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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

अंग दान - महादान

भगवान की लीला भी निराली और अपरमपार है। जो परिवार ठीक से बच्चो को पाल नही सकते उन्हे तो वो ढेरो बच्चे दे देता है और कुछ माता-पिता बेशुमार दौलत के मालिक होने के बावजूद भी एक मासूम बच्चे की किलकारी सुनने के लिए सारी उंम्र तरसते रहते है। इनसे भी अधिक बदनसीब वो लोग होते है, जिन की केवल एक ही संन्तान होती है और मौत के करूर पंजे उसे भी समय से पहले ही उनसे छीन लेते है। इसके बावजूद भी कोई भगवान से यह नही कह पाता कि वो ऐसा क्यों कर रहे हो? क्या कोई आज तक भगवान को समझा सका है कि तू ऐसे नही ऐसे कर? हमसे कोई भी इतना ताकतवर नही है कि हम उसके ध्दारा रचे हुए इस खेल में किसी प्रकार की आनाकानी कर सके।
ऐसी ही एक दुखयारी मां के 14 साल की नाजुक उंम्र के फूल जैसे कोमल बेटे का कैंन्सर के इलाज दौरान अस्पताल में आप्ररेशन चल रहा था। बार-बार उस लाचार मां की आखें आप्रेशन थियेटर के दरवाजे की और उठ रही थी कि किस पल डाक्टर आकर कहेगा कि सब कुछ ठीक ठाक हो गया है। वो उस घड़ी के लिये बेकरार थी जब अपने बेटे की एक झलक देख पायेगी। इसी उधेड़-बुन में खोई मां को पता ही नही चला कि किस समय डाक्टर साहब उसके पास आये और माफी मांगते हुए बड़े ही अफसोस के साथ बोले कि हमारी सारी कोशिशे बेकार हो गई। हम आपके बेटे को नही बचा सके। एक ही पल में मां की आंखो के आगे अंधेरा छा गया, वो एक पथ्थर की तरह फटी नजरों से डाक्टर के चेहरे को देखे जा रही थी। डाक्टर ने उस मां को होश में लाने के बाद कहा कि आप अंतिम बार अपने बेटे को देख लो फिर हमें उसके शरीर से महत्वपूर्ण अंगो को जरूरतमंदो को दान करने के लिए मैडीकल कालेज लेकर जाना है।
यह सुनते ही उस मां का कलेजा फट गया उसके मुख से अनगिनत चीखे निकल गई, उसने कहा कि आप मेरे फूल जैसे बच्चे के साथ ऐसा अन्याय कैसे कर सकते हो? शिष्टाचार की परवाह किया बिना उसने डाक्टर से कहा कि आपन डॉक्टर नही एक जल्लाद है। डाक्टर ने उन्हे हौसला देते हुए कहा कि मैं आपके इस असाहय दुख-दुर्द और परेशानी को समझता  हूँ। लेकिन आपके बेटे ने आपरेशन से पहले अपनी अंतिम इच्छा जाहिर की थी कि अगर किसी कारण उसे बचाया न जा सके तो उसके सभी जरूरी अंग जरूरतमंदो का जीवन बचाने में काम आ सके तो उसे बहुत सुकून मिलेगा। उसने यह भी कहा था, कि उसने यह सब कुछ लिख कर अपने बिस्तर के ऊपर रखे तकिए के साथ रख दिया है।
कुछ ही पल के बाद अस्पताल के कर्मचारी उस बच्चे की लाश को एक ऐम्बूलैंन्स में लेकर चले गये। मां रोते बिलखते हुए अपने बेटे की आखिरी चिट्ठी पढ़ रही थी। दुनियां की सबसे अच्छी और प्यारी मां मैं तुम्हें बहुत प्यार करता  हूँ और यह भी जानता  हूँ कि तुम मेरे बिना आसानी से नही जी पाओगी। अब अगर मुझे कुछ हो जाता है, तो तुम किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लेना, इससे किसी अनाथ बच्चे को मां और तुम्हे मेरे जैसा सुन्दर और लाडला बेटा मिल जायेगा। मेरी पुस्तके, कपड़े और खेलने का सारा सामान भी उसको दे देना। इससे वो सभी चीजे बेकार होने से बच जायेगी और एक अनाथ को ढ़ेरो खुशीयां नसीब हो जायेगी।
जैसा कि मैने टी.वी. में कई बार देखा था कि बहुत से ऐसे बर्जुग और जरूरतमंद मरीज है जो किसी न किसी अंग की कमी के कारण जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे है। जहां तक मैं समझ पाया  हूँ कि एक मृत षरीर से छह लोगो को जीवन मिल सकता है। चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के जरिये उन्हें मुर्दा शरीर से ंअंग लगा कर मौत से झूझते लोगो के जीवन में फिर से आषा की किरण जगा सकते है। मां तुम्हारे दिल के दर्द को समझते हुए अपने जीते जी तो मैं यह सब कुछ तुम से नही कह सका, लेकिन मेरी आंखे, किडनी और अन्य जरूरी अंग जो अब मेरे मरने के बाद बेकार हो चुके है, उन से कुछ लोगो को नया जीवन मिल सकता है।
मेरी दो आखों से दो लोगो की दुनियॉ रौशन हो सकती है। ऐसे ही मेरे गुर्दे एवं अन्य जरूरी अंग कई अन्य किसी न किसी परिवार को खुशीयां दे पायेगे। हमारे देश में हर साल लाखों लोग मरते है, लेकिन महज कुछ सो लोग ही अपने अंग दान करते है। इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए मैने अपने शरीर के सभी जरूरी अंग दान में देने का मन बनाया था। मां मैं तुम्हारी हालत को समझ सकता  हूँ कि इन बातो को स्वीकार करना कितना कठिन है। परन्तु मुझे विश्वास है कि मेरे इस तरह जाने के बाद इन सभी लोगो के माध्यम से मुझे हमेशा अपने आस-पास ही पाओगी। यदि हम सभी लोग प्रण कर लें कि अपने प्रियजन की मृत्यु के बाद उसकी आखें व जरूरी अंग दान करेगे तो आने वाले समय में बहुत हद तक विकलांगता कम हो सकती है। हमारे धर्म में तो छोटे से दान का भी बहुत बड़ा महत्व है, मेरा यह अंग दान तो शायद महादान होने के साथ-साथ बहुत से लोगो के लिये प्रेरणा का स्त्रोत भी बन जाए।
हमारे देश के हर धर्म में दान का बहुत महत्व है। यह जानते हुए भी कि नियमित दान करने की आदत से इंसान अपने खाते में पुण्य जोड़ सकता है, हम इस और ध्यान नही देते। किसी भी प्रकार का दान देने वाले की प्रंशसा तो बहुत होती है लेकिन इसी के साथ यदि उसका आचरण अच्छा है वह और भी ज्यादा प्रंशसनीय है। जब भी किसी प्रकार का दान जरूरतमंद की जरूरत पूरी करता है तो उससे प्राप्त होने वाली संतुष्टि उसके रोम-रोम से फूटकर दान करने वाले को आशीर्वाद देती है। जौली अंकल की नम आखें अब उनकी कलम का साथ नही दे पा रही। आगे और कुछ न कहते हुए मैं उस महान और पवित्र आत्मा के इस महादान को सलाम करता  हूँ, जिसने मरने के बाद भी महादान करके आने वाली पीढ़ियो के लिए ऐसी अनोखी मिसाल कायम की है। 

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Most interesting and entertaining articles. Congrats to Jolly Uncle.