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शनिवार, 16 जनवरी 2010

आखिरी पहर

कुछ दिन पहले चुनाव अधिकारी जब मेरे पड़ोसीयों के घर मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए आये तो उन्होने घर की मालकिन से उसकी उंम्र जाननी चाही तो उसने झट से कह दिया कि 25 साल। पीछे खड़े उसके पति ने उसे डांटते हुए कहा कि इनको बिल्कुल ठीक-ठीक जानकारी देनी होती है। तुम 25-30 साल पहले भी खुद को 25 साल का कहती थी। आज भी अपने आप को 25 साल का बता रही हो। तुम क्या सारी उंम्र 25 साल की ही रहोगी?
उस औरत ने पलटवार करते हुए कहा कि मैं तुम्हारी तरह नही हूँ कि एक बार कुछ कहूं और कुछ देर बाद कुछ और। मैं तो जो भी बात एक बार कह देती  हूँ, हमेशा उसी पर कायम रहती  हूँ। पति ने कहा, मेरे से बाद में झगड़ा कर लेना पहले अधिकारीयो को अपनी उंम्र ठीक से बता दो। अब वो औरत बोली कि आप लिख दो 25 साल और कुछ महीने। अधिकारी ने कहा कि कितने महीने? परेशान पति बोला, जी आप 25 साल और 150-200 महीने लिख दो।
सिर्फ औरते ही नही आदमी भी बुढ़ापे के नाम से घबरा कर अपने बालो को रंग और चेहरे पर अनेक प्रकार की क्रीम लगा कर अपनी उंम्र को छुपाने की कोशिश करते है। कारण कोई भी हो इन्सान उंम्र के किसी भी पढ़ाव पर अपने आप को बुढ़ा मानने को तैयार नही होता। बुढ़ापे के नाम से ही लोगो को घबराहट और चिंता सताने लगती है। हालंकि आज तक चिंता करने से कभी किसी सम्सयॉ का हल नही निकला। उल्टा ंचिंता आदमी को चिता के और नजदीक ले जाती है।
हम भारतीय बहुत खुशनसीब है कि अभी तक हमारे देश में पूरे परिवार के सभी सदस्य बर्जुगो को बहुत ही इज्जत और प्यार देते है। जब कभी कोई विदेशी हमारे यहां आते है तो वो यह देख कर हैरान होते है कि हमारे यहां किस तरह से बच्चो को बर्जुगो के प्रति भरपूर प्यार, इज्जत और सम्मान करना बचपन से ही सिखाया जाता है। विदेशो की तरह उनको आश्रम में मौत का इंन्तजार करने के लिये नही छोड़ दिया जाता।
अब अगर हम हकीकत को समझने की कोशिश करे, तो पाऐेगे कि आदमी की सोच और विचारो के बदलते ही आदमी का खान-पान, रहन-सहन, यहां तक की उसकी सारी दुनियां ही बदल जाती है। विध्दवान लोग सच ही कहते है कि बुढ़ापा शरीर से नही इंसान की सोच में होता है। हर आदमी के अंन्दर एक अच्छा इंन्सान छुपा होता है, जरूरत है उसे जगा कर बाहर लाने की। जो कोई थोड़ा सा प्रयत्न करते है, उन्हें इस कार्य में सदैव सफलता मिलती है।
आप चाहे एक आम इंन्सान हो या कोई सेलिब्रिटी, आप अपनी पहचान को भुला कर जिंदगी के हर रंग में खुशी पा सकते है। यह बात भी ठीक है कि बढ़ती उंम्र के साथ शरीर में पहले जैसी ताकत नही रहती लेकिन अगर आप मन से अपने आप को जवां महसूस करते है तो आप सदा के लिए जवान रह सकते है। जिंदगी के प्रति सदा सकारात्मक दृष्टिकोण बनायें। बर्जुगो का भी परिवार और समाज की तरक्की में अहम योगदान होता है। आपके ध्दारा किया हुआ एक भी समाजिक नेक कार्य आपको बेशकीमती लाखो दुआऐ दिला देता है।
आप अपनी गली, मुहल्ले या सोसाईटी में होली, दीवाली या नये साल के मौके पर अपनी हिचकिचाहट को मिटा कर बच्चो के साथ-साथ रंगारंग कार्यक्रमों में भाग ले सकते है। इससे आपके अंदर छुपी हुई प्रतिभा को देख कर आपके प्रियजनों को दातों तले उंगुलीयॉ दबाने पर मजबूर होना पड़ेगा। आप जीवन के इस मोड़ पर भी यह साबित कर सकते है कि आपके अंदर पहले जैसा जोश अभी बाकी है। बच्चो की तरह आप सब बर्जुग मिल कर वर्ल्ड सीनियर डे आदि मना सकते है। अपने परिवार के सदस्यो से कुछ अधिक इच्छा रखने की बजाए समय-समय पर उनको मोके के अनुसार कुछ न कुछ तोहफा भेट करे। इससे सारे परिवार का भरपूर स्नेह आपको मिलने लगेगा।
छोटी-मोटे दुख एवं परेशानीयॉ जिंदगी का ही एक अंग है। बच्चो और रिश्तेदारो से अधिक अपेक्षाएं न रखें। अंत में बर्जुगो से एक ही विनती है, कि वो अपनी हर जरूरत और ख्वाहिश को पूरा करने के लिये घर वालो की मजबूरीओ को समझते हुए छोटी-छोटी बातो पर जिद्द न करे। अपनी इच्छा शक्त्ति को थोड़ा सा बढाते हुऐ आत्मविश्वास से घर में शंति के साथ रहने का प्रयत्न करे। इससे आपके जीवन के इस आखिरी पहर से आपकी सभी परेशानीयॉ छूमंतर हो जायेगी। फिर आप देखेगे कि न सिर्फ जौली अंकल बल्कि आपके घर वाले भी सुबह शाम आपको सलाम करेगे।  

वसीयत

तेजी से बदलते विज्ञान के इस दौर ने आम आदमी के जीने का रंग-ढंग ही बदल दिया है। कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, चमचमाती तेज दौड़ती कारें जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई हैं। महीनों का काम दिनों में और दिनों का काम कुछ घंटों और मिनटों में होने लगा है। आज एक सफाई कर्मचारी भी अपने मोबाइल फोन से दुनिया के किसी भी कोने में घर बैठे बात कर सकता है। हर प्रकार की सुख सुविधाओ होने के बावजूद भी हर इन्सान पहले से अधिक परेशान और दुखी रहने लगा है। हम अपने मन का चैन और शन्ति खोते जा रहे हैं। क्या हमने कभी इस बारे में विचार करने का प्रयास किया है कि आखिर ऐसा क्यूं हो रहा है?
कल तक जो जमीन-जायदाद कुछ हजारों रूपये की थी, वो आज लाखों और करोड़ाें की कीमत में पहुॅच गई हैं। जैसे-जैसे इन्सान के पास दौलत बढ़ रही है, उसकी मानसिकता या यूं कहें कि दिल छोटा होता जा रहा है। उसका धन-दौलत के प्रति लोभ बढ़ता जा रहा है। समाज कल्याण के बारे में तो सोचना तो दूर अपने मां-बाप की सेवा करने में भी परेशानी होने लगी है। बुजुर्गों को अपने ही घर में रहने के लिये कई बार कोर्ट कचहरी का सहारा लेना पड़ रहा है। आंकड़ें बताते है कि दुनिया के सबसे ताकतवर और अमीर देश अमरीका का हर दसवां नागरिक दिमागी तौर से परेशान है, जिनमें अधिकतर पागलपन की कतार पर है। ऐसा ही कुछ हाल यहां पर आत्महत्या करने वालों के ग्राफ का भी है।
हम हर अच्छे काम का श्रेय तो खुद लेना चाहते हैं और कुछ भी गलत होने पर सारा दोष भगवान के सिर मढ़ देते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि हमारा मन हर अच्छे और बुरे काम का विश्लेषण करके किसी भी गलत काम को करने से पहले हमें चेतावनी देता है। लेकिन हम निषेधात्मक मत को जल्दी स्वीकार कर लेते हैं। और अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं। आज की तेज दौड़ती जिंदगी में युवा-पीढ़ी को धर्म के बारे में बात करना समय की बरबादी लगता है। जबकि हमारे धर्मग्रन्थ हमें अनेक प्रकार के नशों से बचने, और रोगों से मुक्त अपना जीवन सुखमय तरीके से जीने की राह दिखाते हैं। हम लोग पुरखों से मिले उच्च संस्कारो को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना तो दूर खुद भी उन पर अमल करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
हम अपने बच्चोें के सुख के लिये लाखों-करोड़ो रूपये इकट्ठा करते रहते हैं, ताकि उनको आने वाले समय में किसी प्रकार का कोई कष्ट न हो। लेकिन अगर उनका जीवन सचमुच सुखी बनाना है तो उन्हें जमीन जायदाद, पैसों के साथ पारिवारिक मूल्यों की पहचान करवानी होगी। उन्हें समझाना होगा कि साफ सुथरे आचरण के साथ जीने के लिये धर्म को सदा याद रखें। अपने स्वभाव में मीठा बोलने की आदत डालें, इससे आप किसी का भी मन जीत सकते हो। अपनी आंखें और कान हमेशा खुले रखें।
जहां तक हो सके निषेधात्मक बातों की और ध्यान न देकर केवल अपने वास्तविक, निर्णायक बातों को ही जीवन में उतारें। एक सभ्य नागरिक की तरह कानून की इज्जत करे। तरक्की की चकाचौंध में लोग चरित्र निर्माण का महत्व बिलकुल भूल चुके है। सुखमय जीवन जीने के लिये जिंदगी में जो कुछ भगवान ने हमें दिया है, उससे तृप्त और संतुष्ट रहने की बहुत महत्ता है। इसके बिना आप एक दिन भी शान्ति से नहीं जी सकते। जहां तक हो सके, फालतू बातों का बोझ न उठायें।
चरित्र निर्माण से ही जीवन मे असली सुख, शान्ति और समृध्दि आ सकती है। इससे पहले कि हम सब जिदंगी की भागम-भाग में भटकते हुए अन्धेरी राहों में खो जाएं, हमें अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करते हुए, उनको धन दौलत, जमीन जायदाद के साथ-साथ अपने पुरखों से मिले हुऐ उच्च संस्कारो और परिवारिक मूल्यों की वसीयत भी उनके नाम कर देनी चाहिये। जौली अंकल तो हर किसी को यही समझाने की कोशिश करते है कि सुख-चैन और शांतमय जीवन के लिए संतोष ही सबसे बड़ी दौलत है। एक शायर ने तो यहां तक कहा है कि :
कमा लो जितना कमा सकते हो, धन दौलत हीरे मोती,
पर एक बात याद रखना, कभी किसी कफन में जेब नहीं होती।     

कुछ ना कहो

वैसे तो हर इन्सान सभी जीव-जन्तुओं की तरह अपना जीवन जीते हैं। दोनों में यदि कोई फर्क है तो वो सिर्फ इंसान की बुद्वि का। जानवर आज से हजारों साल पहले जैसे रहते थे आज भी वैसे ही रह रहे है। परन्तु इंसान समय के साथ-साथ तरक्की करता जा रहा है। शांतमयी ढंग और उच्चकोटि का जीवन जीना एक कला है। बिना सुख सुविधाओं और ऐशो आराम के पहले के लोग कैसे जीते थे? यह तो मालूम नहीं, पर वो लोग थोड़ी सी कमाई से सारे घर की जरूरतें पूरी करके, कुछ न कुछ मुश्किल समय के लिये भी बचा लेते थे। हर आदमी अपने आप को बहुत ही सन्तुष्ट महसूस करता था। आज के समय में यह कला कहां से सीखें कुछ समझ नहीं आता। क्योंकि आज की इस आपाधापी के दौर में घर के बुजुर्गों के उंम्र भर के सारे तजुर्बे फेल हो रहे हैं। किसी अध्यापक या प्रोफेसर से इस कला को जानने की कोशिश करें, तो वो कहते हैं कि हम आपको क्या सिखायेंगे आज के इस मंहगाई और पागलपन की दौड़ के दौर में हमें भी अपना घर चलाना ही एक संकट सा लगता है।
आज ऐसा क्या हो गया है, कि हर आदमी मंहगाई और आर्थिक रूप से परेशान है, एक के बाद एक कई सरकारें आर्इं पर हर बार जनता की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। हर सरकार से जनसामान्य को एक आस की किरण नजर आती है, पर कुछ लच्छेदार वादों के सिवाय जनता के हाथ कुछ नहीं लगता। कुछ अरसा पहले जहां सारे घर का खर्च एक आदमी की कमाई से चल जाता था, वहां आज घर के हर सदस्य के काम करने के बावजूद भी दो वक्त की दाल रोटी का प्रबन्ध करना एक टेड़ी खीर साबित हो रहा है।
हमारी सरकारें नई-नई योजनाएं लाकर जनता के पैसे से तजुर्बे करती रहती है। उस तजुर्बे से किसी समस्या का हल निकले या न निकले, लेकिन हमारे मंत्रियों की तिजोरियों पर लक्ष्मी मां की कृपा बढ़ती ही जाती है। आम देशवासी कभी बिजली, पानी की कमी से परेशान और कभी मंहगाई के बोझ तले मरते रहते है। हमारे देश के किसान दुनिया को रोटी देने वाले अपने परिवार के लिये दो वक्त की रोटी न जुटा पाने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। उधर, सरकार हर बार कोई न कोई सुनहरा सपना दिखाकर जनता को बेवकूफ बनाने में सफल हो जाती है। पहले 50 सालों तक सरकार ने बिजली, पानी और यातायात के सारे विभाग अपने कब्जे में रख कर उन्हें दीमक की तरह खोखला कर दिया। अब इन विभागों को कुछ निजी कम्पनियों के हाथों में सौंपा जा रहा है। अब एक-एक विभाग को एक ही कम्पनी को देने से उन लोगों की दादागिरी और बढ़ गई और मंत्रीओं के वारे न्यारे हो रहे हैं। अब जनता पहले से भी अधिक दुखी है। यहां तो यह कहावत बिल्कुल ठीक साबित होती है, कि आकाश से गिरा खजूर में अटका।
इसके वावजूद अब हमारी सरकार सारे सरकारी अस्पतालों को निजी कम्पनियों के हाथों में देने का मन बना रही है। पहले जिन अस्पतालों को सरकार ने करोड़ो रूपयों की जमीन इस शर्त पर कोड़ियों के भाव दी थी, कि वो लोग गरीबों का इलाज मुफ्त में करेंगे। जबकि सच्चाई यह है कि गरीब लोगों को इन अस्पतालों में जाने तक की इजाजत भी नहीं है। अब तक लोग बिजली से परेशान थे, अब तो सरकार जनता के जीवन को भी दांव पर लगाने जा रही है। अगर सरकार सच में जनता के हित में कुछ करना चाहती है, तो टेलीफोन कम्पनियों से सीखें, जहां कल तक दिल्ली से मुबई एक बार बात करने पर 30-40 रूपये लगते थे, आज वहीं बातचीत करने के लिये एक रूपये से कम में काम चल जाता है।
एक छोटी सी बात जो पढ़े लिखे लोगो के साथ अनपढ़ लोगों को भी समझ आती है वो हमारी सरकार के काबिल अफसरों को क्यूं नहीं समझ आती कि जब तक किसी भी क्षेत्र में एक संस्थान की दादागिरी रहेगी तब तक वो हर हाल में अपनी मनमानी करेगा ही। कोई भी व्यापारिक घराना जनता का भला करने से पहले दस बार अपने मुनाफे को अधिक से अधिक बढ़ाने की सोचता है। बार-बार सिर्फ सरकार को दोष न देकर यदि हम अपने गिरेबान में झांकने का प्रयास करे तो पायेगे कि हमें सदा वैसी ही सरकार मिलती है जिसके हम पात्र है। जब हममें सुधार आ जायेगा तो सरकार में भी अपने आप सुधार हो जायेगा।
इन विषयों पर ना जाने कितना कुछ लिखा और कहा जा चुका है, पर आम जनता की आवाज सरकार तक कब पहुंचेगी, यह तो भगवान ही जाने। यह सच है कि हर रास्ता कांटो से भरा होता है, परन्तु सरकार सच्चे मन से यदि जनहित में पहला कदम बढ़ाने की हिम्मत दिखाए तो उसे एक दिन मंजिल भी जरूर मिल जायेगी। कोई भी काम कभी भी किया जा सकता है, लेकिन सफलता पाने के लिए लक्ष्य तह करना जरूरी है। हमारी सरकार हर मसले से जुड़े कानून तो बनाती रहती है वो यह क्यूं भूल जाती है कि सबसे ऊंचा नैतिक कानून यह है कि हमेंं सदैव आम आदमी के कल्याण के लिए काम करना चहिये।
आखिर में जौली अंकल के थके हुए मन से यही आवाज निकलती है, कि कल तक सोने की चिड़ियां कहलाने वाला हमारा महान भारत देश आज दुनियां के भ्रष्ट देशो की सूची में सबसे आगे खड़ा है। यहां के रहनुमाओं को कोई कुछ भी कहता रहे, यहां किसी को कुछ फर्क नही पड़ता। इन लोगो पर यह कहावत भी पूरे तौर से खरी उतरती है कि भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा क्योंकि इन लोगो को कुछ असर होने वाला नहीं है। इसलिये आप भी कुछ ना कहो तो ही अच्छा है। 

राही चल अकेला

साधु-संत, ज्ञानी लोग हमेशा से ही हमें समझाते रहे हैं, कि इन्सान दुनिया में अकेला ही आता है और उसे अकेले ही यह जग छोड़ना पड़ता है। वो बात अलग है कि जन्म के तुरन्त बाद ही बहुत से दुनियावी रिष्ते बन जाते हैं। जोकि हमारे जीवनकाल में साथ निभाने का दम भरते है। जब तक जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहे तो आपके मिलने-जुलने वाले भी बहुत अच्छे से अपनापन जताते रहते है। भगवान न करे आपके ऊपर किसी दिन कोई कष्ट की घड़ी आ जाये, तो उस समय आपके सबसे नजदीकी रिश्तेदार और विश्वसनीय दोस्त भी पल भर में गिरगिट की तरह रंग बदल कर पल भर में गायब हो जाते हैं।
अगर थोड़ा गहराई से सोचें, तो हम महसूस करेंगे कि आजकल क्या कोई सच में किसी का साथ निभा पाता है? या यूं कहें कि हम किसी का किस हद तक साथ निभाते है? कहने को रिष्तों के नाम पर हमारे पास मां-बाप, भाई-बहन, चाचा-ताऊ के अलावा दोस्तों यारों की एक लम्बी सी सूची रहती है। इतने रिष्ते होते हुए भी आज का आदमी बिल्कुल अकेला और तन्हा होता जा रहा है। कुछ अरसा पहले तक हर खुषी, गम एवं दुख की घड़ी में पूरा कुंबा एकजुट होकर हर तरह की परेशानी को असानी से झेल जाते थे। लेकिन आजकल राह कितनी भी कठिन क्यूं न हो, हमें अकेले ही उस पर चलना पड़ता है।
कल तक जो लोग जन्म-जन्म का साथ निभाने की कसमें खाते थे, उन लोगों को आपकी गली से गुजरना भी भारी लगता है। कभी किसी मोड़ पर अचानक मुलाकात हो भी जाये तो ऐसा बर्ताव करेंगे जैसे कि वो आपको पहचनाते ही नहीं। दुख और परेषानी के पलों में आपकी मदद करने की बजाए दुनिया भर के बहानों की लिस्ट आपके सामने रख देंगे। कुछ बड़े शहरों में रहने वाले को तो हर महफिल में शेखी बघारने में तो न जाने कितना आनन्द आता है। बड़े-बड़े अफसरों और राजनेताओं के बारे में ऐसे किस्से सुनाएगे जैसे कि वो सारा दिन इनके घर में ही रहते हों। परन्तु कभी गलती से आप इनको एक छोटा सा भी कोई काम करवाने को कह दें, तो पल भर में इनके चेहरे से हवाईयॉ उड़ने लगती है। कुछ चतुर और चालाक लोग यदि आपकी मदद करते भी है तो उस मजबूरी का भरपूर फायदा उठाने से भी नही चूकते।
आज के बदलते माहौल में बात चाहे किसी सरकारी दफतर से कुछ काम करवाने की या दुख तकलीफ में घर के किसी बुजुर्ग का अस्पताल में इलाज करवाने की, आपको सब कुछ अपने बलबूते पर ही करना पड़ता है। कुछ बरसों पहले तक लोग थोड़ी बहुत जान-पहचान की वजह से, गली-मुहल्ले और बिरादरी वालों की आंख की षर्म के कारण से एक दूसरे की बहुत इज्जत करते थे। लेकिन धीरे-धीरे हर कोई अपने आप में मस्त होता जा रहा है। आज का इन्सान हर रिष्ते को पैसे की तराजू में तोलने लग गया है। किसी गैर की मदद तो दूर, अपने मां-बाप की देख-भाल भी बच्चों को भारी लगने लगी है। अधिकतर परिवारों के बच्चों ने मां-बाप को भी दूसरी वस्तुओं के माफ़िक टुकड़ों में बांट दिया है। ऐसा लगता है, कि हम सब के खून का जैसे रंग ही बदलता जा रहा है।
कभी-कभी यह सोच कर हैरानी होती है, जिस देश में भगवान कृष्ण और सुदामा जैसे मित्र, जहां श्रवण कुमार जैसे बेटे पैदा हुए थे, क्या यह वही देष है? आखिर हमारे देष की ऐसी हालत क्यूं और कैसे हो गई? किसी और की और उगंली उठाने की बजाए अगर हम अपने गिरेबान में झांकने की कोषिष करें तो अपने बडे-बूढ़ों की नसीहयत याद आयेगी कि अगर बबूल बोओगे तो आम की उम्मीद रखना बेवकूफी होती है। आज अगर समाज में हर तरफ यह खुदगर्जी का माहौल बनता जा रहा है, तो कहीं न कहीं हम खुद ही इसके जिम्मेदार हैं? अगर हम दूसरों से हर सुख-दुख में साथ निभाने की उम्मीद रखते हैं, तो हमें खुद भी इस ओर पहल करनी पड़ेगी। आप एक बार किसी की मुष्किल में उसका साथ देकर तो देखो, साधारण आदमी तो मरते दम तक इस प्रकार की नेकी को नहीं भूलता। इसके एवज़ में कोई आपको कोई कुछ दे या न दे लेकिन भगवान नेकी की राह मे चलने वालों के साथ हमेशा इन्साफ करता आया है। एक बात तो हम सब भी अच्छी तरह से जानते हैं कि बीज बोने से पहले तो कुदरत भी फल नहीं देती। सेवा से पहले मेवा कभी नहीं मिलता।
अभी भी समय है कि जौली अंकल की बात मानते हुए अगर हम सब मिलकर अपने इस खुदगर्जी स्वभाव को बदलने की कोषिष शुरू कर दें तो आने वाले समय में एक नया और बहुत ही सुन्दर समाज का रूप हमारे सामने आयेगा। वरना आने वाली पीढ़ियों के पास धन-दौलत और सब सुख सुविधाएं होते हुए भी उन्हें अपना जीवन बिल्कुल अकेले ही गुजारना पड़ सकता है। उस समय हम सभी को यही कहना पड़ेगा 'राही चल अकेला'     

सांझा चूल्हा

आज बहुत दिनों बाद कार से पंजाब जाते हुए, सड़क के किनारे बने एक ढ़ाबे पर तन्दूर की गर्मा-गर्म रोटी खाने को मिली तो बचपन के दिन याद आ गये। उन दिनों घरों में अक्सर लोग अंगीठी और स्टोव जला कर ही काम किया करते थे। शाम को मुहल्ले के कुछ घर मिलकर एक तन्दूर जलाते थे, जिससे सब परिवार मिलकर रोटियां बनाते थे। औरतें और बच्चे शाम से ही इकट्ठे होकर देर रात तक वहीं महफिल लगाये रहते थे। उधर घर के सब बुजुर्ग और मर्द मिलकर कालोनी और समाज की समस्याओं पर गौर करते और उन्हें सुलझाने का कोई न कोई रास्ता खोजते।
अकेले आदमी का जीवन कोई जीवन नहीं होता, हर समय एक खालीपन सा खाने को दौड़ता है। वो क्या कमाता है, क्या खाता है, कब आता है कोई पूछने वाला नहीं होता। इंसान अकेला रहते हुए कितना भी पैसा कमा ले लेकिन उस पैसे से सुख नही ले सकता। होटल का खाना कुछ दिन तो जरूर अच्छा लगता है, फिर मां के हाथ की बनी रोटी खाने को मन तरसता है। यहां तक की अपने सुख-दुख को भी किसी से नहीं बांट सकता। परिवार में एक सदस्य के आने से ही पूरी दिनचर्या ही बदल जाती है। लेकिन साथ ही जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ जाता है। कुछ लोग तो घर के छोटे सदस्याें को अच्छे संस्कार देकर एक अच्छा नागरिक बनाने की जी तोड़ कोशिश करते है। लेकिन वहीें दूसरी ओर कुछ स्वार्थी लोग सारा जीवन अपने लोभ और मोज मस्ती में ही उलझे रहते हैं।
परिवार को एक माला की तरह जोड़कर रखने में सब सदस्यों का अहम किरदार होता है। जहां छोटे सदस्याें को चाहिये, कि वो बुजुर्गों का आदर सत्कार करें, वही घर के बड़े सदस्याें को जरूरत है छोटे बच्चों की हर बात को गौर से सुनें। किसी बात को मानना या न मानना एक अलग बात है, लेकिन बिना किसी की बात को सुने उसे डांट कर चुप करा देने से घर के सदस्यों में एक आक्रोष सा पनपने लगता है। अगर प्रेशर कुकर में से भी साथ साथ भाप न निकाली जाए तो उसके फटने का डर बना रहता है। अधिकतर परिवारों में किसी विषय पर खुलकर बात न करने की वजह से ही कलेश पनपते हैं।
जहां एक और विज्ञान की तरक्की ने हमारे जीवन को सुखमय बनाया है, वही सांझे चूल्हे की विरासत को खत्म करने में भी इनका बहुत बड़ा योगदान है। युवा पीढ़ी अपने आपमें इतनी मस्त है, कि उसे जब तक पैसों या किसी चीज की जरूरत न हो वो घर के दूसरे सदस्यों से बात करना भी जरूरी नहीं समझते। हमारे बच्चे यह भी भूल गये हैं कि घर का हर सदस्य एक दूसरे का पूरक होता है, और सयुंक्त परिवार में परेशनियां कम और जीवन अधिक आनन्दमयी होता है।
अमरीका दुनिया का सबसे प्रगतिशील और ताकतवर देश होते हुए भी पारिवारिक मूल्यों में भारत से पिछड़ा हुआ है। उनके अपने आकड़ों के हिसाब से यहां पर लोग औसतन शादीशुदा जिन्दगी आठ से दस साल ही निभा पाते हैं, नतीजतन सबसे अधिक तलाक। अब कुछ अरसे से विदेशो के इस प्रकार के ग्रहण हमारे देश में भी दिखाई देने लगे हैं। नयी पीढ़ी में सब्र और धैर्य की कमी होती जा रही है। परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना उनको एक बोझ सा लगता है। मौज मस्ती के नाम पर उन्हें आजादी ज्यादा पसंद है।
आज के समय में यह काम थोड़ा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है, कि हम लोग ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, जात-पात और अन्य छोटी-छोटी बातों के भेदभाव मिटाकर एक सांझे चूल्हे का निर्माण करने की कोशिश करना चाहें तो सब कुछ हो सकता है। जौली अंकल तो इस बात से हैरान है कि अगर कुछ लोग एक मैखाने में सभी भेदभाव मिटाकर अपने खुशी और गम आपस में बांट सकते हैं, तो सब बुध्दिजीवी मिलकर एक संगठित समाज में सांझे चूल्हे का निर्माण क्यूं नहीं कर सकते?         

कल्पना

कल्पना की दुनिया हर इन्सान को रोजमर्रा के तनाव भरे माहौल से हटाकर कुछ देर के लिये ही सही एक परीलोक में ले जाती है। जहां छोटे बच्चों से बड़े-बूढ़ों तक को बचपन में सुनी परियों की कहानियां एक हकीकत सी लगने लगती हैं। मां-बाप सदा इसी कल्पना में खोये रहते है कि कब उनके बच्चे बडे होकर जीवन में उच्च पद को प्राप्त कर पायेंगे। छोटे बच्चों को परियों की कहानियां लुभाती है, वही युवावर्ग आधुनिक मोबाइल फोन, नई-नई मोटर साईकल और हवा से बातें करती हुई रंग बिरंगी कारों के दीवाने होते हैं।
हर मां हमेशा अपने बेटे के लिये एक चांद सी बहू की कल्पना में ही खोई रहती है। हालांकि चांद में तो अनेकों दाग है, और वास्तविक जिन्दगी में तो लड़की के चेहरे पर एक छोटा सा चोट का निशान भी हजारों अड़चने पैदा कर देता है। पर शायद लोग चांद जैसी बहू की कल्पना इसलिये करते है कि चांद सिर्फ रात को ही निकलता है। बहू भी रात को ही घर आए और दिन निकलते ही गायब हो जाए। इससे न तो सास-बहू के झगड़े का डर, ना पैसों के लेन-देन का झंझट और न ही फरमाईषों की कोई दिक्कत।
कल्पना का जिक्र आते ही हरियाणा के एक छोटे से शहर से निकली नासा की टीम के साथ कल्पना चावला की याद ताजा हो जाती है, जिसने आसमान की बुलंदियों को छूकर भारत देष का नाम गौरवान्वित कर दिया। कल्पना चावला जैसे कितने ही भारतीय विदषों में रहकर वहां कि कई बड़ी कम्पनियों और सरकारी पदों की षोभा बढ़ा रहे हैं। वो लोग ना सिर्फ अपने लिये रोजी रोटी कमा रहे है, बल्कि विदेषों में अपनी अक्ल का लोहा मनवाते हुए उन देशों की अर्थव्यवस्था को एक नया रंग रूप देने में जुटे हुए हैं। आए दिन भारत मूल के लोगों की सफलता की कहानियां हम सब को अकसर पढ़ने को मिलती है।
गौर करने वाली बात तो यह है कि चन्द भारतीय विदेशों में जाकर न जाने किस जादू की छड़ी का इस्तेमाल करके कामयाबी और तरक्की की ऊंचाइयों को छू लेते हैं जिससे उनके नाम के साथ हमारे देष के नाम को भी चार चांद लग जाते हैं। वहीं 100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों का जनसमूह इकट्ठा होकर अपने देष की समस्याओं को आज देष की आजादी के 60 साल बाद भी नहीं सुलझा सका। आप देश के किसी भी भाग की बात ले लो, हर गांव, और शहर की कठिनाइयों भरी और कभी न खत्म होने वाले सवालों की एक लम्बी सूची मिल जाएगी। अगर हम छोटी-छोटी समस्याआें को छोड़ भी दें, तो भी हमारी सारी सरकारें देश की जनता को मूलभूत सुविधायें देने में आज भी असमर्थ हैं। क्या हमारी सरकारें और पूरा देश मिलकर भी कभी इन समस्याओं को खत्म कर पायेंगे?
जनता तो हर पांच साल बाद एक सरकार से दुखी होकर दूसरी, और फिर दूसरी से तीसरी सरकार को सत्ताा पर बैठा देती है। पर मुसीबतें हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। हां सरकार में बैठे मंत्रीगण और उनके चहेतों का जरूर भला हो जाता है, वो दुबारा चुनाव जीतें या न जीतें एक बार गद्दी मिलने से ही आने वाली कई पुष्तों के लिये तिजोरियों में धनदौलत के अंबार लग जाते हैं। चुनाव खत्म होते ही जनमानस के हित में काम करना तो दूर इन लोगों को अपने वादे भी याद नहीं रहते। वो इन सब बातों को याद रखें भी तो क्यूं? वो अच्छी तरह से जानते हैं कि एक बार गद्दी पर बैठने के बाद जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। जनता के पास अभी तक ऐसा कोई हाथियार नहीं है, जिससे किसी भी मंत्री के ऊपर अंगुली उठाई जा सके।
हर बुध्दिजीवी हमेशा से एक सभ्य समाज की कल्पना करता आया है। हमारे राजनेता हमें हर रोज कोई न कोई सुन्दर सा स्वपन दिखा कर बेवकूफ बनाने में लगे रहते हैं। हमारे देश के कुछ लोग बरसों से राम मदिंर बनवाने का राग अलाप रहे हैं, लेकिन यही लोग राम मंदिर बनाने की बजाए देश में राम-राज्य स्थापित करने की कल्पना करें, तो पूरी दुनिया में एक नई मिसाल कायम हो सकती है। एक आम आदमी तो यही सोचता है कि यह काम बातों में तो अच्छा लगता है लेकिन व्यावहारिक जिंदगी में इस पर अमल नहीं किया जा सकता। एक बार इतिहास के पन्नों की मिट्टी को झाड़ने की कोशिश करो तो आप को कई उदाहरण मिल जाऐंगे कि जंगल कितना भी बड़ा क्यूं न हो, उसे जलाने के लिये ढेरों आग की नहीं, केवल एक चिंगारी की ही जरूरत होती है।
हमारे देष में बहुत से सन्तों और महात्मा लोगों का समाज में बहुत प्रभाव है, उनके एक इषारे पर हमारे षहर का एक बहुत बड़ा हिस्सा कुछ भी करने को तैयार रहता है। अगर हमारे धर्मगुरू इस तरह का बीड़ा उठाने का मन बना ले, तो आने वाले चन्द वर्षों में राम राज्य की छवि साफ दिखने लगेगी। एक आम आदमी जो राजनेताओं से हर प्रकार से निराष हो चुका है, वो भी इस दिषा में अपने आपको मिटाकर धन्य समझेगा।
जहां एक ओर छोटा सा व्यापारी या फैक्ट्री चलाने वाला अपने व्यापार से एक-दो साल में अच्छा मुनाफा कमाने लगता है, वहीं हमारे देष के तकरीबन सारे सरकारी विभाग बरसों से घाटे में ही चल रहे हैं। इसका मुख्य कारण है सरकारी विभागों के बढ़ते खर्चे, अफसरषाही, पैसे का दुरूपयोग, और सबसे बड़ी बात कि वो अपने कामकाज के लिये किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
अगर देश के ढांचें को ठीक से नया रंग-रूप देना है, तो पूरे सरकारी तंत्र को, मंत्री से संत्री तक को जनता के प्रति जवाबदेह बनाना होगा। जनता की मांग पर भ्रष्टाचार और कामचोर कर्मचारियों को हटाने का प्रावधान बनाना होगा। समय की मांग है कि देष की बागडोर अब सिर्फ कामयाब और काबिल लोगों के हाथ में देने की जरूरत है। तभी देश की जनता का विदेशी लोगों की तरह मूलभूत सुविधाओं को प्राप्त करने की कल्पना हकीकत बन पायेगी। जौली अंकल अपनी सरकार से क्या यह उम्मीद करें, कि हमारे जीवनकाल में यह कल्पना पूरी होगी, नहीं तो आगे आने वाली पीढ़ियों को कल्पना का कौन सा रूप दिखा पायेंगे। 

कितना बदल गया इंसान

कुछ दिन पहले हमारे पड़ोस में रहने वाले मिश्रा जी की पांव फिसलने से टांग टूट गई। अच्छे पड़ोसी और हमदर्दी के नाते हम भी उनका हाल चाल पूछने चले गये। वहां पहुंचते ही हमारी मुलाकात उनकी एक बर्जुग महिला रिश्तरेदार से हो गई। वो औरत पास के ही एक गांव से मिश्रा जी का हाल चाल पूछने आई थी। नाश्ते के दौरान वह औरत मिश्रा जी से एक ही बात कहे जा रही थी कि जब से तुम्हारी चोट का पता लगामुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही थी। मिश्रा जी ने उन्हें समझाते हुए कहा कि सब कुछ ठीक ठाक है। डॉक्टर ने टांग पर प्लास्टर चढ़ा दिया हैदो-चार हफतें में मै फिर से चलना फिरना शुरू कर दूंगा। इसमें इतनी घबराने वाली कोई बात नही है। उस औरत ने कहा यह सब कुछ तो मैं भी समझती  हूँलेकिन मुझे तो इस बात की फिक्र सता रही थी कि कुछ दिनों में तेरा प्लास्टर खुल जायेगा और मेरे से तेरा हाल-चाल पूछने आया नही जा रहा। वैसे मैने यहां आने से पहले अपने गांव के एक बहुत ही पहुंचे हुए बाबा के डेरे में तुम्हारे जल्द ठीक होने की प्रार्थना करवा दी थी। हमारे बाबा तो इतने पहुंचे हुए है कि उनकी कही हुई हर बात चुटकियों में पूरी हो जाती है।
हमारे जीवन में जब कभी हमें कोई दुख या परेशानी सताती है तो हमारे सभी रिश्तेदार और शुभंचिंतक हमदर्दी जताने के लिये अपने चेहरे पर एक सुंदर सा मुखोटा लगा कर ऐसा नाटक करते है कि हमारे दुख का दर्द हमसे अधिक उन्हें हो रहा है। हमारी परेशानी चाहे किसी भी मसले से जुड़ी होइसकी परवाह किये बिना हर कोई किसी न किसी साधूबाबाफकीर एवं टोने-टोटके करने वाले के पास जाने के लिये पल भर में सुझाव दे डालते हैं। इतना ही नहीहमारे हमदर्द शेखी बघारते हुए ऐसे सभी लोगो को भगवान का दर्जा देने से भी परहेज नही करते। कुछ लोगो का मानना है कि आप एक बार हमारे बाबा की शरण में आ जाओआपकी यह परेशानी तो क्याआप के जन्मों-जन्मों के कष्ट सदा के लिये छूमंतर हो जायेगे। बाबा तो साक्षत भगवान का रूप है। बड़े-बड़े नेता और मंत्रीगण तक उनके पांव छूने के लिये तरसते है। देश-विदेश के बहुत से रईस लोग पूजते है। इन्हें लाखो रूप्ये तो विदेशों में बसे भक्तो से आते रहते है।
जब हमारे जैसे चाहने वाले ही इन्हें भगवान का दर्जा देते हुए नही थकते तो इस तरह के ढोंगी लोगो को भगवान बनने में क्या परेशानी हो सकती हैछल-फरेब से दुनियां को ठगने और मूर्ख बनाने वाले ऐसे भगवान इस गौरख धंधे को एक धर्मिक व्यापार से अधिक कुछ नही समझते। हैरानगी की बात तो यह है कि अनपढ़ लोगो के साथ समाज का एक बहुत बड़ा पढ़ा लिखा वर्ग भी ऐसे लोगो के जाल में फंसता चला जाता है। छोटे गांवकस्बो से लेकर बड़े शहरों तक लाखों लोग इनके बहकावे में आकर अपनी गाढ़ी कमाई से इनके डेराें और आश्रमों को चमकाने में लग जाते है। सोच कर बहुत अजीब सा लगता है कि मोह माया के लोभी जो खुद अपने प्राण्ाों की रक्षा नही कर सकतेअपने लिये एक-एक वस्तु अपने भक्तो से मांगते हैवो किसी इंसान को क्या दे सकते है?
जब कभी जीवन में कुछ भी पाना हो तो केवल अपने ईश्वर से मांगेक्योंकि सारे जगत का पालनहार एक मात्र भगवान ही है। लेकिन अफसोस तो उस समय होता है जब यह देखने को मिलता है कि हमें तो भगवान से मांगने की तहजीब तक नही है। हम सभी अपने सुखों को ध्यान में रख कर अपनी शर्तों एवं सुविधानुसार भगवान से इस तरह मांगते हैजैसे कोई सेठ कर्जदार से अपना कर्ज वसूल करता है। अब किसी पेड़ से फल या छाया मांगने की बजाए यदि पूरे पेड़ को ही मांग लिया जाये तो खुद-ब-खुद हमें सब कुछ मिल सकता है। ठीक उसी प्रकार हम भगवान के आगे छोटी-छोटी मांगे रखने की बजाए यदि भगवान को ही मांग ले तो हमारे जन्म जन्म के दुख-दर्द सदैव के लिए खत्म हो सकते है। लेकिन कड़वी सच्चाई तो यह है कि हम में से अधिकर लोग प्रभु को पाना ही नही चाहते।
जब भी कोई सच्चे मन से भगवान को पाना चाहे तो उसे भगवान मिल सकते हैपरन्तु सत्य बात तो यही है कि हम उसे पाना तो दूर उसके नजदीक भी जाना नही चाहते। यह जानते हुए भी कि मुसलमानों का अल्लाहईसाईयों का गॉड और ंहिंदुओ का ईश्वरसिखो का वाहिगुरू सभी एक ही जोत है हम उसे धर्मजातिभाषा और क्षेत्र के मुताबिक बांटते जा रहे है। भगवान को यदि पाना ही है तो उसे पाने के लिये किसी ऐसे ज्ञानी को ढूंढे जो उसकी भक्ति के रस में डूबा हो न की हम उन लोगो के पीछे भागे जो खुद को भगवान कहलाने में गर्व महसूस करते है। भगवान तो प्रेम के भूखे हैइसलिये सदैव अपनी इच्छा को भगवान की इच्छा से मिला दो क्योंकि जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है वो प्रभु की इच्छा से ही होता है। कोई इंसान कैसा भी होहरि नाम से जुड़ते ही वो धन्य हो जाता है और भगवान ऐसे लोगो के लिये सभी नेक रास्ते खोल देता है।
इंसान अक्सर मौत से डर कर इन कपटी और फरेबियों के चुंगल में फंसता है जबकि असलियत तो यह है कि केवल हमारा शरीर मरता आत्मा कभी नही मरती। जिस तरह हम समय-समय पर नये कपड़े बदल कर खुश होते हैउसी तरह से आत्मा भी एक अरसे के बाद शरीर बदलना चाहती है। हर जीव का जीवन-मृत्यु का खेल भगवान की इच्छानुसार ही चलता है। इतना सब जानने के बाद जौली अंकल की आत्मा से केवल यही अलफाज निकल रहे है कि कितना बदल गया इंसान :
तन के उजले मन के कालेऐ मालिक तेरे यह दुनियां वाले,
शुक्र है कि तू परदे में हैवरना तुझे भी बेच डालेऐ मालिक तेरे यह दुनियां वाले।  

स्वर्ग - नर्क

एक दिन बंसन्ती ने वीरू से कहा कि मैने सुना है कि स्वर्ग में पति-पत्नी इक्ट्ठे नही रह सकते। वीरू ने कहा, कि मैं इस बारे में कुछ अधिक तो नही जानता लेकिन मुझे लगता है, कि जिस किसी ने भी तुम्हें यह बताया है, उसने बिल्कुल ठीक ही कहा है। बंसन्ती ने हैरान होकर पूछा कि तुम ऐसा क्यूं कह रहे हो? वीरू ने हंसते हुए कहा यदि स्वर्ग में भी पत्नीयां साथ रहने के लिये आ जायेगी तो उसे स्वर्ग कौन कहेगा? स्वर्ग में भी यदि हर रोज पति-पत्नी का झगड़ा चलता रहेगा तो स्वर्ग और नर्क में फर्क ही क्या बचेगा। दुनियां का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मनुष्य प्राणियों को यम के पास जाते हुए रोज देखता है और फिर भी सदा इस दुनियां में रहना चाहता है। दुनियां का हर आदमी स्वर्ग में तो जाना चाहता है लेकिन कोई भी आदमी कभी भी मरना नही चाहता।
दुनिया के वैज्ञानिक खोज करते-करते आज तकरीबन आकाश, पताल और हर ग्रह के बारे में हर प्रकार की बारीक से बारीक जानकारी हासिल कर चुके है। लाखों करोड़ो साल पहले से अभी तक किस ग्रह की क्या स्थिति है, उसकी सूरज-चांद और धरती से सही दूरी, दिशा और वहां के सभी तथ्यों आदि का सारा ब्योरा इन लोगो के कम्पूयटर में जमा है। सैंकड़ो सालों से ग्रहों के बारे में ढेरो जानकारी इक्ट्ठी करने वालो ने क्या कभी यह जानने का प्रयास किया है कि सदियों से सबसे अधिक चर्चा में रहने वाले स्वर्ग और नर्क कहां स्थित है? यह ब्रंहाम्ड के किस भाग के हिस्से में है? वहां के हालात कैसे हो सकते है? स्वर्ग और नर्क में किस तरह के लोग रहते है? यह एक ऐसा रहस्य है, जिस बारे में आज तक कोई भी खोज करने वाला दावे के साथ कुछ नही कह पाया। इस संसार में हम हर चीज को पहले देखते, परखते है फिर विश्वास करते है, परन्तु स्वर्ग-नर्क जिसे दुनियां के किसी शक्स ने आज तक नही देखा उस की सच्चाई को हर कोई पूर्ण रूप से सत्य मानता है।
हम यदि अपने आस-पास गौर से देखे तो पायेगे कि स्वर्ग-नर्क किसी और लोक में नही इसी धरती पर ही मौजूद है। इस बात को हमारा मन इतनी आसानी से मानने वाला नही है, लेकिन तथ्यों से मुंह भी तो नही मोड़ा जा सकता। स्वर्ग-नर्क की परिभाषा को समझने की कोशिश करे तो स्वर्ग का नाम मन में आते ही जीवन में हर प्रकार की खुशीयों के साथ परिवार में सभी सुख-सुविधाओं की और ध्यान जाता है। घर के सभी सदस्यों के लिये इच्छानुसार अच्छा खान-पान, मान-सम्मान और धन दौलात के अंभारो का पाकर हर कोई अपने आप को स्वर्ग में रहते हुए महसूस करता है।
दूसरी और नर्क का नाम सुनते ही हमारी आत्मा तक कांप उठती है। एक बच्चा जिसका जन्म सड़क के किनारे फुटपाथ पर होता है। सारी उंम्र सर्दी-गर्मी, हर तरह के मौसम और जमाने की मार सहते हुए फटे हाल दो वक्त की रोटी के लिये दर-दर भटकता है। बीमारी और चोट आदि लगने के कारण एक दिन उसी फुटपाथ पर भूखे पेट दम तोड़ देता है। क्या यह सब कुछ किसी नर्क से कम है? किसी भी चीज को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है, किन्तु उसे महसूस करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है। आपने अपने जीवन में कई बार देखा होगा कि एक ही समय, स्थान में दो अलग-अलग बच्चो का जन्म एक को राजा और दूसरे को रंक बना देता है। सड़क किनारे पैदा होने वाले बच्चे का इसमें क्या दोष हो सकता है? महापुरषो की वाणी पर गौर करे तो इन सब के लिये हमारे जन्मों-जन्मों के कर्म ही हमें स्वर्ग या नर्क का भागीदार बनाते है।
ऋृषि-मुनी तो सदीयों से मनुष्य जाति को समझाते आये है कि एक बार जब हम मनुष्य जीवन पा लेते है तो दिनभर खाना खाकर और रात को चैन की नींद सोने को ही जीवन का असली सुख समझने लगते है। अपने सुखों में डूब कर हम किसी भी नेक कार्य करने की और ध्यान नही देते। पैसो की चमक-दमक और खनक के आगे हम भगवान को भूल कर अपनी वाणी पर भी काबू नही रख पाते, तो आने वाले समय में हमें स्वर्ग जैसा सुख कहां से मिलेगा? अपने जीवनकाल में हम सदा दूसरों को ही आंकते रहते है, यदि सच्ची खुशी पानी है तो पहले अपने आप को आंकना भी सीखना होगा। जिस प्रकार किश्ती में एक सुराख होने पर भी वो डूब जाती है, ठीक उसी तरह हमारे जीवन का एक अवगुण हमें स्वर्ग की राह से नर्क की और धकेल देता है।
विद्ववान लोगो का मानना है कि जब तक हमारे कर्म मन का हिस्सा नही बनते, तब तक वो एक धार्मिक पांखड से अधिक कुछ नही होते। केवल शरीरिक रोग ही नही लोभ, मोह, अंहकार जैसे मानसिक रोग भी हमें स्वर्ग रूपी जीवन जीने में बाधा खड़ी कर सकते है। जिस तरह भगवान के रहने का कोई एक खास देश या स्थान नही होता, ठीक उसी तरह स्वर्ग-नर्क भी दुनियां के किसी नक्शे में नहीं देखे जा सकते। जौली अंकल की राय तो यही बताती है कि जितनी मेहनत से लोग नर्क की औरं जाते है, उससे आधी मेहनत करने पर वो अपने जीवन को स्वर्ग बना सकते है।   

आंनद ही आंनद

आज का युवा वर्ग दोस्तो के साथ देर रात तक शौरगुल, धमाकेदार संगीत के साथ नशे को आंनद समझते है तो कुदरत से प्यार करने वालो को सुबह सूर्योदय के समय का नजारा आंनदित करता है। ऐसे लोग शहर से दूर पहाड़ो की वादीयों में झरने की कल-कल करती धारा और सूर्य की उगती किरणों की प्रतीक्षा में पक्षीयों के चहचहाने वाले पलों को सच्चे आंनद का नाम देते है। यह वो पल होते है जब आदमी कुदरत के माध्यम से भगवान के सबसे करीब होता है। कुछ समय पहले तक लोग एक उंम्र के बाद अपना परिवार, खाना एवं अन्य सभी सुख त्याग कर संत बनने में और आज के आधुनिक लोग इन सभी वस्तुओं को पाने में खुद को आंनदित महसूस करते है। खाने पीने के शौकिन लोगो की बात करे तो उनकी आत्मा को हर दिन नये से नये बढ़िया व्यंजन खाकर जबकि भक्त लोगो की सोच में आंनद की अनुभूति भगवान के प्रति सम्पूर्ण आस्था रखते हुए व्रत करने से ही होती है। किसी को गाय के शुध दूध में और किसी को शराब के पैग में आंनद का एहसास मिलता है। आंनद की प्राप्ति के लिये इंसान क्या कुछ चेष्टा नही करता?
एक बात तो सत्य है कि आंनद की परिभाषा और मायने हर किसी के लिये अलग से है। जिस प्रकार हिरन उंम्र भर कस्तूरी की महक में दीवाना होकर उसे जंगल के हर कोने में ढूंढता रहता है, ठीक उसी तरह इंसान भी आंनद के कुछ पल पाने के लिये जीवन भर भटकता रहता है। गृहस्थ जीवन के चलते आदमी को कई बार व्यापार या अन्य किसी कारण से जब कभी घर से कुछ दिन दूर रहना पड़ता है, तो मन से एक ही बात बार-बार निकलती है कि आखिर अपने घर कब पहु्रंचेगे? ऐसा वो शायद इसलिये कहता है क्योकि जो आंनद अपने छोटे से घर में मिलता है, वो बड़े से बड़े स्टार होटल में भी नसीब नही होता। पढ़े लिखे लोग समझने लगे है कि किताबी ज्ञान से तो हम अच्छी नौकरी पाकर बहुत सारे पैसो से हर प्रकार के आंनद की वस्तु खरीद सकते है, परन्तु ऋृषि-मुनीयों की तरह भगवान के बारे में यदि कुछ जान भी लेगे तो हमें क्या मिलेगा? आज चाहें दूर से देखने में हर कोई स्वस्थ नजर आये लेकिन ऐसा लगता है कि मन से हर कोई रोगी हो चुका है। यही कारण है कि हमें दूसरों की निंदा औरर् ईष्या करने में बहुत आंनद मिलता है। इस बात का ज्ञान होते हुए भी कि सच्चा आंनद खुद को पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित करने पर ही मिलता है इंसान भौतिक सुखो और दुनियावी ज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ मानने लगा है।
इस बात से भी कोई इंकार नही कर सकता कि बैठे-बैठे कभी किसी को कुछ नही मिलता, कुछ भी पाने के लिये हमें ईश्वर द्वारा दिये हुए हाथ-पैर, आंख कान आदि से प्रयास तो करना ही पड़ेगा। कोई खुल कर बोले या न बोले लेकिन लोगो के दिल में यह भावना अच्छे से घर चुकी है कि धर्म और भगवान के बारे में बातचीत करने वालों को हमारे दोस्त-मित्र अंधविश्वासी मानते है। आर्थिक दृष्टि से जैसे-जैसे आदमी संम्पन होता जा रहा है, उतना ही धर्म एवं भक्ति की राह से भटकता जा रहा है। जबकि कलयुग के इस दौर में आत्मा को सच्चा आंनद यदि कहीं से मिल सकता है तो वो सिर्फ भक्ति की राह पर चलने से ही नसीब हो सकता है। जो कोई हिम्मत करके भगवान को पाने की राह पर चल निकले है उन्हें गंगा जल की एक बूंद भी अमृत समान आंनद प्रदान करती है।
पहले जमाने की तरह अब राक्षस बहुत ही डरावने मुंह और बड़े-बड़े हाथ, पैर और कानों वाले नही रहे। हमारे बीच में ही रहने वाले दुर्राचारी, बलात्कारी और जो लोग अन्य बुरे कर्म करते है वो किसी राक्षस से कम नही। इस लोक में यदि कोई हमारा सच्चा हितेषी और शुभचिंतक जो हमें आंनद दे सकता है तो वो केवल एक मात्र भगवान ही है। अपने बच्चो से यह उम्मीद होते हुए भी कि यह बड़े होते ही किसी दिन भी हमें धोखा दे सकते है, हम उनके लिये धन इक्ट्ठा करने में सारा जीवन लगा देते है। दूसरी और यह जानते हुए कि भगवान सभी का भला चाहते हुए जहां सदैव हमारी रक्षा करते है और कभी किसी को धोखा नही देते हम उससे जुड़ने के लिये कुछ प्रयत्न नही करते।
जब कभी हमारा कोई नजदीकी हमें सदा के लिये छोड़ जाता है, तो हमें बहुत ही दुख होता है। कई बार प्रयास करने पर भी हमारे आंसू नही रूकते। परन्तु भगवान से बिछुड़ने का हमें कभी कोई गम नही सताता, इसका सीधा सा कारण तो यही समझ आता है कि हमारा भगवान से किसी प्रकार का संबध बना ही नही, वरना क्या भगवान से दूर होते ही हमारी आंखों में आंसू नही आते। ज्ञानी लोगो के लाख समझाने पर भी कि भक्ति केवल मन से ही होती है, तन से नही। हम अपने तन को साफ रखने के लिये तो हर किस्म के तेल, क्रीम, पाउडर आदि सब कुछ इस्तेमाल करते है, परन्तु अपने मन को साफ करने के लिये हम किसी किस्म का प्रयास नही करते। असल में जरूरत है तन से अधिक मन को साफ रखने की। जैसे ही हमारा मन पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित होता है हमें दुनियां के सबसे बड़े आंनद की प्रप्ति हो जाती है।
जौली अंकल महापुरषो की वाणी का समर्थन करते हुए कहते है कि जिस प्रकार तेल के बिना दीपक नहीं जल सकता, वैसे ही ईश्वर के प्रति प्रेम के बिना जीवन में सच्ची खुशी नही मिल सकती। जीवन में यदि आंनद ही आंनद पाना है तो बिना भगवान के रस में डूबे यह मुमकिन नही हो पायेगा।

धर्म की राह

धर्म क्या है? क्या कभी किसी ने भगवान को देखा है या कोई आज तक उसके करीब जा सका है? भगवान का महजब कौन सा है? भगवान का रंग रूप कैसा है? भगवान को पाने के लिये किस धर्म की राह पर चलने की जरूरत होती है। हमारा भगवान से कैसा रिश्ता है? यदि आज तक कभी किसी ने भगवान को देखा या जाना नही तो क्या हम धर्म को अंधविश्वास मान ले? यह सारे सवाल वो है जो हम सभी के मन में कभी न कभी जरूर उठते रहते है, लेकिन संकोचवश हममें कोई भी इनका इजहार करने की हिम्मत नही जुटा पाता।
कुछ लोग इस राह के बारे में बिना कुछ जाने ही बड़ी-बड़ी ढींगे मारते रहते है, लेकिन सच्चे संत केवल एक बात को मानते है कि भगवान के बारे में सारी उंम्र समझ-समझ कर इंसान केवल इतना ही समझ सकता है कि भगवान मैं तेरे बारे में कुछ भी नही समझ सकता। इसका ठोस प्रमाण यह है कि हमारे पास इतनी समझ ही नही है कि हम भगवान का समझ सके। जो व्यक्ति कुछ क्षण के लिये अपने मन पर काबू नही रख पाता वो ब्रहामंड के विधाता के बारे में कैसे कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकता है? हम मानें या न मानें भगवान हम सभी की सोच से बहुत महान है।
हम भगवान को समझने की बात तो करते है, लेकिन हमारा मन उस बीज की तरह है जो दो हिस्सो में बंटा हुआ है। जब बीज दो हिस्सो में बंट जाता है तो वो कभी किसी नये पोधे को जन्म नही दे सकता। ठीक इसी प्रकार हमारा मन हर समय किसी न किसी दुविधा में पड़ा रहता है। रोजमर्रा की बातों के साथ भगवान और धर्म के बारे में भी बार-बार हमारे मन में अनेक प्रकार के शक और शंका उठती रहती है। हर धर्म के आगू सही राह दिखाने की बजाए अपने निजी हितो के मद्देनजर धर्म की ओट में जनसाधारण की भावनाओं से खिलवाड़ करते रहते है। हर वर्ग के साधू-संत अपनी-अपनी दुकानदारी चमकाने के लिये भगवान और धर्म को एक पद्वार्थ की तरह इस्तेमाल करते है। यहां यह कहना गलत नही होगा कि इन लोगो के लिये धर्म भी एक व्यापार से बढ़ कर कुछ नही है।
धर्म के नाम पर अपने उल्टे-सीधे विचारो से लोगो को गुमराह करना तो बहुत आसान है, लेकिन क्या कभी किसी धर्म के आगू ने भगवान के नाम पर सारे समाज को जोड़ने का प्रयत्न किया है? जबकि धर्म की सच्चाई तो सिर्फ इतना सिखाती है कि सदा मानवता के साथ चलो और सारी मानव जाति को अपने साथ लेकर चलो। इस बात की पुष्टि इससे भी हो जाती है कि कभी भी, कोई भी भगवान दुनियां के किसी खास वर्ग, धर्म, स्थान या भाषा से नही जुड़ा। ईश्वर के समक्ष सभी समान हैं न कोई छोटा होता है न कोई बड़ा। जब कभी कोई ईश्वर को किसी कारण से एक खास वर्ग विशेष से जोडने की बात करता है, तो यह उसकी भूल है। जो भगवान है वो केवल एक का नही हो सकता और जो केवल एक का ही है, वो भगवान नही हो सकता। यह दोनों बाते रेल की उस पटरी की तरह है जो आपस में कभी इक्ट्ठी नही हो सकती।
हम भगवान को केवल उस समय तक याद रखते है जब तक हम दुखी होते है, सुख मिलते ही हम उसे पल भर में भूल जाते है। आज की कड़वी सच्चाई तो यह है कि आम आदमी का भगवान केवल धन है। आज हर कोई धन-दौलत की पूजा करता है। धन-दौलत का साहरा लेकर जब हम धर्म की आड़ में आडम्बंर आयोजित करते है, तो वो सिवाए पांखड के कुछ भी नही होता। असल में हमारें जीवन के वही पल सफल हैं, जो नेक काम और भगवान के स्मरण्ा में बीतते है। आत्मा और परमात्मा के मिलन को हम इस तरह भी समझ सकते है कि जिस प्रकार मछली हर समय समुंद्र में रहते हुए भी अपने जन्म स्थान और परिजनों से हजारों मील दूर जा कर भी पानी से अलग नही होती, ठीक उसी तरह भगवान भी हमसें कभी दूर नही होते। यह बात अलग है कि हम अपने निजी स्वार्थो के चलते भगवान को अपनी सोच, समझ और याद में नही रख पाते।
हर धर्म ग्रंध हमें एक ही बात समझाते है कि भगवान की भाषा केवल प्रेम की भाषा होती है। आप सच्चे मन और प्यार से कुछ भी कहें भगवान आपके दिल की बात को स्वीकार कर लेते है। संसार का कोई भी धर्म सेवा के धर्म से बड़ा नही है, इसलिये भगवान को पाने के लिये हमें सदा ही नेकी की राह पर चलते हुए अपने माता पिता की सेवा करनी चहिये। क्योंकि माता पिता के समान कोई तीर्थ नही है, न मंदिर न मस्जिद। भगवान को पाना इतना आसान तो नही लेकिन झूठी लालसा को छोड़ कर सच्चे मन और पूर्ण विश्वास से प्रभु नाम का सिमरन ही हमें इस राह में सही रोशनी दिखा सकता है।
जौली अंकल का मत तो यही है कि एक बार अपना अभिमान त्याग करके देखो जो शेष तुम्हारे पास बचेगा वही तो परमात्मा को पाने और धर्म की सच्ची राह है।

मन एक मंदिर है

एक बार एक टीचर ने क्लास में बैठे बच्चो से यह पूछ लिया कि क्या कोई यह बता सकता है कि भगवान कहां रहते है? गप्पू ने झट से जवाब देते हुए कहा कि भगवान तो हमारे बाथरूम में रहते है। टीचर को ऐसा अजीब अटपटा सा जवाब सुन कर बहुत ही हैरानगी हुई, लेकिन उसने अपना संयम बरकार रखते हुए गप्पू से पूछा कि तुम्हें यह सब कुछ किस ने बताया? उस बच्चे ने बड़ी ही मासूमयित से जवाब देते हुए कहा कि आज सुबह जब मैं बहुत देर से अपने बाथरूम में बैठा था तो मेरी मम्मी ने सारे घर में मुझे ढ़ूंढने के बाद बाथरूम में आते ही बोली कि है भगवान तुम यहां बैठे हुए हो।
भगवान के बारे में कोई कुछ जानकारी रखता है या नही इस मुद्दे पर गहराई से विचार करने की जगह अक्सर लोग अपनी-अपनी समझ और बुद्वि अनुसार तर्क देने लगते है। एक और कुछ लोगो का मानना है कि अंधविश्वास का दूसरा नाम ही भगवान है, वहीं कुछ लोगो का मानना है कि जब कभी हमारे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट या डर आता है तो उसी कारण हमें भगवान की याद सताने लगती है। संसार में हम हर चीज को पहले अच्छी तरह से देख परख कर फिर उस पर विश्वास करते है, लेकिन भगवान के मामले में ऐसा करना मुमकिन नही होता। जिस प्रकार हमनें आज तक हवा को नही देखा, बिजली के तार से बिजली को आते-जाते नही देखा, ठीक उसी तरह हमें भगवान पर बिना देखे ही उस पर विश्वास करना पड़ता है।
पश्चिमी देशो में रहने वाले अधिकाश: लोग अपना जीवन मौज मस्ती में केवल इसलिये गुजार देते है क्योंकि उनके विचार से भगवान नाम की कोई चीज इस दुनियां में है ही नही। ज्ञानी लोगो का मानना है कि ऐसे लोगो का मन ही रोगी होता है। जैसे-जैसे मन पर रोग का बोझ बढ़ने लगता है तो उस रोग का असर शरीर पर शुरू हो जाता है। आमतौर पर हम सभी शरीरिक रोगो को तो देख लेते है और उसका इलाज शुरू करवा देते हैं लेकिन मन के रोगो को जानते हुए भी हम उस की तरफ ध्यान नही देते।
हमारे समाज में लोग अक्सर यही कहते है कि जवानी तो मौज मस्ती के लिये बनी है। पाठ पूजा तो हम बुढ़ापे में भी कर लेगे। वो शायद यह सब इसलिये कहते है क्योंकि बुढ़ापे में हमारा शरीर हमारा साथ नही देता और हमारा हर अंग दर्द से दुखने लगता है। क्या भगवान सिर्फ दुख दर्द के समय ही हमें याद आता है। क्या सारे ज्ञानी और विद्ववानों को ज्ञान की रोशनी सिर्फ बुढ़ापे में ही दिखाई देती है। ऐसा नही है सच्चे भक्त छोटी उंम्र से ही भगवान के नाम के दीवाने हो जाते है। भगत प्रहलाद, धुव्र, सिख धर्म से जुड़े बाबा बुव जी इत्यदि इसके जीते जागते उदारण है।
इंसान की अनेक कमियों में से सबसे बड़ी कमी यह भी है कि वो सिर्फ उसी बात या रिश्ते को मानता है, जिसे हमारा दिल खुशी-खुशी स्वीकार करता है। जिस बात को हमारा मन नही मानता उस रिश्ते को निभाने के लिये हम लोग अनेको प्रकार के ढोंग रचते है। हम अपने प्रियजनों को चाहे वो हमारा बेटा, बेटी, मां-बाप या अन्य कोई रिश्तेदार हो उसे झट से कबूल कर लेते है, क्योंकि इस रिश्ते को मानने में हमारा मन हमारे साथ होता है। बरसों तक लगातार गुरूद्ववारे, मंदिर और दूसरे धार्मिक स्थानों पर माथा रगड़ने के बाद भी हमारा मन कई बार भगवान के होने पर शक करने लगता है। ऐसे में हमारा मन प्रभु को प्रभु समझ कर फिर भी नही मानता। कई लाखों-करोड़ो लोगो में से कोई एक अपने आप को सम्पूर्ण तौर पर भगवान को समर्पित करता है।
भगवान को पाने की सबसे आसान राह है कि धन सदैव उस का देखो जो तुम्हारे से गरीब और पिछड़ा हुआ है। धर्म उस का देखो जो तुम्हारे से बहुत आगे है, इसी से हमारे मन में भगवान के प्रति आस्था और श्रद्वा बढ़ती है। परन्तु आदमी मन की बात को न मान कर अक्सर बिल्कुल इसके उल्ट देखता है। हम धन तो उसका देखते है जिसका हमारे से अधिक है और धर्म उसका जो अभी हमारे से इस राह में बहुत पीछे है। इन्ही कारणो से हमारे अंदर लोभ और अंहकार पैदा होता है।
हर समय संसारिक वस्तुओ को देखते-देखते हो सकता है कि परमात्मा पहली नजर में हमें अंधविश्वास लगे, क्योंकि जिसे आज तक हमने देखा ही नही उसके ऊपर पूर्ण रूप से मन कैसे विश्वास कर ले? परन्तु जैसे ही हमारा दिल परमात्मा पर भरोसा दिखाता है, उसी पल हमारी आत्मा का मेल परमात्मा से हो जाता है। जिस दिन आपका मन भगवान के होने पर शक करना छोड़ दे तो उस दिन से आप समझना कि धर्म के मार्ग पर मुनाफे की और जा रहे हो। सच्चे भगत हर प्रकार के हालात में भगवान से कभी भी अपना भरोसा खत्म नही होने देते।
यह सच है कि मोह-माया सबको मोहित करती हैे, परंतु सच्ची बात तो यह है कि भगवान के भक्त से वह भी हारी हुई है। आप यदि मानसिक शंति का आनंद प्राप्त करना चाहते हो तो अपने मन को व्यर्थ की उलझनों में कभी मत फंसने मत दो। भगवान के करीब पहुचने के लिये हमें सबसे पहले अपने मन के नजदीक आने की जरूरत होती है। जौली अंकल का विश्वास तो यही कहता है कि भगवान को ढूंढने के लिये दर-दर भटकने की जरूरत नही, भगवान तो हमारे मन में ही बसता है क्योकि हमारा मन भी एक मंदिर ही है।

भरोसा

एक बार एक विदेशी भारत देश घूमने की मंशा से चंद महीने हमारे देश में रहा। जब वो वापिस अपने परिवार के पास पहुंचा तो सबसे पहले उसने अपनी पत्नी से एक बात कही कि अब मुझे पूरा भरोसा हो गया है, कि भगवान सचमुच इस दुनियां में मौजूद है। उसकी पत्नी को बहुत हैरानगी हुई कि भारत के इस दौरे में ऐसा क्या कमाल हो गया कि जन्म-जन्म से मेरा यह नास्तिक पति अचानक ईश्वर को मानने लगा है। उस विदेशी ने बड़ी ही शंति से अपनी पत्नी को समझाया कि भारत में हर कोई बहुत ही मौज मस्ती से रहता है। किसी भी सरकारी दफतर में कभी भी चले जाओ, हर कोई या तो चाय पीता हुआ या गपशप करता ही आपको दिखाई देगा। कुछ लोग तो दिन में दफतर में सोते हुए या ताश खेलते भी आम देखे जा सकते है। परन्तु मजे की बात तो यह है कि इतने बड़े देश के सारे काम फिर भी ठीक से चल रहे है। अब अगर वहां के लोग काम नही करते तो हमारे पास इस बात को मानने के इलावा कोई चारा नही है कि यहां सब कुछ भगवान के भरोसे ही चल रहा है।
यह बात कहने सुनने में चाहें किसी को मजाक लगे, लेकिन अजादी के छह दशकों बाद भी आम आदमी का भरोसा न तो देश के नेताओ पर और न ही सरकारी दफतरों में बैठे अफसरों पर जमता है। इसका एक मात्र कारण यह है कि हमारे प्रिय नेता चुनाव जीतने के लिये अपने सगे रिश्तेदारो और शुभचिंतको को छोड़कर इलाके के नामी बदमाशों और गुंड़ो पर अधिक भरोसा करते है। राजनेताओं की बात चलते ही उनके बार-बार किये गये झूठे वादों को लेकर हर किसी का खून खोलने लगता है। हमारे नेता गद्दी पाने की लालसा में किसी को डरा-धमका कर और कहीं धर्म, भाषा, जाति, ऊंच नीच के भेदभाव से आग भड़का कर अपनी रोटीयां सेकने में ही भरोसा करते है। दुनियां में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद भी आम आदमी को सरकार से इंसाफ मिलने को कोई भरोसा नही होता। आम आदमी की बेबसी तो देखो कि यह जानते हुए भी कि हमारे नेता हमारी किसी समस्यां का हल नही दे सकते, हमें फिर ऐसे ही लोगो के झूठे वादो पर भरोसा करके उन्हें वोट देने को मजबूर होना पड़ता है।
जनता के भरोसे को इस बात से भी ठेस लगती है जब उन्हें यह मालूम होता है कि सरकारी पदों पर काम करने वालों में से अधिकाश लोग जनहित के बारे में न सोच कर व्यक्तिगत हित में काम करते है। आम आदमी चाहे कितना ही मजबूर या परेशान क्यूं न हो परन्तु अपनी सुरक्षा के लिये उसका पुलिस विभाग पर भरोसा नही बैठता। हर कोई अच्छी तरह से जानता है कि पुलिस को अपने इलाके में होने वाले हर वैध-अवैध काम की पूरी जानकारी होती है। फिर भी शरारती लोग तो मौज-मस्ती से इलाके में घूमते है जबकि ईमानदार आदमी को हर समय सरकारी डंडे का भय सताता रहता है। सरकारी दावें कुछ भी कहें परन्तु फुटपाथ पर रोजी रोटी कमाने वालों को इतना भरोसा जरूर होता है कि बिना कुछ भ्रष्ट पुलिस कर्मीयों का पेट भरे हुए वो अपने बच्चो के मुंह में रोटी का एक निवाला भी नही डाल सकता।
ऐसी बात नही है कि हालात इतने बिगड़ चुके है कि हमें किसी भी चीज पर भरोसा ही नही रहा। अभी भी बहुत सी ऐसी बाते है जिन के ऊपर हर कोई आंखे मूंद कर भरोसा कर सकता है। आपको और अधिक हैरान-परेशान न करते हुए मैं यह सब कुछ भी आपको बता ही देता हूँ। हर दिन 8-10 बार बिजली रानी का गायब होना, सुबह-शाम नल खोलने पर सप्ताह में 3-4 दिन पानी के नदारद होने का हर किसी को पूरा भरोसा होता है। हमें इस बात का भी पूरा विश्वास होता है यदि गलती से नल में पानी आ ही गया है तो इस लायक नही होगा कि उसे आसानी से पीया जा सके। सड़को पर बड़े-बड़े गव्े और कालोनी के मेन होल से ढंक्कन गायब होने के भरोसे को हमारे सरकारी कर्मचारी कभी भी टूटने नही देते। व्यापारी वर्ग मंत्रीयों के साथ साठ-गांठ के चलते जरूरी घरेलू वस्तुओं की कीमत को बिना जनता का भरोसा तोड़े हर चंद दिनों में बढ़ा देते है।
रिश्वत देने के बावजूद भी हमें कई बार यह भरोसा नही होता कि सरकारी दफतर से काम ठीक तरीके और समय से हो पायेगा। लेकिन जब कोई बाबू आपको बहुत ही प्यार से पेश आये और दफतर में घुसते ही आपको कुर्सी पर बैठने के लिये कहें तो यह भरोसा पक्का हो जाता है कि अब कुछ ले दे कर हमारा काम असानी से हो जायेगा। हमारे नेताओ को चाहे खुद पर, चाहे अपनी गद्दी पर भरोसा हो या न हो, लेकिन वो हम सभी को यह भरोसा दिलवाने में अक्सर कामयाब हो जाते है कि उनको जनता पर पूरा भरोसा है कि सभी लोग वोट उन्हें ही देगे। इस सारे छल-कपट के खेल में जनसाधारण का भरोसा इतना टूट जाता है कि हम पूर्ण रूप से भगवान को मानते हुए भी कई बार उसके आस्तित्व पर भरोसा नही कर पाते।
अब यदि हमें एक दूसरे का भरोसा जीतना है तो समाज में इस तरह का वातावरण और व्यवस्था बनानी होगी जिससे हर अमीर के साथ गरीब आदमी को न्याय मिल सके। इससे पहले कि आपका भरोसा जौली अंकल से उठ जाये मैं एक ही बात कहना चाहता हूँ कि दूसरो को आंकने से पहले अपने आप को आंके, आप सही में अपने को काफी खुश महसूस करेंगे। अंत मे मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अब यदि आपको अपने ऊपर पूरा भरोसा है तो दूसरे सभी प्राणी भी आप पर भरोसा करने लगेगे।

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

धर्म के लिये कुछ भी करेगा

कहते है कि आदमी जीवन में सब कुछ छोड़ सकता है, लेकिन अपनी बरसों पुरानी आदतो को कभी नही छोड़ पाता। एक लंबे अरसे से हास्य और व्यंग्य लिखते-लिखते मेरी कलम को भी हर विषय की शुरूआत हंसी-मजाक से करने की आदत सी हो गई है। चंद दिन पहले किसी ने मुझ से पूछ लिया कि हमारे फिल्मी सितारे कितने भी मार्डन क्यूं न हो जायें, लेकिन अपनी हर फिल्म की सफलता मांगने के लिये किसी न किसी भगवान की शरण में जरूर जाते है। परन्तु एक बात समझ नही आती कि यह लोग हर तरह के धार्मिक आयोजनों में भी काले चश्में लगा कर क्यूं जाते है? इससे पहले की मैं कुछ कह पाता पास खड़े एक सज्जन ने कहा कि उन्हें यही डर सताता है कि कहीं भगवान उन्हें पहचान कर उनसे आटोग्राफ न मांग ले।
आदमी गरीब हो या अमीर, चंद नास्तिक लोगो को छोड़ कर दुनियां के हर कोने में रहने वाले सभी इंसान किसी न किसी धर्म में जरूर आस्था रखते है और धर्म के नाम पर किसी भी कर्म कांड करने से परहेज नही करते। हमारे देश में जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारी जिंदगी का सारा सफर धर्म के सहारे ही चलता है। धर्म के नाम पर हम सभी बड़े-बड़े आयोजनों से लेकर धार्मिक भवनों पर लाखो करोड़ो रूप्ये का सोना चांदी लगवा देते है। अपनी आर्थिक स्मर्था न होते हुए भी हम मंहगे से मंहगे आभूषण भगवान के चरणों में भेंट कर के अपने आप को धन्य मानते है। शहर में जब कभी भी कोई शोभा यात्रा या नगर कीर्तिन का कार्यक्रम हो तो इलाके के रईसों और उनके परिवार वालो को जगह-जगह लंगर और प्रसाद के स्टाल लगाते हुए और नंगे पाव सड़के तक साफ करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। घर में चाहें हमारे मां-बाप दवा के इंतजार में दर्द से करहा रहे हो, लेकिन हम दूर-दराज धार्मिक स्थलों की तीर्थ यात्रा को अधिक प्राथमिकता देते है।
जीवन में जब कभी कोई परेशानी हमें दुख-दर्द और कष्टों में जकड़ लेती है और हमें कहीं से कोई उम्मीद की किरण दिखाई नही देती तो उस समय हमारी आखें टकटकी लगाऐं चारो-और एक मात्र साहरा पाने के लिये मंदिरो में भगवान को ही ढूंढती है। भक्त लोग समझा-समझा कर थक चुके है कि भगवान सिर्फ मंदिर, गुरूद्ववारों या गिरजा घरों में नही रहता वो तो हर समय, हर जगह और हर जीव में मौजूद है। यदि हम उसे नही देख पाते तो इसमें किसी दूसरे का नही बल्कि हमारा अपना दोष है। हमारी अपनी ही आखों पर काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अंहकार का पर्दा पड़ा हुआ है।
कुछ लोग धर्मिक ग्रंथो को बिना गहराई से समझे पूजा-पाठ और धर्म को अंधविश्वास के साथ जोड़ कर देखते है। धर्म के कामों में ध्यान लगाना ऐसे लोगो के लिये समय की बर्बादी के सिवाए कुछ नही है। दूसरी और हमारे देश के चंद स्वार्थी और राजनीति से जुड़े लोग देश की भूखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मंहगाई, आंतकवाद जैसी गम्भीर सभी समस्याओं को भूल कर धर्म के नाम पर कुछ भी करने को तैयार रहते है। ऐसे लोग धर्म की बैसाखी के साहरे अपना नाम चमकाने के लिये धर्म की आड़ में शरारती तत्वों के माध्यम से शहर में हुडदंग मचा कर देश और जनता की सम्पति को भारी नुकसान पहुंचाते है। यह लोग धर्म के नाम पर जनसाधारण को गुमराह करते हुए हर समय आपा-धापी करने से लेकर लड़ने मरने और खून-खराबा करने को तैयार रहते है। किसी भी भावनत्मक विषय को धर्म के साथ जोड़ कर स्थिति को पल भर में विस्फोटक बना कर समाज में मार-काट, कत्लेआम जैसा उग्र रूप धारण करने में इन्हें जरा भी हिचक या दर्द नही होता।
धार्मिक स्थलों की सेवा के नाम पर वहां होने वाली चढ़ावे के रूप में करोड़ो रूप्यों की मोटी रकम को हड़पने के लिये कुछ प्रभावशाली लोग किसी भी हद तक गिर जाते है। इसी नेतृत्व की लड़ाई के कारण ही हजारो केस बरसो से हमारे देश की अदालतो में धूल चाट रहे है। यह भी सच है कि माया सबको मोहित करती हैे, परंतु भगवान के सच्चे भक्त से वह भी हारी हुई है। आधुनिकता के इस दौर में यह सब कुछ देख मन बहुत हैरान होता है कि धर्म के नाम से खिलवाड़ करने वालों के एक इशारे पर लोग बिना सोचे-समझे मर मिटने को तैयार हो जाते है, वही धर्म के नाम पर प्यार से संग-संग जीना क्यूं नही सीख पाते? मूल बात तो यह है कि धर्म के नाम पर हम वो सब कुछ करते है, जो हमें नही करना चहिये।
यदि हम धर्म के लिये कुछ भी करने को तैयार है तो हमें सर्वप्रथम भूखों को अन्न, बर्जुगों, लाचार और अपाहिजों की मदद करनी चहिये। हमें सदैव मधुर वाणी बोलने की जरूरत है ताकि कभी भी किसी के मन को कोई ठेस न पहुंचे और घर-परिवार में किसी प्रकार का कलेश न हो। एक बात सदैव याद रखो कि आप जितना प्रेम देंगे, उतना ही प्रेम पायेंगे। आपके पास प्रेम जितना अधिक होगा, इसे दान करना उतना ही सहज हो जायेगा। भगवान ने हमें यह जीवन कुछ करने के लिये दिया है, केवल किसी संस्था का प्रधान बन कर दूसरों को उपदेश देते हुए वक्त बिताना जीवन नही है। धर्म के नाम पर किये इन्ही छोटे-छोटे कामों से परमपिता परमात्मा प्रसन्न होते है और यही भगवान और धर्म की सच्ची पूजा अर्चना है। कुछ लोगो का मानना है कि आज के युग में यह सब कुछ संभव नही है, तो ऐसे में जौली अंकल एक बात कहना चाहते है कि यदि आपका मन, बुद्वि और चित जब एक हो जाये ंतो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो जाता है। 

बदलते संबंध

मां सुनने में एक छोटा सा अक्षर है पर इसमें षायद समुद्र से भी ज्यादा गहराई है। दुनिया में जब बच्चा जन्म लेता है तो सबसे करीब अपनी मां को ही पाता है। मां भी हर कठिनाई को खुषी-खुषी झेल कर बच्चे को पालती है। मां और बेटे के रिष्ते से नजदीक शायद और कोई रिश्ता होता भी नहीं। मां बेटे को एक एक दिन बड़ा होते देख खुषी से फूली नहीं समाती। हर मां का अपने बच्चों से जुड़ा एक सपना होता है, उसके बड़े होने का सपना, उस की षादी का सपना, अच्छा इन्सान बनाने का और उसके बाद उसके सुखमय परिवार का सपना।
बच्चा चाहे फिर बेटा हो या बेटी। मां अपनी सारी खुशियों का गला घोंट कर बच्चों के लिये सुख-साधन मुहैया करवाती है, और समाज में बच्चों को इज्जत की जिंदगी जीने के काबिल बनाती है। लेकिन जब मां-बाप को बच्चों की जरूरत महसूस होती है, तो बच्चे इतने खुदगर्ज हो जाते है, कि पैसे कमाने की दौड़ में अपने मां-बाप को बेसहारा छोड़ देते हैं। पर मां तो आखिर मां ही होती है। वो तो हंसते-हंसते सब कुछ बर्दाष्त कर लेती है। हर मां का वात्सल्य अपने बच्चे से भरपूर होता है। लेकिन आज सामाजिक मानसिकता के चलते बेटे का पालण-पोषण और उससे जुड़े मां के सपने ज्यादा अहमियत रखते हैं।
बेटे की षादी के बाद मां का नया रूप सामने आता है, वो है उसका सास का रूप, जिसमें बेटे को मां और पत्नी के बीच सामंजस्य बना कर चलना होता है। उस पर हक जताने वाले भी अधिक हो जाते है। हर मां, बेटे की षादी से पहले सोचती है कि बहू के आ जाने से उसके जीवन में आराम ही आराम होगा। बहू उसकी खूब सेवा करेगी, घर के कामकाज से छुट्टी लेकर अपना सारा समय अपनी मर्जी के मुताबिक बिता सकेगी। लेकिन बदलते हालात ने बहू को बेटे की तरह घर से बाहर जाकर पैसा कमाने को मजबूर कर दिया है। इन सबको देखकर मां के सपने चूर-चूर होने लगते हैं।
बहू का रोज सुबह सज-संवर कर दफतर जाना और शाम को उसका थका-मांदा सा चेहरा देखकर मां का परेशान होना स्वाभाविक ही है। एक ओर तो मां ने बहू से सेवा करवाने के सपने संजोए हुए थे, और अब सबकुछ उससे उल्टा हो रहा है। इन बदले हुए हालात ने क्या मां के रूप को सचमुच बदल दिया है? क्या जीवन की इस दौड़ ने मां और बच्चो के दिलो में फर्क पैदा कर दिया है? कल तक जो मां बच्चों के लिए खुशी-खुशी सब कुछ करने को तैयार रहती थी, आज वो दिल की उंमगें, दिल के अरमान टूटते हुए दिखाई देते है। मां तो बच्चों को पाल-पोस का बड़ा करती है, उसको जीवन में कामयाब बनाती है, और वही बेटा बड़ा होकर मां की जिम्मेदारी नहीं उठा पाता। उस मां का बुढ़ापा उसे एक बोझ सा लगने लगता है। अब यहां प्रष्न यह उठता है कि इन सब गंभीर बातों की जड़ किस को माना जाए? आत्मसम्मान को या बदलते वक्त के रंग को।
परिवार में छोटी-छोटी बातों को लेकर एक-दूसरे को नीचा दिखाना, अपने आप को अधिक काबिल समझना ही षायद सब झगड़ाें की जड़ है। हमारे समाज में मां को किसी देवी या देवता से कम सम्मान नहीं दिया गया। अगर मां की इस छवि को बरकरार रखना है तो मां को भी अपने जीवन में अपने आपको थोड़ा सा ऊपर उठाने की जरूरत है। मां को केवल अपना निजी स्वार्थ न देखकर थोड़े और त्याग की भावना को उजागर करना पड़ेगा। घर में बच्चों की हल्की फुल्की नोंक-झोंक को आगे बढ़ाने की बजाए प्यार से सुलझाने में ही मां का बड़प्पन है।
मां अगर खुशी से बेटे की शादी करके बहू को बेटी बना कर घर लाती है, तो बहू को सिर्फ उसकेर् कत्तव्य समझाने के साथ-साथ उसके अधिकारों का हक भी देना नहीं भूलना चाहिए। जौली अंकल का ऐसा विश्वास है कि यह छोटा सा तालमेल किसी भी घर को स्वर्ग बना सकता है।       

कब होगा आंतक का अंत

कुदरत का नियम है कि जब कभी भी पाप का घड़ा भर जाता है, तो वो एक न एक दिन जरूर फूटता ही है। आए दिन विश्व के किसी न किसी भाग में ज्वालामुखी फटने की खबरें आमतौर पर हम पढ़ते रहते है। कई बार तो ज्वालामुखी के फटने से संमुन्द्र में आग लगने तक के किस्से सामने आए है। ऐसे ही कुछ हादसे हमारे आस पास भी आए दिन होते रहते है। कुछ दिन पहले पड़ोस के रसोईघर में प्रेशर कुकर फटने से एक बहुत बड़ा कांड हो गया। भगवान का शुक्र है कि इस हादसे में किसी की जान तो नही गई, लेकिन रसोई घर की तबाही को देख कर ऐसा लगता था जैसे कोई बहुत बड़ा आंतकी हमला हुआ हो।
वहां खड़े सभी जानकार यह देख कर हैरान हो रहे थे कि स्टील से बना हुआ इतना मजबूत प्रेशर कुकर कैसे फट गया, और उससे इतनी तबाही कैसे हो गई? पास खड़े एक विध्दान ने बताया कि जब कभी कहीं भी भाप बन कर इकट्ठी होती रहेगी तो वो एक समय के उसमें विस्फोट होना स्वाभाविक ही है। आज यही हालात हर देशवासी की हो रही है। हर कोई देश के निकम्में नेताओ से दुखी होकर उन्हें कौस रहा है। समाचार पत्र हो या टी.वी. को कोई भी चैनल हर किसी की जुबां से आक्रोश की आग निकल रही है।
क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि आखिर ऐसा क्यूं होता है? इतिहास गवाह है कि सत्ता पाने के लिये महाभारत काल सें जोड़-तोड़ शुरू हो गई थी। कौन सच्चा हकदार है, नीति क्या कहती है, इन सब बातो को ताक पर रख कर साजिशें रची जाती रही है। महाभारत का युध्द भी सत्ता पाने के षड़यंत्र का ही नतीजा था। लगता है कि आज देश की बागडोर ओछे और तंग नजरीये वालो राजनेताओ के हाथ में आ गई है। ऐसे लोग बहुत ही गैरजिम्मेंदारी से काम कर रहे है। उन्हें देश से प्यार नही है, वो तो सिर्फ अपने खानदान की सुरक्षा और हर हालात में विपक्षीयो की खामीयॉ निकाल कर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के बारे में ही सोचते रहते है।
कुछ खास नेता पूरे देश को एक परिवार का गुलाम बना कर रखना चाहते है। जनहित की बात सोचने के लिए हमारे नेताओ के पास समय ही नही होता। कुछ दिन पहले हमारे वैज्ञानिकों ने हम सब का प्यारा तिंरगा चांद तक पहुंचा दिया, लेकिन जमीन पर जो कुछ आज देश की जनता के साथ हो रहा है, उससे हर देशवासी का सिर शर्म से झुक जाता है। आए दिन देश के किसी न किसी हिस्से में नेताओ की नाकामीयों के कारण तबाही हो रही है। यहां तक की आंतकीयो ने संसद भवन पर भी हमला कर दिया है। हर बार यह हमला पहले से बड़ा होता है और अनेक घरो के चिराग सदा के लिए बुझ जाते है। लेकिन हमारे नेताओं के लिए यह एक हंसी मजाक का विषय बन कर रह जाता है।
अपने देश के रहनुमाओं की सुने तो उनका कहना है, कि इतने बड़े देश में ऐसी छोटी मोटी बाते तो होती ही रहती है। अगर सैंकड़ो बेगुनाहो को इस तरह मौत के घाट उतारना एक छोटी घटना है तो जनता जानना चाहती है, कि ऐसे नेताओ की नजर में बड़ी घटना किस को कहेगे? राजनीतिज्ञों के इस व्यवहार को देख राष्ट्रवासियों का सिर शर्म से झुक जाता है। आज सब कुछ जनता के सामने है, कि हमारे नेताओ ने देश की क्या हालत कर दी है। यह केवल 'निज हित' और स्वार्थ को पूरा करने की राजनीति है।
हमारे देश के नेता शायद यह भूल चुके है कि देश के अनपढ़ लोगो में भी वो ताकत है जिन्होनें अंगेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। आज का मतदाता अब राष्ट्रहितो को नेताओ के स्वार्थ के लिए और कुर्बान होते नही देख सकता। भारत की जनता में वो समर्था है कि वो दुनियॉ का बदल सकते है। अब समय आ गया है कि देश की गद्दी पर केवल उसी का हक हो जो गरीबों के दुख-दर्द और उनकी समस्याओं की फ्रिक कर सके। राजनीति का जो पतन हम आज देख रहे है, उसकी मूल वजह भी यही है कि अपने वोट से जिताने वाली जनता भी राजनीतिक दलों से यह नही पूछती कि उनके पिछले चुनावी घोषणापत्र का क्या हुआ?
ऐसे हालात में हर भारतवासी बैचेन है, उनका विश्वास व्यवस्था और प्रशासन से खत्म हो चुका है। हर किसी को अपनी देखरेख खुद करनी पड़ रही है, किसी को प्रशासन से किसी प्रकार की मदद की कोई उम्मीद नजर नही आती। समय की सबसे बड़ी मांग यह है कि देश की जनता को अगर अपने नेताओ को चुनने का अधिकार है, तो नाकाम और स्वार्थी लोगो को गद्दी से हटाने की ताकत भी होनी चहिए।
जौली अंकल करोड़ो देशवासीयो की और से नेताओ को यह जताना चाहते है कि वो अब अपनी जिम्मेंदारी को ठीक से निभाने की आदत बनाए वरना सीधी-साधी और भोली भाली दिखने वाली जनता के अंदर छिपा ज्वालामुखी जुबान पर नेताओ नेताओ को करारा सबक सिखाने में समर्थ है। आज देश के बुध्दिजीवियो एवं जागरूक नागरिको की के लिए एक ही सवाल है कि कब होगा आंतक का अंत?  

शतरंज की गोटीयॉ

आजकल शहर के हर चौराहे, गली कूचो की दीवारो, पर राजनीतिक पार्टीयों के संदेश, तरह-तरह के रंगीन पोस्टर, एवं झंडे आदि दिखाई देने लगे है। समाचार पत्रों और टी. वी. में सुबह-शाम मंत्रीयो के लच्छेदार भाषण सुनने को मिल रहे है। नेताओ ने एक दूसरे पर इल्जाम लगाने की झड़ी शुरू कर दी है। जिस तरह पुराने समय में युध्द की तैयारी से पहले सभी सिपाई अपने-अपने हथियारो को मांज कर तैयार करते थे ठीक उसी प्रकार आज के नेता लोग नये-नये खादी के सफेद कुरतें-पायजमों के साथ अपनी जुबान को चीनी की मिठास में घोल कर वोटरो को रिझााने में लगे है।
क्योंकि सभी नेता जानते है कि अब छुटभैये नेताओ, कुर्सी-टैंंट वाले, हलवाई से लेकर एक आम आदमी की न जाने किस सभा में कहा जरूरत आन पड़े। हर छोटे से छोटे वोटर से भी रिश्ते बनाने में लगे है। हमारे प्रिय नेता लोग अच्छी तरह से जानते है कि अब समय आ गया है कि हर वोटर को किस तरह शतरंज की गोटीयों की तरह अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना है।
हमारे देश की राजनीति की अनेक विशेषताऐ है। दुनियॉ का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद हमारे देश में चुनाव एक हंसी-मजाक का मुद्दा बन कर रह गये है। जिस किसी शरीफ आदमी के पास अच्छे गुण और देश को संभलाने की समर्था है, वो इस क्षेत्र में आने की हिम्मत नही जुटा पाता। पैसे और ताकत के जोर पर देश के जाने-माने अपराधी भी मंत्री पद तक आसनी से पहुंच जाते है। कुछ लोग तो बिना चुनाव लड़े ही प्रधानमंत्री की गद्दी पर असीन हो जाते है। ऐसा आदमी जो जनता के सामने चुनाव लड़ने की हिम्मत न रखता हो वो जनसाधारण के हित की बात कैसे सोच सकता है? ऐसा प्रधानमंत्री तो सिर्फ उन्ही का गुणगाण करेगे जिन लोगो ने उसे कठपुतली बना कर देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सोंप दी है।
चुनावों से कुछ अरसा पहले हर प्रदेश की राजनीतिक पार्टीयों से जरूर यह सुनने को मिलता है कि केवल योग्य प्रत्याशियों को ही चुनाव का टिकट दिया जायेगा। लेकिन हकीकत जनता से छुपी नही है। पैसे की चमक के आगे सभी योग्ताए धरी की धरी रह जाती है। कुछ प्रत्याक्ष्ीयों के लिये योग्यता का पैमाना सिर्फ पार्टी के बड़े नेताओ की सेवा या यूं कहिये कि चम्चागिरी तक ही सीमित होती है। जनता को उनसे क्या अपेक्षाऐं है, इससे उन लोगो को कोई सरोकार नही होता। कुछ खास किस्म के नेता हर हाल में सत्ता की बागडोर को अपने हाथो में रखने के लिए कुछ भी करने से परहेज नही करते। हर छुटभैया अपने आप को किसी बड़े नेता से कम नही समझता। अपने मुंह से वो चाहे हर किसी के लिए आग ही उगले, लेकिन दूसरो के मुख से उसे हर समय सिर्फ अपनी तारीफ सुनना ही भाता है।
आज एक अनपढ़ रिक्शा चलाने वाला भी यह समझता है, कि नेता लोग सिर्फ चुनावो के मौसम में ही अनेक लुभावने वादे और हसीन ख्वाब दिखा कर गुमराह करते है। सब कुछ जानते हुऐ भी हम सभी इन कलाकारो से बढ़ कर अपने नेताओ का तमाशा देखने को मजबूर है। हालिंक देश की जनता चाहे तो नेताओ के लिये योग्यता का पैमाना तय कर के राजनीति के अध्याय में एक नई शुरूआत कर सकती है।
लेकिन चुनावों के प्रति हमारी उदासहीनता के कारण, नेता हमारी कमजोरीयों का भरपूर फायदा उठाते है। अगर अब भी देश का वोटर नही जागा तो हमारे देश के स्वार्थी नेता पूरे देश के वोटरो को सदा के लिये अपनी इच्छा के मुताबिक केवल अपने फायदे के लिये शतरंज की गोटीयों की तरह ही इस्तेमाल करते रहेगे।
अंत में जौली अंकल आप सब को इतना ही कहना चाहते है कि हर बार शतरंज की गोटीयॉ बनने की बजाए इस बार अपना कीमती वोट देने से पहले अपने प्रिय नेताओ से पिछले 5 साल का पूरा-पूरा हिसाब-किताब जरूर मांगे।           

प्यार से हम को जीने दो

एक चुनावी सभा में एक गरीब व्यक्ति ने नेता जी से पूछ लिया कि पिछले 60 सालों से आप जो हसीन और रंगीन सपने हमें दिखाते आ रहे हो क्या कभी वो हकीकत में तबदील हो पायेगे? क्या आपके द्वारा दिखाया हुआ कोई भी सपना आज तक सच हो पाया है? नेता जी ने चेहरे पर लंबी सी मुस्कान बिखरते हुए कहा कि आप यह क्या कह रहे हो? सपने तो हमेशा सच होते है। अभी मैने कल रात ही एक सपना देखा कि मैं सो रहा  हूँ। मैने झट से उठ कर देखा तो मैं सच में सो रहा था। यह हकीकत थी या मजाक उस गरीब आदमी की समझ में कुछ नही आया। हमारे नेताओ की सबसे बड़ी खासयित यही है कि जनता जब कभी कोई सीधी बात करे तो जनता को उन्ही के सवालों में उलझा दो। फिर जनता हर बात का अपनी समझ अनुसार मतलब निकाल अपास में उलझती रहेगी और नेता लोग चैन की बंसी बजाते हुए यह सारा नजारा देख कर प्रसन्न होते रहेगे।
भाईचारे और एकता का सदेंश लिये बरसों पुराने एक गीत को सुन कर आज भी आखें नम हो आती है। इस गीत के बोल कुछ इस प्रकार है - ना तू हिंदू बनेगा, न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा। यह बात तो हर कोई जानता और समझता है कि भगवान ने हमें हिंदु, मुसलमान, सिख या ईसाई बना कर नही भेजा। जिस परिवार में हमारा जन्म होता है, हम सभी उसी के संस्कारों और धर्म से जुड़ जाते है। भगवान ने सभी इंसानो को बिल्कुल एक जैसे हाथ पैर, आंख, कान आदि देकर भेजा है। यदि भगवान ने हमारा कोई एक खास धर्म तह भी करना होता, तो जहां उसने हमारे शरीर के इतने सारे अभित्र अंग बनाये है, वही हमारे माथे या हाथ पर हमारे धर्म का नाम भी अंकित कर सकता था।
धर्म के नाम पर समाज को बांटने वालों ने क्या कभी यह जानने की कोशिश की है, कि जब कभी हम किसी बीमारी या चोट लगने के कारण अस्पताल में मृत्यु शैया पर पड़े होते है, तो उस समय जो रक्त हमें दिया जा रहा है, वो किस धर्म से ताल्लुक रखने वाले का है? हमारा इलाज करने वाले डॉक्टर और अन्य चिकित्सा अधिकारी किस मजहब से जुड़े हुऐ है। ऐसे महौल में हम मौत से बचने के लिये इस प्रकार की सभी बातो को भूल जाते है। कोई इंसान चाहे सारा जीवन किसी भी धर्म को मानता रहे लेकिन यदि एक दिन अचानक किसी कारणवश वो अपना धर्म परिवर्तन करता है, तो क्या उसके हाथ-पांव या चेहरे में कोई बदलाव आ जाता है। धर्म बदलने से यदि कोई चीज बदलती है तो वो है सिर्फ उसके मन के विचार। केवल विचारो के बदलने से ही हमारे विचार एक धर्म से बदल कर दूसरे धर्म की और झुक जाते है।
अग्रेजो द्वारा बहुत ही चतुराई से चलाई गई एक दूसरे को बांटो और राज करो की राजशासन की नीति के बीज पिछले 60 सालों में हमारे देश के हर हिस्से में अपनी जड़े अच्छी तरह से जमां चुके है। उन्ही की दिखाई हुई राह पर चलते हुए हमारे देश के नेता आजादी से लेकर आज तक दुहरी नीति अपनाते रहे है। अपने भाषणों में जहां वह लोग धर्म-जाति के नाम पर भेदभाव खत्म करने और उदारीकरण की बात कहते है वही दूसरी और अधिक से अधिक मत पाने के लिये इन्ही सभी चीजों का खुल कर चुनावों में इस्तेमाल करते है।
हमारे देश के रहनुमाओं के पास न जाने जादू की कौन सी ऐसी छड़ी है कि सदियों से हर सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देने वालों के रिश्तो को एक क्षण में तार-तार कर देते है। इन लोगो के भहकावे में आकर हम अपनों का खून बहाने से भी नही हिचकते। नेताओ के भहकावे में आकर हम यह भी भूल जाते है कि कपटी और मक्कार तो केवल थोड़ी देर के लिये ही खुश होता है, परंन्तु ईमानदारी के सामने वह बाद में हमेशा रोता ही है। अब तक हुए अनेक चुनावों में हम कई बार देख चुके है कि जो कोई नेता अपनी गर्दन ऊंची रखता है, वह सदा मुंह के बल गिरता है। ऐसे लोगो को एक बात सदैव याद रखनी चहिये कि ईश्वर के समक्ष सभी एक समान हैं न कोई छोटा होता है न कोई बड़ा। कुछ नेता थोड़ा बहुत पढ़-लिख जाने के कारण खुद को बहुत बड़ा विद्ववान समझने लगते है, जबकि सच्ची महानता तो इंसान के व्यवहार से पहचानी जाती है।
दिन, महीने और साल बीतते-बीतते देश को आजाद हुए आज छह दशक बीत चुके है, परन्तु देश के अमीर आदमी हर दिन और अधिक अमीर, गरीब मजदूर, किसान और गरीब होते जा रहे है। इस बात को जानते हुऐ भी कि प्यार से रहने वालों में एक दूसरे के प्रति स्नेह और विश्वास बढ़ता है, देशवासीयों में देश के प्रति प्यार और आपसी भाईचारा हर दिन कम होता जा रहा है। जो इंसान सच्चे ह्नदय से दूसरो की सेवा करते है उन्हें जीवन में कभी कोई कष्ट नही होता। हमें कभी भी किसी का दिल नही दुखाना चहिए, क्योंकि हर दिल में ईश्वर का वास होता है। सभी नेताओ से जनता की एक ही प्रार्थना है कि आप राजनीति के खेल में चाहें कुछ भी खेल खेलों लेकिन यदि अपनी वाणी सत्य पर आधरित रखोगे तो आपको सदा सुख ही सुख मिलेगा।
हंसी खुशी और प्यार की दुनियां में जीने वाले जौली अंकल देश को राह दिखाने वालों को यही कहना चाहते है कि जहां प्यार होता है वहां तो चारों और खुशीयां ही खुशीयां महकती है, इसलिये सभी देशवासीयों को प्यार से मिलकर जीने दो।  

जवाबदेही

जिस तरह खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है, ठीक उसी प्रकार देश में आऐ दिन चुनावों से प्रभावित होकर जंगल के जानवरों को भी थोड़ा जोश आया कि क्यूं न हम भी अपने एक अच्छे से नेता का चुनाव करें। लेकिन जंगल के राजा बब्बर शेर का विरोध करने की हिम्मत किसी भी जानवर में न थी। हर कोई अपनी जान बचाने के लिये इस मुद्दे पर खुलकर बात करने से कतराता था। इन सारे हालात को देखते हुए बंदर मामा ने चोरी छिपे कुछ जानवरों की चापलूसी करते हुए धीरे-धीरे चुनावों का महौल तैयार कर ही लिया। एक दिन बंदर मामा ने मौका पाकर जंगल में जल्दी से चुनाव करवाये और बहुत ही चलाकी से खुद ही सबसे बड़ा नेता बन बैठा।
अगले ही दिन सुबह जंगल की सबसे खूबसूरत बकरी अन्य कुछ जानवरो के साथ बंदर मामा के पास आई और बोली की शेर मेरे प्यारे से मैमने को उठा कर ले गया है। जल्दी से कुछ करो नही तो वो उसे मार कर खा जायेगा। अब बंदर मामा में इतनी हिम्मत तो थी नही कि वो शेर के घर की तरफ मुंह उठा कर भी देख सके। अपनी इज्जत को दावं पर लगा देख सभी जानवरों को प्रभावित करने के लिये बंदर मामा कभी पेड़ की एक डाल से छंलाग लगा कर दूसरी पर चला जाता और फिर वहां से छंलाग लगा कर किसी और पेड़ की टहनी पर जा बैठता।
काफी देर यह सब कुछ देखने के बाद उस बकरी ने कहा कि बंदर मामा तुम यह सब क्या कर रहे हो? तुम जल्दी से जाकर शेर से बात करो नही तो मेरा बच्चा मुफत में मारा जायेगा। बंदर मामा ने बाकी जानवरों के सामने शेखी बघारते हुए उस बकरी को डांटते हुए कहा कि तुम देख तो रही हो कि मैं सुबह से ही तुम्हारे लिये कितनी दौड़ भाग कर रहा  हूँ। मेरी दौड़ भाग में कहीं कोई कमी है तो बताओ अब इससे ज्यादा इस केस में मैं कुछ नही कर सकता।
इस दिलचस्प कहानी को पढ़ने के बाद आपके मन में भी यह टीस तो जरूर उठ रही होगी की हमारे देश के नेताओ का हाल भी बंदर मामा जैसा ही है। देश में सूखा पड़े या बाढ़ के हालात बन जायें, मंहगाई चाहें आसमान को छोड़ मंगलग्रह को छूने लगे। टूटी सड़को और कभी खुले हुए मैन होल या नालों में गिर कर बच्चो से लेकर बर्जुगो तक की आए दिन मौते हो जायें। न जानें हमारी सरकार और उसके कर्मचारीयों पर कोई असर क्यूं नही होता?
जब कभी ऐसा कोई बड़ा हादसा हो जाता है तो लोग सरकार के खिलाफ रोष प्रकट करते हुए अपने गुस्से का इजाहर हर तरफ तोड़-फोड़ करने के साथ खुलकर दुकानों में लूट-पाट करंते है। ऐसे में आम आदमी की हालत उस मासूम बकरी की तरह हो जाती है, जो न तो खुद हिम्मत करके शेर से अपना बच्चा छुड़ा सकती है और लाचार होकर बंदर जैसे नेताओ के भरोसे रह कर खून के आंसू पीने के अलावा उसके पास कोई चारा नही बचता। हमारे देश की जनता भी इतनी महान है कि अगली सुबह तक हर बड़े से बड़े हादसे को भूल कर अपना सामान्य सा जीवन जीना शुरू कर देते है।
हम इस बात से इंकार नही करते कि हमारे राष्ट्र ने कोई तरक्की नही की, परन्तु अजादी के 63 साल बाद भी कई देशवासीओं को मूलभूत सुविधाऐं मिलना तो दूर आज भी दो वक्त की रोटी नसीब नही होती। आज दाल के भाव 100 रूप्ये किलो तक पहुंच गये है। इसके बावजूद भी देश का किसान और मजदूर आत्महत्या करने को मजबूर है क्योंकि इस सारे खेल में कमाई का मौटा हिस्सा सरकारी दलालों और बिचोलियों की तिजारीयों में चला जाता है। सदियों से हमारे देश में यह कहावत चली आ रही है कि देश का किसान ऋृण में जन्म लेता है, ऋृण में ही बड़ा होता है और ऋृण में ही मर जाता है। अब तो ऐसे हालात पैदा होते जा रहे है कि ऋृण न चुका पाने के कारण उसे आत्महत्या करनी पड़ती है। किसान के साथ मध्यम वर्ग की जनता के लिये बिजली, पानी, घर, रोजगार जैसी जरूरी सुविधायों के अभाव किसी से छिपे हुए नही है।
यदि कोई इंसान जिंदगी की बदहाली से तंग आकर आत्महत्या करने में असफल हो जाता है तो उस समय उस के लिये बाकी का जीवन जीना और भी मुशकिल हो जाता है। हमारे देश का कानून चाहे किसी की रोजी-रोटी का इंतजाम करे या न करे लेकिन किसी को अपनी मर्जी से मरने की इजाजत नही देता। हमारे कानून के मुताबिक आत्महत्या करना एक अपराध है और इसके लिये राष्ट्रपति की इजाजत लेना जरूरी है।
समय की मांग है कि हर समय अपने भाषणों में जनहित की बाते करने वाली सरकार उचित कदम उठाते हुए हर विभाग के संबंधित अधिकारीयों की जिम्मेंदारी तय करे। सरकार सिर्फ अमीरों को ही नही गरीबो की सुरक्षा के लिये भी उचित प्रंबध करे, यदि वो ऐसा नही करती तो आने वाले समय में किसी वक्त भी हालात बेकाबू हो सकते है। जौली अंकल तो बरसों से कहते आ रहे है कि हर बड़े हादसे पर लीपा पोती करके अपराधीयों को बचाने की बजाए जब तक सरकारी अधिकारीयों की उनके कर्तव्य के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित नही होगी उस समय तक इस देश में जनसाधारण को न्याय मिलने की उम्मीद नही की जा सकती।