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गुरुवार, 14 जनवरी 2010

कब होगा आंतक का अंत

कुदरत का नियम है कि जब कभी भी पाप का घड़ा भर जाता है, तो वो एक न एक दिन जरूर फूटता ही है। आए दिन विश्व के किसी न किसी भाग में ज्वालामुखी फटने की खबरें आमतौर पर हम पढ़ते रहते है। कई बार तो ज्वालामुखी के फटने से संमुन्द्र में आग लगने तक के किस्से सामने आए है। ऐसे ही कुछ हादसे हमारे आस पास भी आए दिन होते रहते है। कुछ दिन पहले पड़ोस के रसोईघर में प्रेशर कुकर फटने से एक बहुत बड़ा कांड हो गया। भगवान का शुक्र है कि इस हादसे में किसी की जान तो नही गई, लेकिन रसोई घर की तबाही को देख कर ऐसा लगता था जैसे कोई बहुत बड़ा आंतकी हमला हुआ हो।
वहां खड़े सभी जानकार यह देख कर हैरान हो रहे थे कि स्टील से बना हुआ इतना मजबूत प्रेशर कुकर कैसे फट गया, और उससे इतनी तबाही कैसे हो गई? पास खड़े एक विध्दान ने बताया कि जब कभी कहीं भी भाप बन कर इकट्ठी होती रहेगी तो वो एक समय के उसमें विस्फोट होना स्वाभाविक ही है। आज यही हालात हर देशवासी की हो रही है। हर कोई देश के निकम्में नेताओ से दुखी होकर उन्हें कौस रहा है। समाचार पत्र हो या टी.वी. को कोई भी चैनल हर किसी की जुबां से आक्रोश की आग निकल रही है।
क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि आखिर ऐसा क्यूं होता है? इतिहास गवाह है कि सत्ता पाने के लिये महाभारत काल सें जोड़-तोड़ शुरू हो गई थी। कौन सच्चा हकदार है, नीति क्या कहती है, इन सब बातो को ताक पर रख कर साजिशें रची जाती रही है। महाभारत का युध्द भी सत्ता पाने के षड़यंत्र का ही नतीजा था। लगता है कि आज देश की बागडोर ओछे और तंग नजरीये वालो राजनेताओ के हाथ में आ गई है। ऐसे लोग बहुत ही गैरजिम्मेंदारी से काम कर रहे है। उन्हें देश से प्यार नही है, वो तो सिर्फ अपने खानदान की सुरक्षा और हर हालात में विपक्षीयो की खामीयॉ निकाल कर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के बारे में ही सोचते रहते है।
कुछ खास नेता पूरे देश को एक परिवार का गुलाम बना कर रखना चाहते है। जनहित की बात सोचने के लिए हमारे नेताओ के पास समय ही नही होता। कुछ दिन पहले हमारे वैज्ञानिकों ने हम सब का प्यारा तिंरगा चांद तक पहुंचा दिया, लेकिन जमीन पर जो कुछ आज देश की जनता के साथ हो रहा है, उससे हर देशवासी का सिर शर्म से झुक जाता है। आए दिन देश के किसी न किसी हिस्से में नेताओ की नाकामीयों के कारण तबाही हो रही है। यहां तक की आंतकीयो ने संसद भवन पर भी हमला कर दिया है। हर बार यह हमला पहले से बड़ा होता है और अनेक घरो के चिराग सदा के लिए बुझ जाते है। लेकिन हमारे नेताओं के लिए यह एक हंसी मजाक का विषय बन कर रह जाता है।
अपने देश के रहनुमाओं की सुने तो उनका कहना है, कि इतने बड़े देश में ऐसी छोटी मोटी बाते तो होती ही रहती है। अगर सैंकड़ो बेगुनाहो को इस तरह मौत के घाट उतारना एक छोटी घटना है तो जनता जानना चाहती है, कि ऐसे नेताओ की नजर में बड़ी घटना किस को कहेगे? राजनीतिज्ञों के इस व्यवहार को देख राष्ट्रवासियों का सिर शर्म से झुक जाता है। आज सब कुछ जनता के सामने है, कि हमारे नेताओ ने देश की क्या हालत कर दी है। यह केवल 'निज हित' और स्वार्थ को पूरा करने की राजनीति है।
हमारे देश के नेता शायद यह भूल चुके है कि देश के अनपढ़ लोगो में भी वो ताकत है जिन्होनें अंगेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। आज का मतदाता अब राष्ट्रहितो को नेताओ के स्वार्थ के लिए और कुर्बान होते नही देख सकता। भारत की जनता में वो समर्था है कि वो दुनियॉ का बदल सकते है। अब समय आ गया है कि देश की गद्दी पर केवल उसी का हक हो जो गरीबों के दुख-दर्द और उनकी समस्याओं की फ्रिक कर सके। राजनीति का जो पतन हम आज देख रहे है, उसकी मूल वजह भी यही है कि अपने वोट से जिताने वाली जनता भी राजनीतिक दलों से यह नही पूछती कि उनके पिछले चुनावी घोषणापत्र का क्या हुआ?
ऐसे हालात में हर भारतवासी बैचेन है, उनका विश्वास व्यवस्था और प्रशासन से खत्म हो चुका है। हर किसी को अपनी देखरेख खुद करनी पड़ रही है, किसी को प्रशासन से किसी प्रकार की मदद की कोई उम्मीद नजर नही आती। समय की सबसे बड़ी मांग यह है कि देश की जनता को अगर अपने नेताओ को चुनने का अधिकार है, तो नाकाम और स्वार्थी लोगो को गद्दी से हटाने की ताकत भी होनी चहिए।
जौली अंकल करोड़ो देशवासीयो की और से नेताओ को यह जताना चाहते है कि वो अब अपनी जिम्मेंदारी को ठीक से निभाने की आदत बनाए वरना सीधी-साधी और भोली भाली दिखने वाली जनता के अंदर छिपा ज्वालामुखी जुबान पर नेताओ नेताओ को करारा सबक सिखाने में समर्थ है। आज देश के बुध्दिजीवियो एवं जागरूक नागरिको की के लिए एक ही सवाल है कि कब होगा आंतक का अंत?  

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