे सबसे खरी बात तो यही कहनी है कि वो लोग किसी जल्लाद से कम नही जो बेटियों को खत्म कर रहे है, क्योंकि खुद कांटो पर चल कर दूसरों का भला करने वाली बेटियां तो सच्चे मोतीयों की तरह अनमोल है। 

1 टिप्पणी:

Heena Insan ने कहा…

बेटो से वंश चलने की बात कहने वाले समाज में नयी सोच जागृत करने के उद्देश्य से डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सा ने बेटियों से वंश चलाने की एक नयी मुहीम का आगाज किया है और इस रीत को ''कुल का क्राउन'' का नाम दिया है ।

http://dailymajlis.blogspot.in/2013/01/kulkacrown.html