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गुरुवार, 14 जनवरी 2010

धर्म के लिये कुछ भी करेगा

कहते है कि आदमी जीवन में सब कुछ छोड़ सकता है, लेकिन अपनी बरसों पुरानी आदतो को कभी नही छोड़ पाता। एक लंबे अरसे से हास्य और व्यंग्य लिखते-लिखते मेरी कलम को भी हर विषय की शुरूआत हंसी-मजाक से करने की आदत सी हो गई है। चंद दिन पहले किसी ने मुझ से पूछ लिया कि हमारे फिल्मी सितारे कितने भी मार्डन क्यूं न हो जायें, लेकिन अपनी हर फिल्म की सफलता मांगने के लिये किसी न किसी भगवान की शरण में जरूर जाते है। परन्तु एक बात समझ नही आती कि यह लोग हर तरह के धार्मिक आयोजनों में भी काले चश्में लगा कर क्यूं जाते है? इससे पहले की मैं कुछ कह पाता पास खड़े एक सज्जन ने कहा कि उन्हें यही डर सताता है कि कहीं भगवान उन्हें पहचान कर उनसे आटोग्राफ न मांग ले।
आदमी गरीब हो या अमीर, चंद नास्तिक लोगो को छोड़ कर दुनियां के हर कोने में रहने वाले सभी इंसान किसी न किसी धर्म में जरूर आस्था रखते है और धर्म के नाम पर किसी भी कर्म कांड करने से परहेज नही करते। हमारे देश में जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारी जिंदगी का सारा सफर धर्म के सहारे ही चलता है। धर्म के नाम पर हम सभी बड़े-बड़े आयोजनों से लेकर धार्मिक भवनों पर लाखो करोड़ो रूप्ये का सोना चांदी लगवा देते है। अपनी आर्थिक स्मर्था न होते हुए भी हम मंहगे से मंहगे आभूषण भगवान के चरणों में भेंट कर के अपने आप को धन्य मानते है। शहर में जब कभी भी कोई शोभा यात्रा या नगर कीर्तिन का कार्यक्रम हो तो इलाके के रईसों और उनके परिवार वालो को जगह-जगह लंगर और प्रसाद के स्टाल लगाते हुए और नंगे पाव सड़के तक साफ करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। घर में चाहें हमारे मां-बाप दवा के इंतजार में दर्द से करहा रहे हो, लेकिन हम दूर-दराज धार्मिक स्थलों की तीर्थ यात्रा को अधिक प्राथमिकता देते है।
जीवन में जब कभी कोई परेशानी हमें दुख-दर्द और कष्टों में जकड़ लेती है और हमें कहीं से कोई उम्मीद की किरण दिखाई नही देती तो उस समय हमारी आखें टकटकी लगाऐं चारो-और एक मात्र साहरा पाने के लिये मंदिरो में भगवान को ही ढूंढती है। भक्त लोग समझा-समझा कर थक चुके है कि भगवान सिर्फ मंदिर, गुरूद्ववारों या गिरजा घरों में नही रहता वो तो हर समय, हर जगह और हर जीव में मौजूद है। यदि हम उसे नही देख पाते तो इसमें किसी दूसरे का नही बल्कि हमारा अपना दोष है। हमारी अपनी ही आखों पर काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अंहकार का पर्दा पड़ा हुआ है।
कुछ लोग धर्मिक ग्रंथो को बिना गहराई से समझे पूजा-पाठ और धर्म को अंधविश्वास के साथ जोड़ कर देखते है। धर्म के कामों में ध्यान लगाना ऐसे लोगो के लिये समय की बर्बादी के सिवाए कुछ नही है। दूसरी और हमारे देश के चंद स्वार्थी और राजनीति से जुड़े लोग देश की भूखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मंहगाई, आंतकवाद जैसी गम्भीर सभी समस्याओं को भूल कर धर्म के नाम पर कुछ भी करने को तैयार रहते है। ऐसे लोग धर्म की बैसाखी के साहरे अपना नाम चमकाने के लिये धर्म की आड़ में शरारती तत्वों के माध्यम से शहर में हुडदंग मचा कर देश और जनता की सम्पति को भारी नुकसान पहुंचाते है। यह लोग धर्म के नाम पर जनसाधारण को गुमराह करते हुए हर समय आपा-धापी करने से लेकर लड़ने मरने और खून-खराबा करने को तैयार रहते है। किसी भी भावनत्मक विषय को धर्म के साथ जोड़ कर स्थिति को पल भर में विस्फोटक बना कर समाज में मार-काट, कत्लेआम जैसा उग्र रूप धारण करने में इन्हें जरा भी हिचक या दर्द नही होता।
धार्मिक स्थलों की सेवा के नाम पर वहां होने वाली चढ़ावे के रूप में करोड़ो रूप्यों की मोटी रकम को हड़पने के लिये कुछ प्रभावशाली लोग किसी भी हद तक गिर जाते है। इसी नेतृत्व की लड़ाई के कारण ही हजारो केस बरसो से हमारे देश की अदालतो में धूल चाट रहे है। यह भी सच है कि माया सबको मोहित करती हैे, परंतु भगवान के सच्चे भक्त से वह भी हारी हुई है। आधुनिकता के इस दौर में यह सब कुछ देख मन बहुत हैरान होता है कि धर्म के नाम से खिलवाड़ करने वालों के एक इशारे पर लोग बिना सोचे-समझे मर मिटने को तैयार हो जाते है, वही धर्म के नाम पर प्यार से संग-संग जीना क्यूं नही सीख पाते? मूल बात तो यह है कि धर्म के नाम पर हम वो सब कुछ करते है, जो हमें नही करना चहिये।
यदि हम धर्म के लिये कुछ भी करने को तैयार है तो हमें सर्वप्रथम भूखों को अन्न, बर्जुगों, लाचार और अपाहिजों की मदद करनी चहिये। हमें सदैव मधुर वाणी बोलने की जरूरत है ताकि कभी भी किसी के मन को कोई ठेस न पहुंचे और घर-परिवार में किसी प्रकार का कलेश न हो। एक बात सदैव याद रखो कि आप जितना प्रेम देंगे, उतना ही प्रेम पायेंगे। आपके पास प्रेम जितना अधिक होगा, इसे दान करना उतना ही सहज हो जायेगा। भगवान ने हमें यह जीवन कुछ करने के लिये दिया है, केवल किसी संस्था का प्रधान बन कर दूसरों को उपदेश देते हुए वक्त बिताना जीवन नही है। धर्म के नाम पर किये इन्ही छोटे-छोटे कामों से परमपिता परमात्मा प्रसन्न होते है और यही भगवान और धर्म की सच्ची पूजा अर्चना है। कुछ लोगो का मानना है कि आज के युग में यह सब कुछ संभव नही है, तो ऐसे में जौली अंकल एक बात कहना चाहते है कि यदि आपका मन, बुद्वि और चित जब एक हो जाये ंतो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो जाता है। 

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